ॐ सांई राम
कल हमने पढ़ा था.. पानी से दीप जले
श्री साईं लीलाएं
बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश
पंडितजी साईं बाबा को गांव से भगाने के विषय में सोच-विचार कर रहे थे कि तभी एक पुलिस कोंस्टेबिल आता दिखाई दिया| पंडितजी ने उसे दूर से ही पहचान लिया था| उसका नाम गणेश था| वह पंडितजी के पास आता-जाता रहता था|
थाने में जितने भी पुलिस कर्मचारी थे, गणेश उन सबमें ज्यादा चालबाज था| लोगों को किसी भी फर्जी केस में फंसा देना तो उसके बायें हाथ का खेल था| रिश्वत लेने में उसका कोई सानी नहीं था| जो भी नया थानेदार आता वह अपनी लच्छेदार बातों, हथकंडों से उसे अपनी और मिला लेता था| फिर सीधे-सादे गांववासियों को सताना शुरू कर देता था| पंडितजी भी इस काम में उसकी भरपूर सहायता करते थे|
उस आया देखकर पंडितजी के मन को थोड़ी-सी शांति मिली|
"आओ, आओ गणेश !" पंडितजी बोले, फिर हाथ पकड़कर अपने पास चौकी पर बैठा लिया|
"कैसे हालचाल हैं पंडितजी ?" - गणेश ने पूछा|
"बहुत बुरा हाल है|" पंडितजी दु:खभरे स्वर में बोले - "कुछ न पूछो| जब से साईं बाबा गांव में आया है, मेरा तो सारा धंधा ही चौपट होकर रह गया है| उनकी भभूती ने मेरा औषधालयबंद कर दिया| लोगों ने मंदिर में आना भी छोड़ दिया है| दुकानदार सुबह-शाम मंदिर आ जाते थे, उनसे थोड़ी-बहुत आमदनी हो जाती थी, पर दीपावली से वह भी बंद हो गयी|"
"वो कैसे ?"
पंडितजी दीपावली की सारी घटना सुनाने के बाद कहा - "गणेश भाई ! यदि यहीं तक होता तो चिंता की कोई बात न थी| मेरे पास खेत हैं| उन खेतों से इतनी आमदनी हो जाती थी कि बड़े मजे से दिन गुजर जाते| लेकिन खेतों में काम करने वाले मजदूरों ने खेतों में काम करने से मना कर दिया है| फसल का समय आ रहा है, यदि खेतों में समय पर फसल न बोयी तो साल भर खाऊंगा क्या ? मैं तो इस साईं से बहुत ही दु:खी हूं|
"जब से साईं इस गांव में आया है आमदनी तो हम लोगों की भी कम हो गयी है| न तो गांव में लड़ाई-झगड़ा होता है और न चोरी-डकैती| साईं के आने से पहले गांव से खूब आमदनी होती थी| अब तो फूटी कौड़ी भी हाथ नहीं लग रहा है|" -गणेश ने भी अपना दु:खड़ा सुनाया|
"तो कोई ऐसा उपाय सोचो जिससे यह ढोंगी गांव छोड़कर भाग जाए|" -पंडितजी ने कहा|
गणेश सोच में पड़ गया|
पंडितजी नाश्ता लेने अंदर चले गए|
नाश्ता करने के बाद एक लम्बी डकार लेते हुए गणेश ने रहस्यपूर्ण स्वर में कहा - "पंडितजी, पुलिस के जितने भी बड़े-बड़े अफसर हैं, वह सब इस साईं के चेले बन गए हैं| यदि उनसे इसके विरुद्ध कोई शिकायत की जाएगी तो वे सुनेंगे ही नहीं| दो-चार बार कभी साईं के विरुद्ध कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन अभी अपनामुंह भी नहीं खोल पाया था कि अफसरों ने फटकारते हुए कहा - "खबरदार, जो साईं के विरुद्ध एक शब्द भी कहा| वह इंसान नहीं भगवान का अवतार हैं|" उनकी डांट खाकर चुप रह जाना पड़ा| इसलिए उनसे तो उम्मीद करना ही बेकार है| यदि साईं को गांव से कोई निकाल सकता है तो वह सिर्फ गांववाले|"
"भला गांव वाले उसे क्यों गांव से निकालने लगे ?" -पंडितजी बोले|
"देखो, पंडितजी ! गांव वाले बहुत सीधे-सादे होते हैं| उन्हें झूठ और धोखे से बहुत घृणा होती है| उनका चाल-चलन एकदम साफ-सुथरा होता है| वह उस आदमी को कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते, जिसका चाल-चलन ठीक नहीं होता और उस आदमी को तो किसी भी कीमत पर नहीं, जिसे वे साधु-महात्मा, सिद्ध या अपना गुरु मानते हैं| साईं कुंवारा है और पंडितजी आप तो जानते ही हैं कि इस दुनिया में ऐसा कोई भी पुरुष नहीं है, जो औरत से बच सके| यदि किसी तरह किसी औरत के साथ साईं बाबा का सम्बंध बनाया जा सके, कोई औरत उसे अपने जाल में फंसा ले तो फिर साईं का पत्ता साफ|"
"साईं का तो किसी औरत से सम्बंध नहीं है| वह तो प्रत्येक स्त्री को माँ कहता है| उसके चाल-चलन के बारे में तो आज तक कोई ऐसी-वैसी बात सुनी ही नहीं गई है|" -पंडितजी ने कहा|
"नहीं है तो क्या हुआ, इस दुनिया में कौन-सा ऐसा काम है, जिसे न किया जा सके|" गणेश ने एक आँख दबाते हुए मुस्कराकर कहा - "बस पैसों की जरूरत है| यदि मेरे पास थोड़े-से रुपये होते तो मैं इस साईं को कल ही गांव से भगा दूं|"
"तुम रुपयों की चिंता बिल्कुल मत करो| ये बताओ कि साईं को भगाओगे कैसे ?" -पंडितजी ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए पूछा|
गणेश ने पंडितजी की ओर मुस्कराकर देखते हुए कहा- "जरा अपना कान इधर लाइए|"
पंडितजी अपना कान गणेश के मुंह के पास ले गये| गणेश धीरे-धीरे फुसफुसाकर उन्हें अपनी योजना समझाने लगा| पंडितजी के चेहरे से ऐसा प्रकट हो रहा था|कि जैसे वह उसकी योजना से पूरी तरह सहमत हैं|
वह उठकर अंदर चले गये और जब वापस लौटे, तो उनके हाथ में कपड़े की एक थैली थी, जो रुपयों से भरी हुई थी|
"लो गणेश !" -पंडितजी ने रुपयों की थैली गणेश की ओर बढ़ाते हुए कहा- "पूरे पांच सौ हैं|"
गणेश ने थैली झपटकर अपने झोले में रख ली और उठकर बोला- "अच्छा पंडितजी, अब आज्ञा दीजिए| चार-पांच दिन तो लग ही जायेंगें, तब आपसे मुलाकत होगी|"
"ठीक है|" पंडितजी ने कहा- "तुम रुपयों की चिंता बिल्कुल मत करना| इस साईं को गांव से निकलवाने के लिए तो मैं अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता हूं|"
गणेश मुस्कराया और फिर चल दिया|
कल चर्चा करेंगे... दयालु साईं बाबा
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।
ॐ सांई राम
परसों हमने पढ़ा था.. साईं बाबा का आशीर्वाद
श्री साईं लीलाएं
पानी से दीप जले
साईं बाबा जब से शिरडी में आये थे| वे रोजाना शाम होते ही एक छोटा-सा बर्तन लेकर किसी भी तेल बेचने वाले दुकानदार की दुकान पर चले जाते और रात को मस्जिद में चिराग जलाने के लिए थोडा-सा तेल मांग लाया करते थे|
दीपावली से एक दिन पहले तेल बेचने वाले दुकानदार शाम को आरती के समय मंदिर पहुंचे| साईं बाबा के मांगने पर वे उन्हें तेल अवश्य दे दिया करते थे, परंतु साईं बाबा के बारे में उनके विचार कुछ अच्छे नहीं थे|उन्हें साईं बाबा के पास मस्जिद में जाकर बैठना अच्छा नहीं लगता था| वहां का वातावरण उन्हें अच्छा नहीं लगता था, वह उनकी भावनाओं से मेल नहीं खाता था| शाम को दुकान बंद करने के बाद वह मंदिर में पंडित के साथ गप्पे मारना, दूसरों की बुराई करना अच्छा लगता था| साईं बाबा की निंदा करने पर पंडितजी को बड़ा आत्मसंतोष प्राप्त होता था|
"देखा भाई, कल दीपावली है और शास्त्रों में लिखा है कि दीपावली के दिन जिस घर में अंधेरा रहता है, वहां लक्ष्मी नहीं आती है| जो भी लक्ष्मी का थोड़ा-बहुत अंश उस घर में होता है, वह भी चला जाता है| सुनो, कल जब साईं बाबा तेल मांगने आएं तो उन्हें तेल ही न दिया जाए| वैसे तो उनके पास सिद्धि-विद्धि कुछ है नहीं, और यदि होगी भी तो कल दीपावली के दिन मस्जिद में अंधेरा रहने के कारण लक्ष्मी, उसका साथ छोड़कर चली जाएगी|"
"यह तो आपने मेरे मन की बात कह दी पंडितजी ! हम लोग भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थे| हम कल साईं बाबा को तेल नहीं देंगे|" एक दुकानदार ने कहा|
"मैं तो सोच रहा हूं कि तेल बेचा ही न जाए| पूरा गांव उसका शिष्य बन गया है और उसकी जय-जयकार करते नहीं थकते| गांव में शायद ही दो-चार के घर इतना तेल हो कि कल दीपावली के दीए जला सकें| बस हमारे चार-छ: घरों में ही दीए जलेंगे|" - दूसरे दुकानदार ने कहा|
"हां, यही ठीक रहेगा|" पंडितजी तुरंत बोले - "सचमुच तुमने बिल्कुल ठीक कहा है| मैंने तो इस बारे में सोचा भी नहीं था|
"फिर यह तय हो गया कि कल कोई भी दुकानदार तेल न बेचेगा चाहे कोई कितनी ही कीमत क्यों न दे|"अगले दिन शाम को साईं बाबा तेल बेचने वाले की दुकान पर पहुंचे| उन्होंने कहा - "सेठजी, आज दीपावली है| थोड़ा-सा तेल ज्यादा दे देना|"
"बाबा, आज तो तेल की एक बूंद भी नहीं है, कहां से दूं ? सारा तेल कल ही बिक गया| सोचा था कि सुबह को जाकर शहर से ले आऊंगा, त्यौहार का दिन होने के कारण दुकान से उठने की फुरसत ही नहीं मीली| आज तो अपने घर में भी जलाने के लिए तेल नहीं है|" दुकानदार ने बड़े दु:खी स्वर में कहा|साईं बाबा आगे बढ़ गए|तेल बेचने वाले सभी दुकानदार ने यही जवाब दिया|साईं बाबा खाली हाथ लौट आये|तभी एक कुम्हार जो उनका शिष्य था, उन्हें एक टोकरी दीये दे गया|साईं बाबा के मस्जिद खाली हाथ लौटने पर उनके शिष्यों को बड़ी निराशा हुई| उन्होंने बड़ी खुशी के साथ दीपावली के कई दिन पहले से ही मस्जिद की मरम्मत-पुताई आदि करना शुरू कर दी थी| उन्हें आशा थी कि अबकी बार मस्जिद में बड़ी धूमधाम के साथ दीपावली मनायेंगे| रात भर भजन-कीर्तन होगा| कई शिष्य अपने घर चले गए| घर से पैसे और तेल खरीदने के लिए चल पड़े| वह जिस भी दुकानदार के पास तेल के लिए पहुंचते, वह यही उत्तर देता कि आज तो हमारे घर में भी जलाने के लिए तेल की एक बूंद भी नहीं है|सभी शिष्य-भक्तों को निराशा के साथ बहुत दुःख भी हुआ| वे सब खाली हाथ मस्जिद लौट आए|
"बाबा ! गांव का प्रत्येक दुकानदार यही कहता है कि आज तो उसके पास अपने घर में जलाने के लिए भी तेल की एक बूंद भी नहीं है|"
"तो इसमें इतना ज्यादा दु:खी होने कि क्या बात है ? दुकानदार सत्य ही तो कह रहे हैं| सच में ही उनकी दुकान और घर में आज दीपावली की रात को एक दीया तक जलाने के लिए तेल की एक बूंद भी नहीं है, दीपावली मनाना तो उनके लिए बहुत दूर की बात है|" साईं बाबा ने मुस्कराते हुए कहा और फिर मस्जिद के अंदर बने कुएं पर जाकर उन्होंने कुएं में से एक घड़ा पानी भरकर खींचा|भक्त चुपचाप खड़े उनको यह सब करते देखते रहे| साईं बाबा ने अपने डिब्बे, जिसमें वह तेल मांगकर लाया करते थे, उसमें से बचे हुए तेल की बूंदे उस घड़े के पानी में डालीं और घड़े के उस पानी को दीयों में भर दिया| फिर रूई की बत्तियां बनाकर उन दीयों में डाल दीं और फिर बत्तियां जला दीं| सारे दिये जगमग कर जल उठे| यह देखकर शिष्यों और भक्तों की हैरानी का ठिकाना न रहा|
"इन दीयों को मस्जिद की मुंडेरों, गुम्बदों और मीनारों पर रख दो| अब ये दिये कभी नहीं बुझेंगे| मैं नहीं रहूंगा तब भी ये इसी तरह जगमगाते रहेंगे|"साईं बाबा ने वहां उपस्थित अपने शिष्यों और भक्तजनों से कहा और फिर एक पल रुककर बोले - "आज दीपावली का त्यौहार है, लेकिन गांव में किसी के घर में भी तेल नहीं है| जाओ, प्रत्येक घर में इस पानी को बांट आओ| लोगों में कहना कि दिये में बत्ती डालकर जला दें| दीये सुबह सूरज निकलने तक जगमगाते रहेंगे|"
"बोलो साईं बाबा की जय!" सभी शिष्यों और भक्तों ने साईं बाबा का जयकारा लगाया और घड़ा उठाकर गांव में चले गए| सभी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे|दीपावली की रात का अंधकार धीरे-धीरे धरती पर उतरने लगा था| तब तेल बेचने वाले दुकानदारों और पंडितजी के घर को छोड़कर प्रत्येक घर में साईं बाबा के घड़े का पानी पहुंच गया था|साईं बाबा के शिरडी में आने के बाद में शिरडी और आस-पास के मुसलमान हिन्दुओं के साथ दीपावली का त्यौहार बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाने लगे थे और हिन्दुओं ने भी ईद और शब्बेरात मनानी शुरू कर दी थी| पूरा गांव दीयों की रोशनी से जगमगा उठा| उन दीयों की रोशनी अन्य दिन जलाए जाने वाले दीयों से बहुत तेज थी| पूरे गांव भर में यदि कहीं अंधेरा छाया हुआ था तो वह पंडितजी और तेल बेचने वाले दुकानदारों के घर में|दुकानदार मारे आश्चर्य के परेशान थे कि कल शाम तो जो बर्तन तेल से लबालब भरे हुए थे, इस समय बिल्कुल खाली पड़े थे, जैसे उनमें कभी तेल भरा ही न गया हो| यही दशा पंडितजी की भी थी| शाम को जब उनकी पत्नी दीये जलाने बैठी तो उसने देखा तेल की हांडी एकदम खाली पड़ी है| उसने बाहर आकर पंडितजी से तेल लाने के लिए कहा|
"तुम चिंता क्यों करती हो ? मैं अभी लेकर आता हूं|पंडितजी हांडी लेकर जब तेल बेचने वाले दुकानदारों के पास पहुंचे| वे सब भी अपने माथे पर हाथ रखे इसी चिंता में बैठे थे कि बिना तेल के वह दीपावली कैसे मनायेंगे ?जब पंडितजी ने दुकान पर जाकर तेल मांगा, तो वे बोले - "पंडितजी, न जाने क्या हुआ, कल शाम को ही हम लोगों ने तेल ख़रीदा था| सुबह से एक बूंद तेल नहीं बेचा, लेकिन अब देखा तो तेल की एक बूंद भी नहीं है| बर्तन इस तरह खाली पड़े हैं, जैसे इनमें कभी तेल था ही नहीं|" सभी दुकानदार ने यही कहानी दोहरायी|आश्चर्य की बात तो यह थी कि तेल से भरे बर्तन बिल्कुल ही खाली हो गए थे| न घर में तेल की एक बूंद थी और न ही दुकान में| पूरा गांव रोशनी से जगमगा रहा था| केवल तेल बेचने वाले दुकानदारों और पंडितजी के घर में अंधकार छाया हुआ था|
"यह सब साईं बाबा की ही करामात है| हम लोगों ने उन्हें तेल देने से मना किया था और उसने कहा था कि आज तो हमारे घर और दुकान में एक बूंद भी तेल नहीं है|" -एक दुकानदार ने कहा - "चलो बाबा के पास चलकर उनसे माफी मांगें|"फिर तेल बेचने वाले सभी दुकानदार साईं बाबा के पास पहुंचे| उनसे माफी मांगने लगे - "बाबा, हम आपकी महिमा को नहीं समझ पाए| हमें क्षमा करें| हम लोगों से बहुत बड़ा अपराध हुआ है| हमने आपसे झूठ बोला था|" -दुकानदारों ने साईं बाबा के चरणों में गिरते हुए कहा|
"इंसान गलतियों का पुतला है| अपराधी तो वह है, जो अपने अपराध को छिपाता है| जो अपने अपराध को स्वीकार कर लेता है, वह अपराधी नहीं होता| तुमने अपराध नहीं किया|" -साईं बाबा ने दुकानदारों को उठाकर सांत्वना देते हुए कहा और फिर उनकी ओर देखते हुए बोले - "तात्या, अभी उस घड़े में थोड़ा-सा पानी है| उसे इन लोगों के घरों में बांट आओ - और सुनो पंडितजी के घर भी दे आना| उन बेचारों के घर में भी तेल की एक बूंद भी नहीं है|"तात्या सभी दुकानदारों के घरों में घड़े का पानी बांट आया, परंतु पंडितजी ने लेने से इंकार कर दिया| सारा गांव दीयों की रोशनी से जगमगा रहा था| इसके बावजूद अभी भी एक घर में अंधेरा छाया हुआ था और वह घर था पंडितजी का| दीपावली के दिन उनके घर में अंधेरा ही रहा| एक दीपक जलाने के लिए भी तेल नहीं मिला| साईं बाबा के गांव में कदम रखते ही लक्ष्मी तो उनसे पहले ही रूठ गयी थी और दीपावली के दिन घर में अंधेरा पाकर तो बिलकुल ही रूठ गयी| कुछ दुकानदारों जो मंदिर में सुबह-शाम जाया करते थे, दीपावली की रात से उन्होंने मंदिर में आना छोड़ दिया| साईं बाबा की भभूत के कारण उनका औषधालय तो पहले ही बंद हो चुका था| मजदूरों ने खेतों में काम करने से मना कर दिया, तो पंडितजी का क्रोध अपनी चरम सीमा को लांघ गया|
"इस ढोंगी साईं बाबा को गांव से भगाए बिना अब काम नहीं चलेगा|" पंडितजी न मन-ही-मन फैसला किया|
कल चर्चा करेंगे... बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश
ॐ सांई राम
==ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ==
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।
ॐ सांई राम
आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से श्री साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 51 - उपसंहार
अध्याय – 51 पूर्ण हो चुका है और अब अन्तिम अध्याय (मूल ग्रन्थ का 52 वां अध्याय) लिखा जा रहा है और उसी प्रकार सूची लिखने का वचन दिया है, जिस प्रकार की अन्य मराठी धार्मिक काव्यग्रन्थों में विषय की सूची अन्त में लिखी जाती है । अभाग्यवश हेमाडपंत के कागजपत्रों की छानबीन करने पर भी वह सूची प्राप्त न हो सकी । तब बाब के एक योग्य तथा धार्मि भक्त ठाणे के अवकाशप्राप्त मामलतदार श्री. बी. व्ही. देव ने उसे रचकर प्रस्तुत किया । पुस्तक के प्रारम्भ में ही विषयसूची देने तथा प्रत्येक अध्याय में विषय का संकेत शीर्षक स्वरुप लिखना ही आधुनिक प्रथा है, इसलिये यहाँ अनुक्रमाणिका नहीं दी जा रही है । अतः इस अध्याय को उपसंहार समझना ही उपयुक्त होगा । अभाग्यवश हेमा़डपंत उस समय तक जीवित न रहे कि वे अपने लिखे हुए इस अध्याय की प्रति में संशोधन करके उसे छपने योग्य बनाते ।
श्री सदगुरु साई की महानता
............................
हे साई, मैं आपकी चरण वन्दना कर आपसे शरण की याचना करता हूँ, क्योकि आप ही इस अखिल विश्व के एकमात्र आधार है । यदि ऐसी ही धारणा लेकर हम उनका भजन-पूजन करें तो यह निश्चित है कि हमारी समस्त इच्छाएं शीघ्र ही पूर्ण होंगी और हमें अपने परम लक्ष्य की प्राप्ति हो जायेगी । आज निन्दित विचारों के तट पर माया-मोह के झंझावात से धैर्य रुपी वृक्ष की जड़ें उखड़ गई है । अहंकार रुपी वायु की प्रबलता से हृदय रुपी समुद्र में तूफान उठ खड़ा हुआ है, जिसमें क्रोध और घृणा रुपी घड़ियाल तैरते है और अहंभाव एवं सन्देह रुपी नाना संकल्प-विकल्पों की संतत भँवरों में निन्दा, घृणा और ईर्ष्या रुपी अगणित मछलियाँ विहार कर रही है । यघपि यह समुद्र इतना भयानक है तो भी हमारे सदगुरु साई महाराज उसमें अगस्त्य स्वरुप ही है । इसलिये भक्तों को किंचितमात्र भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है । हमारे सदगुरु तो जहाज है और वे हमें कुशलतापूर्वक इस भयानक भव-समुद्र से पार उतार देंगे ।
प्रार्थना
श्री सच्चिदानंद साई महाराज को साष्टांग नमस्कार करके उनके चरण पकड़ कर हम सब भक्तों के कल्याणार्थ उनसे प्रार्थना करते है कि हे साई । हमारे मन की चंचलता और वासनाओं को दूर करो । हे प्रभु । तुम्हारे श्रीचरणों के अतिरिक्त हममें किसी अन्य वस्तु की लालसा न रहे । तुम्हारा यह चरित्र घर-घर पहुँचे और इसका नित्य पठन-पाठन हो और जो भक्त इसका प्रेमपूर्वक अध्ययन करें, उनके समस्त संकट दूर हो ।
फलश्रुति (अध्ययन का पुरस्कार)
अब इस पुस्तक के अध्ययन से प्राप्त होने वाले फल के सम्बन्ध में कुछ शब्द लिखूँगा । इस ग्रन्थ के पठन-पठन से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी । पवित्र गोदावरी नदी में स्नान कर, शिरडी के समाधि मन्दिर में श्री साईबाबा की समाधि के दर्शन कर लेने के पश्चात इस ग्रन्थ का पठन-पाठन या श्रवण प्रारम्भ करोगे तो तुम्हारी तिगुनी आपत्तियाँ भी दूर हो जायेंगी । समय-समय पर श्री साईबाबा की कथा-वार्ता करते रहने से तुम्हें आध्यात्मिक जगत् के प्रति अज्ञात रुप से अभिरुचि हो जायेगी और यदि तुम इस प्रकार नियम तथा प्रेमपूर्वक अभ्यास करते रहे तो तुम्हारे समस्त पाप अवश्य नष्ट हो जायेंगें । यदि सचमुच ही तुम आवागमन से मुक्ति चाहते हो तो तुम्हें साई कथाओं का नित्य पठन-पाठन, स्मरण और उनके चरणों में प्रगाढ़ प्रीति रखनी चाहिये । साई कथारुपी समुद्र का मंथन कर ुसमें से प्राप्त रत्नों का दूसरों को वितरण करो, जिससे तुम्हें नित्य नूतन आनन्द का अनुभव होगा और श्रोतागण अधःपतन से बच जायेंगे । यदि भक्तगण अनन्य भाव से उनकी शरण आयें तो उनका ममत्व नष्ट होकर बाबा से अभिन्नता प्राप्त हो जायेगी, जैसे कि नदी समुद्र में मिल जाती है । यदि तुम तीन अवस्थाओं (अर्थात्- जागृति, स्वप्न और निद्रा) में से किसी एक में भी साई-चिन्तन में लीन हो जाओ तो तुम्हारा सांसारिक चक्र से छुटकारा हो जायेगा । स्नान कर प्रेम और श्रद्घयुक्त होकर जो इस ग्रन्थ का एक सप्ताह में पठन समाप्त करेंगे, उनके सारे कष्ट दूर हो जायेंगे या जो इसका नित्य पठन या श्रवण करेंगे, उन्हें सब भयों से तुरन्त छुटकारा मिल जायेगा । इसके अध्ययन से हर एक को अपनी श्रद्घा और भक्ति के अनुसार फल मिलेगा । परन्तु इन दोनों के अभाव में किसी भी फल की प्राप्ति होना संभव नहीं है । यदि तुम इस ग्रन्थ का आदरपूर्वक पठन करोगे तो श्री साई प्रसन्न होकर तुम्हें अज्ञान और दरिद्रता के पाश से मुक्त कर, ज्ञान, धन और समृद्घि प्रदान करेंगे । यदि एकाग्रचित होकर नित्य एक अध्याय ही पढ़ोगे तो तुम्हें अपरिमित सुख की प्राप्ति होगी । इस ग्रन्थ को अपने घर पर गुरु-पूर्णिमा, गोकुल अष्टमी, रामनवमी, विजयादशमी और दीपावली के दिन अवश्य पढ़ना चाहिये । यदि ध्यानपूर्वक तुम केवल इसी ग्रन्थ का अध्ययन करते रहोगे तो तुम्हें सुख और सन्तोष प्राप्त होगा और सदैव श्री साई चरणारविंदो का स्मरण बना रहेगा और इस प्रकार तुम भवसागर से सहज ही पार हो जाओगे । इसके अध्ययन से रोगियों को स्वास्थ्य, निर्धनों को धन, दुःखित और पीड़ितों को सम्पन्नता मिलेगी तथा मन के समस्त विकार दूर होकर मानसिक शान्ति प्राप्त होगी ।
मेरे प्रिय भक्त और श्रोतागण । आपको प्रणाम करते हुए मेरा आपसे एक विशेष निवेदन है कि जिनकी कथा आपने इतने दिनों और महीनों से सुनी है, उनके कलिमलहारी और मनोहर चरणों को कभी विस्मृत न होने दें । जिस उत्साह, श्रद्गा और लगन के साथ आप इन कथाओं का पठन या श्रवण करेंगे, श्री साईबाबा वैसे ही सेवा करने की बुद्घि हमें प्रदान करेंगे । लेखक और पाठक इस कार्य में परस्पर सहयोग देकर सुखी होवें ।
प्रसाद - याचना
अन्त में हम इस पुस्तक को समाप्त करते हुए सर्वशक्तिमान परमात्मा से निम्नलिखित कृपा या प्रसादयाचना करते है –
हे ईश्वर । पाठकों और भक्तों को श्री साई-चरणों में पूर्ण और अनन्य भक्ति दो । श्री साई का मनोहर स्वरुप ही उनकी आँखों में सदा बसा रहे और वे समस्त प्राणियों में देवाधिदेव साई भगवान् का ही दर्शन करें । एवमस्तु ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
।। ऊँ श्री साई यशःकाय शिरडीवासिने नमः ।।
आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से हार्दिक धन्यवाद, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी के श्री चरणों में अनुग्रह करते है की वह हमें इसे पुन: आरम्भ (दिनांक 05 जुलाई 2018 से) करने हेतु आज्ञा प्रदान करें एवं हम अपने सभी पाठको से इस बात की भी क्षमा चाहते है की यदि अनजाने में हम से कोई भूल हो गयी हो तो बाबा श्री साईं जी हमें क्षमा प्रदान करने की कृपा करें, हम आपका इस सहयोग के लिए हृदय से आभार व्यक्त करते है एवं आपको आश्वासन देते है की अगले साईं-वार से श्री साईं सचरित्र का पुन: प्रसारण किया जायेगा, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर सभी को सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है... एवं सभी पाठको का एक बार फिर से आभार व्यक्त करते है ...!!
ॐ सांई राम जी
कल हमने पढ़ा था.. राघवदास की इच्छा
साईं बाबा का आशीर्वाद
सुबह-सुबह इंस्पेक्टर गोपालराव अपने दरवाजे पर खड़े थे कि गांव का एक मेहतर अपनी पत्नी के साथ उनके घर के आगे से निकला| जैसे ही उन दोनों की दृष्टि उन पर पड़ी, मेहतरानी अपने पति से बोली - "घर से निकलते ही किस निपूते का मुंह देखा है| पता नहीं हम सही से पहुंच भी पायेंगे या नहीं ? आज रहने दो, कल चलेंगे| मुंह अंधेरे ही निकलेंगे जिससे निपूते का मुंह न देखना पड़े|"
इंस्पेक्टर गोपालराव के दिल को मेहतरानी के ये शब्द तीर की भांति अंदर तक चीरते चले गये| उन्होंने संतान की इच्छा से चार विवाह किए थे| लेकिन एक भी संतान नहीं हुई थी| उन्होंने सोचा था कि शायद कोई कमी है| उन्होंने डॉक्टरों, वैद्यों, हकीमों आदि से इलाज आदि कराया| सब कुछ ठीक था, पर संतान नहीं हो रही थी|
इस घटना ने इंस्पेक्टर गोपालराव को बुरी तरह से झिंझोड़ कर रख दिया था| क्या नहीं था उनके पास-प्रतिष्ठा, जमीन-जायदाद, सरकारी पद, धन सभी कुछ तो था| नौकरी के सिलसिले में जहां भी गए थे, पर्याप्त मान-सम्मान और यश प्राप्त हुआ|
इसके बाद भी संतान न होना बड़े ही दुःख की बात थी|
संतान-प्राप्ति के लिये क्या-क्या नहीं किया-डॉक्टरों की दवाइयां, पंडितों के अनुष्ठान और ओझा, गुनियों के गंडे-ताबीज सभी कुछ बेकार सिद्ध हुए थे|
मेहतरानी की बातें सुनकर उन्हें लगा कि नि:संतान व्यक्ति का जीवन ही बेकार होता है| लोग सुबह उठकर उसका मुंह देखना अशुभ और अपशकुन समझते हैं| जब उन्होंने निश्चय कर लिया कि नौकरी छोड़ देंगे| सारी धन-सम्पत्ति चारों पत्नियों के नाम कर संन्यास लेंगे| यह निश्चय करने के बाद उन्होंने त्याग-पत्र लिखा और गहरे सोच-विचार में डूब गए|
अभी कुछ ही समय बीता था कि दरवाजे पर बाहर गाड़ी रुकने की आवाज सुनाई पड़ी| गोपालराव ने चौंककर दरवाजे की ओर देखा|
"गोपाल, गोपाल !" दरवाजे पर आवाज आयी और दूसरे ही पल उनका मित्र कमरे में आ गया|
"हैलो रामू !" गोपालराव उठकर खड़े हो गए|
"तुम इतनी सुबह-सुबह कैसे ?" गोपालराव ने अपने मित्र का स्वागत करते हुए कहा|
"ट्रेन से अहमदाबाद जा रहा था, लेकिन जैसे ही ट्रेन यहां स्टेशन पर पहुंची, तभी किसी ने मेरे कान में कहा - "रामू, यहीं उतर जा| गोपालराव तुम्हें याद कर रहा है| मैं बिना सोचे-समझ उतर गया| स्टेशन के बाहर आया तो मुझे घोड़ा-गाड़ी भी मिल गई और सीधा तुम्हारे घर चला आया|"
गोपाल अपने मित्र रामू की ओर देखने लगा| उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, यह सब क्या है ?
इस प्रकार एकाएक दोस्त का आ जाना गोपालराव के लिये बहुत आश्चर्य का विषय था|
गोपालराव ने रामू का स्वागत किया| फिर पूछा - "यह बताओ, घर में सब कैसे हैं ?"
"हां, सब कुशल हैं| एकाएक तुम्हारे पास आने का मन हो गया था|"
"ठीक किया, यदि आज न आते तो शायद फिर कभी न मिलना होता|" गोपालराव ने निराशाभरे स्वर में कहा|
"क्यों ?" रामू ने आश्चर्य से पूछा|
"क्या बताऊं !" गोपाल ने भर्राये हुए स्वर में कहा और फिर सुबह की घटना सुना दी|
"मेरी समझ में सब कुछ आ गया| अब जल्दी से तैयार हो जाओ| हम दोनों शिरडी चलेंगे|"
"दो-चार दिन यहीं रुको, फिर शिरडी चलेंगे|" गोपाल ने कहा|
"नहीं| आज ही शिरडी चलेंगे|" रामू ने जोर देते हुए कहा|
रामू के बार-बार जोर देने पर गोपालराव चुप रह गया|
उसने कहा - "तब ठीक है| मैं अभी तैयार हो जाता हूं|"
फिर वह दोनों शिरडी के लिए रवाना हो गये|
इंस्पेक्टर गोपाल और रामू जब शिरडी पहुंचे तो दिन छिप रहा था| द्वारिकामाई मस्जिद में रोशनी की तैयारियां हो रही थीं| साईं बाबा मस्जिद में चबूतरे पर बैठे थे| अनेक शिष्य उनके पास बैठे थे|
तभी गोपाल और रामू ने एक साथ मस्जिद में कदम रखा|
"आओ गोपाल, आओ रामू ! बहुत देर कर दी तुम लोगों ने| तुम तो सुबह दस बज चले थे शायद|" साईं बाबा ने मुस्कराहट के साथ दोनों का स्वागत किया|
गोपाल और रामू ने ठिठक कर एक-दूसरे की ओर देखा| फिर उन्होंने आगे बढ़कर साईं बाबा के चरणों पर अपना सिर रख दिया|
"आज तुम दोनों ने एक साथ पांव छुए हैं| मस्जिद में भी एक साथ कदम रखा| मैं चाहता हूं तुम दोनों की मन की मुरादें भी एक साथ ही पूरी हों|" साईं बाबा ने दोनों को अपने पैरों पर से उठाते हुए कहा|
फिर बाबा ने पास खड़े हाजी सिद्दीकी से कहा - "सिद्दीकी आप तो हज कर आए हैं| बुजुर्ग व्यक्ति हैं और तजुर्बेकार भी| अब तक लाखों व्यक्ति आपकी नजरों के सामने से गुजरे होंगे, इंसान की आपको जबर्दस्त पहचान है| क्या आप यह बता सकते हैं कि इन दोनों में कौन हिन्दू है| और कौन मुसलमान ?"
हाजी सिद्दीकी गोपालराव और रामू के चेहरों को बड़े ध्यान से देखने लगे और कुछ देर बाद बोले - "साईं बाबा, आज तो मेरी बूढ़ी और तजुर्बेकार आँखें भी मुझे धोखा दे रही हैं| मैं नहीं बता सकता हूं कि इन दोनों में से कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान ? मुझे दोनों ही हिन्दू भी दिखाई दे रहे हैं और मुसलमान भी|"
"तुम ठीक कहते हो हाजी ! ये दोनों हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी| मैं भी यही चाहता हूं कि इनका रूप ऐसे ही बना रहे| ये दोनों हिन्दू भी रहें और मुसलमान भी|" साईं बाबा ने हँसते हुए कहा|
"साईं बाबा ! जिस दिन हम दोनों के मन की मुरादें पूरी हो जायेंगी, उस दिन हम ऐसा काम करेंगे, जो समाज के लिए एक मिशाल बनेगी|" रामू ने साईं बाबा के पैर छूकर कहा|
"हां, बाबा ! हम दोनों मित्र मिलकर जिस तरह से एक बन गए हैं, और उसी तरह हिन्दू और मुसलमान भी धर्म के भेद मिटा दें|" गोपाल ने कहा|
रामू का वास्तविक नाम अहमद अली था, पर उसने जानबूझकर अपने को रामू कहना, कहलाना शुरू कर दिया था| उसकी वेषभूषा देखने में सदा मुसलमान के समान रहती थी, पूछने पर वह अपना नाम रामू ही बतलाता था|
"मेरी शुभकामनाएं और आशीर्वाद तुम दोनों के साथ हैं|"
साईं बाबा ने उन दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहा - "तुम्हारी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी|" साईं बाबा ने उन दोनों को मन से आशीर्वाद दिया|
ठीक नौ महीने बाद एक दिन गोपाल और रामू के घरों पर एक साथ शहनाइयां बज उठीं|
साईं बाबा के आशीर्वाद से दोनों की मनोकामना पूरी हो गई थी|
दोनों के घर एक ही दिन, एक ही समय बच्चे पैदा हुए थे और दोनों ही लड़के थे| यह भी संयोग ही था कि जिस समय गोपाल ने मस्जिद की सीढ़ियों पर कदम रखा, ठीक उसी समय रामू भी मस्जिद की सीढ़ियों पर सामने से आ रहा था|
"ठहरो गोपाल !" रामू ने आवाज दी|
गोपाल रुक गया| दौड़कर रामू के गले लिपट गया - "रामू, आज मैं बहुत खुश हूं| साईं बाबा की कृपा से आज मेरे माथे का कलंक मिट गया| आज तक लोग मेरा मुंह देखना अशुभ समझते थे|"
"और गोपाल, आज सवेरे तुम्हारा एक छोटा-सा भतीजा आ गया|" रामू ने गोपाल को अपनी बांहों में कसकर कहा|
ऐसा लग रहा था, मानो उनको दुनिया की सारी खुशी मिल गयी हो|
दोनों साईं बाबा के आशीर्वाद से पिता बन गये थे|
साईं बाबा ने हम दोनों की मुरादें एक साथ पूरी कर दीं| गोपाल ने हँसते हुए कहा - "अब हम दोनों एक साथ चलकर बाबा को यह खुशखबरी सुनायेंगे|"
दोनों मित्रों ने जैसे ही अगला कदम रखा, मस्जिद की सीढ़ी पर उनके मुंह से एक साथ निकला - "साईं बाबा ! और फिर दोनों ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए|"
साईं बाबा ने दोनों को आशीर्वाद दिया| फिर उनका हाथ पकड़कर अपनी धूनी के पास ले गये|
गोपाल बोला - "साईं बाबा, हम दोनों यह चाहते हैं कि आज से शिरडी में हिन्दू और मुस्लमानों के जितने भी त्यौहार होते हैं, दोनों धर्मों के लोग एक साथ मिलकर उन त्यौहारों को मनाया करें और इसकी शुरूआत इसी राम-नवमी से करना चाहते हैं, क्योंकि इस दिन हिन्दुओं के भगवान राम का जन्मदिन है और मुसलमानों के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब का भी जन्मदिन है| हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ाने के लिए इस परम्परा के लिए इससे शुभ दिन और कोई नहीं हो सकता|"
"गोपाल की बात का मैं भी समर्थन करता हूं|" नई मस्जिद के इमाम साहब जल्दी से बोले - "मैं शिरडी के मुसलमानों की ओर से आप सबसे वायदा करता हूं कि हिन्दुओं के जितने भी त्यौहार हैं हम लोग भी उन त्यौहारों का भी मनाया करेंगे|"
"ठीक है|" साईं बाबा मुस्कराये और बोले - "मेरे लिये यह सबसे बड़ी खुशी की बात है| दोनों धर्म वालों के बीच भाईचारा स्थापित करना ही मेरा उद्देश्य है, तुम लोग तैयारी करो| कल भगवान राम और हजरत साहब का जन्मदिन एक साथ मनाया जायेगा|"
यह सुनकर मस्जिद में उपस्थित सभी लोग खुशी से फूले न समाए| सबके लिए यह प्रसन्नता के साथ-साथ एकता बढ़ाने की भी महत्वपूर्ण बात थी|
कल चर्चा करेंगे... पानी से दीप जले
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।
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बाबा के 11 वचन
ॐ साईं राम
1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
Word Meaning of the Gayatri Mantra
ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe
these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation
धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"
dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God
भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।
Simply :
तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.