धरती की व्यथा को जानो
ना सिर्फ यह एक जलजला था
कुछ तो धरती पर भी पाप बढ़ चला था
करते हो जितना प्यार अपने परिजनों से
दो उतना ही मान पृथ्वी को उसके संरक्षणो से
ना जाने दो व्यर्थ एक बूंद भी वर्षा के पानी का
वरना बनकर रह जाओगे हिस्सा कहानी का
ना करो धरती माँ की कोख को छलनी
यू ही हवा में नहीं यह जिंदगी चलनी
लगाओ पेड़, करो भूमिगत बरखा का पानी
आपकी जरा सी बेरूखी भी धरती से नहीं सही जानी
अब भी रोक लो प्रदुषण कर लो देश को हरा भरा
वरना एक ही आवाज गूंजेगी मैं मरा मैं मरा