शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Wednesday, 30 September 2020

श्री साईं लीलाएं - संकटहरण श्री साईं

ॐ सांई राम


कल हमने पढ़ा था.. ऊदी के चमत्कार से पुत्र-प्राप्ति

श्री साईं लीलाएं

संकटहरण श्री साईं
शाम का समय था
उस समय रावजी के दरवाजे पर धूमधाम थीसारा घर तोरन और बंदनवारों से खूब अच्छी तरह से सजा हुआ थाबारात का स्वागत करने के लिए उनके दरवाजे पर सगे-संबंधी और गांव के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित थेआज रावजी की बेटी का विवाह थाबारात आने ही वाली थी|

कुछ देर बाद ढोल-बाजों की आवाज सुनायी देने लगीजो बारात के आगमन की सूचक थी|

"
बारात आ गई|" भीड़ में शोर मचा|


थोड़ी देर बाद बारात रावजी के दरवाजे पर आ गयीरावजी ने सगे-सम्बंधियों और सहयोगियों के साथ बारात का गर्मजोशी से स्वागत कियाबारातियों का पानफूलइत्रमालाओं आदि से स्वागत-सत्कार किया गयाफिर बारातियों को भोजन कराया गयासभी ने रावजी के स्वागत और भोजन की प्रशंसा कीफेरे पड़ने का समय हो गया|



"वर को भांवरों के लिए भेजिये|" वर के पिता से रावजी ने निवेदन किया|

"वर भेज दूं ! पहलेदहेज दिखाओभाँवरें तो दहेज के बाद ही पड़ेंगी|" वर के पिता ने कहा|
रावजी बोले - " तो फिर चलियेपहले दहेज देख लीजिए|" रावजी के सगे-सम्बंधियों ने वर के पिता की बात को मान लियावर का पिता अपने सगे-सम्बंधियों के साथ रावजी के आँगन में आयाआँगन में एक ओर चारपाइयों पर दहेज में दी जाने वाली समस्त चीजें रखी हुई थीं|
वर के पिता ने एक-एक करके दहेज की सारी चीजें देखींफिर नाक-भौंह सिकोड़कर बोला - "बसयही है दहेजऐसा दहेज तो हमारे यहां नाईकहारों जैसी छोटी जाति वालों की लड़कों की शादी में आता है|रावजीआप दहेज दे रहे हैं या मेरे और अपने रिश्तेदारों तथा गांव वालों के बीच मेरी बेइज्जती कर रहे होमैं यह शादी कभी नहीं रोने दूंगा|"
रावजी के पैरों तले से धरती खिसक गयीउन्हें ऐसा लगा जैसे आकाश टूटकर उनके सिर पर आ गिरा होयदि लड़की की शादी नहीं हुई और बारात दरवाजे से लौट गयी तो वह समाज में किसी को भी मुंह न दिखा सकेंगेलड़की के लिए दूसरा दूल्हा मिलना असंभव हो जाएगाकोई भी इस बात को मानने के लिए तैयार न होगा कि दहेज का लालची दूल्हे का पिता दहेज के लालच में बारात वापस ले गयासब यही कहेंगे कि लड़की में ही कोई कमी थीतभी तो बारात आकर दरवाजे से लौट गयी|
रावजी ने वर के पिता के पैर पकड़ लिये और अपनी पगड़ी उतारकर उसके पैरों पर डालकर गिड़गिड़ाते हुए बोले - "मुझ पर दया कीजिए समधी जी ! यदि आप बारात वापस ले गए तो मैं जीते-जी मर जाऊंगामेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो जायेगीवह जीते-जी मर जायेगीमैं बहुत गरीब आदमी हूंजो कुछ भी दहेज अपनी हैसियत के मुताबिक जुटा सकता थावह मैंने जुटाया हैयदि कुछ कमी रह गयी है तो मैं उसे पूरा कर दूंगापरइसके लिए मुझे थोड़ा-सा समय दीजिए|"
वर के पिता ने गुस्से में भरकर कहा - "यदि दहेज देने की हैसियत नहीं थी तो अपनी बेटी की शादी किसी भिखमंगे के साथ कर देतेमेरा ही लड़का मिला था बेवकूफ बनाने कोअभी बिगड़ा ही क्या हैबेटी अभी अपने बाप के घर हैमिल ही जायेगा कोई न कोई भिखमंगा|"
उस अहंकारी और दहेज के लोभी ने रावजी की पगड़ी उछाल दी और बारातियों से बोला - "चलोमुझे नहीं करनी अपने बेटे की शादी ऐसी लड़की से जिसका बाप दहेज तक भी न जुटा सके|"
रावजी ने उसकी बड़ी मिन्नतें कींपर वह दुष्ट न माना और बारात वापस चली गयी|

बारात के वापस जाने से रावजी बड़ी बुरी तरह से टूट गयेवह दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर रह गयेउनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गयाअपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोच-सोचकर वह बुरी तरह से परेशान हो गयेवह गांव शिरडी से थोड़ी ही दूर था|
रावजी की आँखों से आँसू रुकने का नाम ही न ले रहे थेसारे गांव की सहानुभूति उनके साथ थीपर रावजी का मन बड़ा व्याकुल थाबारात वापस लौट जाने के कारण वह पूरी तरह से टूट गये थेवह खोये-खोये उदास-से रहने लगे थे|
बारात को वापस लौटे कई दिन बीत गए थे|
उन्होंने घर से निकलना बिल्कुल बंद कर दिया थावह सारे दिन घर में ही पड़े रहते और अपनी बेवसी पर आँसू बहाते रहते थेइस घटना का समाचार साईं बाबा तक नहीं पहुंचा थाउनका गांव शिरडी से थोड़ी ही दूरी पर थारोजाना ही उस गांव के लोग शिरडी आते-जाते थेबारात का बिना दुल्हन के वापस लौट जाना कोई मामूली बात न थीयह घटना सर्वत्र चर्चा का विषय बन गयी थी|
आखिर एक दिन यह बात साईं बाबा तक भी पहुंच ही गयी|

"रावजी इस अपमान से बहुत दु:खी हैंकहीं आत्महत्या न कर बैठें|" साईं बाबा को समाचार सुनाने के बाद रावजी का पड़ोसी चिंतित हो उठा|
एकाएक साईं बाबा के शांत चेहने पर तनाव पैदा हो गयाउनकी करुणामयी आँखें दहकते अंगारों में परिवर्तित हो गयीक्रोध की अधिकता से उनका शरीर कांपने लगाउनका यह शारीरिक परिवर्तन देखकर वहां उपस्थित शिष्य वह भक्तजन किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गएसाईं बाबा के शिष्य और भक्त उनका यह रूप पहली बार देख रहे थे|

अगले दिन रावजी के समधी के गांव का एक व्यक्ति रावजी के पास आयावह साईं बाबा का भक्त था|

"रावजीभगवान के घर देर तो हैपर अंधेर नहींतुम्हारे समधी ने जिस पैर से तुम्हारी पगड़ी को ठोकर मारकर उछाला थाउसके उसी पैर को लकवा मार गया हैउसके शरीर का दायां भाग लकवाग्रस्त हो गया है|"
यह सुनकर रावजी ने दु:खी स्वर में कहा -

"कितना कड़ा दंड मिला है उन्हेंमौका मिलते ही उन्हें एक-दो दिन में देखने जाऊंगा|"
रावजी को मिला यह समाचार एकदम ठीक थारावजी के समधी की हालात बहुत खराब थीउनके आधे शरीर को लकवा मार गया थावह मरणासन्न-सा हो गयाउसका जीना-न-जीना एक बराबर हो गयालाला का आधा दायां शरीर लकवे से बेकार हो गया थावह अपने बिस्तर पर पड़े आँसू बहाते रहतेउनके इलाज पर रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा थापर रोग कम होने की जगह दिन-प्रतिदिन बिगड़ता ही जा रहा था|
उनके एक रिश्तेदार ने कहा - "लालाजी ! आप साईं बाबा के पास जाकर उनकी धूनी की भभूति क्यों नहीं मांग लेतेबैलगाड़ी में लेटे-लेटे चले जाइएबाबा की धूनी की भभूति से तो असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं|"
लाला इस बात को पहले भी कई व्यक्तियों से सुन चुके थे कि बाबा कि भभूति से हजारों रोगियों को नया जीवन मिल चुका हैभभूति लगाते ही रोग छूमंतर हो जाते हैं|
अगले दिन लाला के लड़के ने बैलगाड़ी जुतवाई और उसमें मोटे-मोटे गद्दे बिछाकर उन्हें आराम से लिटा दियालाला की बैलगाड़ी शिरडी में द्वारिकामाई मस्जिद के सामने आकर रुक गयी|
लड़के ने अपने साथ आये आदमियों की सहायता से लाला को बैलगाड़ी से नीचे उतारा और गोदी में उठाकर मस्जिद की ओर चल दिया|
साईं बाबा सामने ही चबूतरे पर बैठे हुए थेलाला को देखते ही वे एकदम से आगबबूला हो उठे और अत्यंत क्रोध से कांपते स्वर में बोले - "खबरदार लाला ! जो मस्जिद के अंदर पैर रखातेरे जैसे पापियों का यहां कोई काम नहीं हैतुरंत चला जावरना सर्वनाश कर दूंगा|"
दहशत के मारे लाला थर-थर कांपने लगाउनकी आँखों से आँसू बहने लगेबेटे ने उन्हें वापस लाकर बैलगाड़ी में लिटा दिया|

"पता नहीं साईं बाबा आपसे क्यों इस तरह से नाराज हैं पिताजी !"वकील और फिर कुछ सोचकर बोला - "पिताजी साईं बाबा ने आपको मस्जिद में आने से रोका हैमुझे तो नहीं रोकामैं चला जाता हूं|"

"ठीक हैतुम चले जाओ बेटा|" लाला ने दोनों हाथों से अपने आँसू पोंछते हुए कहालेकिन उसे आशा न थी|
लाला का बेटा मस्जिद के अंदर पहुंचासाईं बाबा के चरण स्पर्श करके एक और बैठ गया|
साईं बाबा बोले - "तुम्हारे बाप के रोग का कारण दुष्कर्मों का फल हैउसने अपने जीवन भर उचित-अनुचित तरीके और बेईमानी करके पैसा इकट्ठा किया हैवह पैसे के लिए कुछ भी कर सकता हैऐसे लोभीलालची और बेईमानों के लिए मेरे यहां कोई जगह नहीं है - और बेटेएक बात और याद रखोजो संतान चोरी और बेईमानी का अन्न खाती हैअपने पिता की चोरी और बेईमानी का विरोध नहीं करती हैउसे भी अपने पिता के बुरे-कर्मोंपापों दण्ड भोगना पड़ता है|"
लाला का बेटा चुपचाप सिर झुकाये अपने पिता के कर्मों के बारे में सुनता रहा|

"तुम मेरे पास आए होइसलिए मैं तुम्हें भभूति दिए देता हूंइसे अपने लोभी-लालची पिता को खिला देनायदि वह ठीक हो जाए तो उसे लेकर चले आना|"
बेटे ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और फिर दर्शन करने का वायदा करके चला गया|

साईं बाबा की भभूति ने अपना चमत्कारी प्रभाव कर दिखायाचार-पांच दिन में लाला बिल्कुल ठीक हो गयाउसके लकवा पीड़ित अंग पहले की ही तरह काम करने लगे|

"साईं बाबा ने कहा था कि यदि आप ठीक हो जाएं तो आप उनके पास अवश्य जायें|" लाला ने बेटे ने अपने पिता ने कहा|

"मैं वहां जाकर क्या करूंगा बेटे ! अब तो बीमारी का नामो-निशान भी बाकी न रहाफिर बेकार में ही इतनी दूर क्यों जाऊं?"

"लेकिन साईं बाबा ने कहा था कि यदि आप उनके पास नहीं गये तो आपका रोग फिर बढ़ जाएगा और आपकी दशा और ज्यादा खराब हो जाएगी|" बेटे ने समझाते हुए कहा|
वह शिरडी जाना नहीं चाहता थाउसका मतलब निकल गया थाफिर भी बेटे के समझाते पर वह तैयार हो गयाबृहस्पतिवार का दिन थाशिरडी में प्रत्येक बृहस्पतिवार उत्सव के रूप में मनाया जाता थाजब लाला शिरडी पहुंच तो आस-पास सैंकड़ों आदमियों की भीड़ जमा थीभीड़ को देखकर लाला देखकर लाला परेशान हो गयाउस भीड़ में ज्यादातर दीन-दु:खी लोग थेउन लोगों के साथ जुलूम में शामिल होना लाला को अच्छा न लगा|वह अपनी बैलगाड़ी में ही बैठा रहाकेवल बेटे ने ही शोभायात्रा में हिस्सा लिया और पूरी श्रद्धा के साथ प्रसाद भी ग्रहण किया|
जब भीड़ कुछ छंट गयी तोउसने साईं बाबा के चरण स्पर्श किये|
बाबा ने उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरकर उसे आशीर्वाद दियाफिर एक चुटकी भभूति देकर बोले - "अपने पिता को तीन दिन दे देगाबचा-खुचा रोग भी नष्ट हो जाएगा|"
बेटे ने साईं बाबा के चरण स्पर्श किए और चला गया|
साईं बाबा की भभूति के प्रभाव से तीन दिन के अंदर ही लाला को ऐसा अनुभव होने लगाजैसे उसे नया जीवन प्राप्त हो गया होपिता की बीमारी के कारण बेटा उनका व्यापार देखने लगा थालाला के बेटे को व्यापार का कोई अनुभव न थाफिर भी बराबर लाभ हो रहा थालाला यह देखकर बहुत हैरान थेउन्हें यह सब कुछ एक चमत्कार जैसा लगा रहा था|
एक दिन लाला ने अपने बेटे से कहा - "एक बात समझ में नहीं आ रही बेटे ! तुम्हें व्यापर का कोई अनुभव नहीं थाडर लगता था कि तुम जैसे अनुभवहीन को व्यापार सौंपकर मैंने कोई गलती तो नहीं की हैलेकिन में देख रहा हूं कि तुम जो भी सौदा करते होउसमें बहुत लाभ होता है|"

"यह सब साईं बाबा के आशीर्वाद का ही फल है पिताजी ! उन्होंने मुझे आशीर्वाद दियासाईं बाबा तो साक्षात् भगवान के अवतार हैं|" बेटे ने कहा|

"तुम बिल्कुल ठीक कहते हो बेटा ! मुझे व्यापार करते हुए तीस वर्ष बीत चुके हैंमुझे आज तक व्यापार में कभी इतना ज्यादा लाभ नहीं हुआजितना आजकल हो रहा हैवास्तव में साईं बाबा भगवान के अवतार हैं|" अब लाला के मन में भी साईं बाबा के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो रही थी|

दूसरे दिन साईं बाबा की तस्वीरें लेकर एक फेरीवाला गली में आयालाला ने उसे बुलाकर पूछा - "ये कैसी तस्वीरें बेच रहे हो?"

"लालाजीमेरे पास तो केवल शिरडी के साईं बाबा की ही तस्वीरें हैंमैं उनके अलावा किसी और की तस्वीरें नहीं बेचता हूं|" तस्वीर बेचने वाले ने कहा|
कुछ देर तक तो लाला सोचते रहेउन्होंने सोचासाईं बाबा की भभूति से ही मेरा रोग दूर हुआ हैउन्हीं के आशीर्वाद से मेरा बेटा व्यापार में बहुत लाभ कमा रहा हैयदि एक तस्वीर ले लूंतो कोई नुकसान नहीं होगालाला ने एक तस्वीर पसंद करके ले ली|
कुछ देर पहले ही दुकान का मुनीम पिछले दिन की रोकड़ लाला को दे गया थावह अपने पलंग पर रुपये फैलाए उन्हें गिन रहे थेलाला ने उन ढेरियों की ओर संकेत करके कहा - "लो भईतुम्हारी तस्वीर के जो भी दाम होंइनमें से उठा लो|" पर तस्वीर बेचने वाले ने चांदी का केवल एक छोटा-सा सिक्का उठाया|

"बस इतने ही पैसे ! ये तो बहुत कम हैं और ले लो|" लाला ने बड़ी उदारता के साथ कहा|
तस्वीर बेचने वाले ने कहा - "नहीं सेठ ! बाबा कहते हैं कि लालच इंसान का सबसे बड़ा शत्रु हैमैं लालची नहीं हूंमैंने तो उचित दाम ले लिएयह लालच तो आप जैसे सेठ लोगों को ही शोभा देता है|"
उसकी बात सुनकर लाला को ऐसा लगा कि जैसे उस तस्वीर बेचने वाले ने उनके मुंह पर एक करारा थप्पड़ जड़ दिया होउन्होंने अपनी झेंप मिटाने के लिए कहा - "बहुत दूर से आ रहे होकम-से-कम पानी तो पी ही लो|"

"नहींमुझे प्यास नहीं है सेठजी !"
ठीक तभी लाला का बेटा वहां आ गयाउसने साईं बाबा की तस्वीर देखीउसे बहुत प्रसन्नता हुईउसने तस्वीर बेचने वाले की ओर देखकर कहा - "भाईहमारे घर में साईं बाबा की कोई तस्वीर नहीं थीमैं बहुत दिनों से उनकी तस्वीर खरीदने की सोच रहा थायहां किसी भी दुकानदार के पास बाबा की तस्वीर नहीं थी|"

"चलिएआज आपकी इच्छा पूरी हो गयी|" तस्वीर बेचने वाला हँसकर बोला|

"इस खुशी में आप जलपान कीजिए|" लाला ने बेटे ने प्रसन्नताभरे स्वर में कहा - "साईं बाबा की कृपा से ही मेरे पिताजी का रोग समाप्त हुआ हैव्यापार में भी दिन दूना-रात चौगुना लाभ हो रहा है|"

"यदि आपकी ऐसी इच्छा है तो मैं जलपान अवश्य करूंगा|" तस्वीर बेचने वाले ने कहा|
लाला अपने मन में सोचने लगा कि तस्वीर बेचने वाला भी बड़ा अजीब आदमी हैपहले लालच की बात कहकर मेरा अपमान कियाफिर जब मैंने पानी पीने के लिये कहातो पानी पीने से इंकार कर फिर से मेरा अपमान कियामेरे बेटे के कहने पर पानी तो क्या जलपान करने के लिए तुरंत तैयार हो गया|
तस्वीर वाले ने जलपान किया और अपनी गठरी उठाकर चला गया|

उधर कई दिन के बाद रावजी ने सोचा कि शिरडी जाकर साईं बाबा के दर्शन कर आएंउनके दर्शन से मन का दुःख कुछ कम हो जाएगायही सोचकर वह अगले दिन पौ फटके ही शिरडी के लिए चल दिया|
शिरडी पास ही थाराव आधे घंटे में ही शिरडी पहुंच गयाअपमान की पीड़ाचिंता से राव की हालात ऐसी हो गयी थीजैसे वह महीनों से बीमार हैउनका चेहरा पीला पड़ गया थामन की पीड़ा चेहरे पर स्पष्ट नजर आती थी|

"मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं राव !" साईं बाबा ने अपने चरणों पर झुके हुए राव को उठाकर बड़े प्यार से उसके आँसू पोंछते हुए कहा - "तुम तो ज्ञानी पुरुष होयह क्यों भूल गए कि दुःख-सुखमान-अपमान का सामना मनुष्य को कब करना पड़ जाएयह कोई नहीं जानता|"
राव ने कोई उत्तर नहीं दियावह बड़बड़ायी आँखों से बस साईं बाबा की ओर देखता रहा|

"जो ज्ञानी होते हैं वे दुःख आने पर न तो आँसू बहाते हैं और न सुख आने पर खुशी से पागल होते हैं|" - साईं बाबा ने कहा - "यदि हम किसी को दुःख देंगेतो भगवान हमें अवश्य दुःख देगायदि हम किसी का अपमान करेंगे तो हमें भी अपमान सहन करना पड़ेगायही भगवान का नियम हैइसी नियम से ही यह संसार चल रहा है|"

"नहींमुझे भगवान के न्याय से कोई शिकायत नहीं है|" रावजी ने आँसू पोंछते हुए कहा|

"सुनो रावकभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमें अपने पूर्वजन्म के किसी अपराध का दण्ड इस जन्म में भी भोगना पड़ता हैकभी-कभी पिछले जन्मों का पुण्य हमारे इस जन्म में भी काम आ जाता है और हम संकट में पड़ जाने से बच जाते हैंजो दुःख तुम्हें मिला हैवह शायद तुम्हें तुम्हारे पूर्वजन्म के किसी अपराध के कारण मिला हो|"

"हां ! ऐसा हो सकता है बाबा !"

"और रावयह भी तो हो सकता है कि इस अपमान के पीछे कोई अच्छी बात छिपी हुई होबिना सोचे-विचारे भाग्य को दोष देने से क्या लाभ !"

"मुझसे भूल हो गयी बाबा ! दुःख और अपमान की पीड़ा ने मेरा ज्ञान मुझसे छीन लिया थाआपने मुझे मेरा खोया हुआ ज्ञान लौटा दिया है|" राव ने प्रसन्नताभरे स्वर में कहा|

"तुम किसी बात की चिंता मत करो रावजी ! भगवान पर भरोसा रखोवह जो कुछ भी करते हैंहमारे भले के लिए ही करते हैंतुम अगले बृहस्पतिवार को बिटिया को लेकर मेरे पास आनाभगवान चाहेंगे तो तुम्हारा भला ही होगा|" साईं बाबा ने कहा|
रावजी ने साईं बाबा के चरण हुए और उनका आशीर्वाद लेकर वापस अपने गांव लौट गया|
राव जब अपने गांव की ओर लौट रहा थाउसे तो अपना मन फूल की भांति हल्का महसूस हो रहा थाउसके मन का सारा बोझ हल्का हो चुका था|उधर तस्वीर वाले के चले जाने के बाद लाला बहुत देर तक किसी सोच में डूबा रहाउसके चेहरे पर अनेक तरह के भाव आ-जा रहे थेउसके मन में विचारों की आँधी चल रही थीउसने अपना स्वभाव बदल दिया थाअब वह सुबह उठकर भगवान की पूजा करने लगा थाउसके पास जो कोई भी साधु-संन्यासीअतिथि आता तो वह उसका यथासंभव स्वागत-सत्कार करतावह जिस चीज की मांग करतावह उसे पूरी करताउसने साधारण कपड़े पहनना शुरू कर दिये थेअकारण क्रोध करना भी छोड़ दिया था|
लाला अक्सर अपने बेटे को समझता - "बेटाजिस व्यापार में ईमानदारी और सच्चाई होती हैउसी में सुख और शांति रहती हैझूठ और बेईमानी मनुष्य का चरित्र पतन कर देती हैउसे फल भी अवश्य ही भोगना पड़ता हैइसमें कोई संदेह नहीं है|"

"आप जैसा कहेंगेमैं वैसा ही करूंगा पिताजी !" - बेटे का जवाब था|

"हमें शिरडी चलना है|" - लालाजी ने एक दिन अपने बेटे को याद दिलाया|

"हांमुझे याद हैहम साईं बाबा के दर्शन करने अवश्य चलेंगे|"
अचानक लाला का चेहरा उदास और फीका पड़ गयावह बड़े दु:खभरे स्वर में बोलामानो जैसे पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहा हो उसने कहा - "मैंने रावजी कि बेटी का तेरे साथ विवाह न करके बहुत बड़ा पाप किया हैरावजी बड़े ही नेक और सीधे-सादे आदमी हैंवह भी साईं बाबा के भक्त हैंबारात लौटाकर मैंने उनका बहुत बड़ा अपमान किया है|"

"जो कुछ बीत गयाअब उसके पीछे पश्चात्ताप करने से क्या लाभ पिताजी !" लड़के ने दु:खभरे स्वर में कहा - "अब आप यह सब भूल जाइए|"

"कैसे भूलूं बेटा ! मैं अब इस अपराध का प्रायश्चित करना चाहता हूं|"
लालाजी ने मन-ही-मन निश्चय कर लिया था कि राव की बेटी का विवाह अपने बेटे से करअपने पाप का प्रायश्चित अवश्य करेंगेवह सबसे अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए भी क्षमा मांगने के बारे में सोच रहे थेदिन बीतते गये|
बृहस्पतिवार का दिन आ गया|
लाला अपने बेटे के साथ मस्जिद के आँगन में पहुंचेतो उनकी नजर राव पर पड़ीराव भी उनकी ओर देखने लगेअचानक लाला ने लपककर राव के पैर पकड़ लिये|

"अरेअरे आप यह क्या कर रहे हैं सेठजी ! मेरे पांव छूकर मुझे पाप का भागी मत बनाइए|" - राव लाला के इस व्यवहार पर हैरान रह गये थे|

"नहीं रावजीजब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगेमैं आपके पैर नहीं छोड़ूंगा|" लाला ने रुंधे गले से कहा - "जब से मैंने आपका अपमान किया हैतब से मेरा मन रात-दिन पश्चात्ताप की अग्नि में जलता रहता हैजब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगेमैं पैर नहीं छोड़ूंगा|"
तभी एक व्यक्ति बोला - "साईं बाबा आपको याद कर रहे हैं|"
वह दोनों साईं बाबा के पास गयेलाला ने साईं बाबा से अपने मन की बात कही|
लाला का हृदय परिवर्तन देखकर साईं बाबा प्रसन्न हो गयेफिर उन्होंने पूछा - "सेठजीआप का रोग तो दूर हो गया है न?"

"हां बाबा ! आपकी कृपा से मेरा रोग दूर हो गयालेकिन मुझे सेठजी मत कहिये|"

"तुम्हारे विचार सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुईएक मामूली-सी बीमारी ने तुम्हारे विचार बदल दिएकिसी भी पाप का दंड यही हैअपने पाप को स्वीकार कर प्रायश्चित्त करनायह धन-दौलत तो बेकार की चीज हैआज है कल नहींइससे मोह करना बुद्धिमानी नहीं है|"
फिर तभी बाबा ने अपना हाथ हवा में लहरायावहां उपस्थित सभी लोगों ने देखाउनके हाथ में दो सुंदर व मूल्यवान हार आ गये थे|

"उठो सेठएक हार अपने बेटे को और दूसरा हार लक्ष्मी बेटी को दे दोये एक-दूसरे को पहना दें|" बाबा ने कहा|
लाला ने एक हार अपने बेटे को और दूसरा रावजी की बेटी का दे दियादोनों ने हार एक-दूसरे को पहनाये और फिर साईं बाबा के चरणों में झुक गये|

"तुम दोनों का कल्याण होजीवनभर सुखी रहो|" - साईं बाबा न आशीर्वाद दिया|
राव और लाला की आँखें छलक उठींउन्होंने एक-दूसरे की ओर देखाफिर दोनों ने एक-दूसरे को बांहों में भर लियासब लोग यह दृश्य देखकर खुशी से साईं बाबा की जय-जयकार करने लगे|


परसों चर्चा करेंगे..कुश्ती के बाद बाबा जी में बदलाव

===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Tuesday, 29 September 2020

श्री साईं लीलाएं - ऊदी के चमत्कार से पुत्र-प्राप्ति

ॐ सांई राम


कल हमने पढ़ा था.. कुत्ते की पूँछ

श्री साईं लीलाएं

ऊदी के चमत्कार से पुत्र-प्राप्ति


शिरडी के पास के गांव में लक्ष्मीबाई नाम की एक स्त्री रहा करती थी| नि:संतान होने के कारण वह रात-दिन दु:खी रहा करती थी| जब उसको साईं बाबा के चमत्कारों के विषय में पता चला तो वह द्वारिकामाई मस्जिद में आकर वह साईं बाबा के चरणों पर गिरने ही वाली थी कि साईं बाबा ने तुरंत उसे कंधों से थाम लिया और बोले- "मां, यह क्या करती हो ?"

लक्ष्मी बुरी तरह से रोने लगी|



साईं बाबा बोले - "माँ, रोने की जरा भी जरूरत नहीं है| अब तुम यहां आ गई हो तो भगवान तुम्हारे दुःख अवश्य ही दूर करेंगे|"

लक्ष्मी ने दोनों हाथों से अपने आँसू पोंछे और बोली - "साईं बाबा ! मेरा दुःख तो आप जानते ही हैं|"

"हां, माँ ! मुझे सब पता है|"

"तो तब मेरा दुःख दूर करो न बाबा !" - वह रुंधे स्वर में बोली|

"अवश्य दूर होगा, ईश्वर पर भरोसा रखो|"

फिर साईं बाबा ने अपनी धूनी में से भभूति उठाकर उसे दी और बोले - "चुटकीभर इसे खा लेना और चुटकीभर अपने पति को खिला देना| तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी|"

लक्ष्मीबाई ने पूर्ण श्रद्धा के साथ बाबा की दी हुई भभूति अपने आँचल के एक छोर में बांध ली और बाबा का गुणगान करती वापस अपने गांव आ गयी| साईं बाबा के कहे अनुसार एक चुटकी भभूति पति को खिलाने के बाद दूसरी चुटकी भभूति उसने स्वयं खा ली| उसे साईं बाबा पर पूरी श्रद्धा और विश्वास था|

सही समय पर वह गर्भवती हो गयी| उसकी खुशी की कोई सीमा न रही| वह सारे गांव में हर समय साईं बाबा का गुणगान करती घूमती-फिरती थी|

उसके गांव का प्रधान दादू साईं बाबा का कट्टर विरोधी था| वह साईं बाबा को भ्रष्ट मानता था| साईं बाबा भ्रष्ट आदमी है| वह हिन्दू है, न मुसलमान| ऐसा आदमी भ्रष्ट माना जाता है| लक्ष्मी द्वारा गांव में बाबा का गुणगान करते फिरना उसे बहुत बुरा लगा|

उसने लक्ष्मी को बुलाकर डांटा - "तू साईं बाबा का नाम लेकर उसका प्रचार करती क्यों फिरती है ?"

"साईं बाबा बहुत पहुंचे हुए महापुरुष हैं|"

"तेरा दिमाग खराब हो गया है|" प्रधान गुस्से से आगबबूला हो गया|

उसने लक्ष्मी को बहुत बुरी तरह से डांटा और धमकाया और आगे से फिर कभी साईं बाबा का नाम न लेने का आदेश सुना दिया| पर वह भला कहां मानने वाली थी, उसने साईं बाबा का गुणगान पहले की तरह करना जारी रखा| इस पर गांव-प्रधान और बुरी तरह से जल-भुन गया| उसने लक्ष्मी को सबक सिखाने की सोची|

लक्ष्मी गर्भवती है| यदि किसी तरह से इसका गर्भ नष्ट कर दिया जाये, तो वह पागल हो जायेगी और साईं बाबा का गुणगान करना बंद कर देगी| अपने मन में ऐसा विचार कर प्रधान ने लक्ष्मीबाई को गर्भपात की अचूक दवा दे दी| उसने यह चाल इस प्रकार चली कि लक्ष्मीबाई को इस बारे में जरा-सा भी संदेह न हुआ|

जब दवा ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो लक्ष्मी बुरी तरह से घबरा गयी|

"हे भगवान् ! यह क्या हो गया ? साईं बाबा ने मुझे यह किस अपराध की सजा दी है, अथवा मुझसे ऐसी क्या भूल हो गयी है जिसका दण्ड साईं बाबा मुझे इस प्रकार दे रहे हैं ?"

वह तुरंत शिरडी की ओर भागी|

गिरते-पड़ते हुए वह शिरडी आयी| द्वारिकामाई मस्जिद आकर वह साईं बाबा के सामने बुरी तरह से विलाप करने लगी| साईं बाबा मौन बैठे रहे| लक्ष्मी बिलख-बिलख कर अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा मांगने लगी| साईं बाबा ने उसे एक चुटकी भभूति देकर कहा - "इसे खा ले| जा भाग यहां से, सब ठीक हो जायेगा| चिंता मत कर|"

लक्ष्मी ने तुरंत साईं बाबा की आज्ञा का पालन किया| भभूति खाते ही उसका रक्तस्त्राव बंद हो गया| ठीक इसी समय प्रधान की हालात मरणासन्न हो गयी| वह मुंह से खून फेंकने लगा| उसे अत्यंत घबराहट होने लगी| वह समझ गया कि यह सब साईं बाबा का ही चमत्कार है|"

उसे अपनी गलती का अहसास हो गया|

वह भागकर शिरडी पहुंचा और साईं बाबा के चरणों में गिरकर अपनी गलती के लिए क्षमा याचना करने लगा| बाबा ने उसे क्षमा कर दिया| वह ठीक हो गया|

लक्ष्मीबाई ने सही समय पर एक बच्चे को जन्म दिया| उसकी मनोकामना पूरी हो गयी| प्रधान ने भी खुशियां मनायीं और वह साईं बाबा की जय-जयकार करने लगा|

लक्ष्मीबाई अपना पुत्र लेकर साईं बाबा के पास आयी और उसे साईं बाबा के चरणों में डाल दिया| साईं बाबा ने उसे आशीर्वाद दिया|

अब साईं बाबा की जय-जयकार दूर-दूर तक गूंजने लगी थी| उनका नाम और प्रसिद्धि फैलती जा रही थी| उनके भक्तों की संख्या में भी निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही थी| लोग बड़ी दूर-दूर से उनके दर्शन करने के लिए आने लगे थे|


शिरडी के पास के गांव में लक्ष्मीबाई नाम की एक स्त्री रहा करती थी| नि:संतान होने के कारण वह रात-दिन दु:खी रहा करती थी| जब उसको साईं बाबा के चमत्कारों के विषय में पता चला तो वह द्वारिकामाई मस्जिद में आकर वह साईं बाबा के चरणों पर गिरने ही वाली थी कि साईं बाबा ने तुरंत उसे कंधों से थाम लिया और बोले- "मां, यह क्या करती हो ?"

लक्ष्मी बुरी तरह से रोने लगी|

साईं बाबा बोले - "माँ, रोने की जरा भी जरूरत नहीं है| अब तुम यहां आ गई हो तो भगवान तुम्हारे दुःख अवश्य ही दूर करेंगे|"

लक्ष्मी ने दोनों हाथों से अपने आँसू पोंछे और बोली - "साईं बाबा ! मेरा दुःख तो आप जानते ही हैं|"

"हां, माँ ! मुझे सब पता है|"

"तो तब मेरा दुःख दूर करो न बाबा !" - वह रुंधे स्वर में बोली|

"अवश्य दूर होगा, ईश्वर पर भरोसा रखो|"

फिर साईं बाबा ने अपनी धूनी में से भभूति उठाकर उसे दी और बोले - "चुटकीभर इसे खा लेना और चुटकीभर अपने पति को खिला देना| तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी|"

लक्ष्मीबाई ने पूर्ण श्रद्धा के साथ बाबा की दी हुई भभूति अपने आँचल के एक छोर में बांध ली और बाबा का गुणगान करती वापस अपने गांव आ गयी| साईं बाबा के कहे अनुसार एक चुटकी भभूति पति को खिलाने के बाद दूसरी चुटकी भभूति उसने स्वयं खा ली| उसे साईं बाबा पर पूरी श्रद्धा और विश्वास था|

सही समय पर वह गर्भवती हो गयी| उसकी खुशी की कोई सीमा न रही| वह सारे गांव में हर समय साईं बाबा का गुणगान करती घूमती-फिरती थी|

उसके गांव का प्रधान दादू साईं बाबा का कट्टर विरोधी था| वह साईं बाबा को भ्रष्ट मानता था| साईं बाबा भ्रष्ट आदमी है| वह हिन्दू है, न मुसलमान| ऐसा आदमी भ्रष्ट माना जाता है| लक्ष्मी द्वारा गांव में बाबा का गुणगान करते फिरना उसे बहुत बुरा लगा|

उसने लक्ष्मी को बुलाकर डांटा - "तू साईं बाबा का नाम लेकर उसका प्रचार करती क्यों फिरती है ?"

"साईं बाबा बहुत पहुंचे हुए महापुरुष हैं|"

"तेरा दिमाग खराब हो गया है|" प्रधान गुस्से से आगबबूला हो गया|

उसने लक्ष्मी को बहुत बुरी तरह से डांटा और धमकाया और आगे से फिर कभी साईं बाबा का नाम न लेने का आदेश सुना दिया| पर वह भला कहां मानने वाली थी, उसने साईं बाबा का गुणगान पहले की तरह करना जारी रखा| इस पर गांव-प्रधान और बुरी तरह से जल-भुन गया| उसने लक्ष्मी को सबक सिखाने की सोची|

लक्ष्मी गर्भवती है| यदि किसी तरह से इसका गर्भ नष्ट कर दिया जाये, तो वह पागल हो जायेगी और साईं बाबा का गुणगान करना बंद कर देगी| अपने मन में ऐसा विचार कर प्रधान ने लक्ष्मीबाई को गर्भपात की अचूक दवा दे दी| उसने यह चाल इस प्रकार चली कि लक्ष्मीबाई को इस बारे में जरा-सा भी संदेह न हुआ|

जब दवा ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो लक्ष्मी बुरी तरह से घबरा गयी|

"हे भगवान् ! यह क्या हो गया ? साईं बाबा ने मुझे यह किस अपराध की सजा दी है, अथवा मुझसे ऐसी क्या भूल हो गयी है जिसका दण्ड साईं बाबा मुझे इस प्रकार दे रहे हैं ?"

वह तुरंत शिरडी की ओर भागी|

गिरते-पड़ते हुए वह शिरडी आयी| द्वारिकामाई मस्जिद आकर वह साईं बाबा के सामने बुरी तरह से विलाप करने लगी| साईं बाबा मौन बैठे रहे| लक्ष्मी बिलख-बिलख कर अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा मांगने लगी| साईं बाबा ने उसे एक चुटकी भभूति देकर कहा - "इसे खा ले| जा भाग यहां से, सब ठीक हो जायेगा| चिंता मत कर|"

लक्ष्मी ने तुरंत साईं बाबा की आज्ञा का पालन किया| भभूति खाते ही उसका रक्तस्त्राव बंद हो गया| ठीक इसी समय प्रधान की हालात मरणासन्न हो गयी| वह मुंह से खून फेंकने लगा| उसे अत्यंत घबराहट होने लगी| वह समझ गया कि यह सब साईं बाबा का ही चमत्कार है|"

उसे अपनी गलती का अहसास हो गया|

वह भागकर शिरडी पहुंचा और साईं बाबा के चरणों में गिरकर अपनी गलती के लिए क्षमा याचना करने लगा| बाबा ने उसे क्षमा कर दिया| वह ठीक हो गया|

लक्ष्मीबाई ने सही समय पर एक बच्चे को जन्म दिया| उसकी मनोकामना पूरी हो गयी| प्रधान ने भी खुशियां मनायीं और वह साईं बाबा की जय-जयकार करने लगा|

लक्ष्मीबाई अपना पुत्र लेकर साईं बाबा के पास आयी और उसे साईं बाबा के चरणों में डाल दिया| साईं बाबा ने उसे आशीर्वाद दिया|

अब साईं बाबा की जय-जयकार दूर-दूर तक गूंजने लगी थी| उनका नाम और प्रसिद्धि फैलती जा रही थी| उनके भक्तों की संख्या में भी निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही थी| लोग बड़ी दूर-दूर से उनके दर्शन करने के लिए आने लगे थे|

कल चर्चा करेंगे..संकटहरण श्री साईं

==ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ==
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें । 

Monday, 28 September 2020

श्री साईं लीलाएं - कुत्ते की पूँछ

ॐ सांई राम




कल हमने पढ़ा था.. दयालु साईं बाबा

श्री साईं लीलाएं


कुत्ते की पूँछ


पंडितजी चुपचाप बैठे अपने भविष्य के विषय में चिंतन कर रहे थे| उन्हें पता ही नहीं चला कि कब एक आदमी उनके पास आकर खड़ा हो गया है| जब पंडितजी ने कुछ ध्यान न दिया तो, उसने स्वयं आवाज दी|

"राम-राम पंडितजी|"

पंडितजी चौंक गये|

"क्या बात है, किस सोच में पड़े हो ?"

पंडितजी ने देखा तो देखते ही रह गये| उनके सामने लक्ष्मण खड़ा था|

"लक्ष्मण...तुम...|"

"हां पंडितजी|"

"कब आये ?" -पूछा पंडितजी ने|

"बस सीधे आपके पास ही चला आ रहा हूं|" लक्ष्मण पंडितजी के पास बैठ गया|

पंडितजी अभी भी उसे एकटक देखे जा रहे थे| कोई दो साल के बाद लक्ष्मण को देखा था| लक्ष्मण शिरडी का मशहूर बदमाश था| दो साल की सजा भुगतने के बाद अब वह जेल से सीधा आ रहा था| लक्ष्मण का इस दुनिया में कोई न था| वह एकदम अकेला था| आवारागर्दी, चोरी, गुंडागर्दी, छेड़छाड़, मारपीट करना ही उसके काम थे|

लक्ष्मण बोला - "क्या बात है, बड़े चुपचाप और उदास से बैठे हैं आज आप ?"

"हां|" - पंडितजी ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा|

"क्या बात हो गयी ?"

"कुछ न पूछ लक्ष्मण ! इस गांव में एक चमत्कारी बाबा आया है| उसने मेरा सारा धंधा-पानी ही चौपट कर दिया है| अब तो भूखों मरने की नौबत आ गयी है|"

लक्ष्मण आश्चर्य से बोला - "कौन है वह ?"

"लोग उसको साईं बाबा कहते हैं|"

"अच्छा कहां का है वह ?"

"क्या पता ?" पंडितजी ने कहा - "तुम अपना हालचाल कहो|"

"बस ! सीधा जेल से छूटते ही यहां चला आ रहा हूं|" लक्ष्मण मुस्कराया - "यदि तुम कहो तो बाबा को अपना चमत्कार दिखा दूं|" और वह हँसने लगा|

वैसे इससे पहले कई बार लक्ष्मण की सहायता से पंडित अपने विरोधियों को धूल चटवा चुका था| वह सोचने लगा, सांप की उस चमत्कारी घटना के कारण, जो स्वयं उसके साथ घटित हुई थी, वह भुला न पा रहा था|

"बोलो पंडितजी ! क्या विचार है ?"

"कोशिश कर लो !"

"कोशिश क्यों ? मैं करके दिखा दूंगा| एक ही दिन में छोड़कर भाग जाएगा|" लक्ष्मण हँसने लगा|

"जैसी तुम्हारी इच्छा|"

"क्या मैं तुम्हारे लिए इतना छोटा-सा काम नहीं कर सकता हूं ?" लक्ष्मण ने कहा - "आपके तो बहुत अहसमान हैं मुझ पर|"

"पंडित चुप रह गया|"

"कहां रहता है वह चमत्कारी बाबा ?"

"द्वारिकामाई मस्जिद में|"

"क्या पता, कभी वह मुसलमान बन जाता है और कभी हिन्दू ! क्या है वह, कुछ पता नहीं|"

"ठीक है, मैं देख लूंगा उसे|"

"जरा सावधानी से|" पंडित बोला - "सुना है, बड़ा चमत्कारी है वह|"

"अच्छा-अच्छा|" लक्ष्मण बोला - "ख्याल रखूंगा|"

"ठीक है सुबह-शाम मेरे यहां आकर खाना खा गया जाया करो| रात मैं बरामदा सोने के लिए है ही|"

लक्ष्मण चला गया|

पंडित चिंता में पड़ गया| कहीं फिर उसने आत्मघाती कदम तो नहीं उठा लिया| यदि चमत्कार हो गया तो इस बार साईं बाबा उसे माफ नहीं करेगा| वह परेशान था कि आखिर यह साईं है क्या ?

लक्ष्मण पंडित के पास से उठकर सीधे द्वारिकामाई मस्जिद गया| टूटी-फूटी द्वारिका मस्जिद का कायाकल्प देखकर वह हैरान रह गया| मस्जिद में चहल-पहल थी| साईं बाबा की धूनी जली हुई थी| वह उनकी धूनी के पास जाकर बैठ गया|

साईं बाबा के पास उनके शिष्य बैठे थे| लक्ष्मण ने देखा, साईं बाबा कोई विशेष नहीं है| दुबला-पतला, इकहरा बदन है| एक ही हाथ में जमीन सूंघ जाएगा| हां, चेहरे पर एक अजीब-सा आकर्षक-तेज अवश्य था|"

साईं बाबा ने लक्ष्मण की ओर नजर उठाकर भी न देखा| अजनबी होने के बावजूद उससे पूछताछ न की|

शिष्यगण चले गए| लक्ष्मण अकेला बैठा रह गया|

उसकी उपस्थिति की सर्वथा उपेक्षा कर साईं बाबा आँखें मूंदकर लेट गए| मौका अच्छा जानकर, लक्ष्मण बाबा को धमकी देने के बारे में विचार कर रहा था|

इससे पहले कि वह कुछ बोलता, साईं बाबा ने स्वयं कहा -

"मैं जानता हूं कि तू मुझे मारने आया है|"

यह बात सुनते ही लक्ष्मण बुरी तरह से चौंक गया| वह बुरी तरह घबरा गया|

"मार, मार दे मुझे और अपनी इच्छा पूरी कर ले|"

साईं बाबा का चेहरा बुरी तरह से तमतमा गया|

लक्ष्मण को काटो तो खून न था| वह काठ के समान जड़ होकर रह गया| साईं बाबा का रौद्र रूप देखकर वह घबरा गया| उसका शरीर पसीने से तर-ब-तर हो गया|

"कोई हथियार लाया है या खाली हाथ आया है?" - साईं बाबा बोले|

वह घबरा गया|

"बोल, जवाब दे|"

लक्ष्मण पसीने-पसीने हो गया| वह घबराकर साईं बाबा के चरणों पर गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा - "क्षमा कर दो बाबा| क्षमा कर दो|"

"मेरे पैर छोड़|"

"जब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे, तब तक मैं आपके पैर नहीं छोड़ूंगा| आप तो अंतर्यामी हैं| मैं आपकी महिमा को न जान सका|"

"जा माफ किया| नेक आदमी बन|"

लक्ष्मण चुपचाप सिर झुकाकर चला गया|

तब साईं बाबा खिलखिलाकर हँस पड़े| एकदम बच्चों के समान थी उनकी हँसी| यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि कुछ समय पूर्व उनका रूप बेहद रौद्र हो गया था|

साईं बाबा के पास उनका एक शिष्य आया, तो वह बड़बड़ा रहे थे - "कुत्ते की पूँछ क्या भला कभी सीधी हो सकती है ?"

शिष्य इस बात को समझ न पाया|

लक्ष्मण ने पंडित के पास जाकर हाथ जोड़कर सारा किस्सा बताया, तो पंडित का मन ग्लानी, पश्चात्ताप से भर गया| वह साईं बाबा को मान गया| उसने साईं बाबा का विरोध करना बंद कर दिया और उनका परमभक्त बन गया|


कल चर्चा करेंगे... ऊदी के चमत्कार से पुत्र-प्राप्ति

==ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ==
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें । 

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.