शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday 31 January 2023

श्री गुरु रामदास जी जीवन-परिचय

ॐ सांई राम जी


श्री गुरु रामदास जी जीवन-परिचय

 

प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): 24 सितम्बर 1534
Parkash Ustav (Birth date):  September 24, 1534 
पिता: बाबा हरि दास
Father: Baba Hari Das 
माँ: माता दया कौर
Mother: Mata Daya Kaur 
महल (पति या पत्नी): बीबी भानी
Mahal (spouse): Bibi Bhani 
साहिबज़ादे (वंश): प्रिथी चंदमहादेव और अर्जुन देव
Sahibzaday (offspring): Prithi Chand, Mahadev and Arjun Dev 
ज्योति ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): गोइंदवाल में सितम्बर 1581
Joti Jyot (ascension to heaven): September 1, 1581 at Goindwal 


श्री गुरु रामदास जी  का जन्म श्री हरिदास मल जी सोढी व माता दया कौर जी की पवित्र कोख से कार्तिक वदी संवत 1561 को बाज़ार चूना मंडी लाहौर में हुआइनके बचपन का नाम जेठा जी थाबालपन में ही इनकी माता दया कौर जी का देहांत हो गयाजब आप सात वर्ष के हुए तो आप के पिता श्री हरिदास जी भी परलोक सिधार गएइस अवस्था में आपको आपकी नानी अपने साथ बासरके गाँव में ले गईबासरके आपके ननिहाल थेयहाँ आकर आप भी अन्य क्षत्री बालकों की तरह घुंगणियाँ (उबले हुए चने) बेचते थेजब श्री गुरु अमरदास जी चेत्र सुदी संवत 1608 में गुरुगद्दी पर आसीन हुए तो आप जेठा जी का और भी ख्याल रखते थेआपकी सहनशीलतानम्रता व आज्ञाकारिता के भाव देखकर गुरु अमरदास जी ने अपनी छोटी बेटी की शादी 22 फागुन संवत 1610 को जेठा जी (श्री गुरु रामदास जी) से कर दीश्री रामदास जी के घर तीन पुत्र पैदा हुए: 

· श्री बाबा प्रिथी चँद जी संवत 1614 में 

· श्री बाबा महादेव जी संवत 1617 में 

· श्री (गुरु) अर्जन देव जी वैशाख 1620 में 

विवाह के बाद भी श्री (गुरु) रामदास जी पहले की तरह ही गुरु घर के लंगर और संगत की सेवा में लगे रहते|

बीबी भानी अपने गुरु जी की बहुत सेवा करतीप्रातःकाल उठकर अपने गुरु पिता को गरम पानी के साथ स्नान कराती और फिर गुरुबाणी का पाठ करके लंगर में सेवा करतीएक दीन बीबी ने देखा कि चौकी का पावा टूट गया है जिसपर बैठकर गुरु जी स्नान करते हैंउस पावे के नीचे बीबी ने अपना हाथ रख दिया ताकि गुरु जी के वृद्ध शरीर को चोट ना लगेबीबी के हाथ में पावे का कील लग गया और खून बहने लगाजब गुरु जी स्नान करके उठे तो बीबी से बहते खून का कारण पूछाबीबी ने सारी बात गुरु जी को बताईबीबी की बात सुनकर गुरु जी प्रसन्न हो गए और आशीर्वाद देने लगे कि संसार में आपका वंश बहुत बढ़ेगा जिसकी सारा संसार पूजा करेगा|

Monday 30 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी ज्योति - ज्योत समाना

ॐ सांई राम जी 



श्री गुरु अमर दास जी ज्योति - ज्योत समाना

अपने अंतिम समय को नजदीक अनुभव करके श्री गुरु अमरदास जी ने गुरुगद्दी का तिलक श्री रामदास जी को देकर सब संगत को आप जी ने उनके चरणी लगाया|इसके पश्चात् परिवार व सिखों को हुक्म मानने का उपदेश दिया जो बाबा सुन्दर जीबाबा नन्द के पोत्र ने इसका वर्णन करके श्री गुरु अर्जुन देव जी को सुनाया-
रामकली सदु
१ ओंकार सतिगुरु परसादि||

जगि दाता सोइि भगति वछ्लु तिहु लोइि जीउ||
गुर सबदि समावए अवरु न जाणै कोइि जीउ||
अवरो न जाणहि सबदि गुर के एकु नामु धिआवहे||
परसादि नानक गुरु अंगद परम पदवी पावहे||
आइिआ ह्कारा चलणवारा हरि राम नामि समाइिआ||
जगि अमरू अटलु अतोलु ठाकरू भगति ते हरि पाइिआ||||
इस प्रकार सबको धैर्य और हुक्म मानने का वचन करके गुरु जी ने भादरव सुदी पूर्णिमा संवत १६६१ को अपने परलोक गमन कि तयारी कर लीसंगत को वाहिगुरू का सुमिरन व शब्द कितन करने कि आज्ञा करके आप कुश के आसन पर सफ़ेद चादर तान कर लेट गयेशरीर त्याग कर अकाल पुरख के चरणों में जा पहुँचे|


कुल आयु व गुरुगद्दी का समय (Shri Amar Das Ji Total Age and Ascension to Heaven)


श्री गुरु अमरदास जी २२ साल ५ महीने और ११ दिन गुरुगद्दी पर आसीन रहे|

आप ६५ साल ३ महीने और २३ दिन इस जगत में शरीर करके सुशोभित रहे|

Sunday 29 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी–साखियाँ - मृत राजकुमार को जीवित करना

ॐ सांई राम जी


श्री गुरु अमर दास जीसाखियाँ - मृत राजकुमार को जीवित करना

एक दिन बल्लू आदि सिखो ने गुरु जी से बिनती की महाराज! अनेक जातियों के लोग यहाँ दर्शन करने आतें हैं पर उनके रहने के लिए कोई खुला स्थान नहीं हैइसलिए कोई खुला माकन बनाना चाहिएयह विनती सुनकर गुरु जी ने बाबा बुड्डा जी व अपने भतीजे सावण मल के साथ पांच सिखों को रियासत हरीपुर के राजा के पास भेजा और कहा वहाँ से मकानों के लिए लकड़ी के गठे बांधकर ब्यास नदी के रास्ते से भेजने का प्रबंध करोसावण मल ने कहा महाराज! पहाड़ी लोग गुरु की पूजा करने वाले नहीं हैं वे मूर्ति पूजक हैंलकड़ी खरीदने के लिए बहुत सा धन चाहिएगुरु जी ने कहा कि सब शक्तियाँ ही आपके अधीन होंगी तुम जिस तरह भी चाहोगे उनका प्रयोग करके राजा को गुरु घर का प्रेमी बना लेना फिर वह अपने आप ही आपकी जरूरत को पूरा कर देगायह बात कहकर गुरु जी ने अपने हाथ का रुमाल सावण मल को देते हुए कहा कि इसको हाथ में पकड़कर तुम जी कुछ भी चाहोगे वो हो जायेगाआपकी इच्छा यह रूमाल पूरी करेगारूमाल लेकर सावण मल अपने साथ पांच सिखो को हरीपुर ले गयाउस दिन एकादशी का व्रत था जिसमे राजे की तरफ से आज्ञा थी कि कोई अन्न को हाथ ना लगायेपरन्तु सावण मल और उसके साथियों ने प्रसाद तैयार करके खाया और आने वाले को भी दियाराजे को खबर हुई तो उसने अन्न खाने व व्रत ना रखने का कारण पूछासावण मल ने कहा गुरु जी का लंगर सदैव ही चलता रहता हैवह किसी भी तरह के भ्रमों में विश्वाश नहीं रखतेयह उत्तर सुनकर राजा के गुरु एक बैरागी साधु ने कहा इनको कैद कर लोअपने गुरु के कहने पर राजे ने सावण मल को कैद कर लिया|

दूसरे ही दिन राजे के पुत्र को हैजा हो गया और वह मृत्यु को प्राप्त हो गयामंत्री ने कहा आपने गुरु के निर्दोष सिख को कैद किया हैयह उन्ही के निरादर का फल है जिससे राजकुमार को मौत हासिल हुई हैशीघ्र ही कैद से निकालकर क्षमा मांगोराजे ने ऐसा ही किया तब सावण मल ने कहा अगर राजा गुरु का सिख बन जाये तो मैं उसके पुत्र को जीवित कर दूँगाजब राजे को इस बात का पता लगा तो उसने कहा अगर मेरा पुत्र जीवित हो गया तो मैं और मेरा परिवार गुरु जी के सिख बन जायेगेंजब सावण मल को महल में बुलाया गया तब सावण मल ने राजे को कहा आप चुपचाप बैठकर सत्य नाम का स्मरण करो और रोना - धोना बंद कर दोइसके पश्चात सावण मल ने जपुजी साहिब का पाठ मृत लड़के के पास जाकर करना शुरू कर दिया और गुरु जी के रूमाल का कोना धोकर लड़के के मुँह में डाला और फिर रूमाल पकड़कर उसके सिर पर सत्य नाम कहते हुए घुमाया तो राजकुमार उठ कर बैठ गयागुरु जी के ऐसे कौतक को देखकर राजा व रानी सावण मल के चरणों में गिर पड़ेउसने सावण मल को बहुत सा धन और वस्त्र भी भेंट कियेइसके पश्चात सारे रियासत के लोग ही गुरु के सिख बन गये|

दो चार दिन तो खुशी में ही बीत गयेतो एक दिन राजे ने सावण मल को यहाँ आने का करण पूछासावण मल ने कहामहाराज! ब्यास नदी के किनारे गोइंदवाल नगर में गुरु अमरदास जी रहतें हैं उनके दर्शन करने के लिए दूर दूर से सिख सेवक आते हैंउनके लिए मकान बनवाने के लिए बहुत सी लकड़ी की जरूरत हैराजे ने उसी समय अपने आदमियों को हुकुम दिया कि मकानों में काम आने वाली दियार आदि लकड़ी काटकर उनके बेड़े पर बांधकर ब्यास में तैरा दोइस प्रकार बहुत सी लकड़ी गोइंदवाल पहुँच गईउसी समय सावण मल को गुरु जी की बात याद आ गई और ऐसे कौतक को देखकर वह मन ही मन गुरु की उपमा करने लगे|


Saturday 28 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी–साखियाँ - सावण मल के अहंकार को तोड़ना

ॐ सांई राम जी


श्री गुरु अमर दास जीसाखियाँ - सावण मल के अहंकार को तोड़ना

गुरु अमरदास जी ने सावण मल को लकड़ी की जरूरत पूरी होने के पश्चात गोइंदवाल वापिस बुलायापरन्तु सावण मल मन ही मन सोचने लगा अगर मैं चला गया तो गुरु जी मुझसे वह रुमाल ले लेंगे जिससे मृत राजकुमार जीवित हुआ थाइससे मेरी कोई मान्यता नहीं रहेगीसारी शक्ति वापिस चली जायेगीअच्छा तो यही रहेगा कि मैं गोइंदवाल ही ना जाऊँऐसा विचार मन में आते ही सावण मल ने गुरु की आज्ञा का उलंघन कर दियागुरु जी ने उसकी सारी शक्ति वापिस खींच लीशक्ति चले जाने से सावण मल बहुत पछताया और अपनी भूल की क्षमा माँगने के लिए गोइंदवाल जाने को तैयार हो गयाइस प्रकार गुरु घर का निरादर करके सावण मल शक्तियों से भी हाथ धो बैठा|

जिस शक्ति के जाने के भय से वह रियासत को नहीं छोड़ रहा था गुरु जी ने उसके उसी रियासत में बैठे ही वह शक्ति उससे छीन ली और उसके अहंकार को भी तोड़ दिया|

Friday 27 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - एक माई का पुत्र जीवित करना

 ॐ सांई राम जी 



श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - एक माई का पुत्र जीवित करना  

एक विधवा माई जो की गोइंदवाल में रहती थी उसका पुत्र बुखार से मर गयावह रात्रि से समय ऊँची ऊँची रोने लगीउसका ऐसा विर्लाप सुनकर गुरु अमरदास जी माई के घर गये और अपने चरण बच्चे के माथे पर धरेगुरु जी के चरण माथे पर लगते ही बेटा जीवित हो गयागुरु जी ने अपने सेवक बल्लू को कहा कि मरे हुए को जिन्दा करना इश्वर के हुकम के विरुद्ध है इस करण आगे से जब तक हमारा शरीर रहेगा तब तक कोई बच्चा माता - पिता के सामने नहीं मरेगा|

ऐसा वचन करके गुरु जी अपने आसन पर सुशोभित हो गये|

Thursday 26 January 2023

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 42 - महासमाधि की ओर

 ॐ साँई राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साँईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , 
हम प्रत्येक साँईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साँईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साँईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम  घर घर तक श्री साँईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साँईं चरणों में क्षमा याचना करते है...



श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 42 - महासमाधि की ओर
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भविष्य की आगाही – रामचन्द्र दादा पाटील और तात्या कोते पाटील की मृत्यु टालना – लक्ष्मीबाई शिन्दे को दान – अन्तिम क्षण ।

बाबा ने किस प्रकार समाधि ली, इसका वर्णन इस अध्याय में किया गया है ।

प्रस्तावना
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गत अध्यायों की कथाओं से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि गुरुकृपा की केवल एक किरण ही भवसागर के भय से सदा के लिये मुक्त कर देती है तथा मोक्ष का पथ सुगम करके दुःख को सुख में परिवर्तित कर देती है । यदि सदगुरु के मोहविनाशक पूजनीय चरणों का सदैव स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे समस्त कष्टों और भवसागर के दुःखों का अन्त होकर जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा हो जायेगा । इसीलिये जो अपने कल्याणार्थ चिन्तित हो, उन्हें साई समर्थ के अलौकिक मधुर लीलामृत का पान करना चाहिये । ऐसा करने से उनकी मति शुद्घ हो जायेगी । प्रारम्भ में डाँक्टर पंडित का पूजन तथा किस प्रकार उन्होंने बाबा को त्रिपुंड लगाया, इसका उल्लेख मूल ग्रन्थ में किया गया है । इस प्रसंग का वर्णन 11 वें अध्याय में किया जा चुका है, इसलिये यहाँ उसका दुहराना उचित नहीं है ।



भविष्य की आगाही
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पाठको । आपने अभी तक केवल बाबा के जीवन-काल की ही कथायें सुनी है । अब आप ध्यानपूर्वक बाबा के निर्वाणकाल का वर्णन सुनिये । 28 सितम्बर, सन् 1918 को बाबा को साधारण-सा ज्वर आया । यह ज्वर 2-3 दिन ततक रहा । इसके उपरान्त ही बाबा ने भोजन करना बिलकुल त्याग दिया । इससे उनका शरीर दिन-प्रतिदिन क्षीण एवं दुर्बल होने लगा । 17 दिनों के पश्चात् अर्थात् 18 अक्टूबर, सन् 1918 को 2 बजकर 30 मिनट पर उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया । (यह समय प्रो. जी. जी. नारके के तारीख 5-11-1918 के पत्र के अनुसार है, जो उन्होंने दादासाहेब खापर्डे को लिखा था और उस वर्ष की साईलीलापत्रिका के 7-8 पृष्ठ (प्रथम वर्ष) में प्रकाशित हुआ था) । इसके दो वर्ष पूर्व ही बाबा ने अपने निर्वाण के दिन का संकेत कर दिया था, परन्तु उस समय कोई भी समझ नहीं सका । घटना इस प्रकार है । विजया दशमी के दिन जब लोग सन्ध्या के समय सीमोल्लंघनसे लौट रहे थे तो बाबा सहसा ही क्रोधित हो गये । सिर पर का कपड़ा, कफनी और लँगोटी निकालकर उन्होंने उसके टुकड़े-टुकड़े करके जलती हुई धूनी में फेंक दिये । बाबा के द्घारा आहुति प्राप्त कर धूनी द्घिगुणित प्रज्वलित होकर चमकने लगी और उससे भी कहीं अदिक बाबा के मुख-मंडल की कांति चमक रही थी । वे पूर्ण दिगम्बर खड़े थे और उनकी आँखें अंगारे के समान चमक रही थी । उन्होंने आवेश में आकर उच्च स्वर में कहा कि लोगो । यहाँ आओ, मुझे देखकर पूर्ण निश्चय कर लो कि मैं हिन्दू हूँ या मुसलमान । सभी भय से काँप रहे थे । किसी को भी उनके समीप जाने का साहस न हो रहा था । कुछ समय बीतने के पश्चात् उनके भक्त भागोजी शिन्दे, जो महारोग से पीड़ित थे, साहस कर बाबा के समीप गये और किसी प्रकार उन्होंने उन्हें लँगोटी बाँध दी और उनसे कहा कि बाबा । यह क्या बात है । देव आज दशहरा (सीमोल्लंघन) का त्योहार है । तब उन्होंने जमीन पर सटका पटकते हुए कहा कि यह मेरा सीमोल्लंघन है । लगभग 11 बजे तक भी उनका क्रोध शान्त न हुआ और भक्तों को चावड़ी जुलूस निकलने में सन्देह होने लगा । एक घण्टे के पश्चात् वे अपनी सहज स्थिति में आ गये और सदी की भांति पोशाक पहनकर चावड़ी जुलूस में सम्मिलित हो गये, जिसका वर्णन पूर्व में ही किया जा चुका है । इस घटना द्घारा बाबा ने इंगित किया कि जीवन-रेखा पार करने के लिये दशहरा ही उचित समय है । परन्तु उस समय किसी को भी उसका असली अर्थ समझ में न आया । बाबा ने और भी अन्य संकेत किये, जो इस प्रकार है :-


रामचन्द्र दादा पाटील की मृत्यु टालना
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कुछ समय के पश्चात् रामचन्द्र पाटील बहुत बीमार हो गये । उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था । सब प्रकार के उपचार किये गये, परन्तु कोई लाभ न हुआ और जीवन से हताश होकर वे मृत्यु के अंतिम क्षणों की प्रतीक्षा करने लगे । तब एक दिन मध्याहृ रात्रि के समय बाबा अनायास ही उनके सिरहाने प्रगट हुए । पाटील उनके चरणों से लिपट कर कहने लगे कि मैंने अपने जीवन की समस्त आशाये छोड़ दी है । अब कृपा कर मुझे इतना तो निश्चित बतलाइये कि मेरे प्राण अब कब निकलेंगे । दया-सिन्धु बाबा ने कहा कि घबराओ नहीं । तुम्हारी हुँण्डी वापस ले ली गई है और तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे । मुझे तो केवल तात्या का भय है कि सन् 1918 में विजया दशमी के दिन उसका देहान्त हो जायेगा । किन्तु यह भेद किसी से प्रगट न करना और न ही किसी को बतलाना । अन्यथा वह अधिक बयभीत हो जायेगा । रामचन्द्र अब पूर्ण स्वस्थ हो गये, परन्तु वे तात्या के जीवन के लिये निराश हुए । उन्हें ज्ञात था कि बाबा के शब्द कभी असत्य नहीं निकल सकते और दो वर्ष के पश्चात ही तात्या इस संसर से विदा हो जायेगा । उन्होंने यह भेद बाला शिंपी के अतिरिक्त किसी से भी प्रगट न किया । केवल दो ही व्यक्ति – रामचन्द्र दादा और बाला शिंपी तात्या के जीवन के लिये चिन्ताग्रस्त और दुःखी थे ।

रामचन्द्र ने शैया त्याग दी और वे चलने-फिरने लगे । समय तेजी से व्यतीत होने लगा । शके 1840 का भाद्रपद समाप्त होकर आश्विन मास प्रारम्भ होने ही वाला था कि बाबा के वचन पूर्णतः सत्य निकले । तात्या बीमार पड़ गये और उन्होंने चारपाई पकड़ ली । उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि अब वे बाबा के दर्शनों को भी जाने में असमर्थ हो गये । इधर बाबा भी ज्वर से पीड़ित थे । तात्या का पूर्ण विश्वास बाबा पर था और बाबा का भगवान श्री हरि पर, जो उनके संरक्षक थे । तात्या की स्थिति अब और अधिक चिन्ताजनक हो गई । वह हिलडुल भी न सकता था और सदैव बाबा का ही स्मरण किया करता था । इधर बाबा की भी स्थिति उत्तरोत्तर गंभीर होने लगी । बाबा द्घार बतलाया हुआ विजया-दसमी का दिन भी निकट आ गया । तब रामचन्द्र दादा और बाला शिंपीबहुत घबरा गये । उनके शरीर काँप रहे थे, पसीने की धारायें प्रवाहित हो रही थी, कि अब तात्या का अन्तिम साथ है । जैसे ही विजया-दशमी का दिन आया, तात्या की नाड़ी की गति मन्द होने लगी और उसकी मृत्यु सन्निकट दिखलाई देने लगी । उसी समय एक विचित्र घटना घटी । तात्या की मृत्यु टल गई और उसके प्राण बच गये, परन्तु उसके स्थान पर बाबा स्वयं प्रस्थान कर गये और ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे कि परस्पर हस्तान्तरण हो गया हो । सभी लोग कहने लगे कि बाबा ने तात्या के लिये प्राण त्यागे । ऐसा उन्होंने क्यों किया, यह वे ही जाने, क्योंकि यह बात हमारी बुद्घि के बाहर की है । ऐसी भी प्रतीत होता है कि बाबा ने अपने अन्तिम काल का संकेत तात्या का नाम लेकर ही किया था ।

दूसरे दिन 16 अक्टूबर को प्रातःकाल बाबा ने दासगणू को पंढरपुर में स्वप्न दिया कि मसजिद अर्रा करके गिर पड़ी है । शिरडी के प्रायः सभी तेली तम्बोली मुझे कष्ट देते थे । इसलिये मैंने अपना स्थान छोड़ दिया है । मैं तुम्हें यह सूचना देने आया हूँ कि कृपया शीघ्र वहाँ जाकर मेरे शरीर पर हर तरह के फूल इकट्ठा कर चढ़ाओ । दासगणू को शिरडी से भी एक पत्र प्राप्त हुआ और वे अपने शिष्यों को साथ लेकर शिरडी आये तथा उन्होंने बाबा की समाधि के समक्ष अखंड कीर्तन और हरिनाम प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने स्वयं फूलो की माला गूँथी और ईश्वर का नाम लेकर समाधि पर चढ़ाई । बाबा के नाम पर एक वृहद भोज का भी आयोजन किया गया ।




लक्ष्मीबाई को दान
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विजयादशमी का दिन हिन्दुओं को बहुत शुऊ है और सीमोल्लंघन के लिये बाबा द्घार इस दिन का चुना जाना सर्वथा उचित ही है । इसके कुछ दिन पूर्व से ही उन्हें अत्यन्त पीड़ा हो रही थी, परन्तु आन्तरिक रुप में वे पूर्ण सजग थे । अन्तिम क्षण के पूर्व वे बिना किसी की सहायता लिये उठकर सीधे बैठ गये और स्वस्थ दिखाई पड़ने लगे । लोगों ने सोचा कि संकट टल गया और अब भय की कोई बात नहीं है तथा अब वे शीघ्र ही नीरोग हो जायेंगे । परन्तु वे तो जानते थे कि अब मैं शीघ्र ही विदा लेने वाला हूँ और इसलिये उन्होंने लक्ष्मीबाई शिन्दे को कुछ दान देने की इच्छा प्रगट की ।

समस्त प्राणियों में बाबा का निवास
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लक्ष्मीबाई एक उच्च कुलीन महिला थी । वे मसजिद में बाबा की दिन-रात सेवा किया करती थी । केवल भगत म्हालसापति तात्या और लक्ष्मीबाई के अतिरिक्त रात को मसजिद की सीढ़ियों पर कोई नहीं चढ़ सकता था । एक बार सन्ध्या समय जब बाबा तात्या के साथ मसजिद में बैठे हुए थे, तभी लक्ष्मीबाई ने आकर उन्हे नमस्कार किया । तब बाबा कहने लगे कि अरी लक्ष्मी, मैं अत्यन्त भूखा हूँ । वे यह कहकर लौट पड़ी कि बाबा, थोड़ी देर ठहरो, मैं अभी आपके लिये रोटी लेकर आती हूँ । उन्होंने रोटी और साग लाकर बाबा के सामने रख दिया, जो उन्होंने एक भूखे कुत्ते को दे दिया । तब लक्ष्मीबाई कहने लगी कि बाबा यह क्या । मैं तो शीघ्र गई और अपने हाथ से आपके लिये रोटी बना लाई । आपने एक ग्रास भी ग्रहम किये बिना उसे कुत्ते के सामने डाल दिया । तब आपने व्यर्थ ही मुझे यह कष्ट क्यों दिया । बाबा न उत्तर दिया कि व्यर्थ दुःख न करो । कुत्ते की भूख शान्त करना मुझे तृप्त करने के बराबर ही है । कुत्ते की भी तो आत्मा है । प्राणी चाहे भले ही भिन्न आकृति-प्रकृति के हो, उनमें कोई बोल सकते है और कोई मूक है, परन्तु भूख सबकी एक सदृश ही है । इसे तुम सत्य जानो कि जो भूखों को भोजन कराता है, वह यथार्थ में मुझे ही भोजन कराता है । यह एक अकाट्य सत्य है । इस साधारम- सी घटना के द्घारा बाबा ने एक महान् आध्यात्मिक सत्य की शिक्षा प्रदान की कि बिना किसी की भावनाओं को कष्ट पहुँचाये किस प्रकार उसे नित्य व्यवहार में लाया जा सकता है । इसके पश्चात् ही लक्ष्मीबाई उन्हें नित्य ही प्रेम और भक्तिपूर्वक दूध, रोटी व अन्य भोजन देने लगी, जिसे वे स्वीकार कर बड़े चाव से खाते थे । वे उसमें से कुछ खाकर शेष लक्ष्मीबाई के द्घारा ही राधाकृष्ण माई के पास भेज दिया करते थे । इस उच्छिष्ट अन्न को वे प्रसाद स्वरुप समझ कर प्रेमपूर्वक पाती थी । इस रोटी की कथा को असंबन्ध नहीं समझा चाहिये । इससे सिदृ होता है कि सभी प्राणियों में बाबा का निवास है, जो सर्वव्यापी, जन्म-मृत्यु से परे और अमर है । बाबा ने लक्ष्मीबाई की सेवाओं को सदैव स्मरण रखा । बाबा उनको भुला भी कैसे सकते थे । देह-त्याग के बिल्कुल पूर्व बाबा ने अपनी जेब में हाथ डाला और पहले उन्होंने लक्ष्मी को पाँच रुपये और बाद में चार रुपये, इस प्रकार कुल नौ रुपये दिये । यह नौ की संख्या इस पुस्तक के अध्याय 21 में वर्णित नव विधा भक्ति की घोतक है अथवा यह सीमोल्लंघन के समय दी जाने वाली दक्षिणा भी हो सकती है । लक्ष्मीबाई एक सुसंपन्न महिला थी । अतएव उन्हें रुपयों की कोई आवश्यकता नहीं थी । इस कारण संभव है कि बाबा ने उनका ध्यान प्रमुख रुप से श्री मदभागवत के स्कन्ध 11, अध्याय 10 के श्लोंक सं. 6 की ओर आकर्षित किया हो, जिसमे उत्कृष्ट कोटि के भक्त के नौ लक्षणों का वर्णन है, जिनमें से पहले 5 और बाद मे 4 लक्षणों का क्रमशः प्रथम और द्घितीय चरणों में उल्लेख हुआ है । बाबा ने भी उसी क्रम का पालन किया (पहले 5 और बाद में 4, कुल 9) केवल 9 रुपये ही नहीं बल्कि नौ के कई गुने रुपये लक्ष्मीबाई के हाथों में आये-गये होंगे, किन्तु बाबा के द्घारा प्रद्त्त यह नौ (रुपये) का उपहार वह महिला सदैव स्मरण रखेगी ।



अंतिम क्षण
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बाबा सदैव सजग और चैतन्य रहते थे और उन्होंने अन्तिम समय भी पूर्ण सावधानी से काम लिया । अपने भक्तों के प्रति बाबा का हृदय प्रेम, ममता यामोह से ग्रस्त न हो जाय, इस कारण उन्होंने अन्तिम समय सबको वहाँ से चले जाने का आदेश दिया । चिन्तमग्न काकासाहेब दीक्षित, बापूसाहेब बूटी और अन्य महानुभाव, जो मसजिद में बाबा की सेवा में उपस्थित थे, उनको भी बाबा ने वाड़े में जाकर भोजन करके लौट आने को कहा । ऐसी स्थिति में वे बाबा को अकेला छोड़ना तो नहीं चाहते थे, परन्तु उनकी आज्ञा का उल्लंघन भी तो नहीं कर सकते थे । इसलिये इच्छा ना होते हुए भी उदास और दुःखी हृदरय से उन्हें वाड़े को जाना पड़ा । उन्हें विदित था कि बाबा की स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है और इस प्रकार उन्हें अकेले छोड़ना उचित नहीं है वे भोजन करने के लिये बैठे तो, परन्तु उनके मन कहीं और (बाबा के साथ) थे । अभी भोजन समाप्त भी न हो पाया था कि बाबा के नश्वर शरीर त्यागने का समाचार उनके पास पहुँचा और वे अधपेट ही अपनी अपनी थाली छोड़कर मसजिद की ओर भागे और जाकर देखा कि बाबा सदा के लिये बयाजी आपा कोते की गोद में विश्राम कर रहे है । न वे नीचे लुढ़के और न शैया पर ही लेटे, अपने ही आसन पर शान्तिपूर्वक बैठे हुए और अपने ही हाथों से दान देते हुए उन्होंने यह मानव-शरीर त्याग दिया । सन्त स्वयं ही देह धारण करते है तथा कोई निश्चित ध्येय लेकर इस संसार में प्रगट होते है ओर जब देह पूर्ण हो जाता है तो वे जिस सरलता और आकस्मिकता के साथ प्रगट होते है, उसी प्रकार लुप्त भी हो जाया करते है ।


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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Wednesday 25 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - रानी का पागलपन दूर करना

  ॐ सांई राम जी


श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - रानी का पागलपन दूर करना

सावण मल की प्रेरणा से हरीपुर के राजा व रानी गुरु अमरदास जी के दर्शन करने के लिए गोइंदवाल आएसावण मल ने माथा टेककर गुरु जी से कहा कि महाराज! हरीपुर के राजा व रानी आपके दर्शन करने के लिए आए हैं|

गुरु जी ने आगे से कहा राजा पहले लंगर से प्रसाद खाकर हमारे पास आएअगर उसकी रानियाँ भी आना चाहे तो पहले व सफेद वस्त्र पहनकर आएयाद रहे ना ही कोई रंगदार वस्त्र पहने और ना ही कोई मूँह ढ़केराजा व रानी ने गुरु जी का आज्ञा का पूरी तरह से पालन कियापरन्तु एक रानी ने गुरु जी के पास बैठे हुए एक सिख को देखकर घूँघट निकाल लियागुरु जी उसको देखकर कहने लगे ये पागल किसलिए आई है क्या इसको हमारे दर्शन करने अच्छे नहीं लगतेआप जी के ऐसे वचन सुनकर रानी ने अपनी सुध - बुध खो ली व चीखें मारती हुई बाहर को भाग गईयह देखकर राजा बड़ा चिंतित हुआ|

गुरु जी ने सावण मल को वह वर शक्ति फिर प्रदान कर दी और कहा कि हरीपुर जाकर गुरु सिखी का प्रचार करोफिर कभी इस शक्ति का अहंकार ना करनाउसी पागल रानी की शादी गुरु जी ने अपने एक सिख सचन के साथ कर दी जो कि लंगर के लिए लकडियां लाता थागुरु जी ने अपनी कृपा दृष्टि से पागल रानी को भी ठीक कर दिया|

Tuesday 24 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - भाई जग्गे को निहाल करना

ॐ सांई राम जी 


श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - भाई जग्गे को निहाल करना

एक दिन भाई जग्गा जुरू जी के दर्शन करने आया| उसने प्राथना कि सच्चे पादशाह जी मुझे एक दिन जोगी ने बताया कि कल्याण तभी हो सकता है अगर घर - बाहर, स्त्री - पुत्र आदि का त्याग किया जाये जो कि बन्धन हैं|

इसके बाद ही मेरे से उपदेश लेना, मगर मैं किसी भी वास्तु का त्याग नहीं कर पाया| अब आप ही मुझ पर कृपा करे और बताये कि मुक्ति किस तरह मिल सकती है? गुरु जी ने उसका श्रधा व प्रेम भाव देखा और कहा यदि घर - बाहर, स्त्री - पुत्र छोड़ने से ही मुक्ति मिलती तो फिर शहरो और नगरों में आकर क्यों मांगते? गुरुसिख गृहस्थ में ही रह कर मुक्ति प्राप्त कर लेता है| गृहस्थ धर्म ही सबसे अच्छा है क्योंकि इसमें वह खुद कमाई करके खाता है और दान करता है और जो साधु ग्रहस्थियो से मांगकर खाता है वह अपने जप तप की कमाई में कमी डाल देता है, ग्रहस्थी जो कि अन्न वस्त्र कि सेवा करता है उसकी कमाई से भी हिस्सा ले लेता है|

हे भाई जग्गा! शरीर के साथ सन्तों की सेवा और मन से हरि की भक्ति करो| इस तरह शीघ्र ही कल्याण हो जायेगा| इस प्रकार गुरु जी ने मुक्ति का मार्ग सभी बंधनों को तोड़ कर नहीं अपितु ग्रहस्थ आश्रम में रहते हुए ही मुक्ति को प्राप्त करना बताया|

Monday 23 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - भक्ति के प्रकार

ॐ साँई राम जी



 श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - भक्ति के प्रकार


भाई खानू, मईया और गोबिंद गुरु अमरदास जी के पास आए| इन्होने प्रार्थना की हमें भक्ति का उपदेश दो ताकि हमारा कल्याण हो जाये| गुरु जी ने कहा भक्ति तीन प्रकार की होती है-नवधा,प्रेमा और परा|

नवधा भक्ति :-
१. गुरु जी के वचनों को श्रद्धा सहित सुनकर दिल में बसाना|
२. कथा कीर्तन के द्वारा परमात्मा के गुन गायन करना|
३. सत्यनाम का सुमिरन श्वास-२ करना|
४. परमत्मा व गुरु चरणों का धयान करना व सन्तो का चरण धोकर चरणामृत लेना|
५. पवित्र भोजन करना और गुरु निमित देना|
६. गुरु स्थल पर जा कर नमस्कार करनी और परिकर्मा करनी|
७. धूप,दीप व फूल माला चडाना|
८. परमेश्वर को मालिक व खुद को सेवक जानना|
९. अपने मन को स्थिर रखना| प्रभु के हुकम को अच्छा संयम कर मानना|
१०. पदार्थो की माया छोड़कर सब कुछ प्रभु को जानना|

इस नवधा भक्ति का एक गुण भी धारण हो जाये तो बंदे का उद्धार हो सकता है| मगर सभी गुण धारण करके बंदे का कल्याण हो सकता है|

प्रेमा भक्ति :-
जिस प्रकार वृक्ष का फल पहले हरा होता है, उसका स्वाद भी कड़वा होता है फिर यह खट्टा हो जाता है और फिर वृक्ष से रस लेकर रसीला हो जाता है मीठा बन जाता है| इसी तरह ही प्रेमा भक्ति वाले पुरुष का पहले रोने का जी करता है उसको अपने प्रियतम के दर्शनों की लालसा बढती है| वह यह समझकर कि मित्र से बिछडकर दुःख पा रहा है और गद् गद् हो जाता है| कभी परमेश्वर के गुण गाता है और कभी चुप धारण कर लेता है| इस अवस्था में वह सांवला हो जाता है| जैसे जैसे प्रेम बढता है खाना थोड़ा होता जाता है, रात दिन प्रेम में मस्त रहता है| मुँह का रंग पीला हो जाता है| जब सत्य संग ज्यादा हो जाता है तो पूरण प्रभु को सब जगह देखता है| इस देशा में मुख का रंग लाल हो जाता है, मन ज्ञानमय हो जाता है|

परा भक्ति :-
उच्च अवस्था में पहुँच कर परा भक्ति शुरू होती है| तब पुरुष ब्रहम स्वरुप हो जाता है, यही कल्याण का स्वरुप है| इस प्रकार तीनों ही आनंद अवस्था भक्ति को प्राप्त हुए|

Sunday 22 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - काबुल की एक पति-व्रता माई

ॐ साँई राम जी


 श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - काबुल की एक पति-व्रता माई


बाउली की कार सेवा में भाग लेने के लिए सिख बड़े जोश के साथ दूर दूर से आने लगे| इस तरह काबुल में एक प्रेमी सिख की पति व्रता स्त्री को पता लगा|

वह प्रातः काबुल से चलकर कार सेवा करती और सायंकाल काबुल पहुँच जाती| कुछ सिखो ने माई को सेवा करते हुए हाथ से संकेत करते देखा| कुछ दिन इसी तरह ही बीत गये तो एक दिन सिखो ने गुरु जी को कहा महाराज! एक माई रोज सुबह संगतो के साथ सेवा करती है और रात के समय देखते ही देखते लुप्त हो जाती है| एक और बात भी यह माई करती है कि कार सेवा करती करती अपना हाथ पलकर पीछे कर लेती है ऐसा लगता है कि जैसे किसी चीज़ को हिला रही हो| हमें समझ नहीं आता कि यह माई कौन है|

गुरु अमरदास जी ने माई को अपने पास बुलाया और पूछा कि तुम कहाँ से आती हो? और काम करते करते हाथ से किस चीज़ को हिलती हो? माई ने बताया में सुबह काबुल से आती हूँ और कर सेवा करके शाम को घर चली जाती हूँ| गुरु जी ने कहा यह शक्ति तुम कहाँ से लाईहो माई ने कहा महाराज! यह शक्ति मैंने अपने पति व्रता धर्म से पाई है| इसी के बल से में काबुल से आती हूँ और वापिस चली जाती हूँ| सुबह आते समय में अपने छोटे बच्चे को पंघूढ़े में सुला आती हूँ और यहाँ हाथ मारकर पंघूढ़े को हिलती रहती हूँ| जिससे यह सोया रहता है और खेलता ही रहता है|

माई से यह सुनकर सिखो ने उसे धन्ये माना और गुरु जी ने कुश होकर पति - पत्नी के लोक परलोक सुहेला कर दिया|

Saturday 21 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी - साखियाँ - पदम रेखा बताने वाले पंडित को वरदान

ॐ साँई राम जी

 

श्री गुरु अमर दास जी - साखियाँ - पदम रेखा बताने वाले पंडित को वरदान


हरिद्वार से २०वी तीर्थ यात्रा करके पंडित दुर्गा प्रसाद ने जब गुरु अमरदास जी के पाँव में पदम देखकर कहा था कि आपके शीश पर जल्दी ही छत्र झूलेगा,जब उसने यह सुना कि आप गुरुगद्दी पर आसीन हुए है तो अपना मुँह माँगा वरदान लेने के लिए गुरु अमरदास जी के पास आये|उन्होंने गुरु जी को अपना वरदान पूरा करने की मांग की| गुरु जी कहा, हम अपना दिया हुआ वचन अवश्य पूरा करेंगे,जो मांगना है मांग लीजिए|पंडित ने खुश होकर कहा,महाराज!अगर मै संसारी सुख मांगूगा तो नरको का भागी बनूँगा और अगर परलोक का सुख माँग लूँगा तो यहाँ संसार में गरीबी के दिन काट कर दुखी रहूँगा| इसलिए आप मुझे दोनों लोकों के सुख वरदान में दीजिए|आप तो समर्थ है|गुरु जी उसकी बुद्धिमता पर बहुत प्रसन्न हुए और हँस कर वचन किया-अच्छा पंडित जी!आप को दोनों लोकों का सुख प्राप्त होगा| आप यहाँ भी सांसारिक सुख भोगोगे और परलोक में भी बैकुंठ धाम में निवास करोगे| इस प्रकार लोक-परलोक के सुखों का वर लेकर पंडित खुशी-२ गुरु जी की शलाघा गाता हुआ घर को चल दिया|

Friday 20 January 2023

श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - लंगड़े की टांग ठीक करनी

ॐ सांँई राम जी



श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - लंगड़े की टांग ठीक करनी

तलवंडी का रहने वाला एक लंगड़ा क्षत्री सिख गुरु जी के भोजन के लिए बड़ी श्रधा के साथ दही लाता था| एक दिन रास्ते में गाँव के चौधरी ने उसकी बैसाखी छीन ली और मजाक उड़ाने लगा कि रोज दुखी होकर अपने गुरु के लिए दही लेकर जाता है,तेरा गुरु तेरी टांग नहीं ठीक कर सकता?सिख ने कहा मेरा गुरु बेपरवाह हें,एक क्षण में सब कुछ ठीक कर सकता है,अगर ना चाहे तो कुछ भी नहीं| उनकी अपनी इच्छा है,वे ठीक भी कर सकते है,और नहीं भी| मैंने खुद उनको कुछ नहीं कहना|अपनी बैसाखी लेकर भगत सिख वहा से निकल पड़ा| वहा गुरु जी जी थाल रखकर प्रेमी कि प्रतीक्षा कर रहें थे| दही लेकर गुरु जी ने भोजन खाया और लेट पहुँचने का कारण भी पूछा| सिख ने सारी बात गुरु जी के आगे रख दी कि किस प्रकार रास्ते में आते हुए चौधरी ने उसकी बैसाखी छीन ली और कहा कि अगर तेरा गुरु समर्थ है तो तेरी टांग क्यों नहीं ठीक कर सकता?इतना सुनते ही गुरु जी उस सिख से कहने लगे कि शाह हुसैन के पास चला जा कि मुझे गुरु जी ने यहाँ आपके पास टांग ठीक कराने के लिए भेजा है|

गुरु जी का ऐसा वचन आते ही गुरुसिख उसी और ही चल दिया जहाँ गुरु जी ने भेजा था| शाह हुसैन जी के पास पहुंचकर सिख ने वहाँ आने का कारण बताया कि आप मेरी लंगडी टांग ठीक कर दे| हुसैन ने एकदम हाथ में मोटा डंडा उठा लिया और गुस्से से कहने लगा कि यह से भाग जा नहीं तो तेरी दूसरी टांग भी तोड़ दूँगा व लंगड़ा बना दूँगा| वह सिख डंडे कि मार से डरता हुआ जल्दी से उठकर भाग पड़ा|भागते-२ उसकी दूसरी टांग भी ठीक हो गई| तब वह पीछे मुड़कर हुसैन जी के चरणों में गिर पड़ा और धन्यवाद करने लगा| हुसैन जी कहने लगे कि करने वाले गुरु जी आप है मगर बदनामी मुझे देते है| मेरी तरफ से गुरु जी को नमस्कार करनी|गुरु जी कि ऐसी रहमत को देखकर हँसते-२ गुरसिख गुरु घर कि और चल दिया|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.