नहीं दूर रह पाऊँगा मैं
इक पल भी इस परिवार से
कुत्ता जैसे दूर ना रहें
मालिक के दरबार से
मालिक की कृपा हुई
दिया ऐसा प्यारा घरबार
साँईं का ही गुणगान हो
और सजा रहे साँईं दरबार
ग्रुप नहीं मेरा मंदिर हैं
बसी साँसे मेरी हर जन में
ताना-कशी हैं आदत जिनकी
लाना है उन्हें साँईं भजन में
कैसे काटे कोई अपनी उंगली
खुद अपने ही हाथों से
मैं अकेला हूँ ही नहीं
ये दरबार सजा साँईं हाथों से
कभी बायजा माँ का सहारा मिला
कहीं कोई तात्या भाई बन आया
हाथ दोनों जोड़ स्वागत करो
देखो अभी कहीं मेरा साँई आया
लिखते हुए मंद पड़ गई है नज़र
प्यार दिल मे ही रह तू आँखों से ना निकल
बहुत प्यार दिया है मेरे साँईं ने
यू धीरे धीरे मोम सा ना पिघल
जो कुछ सीखा आपसे
करू अर्पित सब माही
दयालु है मेरे सदगुरू
साँईं सा दूजा कोई नाहीं
उसूल मेरे नहीं आपकी भलाई है
आपकी जिम्मेदारी मेरे कांधे आई है
टूट कर बिखर गया होता कभी का
समेटने वाला तो मेरा बाबा साँई हैं