शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Saturday, 30 September 2023

प्रभुजी सदा ही कृपा हम पे बनाये रखना

प्रभुजी सदा ही कृपा हम पे बनाये रखना


प्रभुजी सदा ही कृपा
हम पे बनाये रखना
जो रास्ता सही हो
उस पर चलाये रखना
कृपा बनाये रखना ...
ऐ दो जहाँ के मालिक
तेरे दर के हम सवाली
सब कुछ गया हैं लेकिन
मर्यादा हैं संभाली
जो सिखाया न भुलाना
हर हाल मुस्कुराना
आंसू छुपाये रखना
कृपा बनाये रखना...
प्रभु जी सदा ही कृपा
हम पे बनाये रखना...

शिव भोला भंडारी,
साईं भोला भंडारी ||

शिव महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्रयाम्बकम यजामहे

सुगंधिम पुष्टि वर्धनम

उर्वरुकमिवा बन्धनात

मृत्योर मुक्षीय मामृतात

Friday, 29 September 2023

माँ-बाप को भूलना नहीं

माँ-बाप को भूलना नहीं



भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।
उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।।
पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे।
पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।।
मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया।
अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।।
कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये।
पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।।
लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।
सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।।
सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो।
जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।।
सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह।
माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।।
जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में।
उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।
धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे?

Thursday, 28 September 2023

मै निर्धन हूँ तुमको क्या दूंगा जानते हो तुम इस दर्पण को !!

मै निर्धन हूँ तुमको क्या दूंगा जानते हो तुम इस दर्पण को !!


तेरे दर्शन को प्यासी है ये मेरी अखियाँ !
मस्तक है व्याकुल तेरे चरणों में झुकने को !!
नतमस्तक है समस्त शब्दों की माला मेरी !
तैयार हूँ मै तुम पर खुद को भी अर्पण करने को !!
इच्छाए है मन में बहुत जीवन में बहुत निराशा है !
पार लगाओगे तुम मेरी नैया मुझे तुम पर पूर्ण भरोसा है !!
सांस हो मेरे जीवन की आस हो मेरे मधुवन की !
वीरान पड़ा है तुम बिन सब कुछ उद्धार की अब अभिलाषा है !!
प्राणों पर है हक़ तुम्हारा स्वामी हो इस तन मन के !
मै निर्धन हूँ तुमको क्या दूंगा जानते हो तुम इस दर्पण को !!
उज्जवल नहीं हूँ, न हूँ पापमुक्त मै शरण तुम्हारी आया हूँ !
उद्धार करो या शाप दो अब तुम मै बस प्राश्चित करने आया हूँ !!
प्राश्चित है मेरे कर्मो का जो चाहे तुम फल देना मुझको !
संदेह नहीं है कोई मन के भीतर सब कुछ छोड़ा है अब तुम पर !!
तुम रचियिता हो श्रृष्टि के सञ्चालन तुम को ही करना है !
मै निर्गुण "मानव" क्या जानू अंत

Wednesday, 27 September 2023

मोको कहां ढूढे रे बन्दे

मोको कहां ढूढे रे बन्दे


मोको कहां ढूढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना तीर्थ मे ना मूर्त में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं व्रत उपवास में
ना मैं क्रिया कर्म में रहता
ना ही जोग सन्यास में
ना ही प्राण में ना ही पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकृति पर्वत गुफा में
ना ही स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरंत मिल जाउं
इक पल की तालाश में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूँ विश्वास में....

Tuesday, 26 September 2023

पानी तो अनमोल है, Save Water, Save Life....

पानी तो अनमोल है, Save Water, Save Life....


पानी तो अनमोल है
उसको बचा के रखिये
बर्बाद मत कीजिये इसे
जीने का सलीका सीखिए
पानी को तरसते हैं
धरती पे काफी लोग यहाँ
पानी ही तो दौलत है
पानी सा धन भला कहां
पानी की है मात्रा सीमित
पीने का पानी और सीमित
तो पानी को बचाइए
इसी में है समृधी निहित
शेविंग या कार की धुलाई
या जब करते हो स्नान
पानी की जरूर बचत करें
पानी से है धरती महान
जल ही तो जीवन है
पानी है गुनों की खान
पानी ही तो सब कुछ है
पानी है धरती की शान
पर्यावरण को न बचाया गया
तो वो दिन जल्दी ही आएगा
जब धरती पे हर इंसान
बस 'पानी पानी' चिल्लाएगा
रुपये पैसे धन दौलत
कुछ भी काम न आएगा
यदि इंसान इसी तरह
धरती को नोच के खाएगा
आने वाली पुश्तों का
कुछ तो हम करें ख़्याल
पानी के बगैर भविष्य
भला कैसे होगा खुशहाल
बच्चे, बूढे और जवान
पानी बचाएँ बने महान
अब तो जाग जाओ इंसान
पानी में बसते हैं प्राण ॥

Monday, 25 September 2023

हे प्रभु आनंद दाता, ज्ञान हमको दीजिये.....

हे प्रभु आनंद दाता, ज्ञान हमको दीजिये.....


हे प्रभु आनंद दाताज्ञान हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें
निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी न करें,
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूल कर भी न करें
सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें,
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें
जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में,
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में
मातृभूमि मातृसेवा हो अधिक प्यारी हमें,
देश की सेवा करें निज देश हितकारी बनें
कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा,
प्रेम से हम दुःखीजनों की नित्य सेवा करें
हे प्रभु आनंद दाताज्ञान हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

🚩🔱हर हर महादेव🔱🚩

Sunday, 24 September 2023

श्री मद भागवत गीता जी का सार

श्री मद भागवत गीता जी का सार



क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।

जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।

खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।

परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?

तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।

जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।

Saturday, 23 September 2023

अंत में कुछ भी हाथ न आया सिवाय पश्चाताप के

अंत में कुछ भी हाथ न आया सिवाय पश्चाताप के


थोङा सा सम्मान मिला,पागल हो गए।
थोङा सा धन मिला,बेकाबू हो चले।
थोङा सा ज्ञान मिला,उपदेश की भाषा सीख ली।
थोङा सा यश मिला,दुनिया पर हंसने लगे।
थोङा सा रूप मिला,दर्पण को तोङ डाला।
थोङा सा अधिकार मिला,दूसरों को तबाह कर दिया।
इस प्रकार तमाम उम्र छलनी से पानी भरते रहे।
अपनी समझ से बहुत बङा काम करते रहे।
अंत में कुछ भी हाथ न आया सिवाय पश्चाताप के।
जय साईं राम

Friday, 22 September 2023

मनुष्य के तीन मूल्य...

मनुष्य के तीन मूल्य... 



एक खिलौने वाला तीन बहुत ही सुंदर और आकर्षक गुड़िया बनाकर राजा के पास बेचने के लिए गया। तीनों गुड़िया देखने में एक ही जैसी थी, कोई अन्तर मालूम नही चलता था, पर उनके दाम अलग-अलग थे।

खिलौने वाले राजा से कहा, एक के दाम एक सौ, दूसरे के चार सौ, और तीसरे के पूरे पन्द्रह सौ। राजा सोच में पड़ गया कि आख़िर तीनों गुडिया तों देखने में एक ही जैसी है तों फिर दाम अलग-अलग क्यों?  राजा ने उस खिलौने वाले से कहा की तुम अभी इन सबको यही छोड़कर जाओ, पैसे तुम्हें कल मिलेगे। वह जब चला गया तों राजा इसकी चर्चा अपने मंत्रियों से की,  पर यह बात किसी के समझ में नही आ रही थी। पर उसके मंत्रिपरिषद में एक मंत्री बहुत ही समझदार था। उसने राजा से उन गुड़ियो को अपने घर ले जाने की ईजाजत मांगी, और कहा की कल वो इस रहस्य को सबके सामने सुलझा देगा। राजा ने उसे गुडियों को घर ले जाने की अनुमति दे दी।

मंत्री के घर पर उसकी पत्नी और बेटी थी, दोनों ही इतने गुणी और समझदार थीं की उन के चर्चे शहर में भी होते रहते थे ।

तीनो मिलकर रातभर उन गुडियों को जांचते और परखते रहे और आखिरकार उन लोगों ने रहस्य का पता लगा ही लिया, सुबह मंत्री राजा के पास पहुँचा और उसने राजा को बताया कि उसने वो रहस्य खोज लिया है,  तों राजा ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और सबके सामने उसे बताने को कहा।

मंत्री ने कहा, "पहली वाली गुड़िया (सौ वाली ) के एक कान में जब कोई सीक डालो तों वह सीधे दूसरे कान से निकल जाती थी, दूसरी वाली (चार सौ ) के कान में जब कोई सीक डालो तों वह कान से न निकल कर मुख से निकल जाती थी, और जब तीसरी वाली (पन्द्रह सौ) के कान में जब कोई सीक डाली जाती थी तों वह न मुख से निकलती थी और न ही कान से बल्कि वह उसके पेट में जा कर अटक जाती थी।"

मंत्री ने राजा से कहा, जो मनुष्य सहनशील एवं गंभीर होते है, वह मनुष्य मूल्यवान होता है,  जो एक कान से सुने और मुख से तुरंत प्रचारित करने लगे वह उससे कम दर्जे का होता है, पर वह व्यक्ति जो किसी भी बात को एक कान से सुनकर हमेशा दूसरे कान से निकल देता है वह बहुत ही घटिया इन्सान होता है,  ऐसे लोगो का मूल्य अधिक नही होता। अब राजा को सारी बात समझ में आ गयी थी। उसने खुश होकर मंत्री को पुरस्कार भी दिया।

गौरतलब : कोई भी बात सुनकर अपने भीतर ही सीमित रखना समझदारी है, किसी बात को हँसी में उड़ा देने वाले लोग या चुगली करने वाले लोगों की समाज में क़द्र नही होता।

Thursday, 21 September 2023

हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है

हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है


एक राजा था। उसने आज्ञा दी कि संसार में इस बात की खोज की जाय कि कौन से जीव-जंतु निरुपयोगी हैं। बहुत दिनों तक खोज बीन करने के बाद उसे जानकारी मिली कि संसार में दो जीव जंगली मक्खी और मकड़ी बिल्कुल बेकार हैं। राजा ने सोचा, क्यों न जंगली मक्खियों और मकड़ियों को ख़त्म कर दिया जाए।

इसी बीच उस राजा पर एक अन्य शक्तिशाली राजा ने आक्रमण कर दिया, जिसमें राजा हार गया और जान बचाने के लिए राजपाट छोड़ कर जंगल में चला गया। शत्रु के सैनिक उसका पीछा करने लगे। काफ़ी दौड़-भाग के बाद राजा ने अपनी जान बचाई और थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मारा जिससे राजा की नींद खुल गई। उसे ख़याल आया कि खुले में ऐसे सोना सुरक्षित नहीं और वह एक गुफ़ा में जा छिपा। राजा के गुफ़ा में जाने के बाद मकड़ियों ने गुफ़ा के द्वार पर जाला बुन दिया।

शत्रु के सैनिक उसे ढूँढ ही रहे थे। जब वे गुफ़ा के पास पहुँचे तो द्वार पर घना जाला देख कर आपस में कहने लगे, "अरे! चलो आगे। इस गुफ़ा में वह आया होता तो द्वार पर बना यह जाला क्या नष्ट न हो जाता।"

गुफ़ा में छिपा बैठा राजा ये बातें सुन रहा था। शत्रु के सैनिक आगे निकल गए। उस समय राजा की समझ में यह बात आई कि संसार में कोई भी प्राणी या चीज़ बेकार नहीं। अगर जंगली मक्खी और मकड़ी न होतीं तो उसकी जान न बच पाती। 


इस संसार में कोई भी चीज़ या प्राणी बेकार नहीं। हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।

Wednesday, 20 September 2023

मो को कहां तू ढूंढे बंदे

मो को कहां तू ढूंढे बंदे 


एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी। इतने में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज है, तो उसे लेकर उड़ गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने की कोशिश की, पर खा न सका। कठोर हीरों पर मारते-मारते चोंच दुखने लगी। अंतत: हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ कर वह उड़ गया। 

जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार पर गया, पर वह तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा, परन्तु हार गायब। रोती-धोती वह राजा के पास पहुंची, बोली कि हार चोरी हो गई है, उसका पता लगाइए। राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे। लेकिन रानी मानी नहीं, उसे उसी हार की रट थी। कहने लगी, नहीं मुझे तो वही हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे, पर किसी को हार मिले ही नहीं। 

राजा ने कोतवाल को कहा, मुझ को वह गायब हुआ हार लाकर दो। कोतवाल बड़ा परेशान, कहां मिलेगा? सिपाही, प्रजा, कोतवाल- सब खोजने में लग गए। राजा ने ऐलान किया, जो कोई हार लाकर मुझे देगा, उसको मैं आधा राज्य पुरस्कार में दे दूंगा। अब तो होड़ लग गई प्रजा में। सभी लोग हार ढूंढने लगे आधा राज्य पाने के लालच में। तो ढूंढते-ढूंढते अचानक वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा। हार तो दिखाई दे रहा था, पर उसमें से बदबू आ रही थी। पानी काला था। परन्तु एक सिपाही कूदा। इधर-उधर बहुत हाथ मारा, पर कुछ नहीं मिला। पता नहीं कहां गायब हो गया। फिर कोतवाल ने देखा, तो वह भी कूद गया। दो को कूदते देखा तो कुछ उत्साही प्रजाजन भी कूद गए। फिर मंत्री कूदा। 

तो इस तरह उस नाले में भीड़ लग गई। लोग आते रहे और अपने कपडे़ निकाल-निकाल कर कूदते रहे। लेकिन हार मिला किसी को नहीं- कोई भी कूदता, तो वह गायब हो जाता। जब कुछ नहीं मिलता, तो वह निकल कर दूसरी तरफ खड़ा हो जाता। सारे शरीर पर बदबूदार गंदगी, भीगे हुए खडे़ हैं। दूसरी ओर दूसरा तमाशा, बडे़-बडे़ जाने-माने ज्ञानी, मंत्री सब में होड़ लगी है, मैं जाऊंगा पहले, नहीं मैं तेरा सुपीरियर हूं, मैं जाऊंगा पहले हार लाने के लिए। 

इतने में राजा को खबर लगी। उसने सोचा, क्यों न मैं ही कूद जाऊं उसमें? आधे राज्य से हाथ तो नहीं धोना पडे़गा। तो राजा भी कूद गया। इतने में एक संत गुजरे उधर से। उन्होंने देखा तो हंसने लगे, यह क्या तमाशा है? राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही -सब कीचड़ में लथपथ, क्यों कूद रहे हो इसमें? 

लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार चोरी हो गई है। वहां नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन जैसे ही लोग कूदते हैं तो वह गायब हो जाता है। किसी के हाथ नहीं आता। 

संत हंसने लगे, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो उसकी परछाई है। 

इस कहानी का क्या मतलब हुआ? जिस चीज की हम को जरूरत है, जिस परमात्मा को हम पाना चाहते हैं, जिसके लिए हमारा हृदय व्याकुल होता है -वह सुख शांति और आनन्द रूपी हार क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है और यह महसूस होता है कि इस को हम पूरा कर लेंगे। अगर हमारी यह इच्छा पूरी हो जाएगी तो हमें शांति मिल जाएगी, हम सुखी हो जाएंगे। परन्तु जब हम उसमें कूदते हैं, तो वह सुख और शांति प्राप्त नहीं हो पाती। 

इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि वह शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमारे अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।

Tuesday, 19 September 2023

बुद्ध की अन्तिम शिक्षा....

बुद्ध की अन्तिम शिक्षा.... 



भगवान् बुद्ध अपने शरीर की आखिरी साँसे गिन रहे थे। उनके सारे शिष्य और अनुयायी उनके चारों ओर एकत्रित थे। ऐसे में उन्होनें भगवान् से अपना आखिरी संदेश देने का अनुरोध किया।

बुद्ध अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य की तरफ़ मुख करके बोले: "मेरे मुख में देखो, क्या दिख रहा है"?

बुद्ध के खुले मुख की तरफ़ देख कर वह बोला: "भगवन, इसमें एक जीभ दिखाई दे रही है"

बुद्ध बोले: "बहुत अच्छा, लेकिन कोई दांत भी हैं क्या?"

शिष्य ने बुद्ध के मुख के और पास जाकर देखा, और बोला: "नहीं भगवन, एक भी दांत नहीं है"

बुद्ध बोले: "दांत कठोर होते हैं, इसलिए टूट जाते हैं। जीभ नरम होती है, इसलिए बनी रहती है। अपने शब्द और आचरण नरम रखो, तुम भी बने रहोगे"

यह कहकर बुद्ध ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।

नरमी में ही शान्ति और विकास है। इसी में सबकी भलाई है। 

Monday, 18 September 2023

वास्तविक सुख

वास्तविक सुख



 एक बार एक सेठ की राह चलते एक साधु से मुलाकात हो गई। चलते-चलते सफर को आसान बनाने के लिए दोनों सुख और अध्यात्म पर चर्चा करने लगे। सेठ ने कहा, 'मेरे पास जीवन में उपभोग के सभी साधन हैं पर सुख नहीं है।'

साधु ने मुस्कराकर पूछा, 'कैसा सुख चाहते हो।'

सेठ ने कहा, 'वास्तविक सुख। यदि कोई मुझे वह सुख प्रदान कर दे तो मैं इसकी कीमत भी दे सकता हूं।' साधु ने फिर पूछा, 'क्या कीमत दोगे? सेठ ने कहा, 'मेरे पास बहुत धन है। मैं उसका एक बड़ा हिस्सा इसके बदले में दे सकता हूं। लेकिन मुझे वास्तविक सुख चाहिए।'

साधु ने देखा कि सेठ के हाथों में एक पोटली है जिसे वह बार-बार अपने और नजदीक समेटता जाता था। अचानक साधु ने पोटली पर झपट्टा मारा और भाग खड़ा हुआ। सेठ के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। पोटली में कीमती रत्न थे। सेठ चिल्लाता हुआ साधु के पीछे लपका लेकिन हट्टे-कट्टे साधु का मुकाबला वह थुलथुल सेठ कैसे करता। कुछ देर दौड़ने के बाद वह थककर बैठ गया।

वह अपने बहुमूल्य रत्नों के ऐसे अचानक हाथ से निकल जाने से बेहद दुखी था। तभी अचानक उसके हाथों पर रत्नों की वही पोटली गिरी। सेठ ने तुरंत उसे खोलकर देखा तो सारे रत्नों को सुरक्षित पाया। उसने पोटली को हृदय से लगा लिया। तभी उसे साधु की आवाज सुनाई दी जो उसके पीछे खड़ा था। साधु ने कहा, 'सेठ, सुख मिला क्या?' सेठ ने कहा, 'हां महाराज, बहुत सुख मिला। इस पोटली के यूं अचानक चले जाने से मैं बहुत दुखी था मगर अब मुझे बहुत सुख है।'

साधु ने कहा, 'सेठ, ये रत्न तो तुम्हारे पास पहले भी थे पर तब भी तुम सुख की तलाश में थे। बस, इनके जरा दूर होने से ही तुम दुखी हो गए यानी तुम्हारा सुख इस धन से जुड़ा है। यह फिर अलग होगा तो तुम फिर दुखी हो जाओगे। यह सुख नकली है। अगर वास्तविक सुख की तलाश है तो तुम्हें उसकी वास्तविक कीमत भी देनी होगी। जो यह नकली धन नहीं है बल्कि वह है सेवा और त्याग।'

Sunday, 17 September 2023

मानवीय जीवन में ज्ञान का दीपक जलाते हैं सदगुरू

मानवीय जीवन में ज्ञान का दीपक जलाते हैं सदगुरू 



जिस प्रकार से अंधकार को मिटाने के लिए उसके पीछे लाठी लेकर नहीं भागना पड़ता बल्कि उसे दूर करने के लिए दीपक दीया या बिजली का बल्ब जलाया जाता है, रोशनी करना जरूरी है वैसे ही सदगुरू अपनी शरण में आने वाले के मन में व्याप्त अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करने के लिए ज्ञान का दीपक जला देते हैं।

जैसे प्रकाश के जलते ही अंधकार स्वत: नष्ट होने लगता है वैसे ही सदगुरु की संगत से अंधकार खत्म होने लगता है और मनुष्य की दृष्टि ही बदल जाती है। गुरु के आशीर्वाद से नाशवान पदार्थो के प्रति अरुचि होने लगती हैं और सद पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है जिससे परमात्मा का साक्षात्कार सुलभ हो जाता है इसलिए मनुष्य के लिए जीवन में सच्चे गुरु का चुनाव आवश्यक है। गुरु की संगत से प्रकाश का मार्ग प्रशस्त होता है और प्रभु की प्राप्ति का रास्ता सुगम हो जाता हैं। बाबा को पाने के लिए पहले मनुष्य को अपना मन निर्मल करते हुए अहम व लोभ का त्याग करना होगा। जो मनुष्य जीवन भर मोह जाल में फंस कर प्रभु का नाम लेना भी भूल जाते है उन्हें कभी सच्ची मानसिक शांति नहीं मिलती और जीवन में हर खुशी अधूरी ही रह जाती हैं। सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्य को सही मार्ग दिखलाए और उसे प्रभु प्राप्ति व मानसिक शांति पाने का रास्ता बताते हुए उसका उद्धार करे।

जो मनुष्य अहंकार का त्याग नहीं करता व मैं की भावना में ही उलझा रहता है वह कभी बाबा का प्रिय पात्र नहीं बन सकता। हर प्राणी को समान समझते हुए उससे ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा आप उससे अपेक्षा रखते हैं।

हर मनुष्य में परोपकार की भावना होनी चाहिए। साथ ही नेकी कर दरिया में डाल वाली मानसिकता भी होनी चाहिए। मनुष्य को कभी भी किसी पर उपकार करके उसका एहसान नहीं जताना चाहिए। किसी पर एहसान करके जताने से अच्छा है कि एहसान किया ही न जाए।

Saturday, 16 September 2023

धर्म तोड़ना नहीं, जोड़ना सिखाता है

धर्म तोड़ना नहीं, जोड़ना सिखाता है



समभाव में ही धर्म है और विषमता में हमेशा अधर्म होता है। मानव कभी खेत में पैदा नहीं होता है। वह तो मानव की आत्मा में पैदा होता है। हमें यह विश्व बंधुता व मानव से आपस में प्यार करना सिखाता है।

धर्म हमें कभी लड़ना, भिड़ना, झगड़ना आपस में किसी प्रकार की हिंसा करना नहीं सिखाता है। मानव हर समय माला जाप, मंदिरों में घंटे बजाकर व नारे लगाकर अपने को धार्मिक दिखाता है। सही मायने में वह धर्म नहीं है। आज धर्म को संप्रदायों में बाट दिया है। भगवान के नाम पर लड़ना, मजहब के नाम पर लड़ना इंसान की प्रवृत्ति बन गई है। धर्म के नाम पर हमारे विचारों में भेद तो हो सकते हैं, लेकिन हमारे मनों के अंदर भेद नहीं होना चाहिए। धर्म हमारे घरों के अंदर क्लेश नहीं सिखाता, हमें भाई-भाई को अलग होना नहीं सिखाता। आज हम भगवान को भी बांट रहे हैं। यह मेरा भगवान है यह तेरा भगवान है।

जैसे संतरा बाहर से एक दिखाई देता अंदर से अलग-अलग होता है। उसी प्रकार हमें भी बनना है। हमें कैंची की तरह नहीं जो हमेशा काटने का काम करती है, सूई की तरह बनना है जो हमेशा दूर हुए को मिलाती है। धर्म गुरु हमारे अंदर से अंधकार को दूर करते हैं। मुस्लिम जायरीन हज करते समय सफेद कपड़े पहनते हैं व नंगे पैर चलते हैं, सिर में खुजाते तक नहीं कहीं कोई जूं न मर जाए। हमें अपने प्राणों की बलि देकर भी सत्य व धर्म की रक्षा करनी चाहिए। धर्म संगठन में नहीं है। संगठन तो चार का भी होता है। आतंकवादियों का भी होता है। हमें नेक बनना है। बिनोबा जी ने कहा था कि अगर इंसान अपने धर्म में दृढ़ हो व दूसरों के धर्म में सम्मान की भावना हो और अधर्म से घृणा करता हो वह सही मायने में धार्मिक है। कोई भी धर्म हमें किसी का दिल तोड़ना नहीं जोड़ना सिखाता है।

Friday, 15 September 2023

सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम

सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम



जिस प्रकार गन्ने को धरती से उगाकर उससे रस निकालकर मीठा तैयार किया जाता है और सूर्य के उदय होने से अंधकार मिट जाता है उसी प्रकार सत्संग में आने से मनुष्य को प्रभु मिलन का रास्ता दिख जाता है और उसके जीवन का अंधकार मिट जाता है। सत्संग में आने से मानव का मन साफ हो जाता है और मानव पुण्य करने को प्रेरित होता है जिससे उसे प्रभु प्राप्ति का मार्ग सुगमता से प्राप्त होता है।

मानव द्वारा किए गए पुण्य कर्म ही उसे जीवन की दुश्वारियों से बचाते हैं और जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने में सहायक होते हैं। जीवन में असावधानी की हालत में व विपरीत परिस्थितियों में यही पुण्य कर्म मनुष्य की सहायता करते हैं। अगर मनुष्य का जीवन में कोई सच्चा साथी है तो वह है मनुष्य का अर्जित ज्ञान और उसके द्वारा किए गए पुण्य कर्म। मगर इसके लिए मनुष्य को अपनी बुद्धि व विवेक के द्वारा ही उचित अनुचित का फैसला करना होता है। कोई भी मानव अपनी बुद्धि व विवेक अनुसार ही जीवन में अच्छे-बुरे व सार्थक-निरर्थक कार्यो में अंतर को समझता है। सत्संग वह मार्ग है जिस पर चलकर मानव अपना जीवन सफल बना सकता है। जिस प्रकार का शास्त्रों के श्रवण से ही सुशोभित होता है न कि कानों में कुण्डल पहनने से। इसी प्रकार हाथ की शोभा सत्पात्र को दान देने से होती है न कि हाथों में कंगन पहनने से। करुणा, प्रायण, दयाशील मनुष्यों का शरीर परोपकार से ही सुशोभित होता है न कि चंदन लगाने से।

शरीर का श्रृंगार कुण्डल आदि लगाकर या चंदन आदि के लेप करना ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह सब तो नष्ट हो सकता है परन्तु मनुष्य का शास्त्र ज्ञान सदा उसके साथ रहता है। मनुष्यों द्वारा किए गए दान व परोपकार उसके सदा काम आते हैं और परमार्थ मार्ग पर चलने वाला मनुष्य ही मानव जाति का सच्चा शुभ चिंतक होता है। प्रेम से सुनना समझना व प्रेम पूर्वक उसका मनन कर उसका अनुसरण करना ही मनुष्य को फल की प्राप्ति कराता है। लेकिन मनुष्य की चित्त वृत्ति सांसारिक पदार्थो में अटकी होने के कारण वह असत्य को ही सत्य मानता है। इसी कारण वह दुखों को भोगता है। शरीर को चलाने वाली शक्ति आत्मा अविनाशी सत्य है और वही कल्याणकारी है। 

Thursday, 14 September 2023

राधा कृष्ण का प्रेम प्रसंग

राधा कृष्ण का प्रेम प्रसंग 


एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया।दूध ज्यदा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला हे राधे !

सुनते ही रुक्मणी बोली प्रभु ऐसा क्या है राधा जी में जो आपकी हर साँस पर उनका ही नाम होता है।में भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूँ फिर भी आप हमे नहीं पुकारते।

श्री कृष्ण ने कहा देवी आप कभी राधा से मिली है और मंद मंद मुस्काने लगे।

अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंची राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा और उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि ये ही राधाजी है और उनके चरण छुने लगी तभी वो बोली आप कौन है तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया तब वो बोली में तो राधा जी की दासी हूँ।राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी रुक्मणी ने सातो द्वार पार किये और हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी क़ि अगर उनकी दासियाँ इतनी रूपवान है तो राधारानी स्वयं कैसी होंगी। सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंची।कक्ष में राधा जी को देखा अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिस का मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था।रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ी पर ये क्या राधा जी के पैरो पर तो छाले पड़े हुए है।रुक्मणी ने पूछा देवी आपके पैरो में छाले

कैसे।

तब राधा जी ने कहा देवी कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया वो ज्यदा गरम था जिससे उनके ह्रदय पर छाले पड गए और उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है।

श्री कृष्ण..  राधे कृष्ण..
       कृष्ण कृष्ण...    हरे हरे 

Wednesday, 13 September 2023

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।


एक बार एक भला आदमी नदी किनारे बैठा था। तभी उसने देखा एक बिच्छू पानी में गिर गया है। भले आदमी ने जल्दी से बिच्छू को हाथ में उठा लिया। बिच्छू ने उस भले आदमी को डंक मार दिया। बेचारे भले आदमी का हाथ काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।

भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए दुबारा उठा लिया। बिच्छू ने दुबारा उस भले आदमी
को डंक मार दिया। भले आदमी का हाथ दुबारा काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।

भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए एक बार फिर उठा लिया। वहाँ एक लड़का उस आदमी का बार-बार बिच्छू को पानी से निकालना और बार-बार बिच्छू का डंक मारना देख रहा था। उसने आदमी से कहा, "आपको यह बिच्छू बार-बार डंक मार रहा है फिर भी आप उसे डूबने से क्यों बचाना चाहते हैं?"
भले आदमी ने कहा, "बात यह है बेटा कि बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है बचाना। जब बिच्छू एक कीड़ा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ?"

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।

Tuesday, 12 September 2023

एक खूबसूरत अहसास है…..माँ

एक खूबसूरत अहसास है…..माँ



एक खूबसूरत अहसास है…..माँ

हर मुश्किल में हमारा विश्वास है…..माँ

हमारे लिए सारी दुनिया है
…..माँ

क्यूँकि, बच्चों के लिए खुशियाँ है
…..माँ

जिसकी गोद हर गम से निजात दिलाती है, वो है
…..माँ

मेरी हर तकलीफ में याद आती है मुझे
…..माँ

मेरे सिर पर हाथ रखकर, राहत देती है
…..माँ

इस मतलबी दुनिया में, जिसे कोई मतलब नही, वो है
…..माँ

धरती पर खुदा का दर्शन है
…..माँ

दोगली दुनिया में सच्चा दर्पण है
…..माँ

मंज़िलों के लिए मैं नही जीता, मेरा रास्ता है
…..माँ

खुदा का भेजा हुआ, एक फरिश्ता है
…..माँ

सच तो ये है की तुम क्या हो माँ,

मैं लिख नही सकता, बता नही सकता…..माँ

Monday, 11 September 2023

मुझे तुमने मालिक बहुत कुछ दिया है

मुझे तुमने मालिक बहुत कुछ दिया है



मुझे तुमने मालिक बहुत कुछ दिया है,
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है,
जो मिलती ना गर दी हुयी दात तेरी
तो क्या थी जमाने में औकात मेरी
तुम्ही ने तो जीने के काबिल किया है
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है,

Oh Master(Lord), You have given me lots and lots
Thanks to thee - Thanks to thee
If your gracious blessing would not have been there,
What would have been my condition in this world (Did I ever have a standing in this world)?
Thanks to thee - Thanks to thee



मुझे है सहारा तेरी बंदगी का
यही है गुज़ारा मेरी जिंदगी का
यह बन्दा तेरे ही सहारे जिया है
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है,
मिला मुझको सब कुछ बदौलत तुम्हारी
मेरा कुछ नहीं सब है दौलत तुम्हारी
उसे क्या कमी जो तेरा हो लिया है
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है,


Your worship is my support/ help
This is how I lead my life
This servant is living purely by your support/help
Thanks to thee - Thanks to thee
I got everything - By your grace
Nothing is mine - Everything is your wealth
What can be lacking for one who has become yours
Thanks to thee - Thanks to thee

मेरा ही नहीं तू सबी का है दाता
सभी को सभी कुछ देता दिलाता
तेरा ही दिया सबने खाया पीया है
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है,
किया कुछ ना मैंने शर्मसार हूँ मैं
तेरी राहतों का करजदार हूँ मैं
दिया कुछ नहीं बस लिया ही लिया है
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है,

You are not just my Giver - You are the Giver for everyone
For everyone, your are the one who gives everything and who brings about or bestows everything
It is just all yours, which we are eating and drinking (relishing and enjoying)
Thanks to thee - Thanks to thee
I did not do anything - I am ashamed of myself
I owe you for all your grace and mercy
I have never given anything - Just taken everything
Thanks to thee - Thanks to thee


करें आस उम्मीद फिर पूरी भी होगी
जो अब तक है रहमत वह आगे भी होगी
बुझे ना प्यार का जो दिया है
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है,
तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है,

All desires and their fullfilment with fruitless aspirations, come through his
grace and for such a desireless person those gracious blessing of Sai will continuously happen
Thanks to thee - Thanks to thee

Sunday, 10 September 2023

Take me as your child.

 Take me as your child.





Once when Swami Vivekananda went to USA, a lady asked him to marry her.

When Swami asked the lady about what made her ask him such question.
The lady replied that she was fascinated by his intellect. She wanted a child of such an intellect. So she asked Swami, whether he could marry her and give a child like him.

He said to that lady, that since she was attracted only by his intellect, there is no problem. "My dear lady, i understand Your desire. Marrying and bringing a child in to this world and understanding whether it is intelligent or not takes very long time. More over it is not guaranteed.

Instead, to fulfill Your desire immediately, i can suggest a guaranteed way. Take me as your child. You are my mother. Now on Your desire of having a child of my intellect is fulfilled."

The lady was speechless.

Saturday, 9 September 2023

धरती की व्यथा को जानो

धरती की व्यथा को जानो


ना सिर्फ यह एक जलजला था
कुछ तो धरती पर भी पाप बढ़ चला था
करते हो जितना प्यार अपने परिजनों से
दो उतना ही मान पृथ्वी को उसके संरक्षणो से


ना जाने दो व्यर्थ एक बूंद भी वर्षा के पानी का
वरना बनकर रह जाओगे हिस्सा कहानी का
ना करो धरती माँ की कोख को छलनी
यू ही हवा में नहीं यह जिंदगी चलनी


लगाओ पेड़, करो भूमिगत बरखा का पानी
आपकी जरा सी बेरूखी भी धरती से नहीं सही जानी
अब भी रोक लो प्रदुषण कर लो देश को हरा भरा

वरना एक ही आवाज गूंजेगी मैं मरा मैं मरा

Friday, 8 September 2023

गुरु और ईश्वर का बहुत गहरा सम्बन्ध है.......

गुरु और ईश्वर का बहुत गहरा सम्बन्ध है.......



वेदों में गुरु को ईश्वर से अधिक पुजणिये माना है, गुरु की महिमा अपार है वो सदेव अपने शिष्य के लिए चिंतित रहता है, उसे सर्व गुण सम्पन बनाने का पर्यतन करता है,  ईश्वर की प्राप्ति भी गुरु द्वारा सम्भव हो सकती है |

इसलिए गुरु को अधिक पुजणिये समझा गया है जो हमे दिशा हीन  होने से बचाता रहता है |

परन्तु गुरु से भी बढकर जो है वो सदगुरु है |
गुरु और सदगुरु में बहुत अन्तर है.....

गुरु को हमेशा अपने शिष्य से कोई न कोई अपेक्षा रहती है,वो कभी भी समय आने पर अपने दिए हुए ज्ञान की गुरु दक्षिणा मांग लेते है परन्तु सदगुरु वो होता जो सदेव देता है कभी दक्षिणा की लालसा नही रखता।

गुरु तो बहुत से मिल जाते है परन्तु सदगुरु तो एक ही होता है .....

Thursday, 7 September 2023

प्यार ना सीखा, नफरत करना सीख लिया.....

प्यार ना सीखा, नफरत करना सीख लिया.....


 हमने जीवन यापन करना सीखा, ज़िन्दगी जीना नहीं | अपने जीवन में हम साल-दर-साल जोड़ते गए, पर इस दौरान ज़िन्दगी कही खो गयी | हम चाँद पर टहलकदमी कर के वापस आ गए लेकिन सामने वाले घर में आये नए पडौसी से मिलने कि फुर्सत हमें नहीं मिली | हम सौरमंडल के पार जाने कि सोंच रहे है, पर आभामंडल का हमें कुछ पता नहीं | हम बड़ी बातें करते है, बेहतर बातें नहीं | हम वायु को स्वच्छ करना चाहते है, पर आत्मा को मलिन कर रहे है | हमने परमाणु तो जीत लिया, पूर्वग्रह से हार गए | हमने लिखा बहुत, सीखा कम | योजनाये बनायी बड़ी-बड़ी, काम कुच्छ किया नहीं | आपाधापी में लगे रहे, सब्र करना भूल गए | कंप्यूटर बनाए ऐसे जो काम करे हमारे लिए, लेकिन उन्होंने हमसे हमारे दोस्त छीन लिए |

क्या ज़माना आ गया है | आप इसे एक क्लिक से पढ़ सकते है, दूसरी क्लिक से किसी ओर को पढ़ा सकते है, तीसरी क्लिक से डिलीट भी कर सकते है|

मेरी बात माने :-
*  उनके साथ वक़्त गुज़ारे जिन्हें आप प्यार करते है, क्योंकि कोई भी किसी के साथ हमेशा नहीं रहता | याद रखे,
* उस बच्चे से भी बहुत मिठास से बोले जो अभी आप कि बात नहीं समझता - एक न एक दिन तो उसे बड़े हो कर  आपसे बात करनी ही है |
* दुसरो को प्रेम से गले लगाये, आखिर इसमें भी कोई पैसा लगता है क्या?
* 'मैं तुमसे प्यार करता हूँ' यह सिर्फ कहे नहीं, साबित भी करें |
* प्यार के दो मीठे बोल पुराणी कडवाहट ओर रिसतेज़ख्मो पर भी मरहम का काम करते है |
* हाथ थामें रखे - उस वक़्त को जी ले| याद रखे, गया वक़्त लौटकर नहीं आता |
* स्वयं को समय दे - भक्ति ओर पूजा - पाठ को समय दे |
* ज़िन्दगी को साँसों से नहीं नापिए बल्कि उन लम्हों को कैद करिए जो हमारी साँसों को चुरा ले जाते है |  

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.