शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Friday 31 July 2015

साँई मैं दूँ सब कुछ तुझ पर वार.........

ॐ साँई राम




नाज़ करूँ मैं खुद पर साँई,
सब कुछ वार दूँ तुझ पर साँई,
जब से प्यार मिला तेरा,
सुंदर दीदार मिला तेरा,
सब कुछ पा लिया मैने साँई ,
दिल गद गद हो गया मेरा,
हे साँई, पाया दीदार जब से तेरा,
अब और कुछ रही ना इस मन की चाह,
साँई मैं दूँ सब कुछ तुझ पर वार,
किया तूने हम पतितो का उद्धार,
परमेश्वर, तेरे इस रूप को,
मेरा करोङो बार नमस्कार,
नमस्कार, नमस्कार

!!! जय साँई राम !!!


Thursday 30 July 2015

My beloved son

संत महान एक बाल रूप धर
इस गरीब की कुटिया में पधारे
पुत्र रत्न का चोला लिया पहन
पापी कर्म मेरे सब दिये सुधारे
रावण के पुत्र का नाम लेकर
चाँद को भी दुनिया मयंक पुकारे
सौंप कर दिये पुण्य कार्य मुझे
गाये को गुड़, चिड़ियों को दाना डारे
भूखा ना जाए दीन कोई भी घर से
प्यासा पानी पा गला तर कर डारे
अठारह वर्ष का सलोना साथ था
इतने समय में सौ जीवन जी डारे
मुख मंडल पर तेज, मन शीतल झील
दुखियों के चेहरे पर खुशियाँ निखारे
साँईं की देन, साँईं ही गोद में लीना
साँईं जी ही उसका परलोक संवारे

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 42

ॐ साँई राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साँईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साँईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साँईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साँईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम  घर घर तक श्री साँईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साँईं चरणों में क्षमा याचना करते है...



श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 42 - महासमाधि की ओर

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भविष्य की आगाही – रामचन्द्र दादा पाटील और तात्या कोते पाटील की मृत्यु टालना – लक्ष्मीबाई शिन्दे को दान – अन्तिम क्षण ।

बाबा ने किस प्रकार समाधि ली, इसका वर्णन इस अध्याय में किया गया है ।

प्रस्तावना
................
गत अध्यायों की कथाओं से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि गुरुकृपा की केवल एक किरण ही भवसागर के भय से सदा के लिये मुक्त कर देती है तथा मोक्ष का पथ सुगम करके दुःख को सुख में परिवर्तित कर देती है । यदि सदगुरु के मोहविनाशक पूजनीय चरणों का सदैव स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे समस्त कष्टों और भवसागर के दुःखों का अन्त होकर जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा हो जायेगा । इसीलिये जो अपने कल्याणार्थ चिन्तित हो, उन्हें साई समर्थ के अलौकिक मधुर लीलामृत का पान करना चाहिये । ऐसा करने से उनकी मति शुद्घ हो जायेगी । प्रारम्भ में डाँक्टर पंडित का पूजन तथा किस प्रकार उन्होंने बाबा को त्रिपुंड लगाया, इसका उल्लेख मूल ग्रन्थ में किया गया है । इस प्रसंग का वर्णन 11 वें अध्याय में किया जा चुका है, इसलिये यहाँ उसका दुहराना उचित नहीं है ।



भविष्य की आगाही
......................
पाठको । आपने अभी तक केवल बाबा के जीवन-काल की ही कथायें सुनी है । अब आप ध्यानपूर्वक बाबा के निर्वाणकाल का वर्णन सुनिये । 28 सितम्बर, सन् 1918 को बाबा को साधारण-सा ज्वर आया । यह ज्वर 2-3 दिन ततक रहा । इसके उपरान्त ही बाबा ने भोजन करना बिलकुल त्याग दिया । इससे उनका शरीर दिन-प्रतिदिन क्षीण एवं दुर्बल होने लगा । 17 दिनों के पश्चात् अर्थात् 18 अक्टूबर, सन् 1918 को 2 बजकर 30 मिनट पर उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया । (यह समय प्रो. जी. जी. नारके के तारीख 5-11-1918 के पत्र के अनुसार है, जो उन्होंने दादासाहेब खापर्डे को लिखा था और उस वर्ष की साईलीलापत्रिका के 7-8 पृष्ठ (प्रथम वर्ष) में प्रकाशित हुआ था) । इसके दो वर्ष पूर्व ही बाबा ने अपने निर्वाण के दिन का संकेत कर दिया था, परन्तु उस समय कोई भी समझ नहीं सका । घटना इस प्रकार है । विजया दशमी के दिन जब लोग सन्ध्या के समय सीमोल्लंघनसे लौट रहे थे तो बाबा सहसा ही क्रोधित हो गये । सिर पर का कपड़ा, कफनी और लँगोटी निकालकर उन्होंने उसके टुकड़े-टुकड़े करके जलती हुई धूनी में फेंक दिये । बाबा के द्घारा आहुति प्राप्त कर धूनी द्घिगुणित प्रज्वलित होकर चमकने लगी और उससे भी कहीं अदिक बाबा के मुख-मंडल की कांति चमक रही थी । वे पूर्ण दिगम्बर खड़े थे और उनकी आँखें अंगारे के समान चमक रही थी । उन्होंने आवेश में आकर उच्च स्वर में कहा कि लोगो । यहाँ आओ, मुझे देखकर पूर्ण निश्चय कर लो कि मैं हिन्दू हूँ या मुसलमान । सभी भय से काँप रहे थे । किसी को भी उनके समीप जाने का साहस न हो रहा था । कुछ समय बीतने के पश्चात् उनके भक्त भागोजी शिन्दे, जो महारोग से पीड़ित थे, साहस कर बाबा के समीप गये और किसी प्रकार उन्होंने उन्हें लँगोटी बाँध दी और उनसे कहा कि बाबा । यह क्या बात है । देव आज दशहरा (सीमोल्लंघन) का त्योहार है । तब उन्होंने जमीन पर सटका पटकते हुए कहा कि यह मेरा सीमोल्लंघन है । लगभग 11 बजे तक भी उनका क्रोध शान्त न हुआ और भक्तों को चावड़ी जुलूस निकलने में सन्देह होने लगा । एक घण्टे के पश्चात् वे अपनी सहज स्थिति में आ गये और सदी की भांति पोशाक पहनकर चावड़ी जुलूस में सम्मिलित हो गये, जिसका वर्णन पूर्व में ही किया जा चुका है । इस घटना द्घारा बाबा ने इंगित किया कि जीवन-रेखा पार करने के लिये दशहरा ही उचित समय है । परन्तु उस समय किसी को भी उसका असली अर्थ समझ में न आया । बाबा ने और भी अन्य संकेत किये, जो इस प्रकार है :-


रामचन्द्र दादा पाटील की मृत्यु टालना
.....................................
कुछ समय के पश्चात् रामचन्द्र पाटील बहुत बीमार हो गये । उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था । सब प्रकार के उपचार किये गये, परन्तु कोई लाभ न हुआ और जीवन से हताश होकर वे मृत्यु के अंतिम क्षणों की प्रतीक्षा करने लगे । तब एक दिन मध्याहृ रात्रि के समय बाबा अनायास ही उनके सिरहाने प्रगट हुए । पाटील उनके चरणों से लिपट कर कहने लगे कि मैंने अपने जीवन की समस्त आशाये छोड़ दी है । अब कृपा कर मुझे इतना तो निश्चित बतलाइये कि मेरे प्राण अब कब निकलेंगे । दया-सिन्धु बाबा ने कहा कि घबराओ नहीं । तुम्हारी हुँण्डी वापस ले ली गई है और तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे । मुझे तो केवल तात्या का भय है कि सन् 1918 में विजया दशमी के दिन उसका देहान्त हो जायेगा । किन्तु यह भेद किसी से प्रगट न करना और न ही किसी को बतलाना । अन्यथा वह अधिक बयभीत हो जायेगा । रामचन्द्र अब पूर्ण स्वस्थ हो गये, परन्तु वे तात्या के जीवन के लिये निराश हुए । उन्हें ज्ञात था कि बाबा के शब्द कभी असत्य नहीं निकल सकते और दो वर्ष के पश्चात ही तात्या इस संसर से विदा हो जायेगा । उन्होंने यह भेद बाला शिंपी के अतिरिक्त किसी से भी प्रगट न किया । केवल दो ही व्यक्ति – रामचन्द्र दादा और बाला शिंपी तात्या के जीवन के लिये चिन्ताग्रस्त और दुःखी थे ।

रामचन्द्र ने शैया त्याग दी और वे चलने-फिरने लगे । समय तेजी से व्यतीत होने लगा । शके 1840 का भाद्रपद समाप्त होकर आश्विन मास प्रारम्भ होने ही वाला था कि बाबा के वचन पूर्णतः सत्य निकले । तात्या बीमार पड़ गये और उन्होंने चारपाई पकड़ ली । उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि अब वे बाबा के दर्शनों को भी जाने में असमर्थ हो गये । इधर बाबा भी ज्वर से पीड़ित थे । तात्या का पूर्ण विश्वास बाबा पर था और बाबा का भगवान श्री हरि पर, जो उनके संरक्षक थे । तात्या की स्थिति अब और अधिक चिन्ताजनक हो गई । वह हिलडुल भी न सकता था और सदैव बाबा का ही स्मरण किया करता था । इधर बाबा की भी स्थिति उत्तरोत्तर गंभीर होने लगी । बाबा द्घार बतलाया हुआ विजया-दसमी का दिन भी निकट आ गया । तब रामचन्द्र दादा और बाला शिंपीबहुत घबरा गये । उनके शरीर काँप रहे थे, पसीने की धारायें प्रवाहित हो रही थी, कि अब तात्या का अन्तिम साथ है । जैसे ही विजया-दशमी का दिन आया, तात्या की नाड़ी की गति मन्द होने लगी और उसकी मृत्यु सन्निकट दिखलाई देने लगी । उसी समय एक विचित्र घटना घटी । तात्या की मृत्यु टल गई और उसके प्राण बच गये, परन्तु उसके स्थान पर बाबा स्वयं प्रस्थान कर गये और ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे कि परस्पर हस्तान्तरण हो गया हो । सभी लोग कहने लगे कि बाबा ने तात्या के लिये प्राण त्यागे । ऐसा उन्होंने क्यों किया, यह वे ही जाने, क्योंकि यह बात हमारी बुद्घि के बाहर की है । ऐसी भी प्रतीत होता है कि बाबा ने अपने अन्तिम काल का संकेत तात्या का नाम लेकर ही किया था ।

दूसरे दिन 16 अक्टूबर को प्रातःकाल बाबा ने दासगणू को पंढरपुर में स्वप्न दिया कि मसजिद अर्रा करके गिर पड़ी है । शिरडी के प्रायः सभी तेली तम्बोली मुझे कष्ट देते थे । इसलिये मैंने अपना स्थान छोड़ दिया है । मैं तुम्हें यह सूचना देने आया हूँ कि कृपया शीघ्र वहाँ जाकर मेरे शरीर पर हर तरह के फूल इकट्ठा कर चढ़ाओ । दासगणू को शिरडी से भी एक पत्र प्राप्त हुआ और वे अपने शिष्यों को साथ लेकर शिरडी आये तथा उन्होंने बाबा की समाधि के समक्ष अखंड कीर्तन और हरिनाम प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने स्वयं फूलो की माला गूँथी और ईश्वर का नाम लेकर समाधि पर चढ़ाई । बाबा के नाम पर एक वृहद भोज का भी आयोजन किया गया ।



लक्ष्मीबाई को दान
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विजयादशमी का दिन हिन्दुओं को बहुत शुऊ है और सीमोल्लंघन के लिये बाबा द्घार इस दिन का चुना जाना सर्वथा उचित ही है । इसके कुछ दिन पूर्व से ही उन्हें अत्यन्त पीड़ा हो रही थी, परन्तु आन्तरिक रुप में वे पूर्ण सजग थे । अन्तिम क्षण के पूर्व वे बिना किसी की सहायता लिये उठकर सीधे बैठ गये और स्वस्थ दिखाई पड़ने लगे । लोगों ने सोचा कि संकट टल गया और अब भय की कोई बात नहीं है तथा अब वे शीघ्र ही नीरोग हो जायेंगे । परन्तु वे तो जानते थे कि अब मैं शीघ्र ही विदा लेने वाला हूँ और इसलिये उन्होंने लक्ष्मीबाई शिन्दे को कुछ दान देने की इच्छा प्रगट की ।

समस्त प्राणियों में बाबा का निवास
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लक्ष्मीबाई एक उच्च कुलीन महिला थी । वे मसजिद में बाबा की दिन-रात सेवा किया करती थी । केवल भगत म्हालसापति तात्या और लक्ष्मीबाई के अतिरिक्त रात को मसजिद की सीढ़ियों पर कोई नहीं चढ़ सकता था । एक बार सन्ध्या समय जब बाबा तात्या के साथ मसजिद में बैठे हुए थे, तभी लक्ष्मीबाई ने आकर उन्हे नमस्कार किया । तब बाबा कहने लगे कि अरी लक्ष्मी, मैं अत्यन्त भूखा हूँ । वे यह कहकर लौट पड़ी कि बाबा, थोड़ी देर ठहरो, मैं अभी आपके लिये रोटी लेकर आती हूँ । उन्होंने रोटी और साग लाकर बाबा के सामने रख दिया, जो उन्होंने एक भूखे कुत्ते को दे दिया । तब लक्ष्मीबाई कहने लगी कि बाबा यह क्या । मैं तो शीघ्र गई और अपने हाथ से आपके लिये रोटी बना लाई । आपने एक ग्रास भी ग्रहम किये बिना उसे कुत्ते के सामने डाल दिया । तब आपने व्यर्थ ही मुझे यह कष्ट क्यों दिया । बाबा न उत्तर दिया कि व्यर्थ दुःख न करो । कुत्ते की भूख शान्त करना मुझे तृप्त करने के बराबर ही है । कुत्ते की भी तो आत्मा है । प्राणी चाहे भले ही भिन्न आकृति-प्रकृति के हो, उनमें कोई बोल सकते है और कोई मूक है, परन्तु भूख सबकी एक सदृश ही है । इसे तुम सत्य जानो कि जो भूखों को भोजन कराता है, वह यथार्थ में मुझे ही भोजन कराता है । यह एक अकाट्य सत्य है । इस साधारम- सी घटना के द्घारा बाबा ने एक महान् आध्यात्मिक सत्य की शिक्षा प्रदान की कि बिना किसी की भावनाओं को कष्ट पहुँचाये किस प्रकार उसे नित्य व्यवहार में लाया जा सकता है । इसके पश्चात् ही लक्ष्मीबाई उन्हें नित्य ही प्रेम और भक्तिपूर्वक दूध, रोटी व अन्य भोजन देने लगी, जिसे वे स्वीकार कर बड़े चाव से खाते थे । वे उसमें से कुछ खाकर शेष लक्ष्मीबाई के द्घारा ही राधाकृष्ण माई के पास भेज दिया करते थे । इस उच्छिष्ट अन्न को वे प्रसाद स्वरुप समझ कर प्रेमपूर्वक पाती थी । इस रोटी की कथा को असंबन्ध नहीं समझा चाहिये । इससे सिदृ होता है कि सभी प्राणियों में बाबा का निवास है, जो सर्वव्यापी, जन्म-मृत्यु से परे और अमर है । बाबा ने लक्ष्मीबाई की सेवाओं को सदैव स्मरण रखा । बाबा उनको भुला भी कैसे सकते थे । देह-त्याग के बिल्कुल पूर्व बाबा ने अपनी जेब में हाथ डाला और पहले उन्होंने लक्ष्मी को पाँच रुपये और बाद में चार रुपये, इस प्रकार कुल नौ रुपये दिये । यह नौ की संख्या इस पुस्तक के अध्याय 21 में वर्णित नव विधा भक्ति की घोतक है अथवा यह सीमोल्लंघन के समय दी जाने वाली दक्षिणा भी हो सकती है । लक्ष्मीबाई एक सुसंपन्न महिला थी । अतएव उन्हें रुपयों की कोई आवश्यकता नहीं थी । इस कारण संभव है कि बाबा ने उनका ध्यान प्रमुख रुप से श्री मदभागवत के स्कन्ध 11, अध्याय 10 के श्लोंक सं. 6 की ओर आकर्षित किया हो, जिसमे उत्कृष्ट कोटि के भक्त के नौ लक्षणों का वर्णन है, जिनमें से पहले 5 और बाद मे 4 लक्षणों का क्रमशः प्रथम और द्घितीय चरणों में उल्लेख हुआ है । बाबा ने भी उसी क्रम का पालन किया (पहले 5 और बाद में 4, कुल 9) केवल 9 रुपये ही नहीं बल्कि नौ के कई गुने रुपये लक्ष्मीबाई के हाथों में आये-गये होंगे, किन्तु बाबा के द्घारा प्रद्त्त यह नौ (रुपये) का उपहार वह महिला सदैव स्मरण रखेगी ।



अंतिम क्षण
..........
बाबा सदैव सजग और चैतन्य रहते थे और उन्होंने अन्तिम समय भी पूर्ण सावधानी से काम लिया । अपने भक्तों के प्रति बाबा का हृदय प्रेम, ममता यामोह से ग्रस्त न हो जाय, इस कारण उन्होंने अन्तिम समय सबको वहाँ से चले जाने का आदेश दिया । चिन्तमग्न काकासाहेब दीक्षित, बापूसाहेब बूटी और अन्य महानुभाव, जो मसजिद में बाबा की सेवा में उपस्थित थे, उनको भी बाबा ने वाड़े में जाकर भोजन करके लौट आने को कहा । ऐसी स्थिति में वे बाबा को अकेला छोड़ना तो नहीं चाहते थे, परन्तु उनकी आज्ञा का उल्लंघन भी तो नहीं कर सकते थे । इसलिये इच्छा ना होते हुए भी उदास और दुःखी हृदरय से उन्हें वाड़े को जाना पड़ा । उन्हें विदित था कि बाबा की स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है और इस प्रकार उन्हें अकेले छोड़ना उचित नहीं है वे भोजन करने के लिये बैठे तो, परन्तु उनके मन कहीं और (बाबा के साथ) थे । अभी भोजन समाप्त भी न हो पाया था कि बाबा के नश्वर शरीर त्यागने का समाचार उनके पास पहुँचा और वे अधपेट ही अपनी अपनी थाली छोड़कर मसजिद की ओर भागे और जाकर देखा कि बाबा सदा के लिये बयाजी आपा कोते की गोद में विश्राम कर रहे है । न वे नीचे लुढ़के और न शैया पर ही लेटे, अपने ही आसन पर शान्तिपूर्वक बैठे हुए और अपने ही हाथों से दान देते हुए उन्होंने यह मानव-शरीर त्याग दिया । सन्त स्वयं ही देह धारण करते है तथा कोई निश्चित ध्येय लेकर इस संसार में प्रगट होते है ओर जब देह पूर्ण हो जाता है तो वे जिस सरलता और आकस्मिकता के साथ प्रगट होते है, उसी प्रकार लुप्त भी हो जाया करते है ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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Wednesday 29 July 2015

आओ साँई, मेरे साँई, मेरे घर आओ......

ॐ सांई राम

ॐ साँई, श्री साँई, जय जय साँई... ॐ साँई राम!!!
आओ साँई, मेरे साँई, मेरे घर आओ
आओ साँई, मेरे साँई, मेरे घर आओ 
आओ मेरे साँई जी
आओ मेरे दाता जी
मेरी अँखियाँ दे विच आओ
अँखियाँ दे विच आओ
मेरे साँई मुड़ के हूँ न जाओ
मेरे दाता मुड़ के न जाओ
मेरे दिल विच बस जाओ,
मेनू अपना दास बनाओ,
अपने चरना थल्ले लाओ,
अपनी गोदी विच बिठाओ
आओ मेरे साँई जी
आओ मेरे दाता जी
आओ साँई, मेरे साँई, मेरे घर आओ
आओ साँई, मेरे साँई, मेरे घर आओ 
मेरी अँखियाँ दे विच आओ
अँखियाँ दे विच आओ
आओ साँई, मेरे साँई, मेरे घर आओ
आओ साँई, मेरे साँई, मेरे घर आओ



Tuesday 28 July 2015

श्रध्दांजलि पुष्प

आधुनिक भारत के भगवान चले गए।
इस देश के असली स्वाभिमान चले गए।।

धर्म को अकेला छोड़ विज्ञान चले गए।
एक साथ गीता और कुरान चले गए।।

मानवता के एकल प्रतिष्ठान चले गए।
धर्मनिरपेक्षता के मूल संविधान चले गए।।

इस सदी के श्रेष्ठ ऋषि महान चले गए।
कलयुग के इकलौते इंसान चले गए।।

ज्ञान राशि के अमित निधान चले गए।।
सबके प्यारे अब्दुल कलाम चले गए।।

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साँईं तेरे हजारों नाम.....

ॐ साँई राम


कण कण में तेरा ही मेरे साँईं वास है
तीनो लोक में मेरे बाबा आपका ही राज है
सभी जीवो पे तेरी रहमत दिन रात बरसती है
तेरी ही रहमत से मेरे बाबा दिन और रात निकलते है
ऐसी ही कृपा सदा बनायें रखना
चरणों में अपने बिठा अपने भगत को सदा
अपनी सेवा में लगायें रखना
साँईं तेरे हजारों नाम
कोई अल्लाह कहे कोई राम
कुरान में भी हो तुम साँईं
गीता में भी हो तुम साँईं
बाइबल में भी हो तुम साँईं
गुरुबानी में भी तुम साँईं
तेरी शिर्डी साँईं पावन धाम
कोई अल्लाह कहे कोई राम
साँईं तेरे हजारों नाम
कोई अल्लाह कहे कोई राम...


हरी ॐ साँईं ॐ

Monday 27 July 2015

श्री साँईं नाथ महाराज जी के 11 वचन

ॐ साँई राम

 जो शिरडी आएगा, आपद दूर भगाएगा।


चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर।

त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा।

मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पुरी आस।

मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो।

मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताये।

जैसा भाव रहे जिस मनका, वैसा रूप हुआ मेरे मन का।

भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा।

आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर।


मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया।

धन्य -धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य।

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साँईनाथ महाराज की जय.....

Sunday 26 July 2015

मोको कहां ढूढे रे बन्दे...

ॐ साँई राम


मोको कहां ढूढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना तीर्थ मे ना मूर्त में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं व्रत उपवास में
ना मैं क्रिया कर्म में रहता
ना ही जोग सन्यास में
ना ही प्राण में ना ही पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकृति पर्वत गुफा में
ना ही स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरंत मिल जाउं
इक पल की तालाश में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूँ विश्वास में....

Saturday 25 July 2015

है भरोसा साईं पर, उसकी रहमत बरसेगी......

ॐ साँई राम



मुश्किलें आती है,
परेशानिया आती है.
ज़िन्दगी जीना वो,
हमको सिखाती है.
रात हुयी है,
तो दिन जरुर आएगा.
जो है आज परेशान,
कल सकूं जरुर पायेगा.
अल्लाह बड़ा मेहरबान,
वो रहमदिल है.
एक न एक दिन,
वो राह जरुर दिखायेगा.
मेरा मालिक है साँईं,
अभी वो चुप है.
तुम देखना एक दिन,
वो अपना जलवा जरुर दिखायेगा.
है भरोसा साँईं पर,
उसकी रहमत बरसेगी.
ख़ुशी का पैगाम आएगा,
सबकी किश्मत भी चमकेगी.


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Translation
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Difficulties & problems come.

They educate us how to live life.
The night has just ended.There will be certainly
dawn thereafter.Whosoever is disturbed today,
will certainly get peace tomorrow.
Allah (God) is very compasionate & kind
heatred.One day or other He will certainly
show us the path.
My master (Swami) is Sai Baba.At present He
is keeping silence.You see one day,He will
certainly show His divine power of magic.
I trust & believe in Sai.His kindness will shower.
The message of happiness will be received.
Everyone luck will also shine.

Friday 24 July 2015

क्या था मेरा कसूर?

रही गर कुछ त्रुटी मेरी भक्ति में
इक बार तो मुझसे कहा होता
सुधार लेता मैं त्रुटी को अपनी
चिराग मेरे घर का तो ना बुझा होता

अपने कर्मो की चादर औढ़े
दर बदर मैं भटकता रहा हूँ
एक लाल की जिंदगी ना बख्शी
अब घुट घुट के जी रहा हूँ

कलेजा मेरा काट कर
मिला क्या तुझे बाबा
मैं ना फैला सका हाथ कहीं
शिर्डी को जाना काशी और काबा

निकला तू भी निर्दयी जमाने की तरह
मेरा साथ बीच डगर छोड़ दिया
मैं बेबस लाचार बहुत हूँ तू ये जाने
तेरी खातिर जग से मुख मोड़ लिया

पानी तो अनमोल है, Save Water, Save Life....

ॐ सांई राम

पानी तो अनमोल है
उसको बचा के रखिये
बर्बाद मत कीजिये इसे
जीने का सलीका सीखिए
पानी को तरसते हैं
धरती पे काफी लोग यहाँ
पानी ही तो दौलत है
पानी सा धन भला कहां
पानी की है मात्रा सीमित
पीने का पानी और सीमित
तो पानी को बचाइए
इसी में है समृधी निहित
शेविंग या कार की धुलाई
या जब करते हो स्नान
पानी की जरूर बचत करें
पानी से है धरती महान
जल ही तो जीवन है
पानी है गुनों की खान
पानी ही तो सब कुछ है
पानी है धरती की शान
पर्यावरण को न बचाया गया
तो वो दिन जल्दी ही आएगा
जब धरती पे हर इंसान
बस 'पानी पानी' चिल्लाएगा
रुपये पैसे धन दौलत
कुछ भी काम न आएगा
यदि इंसान इसी तरह
धरती को नोच के खाएगा
आने वाली पुश्तों का
कुछ तो हम करें ख़्याल
पानी के बगैर भविष्य
भला कैसे होगा खुशहाल
बच्चे, बूढे और जवान
पानी बचाएँ बने महान
अब तो जाग जाओ इंसान
पानी में बसते हैं प्राण ॥

Thursday 23 July 2015

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 41

ॐ साँई राम


आप सभी को शिर्डी के साँईं बाबा ग्रुप की और से साँईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साँईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साँईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साँईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साँईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साँईं चरणों में क्षमा याचना करते है...


श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 41 - चित्र की कथा, चिंदियों की चोरी और ज्ञानेश्वरी के पठन की कथा ।




Wednesday 22 July 2015

सूचना

मेरे पुत्र मयंक आनंद का उठाला, श्री साँईं वार के दिन दिनांक 23 जुलाई 2015 को, दोपहर 3 से 4 बजे तक कम्युनिटी सेंटर, सैक्टर 47 नोएडा में उसकी पवित्र आत्मा की शांति के लिए शोक प्रार्थना सभा हेतु आप सभी को अति दुख के साथ सुचित किया जा रहा है ।

मन मन्दिर में साँई वास है तेरा....

ॐ साँई राम



ऐसी सुबह न आए,
न आए ऐसी श्याम
जिस दिन जुबान पे मेरी,
आए न साँई का नाम
मन मन्दिर में वास है तेरा,
तेरी छवि बसाई प्यासी आत्मा
बनके जोगी तेरे शरण में आया,
तेरे ही चरणों में पाया
मैंने यह विश्राम,
ऐसी सुबह न आए
न आए ऐसी श्याम,
जिस दिन जुबान पे मेरी
आए न तेरा नाम,
तेरी खोज में न जाने
कितने युग मेरे बीते,
अंत में काम क्रोध सब हरे
वो बोले तुम जीते,
मुक्त किया प्रभु तुने मुझको
है शत शत प्रणाम
ऐसी सुबह न आए
न आए ऐसी श्याम
जिस दिन जुबान पे मेरी
आए न तेरा नाम
सर्व्कला संपन तुम्ही ही हो
औ मेरे परमेश्वर
दर्शन देकर धन्य करो
अब त्रिलोक्येश्वर
भवसागर से पार हो जायु
लेकर तेरा नाम
ऐसी सुबह न आए
न आए ऐसी श्याम

Tuesday 21 July 2015

आती है दिवाली तो झूम उठता हूँ मै.......

ॐ साँई राम जी


क्यों न मनाऊँ मै हर दिन एक त्यौहार ?
क्यों करता रहूँ मै खुशियों का इंतजार ?
आती है दिवाली तो झूम उठता हूँ मैं
रौशनी देती है खुशियों का एहसास
वो चार दिन बजते हैं मन मे पटाखे
सारा जग लगता है जैसे हो अपने पास
होली के रंग, ज़िन्दगी के इन्द्रधनुष
उल्ल्हास देते हैं, अपने हो या पराये
कुदरत के दिये हुए वो हसीन लम्हे
जैसे अपने साथ हर्ष उल्ल्हास लाये
वो हर त्यौहार, लाता है खुशियों का सन्देश
गुड़ी पडवा, पोंगल, राखी या हो कोई जन्मदिन
इंतज़ार रहता है, उन हसीन पलों का
कैसे बिताऊँ मैं वो बीच के बाकि दिन ?
अब मै जीऊँगा हर पल, हर दिन
न होऊंगा किसी दिन के लिए बेक़रार
क्यों न मनाऊँ मै हर दिन एक त्यौहार ?
क्यों करता रहूँ मै खुशियों का इंतजार ?

Monday 20 July 2015

जब भी सांई मैने तुझे है पुकारा.................

ॐ साँई राम


जब जब देखूं मैं तेरी आँखों में साँई,
लगता है ये कुछ तो बोल रही है,
मेरी आँखों की नमी तेरी आँखों में साँई,
लगता है राज़ ये कुछ तो खोल रही है
साँई तुझसे एक मुलाकात पर लुटा दूँ,
मैं सारी दुनिया की दौलतें,
पर ये भी तो सच है मेरे साँई,
इस मुलाकात का तो कोई मोल नहीं है,
मेरी आँखों की नमी............
जब भी साँई मैने तुझे है पुकारा,
तेरी प्रीत ने दिया है हर मोङ पर सहारा,
मेरी प्रीत को शायद लगता है साँई,
अब तेरी प्रीत भी तोल रहे है,
मेरी आँखों की नमी............
सहना पङा है तुझ को भी मेरी,
खातिर बहुत कुछ साँई,
ना छुपा पाया तूँ भी कुछ मुझ से साँई,
तेरी आँखें हर पोल खोल रही है,
मेरी आँखों की नमी............
रंग गया है लगता है तूँ भी साँई,
प्रीत क कुछ अज़ब ही रंग है,
रंग ले मुझको भी इस रंग में साँई,
तेरी "सुधा" कब से ये रंग घोल रही है

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.