शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday, 30 April 2024

साप्ताहिक ध्यान लाभ

साप्ताहिक ध्यान लाभ

आया जब जब वार प्रिय सोम
हर हर महादेव बोले मेरा रोम रोम
दिन आया जब फिर मंगलकारी
बजरंगी जी ने हर विपदा टारी
करते हैं हर काम वह शुध्द
जब आये गणपति का दिन बुध
सबसे उत्तम दिन हैं गुरुवार
सजता हमारे गुरू का दरबार
कम ना आंके शुक्र की लीला
कान्हा की बंसी छेड़े तान सुरीला
अति लाभप्रद दिन होता हैं शनि
शनिदेव भक्त पर ना आये हानि
सूर्य देव करते जग उजियार
नमन करो जब आये रविवार

Monday, 29 April 2024

नवधा भक्ति

नवधा भक्ति


रामचरितमानस (अरण्यकाण्ड)

नवधा भक्ति

श्री राम जी और शबरी जी का मिलन

दो:-कंद मूल फल अति दिए राम कहूँ आणि |
     प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानी ||
 

अर्थात-शबरी जी ने रसीले और स्वादिष्ट फल लाकर श्री राम जी को दिए|

          प्रभु बार बार प्रशंसा करके उन्हें प्रेम सहित खाए ||
शबरी जी:-हाथ जोड़कर आगे खड़ी हो गयी| 
श्री राम जी को देखकर उनका प्रेम अत्यंत बढ गया|उन्होंने कहा में नीच जाति की और मुढ़बुद्धि हूँ ||

"श्री राम जी ":--में तो केवल एक भक्ति ही का सम्बन्ध मानता हूँ| मैं तुझसे अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ | तू सावधान होकर सुन और मन में धारण कर |
          
पहली भक्ति हैं- -:-संतो का सत्संग| 
दूसरी भक्ति हैं- -:-मेरे कथा-प्रसंग में प्रेम |

तीसरी भक्ति हैं:-अभिमानरहित होकर गुरु के चरण-कमलों की सेवा और
        
चोथी भक्ति हैं- :- कपट छोड़ कर मेरे गुणसमूहों का गान करे|| मेरे (राम ) मन्त्र का जाप और मुझमे दृढ़ विश्वास-यह है,

पांचवी भक्ति:-जो वेदों में प्रसिद्ध हैं|

छठी भक्ति हैं--- इन्द्रियों का निग्रह,शील(अच्हा स्वभाव या चरित्र), भूत कार्यो  से वैराग्ग्य और निरंतर संत पुरषों के धर्म (आचरण) में लगे रहना ||

सातवीं भक्ति हैं---जगतभर को समभाव से मुझमें ओतप्रोत(राममय)देखना और संतो को मुझसे भी अधिक करके मानना|

आठवीं भक्ति हैं- -जो कुछ मिल जाए, उसमें संतोष  करना और स्वपन में भी पराये दोषों को ना देखना||

नवीं भक्ति हैं- -सरलता और सबके  साथ कपटरहित बर्ताव करना, हृदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद ना होना| इन नवों में से जिनके पास एक भी होती  हैं| मुझे वहअत्यंत प्रिय हैं|

जय सीता राम जी

Sunday, 28 April 2024

माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है

 माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है


माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है
माँ जीवन के फूलों में, खूशबू का वास है
माँ रोते हुए बच्चे का, खुशनुमा पालना है
माँ मरूस्थल में नदी या मीठा-सा झरना है
माँ लोरी है, गीत है, प्यारी-सी थाप है
माँ पूजा की थाली है, मंत्रो का जाप है
माँ आँखो का सिसकता हुआ किनारा है
माँ ममता की धारा है, गालों पर पप्पी है,
माँ बच्चों के लिए जादू की झप्पी है
माँ झुलसते दिनों में, कोयल की बोली है
माँ मेंहँदी है, कुंकम है, सिंदूर है, रोली है
माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है
माँ फूंक से ठंडा किया कलेवा है
माँ कलम है, दवात है, स्याही है
माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है
माँ अनुष्ठान  है, साधना है, जीवन का हवन है
माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है
माँ चूड़ीवाले हाथों के, मजबूत कंधो का नाम है
माँ काशी है, काबा है, और चारों धाम है||

माँ चिन्ता है, याद है, हिचकी है
माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है
माँ चूल्हा, धुँआ, रोटी और हाथों का छाला है
माँ जीवन की कड़वाहट में अमृत का प्याला है
माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है
माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है
माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता
माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता

Saturday, 27 April 2024

क्यों कहते हैं मां-बाप को धरती के भगवान

क्यों कहते हैं मां-बाप को धरती के भगवान


एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ के आस-पास एक बच्चा खेलने आया करता था। बच्चे और पेड़ की दोस्ती हो गई। पेड़ ने उस बच्चे से कहा तू आता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। बच्चा बोला लेकिन तुम्हारी शाखाएं बहुत ऊंची है मुझे खेलने में दिक्कत होती है। बच्चे के लिए पेड़ थोड़ा नीचे झुक गया। वह बच्चा खेलने लगा। एक बार बहुत दिनों तक बच्चा नहीं आया तो पेड़ उदास रहने लगा। और जब वह आया तो वह युवा हो चुका था। पेड़ ने उससे पूछा तू अब क्यों मेरे पास नहीं आता? वह बोला अब मैं बड़ा हो गया हूं। अब मुझे कुछ कमाना है। पेड़ बोला मैं नीचे झुक जाता हूं तो मेरे फल तोड़ ले और इसे बेच दे। तेरी समस्या का समाधान हो जाएगा।
इस तरह वह पेड़ जवानी में भी उसके काम आ गया। फिर बहुत दिनों तक वह नहीं आया। पेड़ फिर उदास रहने लगा। बहुत दिनों बाद वह वापस लौटा तो पेड़ ने कहा तुम कहा रह गए थे। वह बोला क्या बताऊं बड़ी समस्या है। परिवार बड़ा हो गया है अब मुझे एक घर बनाना है। पेड़ बोला एक काम कर मुझे काट ले। मेरी लकडिय़ां तेरे कुछ काम आएंगी। उसने पेड़ काट डाला। अब केवल एक ठूंठ रह गया पेड़ के स्थान पर।
फिर लंबे अरसे तक वह नहीं आया। एक दिन वह आया तो बड़ा चिंतित था। पेड़ बोला तुम कहां रह गए थे और इतने परेशान क्यों हो? वह बोला मैं तो पूरी तरह से परिवार में उलझ गया हूं। बाल-बच्चे हो गए हैं। बेटी के लिए रिश्ता देखने जाना है। रास्ते में नदी है कैसे जाऊँ? पेड़ बोला। तू एक काम कर यह जो थोड़ी लकड़ी और बची है इसे काटकर एक नाव बना और अपनी बेटी के लिए लड़का देखने जा। उसने ऐसा ही किया। फिर वह बहुत दिनों तक नहीं आया। बहुत दिनों बाद जब वह आया तो बड़ा परेशान था। पेड़ ने पूछा अब क्या हुआ? वह बोला मैंने बच्चों को बड़ा तो कर दिया पर अब यह चिंता है कि मेरे बच्चे मेरे चिता की लकड़ी भी लाएंगे कि नहीं?
पेड़ ने कहा ये जो भी कुछ बचा है मेरे शरीर का हिस्सा। इसे भी तू काट ले यह तेरे अंतिम समय में काम आएगा। और उसने पेड़ का बाकी हिस्सा भी काट लिया। और इस तरह उस पेड़ ने उस बच्चे के प्रेम में अपना संपूर्ण व्यक्तित्व ही न्यौछावर कर दिया।

Friday, 26 April 2024

ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन

ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन

हीरे मोंती से नही शोभा है हाथ की,
है हाथ जो भगवान् का पूजन किया करे,
मर कर भी अमर है नाम उस जिव का जग मैं,
प्रभु प्रेम में बलिदान जो जीवन किया करे ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
वो तो गली-गली हरी गुन गाने लगी
महलो में पली, बन के जोगिन चली
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन ...

कोई रोके नही, कोई टोके नही
मीरा गोविंदा गोपाल गाने लगी
बैठी संतों के संग, रंगी मोहन के रंग
मीरा प्रेमी प्रीतम को मनाने लगी ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
वो तो गली-गली हरी गुना गाने लगी
महलो में पली, बन के जोगिन चली
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन ...

राणा ने विष दिया, मानो अमृत पिया
मीरा सागर में सरिता समाने लगी
दुःख-ऐ लाखों सहे, मुक्से गोविन्द कहे
मीरा गोविंदा गोपाल-ऐ गाने लगी ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
वो तो गली-गली हरी गुण गाने लगी
महलो में पली, बन के जोगिन चली
मीरा रानी दीवानी कहने लगी ...!
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन !!!

Thursday, 25 April 2024

माँ-बाप को भूलना नहीं|

माँ-बाप को भूलना नहीं|


भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।
उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।।
पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे।
पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।।
मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया।
अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।।
कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये।
पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।।
लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।
सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।।
सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो।
जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।।
सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह।
माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।।
जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में।
उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।
धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे?

Wednesday, 24 April 2024

पानी तो अनमोल है....

पानी तो अनमोल है,

Save Water, Save Life....

पानी तो अनमोल है
उसको बचा के रखिये
बर्बाद मत कीजिये इसे
जीने का सलीका सीखिए
पानी को तरसते हैं
धरती पे काफी लोग यहाँ
पानी ही तो दौलत है
पानी सा धन भला कहां
पानी की है मात्रा सीमित
पीने का पानी और सीमित
तो पानी को बचाइए
इसी में है समृधी निहित
शेविंग या कार की धुलाई
या जब करते हो स्नान
पानी की जरूर बचत करें
पानी से है धरती महान
जल ही तो जीवन है
पानी है गुनों की खान
पानी ही तो सब कुछ है
पानी है धरती की शान
पर्यावरण को न बचाया गया
तो वो दिन जल्दी ही आएगा
जब धरती पे हर इंसान
बस 'पानी पानी' चिल्लाएगा
रुपये पैसे धन दौलत
कुछ भी काम न आएगा
यदि इंसान इसी तरह
धरती को नोच के खाएगा
आने वाली पुश्तों का
कुछ तो हम करें ख़्याल
पानी के बगैर भविष्य
भला कैसे होगा खुशहाल
बच्चे, बूढे और जवान
पानी बचाएँ बने महान
अब तो जाग जाओ इंसान
पानी में बसते हैं प्राण ॥

Tuesday, 23 April 2024

मनुष्य के तीन मूल्य...

मनुष्य के तीन मूल्य... 

एक खिलौने वाला तीन बहुत ही सुंदर और आकर्षक गुड़िया बनाकर राजा के पास बेचने के लिए गया। तीनों गुड़िया देखने में एक ही जैसी थी, कोई अन्तर मालूम नही चलता था, पर उनके दाम अलग-अलग थे।

खिलौने वाले राजा से कहा, एक के दाम एक सौ, दूसरे के चार सौ, और तीसरे के पूरे पन्द्रह सौ। राजा सोच में पड़ गया कि आख़िर तीनों गुडिया तों देखने में एक ही जैसी है तों फिर दाम अलग-अलग क्यों?  राजा ने उस खिलौने वाले से कहा की तुम अभी इन सबको यही छोड़कर जाओ, पैसे तुम्हें कल मिलेगे। वह जब चला गया तों राजा इसकी चर्चा अपने मंत्रियों से की,  पर यह बात किसी के समझ में नही आ रही थी। पर उसके मंत्रिपरिषद में एक मंत्री बहुत ही समझदार था। उसने राजा से उन गुड़ियो को अपने घर ले जाने की ईजाजत मांगी, और कहा की कल वो इस रहस्य को सबके सामने सुलझा देगा। राजा ने उसे गुडियों को घर ले जाने की अनुमति दे दी।

मंत्री के घर पर उसकी पत्नी और बेटी थी, दोनों ही इतने गुणी और समझदार थीं की उन के चर्चे शहर में भी होते रहते थे ।

तीनो मिलकर रातभर उन गुडियों को जांचते और परखते रहे और आखिरकार उन लोगों ने रहस्य का पता लगा ही लिया, सुबह मंत्री राजा के पास पहुँचा और उसने राजा को बताया कि उसने वो रहस्य खोज लिया है,  तों राजा ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और सबके सामने उसे बताने को कहा।

मंत्री ने कहा, "पहली वाली गुड़िया (सौ वाली ) के एक कान में जब कोई सीक डालो तों वह सीधे दूसरे कान से निकल जाती थी, दूसरी वाली (चार सौ ) के कान में जब कोई सीक डालो तों वह कान से न निकल कर मुख से निकल जाती थी, और जब तीसरी वाली (पन्द्रह सौ) के कान में जब कोई सीक डाली जाती थी तों वह न मुख से निकलती थी और न ही कान से बल्कि वह उसके पेट में जा कर अटक जाती थी।"

मंत्री ने राजा से कहा, जो मनुष्य सहनशील एवं गंभीर होते है, वह मनुष्य मूल्यवान होता है,  जो एक कान से सुने और मुख से तुरंत प्रचारित करने लगे वह उससे कम दर्जे का होता है, पर वह व्यक्ति जो किसी भी बात को एक कान से सुनकर हमेशा दूसरे कान से निकल देता है वह बहुत ही घटिया इन्सान होता है,  ऐसे लोगो का मूल्य अधिक नही होता। अब राजा को सारी बात समझ में आ गयी थी। उसने खुश होकर मंत्री को पुरस्कार भी दिया।

गौरतलब : कोई भी बात सुनकर अपने भीतर ही सीमित रखना समझदारी है, किसी बात को हँसी में उड़ा देने वाले लोग या चुगली करने वाले लोगों की समाज में क़द्र नही होता।

Monday, 22 April 2024

हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।

हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।


एक राजा था। उसने आज्ञा दी कि संसार में इस बात की खोज की जाय कि कौन से जीव-जंतु निरुपयोगी हैं। बहुत दिनों तक खोज बीन करने के बाद उसे जानकारी मिली कि संसार में दो जीव जंगली मक्खी और मकड़ी बिल्कुल बेकार हैं। राजा ने सोचा, क्यों न जंगली मक्खियों और मकड़ियों को ख़त्म कर दिया जाए।

इसी बीच उस राजा पर एक अन्य शक्तिशाली राजा ने आक्रमण कर दिया, जिसमें राजा हार गया और जान बचाने के लिए राजपाट छोड़ कर जंगल में चला गया। शत्रु के सैनिक उसका पीछा करने लगे। काफ़ी दौड़-भाग के बाद राजा ने अपनी जान बचाई और थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मारा जिससे राजा की नींद खुल गई। उसे ख़याल आया कि खुले में ऐसे सोना सुरक्षित नहीं और वह एक गुफ़ा में जा छिपा। राजा के गुफ़ा में जाने के बाद मकड़ियों ने गुफ़ा के द्वार पर जाला बुन दिया।

शत्रु के सैनिक उसे ढूँढ ही रहे थे। जब वे गुफ़ा के पास पहुँचे तो द्वार पर घना जाला देख कर आपस में कहने लगे, "अरे! चलो आगे। इस गुफ़ा में वह आया होता तो द्वार पर बना यह जाला क्या नष्ट न हो जाता।"

गुफ़ा में छिपा बैठा राजा ये बातें सुन रहा था। शत्रु के सैनिक आगे निकल गए। उस समय राजा की समझ में यह बात आई कि संसार में कोई भी प्राणी या चीज़ बेकार नहीं। अगर जंगली मक्खी और मकड़ी न होतीं तो उसकी जान न बच पाती। 


इस संसार में कोई भी चीज़ या प्राणी बेकार नहीं। हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।

Sunday, 21 April 2024

मो को कहां तू ढूंढे बंदे

मो को कहां तू ढूंढे बंदे 

एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी। इतने में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज है, तो उसे लेकर उड़ गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने की कोशिश की, पर खा न सका। कठोर हीरों पर मारते-मारते चोंच दुखने लगी। अंतत: हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ कर वह उड़ गया। 

जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार पर गया, पर वह तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा, परन्तु हार गायब। रोती-धोती वह राजा के पास पहुंची, बोली कि हार चोरी हो गई है, उसका पता लगाइए। राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे। लेकिन रानी मानी नहीं, उसे उसी हार की रट थी। कहने लगी, नहीं मुझे तो वही हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे, पर किसी को हार मिले ही नहीं। 

राजा ने कोतवाल को कहा, मुझ को वह गायब हुआ हार लाकर दो। कोतवाल बड़ा परेशान, कहां मिलेगा? सिपाही, प्रजा, कोतवाल- सब खोजने में लग गए। राजा ने ऐलान किया, जो कोई हार लाकर मुझे देगा, उसको मैं आधा राज्य पुरस्कार में दे दूंगा। अब तो होड़ लग गई प्रजा में। सभी लोग हार ढूंढने लगे आधा राज्य पाने के लालच में। तो ढूंढते-ढूंढते अचानक वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा। हार तो दिखाई दे रहा था, पर उसमें से बदबू आ रही थी। पानी काला था। परन्तु एक सिपाही कूदा। इधर-उधर बहुत हाथ मारा, पर कुछ नहीं मिला। पता नहीं कहां गायब हो गया। फिर कोतवाल ने देखा, तो वह भी कूद गया। दो को कूदते देखा तो कुछ उत्साही प्रजाजन भी कूद गए। फिर मंत्री कूदा। 

तो इस तरह उस नाले में भीड़ लग गई। लोग आते रहे और अपने कपडे़ निकाल-निकाल कर कूदते रहे। लेकिन हार मिला किसी को नहीं- कोई भी कूदता, तो वह गायब हो जाता। जब कुछ नहीं मिलता, तो वह निकल कर दूसरी तरफ खड़ा हो जाता। सारे शरीर पर बदबूदार गंदगी, भीगे हुए खडे़ हैं। दूसरी ओर दूसरा तमाशा, बडे़-बडे़ जाने-माने ज्ञानी, मंत्री सब में होड़ लगी है, मैं जाऊंगा पहले, नहीं मैं तेरा सुपीरियर हूं, मैं जाऊंगा पहले हार लाने के लिए। 

इतने में राजा को खबर लगी। उसने सोचा, क्यों न मैं ही कूद जाऊं उसमें? आधे राज्य से हाथ तो नहीं धोना पडे़गा। तो राजा भी कूद गया। इतने में एक संत गुजरे उधर से। उन्होंने देखा तो हंसने लगे, यह क्या तमाशा है? राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही -सब कीचड़ में लथपथ, क्यों कूद रहे हो इसमें? 

लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार चोरी हो गई है। वहां नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन जैसे ही लोग कूदते हैं तो वह गायब हो जाता है। किसी के हाथ नहीं आता। 

संत हंसने लगे, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो उसकी परछाई है। 

इस कहानी का क्या मतलब हुआ? जिस चीज की हम को जरूरत है, जिस परमात्मा को हम पाना चाहते हैं, जिसके लिए हमारा हृदय व्याकुल होता है -वह सुख शांति और आनन्द रूपी हार क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है और यह महसूस होता है कि इस को हम पूरा कर लेंगे। अगर हमारी यह इच्छा पूरी हो जाएगी तो हमें शांति मिल जाएगी, हम सुखी हो जाएंगे। परन्तु जब हम उसमें कूदते हैं, तो वह सुख और शांति प्राप्त नहीं हो पाती। 

इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि वह शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमारे अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।

Friday, 19 April 2024

बुद्ध की अन्तिम शिक्षा....

बुद्ध की अन्तिम शिक्षा.... 

भगवान् बुद्ध अपने शरीर की आखिरी साँसे गिन रहे थे। उनके सारे शिष्य और अनुयायी उनके चारों ओर एकत्रित थे। ऐसे में उन्होनें भगवान् से अपना आखिरी संदेश देने का अनुरोध किया।

बुद्ध अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य की तरफ़ मुख करके बोले: "मेरे मुख में देखो, क्या दिख रहा है"?

बुद्ध के खुले मुख की तरफ़ देख कर वह बोला: "भगवन, इसमें एक जीभ दिखाई दे रही है"

बुद्ध बोले: "बहुत अच्छा, लेकिन कोई दांत भी हैं क्या?"

शिष्य ने बुद्ध के मुख के और पास जाकर देखा, और बोला: "नहीं भगवन, एक भी दांत नहीं है"

बुद्ध बोले: "दांत कठोर होते हैं, इसलिए टूट जाते हैं। जीभ नरम होती है, इसलिए बनी रहती है। अपने शब्द और आचरण नरम रखो, तुम भी बने रहोगे"

यह कहकर बुद्ध ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।

नरमी में ही शान्ति और विकास है। इसी में सबकी भलाई है। 

वास्तविक सुख

वास्तविक सुख 

एक बार एक सेठ की राह चलते एक साधु से मुलाकात हो गई। चलते-चलते सफर को आसान बनाने के लिए दोनों सुख और अध्यात्म पर चर्चा करने लगे। सेठ ने कहा, 'मेरे पास जीवन में उपभोग के सभी साधन हैं पर सुख नहीं है।'

साधु ने मुस्कराकर पूछा, 'कैसा सुख चाहते हो।'

सेठ ने कहा, 'वास्तविक सुख। यदि कोई मुझे वह सुख प्रदान कर दे तो मैं इसकी कीमत भी दे सकता हूं।' साधु ने फिर पूछा, 'क्या कीमत दोगे? सेठ ने कहा, 'मेरे पास बहुत धन है। मैं उसका एक बड़ा हिस्सा इसके बदले में दे सकता हूं। लेकिन मुझे वास्तविक सुख चाहिए।'

साधु ने देखा कि सेठ के हाथों में एक पोटली है जिसे वह बार-बार अपने और नजदीक समेटता जाता था। अचानक साधु ने पोटली पर झपट्टा मारा और भाग खड़ा हुआ। सेठ के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। पोटली में कीमती रत्न थे। सेठ चिल्लाता हुआ साधु के पीछे लपका लेकिन हट्टे-कट्टे साधु का मुकाबला वह थुलथुल सेठ कैसे करता। कुछ देर दौड़ने के बाद वह थककर बैठ गया।

वह अपने बहुमूल्य रत्नों के ऐसे अचानक हाथ से निकल जाने से बेहद दुखी था। तभी अचानक उसके हाथों पर रत्नों की वही पोटली गिरी। सेठ ने तुरंत उसे खोलकर देखा तो सारे रत्नों को सुरक्षित पाया। उसने पोटली को हृदय से लगा लिया। तभी उसे साधु की आवाज सुनाई दी जो उसके पीछे खड़ा था। साधु ने कहा, 'सेठ, सुख मिला क्या?' सेठ ने कहा, 'हां महाराज, बहुत सुख मिला। इस पोटली के यूं अचानक चले जाने से मैं बहुत दुखी था मगर अब मुझे बहुत सुख है।'

साधु ने कहा, 'सेठ, ये रत्न तो तुम्हारे पास पहले भी थे पर तब भी तुम सुख की तलाश में थे। बस, इनके जरा दूर होने से ही तुम दुखी हो गए यानी तुम्हारा सुख इस धन से जुड़ा है। यह फिर अलग होगा तो तुम फिर दुखी हो जाओगे। यह सुख नकली है। अगर वास्तविक सुख की तलाश है तो तुम्हें उसकी वास्तविक कीमत भी देनी होगी। जो यह नकली धन नहीं है बल्कि वह है सेवा और त्याग।'

Thursday, 18 April 2024

मानवीय जीवन में ज्ञान का दीपक जलाते हैं सदगुरू

मानवीय जीवन में ज्ञान का दीपक जलाते हैं सदगुरू 


जिस प्रकार से अंधकार को मिटाने के लिए उसके पीछे लाठी लेकर नहीं भागना पड़ता बल्कि उसे दूर करने के लिए दीपक दीया या बिजली का बल्ब जलाया जाता है, रोशनी करना जरूरी है वैसे ही सदगुरू अपनी शरण में आने वाले के मन में व्याप्त अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करने के लिए ज्ञान का दीपक जला देते हैं।

जैसे प्रकाश के जलते ही अंधकार स्वत: नष्ट होने लगता है वैसे ही सदगुरु की संगत से अंधकार खत्म होने लगता है और मनुष्य की दृष्टि ही बदल जाती है। गुरु के आशीर्वाद से नाशवान पदार्थो के प्रति अरुचि होने लगती हैं और सद पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है जिससे परमात्मा का साक्षात्कार सुलभ हो जाता है इसलिए मनुष्य के लिए जीवन में सच्चे गुरु का चुनाव आवश्यक है। गुरु की संगत से प्रकाश का मार्ग प्रशस्त होता है और प्रभु की प्राप्ति का रास्ता सुगम हो जाता हैं। बाबा को पाने के लिए पहले मनुष्य को अपना मन निर्मल करते हुए अहम व लोभ का त्याग करना होगा। जो मनुष्य जीवन भर मोह जाल में फंस कर प्रभु का नाम लेना भी भूल जाते है उन्हें कभी सच्ची मानसिक शांति नहीं मिलती और जीवन में हर खुशी अधूरी ही रह जाती हैं। सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्य को सही मार्ग दिखलाए और उसे प्रभु प्राप्ति व मानसिक शांति पाने का रास्ता बताते हुए उसका उद्धार करे।

जो मनुष्य अहंकार का त्याग नहीं करता व मैं की भावना में ही उलझा रहता है वह कभी बाबा का प्रिय पात्र नहीं बन सकता। हर प्राणी को समान समझते हुए उससे ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा आप उससे अपेक्षा रखते हैं।

हर मनुष्य में परोपकार की भावना होनी चाहिए। साथ ही नेकी कर दरिया में डाल वाली मानसिकता भी होनी चाहिए। मनुष्य को कभी भी किसी पर उपकार करके उसका एहसान नहीं जताना चाहिए। किसी पर एहसान करके जताने से अच्छा है कि एहसान किया ही न जाए।

Wednesday, 17 April 2024

आप सभी को श्री दूर्गा नवमी एवं श्री राम नवमी के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनायें

आप सभी को श्री दूर्गा नवमी एवं श्री राम नवमी के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनायें


या देवी सर्वभू‍तेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। 
अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है। ऐसा माना गया है कि माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विश्वास किया जाता है कि इनकी आराधना से भक्त को अणिमा , लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माँ की कृपा का पात्र बन सकता ही है। माँ की आराधना के लिए इस श्लोक का प्रयोग होता है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।


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Tuesday, 16 April 2024

आप सभी को माँ दुर्गा अष्टमी की हार्दिक शुभ कामनायें - माँ दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी हैं।

आप सभी को माँ दुर्गा अष्टमी की हार्दिक शुभ कामनायें


माँ दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णत: गौर है। इनकी गौरता की उपमा शंख, चक्र और कुंद के फूल से की गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद गौरी'। इनके वस्त्र एवं समस्त आभूषण आदि भी श्वेत है। इनकी चार भुजाएं है। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिना हाथ अभय-मुद्रा में तथा नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरू और नीचे वाले बायें हाथ में वर मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। अपने पार्वती रूप में जब इन्होने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तपस्या की थी तो इनका रंग काला पड़ गया था। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने इनके शरीर को पवित्र गंगा-जल से मल कर धोया तब इनका शरीर बिजली की चमक के सामान अत्यंत क्रन्तिमान-गौर हो गया। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।

 मां महागौरी का पूजन धन, वैभव और सुख-शांति प्रदान करता है।

नवरात्र के आठवें दिन मां के महागौरी स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। महागौरी स्वरूप उज्जवल, कोमल, श्वेतवर्णा तथा श्वेत वस्त्रधारी हैं। महागौरी मस्तक पर चन्द्र का मुकुट धारण किये हुए हैं। कान्तिमणि के समान कान्ति वाली देवी जो अपनी चारों भुजाओं में क्रमशः शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, उनके कानों में रत्न जडितकुण्डल झिलमिलाते रहते हैं। महागौरीवृषभ के पीठ पर विराजमान हैं। महागौरी गायन एवं संगीत से प्रसन्न होने वाली ‘महागौरी‘ माना जाता हैं।


मंत्र:
श्वेते वृषे समरूढ़ाश्वेताम्बराधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

ध्यान:-
वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थितांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥

स्तोत्र:-
सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-
ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥

मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति का सोमचक्र जाग्रत होताहैं। महागौरी के पूजन से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं। महागौरी के पूजन करने वाले साधन के लिये मां अन्नपूर्णा के समान, धन, वैभव और सुख-शांति प्रदान करने वाली एवं  संकट से मुक्ति दिलाने वाली देवी महागौरी हैं।

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Monday, 15 April 2024

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है




माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है।
इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह काला होता है। बाल बिखरे हुए हैं। गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनो नेत्र ब्रम्हांड के समान गोल हैं। इनके श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन गदर्भ (गधा) है। ऊपर उठे दाहिने हाथ से सबको वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग ( कटार ) है। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है परन्तु ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसलिए इनसे किसी भी प्रकार से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है।


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Sunday, 14 April 2024

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है।

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक बधाई -  माँ दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है।


माँ दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है।
इनका कात्यायनी नाम पड़ने की कथा इस प्रकार है - कत नाम के एक प्रसिद्ध महार्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्ही कात्य के गोत्र में महार्षि कात्यायन उत्पन हुए थे। इन्होने भगवती पराम्बा की बहुत कठिन उपासना की थी। उनकी इच्छा थी की माँ भगवती उनके घर पुत्री रूप में जन्म ले। माँ भगवती ने उनकी ये प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया जब ब्रम्हा, विष्णु, महेश तीनो ने अपने अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन किया। इन देवी ने महार्षि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लिया। महार्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण ये कात्यायनी कहलाई।

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Saturday, 13 April 2024

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा जी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक बधाई


माँ दुर्गा जी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।

ये भगवान स्कन्द " कुमार कार्तिकेय " नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इनका वाहन मयूर है। इन्ही भगवान स्कन्द की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।

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Friday, 12 April 2024

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है।

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है।


माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है।
अपनी मंद हलकी हंसी द्वारा अंड अर्थात ब्रम्हांड को उत्पन करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का आस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार था, तब इन्ही देवी ने अपने हास्य से सृष्टि की रचना की थी। इस कारण यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि-शक्ति हैं। इनसे पूर्व ब्रम्हांड का आस्तित्व था ही नहीं।

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Thursday, 11 April 2024

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई- माँ दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है|

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक बधाई- माँ दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है|


 माँ दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है| नवरात्रि-उपासना में तीसरे दिन इन्ही के विग्रह का पूजन आराधन किया जाता है| इनका यह स्वरूप परम शक्तिदायक और कल्याणकारी है| इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है| इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है| इसके शरीर का रंग स्वर्ण के सामान चमकीला है| इनके दस हाथ है| इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शास्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं| इनका वाहन सिंह है| इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उधयत रहने वाली होती है| इनके घंटे की-सी भयानक चंडध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं|

Wednesday, 10 April 2024

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं - माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी का है |

 आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं - माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी का है |


माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी का है | यहाँ ब्रम्हाश शब्द का अर्थ तपस्या है | ब्रम्हचारिणी अर्थात तप की चारिनी (तप का आचरण करने वाली) ब्रम्हचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है | इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बहिने हाथ में कमण्डल रहता है | अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान् शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी | दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रम्हचारिणी नाम से अभिहित किया गया |

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Tuesday, 9 April 2024

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं - प्रथम माँ शैलपुत्री

  🚩जय माता दी🚩


आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं

प्रथम माँ शैलपुत्री

दुर्गा पूजा के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना इस मंत्र द्वारा की जाती है.

मां दुर्गा की पहली स्वरूपा और शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के पूजा के साथ ही दुर्गा पूजा आरम्भ हो जाता है. नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ इनकी ही पूजा और उपासना की जाती है. माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प रहता है. नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना प्रारंभ होता है. पौराणिक कथानुसार मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर कन्या रूप में उत्पन्न हुई थी. उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह भगवान् शंकर से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया. अपने मां और बहनों से मिलने को आतुर मां सती बिना निमंत्रण के ही जब पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और भोलेनाथ के प्रति तिरस्कार से भरा भाव मिला. मां सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकी और वहीं योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर दिया और अगले जन्म में शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को माँ शैलपुत्री कहा जाता है.

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Monday, 8 April 2024

सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम

सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम


जिस प्रकार गन्ने को धरती से उगाकर उससे रस निकालकर मीठा तैयार किया जाता है और सूर्य के उदय होने से अंधकार मिट जाता है उसी प्रकार सत्संग में आने से मनुष्य को प्रभु मिलन का रास्ता दिख जाता है और उसके जीवन का अंधकार मिट जाता है। सत्संग में आने से मानव का मन साफ हो जाता है और मानव पुण्य करने को प्रेरित होता है जिससे उसे प्रभु प्राप्ति का मार्ग सुगमता से प्राप्त होता है।

मानव द्वारा किए गए पुण्य कर्म ही उसे जीवन की दुश्वारियों से बचाते हैं और जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने में सहायक होते हैं। जीवन में असावधानी की हालत में व विपरीत परिस्थितियों में यही पुण्य कर्म मनुष्य की सहायता करते हैं। अगर मनुष्य का जीवन में कोई सच्चा साथी है तो वह है मनुष्य का अर्जित ज्ञान और उसके द्वारा किए गए पुण्य कर्म। मगर इसके लिए मनुष्य को अपनी बुद्धि व विवेक के द्वारा ही उचित अनुचित का फैसला करना होता है। कोई भी मानव अपनी बुद्धि व विवेक अनुसार ही जीवन में अच्छे-बुरे व सार्थक-निरर्थक कार्यो में अंतर को समझता है। सत्संग वह मार्ग है जिस पर चलकर मानव अपना जीवन सफल बना सकता है। जिस प्रकार का शास्त्रों के श्रवण से ही सुशोभित होता है न कि कानों में कुण्डल पहनने से। इसी प्रकार हाथ की शोभा सत्पात्र को दान देने से होती है न कि हाथों में कंगन पहनने से। करुणा, प्रायण, दयाशील मनुष्यों का शरीर परोपकार से ही सुशोभित होता है न कि चंदन लगाने से।

शरीर का श्रृंगार कुण्डल आदि लगाकर या चंदन आदि के लेप करना ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह सब तो नष्ट हो सकता है परन्तु मनुष्य का शास्त्र ज्ञान सदा उसके साथ रहता है। मनुष्यों द्वारा किए गए दान व परोपकार उसके सदा काम आते हैं और परमार्थ मार्ग पर चलने वाला मनुष्य ही मानव जाति का सच्चा शुभ चिंतक होता है। प्रेम से सुनना समझना व प्रेम पूर्वक उसका मनन कर उसका अनुसरण करना ही मनुष्य को फल की प्राप्ति कराता है। लेकिन मनुष्य की चित्त वृत्ति सांसारिक पदार्थो में अटकी होने के कारण वह असत्य को ही सत्य मानता है। इसी कारण वह दुखों को भोगता है। शरीर को चलाने वाली शक्ति आत्मा अविनाशी सत्य है और वही कल्याणकारी है। 

Sunday, 7 April 2024

आज का चिंतन

आज का चिंतन

इस तपते भूखंड पर
उड़ते गरम रेत के बीच
जब मैं झुकूं नल पर
तब ओ प्यास
मुझे मत करना कमजोर
पियूं तो एक चुल्लू कम
कि याद रहे दूसरों की प्यास भी
खाऊँ तो एक कौर कम
कि याद रहे दूसरों की भूख भी


ईश्वर से हर दम यह दुआ मांगता रहता हूँ कि जियूं इस तरह अपने इस जन्म को।

एक ओर दूसरों की प्यास का खयाल रख एक चुल्लू पानी कम पीने,  दूसरों की भूख का खयाल रख एक कौर कम खाने की चेतना से भरे चरित्र की तलाश हमारे ईश्वर इस दुनिया में कर रहे है। लेकिन दूसरी ओर ठीक तभी यहीं इसी दुनिया में हत्यारे, आततायी व दंगाई माँ से पुत्रों को, भाईयों से बहन को, पत्नियों से पति को, कण्ठों से गीत को, जल से मिठास को और पेड़ों से हरियाली को छीन लेने का षड़यंत्र कर पूरी धरती को अशांत करने में लगे हुए हैं। जो इस सदी की भयावह घटना के रूप में सामने आता है।

ईश्वर को तलाश है एक ऐसे इन्सान की और एक ऐसे भक्त की जो समझ सके मेरे प्रभु की पीड़ा को। आओ समय निकाले अपनी भागम भाग के जीवन से ओर करे धन्यवाद अपने प्रभु का हर उस अन्न के कौर का और हर एक चुल्लू पानी का जो हमे जीवन देता है। बाबा साँई हमसे इस भाव की ही तो अपेक्षा रखते है। आइये बाबा की इन अपेक्षाओं पर खरा उतरें।

Saturday, 6 April 2024

राधा कृष्ण का प्रेम प्रसंग

राधा कृष्ण का प्रेम प्रसंग

एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया।दूध ज्यदा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला हे राधे !

सुनते ही रुक्मणी बोली प्रभु ऐसा क्या है राधा जी में जो आपकी हर साँस पर उनका ही नाम होता है।में भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूँ फिर भी आप हमे नहीं पुकारते।

श्री कृष्ण ने कहा देवी आप कभी राधा से मिली है और मंद मंद मुस्काने लगे।

अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंची राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा और उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि ये ही राधाजी है और उनके चरण छुने लगी तभी वो बोली आप कौन है तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया तब वो बोली में तो राधा जी की दासी हूँ।राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी रुक्मणी ने सातो द्वार पार किये और हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी क़ि अगर उनकी दासियाँ इतनी रूपवान है तो राधारानी स्वयं कैसी होंगी।सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंची।कक्ष में राधा जी को देखा अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिस का मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था।रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ी पर ये क्या राधा जी के पैरो पर तो छाले पड़े हुए है।रुक्मणी ने पूछा देवी आपके पैरो में छाले

कैसे।

तब राधा जी ने कहा देवी कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया वो ज्यदा गरम था जिससे उनके ह्रदय पर छाले पड गए और उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है।

श्री कृष्ण..  राधे कृष्ण..
       कृष्ण कृष्ण...    हरे हरे 

Friday, 5 April 2024

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।
एक बार एक भला आदमी नदी किनारे बैठा था। तभी उसने देखा एक बिच्छू पानी में गिर गया है। भले आदमी ने जल्दी से बिच्छू को हाथ में उठा लिया। बिच्छू ने उस भले आदमी को डंक मार दिया। बेचारे भले आदमी का हाथ काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।

भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए दुबारा उठा लिया। बिच्छू ने दुबारा उस भले आदमी
को डंक मार दिया। भले आदमी का हाथ दुबारा काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।

भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए एक बार फिर उठा लिया। वहाँ एक लड़का उस आदमी का बार-बार बिच्छू को पानी से निकालना और बार-बार बिच्छू का डंक मारना देख रहा था। उसने आदमी से कहा, "आपको यह बिच्छू बार-बार डंक मार रहा है फिर भी आप उसे डूबने से क्यों बचाना चाहते हैं?"
भले आदमी ने कहा, "बात यह है बेटा कि बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है बचाना। जब बिच्छू एक कीड़ा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ?"

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।

Thursday, 4 April 2024

एक खूबसूरत अहसास है…..माँ

एक खूबसूरत अहसास है…..माँ

हर मुश्किल में हमारा विश्वास है…..माँ

हमारे लिए सारी दुनिया है
…..माँ

क्यूँकि, बच्चों के लिए खुशियाँ है
…..माँ

जिसकी गोद हर गम से निजात दिलाती है, वो है
…..माँ

मेरी हर तकलीफ में याद आती है मुझे
…..माँ

मेरे सिर पर हाथ रखकर, राहत देती है
…..माँ

इस मतलबी दुनिया में, जिसे कोई मतलब नही, वो है
…..माँ

धरती पर खुदा का दर्शन है
…..माँ

दोगली दुनिया में सच्चा दर्पण है
…..माँ

मंज़िलों के लिए मैं नही जीता, मेरा रास्ता है
…..माँ

खुदा का भेजा हुआ, एक फरिश्ता है
…..माँ

सच तो ये है की तुम क्या हो माँ,

मैं लिख नही सकता, बता नही सकता…..माँ

Wednesday, 3 April 2024

Take me as your child.

Take me as your child.

Once when Swami Vivekananda went to USA, a lady asked him to marry her.

When Swami asked the lady about what made her ask him such question.
The lady replied that she was fascinated by his intellect. She wanted a child of such an intellect. So she asked Swami, whether he could marry her and give a child like him.

He said to that lady, that since she was attracted only by his intellect, there is no problem. "My dear lady, i understand Your desire. Marrying and bringing a child in to this world and understanding whether it is intelligent or not takes very long time. More over it is not guaranteed.

Instead, to fulfill Your desire immediately, i can suggest a guaranteed way. Take me as your child. You are my mother. Now on Your desire of having a child of my intellect is fulfilled."

The lady was speechless.

Tuesday, 2 April 2024

धरती की व्यथा को जानो

धरती की व्यथा को जानो

ना सिर्फ यह एक जलजला था
कुछ तो धरती पर भी पाप बढ़ चला था
करते हो जितना प्यार अपने परिजनों से
दो उतना ही मान पृथ्वी को उसके संरक्षणो से

ना जाने दो व्यर्थ एक बूंद भी वर्षा के पानी का
वरना बनकर रह जाओगे हिस्सा कहानी का
ना करो धरती माँ की कोख को छलनी
यू ही हवा में नहीं यह जिंदगी चलनी

लगाओ पेड़, करो भूमिगत बरखा का पानी
आपकी जरा सी बेरूखी भी धरती से नहीं सही जानी
अब भी रोक लो प्रदुषण कर लो देश को हरा भरा
वरना एक ही आवाज गूंजेगी मैं मरा मैं मरा

Monday, 1 April 2024

प्यार ना सीखा, नफरत करना सीख लिया.....

प्यार ना सीखा, नफरत करना सीख लिया.....

 हमने जीवन यापन करना सीखा, ज़िन्दगी जीना नहीं | अपने जीवन में हम साल-दर-साल जोड़ते गए, पर इस दौरान ज़िन्दगी कही खो गयी | हम चाँद पर टहलकदमी कर के वापस आ गए लेकिन सामने वाले घर में आये नए पडौसी से मिलने कि फुर्सत हमें नहीं मिली | हम सौरमंडल के पार जाने कि सोंच रहे है, पर आभामंडल का हमें कुछ पता नहीं | हम बड़ी बातें करते है, बेहतर बातें नहीं | हम वायु को स्वच्छ करना चाहते है, पर आत्मा को मलिन कर रहे है | हमने परमाणु तो जीत लिया, पूर्वग्रह से हार गए | हमने लिखा बहुत, सीखा कम | योजनाये बनायी बड़ी-बड़ी, काम कुच्छ किया नहीं | आपाधापी में लगे रहे, सब्र करना भूल गए | कंप्यूटर बनाए ऐसे जो काम करे हमारे लिए, लेकिन उन्होंने हमसे हमारे दोस्त छीन लिए |

क्या ज़माना आ गया है | आप इसे एक क्लिक से पढ़ सकते है, दूसरी क्लिक से किसी ओर को पढ़ा सकते है, तीसरी क्लिक से डिलीट भी कर सकते है|

मेरी बात माने :-
*  उनके साथ वक़्त गुज़ारे जिन्हें आप प्यार करते है, क्योंकि कोई भी किसी के साथ हमेशा नहीं रहता | याद रखे,
* उस बच्चे से भी बहुत मिठास से बोले जो अभी आप कि बात नहीं समझता - एक न एक दिन तो उसे बड़े हो कर  आपसे बात करनी ही है |
* दुसरो को प्रेम से गले लगाये, आखिर इसमें भी कोई पैसा लगता है क्या?
* 'मैं तुमसे प्यार करता हूँ' यह सिर्फ कहे नहीं, साबित भी करें |
* प्यार के दो मीठे बोल पुराणी कडवाहट ओर रिसतेज़ख्मो पर भी मरहम का काम करते है |
* हाथ थामें रखे - उस वक़्त को जी ले| याद रखे, गया वक़्त लौटकर नहीं आता |
* स्वयं को समय दे - भक्ति ओर पूजा - पाठ को समय दे |
* ज़िन्दगी को साँसों से नहीं नापिए बल्कि उन लम्हों को कैद करिए जो हमारी साँसों को चुरा ले जाते है |  

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.