शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday 31 January 2024

श्री गुरु तेग बहादर जी-साखियाँ-हडियाए नगर, बुखार रोग दूर करना

श्री गुरु तेग बहादर जी-साखियाँ-हडियाए नगरबुखार रोग दूर करना


गुरु तेग बहादर जी हडियाए नगर पहुँचे वह नगर से बाहर बरगद के पेड़ के नीचे आ ठहरे| उस समय गाँव का एक बीमार आदमी लेता हुआ था|बुखार के साथ उसकी हडियाँ टूट रही थी| गुरु तेग बहादर जी ने पुछा इसको घर क्यों नहीं ले जाते?

उसको घर वालों ने कहा की महाराज! गाँव में बुखार का बड़ा जोर है,कोई विरला ही बचा है|बहुत लोग मार भी गये है|

वह पास ही पानी का एक जौहड़ था| गुरु जी कहा कि इस इसमें स्नान करा दो| बुखार भी उतर जायेगा|उन्होंने गुरु जी का वचन माना| बीमार व्यक्ति को उठा कर जौहड़ में स्नान कराया गया| उसका बुखार शीघ्र ही उतर गया|बीमार आदमी भी स्वस्थ हो गया|

इस बात का पता जब गाँव वालों को लगा तो वो सरे बीमार लोगों को लेकर गुरु जी के पास ले आये|सबको जौहड़ में स्नान कराया गया| सभी स्वस्थ हो गये| यह कौतक देखकर सभी दंग रह गये| सभी भेंट लेकर गुरु जी के दर्शन करने आने लगे|सतिनाम का उपदेश ले कर सिख बन गये|

गुरु जी यह एक धर्मशाला व लंगर चलाने का हुक्म देकर आगे चल दिए| इस जौहड़ को संगत ने पक्का सरोवर करा दिया,जिसका नाम "गुरुसर " प्रसिद्ध है|संगत ने गुरु जी कि आज्ञा अनुसार धर्मशाला भी तैयार कर दी|

Tuesday 30 January 2024

श्री गुरु तेग बहादर जी-गुरु गद्दी मिलना

श्री गुरु तेग बहादर जी-गुरु गद्दी मिलना


जब श्री गुरु हरिगोबिंद जी ने गुरु गद्दी अपने छोटे पोत्र श्री हरि राय जी को दी तथ स्वंय ज्योति-ज्योत समाने का निर्णय कर लिया तो माता नानकी जी ने आपको हाथ जोड़कर विनती की कि महाराज! मेरे पुत्र जो कि संत स्वरुप हैं, उनकी ओर आपने ध्यान नहीं दिया| उनका निर्वाह किस तरह होगा? गुरु हरि गोबिंद जी ने जब अपनी पत्नी की यह बात सुनी तो उन्होंने वचन किया कि आप इस समय अपने पुत्र श्री तेग बहादर जी को लेकर अपने मायके बकाले गाँव चले जाओ| समय पर इन्ही को गुरु गद्दी प्राप्त हो जायेगी|


गुरु जी का वचन मानकर माता नानकी जी श्री (गुरु) तेग बहादर जी को लेकर बकाले आ गई| वहाँ आकर श्री तेग बहादर जी अलग बैठकर भजन सिमरन करते रहते| वह किसी भी काम काज की ओर अपना ध्यान न देते| इस तरह ऐसी तप साधना में आपजी ने 21-22 साल व्यतीत किए|


आठवें गुरु श्री हरि कृष्ण जी ने दिल्ली में ज्योति-ज्योत समाने से पहले पांच पैसे और नारियल थाली में रख कर और उसको माथा टेक कर वचन किया था कि "गुरु बाबा बकाले"| जब यह वचन सारे सिख सेवकों में प्रकट हो गया तो श्री तेग बहादर जी कोष्ठ में समाधि लगाकर छुप कर बैठ गए| 15 दिनों के बाद जब आपकी समाधि खुली तो माता जी ने कहा कि बेटा! आप संगत में प्रकट होकर दर्शन दो और उनकी मनोकामना पूर्ण करो| पर गुरु जी अपनी लिव जोड़कर बैठे रहे|


दूसरी ओर धीरमल जी गुरु गद्दी लगाकर बकाले आकर गुरु बनकर बैठ गए| उसने जगह जगह यह प्रचार किया कि मैं ही गुरु हूँ| इनको देखकर और सोढ भी यहाँ डेरा लगाकर बैठ गए| यह आपा धापी देखकर श्रधालु सिख विचलित से होने लगे|


मखन शाह लुभाना जिला जेहलम गाँव टांडा में रहता था, जो कि देश विदेश में व्यपार का काम करता था| एक बार वह किसी विदेश से जहाज का माल लादकर समुन्द्र के रस्ते देश को आ रहा था| तूफान के कारण जहाज रेतीली जिल्हण में फस गया| कोई चारा ना चलता देखकर उसने गुरु जी से हाथ जोड़कर अरदास की कि सच्चे पातशाह! मैं आपके घर का सेवक हूँ मेरी सहायता करके पार लगाओ| मैं आपके आगे पांच सौ मोहरे भेंट करूँगा|


अपने भगत के हृदय की पुकार सुनकर अन्तर्यामी गुरु ने अपना कंधा देकर मखन शाह का डूबता जहाज पार लगा दिया| और अपने सेवक की प्रार्थना कबूल की|


जहाज पार लगाकर मखन शाह ने सारा माल बेच दिया| तो वह अपनी मनौत पूरी करने के लिए पंजाब आया| पंजाब आकर उसको पता लगा इस समय गुरु बकाले में निवास करते हें| तब उसने यह विचार किया कि अन्तर्यामी गुरु स्वंय ही मुझसे पांच सौ मोहरे माँगेगे| बकाले जाकर उसने देखा कि वहाँ कई गुरु बैठे हैं| उसने हर एक गद्दी लगाकर बैठे गुरु के आगे दो दो मोहरे रखकर माथा टेका| पर किसी भी गुरु ने पांच सौ मोहरे पूरी ना माँगी| फिर वह सच्चे गुरु को पूछता-पूछता श्री गुरु तेग बहादर जी के पास पहुँच गया| आप जी कोष्ठ में बैठे थे| आपने माता जी से पूछ कर कोष्ठ में जाकर जब दो मोहरे रखकर माथा टेका तो आपने हँस कर कहा - मखन शाह! तू पांच सौ मोहरे गुरु घर की मनौत मानकर अब दो ही मोहरे रखता है| तुम्हें गुरु घर की मनौत पूरी करनी चाहिए|


गुरु जी के यह वचन सुनकर मखन शाह को यकीन आ गया कि यही सच्चे गुरु हैं| उसने पांच सौ मोहरे गुरु जी के आगे भेंट कर दी और खुशी से कोठे पर चढ़कर ऊँची-ऊँची कपड़ा फेरकर कहा, "गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे|"


इस तरह जब सबको पता लग गया कि बकाले वाले बाबा श्री गुरु तेग बहादर जी हैं तो संगत उमड़-उमड़ कर आपके दर्शन करने के लिए आने लगी| मखन शाह ने अपनी वार्ता सबको सुनाई कि सच्चे गुरु की परख किस तरह हुई है| यह वार्ता सुनकर श्रद्धालु सिख सेवकों ने गुरु जी के आगे भेंट रखकर माथा टेका|


दूसरे दिन माता जी तथा भाई गढ़ीये से सलाह करके मखन शाह ने चंदोआ और नीचे दरियाँ बिछाई और गुरु जी के दीवान के लिए तैयारी करके गुरु जी को गद्दी लगवाकर बिठा दिया| गुरु जी का दीवान में प्रगट होकर बैठना सुनकर सिख सेवक उमड़-उमड़ कर दर्शन करने को आए| आए हुए सभी श्रदालुओं ने यथा शक्ति भेंट अर्पण की और गुरु जी को माथा टेका|


धीरमल ने इस तरह संगत की आवाजाई और गुरु जी भेंट अर्पण होते देखकर आदमी भेजकर सारा चढ़ावा जो संगत ने भेंट किया था उठवा लिया| इस समय शीहें मसंद ने गुरु जी को मारने के लिए गोली भी चलाई| परन्तु वह खाली गई और गुरु जी बच गए|

मखन शाह अपने साथ आदमी लेकर धीरमल के डेरे से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ के साथ-साथ डेरे से सब कुछ ले आया जो धीरमल के आदमी लूट कर ले गए थे| परन्तु गुरु जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ के अतिरिक्त धीरमल को वापिस करा दिया| इस तरह अपना आदर ना होता देखकर अपना सामान उठवाकर करतारपुर चला गया|

Monday 29 January 2024

श्री गुरु तेग बहादर जी-जीवन परिचय

श्री गुरु तेग बहादर जी-जीवन परिचय



प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): अमृतसर में 1 अप्रैल 1621 (पंजाब)Parkash Ustav (Birth date): April 1, 1621 at Amritsar (Punjab)

पिता: गुरु हरगोबिंद जी
Father: Guru Hargobind ji
माँ: माता Nanaki जी
Mother: Mata Nanaki ji
सहोदर: बाबा गुरदित्ता, बाबा वीरो, बाबा सूरजमल, बाबा अनी राय, बाबा अटल राय
Sibling: Baba Gurditta, Baba Viro, Baba Suraj Mal, Baba Ani Rai, Baba Atal Rai
महल (पति या पत्नी): करतारपुर जिला के माता गुज़री जी, पुत्री श्री लाल चंद जी, जालंधर.
Mahal (spouse): Mata Gujri ji D/o Lal Chand of Kartarpur Distt. Jullandhar.
साहिबज़ादे (वंश): गोबिंद राय जी
Sahibzaday (offspring): Gobind Rai ji
ज्योति ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): चांदनी चौक, दिल्ली में 11 नवंबर 1675
Joti Jyot (ascension to heaven): November 11, 1675 at Chandini Chowk, Delhi

गुरु मंगल 

दोहरा|| हिंदू धरम तरु मूल को राखयो धरनि मझार|| 
तेग बहादर सतिगुरु त्रिण समान तन डारि||१||



श्री गुरु तेग बहादर जी का जन्म श्री गुरु हरि गोबिंद जी के घर माता नानकी जी की पवित्र कोख से रविवार वैसाख वदी पंचमी संवत 1678 विक्रमी को अमृतसर में हुआ| आप जी का विवाह गुजरी जी से जो कि श्री लाल चंद सुभिखी क्षत्रि की सुपुत्री से 15 असूज संवत 1689 विक्रमी को करतारपुर में हुआ|

माता गुजरी जी की पवित्र कोख से पटने शहर में पोष सुदी सप्तमी रविवार असूज संवत 1723 विक्रमी को सवा पहर रात रहती श्री (गुरु) गोबिंद सिंह जी ने अवतार धरण किया|

Sunday 28 January 2024

श्री गुरु हरि कृष्ण जी - ज्योति ज्योत समाना

श्री गुरु हरि कृष्ण जी - ज्योति ज्योत समाना


रानियों के महल से वापिस आकर कुछ समय बाद गुरु जी को बुखार हो गया जिससे सबको चिंता हो गई| बुखार के साथ-साथ दूसरे दिन ही गुरु जी को शीतला निकल आई| जब एक दो दिन इलाज करने से बीमारी का फर्क ना पड़ा तो इसे छूत की बीमारी समझकर राजा जयसिंह के बंगले से आपको यमुना नदी के किनारे तिलेखरी में तम्बू कनाते लगाकर भेज दिया|

इस प्रकार दो दिन दो राते गुरु जी को बहुत कष्ट रहा जिससे आपकी हालत खराब हो गई| सिखो ने प्रार्थना की महाराज! संगत के लिए क्या आज्ञा है किसके जिम्मे लगा चले हो| घर-घर गुरु बन बैठेगें| इसलिए संगत की बाजू किसे पकड़ाओगे| कृपा करके हमें बताए|


गुरु जी ने अपने मसंद भाई गुरुबक्श जी से एक ओर पांच पैसे मंगवाकर थाल में रखकर उनको माथा टेक कर कहा - 

"बाबा बसहि जि गराम बकले|| बनि गुर संगति सकल समाले||"


यह वचन करके आपजी कुश के आसन पर चादर तान कर लेट गए और शरीर त्यागकर स्वर्ग सिधार गए| 



कुल आयु व गुरु गद्दी का समय (Shri Guru Har Krishan Ji Total Age and Ascension to Heaven)


श्री गुरु हरि कृष्ण जी 5 साल 2 महीने की उम्र में गुरु गद्दी पर बैठ कर 2 साल 5 महीने गुरुत्व करके चेत्र सुदी चौदस 1721 विक्रमी को ज्योति ज्योत समां गए|

Saturday 27 January 2024

श्री गुरु हरि कृष्ण जी-साखियाँ-अनपढ़ झीवर से श्री भागवत गीता के अर्थ करवायें

श्री गुरु हरि कृष्ण जी-साखियाँ-अनपढ़ झीवर से श्री भागवत गीता के अर्थ करवायें



कीरतपुर से दिल्ली को जाते हुए गुरु जी अम्बाले के पास पंजोखरे गाँव में ठहरे| पंडित जो उसी गाँव के रहने वाले थे आपसे कहने लगे कि आप छोटी उम्र में ही ईश्वर अवतार और गुरु कहलाते हो|

अगर आपमें शक्ति है तो मुझे आप गीता के अर्थ करके दिखाओ| पंडित की ऐसी बात सुनकर गुरु जी ने कहा, पंडित जी! अगर अपने गीता के अर्थ सुनने हैं तो अपने गाँव में से किसी आदमी को लेकर आओ, हम उससे ही गीता के अर्थ आपको सुनवा देंगे|

गुरु जी की यह बात सुनकर पंडित जी ने एक अनपढ़ झीवर को बुलाया| गुरु जी ने उस झीवर को हाथ मुँह धुलवा कर एक आसन पर बिठा दिया|गुरु जी ने अपने हाथ की छड़ी उसके सिर पर रख कर कहा कि "पंडित जी को गीता के अर्थ करके सुनाओ|" गुरु जी की कृपा से उस झीवर ने गीता पड़कर शास्त्र अनुसार अर्थ करके पंडित को सुनाए|

गुरु जी के ऐसे कौतक को देखकर पंडित जी दंग रह गए| उनकी ऐसी प्रत्यक्ष शक्ति को देखकर पंडित ने गुरु जी को प्रणाम किया और क्षमा माँगी| अब इस स्थान पर एक सुन्दर गुरुद्वारा बना हुआ है|

Friday 26 January 2024

श्री गुरु हरि कृष्ण जी-साखियाँ-चरणामृत से रोगियों के रोग दूर करना

श्री गुरु हरि कृष्ण जी-साखियाँ-चरणामृत से रोगियों के रोग दूर करना


पंजोखरे से चलकर और स्थान-स्थान पर संगतो को दर्शन की खुशी देते हुए गुरु हरि कृष्ण जी दिल्ली पहुँच गए| गुरु जी के रहने का प्रबंध राजा जयसिंह ने अपने बंगले में कराया| उसने गुरु जी के दिल्ली पहुँचने की खबर बादशाह को भी दे दी|

उस समय दिल्ली शहर में हैजे की बीमारी से बहुत लोग बीमार थे| गुरु जी के आने की खबर सुनकर बहुत से रोगी आपके पास आने लगे| आप जिन्हें भी अपने चरणों का चरणामृत देते वह जल्द ही स्वस्थ हो जाता| इस प्रकार आपकी उपमा को सुनकर बहुत रोगी आपके पास आने लगे| आपने एक कुंड बनवाया जिसमे अमृत समय के स्मरण से उठकर अपने चरणों की छोह का पानी भर देते| इस कुंड में आए हुए रोगियों को सेवादार आठों पहर चरणामृत देते| जिससे बहुत से रोगी स्वस्थ हो गए| वह गुरु जी की महिमा गाते और भेंट अर्पण करते|


इस वार्ता को सुनकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अरदास में यह शब्द रखे -

"श्री हरि कृष्ण जी धिआईअै जिस डिठै सभ दुख जाइ||"

Thursday 25 January 2024

श्री गुरु हरि कृष्ण जी-साखियाँ-बादशाह औरंगजेब के शहिजादे का गुरु जी से प्रभावित होना

श्री गुरु हरि कृष्ण जी-साखियाँ-बादशाह औरंगजेब के शहिजादे का गुरु जी से प्रभावित होना



राजा जयसिंह ने जब बादशाह को यह बताया कि गुरु जी ने मेने बंगले में निवास कर लिया है तो दूसरे ही दिन उसने अपने शहिजादे को गुरु जी के पास भेज दिया| शहिजादे ने बादशाह की ओर से गुरु जी को भेंट अर्पण की और माथा टेका| उसने गुरु जी से यह प्रार्थना की कि बादशाह आपके दर्शन करना चाहते हैं| पर गुरु जी आगे से कहने लगे कि हमारा प्रण है कि हम किसी बादशाह के माथे नहीं लगेंगे|

शहिजादे गुरु जी से बातचीत करके बहुत प्रभावित हुआ| उसने यह सारी बात बादशाह को बताई कि गुरु जी उम्र में चाहे बच्चे हैं परन्तु उनकी सूझ-बूझ वृद्धों वाली है| इस प्रकार शहिजादा गुरु हरि कृष्ण जी से प्रभावित हुए बिना ना रह सका|

Wednesday 24 January 2024

श्री गुरु हरि कृष्ण जी-साखियाँ-जयसिंह की रानी की परख करनी

श्री गुरु हरि कृष्ण जी-साखियाँ-जयसिंह की रानी की परख करनी



राजा जयसिंह की रानी ने जब यह सुना कि बाल गुरु जी शक्तिवान हैं तो उसने आपको भोजन खिलाने के लिए महलों में बुलाया| रानी गुरु जी की शक्ति को परखना चाहती थी| इस मकसद से रानी ने सेविकाओं वाले वस्त्र पहन लिए और उनके बीच में जाकर बैठ गई| अन्तर्यामी गुरु जी जब अपनी माता सहित राजा के महल में गए तो सभी सेविकाओं ने आपको माथा टेका और बैठ गई|

गुरूजी अपने हाथ की छड़ी सबके सिर ऊपर रखते गए और साथ-साथ यह भी कहते रहे कि यह भी रानी नहीं, यह भी रानी नहीं| परन्तु जब असली रानी की बारी आई तो गुरु जी ने उसके सिर पर भी छड़ी रखी और कहने लगे यह ही रानी है| यह सुनकर रानी फूले नहीं समाई और बड़े प्यार से उन्हें गोदी में बिठा लिया| साथ ही साथ श्रदा के साथ उनके चरण पकडे और सिर झुकाया| राजा-रानी ने बड़े प्रेम से उन्हें भोजन खिलाया व जवाहरात की थाली भी उनको भेंट की|

Tuesday 23 January 2024

श्री गुरु हरि कृष्ण जी गुरु गद्दी मिलना

श्री गुरु हरि कृष्ण जी गुरु गद्दी मिलना



कीरत पुर में गुरु हरि राय जी के दो समय दीवान लगते थे| हजारों श्रद्धालु वहाँ उनके दर्शन के लिए आते और अपनी मनोकामनाएँ पूरी करते| एक दिन गुरु हरि राय जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक पाया और देश परदेश के सारे मसंदो को हुक्मनामे भेज दिये कि अपने संगत के मुखियों को साथ लेकर शीघ्र ही किरत पुर पहुँच जाओ| इस तरह जब सब सिख सेवक और सोढ़ी, बेदी, भल्ले, त्रिहण, गुरु, अंश और सन्त-महन्त सभी वहाँ पहुँचे| आपजी ने दीवान लगाया और सब को बताया कि हमारा अन्तिम समय नजदीक आ रहा है और हमने गुरु गद्दी का तिलक अपने छोटे सपुत्र श्री हरि कृष्ण जी को देने का निर्णय किया है| 


इसके उपरांत गुरु जी ने श्री हरि कृष्ण जी को सामने बिठाकर उनकी तीन परिकर्मा की और पांच पैसे और नारियल आगे रखकर उनको नमस्कार की| उन्होंने साथ-साथ यह वचन भी किया कि आज से हमने इनको गुरु गद्दी दे दी है| आपने इनको हमारा ही रूप समझना है और इनकी आज्ञा में रहना है| गुरु जी का यह हुक्म सुनकर सारी संगत ने यह वचन सहर्ष स्वीकार किया और भेंट अर्पण की| इस प्रकार संगत ने श्री हरि कृष्ण जी को गुरु स्वीकार कर लिया|

यह सब गुरु हरि कृष्ण जी के बड़े भाई श्री राम राय जी बर्दाश्त ना कर सके| उन्होंने क्रोध में आकर बाहर मसंदो को पत्र लिखे कि गुरु की कार भेंट इक्कठी करके सब मुझे भेजो नहितो पछताना पड़ेगा| उसने इसके साथ-साथ दिल्ली जाकर औरंगजेब को कहा कि मेरे साथ बहुत अन्याय हुआ है| गुरु गद्दी पर बैठने का हक तो मेरा था परन्तु मुझे छोडकर मेरे छोटे भाई को गुरु गद्दी पर बिठाया गया| जिसकी उम्र केवल पांच वर्ष की है| आप उसको दिल्ली में बुलाओ और कहो कि गुरु बनकर सिखो से कार भेंटा ना ले और अपने आप को गुरु ना कहलाए| श्री राम राय के बहुत कुछ कहने के कारण बादशाह ने मजबूर होकर राजा जयसिंह को कहा कि अपना विशेष आदमी भेजकर गुरु जी को दिल्ली बुलाओ| जयसिंह ने ऐसा ही किया| राजा जयसिंह कि चिट्टी पड़कर और मंत्री की जुबानी सुनकर गुरु हरि कृष्ण जी ने माता और बुद्धिमान सिक्खों से विचार किया और दिल्ली जाने की तैयारी कर ली|

Monday 22 January 2024

श्री गुरु हरि कृष्ण जी जीवन - परिचय

श्री गुरु हरि कृष्ण जी जीवन - परिचय

प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): किरतपुर में 7 जुलाई, 1656
Parkash Ustav (Birth date): July 7, 1656 at Kiratpur


पिता: गुरु हर राय जी
Father: Guru HarRai Ji


माँ: माता कृष्ण कौर
Mother: Mata Krishen Kaur


सहोदर: राम राय (भाई)
Sibling: Ram Rai (brother)


ज्योति ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): 30 मार्च 1664
Joti Jyot (ascension to heaven): March 30, 1664


मंगल अष्ट गुरु जी ||

हरि किषण भयो अषटम बलबीरा || 

जिन पहुँचे देहली तजिओ सरीरा || 

बाल रूप धरिओ स्वांग रचाइि || 

तब सहिजे तन को छोड सिधाइि || 

इिउ मुगलन सीस परी बहु छारा || 

वै खुद पति सों पहुचे दरबारा || 

(पउड़ी २३ || वार ४१ || भाई गुरदास दूजा ||)


श्री हरि कृष्ण जी का जन्म श्री गुरु हरि राय जी के घर माता कृष्ण कौर जी की कोख से सावण वदी 10 बुधवार संवत 1713 विक्रमी को कीरतपुर नगर में हुआ| आपजी के बड़े भाई का नाम श्री राम राय जी था|

Sunday 21 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी - ज्योति ज्योत समाना

श्री गुरु हरिराय जी - ज्योति ज्योत समाना



दूसरे दिन कार्तिक वदी ९ संवत १७१८ विक्रमी को गुरु जी ने अपने आसन पर चौकड़ी मार ली| अपने श्रद्धानंद स्वरूप में वृति जोड़कर शरीर को त्याग दिया व सच क्खंड जा विराजे| आप जी के पांच तत्व के शरीर को चन्दन कि चिता में तैयार करके गुरु हरिगोबिंद जी के द्वारा निर्मित पतालपुरी के स्थान के पास अग्निभेंट कर दिया गया|

Saturday 20 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-भाई भगतु व भाई फेरु की वार्ता

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-भाई भगतु व भाई फेरु की वार्ता


भाई भगतु गुरु घर का सेवक था| जब गुरु हरि राय जी गुरु गद्दी पर बैठे तो कुछ समय बाद भगतु जी ने प्रार्थना की कि महाराज! सेवा के बिना मनुष्य की आयु बेकार है इसलिए मुझे कोई सेवा दो| गुरु जी हँस कर कहने लगे कि अब आप बहुत वृद्ध हो गए हो| अपने मनोरंजन के लिए कोई चरखा लाओ|

भगतु कहने लगे महाराज! जैसे आपकी इच्छा है वैसे सेवा बक्शो| परन्तु मुझे सेवा जरूर दो| गुरु जी प्रसन्न होकर कहने लगे तुम गुरु के लंगर के लिए खेती कराओ| गुरु की आज्ञा आते ही भगतु जी ने कर्मचारी और बैल तैयार करवाकर धरती जो जोता और बीज डाल दिया और संभाल करनी शुरू कर दी|

एक दिन खेत में काम करने वाले वालों ने कहा,भाई जी! रोटी हमें घी के साथ अच्छी तरह से दो| हम और भी अधिक उत्साह से काम करेंगे| भाई जी ने जब उनकी बात सुनी तो इधर उधर देखने लगे| उधार से एक फेरी वाला जा रहा था जिसके पास नमक,मिर्च,गुड़,घी इत्यादि था| उसको बुलाकर भाई जी कहने लगे इनको रोटी के साथ जितना घी चाहिए उतना दे दो| इस घी का मूल्य हमसे कल ले लेना| तब फेरी वाले ने काम करने वालो को अपनी कुपी में से एक एक पली घी दे दिया|

फेरी वाले ने घर जाकर घी वाली कुपी जिसमे थोड़ा सा घी बचा था, खूंटी पर टांग दिया| सुबह उठकर जब कुप्पी को तोलकर देखने लगा कि श्रमिकों को कितना घी खिलाया है| जिसके पैसे भगतु से लेने हैं| उसने जैसे ही कुप्पी को देखा व घी से लबा लब भरी हुई थी| यह कौतक देखकर फेरी वाला भगतु जी के पास गया और उनके पैरों में माथा टेका और कहने लगा कि मुझे अपना सिख बनाओ| भाई भगतु ने जब उसकी श्रद्धा देखी तो व उसे गुरु दरबार पर ले गया| भाई भगतु को देखकर गुरु जी कहने लगे परोपकारी भगतु किसको साथ लायेहो? भाई भगतु ने सारी बात बताई और यह भी कहा कि यह आपका सिख बनना चाहता है|

गुरु जी फेरी वाले से पूछने लगे कि आपका क्या नाम है और क्या करते हो| उसने कहा महाराज! मेरा नाम संगत है मैं फेरी लगाने का काम करता हूँ| गुरु जी ने वचन किया कि तू फेरी करता हुआ हमारी शरण में आया है इसलिए आज से तेरा नाम फेरु है| गुरु जी ने उसको अपना चरणामृत देकर सिख बना लिया और वचन किया फेरी का काम छोडकर सतिनाम का सिमरन किया और देग चलाया करो तुम्हें कभी कमी नहीं आएगी| इस प्रकार फेरु जी ने गुरु जी का वचन मानकर अपना ध्यान सतिनाम की याद में लगा दिया और तन मन से देग की कार चलाने लग गए|

Friday 19 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-भगत भगवान की वार्ता

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-भगत भगवान की वार्ता


एक भगवान गिर सन्यासी साधु ने गुरु की बहुत महिमा सुनी कि आप ईश्वर अवतार हैं| मन में यह धारणा लेकर गुरु दर्शन के लिए आ गए कि अगर गुरु सच्चा है तो यह मुझे चतुर्भुज रूप में दर्शन देंगे| मैं तब ही इन्हें सच्चा ईश्वर का अवतार मानूंगा|

मन में यह भाव लिए जब भगवान गिर गुरु के दरबार में पहुँचे तो उनकी हैरानी की सीमा ना रही| वह अपनी सुध-बुध खो बैठे| वह पत्थर की मूर्ति बनकर कुछ समय वही खड़े रहे| उन्होंने देखा कि संगत बैठी है कीर्तन भी चल रहा है| एक चतुर्भुज स्याम मूर्ति चक्कर सिंघासन के ऊपर सुशोभित है| यह सब देखकर अपनी चेतना को कायम करते हुआ उसने गुरु के चरणों में डन्डवत होकर माथा टेका जब उठकर देखा गुरु जी अपने गुरु स्वरुप में दर्शन दे रहे हैं| भगत भगवान यह कौतक देखकर बहुत प्रभावित हुए और कहने लगे कि महाराज! मुझे अपना सिख बनाकर उपदेश दो|

गुरु जी ने उसकी श्रद्धा भक्ति देखकर चरणामृत दिया और सतिनाम का उपदेश दिया और वचन किया - "भक्त भगवान दर सहि परवान" यह उपदेश और वरदान लेकर भगत भगवान ने सिखी का खूब प्रचार किया|

Thursday 18 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-एक माई की श्रद्धा पूरी करनी

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-एक माई की श्रद्धा पूरी करनी



एक बजुर्ग माई जो कि निर्धन थी| उसके मन में यह भाव था कि गुरु जी उसके हाथ का तैयार किया हुआ भोजन खाये| जिस दिन गुरु जी उसके हाथ का बना भोजन खायेगें वह किसमत वाली हो जायेगी| उसने मेहनत मजदूरी करके कुछ पैसे जोड़ लिए और गुरु जी के भोजन के लिए रसद भी तैयार करके रख ली|

एक दिन उसने स्नान करके रसोई का लेप किया और गुरु जी के लिए भोजन तैयार करने लगी| मन में उसके श्रद्धा भाव था कि गुरु जी मेरा भोजन अवश्य ग्रहण करेगें| उसने दो रोटियाँ तैयार करके उसके ऊपर घी, चीनी डालकर साफ कपड़े में लपेट लिया और गुरु दरबार की और चल पड़ी| लेकिन मन में बार बार यही भाव थे कि वह किस तरह कपड़े में लपेटा हुआ भोजन गुरु जी को देगी|

उधर गुरु जी ने माई की प्रार्थना सुन ली और उसकी श्रधा को देखकर दीवान से उठ गए| उन्होंने जल्दी जल्दी घोड़ा तैयार करवाया और शिकार के बाहने उधर ही चाल पड़े जिस तरफ से गरीब माई गुरु-गुरु का जाप करते हुए आ रही थी| जब माई ने देखा कि गुरु जी कुछ सिखो के साथ घोड़े पर सवार होकर इधर ही आ रहे हैं तो वह एक तरफ खड़ी हो गई|

माई को एक तरफ खड़ी देखकर गुरु जी ने घोड़ा उसके पास जाकर ही खड़ा कर दिया और कहने लगे - "माई हमे बहुत भूख लगी है हमें रोटी दो|" यह वचन सुनते ही माई ने कपड़े में लपेटी हुई रोटी दोनों हाथों से गुरु जी के आगे कर दी| गुरु जी ने कपड़े में से रोटी निकाली और हाथ के ऊपर रखकर खाने लगे| साथ-साथ गुरु जी ने कहना शुरू किया कि यह भोजन बहुत स्वाद है, हमें बहुत आनन्द आया है| गरीब माई की आँखों से आंसू बहने लगे|

गुरु जी ने भोजन किया और कपड़ा वापिस माई को दे दिया| गुरु जी ने वचन किया कि माई तू निहाल हो गई है| तब माई ने गुरु के चरणों पर माथा टेका और उनकी महिमा गाती हुई घर की और चल दी|

Wednesday 17 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-शाहजहाँ के बेटे (दारा शिकोह) को स्वस्थ करना

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-शाहजहाँ के बेटे (दारा शिकोह) को स्वस्थ करना

शाहजहाँ के बेटे का नाम दारा शिकोह था| शाहजहाँ अपने बड़े पुत्र को ताज़ देना चाहता था| परन्तु इसका तीसरा लड़का औरंगजेब अपने भाई से इर्ष्या करता था जिसके कारण औरंगजेब ने रसोइए की ओर से शेर की मूंछ का बल अथवा कोई जहरीली चीज़ खिला दी जिससे दारा शिकोह बीमार हो गया| बादशाह ने उसका बहुत इलाज़ करवाया परन्तु दारा शिकोह ठीक ना हुआ|

शाहजहाँ ने देश के सभी हकीमो को बुलाकर पूछा तब उन्होंने उसकी बीमारी को देखकर बताया कि एक लौंग जिसका वजन एक माशा हो ओर एक हरढ़ जुसका वज़न १४ सिरसाही हो रगड़कर कर शाहिजादे को दिए जाए तब शेर का बल अथवा कोई ऐसी जहरीली चीज़ बाहर निकाल आएगी और शाहिजादा स्वस्थ हो जाएगा| राजे ने वैसा ही किया जैसे हकीमो ने बोला था| बादशाह ने सारे देश में अपने आदमी भेजे परन्तु यह चीजे कहीं ना मिली| बादशाह चिंता में पड़ गए| तब वजीर खाँ ने बताया बादशाह! मुझे किसी सिख से पता चला है यह दोनों चीजे इस मात्र की गुरु नानक जी की गद्दी पर विराजमान गुरु हरि राय जी के पास हैं अगर आप चाहे तो उनसे मंगवा को|

बादशाह ने अपने दो अहिलकर गुरु जी के पास चिट्ठी देकर भेजे और प्रार्थना की कि यह दोनों चीजे दे दो आपकी बड़ी कृपा होगी| यह चिट्ठी पढ़कर गुरु जी ने अपने तोशेखाने में से हरढ़ और लौंग मँगवाकर उन्हें दे दी| जब यह दोनों चीजे रगड़कर हकीमो ने दारा शिकोह को दी तो वह थोड़े दिनों में ही स्वस्थ हो गया| बादशाह और उसके दरबारियों ने गुरु घर की बहुत महिमा की और उनकी प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा|

Tuesday 16 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-भाई जीवन को वरदान देना

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-भाई जीवन को वरदान देना



करतारपुर में एक ब्राहमण का इकलौता लड़का मर गया| लड़के के माता-पिता गुरु हरि राय जी के पास आ गए और कहने लगे कि हमारे पुत्र को जीवित कर दो| नहीं तो हम भी आपके द्वार पर प्राण त्याग देंगे| तब गुरु जी ने कहा अगर कोई इस लड़के कि जगह प्राण देगा तो यह जीवित हो जाएगा| गुरु जी का यह वचन सुनकर जब उसके माँ-बाप भी प्राण देने को तैयार ना हुए तो उनकी कुरलाहट पर तरस करके भाई जीवन से सोचा एक दिन तो मरना ही है तो फिर क्यों ना गुरु के हुकम के अनुसार ही प्राण त्यागे जाए और जीवन सफल हो जाए| यह सोच कर भाई जीवन ने डेरे जाकर कपड़ा बिछाया और ऊपर लेटकर अपने प्राण त्याग दिए| इधर जैसे ही भाई जीवन ने प्राण त्यागे उधर ब्राहमण का पुत्र जीवित हो गया|

भाई का ऐसा बलिदान देखकर सबने उन्हें धन्य कहा| गुरु जी ने भाई जीवन का संस्कार भाई भगतु की शमशान भूमि के पास ही कराया और वचन दिया कि जीवन का निवास गुरु के चरणों में होगा| जब गुरु जी को यह पता लगा कि भाई जीवन की स्त्री गर्भवती है तो अपने वचन दिया कि इसको लड़का होगा जिसका वंश बहुत बड़ेगा| इस तरह गुरु जी ने भाई जीवन की प्रशंसा की और उसे वरदान देकर सबको धैर्य दिया| इस प्रकार भाई जीवन ने गुरु का हुकम मानकर अपना जीवन सफल किया और अपने वंश के लिए वरदान प्राप्त किया|

Monday 15 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-काले के भतीजे को वरदान देना

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-काले के भतीजे को वरदान देना


एक दिन काला अपने यतीम भतीजो लोहिया और संदली को साथ लेकर गुरु हरि राय जी के पास लाया| पहले उसने गुरु जी को माथा टेका फिर अपने भतीजो को ऐसा करने के लिए कहा| परन्तु वहाँ खड़े खड़े ही बच्चों के पेट बजने लगे| गुरु जी ने कहा कालेआ! यह क्या कहतें हैं| काले ने कहा महाराज! मेरा भाई मर चुका है और मेरे भतीजे पेट से भूखें हैं| यह आपसे रोटी मांगते हैं| गुरु जी खुश होकर कहने लगे कालेआ! यह अनेक औरों को भी रोटी देंगे| यह बड़े सौभाग्यशाली होंगे|

यह वरदान लेकर काला घर वापिस आ गया| वह बहुत खुश था| उसने आकर अपनी स्त्री को बताया कि वह अपने भतीजों के लिए राज्य का वरदान ले आया है| पत्नी कहने लगी कि अपने बच्चे तो इनकी प्रजा बनकर रहेंगे| तुमने इन का क्या सोचा है?

अपनी स्त्री की ऐसी बात सुनकर काला अपने बच्चों को भी गुरु जी के पास ले आया और प्रार्थना करने लगा कि गुरु जी जब से मेरी पत्नी ने मेरे भतीजों के बारे में यह सुना है कि उन्हें राज्य प्राप्त होगा और मेरे पुत्र इनकी अधीनता में रहेंगे| इनके प्रजा बनकर रह जायेगे| इसलिए मेरे पुत्रों को भी राज्य का वरदान बक्शो| आगे से गुरु जी मुस्कुरा पड़े और कहने लगे तुम्हारे पुत्र भी स्वतंत्रता से खेती करेगें और किसी का हाला नहीं भरेगे|

यह वरदान लेकर काला खुशी खुशी घर आ गया| उसने सारी बात पत्नी को बताई कि गुरु जी ने ऐसा वरदान दिया है| तब उसे शांति प्राप्त हुई|

गुरु के वरदान से काले के भतीजों के संतान नाभे और पटियाला के राजे हुए| और उसके अपने पुत्रों की संतान बिना किसी को हाला दिए अपनी खेती करते रहे|

Sunday 14 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-गुरु जी द्वारा भाई भगतू के पुत्र गौरे को बक्शना

श्री गुरु हरिराय जी-साखियाँ-गुरु जी द्वारा भाई भगतू के पुत्र गौरे को बक्शना




भाई भगतू का पुत्र गौरा जो की बठिंडे का राजा था गुरु हरि राय जी के आने की खबर सुनकर उनके पास पहुँचा उसने एक अच्छा घोड़ा और पांच सौ रुपये भेंट करकर गुरु जी को माथा टेका| गुरु जी ने गौरे से पूछा जिस लड़की से भाई भगतू ने अपनी मृत्यु से पहले वचन के द्वारा ही शादी की थी उसका क्या हाल है| गौरे ने कहा महाराज! हमारी धर्म माता खुश है| गौरे की यह बात सुनकर गुरु जी के चौरी बरदार भाई जस्से ने हँसी में कहा वह स्त्री तो अभी जवान है| अप उसका मेरे साथ विवाह कर दो| यह बात सुनकर गौरे को गुस्सा आया और उसने अपने आदमियों से जस्से को गोली मारकर मरवा दिया|

जब इस बात का पाता गुरु जी को लगा तो गुरु जी ने सबसे कहा कि कोई हमे गौरा की सिफारिश ना करे और ना ही वह हमे मुहँ दिखाए| जब गौरा को गुरु जी की नाराज़गी का पाता लगा तो उसने डर कर प्रण किया कि जब तक वह गुरु जी को खुश नहीं करेगा तब तक घर वापिस नहीं जाएगा

यह निश्चय करके गौर अपनी सेना सहित गुरु जी के पीछे लग गया और रात दिन भूल बक्शवाने के लिय मन में आराधना करने लगा| जब गुरु जी कीरतपुर वापिस चले गए तब गौरा भी कीरत पुर से बाहर आवास करके छे महीने बैठा रहा|

एक दिन गुरु जी अपने परिवार सहित कीरत पुर से सतलुज नदी से साथ साथ चाल रहे थे गुरु जी घोड़े पर सवार थे पीछे कुछ योद्धा भी थे| वहाँ गौरा भी अपने तीन सौ शूरवीरों के साथ चाल पड़ा|

उधर से लाहौर से एक नवाब कुछ सवार लेकर दिल्ली को जा रहा था| उसने डोले पर सामान जाता देखकर पूछा कि यह कौन जा रहा है| तो एक सिख ने बताया यह गुरु हरि राय जी के घर डोलियों पर सामान जा रहा है| मुस्लिम उमराव ने अपने साथियों से कहा कि सब कुछ लूट लो|

गुरु जी तो बहुत आगे आगे चल रहे थे| परन्तु गौरा पीछे पीछे आ रहा था| उसने जब देखा कि तुर्क सेना के आदमी गुरु जी का समान लूटने के लिए आगे आए हैं| तो उसने उनके साथ डट कर मुकाबला किया और सब को मार भगाया| गुरु जी का सामान सही सलामत पहुँच गया| इस बात का पता जब गुरु जी को लगा तो तो वह भूत प्रसन्न हुए|गुरु जी ने उसको माफ भी कर दिया| तब गुरु जी ने उसको आज्ञा दी कि बठिंडे जा कार अपना राज भोगो| गुरु घर तुम पर प्रसन्न है| ऐसी बात सुनकर और गुरु जी का आशीर्वाद लेकर लेकर गौरा बठिंडे को चल पड़ा|

Saturday 13 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ - सिक्खी का जहाज फूटना

श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ - सिक्खी का जहाज फूटना



एक दिन गुरु हरि राय जी कुछ सिखो को साथ लेकर बाबा गुरु दित्ता जी के समाने वाले स्थान के दर्शन करने के लिए पहाड़ी पर गए| वहाँ गुरु जी काफी देर खड़े रहे और देखते रहे| जब बहुत समय ऐसे ही बीत गया तो सिखो ने गुरु जी से पूछा महाराज! आप इधर क्या देख रहे हो| तब आपने कहा कि भाई! श्री गुरु नानक देव जी ने इस संसार के उद्धार के लिए जो जहाज तैयार किया था| वह भवर में पड़कर टुकड़े टुकड़े हो गया है| इस में जो सिख सवार थे कोई डूब गया, कोई बह गया और कोई किनारे लग रहा है| सबको आपा-धापी पड़ी है| हम इस जहाज की दयनीय दशा को देख रहे हैं|

जब सिक्खों ने इस बात को स्पष्ट करने की माँग की तो आपने बताया सिख सेवक धन के लालच में पड़ गए हैं| वह सिक्खी का मार्ग ही भूल गए हैं| कच्चे गुरुओं के पीछे लगकर पारउतारा किस प्रकार हो सकता है| इस तरह सिक्खी का जहाज टूट-फूट गया है|

गुरु जी की बात सुनकर सिक्खों ने फिर प्रार्थना की कि महाराज! यह जहाज कभी जुड़ेगा या नहीं| महाराज ने कहा कि जब हम दसवां जामा धारण करके दुष्टों और पाखंडियों का नाश करेगें और नया पंथ चलायेगें| यह जहाज फिर जुड जाएगा| इस पर वाहिगुरु की भक्ति करने वाले सिख चढ़ेंगे और उनका पार उतारा हो जाएगा|

Friday 12 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी गुरु गद्दी मिलना

श्री गुरु हरिराय जी गुरु गद्दी मिलना


गुरु हरिगोबिंद जी ने अपना अंतिम समय नजदीक पाकर श्री हरि राय जी को गद्दी देने का विचार किया|वे श्री हरि राय जी से कखने लगे कि तुम गुरु घर कि रीति के अनुसार पिछली रात जागकर शौच स्नान करके आत्मज्ञान को धारण करके भक्ति मार्ग को ग्रहण करना| शोक को त्याग देना व धैर्य रखना| सिखों को उपदेश देना और उनका जीवन सफल करना| बाबा जी के ऐसे वचन सुनकर श्री हरि राय जी कहने लगे महाराज! देश के तुर्क हमारे शत्रु है, उनके पास हकूमत है, उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? गृ जी कहने लगे कि तुम चिंता ना करो, जो तुम्हारे ऊपर चढ़कर आएगा, वह कोहरे के बादल कि तरह उड़ जायेगा| तुम्हे कोई भी हानि नहीं पहुँचायेगा| यह बात सुनकर श्री हरि राय जी ने गुरु जी के चरणों में माथा टेका और शांति प्राप्त की|

संगत और मसंदो आप ने संबोधित करके वचन किया कि आज से श्री हरि राय जी को हमारा ही स्वरूप जानना और मानना| जो इनके विरुद्ध चलेगा,उसका लोक व परलोक बिगड़ेगा| वह यहाँ वहाँ दुःख पायेगा|

बाबक रबाबी और मलिक जाती के परलोक सिधार जाने के कुछ समय बाद गुरु हरि गोबिंद जी ने अपने शरीर त्यागने का समय नजदीक अनुभव करके श्री हरि राये जी को गुरुगद्दी का विचार कर लिया| इस मकसद से आपने दूर - नजदीक सभी सिखों को करतारपुर पहुँचने के लिए पत्र लिखे|

श्री गुरु हरिगोबिंद जी ने होलियों कि पूर्णिमा के बाद दूसरे दिन ही गुरु जी ने सिखों को आज्ञा दी कि दीवान वाले स्थान पर ऊँचा चबूतरा तयार किया जाये| एक बड़े दीवान के लिए दरियाँ भी बिछा दो और साथ ही साथ चंदोये तान दो| इसके बाद सारी संगत को दीवान में बुलाकर बिठा दो| जब श्री गुरु हरिगोबिंद जी की आज्ञा अनुसार दीवान सज गया तो गुरु जी ने अपने तीनो साहिबजादों सूरज मल जी, अणी राये जी तेग बहादुर जी और अपने पोत्रे श्री हरि राये सहित आकर अपने सिंघासन के ऊपर आकर सुशोभित हो गये| रबाबियो ने कीर्तन करना शुरू कर दिया| कड़ाह प्रसाद कि देग भी तैयार हो गई|

कीर्तन कि समाप्ति के बाद गुरु जी ने आसन से उठकर श्री हरि राये जी को अपनी जगह पर बिठा दिया और पाँच पैसे और नारियल आगे रखकर माथा टेक दिया| जब इस बात का पता मरवाही माता को लगा तो आप गुरु जी से कहने लगी कि इसमें सूरजमल का क्या दोष है? आप ने गुरुत्व अपने पोत्र को क्यों दिया? श्री गुरु हरिगोबिंद जी कहने लगे चिंता ना करो, इन्हे भी सभ कुछ प्राप्त होगा| माता को तसल्ली ना हुई| गुरु जी ने सूरजमल को बुलाया और पूछा क्या आप गुरुगद्दी लेना चाहते है?

सूरजमल जी कहने लगे महाराज! हमे तो गुरु घर की सिक्खी चाहिए, बाकी और कुछ नहीं| मैं गुरु नहीं बनना चाहता| आगे से गुरु जी कहने लगे कि आप ने सिक्खी माँग कर सभ कुछ प्राप्त कर लिया| आपको शाबाश है| तुम्हारा वंश खूब बढेगा व गुरुगद्दी भी प्राप्प्त हो जायेगी| जब यह बात माता मरवाही जी को पता लगी तो वह प्रसन्न हो गई कि गुरु जी के वचन कभी खाली नहीं जायेंगे|

Thursday 11 January 2024

श्री गुरु हरिराय जी जीवन – परिचय

श्री गुरु हरिराय जी जीवन – परिचय


प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): 1630
Parkash Ustav (Birth date): 1630 

पिता: बाबा गुरदित्ता जी
Father: Baba Gurditta Ji 

माँ: माता निहाल कौर जी
Mother: Mata Nihal Kaur Ji 

महल (पति या पत्नी): माता कृष्ण कौर
Mahal (spouse): Mata Krishen Kaur 

साहिबज़ादे (वंश): राम राय, हर्क्रिशन जी
Sahibzaday (offspring): Ram Rai, HarKrishan ji 

ज्योति ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): 6 अक्टूबर 1661
Joti Jyot (ascension to heaven): October 6, 1661


गुरु मंगल 

दोहरा-कथा गुरु हरि राय की सुनो श्रोता सावधान||
पावन पुन उपावनी गण पापन की हान||


श्री गुरु हरि राय जी श्री बाबा गुरदित्ता जी के घर माता निहाल कौर जी की कोख से माघ सुदी १३ संवत १६८१ विक्रमी को करतारपुर के स्थान पर अवतार धारण किया|

बाबा गुरुदित्ता जी ने जब १० संवत १६९५ को शरीर त्यागा तो १३वे वाले दिन दस्तारबंदी के समय हरि राये जी करतारपुर से नहीं आये तो गुरु जी ने सम्बन्धियों और भाई भाना आदि गुरुसिखो से सलाह करके बाबा जी के छोटे सुपुत्र श्री हरि राये को हर प्रकार से योग्य जानकर दस्तारबंदी करके गुरुदित्ता जी का अधिकारी नियत कर दिया|

श्री हरि राये जी अपने प्रण के पक्के थे|एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी बाग की सैर करने आपको साथ ले गये|श्री हरि राये जी गुरु जी के पीछे-२ ही जा रहे थे कि उनके जमे के साथ अटककर कली का फूल जमीन पर गिर गया|गुरु जी ने जब ऐसा देखा तो श्री हरि राये को कहने लगे कि अगर लंबा जामा पहनना हो तो संभल कर चला करो|बेपरवाही अच्छी नहीं होती| यह बात सुनकर हरि राये जी ने गुरु जी से क्षमा माँगी ,साथ ही साथ प्रण भी किया के आगे से जामा ऊँचा उठा कर रखेंगे|और यह प्रण आप ने जीवन भर निभाया|

Wednesday 10 January 2024

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - ज्योति ज्योत समाना

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - ज्योति ज्योत समाना 


बाबक रबाबी और मलिक जाती के परलोक सिधार जाने के कुछ समय बाद गुरु हरि गोबिंद जी ने अपने शरीर त्यागने का समय नजदीक अनुभव करके श्री हरि राये जी को गुरुगद्दी का विचार कर लिया|इस मकसद से आपने दूर - नजदीक सभी सिखों को करतारपुर पहुँचने के लिए पत्र लिखे|

गुरु हरिगोबिंद जी ने अपना अंतिम समय नजदीक पाकर श्री हरि राय जी को गद्दी देने का विचार किया| वे श्री हरि राय जी से कहने लगे कि तुम गुरु घर की रीति के अनुसार पिछली रात जागकर शौच स्नान करके आत्मज्ञान को धारण करके भक्ति मार्ग को ग्रहण करना| शोक को त्याग देना व धैर्य रखना| सिखों को उपदेश देना और उनका जीवन सफल करना| बाबा जी के ऐसे वचन सुनकर श्री हरि राय जी कहने लगे महाराज! देश के तुर्क हमारे शत्रु है, उनके पास हकूमत है, उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? गुरु जी कहने लगे कि तुम चिंता ना करो, जो तुम्हारे ऊपर चढ़कर आएगा, वह कोहरे के बादल कि तरह उड़ जायेगा| तुम्हे कोई भी हानि नहीं पहुँचायेगा| यह बात सुनकर श्री हरि राय जी ने गुरु जी के चरणों में माथा टेका और शांति प्राप्त की|

गुरु जी ने अपने अन्तिम समय के लिए एक कमरा तैयार कराया और उसका नाम पातालपुरी रखा| इसके पश्चात अपनी दोनों महिलाओं माता मरवाही और माता नानकी जी और तीनों पुत्रों श्री सूरज मल जी, श्री अणी राय जी और श्री तेग बहादर जी और पोत्र श्री हरि राय जी को मसंदो व सिक्ख सेवकों को अपने पास बिठाकर वचन किया कि अब हमारी स्वर्ग सिधारने की तैयारी है| यह कोई नई बात नहीं है| संसार का प्रवाह नदी की तरह चलता रहता है| यहाँ सब कुछ नाशवान और अस्थिर है| प्रभु का हुकम मानना और उसपर चलना चहिए| यही जरूरी है|


सिक्खों और परिवार को आज्ञा:

इसके पश्चात गुरु जी ने भाई भाने को आज्ञा की कि तुमने अपने पुत्र को श्री हरि राय जी की सेवा में रहने देना| जोध राय को कहा कि तुम अपने घर कांगड़ चले जाना और सतिनाम का स्मरण करके सुख भोगना और गुरु का लंगर जारी रखना|

बीबी वीरो को धैर्य दिया और कहा कि तेरी संतान बड़ा यश पायेगी| तुम्हें सारे सुखो की प्राप्ति होगी|

बिधीचंद के पुत्र लालचंद को कहा, तुमने अपने घर सुर सिंह चले जाना| और फिर जब गुरु घर को जरुरत होगी, तन मन के साथ हाजिर होकर सेवा करनी| 

इस तरह बाबा सुन्दर और परमानन्द को भी अपने घर गोइंदवाल भेज दिया| फिर माता नानकी की तरफ देखकर कहा कि तुम अपने पुत्र श्री तेग बहादर को लेकर अपने मायके बकाले चले जाओ|

श्री सूरज मल जी को कहा कि तुम पानी इच्छा के अनुसार श्री हरि राय जी के पास अथवा यहाँ तुम्हें सुख प्रतीत हो निवास कर लेना| तेरा वंश बहुत बड़ेगा| श्री अणी राय जी को आपने कुछ नहीं कहा क्योंकि उनका ध्यान ब्रह्म ज्ञान में टिका हुआ था| 


संगत के प्रति वचन:

संगत और मसंदो आप ने संबोधित करके वचन किया कि आज से श्री हरि राय जी को हमारा ही स्वरूप जानना और मानना| जो इनके विरुद्ध चलेगा,उसका लोक व परलोक बिगड़ेगा| वह यहाँ वहाँ दुःख पायेगा| वाणी पड़नी, सतिनाम का स्मरण करना और शोक किसी ने नहीं करना होगा| हम अपने निज धाम स्वर्ग को जा रहे हैं|

इस तरह सब को धैर्य और आदेश देकर गुरु जी ने पाताल पुरी नाम के कमरे में घी का दीया जलाकर कुश और नरम बिछौना करवाया और सारी संगत को धैर्य व सांत्वना देकर भाई जोध राय और भाई भाने को कहा तुम इस कमरे का सात दिन पहरा रखना और सातवें दिन इसका दरवाजा श्री हरि राय जी से खुलवाना|

पहले कोई निकट आकर विघ्न ना डाले| यह वचन करके आपजी ने कमरे के अंदर जाकर दरवाजा बन्द कर लिया और कुश के आसन पर समाधि लगाकर बैठ गए| संगत बाहर बैठकर अखंड कीर्तन करने लगी|

सातवें दिन सवा पहर दिन चढ़े श्री हरि राय जी ने अरदास करके दरवाजा खोला और गुरु जी के मृत शरीर को स्नान कराकर और नवीन वस्त्र पहना कर एक सुन्दर विमान में रखकर चन्दन व घी चिता के पास ले गए और चिता में रखकर संस्कार कर दिया| इसके पश्चात सबने सतलुज नदी में स्नान किया और डेरे आकर कड़ाह प्रसाद की देघ तैयार करके बाँटी| 

इस तरह श्री गुरु हरि गोबिंद जी चेत्र सुधि पंचमी संवत 1701 विक्रमी को ज्योति ज्योत समाए|

Tuesday 9 January 2024

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - चंदू की करनी का फल

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - चंदू की करनी का फल



एक दिन जहाँगीर ने गुरु जी के हाथ में कपूरों और मोतियों की एक माला देखकर कहा कि इसमें से एक मनका मुझे बक्शो| मैं इसे अपनी माला का मेरु बनाकर आपकी निशानी के तौर पर रखूँगा| गुरु जी ने जहाँगीर की पूरी बात सुनी और कहने लगे पातशाह! इससे भी सुन्दर और कीमती 1080 मनको की माला जो हमारे पिताजी के पास थी वह चंदू के पास है| उसने यह माला हमारे पिताजी से तब ली थी जब उसने पिताजी को हवेली में कैद करके रखा था| वह माला आप चंदू से मँगवा लो|

जहाँगीर ने अपने आदमी को चंदू के पास भेजा| जब चंदू दरबार में आ गया, तो बादशाह ने कहा कि आप हमें वह माला दे जो आपने गुरु अर्जन देव जी से लाहौर में ली थी| यह आज्ञा सुनकर चंदू ने कहा जहाँपनाह! मैंने कोई भी माला गुरु जी से नहीं ली| ना ही मेरे पास कोई माला है| फिर गुरु जी के कहने पर ही बादशाह ने उसके घर आदमी भेजे और तलाशी ली| माला चंदू के घर से ही प्राप्त हुई|

चंदू का झूठ पकड़ा गया| जहाँगीर को बहुत गुस्सा आया| उसने गुरु जी से कहा कि यह आपका अपराधी है जिसने आपके निर्दोष पिता को घोर कष्ट देकर शहीद किया है| इसको पकड़ो, आपके जो मन में आये इसको सजा दो|

बादशाह की आज्ञा सुनकर भाई जेठा जी आदि सिखों ने चंदू को पकड़ लिया| उसके हाथ पैर बांध दिए| बांध कर उसे डेरे मजनू टिले ले आये| इसके पश्चात बादशाह ने चंदू के पुत्र और स्त्री को भी पकड़ लिया| उनको पकड़कर गुरु जी के पास मजनू टिले भेज दिया| ताकि इनको भी गुरु जी मर्जी के अनुसार सजा दे सके| परन्तु गुरु जी ने कहा इनका कोई दोष नहीं है| इनको छोड़ दो| अतः वह दोनों माँ-बेटा गुरु जी की महिमा करते हुए घर को चले गए|

Monday 8 January 2024

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - गुरु जी का चालीसा काटना

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - गुरु जी का चालीसा काटना



बादशाह जहाँगीर के साथ गुरु जी के मेल मिलाप बढ़ गए| ऐसा देखकर चंदू बहुत तंग था| वह उस मौके की तलाश में था जब किसी भी तरह मेल मिलाप को रोका जाये या तोड़ा जाये| एक दिन जहाँगीर को बुखार हो गया| चंदू ने एक ज्योतिषी को बुलाया| उसे पांच सौ रूपये भी दिए और साथ साथ यह भी सिखाया कि बादशाह को कहो कि आपके घर घोर कष्ट की घड़ी आई है| जिसके कारण और दुःख मिलने की संभावना है| इसका उपाय जल्दी करना चाहिए|

जब ज्योतिषी ने यह बात बताई तो राजे ने पूछा इसका क्या उपाय करना चाहिए? ज्योतिषी ने सब कुछ वैसा ही बोल दीया जैसे चंदू ने सिखाया था| उसने कहा कि जो परमात्मा का नाम लेने वाला प्रभू का प्यारा बंदा, जो लोगों में पूजनीय हो अगर वह 40 दिन ग्वालियर के किले में एकांत बैठकर आपके निमित माला फेरे और प्रार्थना करे तो ही आपका कष्ट दूर हो सकता है वरना नहीं|

राजे ने जैसे ही यह बात सुनी उसने अपने अहिलकारो को कहा ऐसे गुणों वाले बंदे को जल्दी लाओ| इस समय चंदू जो वही पास बैठा था झट से बोल पड़ा जहाँपनाह! श्री गुरु हरिगोबिंद जी इस काम के लिए योग्य हैं| अगर आप उनको प्रार्थना करे तो वह आपकी प्रार्थना को स्वीकार कर लेंगे और किले में चले जाएगें और आपका कष्ट भी टल जाएगा|

बादशाह जो सहमा बैठा था वह झट से ही उसकी बात मान गया| उसने गुरु जी को बुलाया और सारी बात बताई| उसने यह भी कहा कि आप मेरी भलाई के लिए एक चालीसा ग्वालियर के किले में बिताए| गुरु जी जो कि अन्तर्यामी थे भविष्य की वार्ता को जानते थे| इस बात को स्वीकार करते हुए पांच सिखों सहित ग्वालियर के किले में प्रवेश के गए| \

ज्ञानी ज्ञान सिंह जी ने यह दिन 11 वैशाख संवत 1674 का लिखा है| जहाँगीर, जिसका गुरु जी के साथ प्यार था किले के दरोगा हरिदास को लिखा कि गुरु जी मेरे लिए किले में चालीसा काटने आ रहे इनको किसी प्रकार की कोई तकलीफ न होने देना| इनके हुकम का पालन करना|

Sunday 7 January 2024

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - बादशाह को भ्रम हो गया

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - बादशाह को भ्रम हो गया


श्री गुरु हरिगोबिंद जी जब ग्वालियर के किले में चालीसा काट रहे थे तो उनको चालीस दिन से भी ऊपर हो गए, तो सिखों को बहुत चिंता हुई| उन्हें यह चिंता सता रही थी कि बादशाह ने गुरु जी को बाहर क्यों नहीं बुलाया| उधर बादशाह को भी भ्रम हो गया| और उसे रात को डर लगना शुरू हो गया| वह रात को उठ उठ कर बैठता| दुबिस्तान मजाह्ब ने अपने पुस्तक में लिखा है कि हजारों सिख जो गुरु जी के रोज दर्शन करने आते थे और अन्य जो घर बैठे ही गुरु जी के दर्शन को तरस रहे थे उनकी आह और बदअसीस से बादशाह को भ्रम हो गया| बादशाह को भयानक शेर आदि की शक्ले रात के समय दिखाई देने लगी| जिसके कारण वह भयभीत होकर डर डर कर उठने लगा|

एक दिन बादशाह ने पीर जलाल दीन को इसका कारण पूछा| पीर ने कहा तुमने किसी प्रभु के प्यारे को दुःख दिया है जिसका फल तुझे यह मिल रहा है| इसके पश्चात पीर मीया मीर जी ने भी दिल्ली जाकर बादशाह से उसके रोग का कारण यही बताया|

मीया मीर जी ने चंदू की वह सारी बात सुनाई जिसके कारण उसने श्री गुरु हरिगोबिंद जी के पिता श्री गुरु अर्जन देव जी को कष्ट देकर शहीद किया था| अब तुम चंदू के कहने पर ही उनके सुपुत्र गुरु हरिगोबिंद जी को कैद किया हुआ है इसका फल अशुभ है और तुझे परेशानी हो रही है|

यह भी लिखा है कि भाई जेठा जी अपनी सिद्धियों के बल के कारण रात को शेर बनकर आता है और बादशाह को डराता है| जब इस बात का पता गुरु जी को लगा तो आपने भाई जेठे को इस काम से रोक दिया|

Saturday 6 January 2024

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - जब शाहजहाँ को घोड़े के बारे में पता लगा

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - जब शाहजहाँ को घोड़े के बारे में पता लगा


काबुल के एक श्रद्धालु सिख ने अपनी कमाई में से दसवंध इक्कठा करके गुरु जी के लिए एक लाख रूपए का एक घोड़ा खरीदा जो की उसने ईराक के सौदागर से खरीदा था| जब वह काबुल कंधार की संगत के साथ यह घोड़ा लेकर अटक दरिया से पार हुआ तो शाहजहाँ के एक उमराव ने वह घोड़ा देख लिया|

वह शाहजहाँ के लिए अच्छे घोड़े खरीदा करता था| उसने घोड़े को देखा और कहने लगा कि यह घोड़ा तो शाहजहाँ के लिए ही बना है| उसने सिख से कहा तुम मुझसे इसकी कीमत ले लो| परन्तु सिख जिसने बड़ी श्रद्धा के साथ वह घोड़ा खरीदा था कहने लगा कि यह घोड़ा तो मैंने गुरु जी के निमित खरीद कर उनको भेंट करने जा रहा हूँ| मैं इसे आपको नहीं बेच सकता|

जब शाहजहाँ को घोड़े के बारे में पता लगा तो उसने अपने सिपाही भेजे| सिपाहियों ने घोड़ा जबरदस्ती लेकर तबेले में बांध लिया| तो गुरु का सिख दुखी हो गया| वह दुखी मन से गुरु जी के पास पहुँचा| पास पहुँच कर उसने गुरु जी को अपनी सारी व्यथा सुनाई| उसकी बात सुनकर गुरु जी कहने लगे, गुरु के सिखा! तुम चिंता न करो, तुम्हारी भेंट हमे स्वीकार हो गई है| घोड़ा हमारे पास जल्दी ही आ जाएगा|

Friday 5 January 2024

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - घोड़े का इलाज़

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - घोड़े का इलाज़


शाहजहाँ घोड़े को देख कर बहुत खुश हो गया| उसकी सेवा व देखभाल के लिए उसने सेवादार भी रख लिया| परन्तु घोड़ा थोड़े ही दिनों में बीमार हो गया| उसने चारा खाना और पानी पीना छोड़ दिया| एक पाँव जमीन से उठा लिया और लंगड़ा होकर चलने लगा|

शाहजहाँ के स्लोत्री ने घोड़े को देखकर सलाह दी कि इसे जल्दी जी तबेले से बाहर निकाल दो| अगर इसे बाहर नहीं निकाला तो इसकी मुँह खुर की छूत वाली बीमारी से दूसरे घोड़ों के बीमार होने का डर है| बादशाह ने उसकी सलाह मानकर घोड़ा पने काजी रुस्तम खां को दे दिया| काजी घोड़ा लेकर बहुत खुश हुआ और इलाज करने लगा|

एक दिन भाई सुजान जी जो यह घोड़ काबुल से लाए थे उन्होंने यह घोड़ा काजी के पास देख लिया| उन्होंने गुरु जी को भी यह बताया कि घोड़ा काजी के पास है और कुछ बीमार भी लगता है| गुरु जी ने काजी को अपने पास बुलाया और घोड़ा खरीदने की बात की| उन्होंने कहा हम इसका दस हजार रुपया देंगे| इलाज करके हम इसे स्वस्थ भी कर लेंगे| काजी ने गुरु जी को घोड़ा बेच दिया|

गुरु जी ने घोड़े का इलाज अपने स्लोत्री से कराया| घोड़ा जल्दी ही स्वस्थ हो गया| वह घास दाना भी खाने लगा| उसने अपनी लंगडी टांग भी जमीन पर लगा दी| भाई सुजान को अपना घोड़ा स्वस्थ देखकर बहुत खुशी हुई| गुरु जी ने उसके ऊपर सुनहरी पालना डलवा कर जब सवारी की तो भाई सुजान जी कहने लगे, गुरु जी! अब मेरा मनोरथ पूरा हो गया है| आपने मेरी भावना पूरी कर दी है|

गुरु जी बोले भाई सुजान! तुम निहाल हो गए हो| तेरा प्रेम और श्रद्धा धन्य है| इस प्रकार भाई सुजान अपनी मनोकामना पूरी करके अपने देश काबुल चला गया|

Thursday 4 January 2024

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - जले पीपल को फिर से हरा-भरा करना

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - साखियाँ - जले पीपल को फिर से हरा-भरा करना


एक दिन एक सिख गुरु जी के पास आया और कहने लगा की महाराज! गुरु स्थान नानक मते का सिद्ध लोग घोर अनादर कर रहे है| आप कृपा करके जल्दी वहाँ पहुँच कर सत्संग नानक साहिब की यादगार को नष्ट होने से बचाओ सिख की`यह प्रार्थना सुनकर गुरु जी ने बाबा बुड्डा जी आदि सिखों से कहा कि हम नानक मते जाकर गुरु साहिब कि यादगारे पीपल और मीठा रीठा सिद्धों से बचाना चाहते है| अगर हम वहाँ नहीं गए तो सिद्ध इसे मिटा देंगे|

रास्ते में अनेक प्राणियों का उद्धार करते हुए गुरु जी नानक मते पहुंच गए| गुरु जी ने भाई अलमस्त से सारी बात सुनी| योगियों द्वारा पीपल जलाये जाने कि बात सुनकर गुरु जी ने स्नान किया| शस्त्र-वस्त्र सजाये और पीपल के पास दीवान सजा कर सोदर की चौकी पड़ कार अरदास की| इसके पश्चात निर्मल जल मंगवा कर उसमें केसर और चन्दन घिसवा कार मिलाया और सतिनाम कह कर जले हुए पीपल पार डाल दिया जो कि सिद्धों ने इर्षा करके,गुरु घर की निशानी मिटाने के लिए जला दी थी|

दूसरे दिन उसे पीपल में से हरी- हरी शाखाएँ और पत्ते निकाल आये| ऐसा देखकर सभी भगत खुश हो गए व गुरु जी की जय-जयकार करने लगे| इस पीपल पार आज तक केसर के निशान और चन्दन के सफ़ेद निशान साफ़ दिखाई देते है|

Wednesday 3 January 2024

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ - पुत्र का वरदान

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ - पुत्र का वरदान


एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थीगुरु जी से आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं हैआप किरपा करके मुझे पुत्र का वरदान दोगुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भाग में पुत्र नहीं हैमाई निराश होकर बैठ गई|भाई गुरदास जी ने माई से निराशा का कारण पूछाउसने सारी बात भाई गुरदास जी को बताई कि किस तरह गुरु जी ने उसे कहा है कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं हैभाई गुरदास जी ने उसे दोबारा से गुरु जी को प्रार्थना करने को कहाअगर गुरु जी वही उत्तर देंगे तो आप उन्हें कहना कि महाराज! यहाँ वहाँ आप ही लिखने वाले हैंअगर पहले नहीं लिखातो अब यहाँ ही लिख दोआप समर्थ हैं|दूसरे दिन गुरु जी घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जाने लगेजल्दी से माई ने आगे हो कर गुरु जी से कहा कि महाराज! किरपा करके मुझे एक पुत्र का वरदान बक्श कर मेरी आशा पूरी करोगुरु जी ने फिर वही उत्तर दिया कि माई तेरे भाग्य में पुत्र नहीं लिखामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे रखकर कहा कि सच्चे पादशाह! अगर आपने वहाँ नहीं लिखा तो यहाँ लिख दोयहाँ वहाँ आप ही भाग्य विधाता हो|माई की यह युक्ति की बात सुनकर गुरु जी हँस पड़े और कहा माई तेरे घर पुत्र होगामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे कर दी और कहा महाराज! यह वचन मेरे हाथ पर लिख दो ताकि मेरे मन को शांति होगुरु जी ने कलाम पकड़कर जैसे ही माई के दाये हाथ पर लिखने लगे तो नीचे से घोड़े के पाँव हिलने से एक की जगह सात अंक लिखा गयागुरु जी ने हँस कर कहा माई तुम एक लेने आई थी परन्तु स्वाभाविक ही सात लिखे गए हैंअब तुम्हारे घर सात पुत्र ही होंगेमाई देसो गुरु जी की उपमा करती हुई खुशी खुशी अपने घर आ गई|एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थीगुरु जी से आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं हैआप किरपा करके मुझे पुत्र का वरदान दोगुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भाग में पुत्र नहीं हैमाई निराश होकर बैठ गई|भाई गुरदास जी ने माई से निराशा का कारण पूछाउसने सारी बात भाई गुरदास जी को बताई कि किस तरह गुरु जी ने उसे कहा है कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं हैभाई गुरदास जी ने उसे दोबारा से गुरु जी को प्रार्थना करने को कहाअगर गुरु जी वही उत्तर देंगे तो आप उन्हें कहना कि महाराज! यहाँ वहाँ आप ही लिखने वाले हैंअगर पहले नहीं लिखातो अब यहाँ ही लिख दोआप समर्थ हैं|दूसरे दिन गुरु जी घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जाने लगेजल्दी से माई ने आगे हो कर गुरु जी से कहा कि महाराज! किरपा करके मुझे एक पुत्र का वरदान बक्श कर मेरी आशा पूरी करोगुरु जी ने फिर वही उत्तर दिया कि माई तेरे भाग्य में पुत्र नहीं लिखामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे रखकर कहा कि सच्चे पादशाह! अगर आपने वहाँ नहीं लिखा तो यहाँ लिख दोयहाँ वहाँ आप ही भाग्य विधाता हो|माई की यह युक्ति की बात सुनकर गुरु जी हँस पड़े और कहा माई तेरे घर पुत्र होगामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे कर दी और कहा महाराज! यह वचन मेरे हाथ पर लिख दो ताकि मेरे मन को शांति होगुरु जी ने कलाम पकड़कर जैसे ही माई के दाये हाथ पर लिखने लगे तो नीचे से घोड़े के पाँव हिलने से एक की जगह सात अंक लिखा गयागुरु जी ने हँस कर कहा माई तुम एक लेने आई थी परन्तु स्वाभाविक ही सात लिखे गए हैंअब तुम्हारे घर सात पुत्र ही होंगेमाई देसो गुरु जी की उपमा करती हुई खुशी खुशी अपने घर आ गई|एक दिन झंगर नाथ गुरु हरिगोबिंद जी से कहने लगे कि आप जैसे गृहस्थियों का हमारे साथजिन्होंने संसार के सभ पदार्थों का त्याग कर रखा है उनके साथ  झगड़ा करना अच्छा नहीं हैइस लिए आप हमारे स्थान गोरख मते को छोड़ कर चले जायेगुरु जी हँस कर कहने लगेआपका मान ममता में फँसा हुआ हैकिसे स्थान व पदार्थ में अपनत्व रक्खना योगियों का काम नहीं हैआप अपने आप को त्यागी कहते हुए भी मोह माया में फँसे हुए है|गुरु जी की यह बात सुनकर योगी अपनी अजमत दिखाने के लिए आकाश में उड़ कर पथरो कि वर्षा और आग कि चिंगारियां उड़ाने लगेमिट्टी कंकरो कि जोरदार आंधी चल पड़ीबड़े-बड़े भयानक रूप धारण करके मुँह से मार लो मार लो कि आवाजें करके सिखों को डराने लगेसाथ ही साथ शेर और सांप के भयंकर रूप धारण करके फुंकारे मारने लगेगुरु जी ने सिखों को चुपचाप तमाशा देखने को कहाइनकी सारी शक्ति अभी नष्ट हो जायेगी|गुरु जी ने ऐसे वचन करके जब ऊपर देखा तो सिद्ध जो जिस आकार में थावहाँ ही उसको आग जलाने लगीइस अग्नि से व्याकुल होकर सिद्ध भाग कर गोरख नाथ के पास चले गए और रख लो रख लो कि दुहाई देकर उसकी शरण पड़ गएगोरख ने कहा कि हमने आपको पहले ही समझाया था कि गुरु नानक कि गद्दी से झगड़ा करना ठीक नहींपरन्तु आपने हमारी बात नहीं मानीअब मान गँवा कर भागे आये होइस तरह गोरख ने  उनको लज्जित किया|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.