शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

************************************

निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

************************************

Monday, 31 January 2022

मुझ पे तूँ अपना हक तो जमाता है, ये तो मेरे कर्म है सांँई..

 ॐ सांँई राम



मैं ना चाहूँ इतना सुख सांँई,
जिसमे हो तुझे भुलाने का दुःख सांँई,
कभी-कभी ही लेकिन फिर भी
मुझ पे तूँ अपना हक तो जमाता है,
ये तो मेरे कर्म है सांँई..


 सबके संकट दूर करेंगे
सबके संकट दूर करेंगे
बाबा शिर्डी वाले

पधारो--पधारो--पधारो --पधारो
सारे जग के वाली
साँईं--- साँईं--- साँईं ---साँईं

जीवन का आधार है साँईं
करुणा का भंडार है साँईं
साँईं नाम है जिस जिह्वा पर
उसने मुक्ति पा ली
पधारो, सारे जग के वाली
पधारो--पधारो--पधारो --पधारो
सारे जग के वाली
साँईं--- साँईं--- साँईं ---साँईं

प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले
करुणा रस बरसाने वाले
श्रद्धा सबुरी भर जीवन में
कर देते खुशहाली
पधारोसारे जग के वाली
पधारो--पधारो--पधारो --पधारो
सारे जग के वाली
साँईं--- साँईं--- साँईं ---साँईं

सच्चे मन से शिर्डी जाते
खाली झोली भर ले आते
सच्चे मन से शिर्डी जाते
खाली झोली भर ले आते
सब पे करते है किरपा  वो
करें  भक्तों की रखवाली
पधारोसारे जग के वाली
पधारो--पधारो--पधारो --पधारो
सारे जग के वाली
साँईं--- साँईं--- साँईं ---साँईं

और किसी फिर राह चले क्यों
बंधन में फिर और बंधें क्यों
और किसी फिर राह चले क्यों
बंधन में फिर और बंधें क्यों
जन्म जन्म के बंधन छूटें
साँईं हैं, गर रखवाली
पधारो, सारे जग के वाली
पधारो--पधारो--पधारो --पधारो
सारे जग के वाली
साँईं--- साँईं--- साँईं ---साँईं

सबके संकट दूर करेंगे
 
सबके संकट दूर करेंगे
बाबा शिर्डी वाले
पधारो--पधारो--पधारो --पधारो
सारे जग के वाली
साँईं--- साँईं--- साँईं ---साँईं
पधारो, सारे जग के वाली
सबके संकट दूर करेंगे
सबके संकट दूर करेंगे
बाबा शिर्डी वाले
साँईं--- साँईं--- साँईं ---साँईं

Sunday, 30 January 2022

चरण नहीं यह हैं स्वर्ग समाना, भव से हुआ पार जो साँई को जाना

 ॐ सांँई राम जी



सुगम जो चाहो करना दूर्गम पथ
हाँकों उजले कर्मों की ओर रथ
कांटे भी बन सकते हैं कोमल फूल
सबका मालिक एक हैं ये कभी मत भूल

झूठ नहीं हैं सत्य हैं वाणी
दीपक जलते जहाँ संग पानी
उदी की भी महिमा हैं निराली
साँई ने नीम भी मीठी कर डाली
और करिश्मों की क्या करे बात
गंगा यमुना बहे चरणों मे साथ
चरण नहीं यह हैं स्वर्ग समाना
भव से हुआ पार जो साँई को जाना

काहे करें तू हठ ओ पगले
साँई सिमर, साँई को जपले
इस जन्म की साँई नाम कमाई
संवार देगी तेरे जन्म भी अगले

झूठे बोल ना जीवन में घोल
सच हैं समझ ले तू अनमोल
साँई हैं साँचा जग नरक समान
सौंप दे साँई को जीवन की कमान

नाम ही नहीं सिर्फ एक सार भी हैं
शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप परिवार ही हैं
जहाँ के मुखिया बाबा तारणहार हैं
साँई सम शोभा वाला यह घरबार हैं

साँई हाथ जिस डोर को थामे
नहीं हो सकता वह कभी लाचार
हर संभव प्रयास साँई राम का
तेरी मुश्किल से होगा दो चार

Saturday, 29 January 2022

आज मेरे मन के सांँई ने मुझसे कहा -

 ॐ सांई राम





साँईं नमो नमः .....
श्री साँईं नमो नमः ......
जय जय साँईं नमो नमः .....
सद्गुरु साँईं नमो नमः ... ....!!!

 

बंधन जहाँ के सब ही है झूठे
साँईं से तेरा नाता न टूटे
बाबा के रंग में रंगते जाओ
साँईं राम साँईं राम रटते जाओ

 
यूँ तो साँईं नाम उच्चारण,
संभव साँईं कृपा से होवे
साँईं नाम है कण कण में,
फिर कण कण साँईं को कैसे उच्चारे
केवल साँईं समर्पण ही,
प्रभु नाम की शक्ति उन्हीं से पायें
धन्य है वोजिस प्राणी के मुख से,
साँईं नाम स्तुत रटवाये


आज मेरे मन के सांँई ने मुझसे कहा -

जब दिल हो उदास
बस आँखें बंद कर लेना
और न हो कोई पास
तो खुद से तुम कह देना
बस आँखें बंद कर लेना
देखो तुम यूँ न रोना
अपनी प्यारी आँखें को
आंसू में न डुबोना
जब भी आये मेरी याद
बस आँखें बंद कर लेना
समझना मैं जानता हूँ तुम्हारा हाल
मैं नज़र नहीं आता पर होता हूँ
बिलकुल तेरे करीब तेरे हृदय में बसा सदा
तुम मुझे अपना दर्द बता देना
मत होना उदास
बस आँखें बंद कर लेना

Friday, 28 January 2022

शिरडी तीर्थ स्थान

 ॐ सांँई राम




शिरडी तीर्थ स्थान

साँईं बाबा का निवास सथान होने के कारण शिरडी की प्रसिद्धि देश भर में फैली है और शिरडी को लोग तीर्थ स्थान मानते हैं। शिरडी में यात्रियों, दर्शकों और भक्तों के ठहरने के लिये एक ही स्थान था जिसका नाम “साठे का बाड़ा” था। हरि विनायक साठे ने नीम पेड़ के आसपास की जमीन खरीद कर वहाँ लोगों के ठहरने के लिये एक बाड़ा बनवा दिया। नीम वृक्ष को चबूतरे से घेर दिया। सन् 1909 ई. में नाना साहब चान्दोरकर के कहने पर बम्बई के सालिसिटर हरि सीताराम उर्फ काका साहब दीक्षित साँईं बाबा के दर्शन के लिये शिरडी आये। वे एक बार लन्दन में ट्रेन से गिर गये थे जिससे उनके एक पैर में लंगड़ापन आ गया था। जब वे साईं बाबा से मिले तब उन्होंने कहा कि “पाँव के लँगड़ेपन की कोई बात नहीं है, मेरे मन के लंगड़ेपन को दूर कर दीजिये।” साँईं बाबा की कृपा से काका साहब दीक्षित के पैर और मन दोनों का लंगड़ापन ठीक हो गया। काका साहब दीक्षित इतने प्रभावित हुये कि उन्होंने साँईं बाबा के निकट शिरडी में ही रहने का निश्चय कर लिया। उन्होंने अपने रहने और दूसरे भक्तों के ठहरने के लिये एक बाड़ा शिरडी में बवनाया जो “दीक्षित बाड़ा” के नाम से जाना जाता है। नागपुर के धनी श्रीमान बापू साहब बूटी को साईं बाबा ने एक बार आँव की भयंकर बीमारी से और दूसरी बार हैजे से ठीक कर दिया। बापू साहब बूटी ने करोड़ों रुपये खर्च कर शिरडी में बाड़ा बनवा दिया। इस प्रकार शिरडी में तीन बाड़ा हो गये जहाँ आगन्तुक भक्त ठहरने लगे।
श्रीमान बूटी ने भव्य बाड़ा उसी स्थान पर बनवाया जहाँ पर साँईं बाबा के परिश्रम से फूलों का बगीचा तैयार हो गया था। बापू साहब बूटी के उसी बाड़े में साँईं बाबा का समाधि मन्दिर स्थित है जहाँ प्रतिदिन हजारों यात्री दर्शन करने के लिये आते हैं। साईं बाबा तो अन्तर्यामी थे। ऐसा लगता है कि उन्हें पहले से ही ज्ञात था कि उनका समाधि मन्दिर वहीं बनेगा। तभी तो पहले वहाँ उनके करकमलों से बगीचा लगा और बाद में वहीं उनकी समाधि बनी। अपनी मना समाधि के कुछ वर्ष पहले साँईं बाबा ने कहा था, “मेरे संसार से चले जाने के बाद भी मैं अपने समाधि के माध्यम से बात करूँगा।” उनकी यह भविष्यवाणी सच हुई। वे आज भी अपने भक्तों को नये नये अनुभव कराते हैं।


आपने कभी साँईं को देखा है ?
साँईं गरीबो का ...........
साँईं को पाना हैं या मिलना हैं तो किसी गरीब की मदद
कर के देखो वहां से साँईं की झलक उस मददगार को होगी
यकीन न हो तो आजमा के देखो.............

Thursday, 27 January 2022

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 40 - श्री साईबाबा की कथाएँ

 ॐ सांई राम



आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साँईं-वार  और होली के रंग भरे पावन पर्व की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साई-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साई सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साई जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साई सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साई चरणों में क्षमा याचना करते है...


श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 40 - श्री साईबाबा की कथाएँ

------------------------------------


1. श्री. बी. व्ही. देव की माता के उघापन उत्सव में सम्मिलित होना, और

2. हेमाडपंत के भोजन-समारोह में चित्र के रुप में प्रगट होना ।


इस अध्याय में दो कथाओं का वर्णन है


1. बाबा किस प्रकार श्रीमान् देव की मां के यहाँ उघापन में सम्मिलित हुए । और

2. बाबा किस प्रकार होली त्यौहार के भोजन समारोह के अवसर पर बाँद्रा में हेमाडपंत के गृह पधारे ।




प्रस्तावना

..........


श्री साई समर्थ धन्य है, जिनका नाम बड़ा सुन्दर है । वे सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही विषयों में अपने भक्तों को उपदेश देते है और भक्तों को अपनी जीवन ध्येय प्राप्त करने में सहायता प्रदान कर उन्हें सुखी बनाते है । श्री साई अपना वरद हस्त भक्तों के सिर पर रखकर उन्हें अपनी शक्ति प्रदान करते है । वे भेदभाव की भावना को नष्ट कर उन्हें अप्राप्य वस्तु की प्राप्ति कराते है । भक्त लोग साई के चरणों पर भक्तिपूर्वक गिरते है और श्री साईबाबा भी भेदभावरहित होकर प्रेमपूर्वक भक्तों को हृदय से लगाते है । वे भक्तगण में ऐसे सम्मिलित हो जाते है, जैसे वर्षाऋतु में समुद्र नदियों से मिलता तथा उन्हें अपनी शक्ति और मान देता है । इससे यह सिदृ होता है कि जो भक्तों की लीलाओं का गुणगान करते है, वे ईश्वर को उन लोगों से अपेक्षाकृत अधिक प्रिय है, जो बिना किसी मध्यस्थ के ईश्वर की लीलाओं का वर्णन करते है ।




श्री मती देव का उघापन उत्सव

...............................


श्री. बी. व्ही. देव डहाणू (जिला ठाणे) में मामलतदार थे । उनकी माता ने लगभग पच्चीस या तीस व्रत लिये थे, इसलिये अब उनका उघापन करना आवश्यक था । उघापन के साथ-साथ सौ-दो सौ ब्राहमणों का भोजन भी होने वाला था । श्री देव ने एक तिथि निश्चित कर बापूसाहेब जोग को एक पत्र शिरडी भेजा । उसमें उन्होंने लिखा कि तुम मेरी ओर से श्री साईबाबा को उघापन और भोजन में सम्मिलित होने का निमंत्रण दे देना और उनसे प्रार्थना करना कि उनकी अनुपस्थिति में उत्सव अपूर्ण ही रहेगा । मुझे पूर्ण आशा है कि वे अवश्य डहाणू पधार कर दास को कृतार्थ करेंगे । बापूसाहेब जोग ने बाबा को वह पत्र पढ़कर सुनाया । उन्होंने उसे ध्यानपूर्वक सुना और शुदृ हृदय से प्रेषित निमंत्रण जानकर वे कहने लगे कि जो मेरा स्मरण करता है, उसका मुझे सदैव ही ध्यान रहता है । मुझे यात्रा के लिये कोई भी साधन – गाड़ी, ताँगा या विमान की आवश्यकता नहीं है । मुझे तो जो प्रेम से पुकारता है, उसके सम्मुख मैं अविलम्ब ही प्रगट हो जाता हूँ । उसे एक सुखद पत्र भेज दो कि मैं और दो व्यक्तियों के साथ अवश्य आऊँगा । जो कुछ बाबा ने कहा था, जोग ने श्री. देव को पत्र में लिखकर भेज दिया । पत्र पढ़कर देव को बहुत प्रसन्नता हुई, परन्तु उन्हें ज्ञात था कि बाबा केवल राहाता, रुई और नीमगाँव के अतिरिक्त और कहीं भी नहीं जाते है । फिर उन्हें विचार आया कि उनके लिये क्या असंभव है । उनकी जीवनी अपार चमत्कारों से भरी हुई है । वे तो सर्वव्यापी है । वे किसी भी वेश में अनायास ही प्रगट होकर अपना वचन पूर्ण कर सकते है । उघापन के कुछ दिन पूर्व एक सन्यासी डहाणू स्टेशन पर उतरा, जो बंगाली सन्यासियों के समान वेशभूषा धारण किये हुये था । दूर से देखने में ऐसा प्रतीत होता था कि वह गौरक्षा संस्था का स्वंयसेवक है । वह सीधा स्टेशनमास्टर के पास गया और उनसे चंदे के लिये निवेदन करने लगा । स्टेशनमास्टर ने उसे सलाह दी कि तुम यहाँ के मामलेदार के पास जाओ और उनकी सहायता से ही तुम यथेष्ठ चंदा प्राप्त कर सकोगे । ठीक उसी समय मामलेदार भी वहाँ पहुँच गये । तब स्टेशन मास्टर ने सन्यासी का परिचय उनसे कराया और वे दोनों स्टेशन के प्लेटफाँर्म पर बैठे वार्तालाप करते रहे । मामलेदार ने बताया कि यहाँ के प्रमुख नागरिक श्री. रावसाहेब नरोत्तम सेठी ने धर्मार्थ कार्य के निमित्त चन्दा एकत्र करने की एक नामावली बनाई है । अतः अब एक और दूसरीनामावली बनाना कुछ उचित सा प्रतीत नहीं होता । इसलिये श्रेयस्कर तो यही होगा कि आप दो-चार माह के पश्चात पुनः यहाँ दर्शन दे । यह सुनकर सन्यासी वहाँ से चला गया और एक माह पश्चात श्री. देव के घर के सामने ताँगे से उतरा । तब उसे देखकर देव ने मन ही मन सोचा कि वह चन्दा माँगने ही आया है । उसने श्री. देव को कार्यव्यस्त देखकर उनसे कहा श्रीमान् । मैं चन्दे के निमित्त नही, वरन् भोजन करने के लिये आया हूँ ।


देव ने कहा बहुत आनन्द की बात है, आपका सहर्ष स्वागत है ।


सन्यासी – मेरे साथ दो बालक और है ।


देव – तो कृपया उन्हें भी साथ ले आइये ।


भोजन में अभी दो घण्टे का विलम्ब था । इसलिये देव ने पूछा – यदि आज्ञा हो तो मैं किसी को उनको बुलाने को भेज दूँ ।


सन्यासी – आप चिंता न करें, मैं निश्चित समय पर उपस्थित हो जाऊँगा ।


देव ने उने दोपहर में पधारने की प्रार्थना की । ठीक 12 बजे दोपहर को तीन मूर्तियाँ वहाँ पहुँची और भोज में सम्मिलित होकर भोजन करके वहाँ से चली गई ।



उत्सव समाप्त होने पर देव ने बापूसाहेब जोग को पत्र में उलाहना देते हुए बाबा पर वचन-भंग करने का आरोप लगाया । जोग वह पत्र लेकर बाबा के पास गये, परन्तु पत्र पढ़ने के पूर्व ही बाबा उनसे कहने लगे – अरे । मैंने वहाँ जाने का वचन दिया था तो मैंने उसे धोखा नहीं दिया । उसे सूचित करो कि मैं अन्य दो व्यक्तियों के साथ भोजन में उपस्थित था, परन्तु जब वह मुझे पहचान ही न सका, तब निमंत्रम देने का कष्ट ही क्यों उठाया था । उसे लिखो कि उसने सोचा होगा कि वह सन्यासी चन्दा माँगने आया है । परन्तु क्या मैंने उसका सन्देह दूर नहीं कर दिया था कि दो अन्य व्यक्तियों के सात मैं भोजन के लिये आऊँगा और क्या वे त्रिमूर्तियाँ ठीक समय पर भोजन में सम्मिलित नहीं हुई देखो । मैं अपना वचन पूर्ण करने के लिये अपना सर्वस्व निछावर कर दूँगा । मेरे शब्द कभी असत्य न निकलेंगें । इस उत्तर से जोग के हृदय में बहुत प्रसन्नता हुई और उन्होंने पूर्ण उत्तर लिखकर देव को भेज दिया । जब देव ने उत्तर पढ़ा तो उनकी आँखों से अश्रुधाराँए प्रवाहित होने लगी । उन्हें अपने आप पर बड़ा क्रोध आ रहा था कि मैंने व्यर्थ ही बाबा पर दोषारोपण किया । वे आश्चर्यचकित से हो गये कि किस तरह मैंने सन्यासी की पूर्व यात्रा से धोखा खाया, जो कि चन्दा माँगने आया था और सन्यासी के शब्दों का अर्थ भी न समझ पाया कि अन्य दो व्यक्तियों के साथ मैं भोजन को आऊँगा ।

इस कथा से विदित होता है कि जब भक्त अनन्य भाव से सदगुरु की सरण में आता है, तभी उसे अनुभव होने लगता है कि उसके सब धार्मिक कृत्य उत्तम प्रकार से चलते और निर्विघ्र समाप्त होते रहते है ।



हेमाडपन्त का होली त्यौहार पर भोजन-समारोह

...............................................


अब हम एक दूसरी कथा ले, जिसमें बतलाया गया है कि बाबा ने किस प्रकार चित्र के रुप में प्रगट हो कर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण की ।


सन् 1917 में होली पूर्णिमा के दिन हेमाडपंत को एक स्वप्न हुआ । बाबा उन्हें एक सन्यासी के वेश में दिखे और उन्होंने हेमाडपंत को जगाकर कहा कि मैं आज दोपहर को तुम्हारे यहाँ भोजन करने आऊँगा । जागृत करना भी स्वप्न का एक भाग ही था । परन्तु जब उनकी निद्रा सचमुच में भंग हुई तो उन्हें न तो बाबा और न कोई अन्य सन्यासी ही दिखाई दिया । वे अपनी स्मृति दौड़ाने लगे और अब उन्हें सन्यासी के प्रत्येक शब्द की स्मृति हो आई । यघपि वे बाबा के सानिध्य का लाभ गत सात वर्षों से उठा रहे थे तथा उन्हीं का निरन्तर ध्यान किया करते थे, परन्तु यह कभी भी आशा न थी कि बाबा भी कभी उनके घर पधार कर भोजन कर उन्हें कृतार्थ करेंगे । बाबाके शब्दों से अति हर्षित होते हुए वे अपनी पत्नी के समीप गये और कहा कि आज होली का दिन है । एक सन्यासी अतिथि भोजन के लिये अपने यहाँ पधारेंगे । इसलिये भात थोड़ा अधिक बनाना । उनकी पत्नी ने अतिथि के सम्बन्ध में पूछताछ की । प्रत्युत्तर में हेमाडपंत ने बात गुप्त न रखकर स्वप्न का वृतान्त सत्य-सत्य बतला दिया । तब वे सन्देहपूर्वक पूछने लगी कि क्या यह भी कभी संभव है कि वे शिरडी के उत्तम पकवान त्यागकर इतनी दूर बान्द्रा में अपना रुखा-सूका भोजन करने को पधारेंगे । हेमाडपंत ने विश्वास दिलाया कि उनके लिये क्या असंभव है । हो सकता है, वे स्वयं न आयें और कोई अन्य स्वरुप धारण कर पधारे । इस कारण थोड़ा अधिक भात बनाने में हानि ही क्या है । इसके उपरान्त भोजन की तैयारियाँ प्रारम्भ हो गई । दो पंक्तियाँ बनाई गई और बीच मे अतिथिके लिये स्थान छोड़ दिया गया । घर के सभी कुटुम्बी-पुत्र, नाती, लड़कियाँ, दामाद इत्यादि ने अपना-अपना स्थान ग्रहम कर लिया और भोजन परोसना भी प्रारम्भ हो गया । जब भोजन परोसा जा रहा था तो प्रत्येक व्यक्ति उस अज्ञात अतिथि की उत्सुकतापूर्वक राह देख रहा था । जब मध्याहृ भी हो गया और कोई भी न आया, तब द्घार बन्द कर साँकल चढ़ा दी गई । अन्न शुद्घि के लिये घृत वितरण हुआ, जो कि भोजन प्रारम्भ करने का संकेत है । वैश्वदेव (अग्नि) को औपचारिक आहुति देकर श्रीकृष्ण को नैवेघ अर्पण किया गया । फिर सभी लोग जैसे ही भोजन प्रारम्भ करने वाले थे कि इतने में सीढ़ी पर किसी के चढ़ने की आहट स्पष्ट आने लगी । हेमाडपंत ने शीघ्र उठकर साँकल खोली और दो व्यक्तियों


1. अली मुहम्मद और


2. मौलाना इस्मू मुजावर को द्गार पर खड़े हुए पाया ।


इन लोगों ने जब देखा कि भोजन परोसा जा चुका है और केवल प्रारम्भ करना ही शेष है तो उन्होंने विनीत भाव में कहा कि आपको बड़ी असुविधा हुई, इसके लिये हम क्षमाप्रार्थी है । आप अपनी थाली छोड़कर दौड़े आये है तथा अन्य लोग भी आपकी प्रतीक्षा में है, इसलिये आप अपनी यह संपदा सँभालिये । इससे सम्बन्धित आश्चर्यजनक घटना किसी अन्य सुविधाजनक अवसर पर सुनायेंगें – ऐसा कहकर उन्होंने पुराने समाचार पत्रों में लिपटा हुआ एक पैकिट निकालकर उसे खोलकर मेज पर रख दिया । कागज के आवरण को ज्यों ही हेमाडपंत ने हटाया तो उन्हें बाबा का एक बड़ा सुन्दर चित्र देखकर महान् आश्चर्य हुआ । बाबा का चित्र देखकर वे द्रवित हो गये । उनके नेत्रों से आँसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी और उनके समूचे शरीर में रोमांच हो आया । उनका मस्तक बाबा के श्री चरणों पर झुक गया । वे सोचने लगे किबाबा ने इस लीला के रुप में ही मुझे आर्शीवाद दिया है । कौतूहलवश उन्होंने अली मुहम्मद से प्रश्न किया कि बाबा का यह मनोहर चित्र आपको कहाँ से प्राप्त हुआ । उन्होंने बताया कि मैंने इसे एक दुकान से खरीदा था । इसका पूर्ण विवरण मैं किसी अन्य समय के लिये शेष रखता हूँ । कृपया आप अब भोजन कीजिए, क्योंकि सभी आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे है । हेमाडपंत ने उन्हें धन्यवाद देकर नमस्कार किया और भोजन गृह में आकर अतिथि के स्थान पर चित्र कोमध्य में रखा तथा विधिपूर्वक नैवेघ अर्पम किया । सब लोगों ने ठीक समय पर भोजन प्रारम्भ कर दिया । चित्र में बाबा का सुन्दर मनोहर रुप देखकर प्रत्येक व्यक्ति को प्रसन्नता होने लगी और इस घटना पर आश्चर्य भी हुआ कि वह सब कैसे घटित हुआ । इस प्रकार बाबा ने हेमाडपंत को स्वप्न में दिये गये अपने वचनों को पूर्ण किया ।


इस चित्र की कथा का पूर्ण विवरण, अर्थात् अली मुहम्मद को चित्र कैसे प्राप्त हुआ और किस कारण से उन्होंने उसे लाकर हेमा़डपंत को भेंट किया, इसका वर्णन अगले अध्याय में किया जायेगा ।


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

*************************************

Wednesday, 26 January 2022

नाव चले ना जीवन की बिन साँई खेवनहार

 ॐ सांँई राम जी



माँ-बाप, बहन-भाई का नाता
मनुष्य मृत्यु लोक में निभाता
सच्चा संबंधी हैं विश्व विधाता
बाकी सब यही हैं रह जाता
प्रभु से मिलने की खातिर ही
धरती पर रिश्तो का हल चलाता

झूठे बंधन और झूठे नाते
हम सभी सदा रहे निभाते
खेल मालिक का समझ ना पाते
भेजा जिसने जिस कर्म की खातिर
नया जीवन पाकर हम भूले जाते

नाव चले ना जीवन की
बिन साँई खेवनहार
और नहीं एक साँचा साँई
जग का तारणहार

सच्ची बात हैं सुन मेरे भाई
कर्म नेक कमा कहे मेरे साँई
जीवन को ना व्यर्थ टटोल
तन को ना माया से तोल
कर ले कमाई कुछ नेक
देखे सबका मालिक एक
बोली बोल सदा तू मीठी
तन जा मिले आखिर में मिट्टी

कहा से लाऊँ ऐसी स्याही
जो गुण तेरे लिखे मेरे साँई
नभ में भी कोई छोड़ तो होगा
तेरा गुणगान ना हमसे होगा
अनंत गुणों की हो तुम खान
कैसे भक्ति चढ़े परवान
अति लघु बुद्धि हमने पाई
लिखवाते हैं स्वयं श्री साँई

देना हो गर साँई तो मेघा सी दो भक्ति
कलम में दो गणु सम रचना की शक्ति
अनंत गुण तेरे गाता रहे यह तेरा दास
लता जी जैसी सुर में घोल दो मिठास

Tuesday, 25 January 2022

यूँ ही एक दिन चलते-चलते सांँई से हो गई मुलाकात।

 ॐ सांई राम




यूँ ही एक दिन चलते-चलते सांँई से हो गई मुलाकात। 
जब अचानक सांँई सच्चरित्र की पाई एक सौगात। 
फिर सांँई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार। 
तब सांँई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार। 
सांँई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला। 
सांँई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला। 
घर में गूँजने लगी हर वक्त सांँई गान की धुन। 
मन के तार झूमने लगे सांँई धुन को सुन। 
धीरे-धीरे सांँई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा। 
और सांँई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा। 
सांँई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगी फिदा। 
अब मेरे सांँई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा। 
हर घड़ी मिलता रहे मुझे सांँई का संतसंग। 


सांँई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग। 
सांँई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश। 
सांँई मेरे प्राण हैं और सांई ही मेरे ईश। 
भेदभाव से दूर रहूँ,शुद्ध हो मेरे विचार। 
सांँई ज्ञान की जीवन में बहती रहे ब्यार |

Monday, 24 January 2022

साँईं का गुनगान करेगा हम सब का कल्याण

 ॐ सांँई राम



मिल के कर लो
खुल के कर लो
साँईं का गुनगान
साँईं का गुनगान करेगा
हम सब का कल्याण


सुबह शाम साँईं की आरती उतार लो
साँईं की भक्ति से ख़ुद को संवार लो
मानो कहना नहीं तो वरना

रहेंगे भटकते प्राण


सच्चे मन से जो साँईं दरबार में आया
जो भी कामना की है उसने वो पाया
साँईं कृपा से हो जाते हैं
निर्धन भी धनवान
भक्तों की सुनते सदा मन की पुकार साँईं
झोलियों में भरते सदा अपना प्यार साँईं
हर सुख का दाता है जग में साँईं का ध्यान

मिल के कर लो
खुल के कर लो
साँईं का गुनगान
साँईं का गुनगान करेगा
हम सब का कल्याण

Sunday, 23 January 2022

मेरे अंग संग आप सहाई

 ॐ सांँई राम जी


अजब तेरी सूरत देखी
गजब तेरी मूरत देखी
जब से साँई तुझे देखा
लगता है जैसे जन्नत देखी

एक तेरे मुखड़े की सादगी
लाती है दिल मे दिवानगी
कोई और सनम अब कैसे भाये
जिसे साँई के दर पनाह मिल जाये

तेरा था बस तेरा ही रहूँगा
दिल का हाल किस से कहूँगा
तू ही है पिता तू ही है माई
तू ही राम तू ही है कन्हाई
मेरे अंग संग आप सहाई 
मेरे सदगुरू साँई साँई साँई

ना दुखी रहे कोई छाये खुशी की बहार
हर जन को मिल जाये साँई तेरा प्यार
ना भूख ना प्यास का रहे कोई भय
हर तरफ सब जग दिखे साँई मय

कृपा की आदत तुम्हारी
हौसला बढ़ाती है हमारी
बस एक मुस्कान तुम्हारी
जान निकाल देती है हमारी

वाह रे जादूगर देखी तेरी जादूगरी
ना गम हमारा ना खुशी रही हमारी
एक आह भी ना निकली हमारे मुख से
और तूने पल में विपदा हर ली हमारी

ना बंसी और ना ही धनुष उठाया
हर पीड़ा का हल तूने उदी बनाया
राम रहमान की बोली मिलीजुली
तुमने हर मजहब को नेक बताया
खून के रंग और पानी की प्यास का
दे कर वास्ता नया पाठ सिखलाया
अनोखी बानगी ने हमे दिवाना बनाया
सारा जग साँई रंग मे रंगा हुआ पाया

Saturday, 22 January 2022

ऐसी सुबह न आए न आए ऐसी शाम जिस दिन जुबान पे मेरी आए न साँई का नाम

 ॐ साँई राम



ऐसी सुबह न आए न आए ऐसी शाम
जिस दिन जुबान पे मेरी आए न साँई का नाम
मन मन्दिर में वास है तेरा, तेरी छवि बसाई,
प्यासी आत्मा बनके जोगी तेरे शरण में आया
तेरे ही चरणों में पाया मैंने यह विश्राम
ऐसी सुबह न आए न आए ऐसी शाम
जिस दिन जुबान पे मेरी आए न साँँई तेरा नाम


तेरी खोज में न जाने कितने युग मेरे बीते,
अंत में काम क्रोध सब हारे वो बोले तुम जीते
मुक्त किया प्रभु तुने मुझको, है शत शत प्रणाम
ऐसी सुबह न आए न आए ऐसी शाम
जिस दिन जुबान पे मेरी आए ना साँँई तेरा नाम


सर्वकला संपन तुम ही हो, ओ मेरे परमेश्वर
दर्शन देकर धन्य करो अब त्रिलोक्येश्वर
भवसागर से पार हो जाऊ लेकर तेरा नाम
ऐसी सुबह न आए न आए ऐसी शाम
जिस दिन जुबान पर मेरी आए ना साँई तेरा नाम......
साँई राम ... साँईं राम ...साँईं राम

Friday, 21 January 2022

जबसे पाया साँई कृपा का ध

 ॐ साँई राम जी



बरखा की दो बूंदे जब मिट्टी से मिलती हैं
सबसे अद्धभुत भीनी-भीनी खुशबू  महकती हैं
ठीक ऐसा ही अनुभव हमको भी होता हैं
जब साँई चरणों में माथा हमारा टिका होता हैं

ज्यूँ भटके वन में मृग पाने को महक कस्तूरी
त्यूँ यह बावला मन मंदिर में ढूंढे श्रध्दा सबूरी

भटके जंगल भटके चौबारे
फिरते रहे हम बस मारे मारे
जबसे पाया साँई कृपा का धन
कष्ट हो गये फुर्र सब हमारे

कथा कहु मैं अब क्या कोई
जागी हैं अब आत्मा सोई
सब खो कर मैंने तुझे पाया
तू बस अपना जग पराया

मुझमें ऐसी नहीं कोई भी बात खास
रखना बना कर अपने भक्तो का दास
खुशियाँ मांगू हरपल साँई भक्तो की
मुख से हरपल निकले यही अरदास

हम ठहरे बंजर जमीन के जैसे
पाये तेरी श्रध्दा के बीज हम कैसे
सबूरी की खाद भी डाल दो साँई
हो अच्छी फस्ल जो भक्ति की उगाई

साँई साँई बोले मेरा मन बन इक तारा
साँई को चाहा मैंने बस जग बिसराया
साँई वचनों का है बस यह ही तो मोल
रोते रोते आये साँई शरण ने हमें हँसाया

For Donation

For donation of Fund/ Food/ Clothes (New/ Used), for needy people specially leprosy patients' society and for the marriage of orphan girls, as they are totally depended on us.

For Donations, Our bank Details are as follows :

A/c - Title -Shirdi Ke Sai Baba Group

A/c. No - 200003513754 / IFSC - INDB0000036

IndusInd Bank Ltd, N - 10 / 11, Sec - 18, Noida - 201301,

Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh. INDIA.

बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.