भाई आदम जिला फिरोजपुर गाँव बिन्जू का रहने वाला था| वह पीरो-फकीरों की खूब सेवा करता परन्तु उसकी मुराद कही पूरी न हुई| उसके घर में पुत्र पैदा न हुआ| एक दिन उसे गुरु का सिख मिला| आदम ने उसे श्रधा सहित पानी पिलाया और प्रार्थना की कि मेरे घर संतान नहीं है| आप गुरु जी के आगे अरदास करो कि मेरे घर पुत्र पैदा हो| सिख ने कहा इस समय गद्दी पर गुरु रामदास जी सुशोभित हैं| तुम उनके पास गुरु के चक्क में चले जाओ| उनके पास तुम्हारी मुराद पूरी हो जायेगी|
भाई आदम सिख की बात मानकर पत्नी को साथ लेकर गुरु के चक्क आ गया| भाई आदम जंगल से रोज दो गठरी लकड़ी लाता और लंगर में दे देता और एक अपने घर में जमा करता| एक दिन सर्दी के मौसम में वर्षा के कारण सूखी लकड़ी कही न मिली| तब भाई आदम ने गुरु जी को खुशी प्रदान करने के लिए अपने घर की सारी सूखी लकड़ी जरूरतमंदों में बाँट दी| सर्दी से ठिठुर रहें लोग सूखी लकड़ी जलाकर खुश हो गए| गुरु जी भाई आदम की मिल-बाँट कर प्रयोग करने वाली प्रवृति को देखकर प्रशंसा करने लगे| संगते भी बहुत खुश थी| गुरु जी ने भाई आदम को बुलाया और कहा सिखा! गुरु नानक जी की संगत तेरे ऊपर खुश हुई है| तुम अपने मन का मनोरथ बताओ, जो पूरा किया जा सके| परन्तु भाई आदम संकोच कर गए और कहने लगे महाराज! मुझे दर्शन दो यही मेरा मनोरथ है| गुरु जी ने तीन बार पूछा और तीनों बार ही आदम ने "दर्शन दो" का वरदान माँगा| तब अन्तर्यामी गुरु ने कहा - भाई तुम कल अपनी पत्नी को साथ लेकर आना और फिर जिस मकसद से तुमने गुरु घर की सेवा की वह आकर बताना| आपका मनोरथ गुरु नानक जी पूरा करेगें| इसके पश्चात आदम ने डेरे में जाकर सारी बात पत्नी को बताई और दूसरे दिन पत्नी को साथ लेकर गुरु दरबार पर आ गया| गुरु जी ने वचन किया कि आज अपना मनोरथ निसंकोच बताओ| पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा महाराज! हमें पुत्र की दात प्रदान करो| यही मनोरथ के साथ हम गुरु दरबार में आए थे|
गुरु जी ने ध्यान में बैठकर वचन किया कि हम आपकी श्रद्धा, भक्ति और निष्काम सेवा पर बहुत खुश हैं| गुरु नानक जी कि कृपा से आपके घर प्रतापी पुत्र होगा| उसका नाम भगतु रखना| अब आप अपने घर जाओ और गुरु यश का आनंद प्राप्त करो| गुरु की आज्ञा के अनुसार भाई आदम अपने गाँव चला गया और उनके घर लड़के ने जन्म लिया और जिसका नाम भगतु ही रखा गया| भाई भगतु जी बड़े नाम रसिक और करनी वाले प्रतापी पुरुष हुए हैं| इस प्रकार आदम और उसकी पत्नी का गुरु दर पर विश्वास और बढ़ गया|
शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)
शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....
"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम
मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे
कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे
मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे
दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे
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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।
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Friday, 3 February 2023
श्री गुरु राम दास जी – साखियाँ - भाई आदम को पुत्र का वरदान
Thursday, 2 February 2023
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 43 & 44 - महासमाधि की ओर
पूर्व तैयारी - समाधि मन्दिर
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
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Wednesday, 1 February 2023
श्री गुरु रामदास जी जीवन- गुरु गद्दी मिलना
ॐ साँई राम जी
श्री गुरु रामदास जी जीवन- गुरु गद्दी मिलना
गुरु अमरदास जी की दो बेटियां बीबी दानी व बीबी भानी जी थी| बीबी दानी जी का विवाह श्री रामा जी से और बीबी भानी जी का विवाह श्री जेठा जी (श्री गुरु रामदास जी) के साथ हुआ| दोनों ही संगत के साथ मिलकर खूब सेवा करते| गुरु जी दोनों पर ही खुश थे| इस कारण दोनों में से एक को गुरुगद्दी के योग्य निर्णित करने के लिए आपने उनकी परीक्षा ली|
एक दिन सांय काल गुरु जी ने बाउली के पास खड़े होकर रामा को कहा कि एक तरफ चबूतरा बनाओ जिसपर बैठकर हम बाउली की कारसेवा देखते रहें| फिर बाउली के दूसरी तरफ जाकर जेठा जी को एक चबूतरा तैयार करने की आज्ञा दी| दूसरे दिन दोनों ने ईंट गारे के साथ चबूतरे बनाए| गुरु जी ने पहले रामा जी का चबूतरा देखकर कहा यह ठीक नहीं बना| रामा ने कहा महाराज! मैंने आपके बताये अनुसार ठीक बनाया है| पर गुरु जी ने उसे दोबारा चबूतरा बनाने की आज्ञा दे दी| दूसरी ओर गुरु अमरदास जी ने जेठा जी का चबूतरा देखकर कहा, तुम हमारी बात नहीं समझे| इन्हें भी दोबारा बनाने की आज्ञा दे दी| जेठा जी ने चुप-चाप बिना कुछ कहे उसी समय ही चबूतरा तोड़ दिया और हाथ जोड़कर कहने लगे महाराज! मैं अल्पबुद्धि जीव हूँ मुझे फिर से समझा दो| गुरु जी ने छड़ी के साथ लकीर खीचकर कहा कि इस तरह का चबूतरा बनाओ|
दूसरे दिन जब गुरूजी फिर दोनों के द्वारा बनाए गए चबूतरो को देखने के लिए गए तो फिर पहले रामा जी तरफ गए| गुरु जी ने फिर से वही कहा इन्हें गिरा दो और कल फिर बनाओ| रामा जी ने चबूतरा गिराने से इंकार कर दिया| परन्तु गुरु जी ने एक सेवक से चबूतरा गिरवा दिया| फिर गुरूजी जेठा जी के पास गए| गुरु जी का उत्तर सुनते ही उन्होंने चुप-चाप चबूतरा गिरा दिया और कहा मुझे क्षमा कीजिये मैं भूल गया हूँ| आपकी आज्ञा के अनुसार ठीक चबूतरा नहीं बाना पाया| गुरु जी फिर दोनों को समझाकर चले गए|
तीसरे दिन जब फिर दोनों ने चबूतरे तैयार कर लिए तो गुरु जी ने रामा के चबूतरे को देखकर कहा तुमने फिर उस तरह का चबूतरा नहीं बनाया जिस तरह का हमने कहा था| इसको गिरा दो, परन्तु उसने कहा मुझसे और अच्छा नहीं बन सकता आपको अपनी बात याद नहीं रहती, फिर मेरा क्या कसूर है? आप किसी और से बनवा लो| गुरु जी उसका उत्तर सुनकर चुप-चाप जेठा जी की तरफ चल पड़े| गुरु जी ने जेठा जी को भी वही उत्तर दिया कि तुमने ठीक नहीं बनाया, आप हमारे समझाने पर नहीं समझे| जेठा जी हाथ जोड़कर कहने लगे महाराज! मैं कम बुद्धि करके आपकी बात नहीं समझ सका| आपजी की कृपा के बिना मुझे समझ नहीं आ सकती| आपका यह उत्तर सुनकर गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि हमें आपकी यह सेवा बहुत पसंद आई| आप अहंकार नहीं करते और सेवा मैं ही आनन्द लेतें हैं|
एक दिन गुरु जी अपने ध्यान स्मरण से उठे और बीबी भानी से कहने लगे, पुत्री! हम आप दोनों कि सेवा से बहुत खुश है, इसलिए हम अपनी बाकि रहती आयु श्री रामदास जी को देकर बैकुन्ठ धाम को चले जाते है| इसके पश्चात् रामदास जी को कहने लगे कि आपकी निष्काम भगति ने हमें प्रभावित किया है| अब हम दोनों में कोई भेद नहीं है| हमारी बाकि आयु ६ साल ११ महीने और १८ दिन है,आप हमारे आसान पर बैठ कर गुरु घर कि मर्यादा को चलाना| यह वचन करते आप ने पांच पैसे और नारियल श्री रामदास जी के आगे रखकर गुरु नानक जी कि गुरु गद्दी कि तीन परिक्रमा करके माथा टेक दिया| अपने पुत्रों व सारी संगत के सामने कहने लगे कि आज से गुरुगद्दी के यह मालिक है| इन्ही को माथा टेको| मोहरी जी गुरु कि बात मान गये, मगर मोहन जी ने ऐसा करने से मना कर दिया कि गुरु गद्दी पर हमारा हक है, यह कहकर माथा नहीं टेका| तत्पश्चात सारी संगत ने श्री रामदास जी को गुरु मानकर माथा टेक दिया|
श्री गुरु रामदास जी का वैराग्य
सतगुरु का परलोक गमन सुनकर सभी भगत जन गुरु जी के पास दूर-२ से आकार माथा टेकते तो मोहन जी व मोहरी जी इसे अच्छा नहीं समझते थे| गुरु रामदास जी एकांत कमरे में जा कर बैठ गये और सतगुरु के वियोग में सात शब्द उच्चारण किए, जो श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के पन्ना ९४ पर दर्ज है| शब्द की पहली पंक्ति यहाँ दर्ज है|
मझ महला ४ चउ पदे घरु १||
१.हरि हरि नामु मै हरि मनि भाइिआ||
वडभागी हरि नामु धिआइिआ||
२.मधुसूदन मेरे मन तन प्राना ||
हउ हरि बिनु दूजा अवरु ना जाना||
३.हरि गुण पड़ीए हरि गुण गुणीए ||
हरि हरि नामु कथा नित सुणीए||
४.हरि जन संत मिलहु मेरे भाई||
मेरा हरि प्रभु दसहु मै भुख लगाई||
५.हरि गुरु गिआनु हरि रसु हरि पाइिआ||
मनु हरि रंगि राता हरि रसु पीआइिआ||
६.हउ गुण गोविंद हरि नामु धिआई||
मिलि संगति मनि नामु वसाई ||
७.आवहु भैणे तुसी मिलहु पिआ री आं||
जो मेरा प्रीतमु दस तिसकै हउ वारीआं||
आप जी कि जीवन कथा में लिखा है कि इन वैरागमयी शब्दों को पड़कर आप के नेत्रों ससे जल धारा बह निकलती थी,
जिस लिए प्रेमी सिख चांदी कि कटोरियां आप कि आँखों के नीचे रख देते थे,ताकि आप के वस्त्र गीले ना होँ|यथा-
हउ रहि न सका बिनु देखे प्रीतमा, मै नीरू वहैं वहि चलै जीउ ||
(पहला शब्द पन्ना ८४)
जब ऐसे ही कुछ समय बीत गया तो संगतो में निराशा फ़ैल गयी| संगत कि ऐसी दशा देखकर बाबा बुड्डा जी व मोहरी जी गुरु जी के पास आकार बेनती करने लगे कि संगतो को दर्शन दें| तब आप जी ने बाहर आकार संगतो को शांत किया|
Tuesday, 31 January 2023
श्री गुरु रामदास जी जीवन-परिचय
Parkash Ustav (Birth date): September 24, 1534
Father: Baba Hari Das
Mother: Mata Daya Kaur
Mahal (spouse): Bibi Bhani
Sahibzaday (offspring): Prithi Chand, Mahadev and Arjun Dev
Joti Jyot (ascension to heaven): September 1, 1581 at Goindwal
Monday, 30 January 2023
श्री गुरु अमर दास जी ज्योति - ज्योत समाना
१ ओंकार सतिगुरु परसादि||
जगि दाता सोइि भगति वछ्लु तिहु लोइि जीउ||
गुर सबदि समावए अवरु न जाणै कोइि जीउ||
अवरो न जाणहि सबदि गुर के एकु नामु धिआवहे||
परसादि नानक गुरु अंगद परम पदवी पावहे||
आइिआ ह्कारा चलणवारा हरि राम नामि समाइिआ||
जगि अमरू अटलु अतोलु ठाकरू भगति ते हरि पाइिआ||१||
इस प्रकार सबको धैर्य और हुक्म मानने का वचन करके गुरु जी ने भादरव सुदी पूर्णिमा संवत १६६१ को अपने परलोक गमन कि तयारी कर ली| संगत को वाहिगुरू का सुमिरन व शब्द कितन करने कि आज्ञा करके आप कुश के आसन पर सफ़ेद चादर तान कर लेट गये| शरीर त्याग कर अकाल पुरख के चरणों में जा पहुँचे|
कुल आयु व गुरुगद्दी का समय (Shri Amar Das Ji Total Age and Ascension to Heaven)
श्री गुरु अमरदास जी २२ साल ५ महीने और ११ दिन गुरुगद्दी पर आसीन रहे|
आप ६५ साल ३ महीने और २३ दिन इस जगत में शरीर करके सुशोभित रहे|
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बाबा के 11 वचन
1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....
गायत्री मंत्र
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
Word Meaning of the Gayatri Mantra
ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe
these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation
धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"
dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God
भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।
Simply :
तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.