धर्म तोड़ना नहीं, जोड़ना सिखाता है
समभाव में ही धर्म है और विषमता में हमेशा अधर्म होता है। मानव कभी खेत में पैदा नहीं होता है। वह तो मानव की आत्मा में पैदा होता है। हमें यह विश्व बंधुता व मानव से आपस में प्यार करना सिखाता है।
धर्म हमें कभी लड़ना, भिड़ना, झगड़ना आपस में किसी प्रकार की हिंसा करना नहीं सिखाता है। मानव हर समय माला जाप, मंदिरों में घंटे बजाकर व नारे लगाकर अपने को धार्मिक दिखाता है। सही मायने में वह धर्म नहीं है। आज धर्म को संप्रदायों में बाट दिया है। भगवान के नाम पर लड़ना, मजहब के नाम पर लड़ना इंसान की प्रवृत्ति बन गई है। धर्म के नाम पर हमारे विचारों में भेद तो हो सकते हैं, लेकिन हमारे मनों के अंदर भेद नहीं होना चाहिए। धर्म हमारे घरों के अंदर क्लेश नहीं सिखाता, हमें भाई-भाई को अलग होना नहीं सिखाता। आज हम भगवान को भी बांट रहे हैं। यह मेरा भगवान है यह तेरा भगवान है।
जैसे संतरा बाहर से एक दिखाई देता अंदर से अलग-अलग होता है। उसी प्रकार हमें भी बनना है। हमें कैंची की तरह नहीं जो हमेशा काटने का काम करती है, सूई की तरह बनना है जो हमेशा दूर हुए को मिलाती है। धर्म गुरु हमारे अंदर से अंधकार को दूर करते हैं। मुस्लिम जायरीन हज करते समय सफेद कपड़े पहनते हैं व नंगे पैर चलते हैं, सिर में खुजाते तक नहीं कहीं कोई जूं न मर जाए। हमें अपने प्राणों की बलि देकर भी सत्य व धर्म की रक्षा करनी चाहिए। धर्म संगठन में नहीं है। संगठन तो चार का भी होता है। आतंकवादियों का भी होता है। हमें नेक बनना है। बिनोबा जी ने कहा था कि अगर इंसान अपने धर्म में दृढ़ हो व दूसरों के धर्म में सम्मान की भावना हो और अधर्म से घृणा करता हो वह सही मायने में धार्मिक है। कोई भी धर्म हमें किसी का दिल तोड़ना नहीं जोड़ना सिखाता है।