शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday 31 August 2022

अब समझे सबसे बडा साई नाम |

ॐ सांई राम


अब समझे सबसे बडा साई नाम |
सबसे बडा साई नाम,
सबसे बडा साई नाम,
अब समझे सबसे बडा साई नाम !


जब से हमने तुझे दिल में बिठाया,
कोई भी दुझा अपने मन को ना भाया |
मेरे भगवान मेरे खुदा,
तेरी पूजा के सिवा,
हमे और नही कोई काम ||
अब समझे सबसे बडा साई नाम !
बागो में आये तेरे दम से बहारे ,
तेरी छाया में बंडे सुख-दुख गुजारे |
सारी दुनिया मचाये धूम,
घर-घर छोड तेरा पैगाम |
अब समझे सबसे बडा साई नाम !


ना कोई छोटा और ना कोई बडा हैं ,
तेरा मस्ताना तेरी मस्ती में पडा हैं |

तेरा दर, तेरा दरबार,
यहा जो पहुंच गया इक बार ,
फिर वो खास रहा ना आम ||
अब समझे सबसे बडा साई नाम !

Tuesday 30 August 2022

आंखे बंद करूँ या खोलूं, मुझको दर्शन दे देना

ॐ सांई राम


आंखे बंद करूँ या खोलूं
मुझको दर्शन दे देना .
दर्शन दे देना, साईं मुझे
दर्शन दे देना ..

मैं नाचीज़ हूँ बन्दा तेरा
तू सबका दाता है .
तेरे हाथ मैं सारी दुनिया
मेरे हाथ मैं क्या है ।
तुझको देखूं जिसमे एसा
दर्पण दे देना ..
आंखे बंद करूँ या .........

मेरे अन्दर तेरी लहरें
रिश्ता है सदियों का .
जैसे इक नाता होता है
सागार का नादुयों का .
करूँ साधना तेरी केवल
साधना दे देना ..
आंखे बंद करूँ या .........

हम सब हैं सितायें तेरी
हम सब राम तुम्हारे .
तेरी कथा सुनते जायेंगे
बाबा तेरे सहारे .
इस जंगल में चाहे लाखों
रावण दे देना ..
आंखे बंद करूँ या.........

मेरी मांग बड़ी साधारण
मन में आते रहियो .
हर इक साँस के पीछे अपनी
जलक दिखलाते रहियो .
नाम तेरा ले आखिर तक
वो धड़कन दे देना
आँखे बंद करूँ या .........

Monday 29 August 2022

न कोई आये न कोई जाये

ॐ सांई राम


न कोई आये न कोई जाये |
वो आये वो जाये
आते जाते, जाते आते
वो ही राह दिखाए ||


हर हरकत मैं बरकत उसका
प्यार भी उसका नफरत उसकी |
खंडहर भी वो शहर भी वो है ,
अमृत भी वो ज़हर भी वो है |
वो चाहे तो प्याला भर दे
वो चाहे तो खाली कर दे .
ताक़त वो कमजोरी भी वो
कठपुतली वो डोरी भी वो 

नाच उसकी मर्जी की धुन पर
जैसे नाच नचाये ..
न कोई आये न कोई .....

तेरे सामने गीत है उसका
तेरे पास संगीत है उसका .
तेरे सामने उसकी माला
तेरे पास तेरा रखवाला .
तेरे सामने सांज है उसके
तेरे सब राज़ है उसके .
तेरे सामने उसकी ज्योति
तेरे पास पूजा के मोती 

फिर दुनिया के नाकि धन से
काहे प्यार बढाए ..
न कोई आये न कोई .....
धरती से आकाश का रिश्ता ,
दूर का रिश्ता, पास का रिश्ता .
साग़र से नदिया का बंधन
बिजली से बरखा का बंधन .
सड़को से गलियों का नाता .
सावन के झूलों के रिश्ते
माटी के फूलों के रिश्ते .
साईं के इस जोड़-तोड़ पर
तू क्यों चैन गवाए ..
न कोई आये न कोई .....

Sunday 28 August 2022

साईं रोम रोम जीवन में तू

ॐ सांई राम


मन में तू है तन में तू, साईं रोम रोम जीवन में तू 
गीतों में तू है सुरों में तू, साईं भक्तों की साँसों में तू
साईं चरण मन छू मन छू, साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु, साईं प्रभु साईं प्रभु


साईं सूरज है चन्दा है तू, साईं यमुना तू गँगा है तू
साईं धरती है, अम्बर है तू, साईं संत भी तू साधू है तू
साईं चरण मन छू मन छू, साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु, साईं प्रभु साईं प्रभु

साईं शिव है तू हरि विष्णु है तू, साईं राम है तू श्री कृष्णा है तू
साईं दत्तगुरु सदगुरु है तू, साईं देवा है तू साईं बाबा है तू
साईं चरण मन छू मन छू, साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु, साईं प्रभु साईं प्रभु

साईं मन्दिर में मस्जिद में तू, साईं मूरत मैं समाधि में तू
साईं शिर्डी के कण कण में तू, साईं धाम में तू आँगन में तू
साईं चरण मन छू मन छू, साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु, साईं प्रभु साईं प्रभु

साईं ज्ञान में तू विज्ञान में तू, साईं ध्यान में तू आह्वान में तू
साईं श्रद्धा में तू, पूजा में तू, साईं भक्ति में तू विनती में तू
साईं चरण मन छू मन छू, साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु, साईं प्रभु साईं प्रभु

 मन में तू है तन में तू, साईं रोम रोम जीवन में तू
गीतों में तू है सुरों में तू, साईं भक्तों की साँसों में तू
साईं चरण मन छू मन छू, साईं है मेरा प्रभु
साईं प्रभु साईं प्रभु, साईं प्रभु साईं प्रभु

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा की कृपा आप पर सदा बरसती रहे ।

Saturday 27 August 2022

साईं का नाम लिये जा

ॐ सांई राम


साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा
लिये जा लिये जा लिये जा,भक्तों का रक्षक है साईं मेरा
साईं का नाम लिये जा, बाबा का नाम लिये जा

सुनाता हूँ मैं कुछ बातें, सुनो सब ध्यान दे कर के
मेरे बाबा इक दिन बात करते थे हस करके
सभी भक्तों ने देखा उनके चेहरे पे ख़ुशी छाई
चिमटा दे के शामा को चिलम फिर उस से भरवाई
तभी इक भक्त लाया थाल भरके वो मिठाई का
उस से बाबा हस के यूं बोले क्या तेरी सगाई का
इसे है चाव शादी का ये भूखा है लुगाई का
प्रेम से थाल ये ले लो जो लाया है मिठाई का
घर में लाल पैदा हो इसको ऐसी दुआ दे दो
राख धूनी की भर के थाल में अब इसको तुम दे दो
भक्तों ने बजाई तालियाँ हसते हुये मिलके
मिठाई बाँटने बाबा लगे फिर सबको वो चल के
मिलेगी लक्ष्मी तुझको सुखी जीवन तू पायेगा
जो भूलेगा तू मालिक को तो संकट तुझ पे आएगा


सब का है वो दाता गुण तू गाये जा गाये जा जाए जा
साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा
लिये जा लिये जा लिये जा,भक्तों का रक्षक है साईं मेरा

अचानक ध्यान में खो के धूनी में हाथ दे डाला
भक्त सब थे दुखी क्यों हाथ को अपने जला डाला
देखा जल गया है हाथ उनका आज तो भारी
जो अब तक हस रहे थे मिट गई उनकी ख़ुशी सारी
कहा भक्तों ने बाबा से किया क्या आज ये तुमने
कोई नादानी भूले से अभी कुछ कर दी क्या हमने
तो बाबा हस के यूँ बोले क्या हुआ हाथ जल गया
चलो अच्छा हुआ है आज तो इक जीव बच गया
 भक्त का एक बच्चा था वो भट्टी की तरफ दौड़ा
बचाने उसको मैंने हाथ अपना था वहाँ छोड़ा


साईं नाम के प्रेम का प्याला पीये जा पीये जा पीये जा
साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा
लिये जा लिये जा लिये जा,भक्तों का रक्षक है साईं मेरा

वही इक भक्त है सच्चा मेरा ही नाम जपता है
काम लोगों का कर कर के वो अपना पेट भरता है
बहुत मुद्दत से जन्मा है अभी इक लाल उस घर में
 बचाता मैं नहीं उसको तो जल जाता वो पल भर में
ध्यान जब उस तरफ गया तो मैंने हाथ बढ़ाया
मुझे कोई गम नहीं अपना ख़ुशी है उसको बचाया


वो पूरा ध्यान दे कर के कृपा भक्तों पे करते हैं
जो उनका नाम जपता है वो उनके कष्ट करते हैं
दयालु हैं बड़े शिर्डी के साईं प्रेम से बोलो
मिटाते कष्ट भक्तों का जय उनकी जोर से बोलो 


जाप साईं का करते करते जीये जा जीये जा जीये जा
साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा
लिये जा लिये जा लिये जा,भक्तों का रक्षक है साईं मेरा


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं 

Friday 26 August 2022

साईं नाम ज्योति कलश, है जग का आधार ।

ॐ सांई राम


साईं नाम ज्योति कलश, है जग का आधार ।
चिंतन ज्योति पुँज का करिये बारम्बार ।।


सोते जागते साईं कह, आते जाते नाम ।
मन ही मन में साईं को, शत शत करे प्रणाम ।।

देव दनुज नर नाग पशु, पक्षी कीट पतंग ।
सब में साईं समान हैं, साईं सब के संग ।।

साईं नाम वह नाव है, उस पर हो सवार ।
साईं नाम ही एक है, करता भाव से पार ।।

मंत्रमय ही मानिये, साईं राम भगवान ।
देवालय है साईं का, साईं शब्द गुण खान ।।

साईं नाम आराधिये, भीतर भर यह भाव ।
देव दया अवतरण का धार चौगुणा चाव ।।

साईं शब्द को ध्याइये, मंत्र तारक मान ।
स्वशक्ति सत्ता जग करे, ऊपरी चक्र को यान ।।

जीवन विरथा बीत गया, किया न साधन एक ।
कृपा हो मेरे साईं की, मिले ज्ञान विवेक ।।

बाबा ने अति कृपा कीन्ही, मोहे दियो समझाई ।
अहंकार को छोड़ो भाई जो तुम चाहो भलाई ।।

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं 

Thursday 25 August 2022

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 22

ॐ सांँई राम



आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साँईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साँईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साँईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साँईं जी से अनुमति चाहते है |

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साँईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साँईं चरणों में क्षमा याचना करते है

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श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 22
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सर्प-विष से रक्षा - श्री. बालासाहेब मिरीकर, श्री. बापूसाहेब बूटी, श्री. अमीर शक्कर, श्री. हेमाडपंत,बाबा की सर्प मारने पर सलाह


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प्रस्तावना
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श्री साईबाबा का ध्यान कैसे किया जाय । उस सर्वशक्तिमान् की प्रकृति अगाध है, जिसका वर्णन करने में वेद और सहस्त्रमुखी शेषनाग भी अपने को असमर्थ पाते है । भक्तों की स्वरुप वर्णन से रुचि नहीं । उनकी तो दृढ़ धारणा है कि आनन्द की प्राप्ति केवल उनके श्रीचरणों से ही संभव है । उनके चरणकमलों के ध्यान के अतिरिक्त उन्हें अपने जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की प्राप्ति का अन्य मार्ग विदित ही नहीं । हेमाडपंत भक्ति और ध्यान का जो एक अति सरल मार्ग सुझाते है, वह यह है –
कृष्ण पक्ष के आरम्भ होने पर चन्द्र-कलाएँ दिन प्रतिदिन घटती चलती है तथा उनका प्रकाण भी क्रमशः क्षीण होता जाता है और अन्त में अमावस्या के दिन चन्द्रमा के पूर्ण विलीन रहने पर चारों ओर निशा का भयंकर अँधेरा छा जाता है, परन्तु जब शुक्ल पक्ष का प्रारंभ होता है तो लोग चन्द्र-दर्शन के लिए अति उत्सुक हो जाते है । इसके बाद द्घितीया को जब चन्द्र अधिक स्पष्ट गोचर नहीं होता, तब लोगों को वृक्ष की दो शाखाओं के बीच से चन्द्रदर्शन के लिये कहा जाता है और जब इन शाखाओं के बीच उत्सुकता और ध्यानपूर्वक देखने का प्रयत्न किया जाता है तो दूर क्षितिज पर छोटी-सी चन्द्र रेखा के दृष्टिगोचर होते ही मन अति प्रफुल्लि हो जाता है । इसी सिद्घांत का अनुमोदन करते हुए हमें बाबा के श्री दर्शन का भी प्रयत्न करना चाहिये । बाबा के चित्र की ओर देखो । अहा, कितना सुन्दर है । वे पैर मोड़ कर बैठे है और दाहिना पैर बायें घुटने पर रखा गया है । बांये हाथ की अँगुलियाँ दाहिने चरण पर फैली हुई है । दाहिने पैर के अँगूठे पर तर्जनी और मध्यमा अँगुलियाँ फैली हुई है । इस आकृति से बाबा समझा रहे है कि यदि तुम्हें मेरे आध्यात्मिक दर्शन करने की इच्छा हो तो अभिमानशून्य और विनम्र होकर उक्त दो अँगुलियों के बीच से मेरे चरण के अँगूठे का ध्यान करो । तब कहीं तुम उस सत्य स्वरुप का दर्शन करने में सफल हो सकोगे । भक्ति प्राप्त करने का यह सब से सुगम पंथ है ।
अब एक क्षण श्री साईबाबा की जीवनी का भी अवलोकन करें । साईबाबा के निवास से ही शिरडी तीर्थस्थल बन गया है । चारों ओर के लोगोंकी वहाँ भीड़ प्रतिदिन बढ़ने लगी है तथा धनी और निर्धन सभी को किसी न किसी रुप में लाभ पहुँच रहा है । बाबा के असीम प्रेम, उनके अदभुत ज्ञानभंडार और सर्वव्यापकता का वर्णन करने की सामर्थ्य किसे है । धन्य तो वही है, जिसे कुछ अनुभव हो चुका है । कभी-कभी वे ब्रहा में निमग्नरहने के कारण दीर्घ मौन धारण कर लिया करते थे । कभी-कभी वे चैतन्यघन और आनन्द मूर्ति बन भक्तों से घरे हुए रहते थे । कभी दृष्टान्त देते तो कभी हास्य-विनोद किया करते थे । कभी सरल चित्त रहते तो कभी कुदृ भी हो जाया करते थे । कभी संझिप्त और कभी घंटो प्रवचन किया करते थे । लोगों की आवश्यकतानुसार ही भिन्न-भिन्न प्रकारा के उपदेश देते थे । उनका जीवनी और अगाध ज्ञान वाचा से परे थे । उनके मुखमंडल के अवलोकन, वार्तालाप करने और लीलाएँ सुनने की इच्छाएँ सदा अतृप्त ही बनी रही । फिर भी हम फूले न समाते थे । जलवृष्टि के कणों की गणना की जा सकती है, वायु को भी चर्मकी थैल में संचित किया जा सकता है, परन्तु बाबा की लीलाओं का कोई भी अंत न पा सका । अब उन लीलाओं में से एक लीला का यहाँ भी दर्शन करें । भक्तों के संकटों के घटित होने के पूर्व ही बाबा उपयुक्त अवसर पर किस प्रकार उनकी रक्षा किया करते थे । श्री. बालासाहेब मिरीकर, जो सरदार काकासाहेब के सुपुत्र तथा कोपरगाँव के मामलतदार थे, एक बार दौरे पर चितली जा रहे थे । तभी मार्ग में, वे साईबाबा के दर्शनार्थ शिरडी पधारे । उन्होंने मसजिद में जाकर बाबा की चरण-वन्दना की और सदैव की भाँति स्वास्थ्य तथा अन्य विषयों पर चर्चा की । बाबा ने उन्हें चेतावनी देकर कहा कि क्या तुम अपनी द्घारकामाई को जानते हो । श्री. बालासाहेब इसका कुछ अर्थ न समझ सके, इसीलिए वे चुप ही रहे । बाबा ने उनसे पुनः कहा कि जहाँ तुम बैठे हो, वही द्घारकामाई है । जो उसकी गोद में बैठता है, वह अपने बच्चों के समस्त दुःखों और कठिनाइयों को दूर कर देती है । यह मसजिद माई परम दयालु है । सरल हृदय भक्तों की तो वह माँ है और संकटों में उनकी रक्षा अवश्य करेगी । जो उसकी गोद में एक बार बैठता है, उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते है । जो उसकी छत्रछाया में विश्राम करता है, उसे आनन्द और सुख की प्राप्ति होती है । तदुपरांत बाबा ने उन्हें उदी देकर अपना वरद हस्त उनके मस्तक पर रख आर्शीवाद दिया । जब श्री. बालासाहेब जाने के लिये उठ खड़े हुए तो बाबा बोले कि क्या तुम ल्मबे बाबा (अर्थात् सर्प) से परिचित हो । और अपनी बाई मुट्ठी बन्द कर उसे दाहिने हाथ की कुहनी के पास ले जाकर दाहिने हाथ को साँप के सदृश हिलाकर बोले कि वह अति भयंकर है, परन्तु द्घारकामाई के लालों का वह कर ही क्या सकता है । जब स्वंय ही द्घारकामाई उनकी रक्षा करने वाली है तो सर्प की सामर्थ्य ही क्या है । वहाँ उपस्थित लोग इसका अर्थ तथा मिरीकर को इस प्रकार चोतावनी देने का कारण जानना चाहते थे, परन्तु पूछने का साहस किसी में भी न होता था । बाबा ने शामा को बुलाया और बालासाहेब के साथ जाकर चितली यात्रा का आनन्द लेने की आज्ञा दी । तब शामा ने जाकर बाबा का आदेश बालासाहेब को सुनाया । वे बोले कि मार्ग में असुविधायें बहुत है, अतः आपको व्यर्थ ही कष्ट उठाना उचित नहीं है । बालासाहेब ने जो कुछ कहा, वह शामा ने बाबा को बताया । बाबा बोले कि अच्छा ठीक है, न जाओ । सदैव उचित अर्थ ग्रहणकर श्रेष्ठ कार्य ही करना चाहिये । जो कुछ होने वाला है, सो तो होकर ही रहेगा । बालासाहेब ने पुनः विचार कर शामा को अपने साथ चलने के लिये कहा । तब शामा पुनः बाबाकी आज्ञा प्राप्त कर बालासाहेब के साथ ताँगे में रवाना हो गये । वे नौ बजे चितली पहुँचे और मारुति मंदिर में जाकर ठहरे । आफिस के कर्मचारीगण अभी नहीं आये थे, इस कारण वे यहाँ-वहाँ की चर्चायें करने लगे । बालासाहेब दैनिक पत्र पढ़ते हुए चटाई पर शांतिपूर्वक बैठे थे । उनकी धोती का ऊपरी सिरा कमर पर पड़ा हुआ था और उसी के एक भाग पर एक सर्प बैठा हुआ था । किसी का भी ध्यान उधर न था । वह सी-सी करता हुआ आगे रेंगने लगा । यह आवाज सुनकर चपरासी दौड़ा और लालटेन ले आया । सर्प को देखकर वह साँप साँप कहकर उच्च स्वर में चिल्लाने लगा । तब बालासाहेब अति भयभीत होकर काँपने लगे । शामा को भी आश्चर्य हुआ । तब वे तथा अन्य व्यक्ति वहाँ से धीरे से हटे और अपने हाथ में लाठियाँ ले ली । सर्प धीरे-धीरे कमर से नीचे उतर आया । तब लोगों ने उसका तत्काल ही प्राणांत कर दिया । जिस संकट की बाबा ने भविष्यवाणी की थी, वह टल गया और साई-चरणों में बालासाहेब का प्रेम दृढ़ हो गया ।
बापूसाहेब बूटी
...............
एक दिन महान् ज्योतिषी श्री. नानासाहेब डेंगलें ने बापूसाहेब बूटी से (जो उस समय शिरडी में ही थे) कहा आज का दिन तुम्हारे लिये अत्यन्त अशुभ है और तुम्हारे जीवन को भयप्रद है । यह सुनकर बापूसाहेब बडे अधीर हो गये । जब सदैव की भाँति वे बाबा के दर्शन करने गये तो वे बोले कि ये नाना क्या कहते है । वे तुम्हारी मृत्यु की भविष्यवाणी कर रहे है, परन्तु तुम्हें भयभीत होने की किंचित् मात्र भी आवश्यकता नहीं है । इनसे दृढ़तापूर्वक कह दो कि अच्छा देखे, काल मेरा किस भाँति अपहरण करता है । जब संध्यासमय बापू अपने शौच-गृह में गये तो वहाँ उन्हें एक सर्पत दिखाई दिया । उनके नौकर ने भी सर्प को देख लिया और उसे मारने को एक पत्थर उठाया । बापूसाहेब ने एक लम्बी लकड़ी मँगवाई, परन्तु लकड़ी आने से पूर्व ही वह साँप दूरी पर रेंगता हुआ दिखाई दिया । और तुरन्त ही दृष्टि से ओझल हो गया । बापूसाहेब को बाबा के अभयपूर्ण वचनों का स्मरण हुआ और बड़ा ही हर्ष हुआ ।
अमीर शक्कर
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अमीर शक्कर कोरले गाँव का निवासी था, जो कोपरगाँव तालुके में है । वह जाति का कसाई था और बान्द्रा में दलाली का धंधा किया करता था । वह प्रसिदृ व्यक्तियों में से एक था । एक बार वह गठिया रोग से अधिक कष्ट पा रहा था । जब उसे खुदा की स्मृति आई, तब काम-धंधा छोड़कर वह शिरडी आया और बाबा से रोग-निवृत्ति की प्रार्थना करने लगा । तब बाबा ने उसे चावड़ी में रहने की आज्ञा दे दी । चावड़ी उस समय एक अस्वास्थ्यकारक स्थान होने के कारण इस प्रकार के रोगियों के लिये सर्वथा ही अयोग्य था । गाँव का अन्य कोई भी स्थान उसके लिये उत्तम होता, परन्तु बाबा के शब्द तो निर्णयात्मक तथा मुख्य औषधिस्वरुप थे । बाबा ने उसे मसजिद में न आने दिया और चावड़ी में ही रहने की आज्ञा दी । वहाँ उसे बहुत लाभ हुआ । बाबा प्रातः और सायंकाल चावड़ी पर से निकलते थे तथा एक दिन के अंतर से जुलूस के साथ वहाँ आते और वहीं विश्राम किया करते थे । इसलिये अमीर को बाबा का सानिध्य सरलतापूर्वक प्राप्त हो जाया करता था । अमीर वहाँ पूरे नौ मास रहा । जब किसी अन्य कारणवश उसका मन उस स्थान से ऊब गया, तब एक रात्रि में वह चोरीसे उस स्थान को छोड़कर कोपरगाँव की धर्मशाला में जा ठहरा । वहाँ पहुँचकर उसने वहाँ एक फकीर को मरते हुए देखा, जो पानी माँग रहा था । अमीर ने उसे पानी दिया, जिसे पीते ही उसका देहांत हो गया । अब अमीर किंक्रतव्य-विमूढ़ हो गया । उसे विचार आया कि अधिकारियों को इसकी सूचना दे दूँ तो मैं ही मृत्यु के लिये उत्तरदायी ठहराया जाऊँगा और प्रथम सूचना पहुँचाने के नाते कि मुझे अवश्य इस विषय की अधिक जानकारी होगी, सबसे प्रथम मैं ही पकड़ा जाऊँगा । तब विना आज्ञा शिरडी छोड़ने की उतावली पर उसे बड़ा पश्चाताप हुआ । उसने बाबा से मन ही मन प्रार्थना की और शिरडी लौटने का निश्चय कर उसी रात्रि बाबा का नाम लेते हुए पौ फटने से पूर्व ही शिरडी वापस पहुँचकर चिंतामुक्त हो गया । फिर वह चावड़ी में बाबा की इच्छा और आज्ञानुसार ही रहने लगा और शीघ्र ही रोगमुक्त हो गया ।
एक समय ऐसा हुआ कि अर्दृ रात्रि को बाबा ने जोर से पुकारा कि ओ अब्दुल कोई दुष्ट प्राणीमेरे बिस्तर पर चढ़ रहा है । अब्दुल ने लालटेन लेक बाबा का बिस्तर देखा, परन्तु वहाँ कुछ भी न दिखा । बाबा ने ध्यानपूर्वक सारे स्थान का निरीक्षण करने को कहा और वे अपना सटका भी जमीन पर पटकने लगे । बाबा की यह लीला देखकर अमीर ने सोचा कि हो सकता है कि बाबा को किसी साँप के आने की शंका हुई हो । दीर्घ काल तक बाबा की संगति में रहने के कारण अमीर को उनके शब्दों और कार्यों का अर्थ समझ में आ गया था । बाबा ने अपने बिस्तर के पास कुछ रेंगता हुआ देखा, तब उन्होंने अब्दुल से बत्ती मँगवाई और एक साँप को कुंडली मारे हुये वहाँ बैठे देखा, जो अपना फन हिला रहा था । फिर वह साँप तुरन्त ही मार डाला गया । इस प्रकार बाबा ने सामयिक सूचना देकर अमीर के प्राणों की रक्षा की ।
हेमाडपंत (बिच्छू और साँप)
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1. बाबा की आज्ञानुसार काकासाहेब दीक्षित श्रीएकनाथ महाराज के दो ग्रन्थों भागवत और भावार्थरामायण का नित्य पारायण किया करते थे । एक समय जब रामायण का पाठ हो रहा था, तब श्री हेमाडपंत भी श्रोताओं में सम्मिलित थे । अपनी माँ के आदेशानुसार किस प्रकार हनुमान ने श्री राम की महानताकी परीक्षा ली – यह प्रसंग चल रहा था, सब श्रोता-जन मंत्रमुग्ध हो रहे थे तथा हेमाडपंत की भी वही स्थिति थी । पता नहीं कहाँ से एक बड़ा बिच्छू उनके ऊपर आ गिरा और उनके दाहिने कंधे पर बैठ गया, जिसका उन्हें कोई भान तक न हुआ । ईश्वर को श्रोताओं की रक्षा स्वयं करनी पड़ती है । अचानक ही उनकी दृष्टि कंधे पर पड़ गई । उन्होंने उस बिच्छू को देख लिया । वह मृतप्राय.-सा प्रतीत हो रहा था, मानो वह भी कथा के आनन्द में तल्लीन हो । हरि-इच्छा जान कर उन्होंने श्रोताओं में बिना विघ्न डाले उसे अपनी धोती के दोनों सिरे मिलाकर उसमें लपेट लिया और दूर ले जाकर बगीचे में छोड़ दिया ।
2. एक अन्य अवसर पर संध्या समय काकासाहेब वाड़े के ऊपरी खंड में बैठे हुये थे, तभी एक साँप खिड़की की चौखट के एक छिद्र में से भीतर घुस आया और कुंडली मारकर बैठ गया । बत्ती लाने पर पहले तो वह थोड़ा चमका, फिर वहीं चुपचार बैठा रहा और अपना फन हिलाने लगा । बहुत-से लोग छड़ी और डंडा लेकर वहाँ दौड़े । परन्तु वह एक ऐसे सुरक्षित स्थान पर बैठा था, जहाँ उस पर किसी के प्रहार का कोई भी असर न पड़ता था । लोगों का शोर सुनकर वह शीघ्र ही उसी छिद्र में से अदृश्य हो गया, तब कहीं सब लोगों की जान में जान आई ।
बाबा के विचार
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एक भक्त मुक्ताराम कहने लगा कि चलो, अच्छा ही हुआ, जो एक जीव बेचारा बच गया । श्री. हेमाडपंत ने उसकी अवहेलना कर कहा कि साँप को मारना ही उचित है । इस कारण इस विषय पर वादविवाद होने लगा । एक का मत था कि साँप तथा उसके सदृश जन्तुओं को मार डालना ही उचित है, किन्तु दूसरे का इसके विपरीत मत था । रात्रि अधिक हो जाने के कारण किसी निष्कर्ष पर पहुँचे बिना ही ही उन्हें विवाद स्थगित करना पड़ा । दूसरे दिन यह प्रश्न बाबा के समक्ष लाया गया । तब बाबा निर्णयात्मक वचन बोले कि सब जीवों में और सम्स्त प्राणियों में ईश्वर का निवास है, चाहे वह साँप हो या बिच्छू । वे ही इस विश्व के नियंत्रणकर्ता है और सब प्राणी साँप, बिच्छू इत्यादि उनकी आज्ञा का ही पालन किया करते है । उनकी इच्छा के बिना कोई भी दूसरों को नहीं पहुँचा सकता । समस्त विश्व उनके अधीन है तथा स्वतंत्र कोई भी नहीं है । इसलिये हमें सब प्राणियों से दया और स्नेह करना चाहिए । संघर्ष एवं बैमनस्य या संहार करना छोड़कर शान्त चित्त से जरीवन व्यतीत करना चाहिए । ईश्वर सबका ही रक्षक है ।


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday 24 August 2022

नमन

ॐ सांई राम



नमन
जय जय साईं परमेश्वरा, जय जय साईं परमेश्वरा।
जय जय साईं पुरुषाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।।


जय जय साईं शंकराय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।
जय जय साईं रामाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।।

जय जय साईं माधवाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।
जय जय साईं हनुमंताय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।।

जय जय साईं आकाल पुरुषाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।
जय जय साईं नाथाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।।


धुन
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय राम हरे जय राम हरे।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।

जो साईं जपे उसके पाप कटें, भवसागर को वो पार करे ।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।

जो ध्यान धरे साईं दर्शन करे, साईं उसके सारे कष्ट हरें।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।

साईं रंग रागे साईं प्रीत जगे, साईं चरणों पर जो माथ धरे ।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।

जो शरण पड़े, साईं रक्षा करे, साईं उसके सब भण्डार भरे ।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

Tuesday 23 August 2022

साईं वाणी (भाग 8)

ॐ सांई राम


 साईं वाणी (भाग 8)
 
माता पिता बांधव सुत दारा, धन धन साजन सखा प्यारा।

अन्त काल दे सके ना सहारा, साईं नाम तेरा पालन हारा।।


आपन को न मान शरीर, तब तू जाने पर की पीड़।
घट में बाबा को पहचान, करन करावन वाला जान।।

अन्तर्यामी जा को जान, घट से देखो आठों याम ।
सिमरन साईं नाम है सँगी, सखा स्नेही सुहृद शुभ अंगी।।

युग युग का है साईं सहेला, साईं भक्त नहीं रहे अकेला।
बाधा बड़ी विषम जब आवे, बैर विरोध विघ्न बढ़ जावे।।

साईं नाम जाइये सुख दाता, सच्चा साथी जो हितकर त्राता।
पूँजी साईं नाम की पाइये, पाथेय साथ नाम ले जाइये।।

साईं जाप कहि ऊँची करनी, बाधा विघ्न बहु दुःख हरनी।
साईं नाम महा मन्त्र जपना, है सुव्रत नेम तप तपना।।

बाबा से कर सच्ची प्रीत, यह ही भक्तजनों की रीत ।
तू तो है बाबा का अंग, जैसे सागर बीच तरंग।।

दीन दुखी के सामने जिसका झुकता शीश।
जीवन भर मिलता उसे बाबा का आशीष।।

लेने वाले हाथ दो साईं के सौ द्वार 
एक द्वार को पूज ले हो जाएगा पार।।

ॐ  साईं श्री साईं जय जय साईं

Monday 22 August 2022

साईं वाणी भाग (7)

ॐ सांई राम


साईं वाणी भाग (7)

ऐसे मन जब होवे लीन, जल में प्यासी रहे न मीन ।

चित चढ़े एक रंग अनूप, चेतन हो जाये साईं स्वरूप ।।


जिसमें साईं नाम शुभ जागे, उसके पाप ताप सब भागें।
मन में साईं नाम जो उचारे, उस के भागें भ्रम भय सारे।।
 
सुख-दुःख तेरी देन हैं, सुख-दुःख में तू आप ।
रोम-रोम में हैं साईं, तू ही रहयो व्याप ।।

जय जय साईं सच्चिदानन्द, मुरली मनोहर परमानन्द ।
परब्रहम परमेश्वर गोविंदा, निर्मल पावन ज्योत अखण्ड।।

एकई ने सब खेल रचाया, जो देखो वो सब है माया ।
एको एक है भगवान, दो को तू ही माया जान ।।

बाहर भ्रम भूलेई संसार, अन्दर प्रीतम साईं अपार ।
जा को आप बजाहे भगवंत, सो ही जाने साईं अनन्त।।

जिस में बस जाए साईं सुनाम, होवे वह जैम पूरण काम ।
चित में साईं नाम जो सिमरे, निश्चय भवसागर से तरे।।

साईं सुमिरन होवे सहाई, साईं सुमिरन है सुखदायी ।
साईं सुमिरन सबसे ऊँचा, साईं शक्ति गुण ज्ञान समूचा।।

सुख दाता आपद हरण, साईं गरीब निवाज ।
अपने बच्चों के साईं, सभी सुधारे काज ।।


ॐ  साईं श्री साईं जय जय साईं

Sunday 21 August 2022

साईं वाणी (भाग 6)

ॐ सांई राम


साईं वाणी (भाग 6)

धन्य धन्य श्री साईं उजागर, धन्य धम्य करुना के सागर|
साईं नाम मुद मंगलकारी, विघ्न हरे सब पाठक हारी ||

धन्य धन्य श्री साईं हमारे, धन्य धन्य भक्तन रखवारे |
साईं नाम शुभ शकुन महान, स्वस्ति शान्ति कर शिव कल्याण||

धन्य धन्य सब जग के स्वामी, धन्य धन्य श्री साईं नमामि |
साईं साईं मन मुख से गाना, मानो मधुर मनोरथ पाना||


साईं नाम जो जन मन लावे, उस में शुभ सभी बस जावे |
जहाँ हो साईं नाम धुन नाद, वहां से भागे विषम विषाद||


साईं नाम मन तपन बुझावे, सुधा रस सींच शान्ति ले आवे |
साईं साईं जपिये कर भाव, सुविधा सुविधि बने बनाव ||


छल कपट और झूठ हैं, तीन नरक के द्वार |
झूठ कर्म को छोड़ के करो सत्य व्यवहार ||


जप तप तीरथ ज्ञान ध्यान, सब मिल नहीं साईं सामान |
सर्व व्यापक साईं ज्ञाता, मन वांछित प्राणी फल पाता ||


जहां जगत में आवो जावो, साईं सुमीर साईं को गावो |
साईं सभी में एक सामान,सब रूप को साईं का जान ||


मन में मेरा कुछ नहीं अपना, साईं का नाम सत्य जग सपना |
इतना जान लेहु सब कोय, साईं को भजते साईं का होय ||

===ॐ  साईं  श्री  साईं  जय जय  साईं===

Saturday 20 August 2022

साईं वाणी (भाग 5)

ॐ सांई राम


साईं वाणी (भाग 5)

साईं कृपा भरपूर मैं पाऊँ, प्रथम प्रभु को भीतर लाऊँ |
साईं ही साईं साईं कह मीत, साईं सेकर ले सच्ची प्रीत ||


साईं ही साईं का दर्शन करिये, मन भीतर इक आनंद भरिये |
साईं की जब मिल जाये भिक्षा, फिर मन में कोई रहे न इच्छा||


जब जब मन का तार हिलेगा, तब तब साईं का प्यार मिलेगा |
मिटेगी जग से आनी जानी, जीवन मुक्त होये यह प्राणी||


शिर्डी के हैं साईं हरि, तीन लोक के नाथ |

बाबा हमारे पावन प्रभु, सदा के सँगी साथ ||


साईंधुनी जब पकड़े ज़ोर , खींचें साईं प्रभु अपनी ओर|
मंदिर मंदिर बस्ती बस्ती, छा जाये साईं नाम की मस्ती||


अमृतरूप साईं गुणगान, अमृत कथन साईं व्याख्यान |
अमृत वचन साईं की चर्चा, सुधा सम गीत साईं की अर्चा ||



शुभ रसना वही कहावे, साईं राम जहाँ नाम सुहावे |
शुभ कर्म है नाम कमाई, साईं नाम परम सुखदाई ||


जब जी चाहे दर्शन पाइये, जय जयकार साईं की गाइये |
साईं नाम की धुनी लगाइये, सहज ही भाव सागर तर जाइये ||


बाबा को भजें निरंतर, हर दम ध्यान लगावे |
बाबा में मिल जावे अंत में, जनम सफल हो जावे ||

ॐ  साईं  श्री  साईं  जय जय  साईं

Friday 19 August 2022

साँई कलियुग ब्रह्म अवतार... आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी हार्दिक शुभ कामनायें

ॐ साँई राम


आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी हार्दिक शुभ कामनायें



 साँई के हित दीप बनाऊं।
सत्वर माया मोह जलाऊं।
विराग प्रकाश जगमग होवें।
राग अन्ध वह उर का खावें॥
पावन निष्ठा का सिंहासन।
निर्मित करता प्रभु के कारण।
कृपा करें प्रभु आप पधारें।
अब नैवेद्य-भक्ति स्वीकारें॥
भक्ति-नैवेद्य प्रभु तुम पाओं।
सरस-रास-रस हमें पिलाओं।
माता, मैं हूँ वत्स तिहारा।
पाऊं तव दुग्धामृत धारा॥
मन-रूपी दक्षिणा चुकाऊं।
मन में नहीं कुछ और बसाऊं।
अहम् भाव सब करूं सम्पर्ण।
अन्तः रहे नाथ का दर्पण॥
बिनती नाथ पुनः दुहराऊं।
श्री चरणों में शीश नमाऊं।
साँई कलियुग ब्रह्म अवतार।
करों प्रणाम मेरे स्वीकार॥

Thursday 18 August 2022

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 21

ॐ सांई राम



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आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है 

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है


श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 21

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श्री. व्ही. एच. ठाकुर, अनंतराव पाटणकर और पंढ़रपुर के वकील की कथाएँ
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इस अध्याय में हेमाडपंत ने श्री विनायक हिश्चन्द्र ठाकुर, बी. ए., श्री. अनंतराव पाटणकर, पुणे निवासी तथा पंढरपुर के एक वकील की कथाओं का वर्णन किया है । ये सब कथाएँ अति मनोरंजक है । यदि इनका साराँश मननपूर्वक ग्रहण कर उन्हें आचरण में लाया जाय तो आध्यात्मिक पंथ पर पाठकगण अवश्य अग्रसर होंगें ।



प्रारम्भ
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यह एक साधारण-सा नियम है कि गत जन्मों के शुभ कर्मों के फलस्वरुप ही हमें संतों का स्न्ध्य और उनकी कृपा प्राप्त होती है । उदाहरणार्थ हेमाडपंत स्वयं अपनी घटना प्रस्तुत करते है । वे अनेक वर्षों तक बम्बई के उपनगर बांद्रा के स्थानीय न्यायाधीश रहे । पीर मौलाना नामक एक मुस्लिम संत भी वहीं निवास करते थे । उनके दर्शनार्थ अनेक हिन्दू, पारसी और अन्य धर्मावलंबी वहाँ जाया करते थे । उनके मुजावर (पुजारी) ने हेमाडपंत से भी उलका दर्शन करने के लिये बहुत आग्रह किया, परन्तु किसी न किसी कारण वश उनकी भेंट उनसे न हो सकी । अनेक वर्षों के उपरान्त जब उनका शुभ काल आया, तब वे शिरडी पहुँचे और बाबा के दरबार में जाकर स्थायी रुप से सम्मिलित हो गए । भाग्यहीनों को संतसमागम की प्राप्ति कैसे हो सकती है । केवल वे ही सौभाग्यशाली हे, जिन्हें ऐसा अवसर प्राप्त हो ।


संतों द्घारा लोकशिक्षा
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संतों द्घारा लोकशिक्षा का कार्य चिरकाल से ही इस विश्व में संपादित होता आया है । अनेकों संत भिन्न-भिन्न स्थानों पर किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिये स्वयं प्रगट होते है । यघपि उनका कार्यस्थल भिन्न होता है, परन्तु वे सब पूर्णतः एक ही है । वे सब उस सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की संचालनशक्ति के अंतर्गत एक ही लहर में कार्य करते है । उन्हें प्रत्येक के कार्य का परस्पर ज्ञान रहता है और आवश्यकतानुसार परस्पर कमी की पूर्ति करते है, जो निम्नलिखित घटना द्घारा स्पष्ट है ।

श्री. ठाकुर
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श्री. व्ही. एच. ठाकुर, बी. ए. रेव्हेन्यू विभाग में एक कर्मचारी थे । वे एक समय भूमिमापक दल के साथ कार्य करते हुए बेलगाँव के समीप वडगाँव नामक ग्राम में पहुँचे । वहाँ उन्होंने एक कानड़ी संत पुरुष (आप्पा) के दर्शन कर उनकी चरण वन्दना की । वे अपने भक्तों को निश्चलदासकृत विचार-सागर नामक ग्रंथ (जो वेदान्त के विषय में है) का भावार्थ समझा रहे थे । जब श्री. ठाकुर उनसे विदाई लेने लगे तो उन्होंने कहा, तुम्हें इस ग्रंथ का अध्ययन अवश्य करना चाहिये और ऐसा करने से तुम्हारी इच्छाएँ पूर्ण हो जायेंगी तथा जब कार्य करते-करते कालान्तर में तुम उत्तर दिशा में जाओगे तो सौभाग्यवश तुम्हारी एक महान् संत से भेंट होगी, जो मार्ग-पर्दर्शन कर तुम्हारे हृदय को शांति और सुख प्रदान करेंगे । बाद में उनका स्थानांतरण जुन्नर को हो गया, जहाँ कि नाणेघाट पार करके जाना पड़ता था । यह घाट अधिक गहरा और पार करने में कठिन था । इसलिये उन्हें भैंसे की सवारी कर घाट पार करना पड़ा, जो उन्हें अधिक असुविधाजनक तथा कष्टकर प्रतीत हुआ । इसके पश्चात् ही उनका स्थानांतरण कल्याण में एक उच्च पद पर हो गया और वहाँ उनका नानासाहेब चाँदोरकर से परिचय हो गया । उनके द्घारा उन्हें श्री साईबाबा के संबंध में बहुत कुछ ज्ञात हुआ और उन्हें उनके दर्शन की तीव्र उत्कण्ठा हुई । दूसरे दिन ही नानासाहेब शिरडी को प्रस्थान कर रहे थे । उन्होंने श्री. ठाकुर से भी अपने साथ चलने का आग्रह किया । ठाणे के दीवानी-न्यायालय में एक मुकदमे के संबंध में उनकी उपस्थिति आवश्यक होने के कारण वे उनके साथ न जा सके । इस कारण नानासाहेब अकेले ही रवाना हो गये । ठाणे पहुँचने पर मुकदमे की तारीख आगे के लिए बढ़ गई । इसलिए उन्हें ज्ञात हुआ कि नानासाहेब पिछले दिन ही यहाँ से चले गये है । वे अपने कुछ मित्रों के साथ, जो उन्हें वहीं मिल गये थे, श्री साईबाबा के दर्शन को गए । उन्होंने बाबा के दर्शन किये और उनके चरणकमलों की आराधना कर अत्यन्त हर्षित हुए । उन्हें रोमांच हो आया और उनकी आँखों से अश्रुधाराएँ प्रवाहित होने लगी । त्रिकालदर्शी बाबा ने उनसे कहा – इस स्थान का मार्ग इतना सुमा नही, जितना कि कानड़ी संत अप्पा के उपदेश या नाणेघाट पर भैंसे की सवारी थी । आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिये तुम्हें घोर परिश्रम करना पडेगा, क्योंकि वह अत्यन्त कठिन पथ है । जब श्री. ठाकुर ने हेतुगर्भ शब्द सुने, जिनका अर्थ उनके अतिरिक्त और कोई न जानता था तो उनके हर्ष का पारावार न रहा और उन्हें कानड़ी संत के वचनों की स्मृति हो आई । तब उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर बाबा के चरणों पर अपना मस्तक रखा और उनसे प्रार्थना की कि प्रभु, मुझ पर कृपा करो और इस अनाथ को अपने चरण कमलों की शीतलछाया में स्थान दो । तब बाबा बोले, जो कुछ अप्पा ने कहा, वह सत्य था । उसका अभ्यास कर उसके अनुसार ही तुम्हें आचरण करना चाहिये । व्यर्थ बैठने से कुछ लाभ न होगा । जो कुछ तुम पठन करते हो, उसको आचरण में भी लाओ, अन्यथा उसका उपयोग ही क्या । गुरु कृपा के बिना ग्रंथावलोकन तथा आत्मानुभूति निरर्थक ही है । श्री. ठाकुर ने अभी तक केवल विचार सागर ग्रन्थ में सैद्घांतिक प्रकरण ही पढ़ा था, परन्तु उसकी प्रत्यक्ष व्यवहार प्रणाली तो उन्हें शिरडी में ही ज्ञात हुई । एक दूसरी कथा भी इस सत्य का और अधिक सशक्त प्रमाण है ।

श्री. अनंतराव पाटणकर
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पूना के एक महाशय, श्री. अनंतराव पाटणकर श्री साईबाबा के दर्शनों के इच्छुक थे । उन्होंने शिरडी आकर बाबा के दर्शन किये । दर्शनों से उनके नेत्र शीतल हो गये और वे अति प्रसन्न हुए । उन्होंने बाबा के श्री चरण छुए और यथायोग्य पूजन करने के उपरान्त बोले, मैंने बहुत कुछ पठन किया । वेद, वेदान्त और उपनिषदों का भी अध्ययन किया तथा अन्य पुराण भी श्रवण किये, फिर भी मुझे शान्ति न मिल सकी । इसलिये मेरा पठन व्यर्थ ही सिदृ हुआ । एक निरा अज्ञानी भक्त मुझसे कहीं श्रेष्ठ है । जब तक मन को शांति नहीं मिलती, तब तक ग्रन्थावलोकन व्यर्थ ही है । मैंने ऐसा सुना है कि आप केवल अपनी दृष्टि मात्र से और विनोदपूर्ण वचनों द्घारा दूसरों के मन को सरलतापूर्वक शान्ति प्रदान कर देते है । यही सुनकर मैं भी यहाँ आया हूँ । कृपा कर मुझ दास को भी आर्शीवाद दीजिये ।

तब बाबा ने निम्नलिखित कथा कही - घोड़ी की लीद के नो गोले (नवधा भक्ति) ...

एक समय एक सौदागर यहाँ आया । उसके सम्मुख ही एक घोड़ी ने लीद की । जिज्ञासु सौदागर ने अपनी धोती का एक छोर बिछाकर उसमें लीद के नौ गोले रख लिये और इस प्रकार उसके चित्त को शांति पत्राप्त हुई । श्री. पाटणकर इस कथा का कुछ भी अर्थ न समझ सके । इसलिये उन्होंने श्री. गणेश दामोदर उपनाम दादा केलकर से अर्थ समझाने की प्रार्थना की और पूछा कि बाबा के कहने का अभिप्राय क्या है । वे बोले कि जो कुछ बाबा कहते है, उसे मैं स्वयं भी अच्छी तरह नहीं समझ सकता, परंतु उनकी प्रेरणा से ही मैं जो कुछ समझ सका हूँ, वह तुम से कहता हूँ । घोड़ी है ईश-कृपा, और नौ एकत्रित गोले है नवविधा भक्ति-यथा –

1. श्रवण
2. कीर्तन
3. नामस्मरण
4. पादसेवन
5. अर्चन
6. वन्दन
7. दास्य या दासता
8. सख्यता और
9. आत्मनिवेदन ।

ये भक्ति के नौ प्रकार है । इनमें से यदि एक को भी सत्यता से कार्यरुप में लाया जाय तो भगववान श्रीहरि अति प्रसन्न होकर भक्त के घर प्रगट हो जायेंगे । समस्त साधनाये अर्थात् जप, तप, योगाभ्यास तथा वेदों के पठन-पाठन में जब तक भक्ति का समपुट न हो, बिल्कुल शुष्क ही है । वेदज्ञानी या व्रहमज्ञानी की कीर्ति भक्तिभाव के अभाव में निरर्थक है । आवश्यकता है तो केवल पूर्ण भक्ति की । अपने को भी उसी सौदागर के समान ही जानकर और व्यग्रता तथा उत्सुकतापूर्वक सत्य की खोज कर नौ प्रकार की भक्ति को प्राप्त करो । तब कहीं तुम्हें दृढ़ता तथा मानसिक शांति प्राप्त होगी । दूसरे दिन जब श्री. पाटणकर बाबा को प्रणाम करने गये तो बाबा ने पूछा कि क्या तुमने लीद के नौ गोले एकत्रित किये । उन्होंने कहा कि मैं अनाश्रित हूँ । आपकी कृपा के बिना उन्हें सरलतापूर्वक एकत्रित करना संभव नहीं है । बाबा ने उन्हें आर्शीवाद देकर सांत्वना दी कि तुम्हें सुख और शांति प्राप्त हो जायेगी, जिसे सुनकर श्री. पाटणकर के हर्षे का पारावार न रहा ।

पंढ़रपुर के वकील
...................

भक्तों के दोष दूर कर, उन्हें उचित पथ पर ला देने की बाबा की त्रिकालज्ञता की एक छोटी-सी कथ का वर्णन कर इस अध्याय को समाप्त करेंगे । एक समय पंढरपुर से एक वकील शिरडी आये । उन्होंने बाबा के दर्शन कर उन्हं प्रणाम किया तथा कुछ दक्षिणा भेंट देकर एक कोने में बैठ वार्तालाप सुनने लगे । बाबा उनकी ओर देख कर कहने लगे कि लोग कितने धूर्त है, जो यहाँ आकर चरणों पर गिरते और दक्षिणा देते है, परंतु भीतर से पीठ पीछे गालियाँ देते रहते है । कितने आश्चर्य की बात है न । यह पगड़ी वकील के सिर पर ठीक बैठी और उन्हें उसे पहननी पड़ी । कोई भी इन शब्दों का अर्थ न समझ सका । परन्तु वकील साहब इसका गूढ़ार्थ समझ गये, फिर भी वे नतशिर बैठे ही रहे । वाड़े को लौटकर वकील साहब ने काकासाहेब दीक्षित को बतलाया कि बाबा ने जो कुछ उदाहरण दिया और जो मेरी ही ओर लक्ष्य कर कहा गया था, वह सत्य है । वह केवल चेतावनी ही थी कि मुझे किसी की निन्दा न करनी चाहिए । एक समय जब उपन्यायाधीश श्री. नूलकर स्वास्थ्य लाभ करने के लिये पंढरपुर से शिरडी आकर ठहरे तो बताररुम में उनके संबंध में चर्चा हो रही थी । विवाद का विषय था कि जीस व्याधि से उपन्यायाधीश अस्वस्थ है, क्या बिना औषधि सेवन किये केवल साईबाबा की शरण में जाने से ही उससे छुटकारा पाना सम्भव है । और क्या श्री. नूलकर सदृश एक शिक्षित व्यक्ति को इस मार्ग का अवलम्बन करना उचित है । उस समय नूलकर का और साथ ही श्री साईबाबा का भी बहुत उपहास किया गया । मैंने भी इस आलोचना में हाथ बँटाया था । श्री साईबाबा ने मेरे उसी दूषित आचरण पर प्रकाश डाला है । यह मेरे लिये उपहास नही, वरन् एक उपकार है, जो केवल परामर्श है कि मुझे किसी की निनदा न करनी चाहिए और न ही दूसरों के कार्यों में विघ्न डालना चाहिए । शिरडी और पंढरपुर में लगभग 300 मील का अन्तर है । फिर भी बाबा ने अपनी सर्वज्ञता द्घारा जान लिया कि बाररुम में क्या चल रहा था । मार्ग में आने वाली नदियाँ, जंगल और पहाड़ उनकी सर्वज्ञता के लिये रोड़ा न थे । वे सबके हृदय की गुहृ बात जान लेते थे और उनसे कुछ छिपा न था । समीपस्थ या दूरस्थ प्रत्येक वस्तु उन्हें दिन के प्रकाश के समान जाज्वल्यमान थी तथा उनकी सर्वव्यापक दृष्टि से ओझल न थी । इस घटना से वकीलसाहब को शिक्षा मिलीकि कभी किसी का छिद्रान्वेषण एवं निंदा नहीं करनी चाहिए । यह कथा केवल वकीलसाहव को ही नहीं, वरन सबको शिक्षाप्रद है । श्री साईबाबा की महानता कोई न आँक सका और न ही उनकी अदभुत लीलाओं का अंत ही पा सका । उनकी जीवनी भी तदनुरुप ही है, क्योंकि वे परब्रहास्वरुप है ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

For Donation

For donation of Fund/ Food/ Clothes (New/ Used), for needy people specially leprosy patients' society and for the marriage of orphan girls, as they are totally depended on us.

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Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh. INDIA.

बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.