शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Thursday 30 June 2022

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय - 12

 ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं। हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है । हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा। किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|


श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय - 12
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काका महाजनी, धुमाल वकील, श्रीमती निमोणकर, मुले शास्त्री, एक डाँक्टर के द्घारा बाबा की लीलाओं का अनुभव ।
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इस अध्याय में बाबा किस प्रकार भक्तों से भेंट करते और कैसा बर्ताव करते थे, इसका वर्णन किया गया हैं ।


सन्तों का कार्य
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हम देख चुके है कि ईश्वरीय अवतार का ध्येय साधुजनों का परित्राण और दुष्टों का संहार करना है । परन्तु संतों का कार्य तो सर्वथा भिन्न ही है । सन्तों के लिए साधु और दुष्ट प्रायःएक समान ही है । यथार्थ में उन्हें दुष्कर्म करने वालों की प्रथम चिन्ता होती है और वे उन्हें उचित पथ पर लगा देते है । वे भवसागर के कष्टों को सोखने के लिए अगस्त्य के सदृश है और अज्ञान तथा अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य के समान है । सन्तों के हृदय में भगवान वासुदेव निवास करते है । वे उनसे पृथक नहीं है । श्री साई भी उसी कोटि में है, जो कि भक्तों के कल्याण के निमित्त ही अवतीर्ण हुए थे । वे ज्ञानज्योति स्वरुप थे और उनकी दिव्यप्रभा अपूर्व थी । उन्हें समस्त प्राणियों से समान प्रेम था । वे निष्काम तथा नित्यमुक्त थे । उनकी दृष्टि में शत्रु, मित्र, राजा और भिक्षुक सब एक समान थे । पाठको । अब कृपया उनका पराक्रम श्रवण करें । भक्तों के लिये उन्होंने अपना दिव्य गुणसमूह पूर्णतः प्रयोग किया और सदैव उनकी सहायता के लिये तत्पर रहे । उनकी इच्छा के बिना कोई भक्त उनके पास पहुँच ही न सकता था । यदि उनके शुभ कर्म उदित नहीं हुए है तो उन्हे बाबा की स्मृति भी कभी नहीं आई और न ही उनकी लीलायें उनके कानों तक पहुँच सकी । तब फिर बाबा के दर्शनों का विचार भी उन्हें कैसे आ सकता था । अनेक व्यक्तियों की श्री साईबाबा के दर्शन सी इच्छा होते हुए भी उन्हें बाबा के महासमाधि लेने तक कोई योग प्राप्त न हो सका । अतः ऐसे व्यक्ति जो दर्शनलाभ से वंचित रहे है, यदि वे श्रद्घापूर्वक साईलीलाओं का श्रवण करेंगे तो उनकी साई-दर्शन की इच्छा बहुत कुछ अंशों तक तृप्त हो जायेगी । भाग्यवश यदि किसी को किसी प्रकार बाबा के दर्शन हो भी गये तो वह वहाँ अधिक ठहर न सका । इच्छा होते हुए भी केवल बाबा की आज्ञा तक ही वहाँ रुकना संभव था और आज्ञा होते ही स्थान छोड़ देना आवश्यक हो जाता था । अतः यह सव उनकी शुभ इच्छा पर ही अवलंबित था ।

काका महाजनी
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एक समय काका महाजनी बम्बई से शिरडी पहुँचे । उनका विचार एक सप्ताह ठढहरने और गोकुल अष्टमी उत्सव में सम्मिलित होने का था । दर्शन करने के बाद बाबा ने उनसे पूछा, तुम कब वापस जाओगे । उन्हें बाबा के इस प्रश्न पर आश्चर्य-सा हुआ । उत्तर देना तो आवश्यक ही था, इसलिये उन्होंने कहा, जब बाबा आज्ञा दे । बाबा ने अगले दिन जाने को कहा । बाबा के शब्द कानून थे, जिनका पालन करना नितान्त आवश्यक था । काका महाजनी ने तुरन्त ही प्रस्थान किया । जब वे बम्बई में अपने आफिस में पहुँचे तो उन्होंने अपने सेठ को अति उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करते पाया । मुनीम के अचानक ही अस्वस्थ हो जाने के कारण काका की उपस्थिति अनिवार्य हो गई थी । सेठ ने शिरडी को जो पत्र काका के लिये भेजा था, वह बम्बई के पते पर उनको वापस लौटा दिया गया ।

भाऊसाहेब धुमाल
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अब एक विपरीत कथा सुनिये । एक बार भाऊसाहेब धुमाल एक मुकदमे के सम्बन्ध में निफाड़ के न्यायालय को जा रहे थे । मार्ग में वे शिरडी उतरे । उन्होंने बाबा के दर्शन किये और तत्काल ही निफाड़ को प्रस्थान करने लगे, परन्तु बाबा की स्वीकृति प्राप्त न हुई । उन्होने उन्हे शिरडी में एक सप्ताह और रोक लिया । इसी बीच में निफाड़ के न्यायाधीश उदर-पीड़ा से ग्रस्त हो गये । इस कारण उनका मुकदमा किसी अगले दिन के लिये बढ़ाया गया । एक सप्ताह बाद भाऊसाहेब को लौटने की अनुमति मिली । इस मामले की सुनवाई कई महीनों तक और चार न्यायाधीशों के पास हुई । फलस्वरुप धुमाल ने मुकदमे में सफलता प्राप्त की और उनका मुवक्किल मामले में बरी हो गया ।


श्रीमती निमोणकर
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श्री नानासाहेब निमोणकर, जो निमोण के निवासी और अवैतनिक न्यायाधीश थे, शिरडी में अपनी पत्नी के साथ ठहरे हुए थे । निमोणकर तथा उनकी पत्नी बहुत-सा समय बाबा की सेवा और उनकी संगति में व्यतीत किया करते थे । एक बार ऐसा प्रसंग आया कि उनका पुत्र और अन्य संबंधियों से मिलने तथा कुछ दिन वहीं व्यतीत करने का निश्चय किया । परन्तु श्री नानासाहेब ने दूसरे दिन ही उन्हें लौट आने को कहा । वे असमंजस में पड़ गई कि अब क्या करना चाहिए, परन्तु बाबा ने सहायता की । शिरडी से प्रस्थान करने के पूर्व वे बाबा के पास गई । बाबा साठेवाड़ा के समीप नानासाहेब और अन्य लोगों के साथ खड़े हुये थे । उन्होंने जाकर चरणवन्दना की और प्रस्थान करने की अनुमति माँगी । बाबा ने उनसे कह, शीघ्र जाओ, घबड़ाओ नही, शान्त चित्त से बेलापुर में चार दिन सुखपूर्वक रहकर सब सम्बन्धियों से मिलो और तब शिरडी आ जाना । बाबा के शब्द कितने सामयिक थे । श्री निमोणकर की आज्ञा बाबा द्घारा रद्द हो गई ।

नासिक के मुने शास्त्रीः ज्योतिषी
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नासिक के एक मर्मनिष्ठ, अग्नहोत्री ब्रापमण थे, जिनका नाम मुले शास्त्री था । इन्होंने 6 शास्त्रों का अध्ययन किया था और ज्योतिष तथा सामुद्रिक शास्त्र में भी पारंगत थे । वे एक बार नागपुर के प्रसिदृ करोड़पति श्री बापूसाहेब बूटी से भेंट करने के बाद अन्य सज्जनों के साथ बाबा के दर्शन करने मसजिद में गये । बाबा ने फल बेचने वाले से अनेक प्रकार के फल और अन्य पदार्थ खरीदे और मसजिद में उपस्थित लोंगों में उनको वितरित कर दिया । बाबा आम को इतनी चतुराई से चारों ओर से दबा देते थे कि चूसते ही सम्पूर्ण रस मुँह में आ जाता तथा गुठली और छिलका तुरन्त फेंक दिया जा सकता था बाबा ने केले छीलकर भक्तों में बाँट दिये और उनके छिलके अपने लिये रख लिये । हस्तरेएखा विशारद होने के नाते, मुले शास्त्री ने बाबा के हाथ की परीक्षा करने की प्रार्थना की । परन्तु बाबा ने उनकी प्रार्थना पर कोई ध्यान न देकर उन्हें चार केले दिये इसके बाद सब लोग वाड़े को लौट आये । अब मुने शास्त्री ने स्नान किया और पवित्र वस्त्र धारण कर अग्निहोत्र आदि में जुट गये । बाबा भी अपने नियमानुसार लेण्डी को पवाना हो गये । जाते-जाते उन्होंने कहा कि कुछ गेरु लाना, आज भगवा वस्त्र रँगेंगे । बाबा के शब्दों का अभिप्राय किसी की समझ में न आया । कुछ समय के बाद बाबा लौटे । अब मध्याहृ बेला की आरती की तैयारियाँ प्रारम्भ हो गई थी । बापूसाहेब जोग ने मुले से आरती में साथ करने के लिये पूछा । उन्होंने उत्तर दिया कि वे सन्ध्या समय बाबा के दर्शनों को जायेंगे । तब जोग अकेले ही चले गये । बाबा के आसन ग्रहण करते ही भक्त लोगों ने उनकी पूजा की । अब आरती प्रारम्भ हो गई । बाबा ने कहा, उस नये ब्राहमण से कुछ दक्षिणा लाओ । बूटी स्वयं दक्षिणा लेने को गये और उन्होंने बाबा का सन्देश मुले शास्त्री को सुनाया । वे बुरी तरह घबड़ा गये । वे सोचने लगे कि मैं तो एक अग्निहोत्री ब्राहमण हूँ, फिर मुझे दक्षिणा देना क्या उचित है । माना कि बाबा महान् संत है, परन्तु मैं तो उनका शिष्य नहीं हूँ । फिर भी उन्होंने सोचा कि जब बाबा सरीखे महानसंत दक्षिणा माँग रहे है और बूटी सरीखे एक करोड़पति लेने को आये है तो वे अवहेलना कैसे कर सकते है । इसलिये वे अपने कृत्य को अधूरा ही छोड़कर तुरन् बूटी के साथ मसजिद को गये । वे अपने को शुद्घ और पवित्र तथा मसजिद को अपवित्र जानकर, कुछ अन्तर से खड़े हो गये और दूर से ही हाथ जोड़कर उन्होंने बाबा के ऊपर पुष्प फेंके । एकाएक उन्होंने देखा कि बाबा के आसन पर उनके कैलासवासी गुरु घोलप स्वामी विराजमान हैं । अपने गुरु को वहाँ देखकर उन्हें महान् आश्चर्य हुआ । कहीं यह स्वप्न तो नहीं है । नही । नही । यह स्वप्न नहीं हैं । मैं पूर्ण जागृत हूँ । परन्तु जागृत होते हुये भी, मेरे गुरु महाराज यहाँ कैसे आ पहुँचे । कुछ समय तक उनके मुँह से एक भी शब्द न निकला । उन्होंने अपने को चिकोटी ली और पुनः विचार किया । परन्तु वे निर्णय न कर सके कि कैलासवासी गुरु घोलप स्वामी मसजिद में कैसे आ पहुँचे । फिर सब सन्देह दूर करके वे आगे बढ़े और गुरु के चरणों पर गिर हाछ जोड़ कर स्तुति करने लगे । दूसरे भक्त तो बाबा की आरती गा रहे थे, परन्तु मुले शास्त्री अपने गुरु के नाम की ही गर्जना कर रहे थे । फिर सब जातिपाँति का अहंकार तथा पवित्रता और अपवित्रता कीकल्पना त्याग कर वे गुरु के श्रीचरणों पर पुनः गिर पड़े । उन्होंने आँखें मूँद ली, परन्तु खड़े होकर जब उन्होंने आँखें खोलीं तो बाबा को दक्षिणा माँगते हुए देखा । बाबा का आनन्दस्वरुप और उनकी अनिर्वचनीय शक्ति देख मुले शास्त्री आत्मविस्मृत हो गये । उनके हर्ष का पारावार न रहा । उनकी आँखें अश्रुपूरित होते हुए भी प्रसन्नता से नाच रही थी । उन्होंने बाबा को पुनः नमस्कार किया और दक्षिणा दी । मुले शास्त्री कहने लगे कि मेरे सब समशय दूर हो गये । आज मुझे अपने गुरु के दर्शन हुए । बाबा की यतह अदभुत लीला देखकर सब भक्त और मुले शास्त्री द्रवित हो गये । गेरु लाओ, आज भगवा वस्त्र रंगेंगे – बाबा के इन शब्दों का अर्थ अब सब की समझ में आ गया । ऐसी अदभुत लीला श्री साईबाबा की थी ।


डाँक्टर
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एक समय एक मामलतदार अपने एक डाँक्टर मित्र के साथ शिरडी पधारे । डाँक्टर का कहना था कि मेरे इष्ट श्रीराम हैं । मैं किसी यवन को मस्तक न नमाऊँगा । अतः वे शिरडी जाने में असहमत थे । मामलतदार ने समझाया कि तुम्हें नमन करने को कोई बाध्य न करेगा और न ही तुम्हें कोई ऐसा करने को कहेगा । अतः मेरे साथ चलो, आनन्द रहेगा । वे शिरडी पहुँचे और बाबा के दर्शन को गये । परन्तु डाँक्टर को ही सबसे आगे जाते देख और बाब की प्रथम ही चरण वन्दना करते देख सब को बढ़ा विस्मय हुआ । लोगों ले डाँक्टर से अपना निश्चय बदलने और इस भाँति एक यवन को दंडवत् करने का कारण पूछा । डाँक्टर ने बतलाया कि बाबा के स्थान पर उन्हें अपने प्रिय इष्ट देव श्रीराम के दर्शन हुए और इसलिये उन्होंने नमस्कार किया । जब वे ऐसा कह ही रहे थे, तभी उन्हें साईबाबा का रुप पुनः दीखने लगा । वे आश्चर्यचकित होकर बोले – क्या यह स्वप्न हो । ये यवन कैसे हो सकते हैं । अरे । अरे । यह तो पूर्ण योग-अवतार है । दूसरे दिन से उन्होंने उपवास करना प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक बाबा स्वयं बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगे, तब तक मसजिद में कदापि न जाऊँगा । इस प्रकार तीन दिन व्यतीत हो गये । चौथे दिन उनका एक इष्ट मित्र थानदेश से शरडी आया । वे दोनों मसजिद में बाबा के दर्शन करने गये । नमस्कार होने के बाद बाबा ने डाँक्टर से पूछा, आपको बुलाने का कष्ट किसने किया । आप यहाँ कैसे पधारे । यह जटिल और सूचक प्रश्न सुनकर डाँक्टर द्रवित हो गये और उसी रात्रि को बाबा ने उनपर कृपा की । डाँक्टर को निद्रा में ही परमानन्द का अनुभव हुआ । वे अपने शहर लौट आये तो भी उन्हें 15 दिनों तक वैसा ही अनुभव होता रहा । इस प्रकार उनकी साईभक्ति कई गुनी बढ़ गई ।
उपर्यु्क्त कथाओं की शिक्षा, विशेषतः मुले शास्त्री की, यही है कि हमें अपने गुरु में दृढ़ विश्वास होना चाहिये ।
अगले अध्याय में बाबा की अन्य लीलाओं का वर्णन होगा ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday 29 June 2022

मन में तू है तन में तू साईं रोम रोम जीवन में तू

ॐ सांई राम


मन में तू है तन में तू साईं रोम रोम जीवन में तू
गीतों में तू है सुरों में तू साईं भक्तों की साँसों में तू


साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु

साईं सूरज तू चन्दा है तू साईं यमुना तू गंगा है तू
साईं धरती तू अम्बर है तू साईं संत भी तू साधू है तू
साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु

साईं शिव है तू हरि विष्णु है तू साईं राम है तू श्री कृष्ण है तू
साईं दत्तगुरु सद्गुरु है तू साईं देवा है तू साईं बाबा है तू
साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु

साईं मन्दिर में मस्जिद में तू साईं मूरत में समाधि में तू
साईं शिर्डी के कण कण में तू साईं धाम में तू आँगन में तू
साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु

साईं ज्ञान में तू विज्ञान में तू साईं ध्यान में तू आह्वान में तू
साईं श्रद्धा में तू पूजा में है तू साईं भक्ति में तू विनती में तू
साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु


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This is also a kind of SEWA.

Tuesday 28 June 2022

सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना

ॐ सांई राम जी



सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना
श्रद्धा और सबुरी सांई
सब का मालिक एक ही सांई
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना

मैं निर्धन हूँ मैं निर्बल हूँ
दाता सांई मैं भिक्षुक हूँ
सांई शक्ति देना मेरे सांई कृपा करना
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना

मोहमाया से दूर ही रखना
पाप करम से दूर ही रखना
भजन चरण शरण में रखना
मेरे सांई कृपा करना
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना
-: आज का साईं सन्देश :-

सहन करो इस कारणे,
शिर्डी करो निवास ।
हो ईश्वर आराधना,
साईं पे विश्वास ।।
मैं ही सब में व्याप्त हूँ,
श्री साईं समझाये ।।
जड़ चेतन जो भी रहें,
सब में मुझको पाये ।।
 

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Monday 27 June 2022

Baba never misuses his powers

ॐ सांई राम


Once, at noon the fire in the dhooni began to burn brightly.

It’s flames were seen to be reaching the rafters above. The people who were sitting in the masjid did not know what to do. They dared not to ask Baba to pour water or do anything to quench the flames.
But Baba soon came to realize what was happening since He was a self realized personality. He immediately came upon the scene.
He took up His satka ( a short stick) and dashed it against a pillar in front, saying,” Get Down, Be Calm.”
At each stroke of the satka , the flames began to slow down and in a few minutes the dhuni became calm and normal. This shows how Baba had control over the elements of nature.

Moral

A mystic yogi never misuses his powers but uses them only for the protection of the souls.

Sunday 26 June 2022

Why fear when I am here?

ॐ सांई राम


Shree Sai Baba 

Why fear when I am here?

Have patience and faith in me.
You have to get everything from me.
Feed the hungry first, then feed thyself.
Entertain always noble thoughts.
Avoid falsehood and needless disputation.
Resort to the wise for guidance
Why are you anxious? I take all care of you.
How can I allow my children to fast or starve?
Ego must be killed out.
Not a leaf moves except by my grace.
If I do not save my children, who' else will?
All the universe is Me.
My business is to give blessings
Have consideration for the poor and wretched,
Efforts must be made to make the mind steady.
Remember, I look on all with an equal eye.
Even from the tomb, I shall be active and vigorous.

Saturday 25 June 2022

साँँईं तेरे मंदिर की मैं घन्टी बन कर आऊँ

ॐ साँँई राम


व्यर्थ गवाया इस जीवन को पुनर्जन्म जब पाऊँ
साँँईं तेरे मंदिर की मैं घन्टी बन कर आऊँ

साँझ सकारे मन को तुम्हारे लगते हैं जो प्यारे
घन्टी के वो बोल मैं बन कर गून्जूं तेरे द्वारे
भक्तों के हाथों पर पल हर दिन टन टन बजता जाऊँ
साँँईं तेरे मंदिर की मैं घन्टी बन कर आऊँ

चांदों का चाँद और तारों का तारा सब भक्तों का प्यारा
स्वर्ग से सुन्दर जग से न्यारा साँँईं धाम तुम्हारा
उतनी ही कम है तेरी प्रशंसा जितनी करता जाऊँ
साँँईं तेरे मंदिर की मैं घन्टी बन कर आऊँ

तेरी भक्ति तेरी पूजा में ही मन हो डूबा
इतनी शक्ति दे तू साँँईं काम करूँ न कोई दूजा
तेरे नाम की ही माला मैं हर दम जपता जाऊँ
साँँईं तेरे मंदिर की मैं घन्टी बन कर आऊँ

व्यर्थ गवाया इस जीवन को पुनर्जन्म जब पाऊँ
साँँईं तेरे मंदिर की मैं घन्टी बन कर आऊँ
बाबा तेरे मंदिर की मैं घन्टी बन कर आऊँ

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Friday 24 June 2022

मैं साईं में साईं मुझमें यह प्रीत पड़ी समझानी

ॐ सांई राम


कोई कहे मुझे कमली कमली कोई कहे दीवानी
मैं साईं में साईं मुझमें यह प्रीत पड़ी समझानी

बालों में गजरा हाथों में कंगना पांवों में घुँघरू बांधूंगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

अखियों में कजरा माथे पे बिंदिया सर पे चुनरियाँ बांधूंगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

मैं साईं की साईं मेरे चिट्ठियाँ लिख लिख बाँटूँगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

माने न माने तुझे सारा ज़माना इक बस बस मैं मानूंगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

बालों में गजरा हाथों में कंगना पांवों में घुँघरू बांधूंगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

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Thursday 23 June 2022

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 11

 ॐ साँई राम


आप सभी को शिर्डी के साँईं बाबा ग्रुप की और से श्री साँईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साँईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साँईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साँईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साँईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साँईं चरणों में क्षमा याचना करते है


श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 11



सगुण ब्रहम श्री साईबाबा, डाँक्टर पंडित का पूजन, हाजी सिद्दीक फालके, तत्वों पर नियंत्रण ।
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इस अध्याय में अब हम श्री साईबाबा के सगुण ब्रहम स्वरुप, उनका पूजन तथा तत्वनियंत्रण का वर्णन करेंगे । 


सगुण ब्रहम श्री साईबाबा
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ब्रहमा के दो स्वरुप है – निर्गुण और सगुण । निर्गुण नराकार है और सगुण साकार है । यघरु वे एक ही ब्रहमा के दो रुप है, फर भी किसी को निर्गुण और किसी को सगुण उपासना में दिलचस्पी होती है, जैसा कि गीता के अध्याय 12 में वर्णन किया गया है । सगुण उपासना सरल और श्रेष्ठ है । मनुष्य स्वंय आकार (शरीर, इन्द्रय आदि) में है, इसीलिये उसे ईश्वर की साकार उपासना स्वभावताः ही सरल हैं । जब तक कुछ काल सगुण ब्रहमा की उपासना न की जाये, तब तक प्रेम और भक्ति में वृद्घि ही नहीं होती । सगुणोपासना में जैसे-जैसे हमारी प्रगति होती जाती है, हम निर्गुण ब्रहमा की ओर अग्रसर होते जाते हैं । इसलिये सगुण उपासना से ही श्री गणेश करना अति उत्तम है । मूर्ति, वेदी, अग्नि, प्रकाश, सूर्य, जल और ब्राहमण आदि सप्त उपासना की वस्तुएँ होते हुए भी, सदगुरु ही इन सभी में श्रेष्ठ हैं ।

श्री साई का स्वरुप आँखों के सम्मुख लाओ, जो वैराग्य की प्रत्यक्ष मूर्ति और अनन्य शरणागत भक्तों के आश्रयदाता है । उनके शब्दों में विश्वास लाना ही आसन और उनके पूजन का संकल्प करना ही समस्त इच्छाओं का त्याग हैं ।

कोई-कोई श्रीसाईबाबा की गणना भगवदभक्त अथवा एक महाभागवत (महान् भक्त) में करते थे या करते है । परन्तु हम लोगों के लिये तो वे ईश्वरावतार है । वे अत्यन्त क्षमाशील, शान्त, सरल और सन्तुष्ट थे, जिनकी कोई उपमा ही नहीं दी जा सकती । यघरि वे शरीरधारी थे, पर यथार्थ में निर्गुण, निराकार,अनन्त और नित्यमुक्त थे । गंगा नदी समुद्र की ओर जाती हुई मार्ग में ग्रीष्म से व्यथित अनेकों प्रगणियों को शीतलता पहुँचा कर आनन्दित करती, फसलों और वृक्षों को जीवन-दान देती और जिस प्रकार प्राणियों की क्षुधा शान्त करती है, उसी प्रकार श्री साई सन्त-जीवन व्यतीत करते हुए भी दूसरों को सान्त्वना और सुख पहुँचाते है । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है संत ही मेरी आत्मा है । वे मेरी जीवित प्रतिमा और मेरे ही विशुद्घ रुप है । मैं सवयं वही हूँ । यह अवर्णनीय शक्तियाँ या ईश्वर की शक्ति, जो कि सत्, चित्त् और आनन्द हैं । शिरडी में साई रुप में अवर्तीण हुई थी । श्रुति (तैतिरीय उपनिषद्) में ब्रहमा को आनन्द कहा गया है । अभी तक यह विषय केवल पुस्तकों में पढ़ते और सुनते थे, परन्तु भक्तगण ने शिरडी में इस प्रकार का प्रत्यक्ष आनन्द पा लिया है । बाबा सब के आश्रयदाता थे, उन्हें किसी की सहायता की आवश्यकता न थी । उनके बैठने के लिये भक्तगण एक मुलायम आसन और एक बड़ा तकिया लगा देते थे । बाबा भक्तों के भावों का आदर करते और उनकी इच्छानुसार पूजनादि करने देने में किसी प्रकार की आपत्ति न करते थे । कोई उनके सामने चँवर डुलाते, कोई वाघ बजाते और कोई पादप्रक्षालन करते थे । कोई इत्र और चन्दन लगाते, कोई सुपारी, पान और अन्य वस्तुएँ भेंट करते और कोई नैवेघ ही अर्पित करते थे । यघपि ऐसा जान पड़ता था कि उनका निवासस्थान शिरडी में है, परन्तु वे तो सर्वव्यापक थे । इसका भक्तों ने नित्य प्रति अनुभव किया । ऐसे सर्वव्यापक गुरुदेव के चरणों में मेरा बार-बार नमस्कार हैं ।


डाँक्टर पंडित की भक्ति
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एक बार श्री तात्या नूलकर के मित्र डाँक्टर पंडित बाबा के दर्शनार्थ शिरडी पधारे बाबा को प्रणाम कर वे मसजिद में कुछ देर तक बैठे । बाबा ने उन्हें श्री दादा भट केलकर के पास भेजा, जहाँ पर उनका अच्छा स्वागत हुआ । फिर दादा भट और डाँक्टर पंडित एक साथ पूजन के लिये मसजिद पहुँचे । दादा भट ने बाबा का पूजन किया । बाबा का पूजन तो प्रायः सभी किया करते थे, परन्तु अभी तक उनके शुभ मस्तक पर चन्दन लगाने का किसी ने भी साहस नहीं किया था । केवल एक म्हालसापति ही उनके गले में चन्दन लगाया करते थे । डाँक्टर पंडित ने पूजन की थाली में से चन्दन लेकर बाबा के मस्तक पर त्रिपुण्डाकार लगाया । लोगों ने महान् आश्चर्य से देघा कि बाबा ने एक शब्द भी नहीं कहा । सन्ध्या समय दादा भट ने बाबा से पूछा, क्या कारण है कि आर दूसरों को तो मस्तक पर चन्दन नहीं लगाने देते, परन्तु डाँक्टर पंडित को आपने कुछ भी नहीं कहा बाबा कहने लगे, डाँक्टर पंडित ने मुझे अपने गुरु श्री रघुनाथ महाराज धोपेश्वरकर, जो कि काका पुराणिक के नाम से प्रसिदृ है, के ही समान समझा और अपने गुरु को वे जिस प्रकार चन्दन लगाते थे, उसी भावना से उन्होंने मुझे चन्दन लगाया । तब मैं कैसे रोक सकता था । पुछने पर डाँक्टर पंडित ने दादा भट से कहा कि मैंने बाबा को अपने गुरु काका पुराणिक के समान ही डालकर उन्हें त्रिपुण्डाकार चन्दन लगाया है, जिस प्रकार मैं अपने गुरु को सदैव लगाया करता था ।
यघपु बाबा भक्तों को उनकी इच्छानुसार ही पूजन करने देते थे, परन्तु कभी-कभी तो उनका व्यवहार विचित्र ही हो जाया करता था । जब कभी वे पूजन की थाली फेंक कर रुद्रावतार धारण कर लेते, तब उनके समीप जाने का साहस ही किसी को न हो सकता था । कभी वे भक्तों को झिड़कते और कभी मोम से भी नरम होकर शान्ति तथा क्षमा की मूर्ति-से प्रतीत होते थे । कभी-कभी वे क्रोधावस्था में कम्पायमान हो जाते और उनके लाल नेत्र चारों ओर घूमने लगते थे, तथापि उनके अन्तःकरण में प्रेम और मातृ-स्नेह का स्त्रोत बहा ही करता था । भक्तों को बुलाकर वे कहा करते थे कि उनहें तो कुछ ज्ञात ही नहीं हे कि वे कब उन पर क्रोधित हुए । यदि यह सम्भव हो कि माताएँ अपने बालकों को ठुकरा दें और समुद्र नदियों को लौटा दे तो ही वे भक्तों के कल्याण की भी उपेक्षा कर सकते हैं । वे तो भक्तों के समीप ही रहते हैं और जब भक्त उन्हें पुकारते है तो वे तुरन्त ही उपस्थित हो जाते है । वे तो सदा भक्तों के प्रेम के भूखे है ।



हाजी सिद्दीक फालके
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यह कोई नहीं कह सकता था कि कब श्री साईबाबा अपने भक्त को अपना कृपापात्र बना लेंगे । यह उनकी सदिच्छा पर निर्भर था । हाजी सिद्दीक फालके की कथा इसी का उदाहरण है ।

कल्याणनिवासी एक यवन, जिनका नाम सिद्दीक फालके था, मक्का शरीफ की हज करने के बाद शिरडी आये । वे चावड़ी में उत्तर की ओर रहने लगे । वे मसजिद के सामने खुले आँगन में बैठा करते थे । बाबा ने उन्हें 9 माह तक मसजिद में प्रविष्ट होने की आज्ञा न दी और न ही मसजिद की सीढ़ी चढ़ने दी । फालके बहुत निराश हुँ और कुछ निर्णय न कर सके कि कौनसा उपाय काम में लाये । लोगों ने उन्हें सलाह दी कि आशा न त्यागो । शामा श्रीसाई बाबा के अंतरंग भक्त है । तुम उनके ही द्घारा बाबा के पास पहुँचने का प्रयत्न करो । जिस प्रकार भगवान शंकर के पास पहुँचने के लिये नन्दी के पास जाना आवश्यक होता है, उसी प्रकार बाबा के पास भी शामा के द्घारा ही पहुँचना चाहिये । फालके को यह विचार उचित प्रतीत हुआ और उन्होने शामा से सहायता की प्रार्थना की । शामा ने भी आश्वासन दे दिया और अवसर पाकर वे बाबा से इस प्रकार बोले कि, बाबा, आप उस बूढ़े हाजी को मसजिद में किस कारण नहीं आने देते । अने भक्त स्वेच्छापूर्वक आपके दर्शन को आया-जाया करते है । कम से कम एक बार तो उसे आशीष दे दो । बाबा बोले, शामा, तुम अभी नादान हो । यदि फकीर अल्लाह) नहीं आने देता है तो मै क्या करुँ । उनकी कृपा के बिना कोई भी मसजिद कीसीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकता । अच्छा, तुम उससे पूछ आओ कि क्या वह बारवी कुएँ निचली पगडंडी पर आने को सहमत है । शामा स्वीकारात्मक उत्तर लेकर पहुँचे । फर बाबा ने पुनः शामा से कहा कि उससे फिर पुछो कि क्या वह मुझे चार किश्तों में चालीस हजार रुपये देने को तैयार है । फिर शामा उत्तर लेकर लौटे कि आप कि आप कहें तो मैं चालीस लाख रुपये देने को तैयार हूँ । मैं मसजिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, उससे पूछी कि उसे क्या रुचिकर होगा – बकरे का मांस, नाध या अंडकोष । शामा यह उत्तर लेकर लौटे कि यदि बाबा के यदि बाबा के भोजन-पात्र में से एक ग्रास भी मिल जाय तो हाजी अपने को सौभाग्यशाली समझेगा । यह उत्तर पाकर बाबा उत्तेजित हो गये और उन्होंने अपने हाथ से मिट्टी का बर्तन (पानी की गागर) उठाकर फेंक दी और अपनी कफनी उठाये हुए सीधे हाजी के पास पहुँचे । वे उनसे कहने लगे कि व्यर्थ ही नमाज क्यों पढ़ते हो । अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन क्यों करते हो । यह वृदृ हाजियों के समान वे्शभूषा तुमने क्यों धारण की है । क्या तुम कुरान शरीफ का इसी प्रकार पठन करते हो । तुम्हें अपने मक्का हज का अभिमान हो गया है, परन्तु तुम मुझसे अनभिज्ञ हो । इस प्रकार डाँट सुनकर हाजी घबडा गया । बाबा मसजिद को लौट आयो और कुछ आमों की टोकरियाँ खरीद कर हाजी के पास भेज दी । वे स्वयं भी हाजी के पास गये और अपने पास से 55 रुपये निकाल कर हाजी को दिये । इसके बाद से ही बाबा हाजी से प्रेेम करने लगे तथा अपने साथ भोजन करने को बुलाने लगे । अब हाजी भी अपनी इच्छानुसार मसजिद में आने-जाने लगे । कभी-कभी बाबा उन्हें कुछ रुपये भी भेंट में दे दिया करते थे । इस प्रकार हाजी बाबा के दरबार में सम्मिलित हो गये ।

बाबा का तत्वों पर नियंत्रण
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बाबा के तत्व-नियंत्रण की दो घटनाओं के उल्लेख के साथ ही यह अध्याय समाप्त हो जायेगा ।
1. एक बार सन्ध्या समय शिरडी में भयानक झंझावात आया । आकाश में घने और काले बादल छाये हुये थे । पवन झकोरों से बह रहा था । बादल गरजते और बिजली चमक रही थी । मूसलाधार वर्षा प्रारंभ हो गई । जहाँ देखो, वहाँ जल ही जल दृष्टिगोचर होने लगा । सब पशु, पक्षी और शिरडीवासी अधिक भयभीत होकर मसजिद में एकत्रित हूँ । शिरडी में देवियाँ तो अनेकों है, परन्तु उस दिन सहायतार्थ कोई न आई । इसलिये सभी ने अपने भगवान साई से, जो भक्ति के ही भूखे थे, संकट-निवारण करने की प्रार्थना की । बाबा को भी दया आ गई और वे बाहर निकल आये । मसजिद के समीप खड़े हो जाओ । कुछ समय के बाद ही वर्षा का जोर कम हो गया । और पवन मन्द पड़ गया तथा आँधी भी शान्त हो गई । आकाश में चन्द्र देव उदित हो गये । तब सब नोग अति प्रसन्न होकर अपने-अपने घर लौट आये ।

2. एक अन्य अवसर पर मध्याहृ के समय धूनी की अग्नि इतनी प्रचण्ड होकर जलने लगी कि उसकी लपटें ऊपर छत तक पहुँचने लगी । मसजिद में बैठे हुए लोगों की समझ में न आता था कि जल डाल कर अग्नि शांत कर दें अथवा कोई अन्य उपाय काम में लावें । बाबा से पूछने का साहस भी कोई नहीं कर पा रहा था । परन्तु बाबा शीघ्र परिस्थिति को जान गये । उन्होंने अपना सटका उठाकर सामने के थम्भे पर बलपूर्वक प्रहार किया और बोले नीचो उतरो और शान्त हो जाओ । सटके की प्रत्येक ठोकर पर लपटें कम होने लगी और कुछ मिनटों  में ही धूनी शान्त और यथापूर्व हो गई । श्रीसाई ईश्वर के अवतार हैं । जो उनके सामने नत हो उनके शरणागत होगा, उस पर वे अवश्य कृपा करेंगे । जो भक्त इस अध्याय की कथायें प्रतिदिन श्रद्घा और भक्तिपूर्वक पठन करेगा, उसका दुःखों से शीघ्र ही छुटकारा हो जायेगा । केवल इतना ही नही, वरन् उसे सदैव श्रीसाई चरणों का स्मरण बना रहेगा और उसे अल्प काल में ही ईश्वर-दर्शन की प्राप्ति होकर, उसकी समस्त इच्छायें पूर्ण हो जायेंगी और इस प्रकार वह निष्काम बन जायेगा ।


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday 22 June 2022

मेरी घोड़ी खो गई बाबा! ढूँढ-ढूँढ मैं हारा,

ॐ सांई राम



मेरी घोड़ी खो गई बाबा ! ढूँढ-ढूँढ मैं हारा,
तीन दिनों से उसके पीछे, फिर रहा मारा-मारा..
घोडी मेरा जीवन था, चलता था उससे गुजारा,


मुझ गरीब की परवरिस का, छिन गया सारा सहारा..
बाबा बोले - मत कर चिन्ता, वो तुमको मिल जाएगी,
उस झरने के पास घास को चरती नजर आएगी..
मन में आस्था-श्रद्धा ले,चाँद पाटिल उस ओर मुडा,
अपनी घोडी को देख वहाँ, "साईं " में उसका विश्वास बढा..
पाटिल चरणों में आ गिरा, बाबा ! आप सहारा हैं,
हर निराश की आशा बाबा ! नैया खेवनहारा हैं..
बाबा ने सटके को पटका, पानी फूटा धरती से,
बाबा ने चिमटे को पटका, आग निकल गई धरती से..
पाटिल ने "साईं" को पहचाना, बाबा अन्तर्यामी हैं,
वो सबका दुख दूर करेंगे, "साईं" सबके स्वामी हैं

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Tuesday 21 June 2022

ज़रा जप ले साईं का नाम तू भव से तर जाए

ॐ सांई राम



ज़रा जप ले साईं का नाम
तू भव से तर जाए
बन्दे तेरी तकदीर
पल में ही  संवर जाए


 तेरे कर्मों का बन्दे
साईं लेखा रखता है
तू बुरा करे या भला
साईं देखा करता  है
ज़रा कर ले,
ज़रा कर ले  पुण्य के काम
तेरा जन्म संवर जाए
ज़रा जप ले साईं का नाम
तू भव से तर जाए

 बाबा की शिर्डी में
ज़रा देख नज़ारा तू
क्यों दिल में बोझ लिए
है  गम का मारा तू
सब कर दे,
सब कर दे तू अर्पण
तेरा बोझा घट जाए
ज़रा जप ले साईं का नाम
तू भव से तर जाए


 कर दीन-हीन की सेवा
साईं खुश हो जायेंगे
तेरी ख़ाली झोली को
पल में ही भर जायेंगे
रख श्रद्धा,
रख श्रद्धा सबुरी तू
साईं दर्शन हो जाएँ
ज़रा जप ले साईं का नाम
तू भव से तर जाए

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Monday 20 June 2022

मेरी आँखों में तेरा चेहरा है

ॐ सांई राम


मेरी आँखों में तेरा चेहरा है
दिल तड़पता है दर्द गहरा है


सबके साईं हैं साईं सबका है
कौन कहता है सिर्फ मेरा है

दिल की धड़कन में आँख में लब पे
हर जगह साईं नाम तेरा है

राम नानक रहीम ईसा कहो
हर जगह रब का ही बसेरा है

कौन सी है जगह जो खाली हो
हर जगह साईं का बसेरा है

हर घड़ी साथ साथ रहते हैं
तेरी रहमत ने मुझको घेरा है

नींद आये सुकून हम सब को
जब खुले आँख तब सवेरा है

दिल तड़पता है दर्द गहरा है
मेरी आँखों में तेरा चेहरा है


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Sunday 19 June 2022

साईं मुझको ये सम्मान दे दे, अपने चरणों में स्थान दे दे

ॐ सांई राम




शिर्डी वाले तू ओ शिर्डी वाले, सिर्फ इतना मुझे दान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

सच है क्या झूठ क्या है अभी तक,  जानता ही नहीं मन ये मेरा
हर तरफ दिल में छाया हुआ है, कब से अज्ञान का ये अँधेरा
मैं चलूँ तो चलूँ किस डगर पर, आज मुझको तू यह ज्ञान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

हर किसी भीड़ के साथ चल कर, मन का विश्वास खोने लगा है
अजनबी हो गया हूँ मैं खुद से, ऐसा महसूस होने लगा है
अपने भक्तों में कर मुझको शामिल, साईं मुझको ये सामान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

सिर्फ कागज़ के फूलों से आखिर, कब तलक अपना गुलशन सजाऊँ
दिल की आवाज़ कहती है मुझसे, तेरी छाया में जीवन बिताऊँ
कब से बैठा हूँ मैं दर पे तेरे, मेरी बिनती पे कुछ ध्यान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे



शिर्डी वाले तू ओ शिर्डी वाले, सिर्फ इतना मुझे दान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

सच है क्या झूठ क्या है अभी तक,  जानता ही नहीं मन ये मेरा
हर तरफ दिल में छाया हुआ है, कब से अज्ञान का ये अँधेरा
मैं चलूँ तो चलूँ किस डगर पर, आज मुझको तू यह ज्ञान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

हर किसी भीड़ के साथ चल कर, मन का विश्वास खोने लगा है
अजनबी हो गया हूँ मैं खुद से, ऐसा महसूस होने लगा है
अपने भक्तों में कर मुझको शामिल, साईं मुझको ये सामान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

सिर्फ कागज़ के फूलों से आखिर, कब तलक अपना गुलशन सजाऊँ
दिल की आवाज़ कहती है मुझसे, तेरी छाया में जीवन बिताऊँ
कब से बैठा हूँ मैं दर पे तेरे, मेरी बिनती पे कुछ ध्यान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

शिर्डी वाले तू ओ शिर्डी वाले, सिर्फ इतना मुझे दान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

सच है क्या झूठ क्या है अभी तक,  जानता ही नहीं मन ये मेरा
हर तरफ दिल में छाया हुआ है, कब से अज्ञान का ये अँधेरा
मैं चलूँ तो चलूँ किस डगर पर, आज मुझको तू यह ज्ञान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

हर किसी भीड़ के साथ चल कर, मन का विश्वास खोने लगा है
अजनबी हो गया हूँ मैं खुद से, ऐसा महसूस होने लगा है
अपने भक्तों में कर मुझको शामिल, साईं मुझको ये सामान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

सिर्फ कागज़ के फूलों से आखिर, कब तलक अपना गुलशन सजाऊँ
दिल की आवाज़ कहती है मुझसे, तेरी छाया में जीवन बिताऊँ
कब से बैठा हूँ मैं दर पे तेरे, मेरी बिनती पे कुछ ध्यान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

शिर्डी वाले तू ओ शिर्डी वाले, सिर्फ इतना मुझे दान दे दे
अपने चरणों में स्थान दे दे

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Saturday 18 June 2022

संतो का कार्य

ॐ सांई राम


संतो का कार्य


ईश्वरीय अवतार का ध्येय साधुजनों का परित्राण और दुष्टों को संहार करना है !


परन्तु संतो का कार्य तो सर्वथा अलग ही है ! संतो के लिए साधू और दुष्ट प्राय: एक ही समान है ! यथार्थ में उन्हें दुष्कर्म करने वालो क़ि प्रथम चिंता होती है और वे परिचित पथ पर लगा देते है ! वे भवसागर के कष्टों को सोखने के लिए के लिए अग्सत्य के सदृश है और अज्ञान तथा अंधकार का नाश करने के लिए सूर्ये के समान है ! संतो के हृदये में भगवन वासुदेव निवास करते है ! वे उनसे प्रथक नहीं है ! श्री साईं भी उसी कोटि में है, जो क़ि भक्तो के कल्याण के निमित ही अवतीर्ण हुए है !वे ज्ञान ज्योति स्वरुप थे ! भक्तों के लिए उन्होंने अपना दिव्य गुन्स्मूह पूर्णत: प्रयोग किया और सदेव उनकी सहायता के लिए तत्पर रहे ! उनकी इच्छा के बिना कोई भक्त उनके पास नहीं जा सकता था ! यदि उनके सुभ कर्म उदित नहीं हुए है तो उन्हें बाबा क़ि स्मृति भी कभी नहीं आई और न ही उनकी लीलाएं उनके कानो तक पहुच सकी ! तब फिर बाबा के दर्शनों का विचार भी उनके मन में कैसी आ सकता था, अनेक व्यक्तियों क़ि श्री साईं बाबा के दर्शन क़ि इच्छा होते हुए भी  उन्हें बाबा के महासम्धि लेने तक कोई योग प्राप्त न हो सका ! अत: ऐसे व्यक्ति जो दर्शनलाभ से वंचित रहे है, यदि वे श्रधापुर्वक साईं लीलाओं का श्रवण करेंगे तो उनकी साईं दर्शन क़ि इच्छा कुछ अंशो तक तृप्त हो जाएगी ! भाग्यवश यदि किसी को किसी प्रकार बाबा के दर्शन हो भी गए तो वह वहां अधिक देर तक  रुक न सका, इच्छा होते हुए भी केवल बाबा क़ि आज्ञा तक ही वहां रुकना संभव था और आज्ञा होते ही स्थान छोड़ देना आवश्यक हो जाता था ! अत: यह सब उनकी शुभ इच्छा पैर ही अवलंबित था !

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Friday 17 June 2022

जिस रंग में राखे साइयाँ उसी रंग में रहना

ॐ सांई राम


जिस रंग में राखे साइयाँ उसी रंग में रहना
सुख में इसको भूल न जाना दुःख आये तो न घबराना
सुख दुःख सहते रहना उसी रंग में रहना

डूब रही हो तेरी नईया  आये न आये बन के खिवईया
न भर लेना नैना उसी रंग में रहना

अजब हैं उसके ताने-बाने समझ सके न चतुर सयाने
भोले बन के रहना उसी रंग में रहना 

लेखा जोखा सब का रखता एक दिवस सब को है परखता 
याद हमेशा रखना उसी रंग में रहना 

वो चाहे तो भीख मंगाये वो चाहे तो तख़्त बिठाये
मुख से कुछ न कहना उसी रंग में रहना

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Thursday 16 June 2022

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 10

 ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साँईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं |
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है |

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा| किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 10
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श्री साईबाबा का रहन सहन, शयन पटिया, शिरडी में निवास, उनके उपदेश, उनकी विनयशीनता, सुगम पथ ।
प्रारम्भ
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श्री साईबाबा का सदा ही प्रेमपूर्वक स्मरण करो, क्योंकि वे सदैव दूसरों के कल्याणार्थ तत्पर तथा आत्मलीन रहते थे । उनका स्मरण करना ही जीवन और मृत्यु की पहेली हल करना हैं । साधनाओं में यह अति श्रेष्ठ तथा सरल साधना है, क्योंकि इसमें कोई द्रव्य व्यय नहीं होता । केवल मामूली परिश्रम से ही भविष्य नितान्त फलदायक होता है । जब तक इन्द्रयाँ बलिष्ठ है, क्षण-क्षण इस साधना को आचरण में लाना चाहिये । अन्य सब देवी-देवता तो भ्रमित करने वाले है, केवल गुरु ही ईश्वर है । हमें उनके ही पवित्र चरणकमलों में श्रदा रखनी चाहिये । वे तो हर इन्सान के भाग्यविधाता और प्रेममय प्रभु हैं । जो अनन्य भाव से उनकी सेवा करेंगे, वे भवसागर से निश्चय ही मुक्ति को प्राप्त होंगे । न्याय अथवा मीमांसा या दर्शनशास्त्र पढ़ने की भी कोई आवश्यकता नहीं है । जिस प्रकार नदी या समुद्र पार करते समय नाविक पर विश्वास रखते है, उसी प्रकार का विश्वास हमें भवसागर से पार होने के लिये सदगुरु पर करना चाहिये । सदगुरु तो केवल भक्तों के भक्ति-भाव  की ओर ही देखकर उन्हें ज्ञान और परमानन्द की प्राप्ति करा देते हैं ।

गत अध्याय में बाबा की भिक्षावृत्ति, भक्तों के अनुभव तथा अन्य विषयों का वर्णन किया गया हैं । अब पाठकगण सुनें कि श्री साईबाबा किस प्रकार रहते, शयन करते और शिक्षा प्रदान करते थे ।
बाबा का विचित्र बिस्तर
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पहले हम यह देखेंगे कि बबा किस प्रकार शयन करते थे । श्री नानासाहेब डेंगले एक चार हाथ लम्बा और एक हथेली चौड़ा लकड़ी का तख्ता श्री साईबाबा के शयन के हेतु लाये । तख्ता कहीं नीचे रक कर उस पर सोते, ऐसा न कर बाबा ने पुरानी चिन्दियों से मसजिद की बल्ली से उसे झूले के समान बाँधकर उस पर शयन करना प्रारम्भ कर दिया । चिन्दियों के बिल्कुल पतली और कमजोर होने के कारण लोगों को उसका झूला बनाना एक पहेली-सा बन गया । चिन्दियाँ तो केवल तख्ते का भी भार वहन नहीं कर सकतती थी । फिर वे बाबा के शरीर का भार किस प्रकार सहन कर सकेंगी । जिस प्रकार भी हो, यह तो राम ही जानें, परन्तु यह तो बाबा की एक लीला थी, जो फटी चिन्दियाँ तख्ते तथा बाबा का भार सँभाल रही थी । तख्ते के चारों कोनों पर दीपक रात्रि भर जला करते थे । बाबा को तख्ते पर बैठे या शयन करते हुए देखना, देवताओं को भी दुर्लभ दृश्य था । सब आश्चर्यचकित थे कि बाबा किस प्रकार तख्ते पर चढ़ते होंगे और किस प्रकार नीचे उतरते होंगे । कौतूहलवश लोग इस रहस्योद्घघाटन के हेतु दृष्टि लगाये रहते थे, परंतु यह समझने में कोई भी सफल न हो सका और इस रहस्य को जानने के लिये भीड़ उत्तरोत्तर ही बढ़ने लगी । इस कारण बाबा ने एक दिन तख्ता तोड़कर बाहर फेंक दिया । यघपि बाबा को अष्ट सिद्घियाँ प्राप्त था, परन्तु उन्होंने कभी भी उनका प्रयोग नहीं किया और न कभी उनकी ऐसी इच्छा ही हुई । वे तो स्वतः ही स्वाभाविक रुप से पू्र्णता प्राप्त होने के कारण उनके पास आ गई थी ।

ब्रहम का सगुण अवतार
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ब्राहृदृष्टि से श्री साईबाबा साढ़े तीन हाथ लम्बे एक सामान्य पुरुष थे, फर भी प्रत्येक के हृदय में वे विराजमान थे । अंदर से वे आसक्ति-रहित और स्थिर थे, परन्तु बाहर से जन-कल्याण के लिये सदैव चिन्तित रहते थे । अंदर से वे संपूर्ण रुप से निःस्वार्थी थे । भक्तों के निमित्त उनके हृदय में परम शांति विराजमान थी, परंतु बाहर से वे अशान्त प्रतीत होते थे । वे अन्तस से ब्रहमज्ञानी, परन्तु बाहर से संसार में उलझे हुए दिखलाई पड़ते थे । वे कभी प्रेमदृष्टि से देखते तो कभी पत्थर मारते, कभी गालियाँ देते और कभी हृदय से लगाते थे । वे गम्भीर, शान्त और सहनशील थे । वे सदैव दृढ़ और आत्मलीन रहते थे और अपने भक्तों का सदैव उचित ध्यान रखते थे। वे सदा एक आसन पर ही विराजमान रहते थे । वे कभी यात्रा को नहीं निकले । उनका दंड एक छोटी सी लकड़ी था, जिसे वे सदैव अपने पास सँभाल कर रखते थे । विचारशून्य होने के कारण वे शान्त थे । उन्होंने कांचन और कीर्ति की कभी चिन्ता नहीं की तथा सदा ही भिक्षावृति द्घारा निर्वाह करते रहे । उनका जीवन ही इस प्रकार का था । अल्लाह मालिक सदैव उनके होठों पर रहता था । उनका भक्तों पर विशेष और अटूट प्रेम था । वे आत्म-ज्ञान की खान और परम दिव्य स्वरुप थे । श्री साईबाबा का दिव्य स्वरुप इस तरह का था । एक अपरिमित, अनन्त, सत्य और अपरिवर्तनशील सिद्घान्त, जिसके अन्त्रगत यह सारा विश्व है, श्री साईबाबा में आविर्भूत हुआ था । यह अमूल् निधि केवल सत्व गुण-सम्पन्न और भाग्यशाली भक्तों को ही प्राप्त हुई । जिन्होंने श्री साईबाबा को केवल मनुष्य या सामान्य पुरुष समझा या समझते है, वे यथार्थ में अभागे थे या हैं ।


श्री साईबाबा के माता-पिता तथा उनकी जन्मतिथि क ठीक-ठीक पता किसी को भी नहीं है तो भी उनके शिरडी में निवास के द्घारा इसका अनुमान लगाया जा सकता हैं । जब पहलेपहल बाबा शिरडी में आये थे तो उस समय उनकी आयु केवल 16 वर्ष की थी । वे शिरडी में 3 वर्ष तक रहने के बाद फिर कुछ समय के लिये अंतद्घान हो गये । कुछ काल के उपरान्त वे औरंगबाद के समीर (निजाम स्टेट) में प्रकट हुए और चाँद पाटील की बारात के साथ पुनः शिरडी पधारे । उस समय उनकी आयु 20 वर्ष की थी । उन्होंने लगातार 60 वर्षों तक शिरडी में निवास किया और सन् 1918 में महासमाधि ग्रहण की । इन तथ्यों के आधार पर हम कह सकते है कि उनकी जन्म-तिथि सन् 1838 के लगभग थी ।



बाबा का ध्येय और उपदेश
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सत्रहवी शताब्दी (1608-1681) में सन्त रामदास प्रकट हुए और उन्होंने यवनों से गायों और ब्राहमणों की रक्षा करने का कार्य पर्याप्त सीमा तक सफलतापूर्वक किया । परन्तु दो शताब्दियों के व्यततीत हो जाने के बाद हिन्दू और मुसलमानों में वैमनस्य बढ़ गया और इसे दूर रने के लिये ही श्री साईबाबा प्रगट हुए । उनका सभी के लिये यही उपदेश था कि राम (जो हिन्दुओं का भगवान है) और रहीम (जो मुसलमानों का खुदा है) एक ही है और उनमें किंचित मात्र भी भेद नहीं है । फिर तुम उनके अनुयायी क्यों पृथक-पृथक रहकर परस्रप झगड़ते हो । अज्ञानी बालको । दोनों जातियाँ एकता साध कर और एक साथ मिलजुलकर रहो । शांत चित्त से रहो और इस प्रकार राष्ट्रीय एकता का ध्येय प्राप्त करो । कलह और विवाद व्यर्थ है । इसलिए न झगड़ो और न परस्पर प्राणघातक ही बनो । सदैव अपने हित तथा कल्याण का विचार करो । श्री हरि तुम्हारी रक्षा अवश्य करेंगे । योग, वैराग्य, तप, ज्ञान आदि ईश्वर के समीप पहुँचने के मार्ग है । यदि तुम किसी तरह सफल साधक नहीं बन सकते तो तुम्हारा जन्म व्यर्थ है । तुम्हारी कोई कितनी ही निन्दा क्यों न करे, तुम उसका प्रतिकार न करो । यदि कोई शुभ कर्म करने की इच्छा है तो सदैव दूसरों की भलाई करो ।


संक्षेप में यही श्री साईबाबा का उपदेश है कि उपयुक्त कथनानुसार आचरण करने से भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में तुम्हारी प्रगति होगी ।

सच्चिदानंद सदगुरु श्री साईनाथ महाराज
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गुरु तो अनेक है कुछ गुरु ऐसे है, जो द्घार-द्घार हाथ में वीणा और करताल लिये अपनी धार्मिकता का प्रदर्शन  करते फिरते हैं । वे शिष्यों के कानों में मंत्र फूँकते और उनकी सम्पत्ति का शोषण करते हैं । वे ईश्वर भक्ति तथा धार्मिकता का केवल ढोंग ही रचते हैं । वे वस्तुतः अपवित्र और अधार्मिक होते है । श्री साईबाबा ने धार्मिक निष्ठा प्रदर्शित करने का विचार भी कभी मन में नहीं किया । दैहिक बुद्घि उन्हें किंचितमात्र भी छू न गई थी । परन्तु उनमें भक्तों के लिए असीम प्रेम था । गुरु दो प्रकार के होते है –

1. नियत और 2. अनियत ।

अनियत गुरु के आदेशों से अपने में उत्तम गुणों का विकास होता तथा चित्त की शुद्घि होकर विवेक की वृद्घि होती है । वे भक्ति-पथ पर लगा देते हैं । परन्तु नियत गुरु की संगति मात्र से द्घैत बुद्घि का हृास शीघ्र हो जाता है । गुरु और भी अनेक प्रकार के होते है, जो भिन्न-भिन्न प्रकार की सांसारिक शिक्षाये प्रदान करते हैं । यथार्थ में जो हमें आत्मस्थित बनाकर इस भवसागर से पार उतार दे, वही सदगुरु है । श्री साईबाबा इसी कोटि के सदगुरु थे । उनकी महानता अवर्णीनीय है । जो भक्त बाबा के दर्शनार्थ आते, उनके प्रश्न करने के पूर्व ही बाबा उनके समस्त जीवन की त्रिकालिक घटनाओं का पूरा-पूरा विवरण कह देते थे । वे समस्त भूतों में ईश्वर-दर्शन किया करते थे । मित्र और शत्रु उन्हें दोनों एक समान थे । वे निःस्वार्थी तथा दृढ़ थे । भाग्य और दुर्भाग्य का उन पर कोई प्रभाव न था । वे कभी संशयग्रस्त नहीं हुए । देहधारी होकर भी उनहें देह की किंचितमात्र आसक्ति न थी । देह तो उनके लिण केवल एक आवरण मात्र था । यथार्थ में तो वे नित्य मुक्त थे ।


वे शिरडीवासी धन्य है, जिन्होंने श्री साईबाबा की ईश्वर-रुप में उपासना की । सोते-जागते, खाते-पीते, वाड़े या खेत तथा घर में अन्य कार्य करते हुए भी वे लोग सदैव उनका स्मरण तथा गुणगान करते थे । साईबाबा के अतिरिक्त दूसरा कोई ईश्वर वे मानते ही न थे । शिरडी की नारियों के प्रेम की माधुरी का तो कहना ही क्या है । वे विलकुल भोलीभाली थी । उनका पवित्र प्रेम उन्हें ग्रामीण भाषा में भजन रचने की सदैव प्रेरणा देता रहता था । यघपि वे शिक्षित न थी तो भी उनके सरल भजनों में वास्तविक काव्य की झलक थी । यह कोई विदृता न थी, वरना उनका सच्चा प्रेम ही इस प्रकार की कविता का प्रेरक था । कविता तो सत्ते प्रेम का प्रगट स्वरुप ही है, जिसमें चतुर श्रोता-गण ही यथार्थ दर्शन या रसिकता का अनुऊव करते है । सर्वसाधारण को इन लौकिक गीतों की बड़ी आवश्यकता है । शायद भविष्य में बाबा की कृपा से कोई भाग्यशाली भक्त गीतसंग्रह-कार्य उपने हाथ में लेकर इन गीतों को साईलीला पत्रिका में या पुस्तक रुप में प्रकाशित करवा दे ।

बाबा की विनयशीलता
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ऐसा कहते है कि भगवान् में 6 प्रकार के विशेष गुण होते है – यथा
1. कीर्ति
2. श्री
3. वैराग्य
4. ज्ञान
5. ऐश्वर्य और
6. उदारता

श्री साईबाबा में भी ये सव गुण विघमान थे । उन्होंने भक्तों की इच्छा-पूर्ति के निमित्त ही सगुण अवतार धारण किया था । उनकी कृपा (दया) बड़ी ही विचित्र थी। वे भक्तों को स्वयं अपने पास आकर्षित करते थे । अन्यथा उन्हें कोई कैसे जान पाता । भक्तों के हेतु वे अपने श्रीमुख से ऐसे वचन कहते, जिनका वर्णन करने का सरस्वती भी साहस न कर सकती । उनमें से यहाँ पर एक रोचक नमूना दिया जाता हैं । बाबा अति विनम्रता से इस प्रकार बोलते दासानुदास, मैं तुम्हारा ऋणी हूँ, तुम्हारे दर्षन मात्र से मुझे सान्त्वना मिली, यह तुम्हारा मेरे ऊपर बड़ा उपकार है कि जो मुझे तुम्हारे चरणो, का दर्शन प्राप्त हुआ । तुम्हारे दर्शन कर मैं अपने को धन्य समझता हूँ । कैसी विनम्रता है । यदि कोई यह सोचे कि इन वाक्यों को प्रकाशित करने से श्री साईबाबा की महानता को आँच पहुँची है तो मैं इसके लिये क्षमाप्रार्थी हूँ और इसके प्रायश्चित स्वरुप मैं साई नाम का कीर्तन तथा जप किया करता हूँ ।

यघपु बाहृय दृष्टि से बाबा विषय-पदार्थों का उपभोग करते हुए प्रतीत होते थे, परन्तु उन्हें किंचितमात्र भी उनकी गन्ध न थी और न ही उनके उपभोग का ज्ञान था । वे खाते अवश्य थे, परन्तु उनकी जिहृा को कोई स्वाद न था । वे नेत्रों से देखते थे, परन्तु उस दृश्य में उनकी कोई रुचचि न थी । काम के सम्बन्ध में वे हनुमान सदृश अखंड ब्रहमचारी थे । उन्हें किसी पदार्थ में आसक्ति न थी । वे शुद्घ चैतन्य स्वरुप थे, जहाँ समस्त इच्छाएँ, अहंकार और अन्य चेष्टाएँ विश्राम पाती थी । संक्षेप में वे निःस्वार्थ, मुक्त और पूर्ण ब्रहम थे । इस कथन को समझने के हेतु एक रोचक कथा का उदाहरण यहाँ दिया जाता है ।

नानावल्ली
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शिरडी में नानावल्ली नाम का एक विचित्र और अनोखा व्यक्ति था । वह बाबा के सब कार्यों की देखभाल किया करता था । एक समय जब बाबा गादी पर विराजमान थे, वह उनके पास पहुँचा । वह स्वयं ही गादी पर बैठना चाहता था । इसलिये उसने बाबा को वहाँ से हटने को कहा । बाबा ने तुरन्त गादी छोड़ दी और तब नानावल्ली वहाँ विराजमान हो गया । थोड़े ही समय वहाँ बैठकर वह उठा और बाबा को अपना स्थान ग्रहण करने को कहा । बाबा पुनः आसन पर बैठ गये । यह देखकर नानावल्ली उनके चरणों पर गिर पड़ा और भाग गया । इस प्रकार अनायास ही आज्ञा दिये जाने और वहाँ से उठाये जाने के कारण बाबा में किंचितमात्र भी अप्रसन्नता की झलक न थी ।


सुगम पथः सनन्तों की कथाओं का श्रवण करना और उनका समागम यघपि बाहय दृष्टि से श्री साईबाबा का आचरण सामान्य पुरुषों के सदृश ही था, परन्तु उनके कार्यों से उनकी असाधारण बुद्घिमत्ता और चतुराई स्पष्ट ही प्रतीत होती थी । उनके समस्त कर्म भक्तों की भलाई के निमित्त ही होते थे । उन्होने कभी भी अपने भक्तों को किसी आसन या प्राणायाम के नियमों अथवा किसी उपासना का आदेश कभी नहीं दिया और न उनके कानों में कोई मन्त्र ही फूँका । उनका तो सभी के लिये यही कहना था कि चातुर्य त्याग कर सदैव साई साई यही स्मरण करो । इस प्रकार आचरण करने से समस्त बन्धन छूट जायेंगे और तुम्हें मुक्ति प्राप्त हो जायेगी । पंचामि, तप, त्याग, स्मरण, अष्टांग योग आदि का साध्य होना केवल ब्राहमणों को ही सम्भव है, अन्य वर्णों के लिये नहीं ।



मन का कार्य विचार करना है । बिना विचार किये वह एक क्षण भी नहीं रह सकता । यदि तुम उसे किसी विषय में लगा दोगे तो वह उसी का चिन्तन करने लगेगा और यदि उसे गुरु को अर्पण कर दोगे तो वह गुरु के सम्बन्ध में ही चिन्तन करता रहेगा । आप लोग बहुत ध्यानपूर्वक साई की महानता और श्रेष्ठता श्रवण कर ही तुके है । यह स्वाभाविक स्मरण और पूजन ही साई का कीर्तन है । सन्तों की कथा का स्मरण उतना कठिन नहीं, जितना कि अन्य साधनाओं का, जिनका वर्णन ऊपर किया जा चुका है । ये कथाएँ सासारिक भय को निर्मूल कर आध्यात्मिक पथ पर आरुढ़ करती है । इसलिये इन कथाओं काहमेशा श्रवण और मनन करो तथा आचरण में भी लाओ । यदि इन्हें कार्यान्वित किया गया तो न केवन ब्राहमण, वरन स्त्रियाँ और अन्य दलित जातियाँ भी शुदृ और पावन हो जायेंगी । सासारिक कार्यों में लगे रहने पर भी अपना चित्त साई और उनकी कथाओं में लगाये रहो । तब तो यह निश्चत है कि वे कृपा अवश्य करेंगे । यह मार्ग अति सरल होने पर भी क्या कारण है कि सब कोई इसका अवलम्बन नहीं करते । कारण केवल यह है कि ईश-कृपा के अभाववश लोगों मे सन्त कथाएँ श्रवण करने की रुचि उत्पन्न नहीं होती । ईश्वर की कृपा से ही प्रत्येक कार्य सुचारु एवम सुंदर ढंग से चलता है । सन्तों की कथा का श्रवणे ही सन्तसमागम सदृश है । सन्त-सानिध्य का महत्व अति महान है । उससे दैहिक वुद्घि, अहंकार और जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति, हो जाती है । हृदय की समस्त ग्रंथियाँ खुल जाती है और ईश्वर से मिलन हो जाता है, जोकि चैतन्यघन स्वरुप है । विषयों से निश्चय ही विरक्ति बढ़ती है तथा दुःखों और सुखों में स्थिर रहने की शक्ति प्राप्त हो जाती है और आध्यात्मिक उन्नति सुलभ हो जाती है । यदि तुम कोई साधन जैसे नामस्मरण, पूजन या भक्ति इत्यादि नहीं करते, परन्तु अनन्य भाव से केवल सन्तों के ही शरणागत हो जाओ तो वे तुम्हें आसानी से भवसागर के उस पार उतार देंगे । इसी कार्य के निमित्त ही सन्त विश्व में प्रगट होते है । पवित्र नदियाँ – गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि जो संसार के समस्त पापों को धो देती है, वे भी सदैव इच्छा करती है कि कोई महात्मा अपने चरण-स्पर्श से हमें पावन करे । ऐसा सन्तों का प्रभाव है । गत जन्मों के शुभ कर्मों के फलस्वरुप ही श्री साई चरणों की प्राप्ति संभव है ।

मैं श्रीसाई के मोह-विनाशक चरणों का ध्यान कर यह अध्याय समाप्त करता हूँ । उनका स्वरुप कितना सुन्दर और मनोहर है । मसजिद के किनारे पर खड़े हुए वे सब भक्तों के, उनके कल्याणार्थ उदी वितरण किया करते है । जो इस विश्व को मिथ्या मानकर सदा आत्मानंद में निमग्न रहते थे, ऐसे सच्चिदानंद श्रीसाईमहाराज के चरणकमलों में मेरा बार-बार नमस्कार हैं । 
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.