इस तपते भूखंड पर
उड़ते गरम रेत के बीच
जब मैं झुकूं नल पर
तब ओ प्यास
मुझे मत करना कमजोर
पियूं तो एक चुल्लू कम
कि याद रहे दूसरों की प्यास भी
खाऊँ तो एक कौर कम
कि याद रहे दूसरों की भूख भी
बाबा से हर दम यह दुआ मांगता रहता हूँ कि जियूं इस तरह अपने इस जन्म को।
एक ओर दूसरों की प्यास का खयाल रख एक चुल्लू पानी कम पीने, दूसरों की भूख का खयाल रख एक कौर कम खाने की चेतना से भरे चरित्र की तलाश हमारे बाबा साँई इस दुनिया में कर रहे है। लेकिन दूसरी ओर ठीक तभी यहीं इसी दुनिया में हत्यारे, आततायी व दंगाई माँ से पुत्रों को, भाईयों से बहन को, पत्नियों से पति को, कण्ठों से गीत को, जल से मिठास को और पेड़ों से हरियाली को छीन लेने का षड़यंत्र कर पूरी धरती को अशांत करने में लगे हुए हैं। जो इस सदी की भयावह घटना के रूप में सामने आता है।
बाबा साँई को तलाश है एक ऐसे इन्सान की और एक ऐसे भक्त की जो समझ सके मेरे बाबा साँई की पीड़ा को। आओ समय निकाले अपनी भागम भाग के जीवन से ओर करे धन्यवाद अपने साँई का हर उस अन्न के कौर का और हर एक चुल्लू पानी का जो हमे जीवन देता है। बाबा साँई हमसे इस भाव की ही तो अपेक्षा रखते है। आइये बाबा की इन अपेक्षाओं पर खरा उतरें।