शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday 29 November 2016

"भारत बंद" आखिर क्युँ भाई ?

आज हम सभी एक शपथ लेते है, कि जो भी कोई संगठन या दल या व्यक्ति विशेष भारत बंद की बात करेगा तो हम उनके प्रति अपनी सोच और लगाव बंद कर देंगे।

Friday 25 November 2016

धन्य ते जयांचे द्वारीं बाबा होऊनि भिक्षेकरी

ॐ सांई राम

धन्य ते जयांचे द्वारीं बाबा होऊनि भिक्षेकरी.... पोरी आण गे चतकुर भाकरी म्हणूनि पसरी निजकरी ||

In the very beginning, Sai Baba was in the habit of going to a few houses in the
neighbourhood to beg of food. At times baba would scold a grudging housewife by saying - "Mother, you have so many chapatis, so much rice and this or that vegetable in your pots, why refuse a bit of food to a fakir"! This gentle chastisement and the accuracy of the stage fakir's pronouncements would remove the veil of Maya from these women who would then rush to put their all at his feet, as an offering of love.

Thursday 24 November 2016

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 13

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं |

हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|


श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 13
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अन्य कई लीलाएँ - रोग निवारण
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1. भीमाजी पाटील
2. बाला दर्जी
3. बापूसाहेब बूटी

4. आलंदीस्वामी
5. काका महाजनी

6. हरदा के दत्तोपंत ।

माया की अभेघ शक्ति
बाबा के शब्द सदैव संक्षिप्त, अर्थपूर्ण, गूढ़ और विदृतापूर्ण तथा समतोल रहते थे । वे सदा निश्चिंत और निर्भय रहते थे । उनका कथन था कि मैं फकीर हूँ, न तो मेरे स्त्री ही है और न घर-द्घार ही । सब चिंताओं को त्याग कर, मैं एक ही स्थान पर रहता हूँ । फिर भी माया मुझे कष्ट पहुँचाया करती हैं । मैं स्वयं को तो भूल चुका हूँ, परन्तु माया को कदापि नहीं भूल सकता, क्योंकि वह मुझे अपने चक्र में फँसा लेती है । श्रीहरि की यह माया ब्रहादि को भी नहीं छोड़ती, फर मुझ सरीखे फकीर का तो कहना ही क्या हैं । परन्तु जो हरि की शरण लेंगे, वे उनकी कृपा से मायाजाल से मुक्त हो जायेंगे । इस प्रकार बाबा ने माया की शक्ति का परिचय दिया । भगवान श्रीकृष्ण भागवत में उदृव से कहते कि सन्त मेरे ही जीवित स्वरुप हैं और बाबा का भी कहना यही था कि वे भाग्यशाली, जिलके समस्त पाप नष्ट हो गये हो, वे ही मेरी उपासना की ओर अग्रसर होते है, यदि तुम केवल साई साई का ही स्मरण करोगे तो मैं तुम्हें भवसागर से पार उतार दूँगा । इन शब्दों पर विश्वास करो, तुम्हें अवश् लाभ होगा । मेरी पूजा के निमित्त कोई सामग्री या अष्टांग योग की भी आवश्यकता नहीं है । मैं तो भक्ति में ही निवास करता हूँ । अब आगे देखियो कि अनाश्रितों के आश्रयदाता साई ने भक्तों के कल्याणार्थ क्या-क्या किया ।



भीमाजी पाटील: सत्य साई व्रत
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नारायण गाँव (तालुका जुन्नर, जिला पूना) के एक महानुभाव भीमाजी पाटील को सन् 1909 में वक्षस्थल में एक भयंकर रोग हुआ, जो आगे चलकर क्षय रोग में परिणत हो गया । उन्होंने अनेक प्रकार की चिकित्सा की, परन्तु लाभ कुछ न हुआ । अन्त में हताश होकर उन्होंने भगवान से प्रार्थना की, हे नारायण । हे प्रभो । मुझ अनाथ की कुछ सहायता करो । यह तो विदित ही है कि जब हम सुखी रहते है तो भगवत्-स्मरण नहीं करते, परन्तु ज्यों ही दुर्भाग्य घेर लेता है और दुर्दिन आते है, तभी हमें भगवान की याद आती है । इसीलिए भीमाजी ने भी ईश्वर को पुकारा । उन्हें विचार आया किक्यों न साईबाबा के परम भक्त श्री. नानासाहेब चाँदोरकर से इस विषय में परामर्श लिया जाय और इसी हेतु उन्होंने अपना स्थिति पूर्ण विवरण सहित उनके पास लिख भेजी और उचित मार्गदर्शन के लिये प्रार्थना की । प्रत्युत्तर में श्री. नानासाहेब ने लिख दिया कि अब तो केवल एक ही उपाय शेष है और वह है साई बाबा के चरणकमलों की शरणागति । नानासाहेब के वचनों पर विश्वास कर उन्होंने शिरडी-प्रस्थान की तैयारी की । उन्हें शिरडी में लाया गया और मसजिद में ले जाकर लिटाया गया । श्री. नानासाहेब और शामा भी इस समया वहीं उपस्थित थे । बाबा बोले कि यह पूर्व जन्म के बुरे कर्मों का ही फल है । इस कारण मै इस झंझट में नहीं पड़ना चाहता । यह सुनकर रोगी अत्यन्त निराश होकर करुणपूर्ण स्वर में बोला कि मैं बिल्कुल निस्सहाय हूँ और अन्तिम आशा लेकर आपके श्री-चरणों में आया हूँ । आपसे दया की भीख माँगता हूँ । हे दीनों के शरण । मुझ पर दया करो । इस प्रार्थना से बाबा का हृदय द्रवित हो आया और वे बोले कि अच्छा, ठहरो । चिन्ता न करो । तुम्हारे दुःखों का अन्त शीघ्र होगा । कोई कितना भी दुःखित और पीड़ित क्यों न हो, जैसे ही वह मसजिद की सीढ़ियों पर पैर रखता है, वह सुखी हो जाता हैं । मसजिद का फकीर बहुत दयालु है और वह तुम्हारा रोग भी निर्मूल कर देगा । वह तो सब लोंगों पर प्रेम और दया रखकर रक्षा करता हैं । रोगी को हर पाँचवे मिनट पर खून की उल्टियाँ हुआ करती थी, परन्तु बाबा के समक्ष उसे कोई उल्टी न हुई । जिस समय से बाबा ने अपने श्री-मुख से आशा और दयापूर्ण शब्दों में उक्त उदगार प्रगट किये, उसी समय से रोग ने भी पल्टा खाया । बाबा ने रोगी को भीमाबाई के घर में ठहरने को कहा । यह स्थान इस प्रकार के रोगी को सुविधाजनक और स्वास्थ्यप्रद तो न था, फिर भी बाबा की आज्ञा कौन टाल सकता था । वहाँ पर रहते हुए बाबा ने दो स्वप्न देकर उसका रोग हरण कर लिया । पहने स्वप्न में रोगी ने देखा कि वह एक विघार्थी है और शिक्षक के सामने कविता मुखाग्र न सुना सकने के दण्डस्वरुप बेतों की मार से असहनीय कष्ट भोग रहा है । दूसरे स्वप्न में उसने देखा कि कोई हृदय पर नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे की ओर पत्थार घुमा  रहा है, जिससे उसे असहृय पीड़ हो रही हैं । स्वप्न में इस प्रकार कष्ट पाकर वह स्वस्थ हो गया और घर लौट आया । िफर वह कभी-कभी शिऱडी आता और साईबाबा की दया का स्मरण कर साष्टांग प्रणाम करता था । बाबा अपने भक्तों से किसी वस्तु की आशा न रखते थे । वे तो केवल स्मरण, दृढ़ निष्ठा और भक्ति के भूखे थे । महाराष्ट्र के लोग प्रतिपक्ष या प्रतिमास सदैव सत्यनारायण का व्रत किया करते है । परन्तु अपने गाँव पहुँचने पर भीमाजी पाटीन ने सत्यनारायण व्रत के स्थान पर एक नया ही सत्य साई व्रत प्रारम्भ कर दिया ।


बाला गणपत दर्जी
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एक दूसरे-भक्त, जिनका नां बाला गणपत दर्जी था, एक समय जीर्ण ज्वर से पीड़ित हुए । उन्होंने सब प्रकार की दवाइयाँ और काढ़े लिये, परन्तु इनसे कोई लाभ न हुआ । जब ज्वर तिलमात्र भी न घटा तो वे शिरडी दौडे़ आये और बाबा के श्रीचरणों की शरण ली । बाबा ने उन्हें विचित्र आदेश दिया कि लक्ष्मी मंदिर के पास जाकर एक काले कुत्ते को थोड़ासा दही और चावल खिलाओ । वे यह समझ न सके कि इस आदेश का पालन कैसे करें । घर पहुँचकर चावल और दही लेकर वे लक्ष्मी मंदिर पहुँचे, जहाँ उन्हें एक काला कुत्ता पूँछ हिलाते हुए दिखा । उन्होंने वह चावल और दही उस कुत्ते के सामने रख दिया, जिसे वह तुरन्त ही खा गया । इस चरित्र की विशेषता का वर्णन कैसे करुँ कि उपयुर्क्त क्रिया करने मात्र से ही बाला दर्जी का ज्वर हमेशा के लिये जाता रहा ।


बापूसाहेब बूटी 
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श्रीमान् बापूसाहेब बूटी एक बार अम्लपित्त के रोग से पीड़ित हुए । उनकी आलमारी में अनेक औषधियाँ थी, परन्तु कोई भी गुणकारी न हो रही थी । बापूसाहेब अम्लपित्त के काण अति दुर्बल हो गये और उनकी स्थिति इतनी गम्भीर हो गई कि वे अब मसजिद में जाकर बाबा के दर्शन करने में भी असमर्थ थे । बाबा ने उन्हें बुलाकर अपने सम्मुख बिठाया और बोले, सावधान, अब तुम्हें दस्त न लगेंगे । अपनी उँगली उठाकर फर कहने लगे उलटियाँ भी अवश्य रुक जायेंगी । बाबा ने ऐसी कृपा की कि रोग समूल नष्ट हो गया और बापूसाहेब पूर्ण स्वस्थ हो गये । एक अन्य अवसर पर भी वे हैजा से पीडि़त हो गये । फलस्वरुप उनकी प्यास अधिक तीव्र हो गई । डाँ. पिल्ले ने हर तरह के उपचार किये, परन्तु स्थिति न सुधरी । अन्त में वे फिर बाबा के पास पहुँचे और उनसे तृशारोग निवारण की औशधि के लिये प्रार्थना की । उनकी प्रार्थना सुनकर बाबा ने उन्हें मीठे दूध में उबाला हुआ बादाम, अखरोट और पिस्ते का काढ़ा पियो । - यह औषधि बतला दी ।

दूसरा डाँक्टर या हकीम बाबा की बतलाई हुई इस औषधि को प्राणघातक ही समझता, परन्तु बाबा की आज्ञा का पालन करने से यह रोगनाशक सिदृ हुई और आश्चर्य की बात है कि रोग समूल नष्ट हो गया ।

आलंदी के स्वामी
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आलंदी के एक स्वामी बाबा के दर्शनार्थ शिरडी पधारे । उनके कान में असहृ पीड़ा थी, जिसके कारण उन्हें एक पल भी विश्राम करना दुष्कर था । उनकी शल्य चिकित्सा भी हो चुकी थी, फिर भी स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन न हुआ था । दर्द भी अधिक था । वे किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वापिस लौटने के लिये बाबा से अनुमति माँगने गये । यह देखकर शामा ने बाबा से प्रार्थना की कि स्वामी के कान में अधिक पीड़ा है । आप इन पर कृपा करो । बाबा आश्वासन देकर बोले, अल्लाह अच्छा करेगा । स्वामीजी वापस पूना लौट गये और एक सप्ताह के बाद उन्होंने शिरडी को पत्र भेजा कि पीड़ा शान्त हो गई है । परन्तु सूजन अभी पूर्ववत् ही है । सूजन दूर हो जाय, इसके लिए वे शल्यचिकित्सा (आपरेशन) कराने बम्बई गये । शल्यचिकित्सा विशेषक्ष (सर्जन) ने जाँच करने के बाद कहा कि शल्यचिकित्सा (आपरेशन) की कोई आवश्यकता नहीं । बाबा के शब्दों का गूढ़ार्थ हम निरे मूर्ख क्या समझें ।



काका महाजनी
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काका महाजनी नाम के एक अन्य भक्त को अतिसार की बीमारी हो गई । बाबा का सेवा-क्रम कहीं टूट न जाय, इस कारण वे एक लोटा पानी भरकर मसजिद के एक कोने में रख देते थे, ताकि शंका होने पर शीघ्र ही बाहर जा सकें । श्री साईबाबा को तो सब विदित ही था । फिर भी काका ने बाबा को सूचना इसलिये नहीं दी कि वे रोग से शीघ्र ही मुक्ति पा जायेंगे । मसजिद में फर्श बनाने की स्वीकृति बाबा से प्राप्त हो ही चुकी थी, परन्तु जब कार्य प्रारम्भ हुआ तो बाबा क्रोधित हो गये और उत्तेजित होकर चिल्लाने लगे, जिससे भगदड़ मच गई । जैसे ही काका भागने लगे, वैसे ही बाबा ने उन्हें पकड़ लिया और अपने सामने बैठा लिया । इस गडबड़ी में कोई आदमी मूँगफली की एक छोटी थैली वहाँ भूल गया । बाबा ने एक मुट्ठी मूँगफली उसमें से निकाली और छील कर दाने काका को खाने के लिये दे दिये । क्रोधित होना, मूँगफली छीलना और उन्हें काका को खिलाना, यह सब कार्य एक साथ ही चलने लगा । स्वंय बाबाने भी उसमें से कुछ मूँगफली खाई । जब थैली खाली हो गई तो बाबा ने कहा कि मुझे प्यास लगी है । जाकर थोड़ा जल ले आओ । काका एक घड़ा पाना भर लाये और दोनों ने उसमें से पानी पिया । फिर बाबा बोले कि अब तुम्हारा अतिसार रोग दूर हो गया । तुम अपने फर्श के कार्य की देखभाल कर सकते हो । थोडे ही समय में भागे हुए लोग भी लौट आये । कार्य पुनः प्रारम्भ हो गया । काका कारो अब प्रायः दूर हो चुका था । इस कारण वे कार्य में संलग्न हो गये । क्या मूँगफली अतिसार रोग की औषधि है । इसका उत्तर कौन दे । वर्तमान चिकित्सा प्रणाली के अनुसार तो मूँगफली से अतिसार में वृद्घि ही होती है, न कि मुक्ति । इस विषय में सदैव की भाँति बाबा के श्री वचन ही औषधिस्वरुप थे ।


हरद के दत्तोपन्त
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हरदा के एक सज्जन, जिनका नाम श्री दत्तोपन्त था, 14 वर्ष से उदररोग से पीड़ित थे । किसी भी औषधि से उन्हें लाभ न हुआ । अचानक कहीं से बाबा की कीर्ति उनके कानों में पड़ी कि उनकी दृष्टि मात्र से ही रोगी स्वस्थ हो जाते हैं । अतः वे भी भाग कर शिरडी आये और बाबा के चरणों की शरण ली । बाबा ने प्रेम-दृष्टि से उनकी ओर देखकर आशीर्वाद देकर अपना वरद हस्त उनके मस्तक पर रखा । आशीष और उदी प्राप्त कर वे स्वस्थ हो गये तथा भविष्य में फिर कोई हुड़ा न हुई ।


इसी तरह के निम्नलिखित तीन चमत्कार इस अध्याय के अन्त में टिप्पणी में दिये गये हैं –

1. माधवराव देशपांडे बवासीर रोग से पीडि़त थे । बाबा की आज्ञानुसार सोनामुखी का काढ़ा सेवन करने से वे नीरोग हो गये । दो वर्ष पश्चात् उन्हें पुनः वही पीड़ा उत्पन्न हुई । बाबा से बिना परामर्श लिये वे उसी काढ़े का सेवन करने लगे । परिणाम यह हुआ कि रोग अधिक बढ़ गया । परन्तु बाद में बाबा की कृपा से शीघ्र ही ठीक हो गया ।

2. काका महाजनी के बड़े भाई गंगाधरपन्त को कुछ वर्षों से सदैव उदर में पीड़ा बनी रहती थी । बाबा की कीर्ति सुनकर वे भी शिरडी आये और आरोग्य-प्राप्ति के लिये प्रार्थना करने लगे । बाबा ने उनके उदर को स्पर्श कर कहा, अल्लाह अच्छा करेगा । इसके पश्चात् तुरन्त ही उनकी उदर-पीड़ा मिट गई और वे पूर्णतः स्वस्थ हो गये ।
3. श्री नानासाहेब चाँदोरकर को भी एक बार उदर में बहुत पीड़ा होने लगी । वे दिनरात मछली के समान तड़पने लगे । डाँ. ने अनेक उपचार किये, परन्तु कोई परिणाम न निकला । अन्त मेंवे बाबा की शरण में आये । बाबा ने उन्हें घी के साथ बर्फी खाने की आज्ञा दी । इस औषधि के सेवन से वे पूर्ण स्वस्थ हो गये । इन सब कथाओं से यही प्रतीत होता है कि सच्ची औषधि, जिससे अनेंकों को स्वास्थ्य-लाभ हुआ, वह बाबा के केवल श्रीमुख से उच्चरित वचनों एवं उनकी कृपा का ही प्रभाव था ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday 23 November 2016

आओ साँईं


तूने मुझे बुलाया साईनाथ रे

ॐ सांई राम




तूने मुझे बुलाया साईनाथ रे
मैं आया मैं आया साईनाथ रे
ओ साई राम रे, ओ साई श्याम रे, ओ साई राम रे.......तूने...

सारे  जग का तू है दाता,
हम भक्तों का भाग्यविधाता
तेरे दर्शन को पाने को (२)
चलते चलते आया साईनाथ रे.....मैं आया......

लाखों की तूने बिगड़ी बनायीं
शिर्डी की तूने आस जगाई
भूखे को साई खाना देता
प्यासे की बाबा प्यास बुझाता
तू है अक्षय दाता साई नाथ रे........मैं आया...

पापी हो या, या हो पुजारी
राजा हो या रंक भिखारी
सबको तूने गले लगाया
बाबा दीन दयालु साईनाथ रे....मैं आया...

तुम को पता है अन्तर्यामी
जाग उठो शिर्डी के स्वामी
तुमको अर्पण की है मैंने
ये माटी की काया साईनाथ रे...मैं आया....

अरे प्रेम से बोलो जय साई की
अरे सारे बोलो जय साई की
अरे मिलकर बोलो जय साई की
अरे साई गुण गाओ जय साई की
अरे हरि गुण गाओ जय साई की
अरे प्यारा नाम जय साई की
अरे सुन्दर नाम जय साई की
अरे कष्ट मिटाए जय साई की
अरे दुःख हर ले जय साई की
अरे सबका मालिक जय साई की

Tuesday 22 November 2016

अगर हाथ रख दे मेरे सर पे साँई

ॐ सांई राम


 अगर हाथ रख दे मेरे सर पे साँई
मुझे फिर किसी कि ज़रूरत नहीं है |
बिठाले अगर अपने चरणो में हर दम
किसी भी ख़ुशी कि ज़रूरत नहीं है ||


ये फूलों कि दुनिया, ये खारों की दुनिया
ये लालच में भटके विचारों की दुनिया |
अगर पी सकूँ साईं मस्ती का अमृत
किसी बेखुदी की ज़रूरत नहीं है ||
अगर हाथ राख दे .....

दया कि है तुमने तो, हर बार कर दो
मेरी ज़िन्दगी पे ये उपकार कर दो |
अगर छोड बैठू में दामन तुम्हारा
तो इस ज़िन्दगी की ज़रूरत नहीं है ||
अगर हाथ रख दे .....

पुजारी जहाँ लुट लेते है मंदिर
कभी झाकते भी नही अपने अंदर |

खुदा की ज़रूरत है ऐसी ज़मीं पर
यहाँ आदमी की ज़रूरत नहीं है ||
अगर हाथ रख दे .....


चलेंगे यहाँ से तेरे काम करके
कभी ना रहेंगे अंधेरों से दर के |
अगर साथ हो साईं बाबा का दीपक
किसी रोशनी की ज़रूरत नहीं है ||
अगर हाथ रख दे .....

Monday 21 November 2016

तेरे साथ साई, तुझे फिक्र क्या हैं ||

ॐ सांई राम


झमाने कि चिंता में, काहे पडा हैं |
तेरे साथ साई, तुझे फिक्र क्या हैं ||


तूझे एक दिन खुद को पहाचानना हैं |
तेरी आत्मा हि परमात्मा हैं ||
जमाने कि .....

किसी और में हैं चलने कि शक्ती |


तू कैसे समझता हैं खुद चळ रहा हैं ||
जमाने कि .....

कहां तक सजाएगा अपने बदन को |
ये हैं बोज इसको यही छोडना हैं ||
जमाने कि .....

गले से लगा गम कि कथिनाइयो को |
तेरे पिछले जन्मो का ये सिलसिला हैं ||
जमाने कि .....

खाता करनेवाले सजा तो मिलेगी |
तुझे तेरे अंदर से वोह देखता हैं ||
जमाने कि .....

वो आगाज हैं और वो अंजाम तेरा |
वो हि इब्तदा हैं , वो हि इंतीहा हैं ||
जमाने कि .....

Sunday 20 November 2016

घर मेरा ऐसा बनाना सांई नाथ

ॐ सांई राम



घर मेरा ऐसा बनाना सांई नाथ
जिसमें सारी उमर कट जाय

घर मेरा ऐसा बनाना सांई नाथ
जहां बनाऊँ कुटी मैं सांई
वहीं धाम तेरा बन जाए

तेरे चरण की धूल उठाऊँ
फिर दीवारो पे लेप लगाऊ

सांई जी दया करके
दरवाज़े पर श्रद्धा सबूरी लिखना

घर मेरा ऐसा बनाना सांई नाथ
जिसमें सारी उमर कट जाय
उस घर के अन्दर सांई
तेरा इक मन्दिर होवे

मन्दिर अन्दर मेरे सांई
तेरी सुन्दर मूरत होवे

मन भावों का हार बनाऊँ
तब इच्छा पूरी होवे

साँझ सवेरे उन भावों का
तुमको हार पहनाऊँ
घर मेरा ऐसा बनाना सांई नाथ
जिसमें सारी उमर कट जाय

भक्तिभाव से भरा हुआ
उस घर में परिवार होवे
श्यामा-तात्या हों संग में
और भगत म्हालसापति होवे
भक्तमंडली वहां विराजे
और लक्ष्मी बाई होवे
चारों पहर की होय आरती
नित-नित दर्शन होवे
घर मेरा ऐसा बनाना सांई नाथ
जिसमें सारी उमर कट जाय

गुरूवार के रोज़ वहां
सांई तेरा भंडारा होवे
हलुआ पूरी और खिचड़ी
भोग वहां लगता होवे
सांई के हाथों हांडी में
कुछ भोजन पकता होवे
सांई प्रेम से भोग लगावें
जूठन मोहे मिल जावे
घर मेरा ऐसा बनाना सांई नाथ
जिसमें सारी उमर कट जाय

चैत मास में नवमी के दिन
उर्स भरे मेला होवे
यशुदा नन्दन पालने झूलें
राम जन्म सुन्दर होवे
सांई नाथ कि चले पालकी
मैं भी नाचूँ गाऊँ

घर मेरा ऐसा बनाना सांई नाथ
जिसमें सारी उमर कट जाय ||

Saturday 19 November 2016

साई हमारी रक्षा करो....

ॐ सांई राम



आपके स्मरण भजन से कहे सभी क्लेश
साई हमारी रक्षा करो हे गौरी पुत्र गणेश



आपने करोडो प्राणियो को दिया ज्ञान
साई हमारी रक्षा करो हे जगद गुरु महान

मात अनुसुया के दुलारे दत्तात्रेय भगवन
साई हमारी रक्षा करो हे साई महान

अंधे को जो आँखें दे लुलो को बलदान
ऐसे ही हम पर कृपा करो, हे साईनाथ भगवान्

अर्ध चंद्र धारी भोलेश्वर हे माँ पार्वती के साथ
तो फिर हमारे सिर पर भी रखो रक्षा का हाथ

आप ही महा लक्ष्मीजी के स्वामी विष्णु भगवन
साई हमारी रक्षा करो, अपने बच्चो समान

बाल भक्तो की रक्षा करने अवतार लिए श्री भगवन
साई हमारी रक्षा करो नरसिंह देव सुजान

जिनके पिता अत्रेय ऋषि सती है अकुसुया माँ
साई हमारी रक्षा करो बनकर दत्त भगवान्

जग में कर कठोर तपस्या, पाया हरी का नाम
साई हमारी रक्षा करो चेतान्य देव सुजान

किसने अपने भक्तो पर कृपा सदा करी
साई हमारी रक्षा करो हे साई वित्थाल्नाथ हरी

आप की कृपा से होवे हर मन्नत पवाबान
हमारी साई रक्षा करो, हे बालाजी भगवन

करोडो आप की कृपा से भजन करे सदैव
साई हमारी रक्षा करो, बन कर गुरु नानक देव

आपने ही वे हिंदू मुस्लिम को एक में किया विलीन
साईi हमारी रक्षा करो, हे बाबा ताजुद्दीन

आपने अपने भक्तो की सदा ही रखी लाज
साई हमारी रक्षा करो बनकर श्री रामचंद्र महाराज

आपके डर से ही राक्षसों की निकले जान
साई हमारी रक्षा करो हमारे महावीर हनुमान

आपकी शक्ति से जादू टोने भूत प्रेतों का हो नाश
साई हमारी रक्षा करो, साई सत्य प्रकाश

नारायाण के रूप को जग को करे सनाथ
साई हमारी रक्षा करो जगतगुरु नवनाथ

जिन्होंने मार्कंडेय को दिया जीवन दान
साई हमारी रक्षा करो, बन के शंकर भगवान्

आपकी महिमा सब ऋषि मुनि वेद पुरानो ने गाई
साई हमारी रक्षा करो, धारण का रूप काली माई

आपकी पूजा जिसने की, उसका होगा कल्याण
साई हमारी रक्षा करो बनकर माँ दुर्गा महान

जिन की कृपा दृष्टि से मिटे अँधेरी रात
साई हमारी रक्षा करो बनकर सरस्वती मात

जिसने संसार में, प्रेम रुपी अमृत नदी चलाई
साई हमारी रक्षा करो, बनके राधा माई

जिसकी कृपा से सब संसार सुख पाता
साई हमारी रक्षा करो, बन के सीता माता

जिसके तट पर हर युग में संत सुजान
साई हमारी रक्षा करो, बनकर माँ गंगा महान

जिसने सुग्रीव विभीषण अंगद को दिए वरदान
साई हमारी रक्षा करो, बनके श्रीराम भगवन

आप ही ने तो भरी सभा में राखी द्रौपदी की लाज
साई हमारी रक्षा करो श्री कृष्ण चन्द्र महाराज

भीलनी का किया कल्याण, गिध्द को जाने किया वार
साई हमारी रक्षा करो रघुवर पतित उद्धार

आपकी पूजा से संवरे सब भक्तो के काज
साई हमारी रक्षा करो कल्याणकारी शनिजी महाराज

आपकी ही तो महिमा, गावे वेद पुराण
साई हमारी रक्षा करो, हे साई शिव भगवान्

जिन्हें सच्चे मन से पूजे पूरा भक्त समाज
साई हमारी रक्षा करो गजानन महाराज

महाकाली का रूप जो सत्पुरुशो का मान
साई हमारी रक्षा करो श्री राम कृष्ण भगवन

संसार को साँची भक्ति दे, घट में आत्म ज्ञान
साई हमारी रक्षा करो, हे साई मात महान

जन को बल, बुद्धि, विद्या आप ही करे सब प्रदान
साई हमारी रक्षा करो भक्ति दो काली मात महान

आप ही मात, आप ही पिता सबकी रखे लाज
साई हमारी रक्षा करो बनकर कवच आज

दीन दुखियों के तुम ही दाता तुम ही विधाता
आप ही ब्रह्म ज्ञान के ज्ञानी आप ही संसार स्वामी

हम आए है शरण तुम्हारी क्षमा करो
साई हमारी रक्षा करो, साई हमारी रक्षा करो

हमसे हो जाते है गलत प्रतिदिन कई काम
हमारी रक्षा करो हे साई राम

प्रभु दुखिया है यह सब संसार
साई हमारी रक्षा करो दो साई जी अपना उद्धार

दुःख मितावे सुख को पावे
साई हमारी साई को जो ध्यावे

दुःख में स्मरण सब करे, सुख में भूले साई का नाम
साई हमारी दुःख जीवन में क्या काम

दिन दुखी के आश्रय जन पर सदा दयाल
साई हमारी रक्षा करो हे साईनाथ कृपाल

ब्रह्म ज्ञान दाता जो संतो के हे सरताज
साई हमारी रक्षा करो हे ज्ञानेश्वर महाराज

शरण आए हुए अपराधी की क्षमा करे भगवान्
साई हमारी रक्षा करो हे साई मात सुजान

जप लो साई का सच्चा नाम
फिर संकट का क्या काम

जिस पर साई की कृपा होवे
वही सदा सुख चैन की नींद सोवे

साई के द्वार पे आया जो सवाली
वह कभी भी न गया खाली

झोलिया उन्होने सब की भर दी
जिसने एक बार उनकी पूजा कर ली

साई का नाम सदा जपते रहो
वही सुखो के दाता वही मुरादों के वली

Friday 18 November 2016

कोई नहीं मेरा सहाई...

ॐ सांई राम


बाबा आप ही मेरे माता पिता हो,
आप ही मेरे भाई बहन,


सब रिश्ते हैं झूटे यहाँ,
कोई नहीं मेरा सहाई,
न इच्छा है माया क़ि बाबा,
और न ही रिश्ते नातों क़ि,
सब रिश्ते है झूटे यहाँ,
माया साथ न जाने क़ि,
बाबा आप सब कुछ जानते,
करते सबका पालन पोषण,
फिर क्यों इस झूटी दुनिया में,
मुझको आपने छोड़ दिया,
कब आएगा वो दिन बाबा,
जब लेजाओगे अपने साथ,
कब आएगा वो दिन बाबा,
जब करुँगी सेवा आपकी दिन रात,
आप जैसा गुरु पा कर बाबा,
उद्धार मेरा हो गया,
इस जीवन का मेरे बाबा,
लक्ष्य पूरा हो गया,
बाबा कृपा आपनी बस इतनी रखना,
हाथ आपका सदा आँचल के सिर पर रहे,
ना कभी भटकूँ में बाबा,
राह सही मिलती रहे!

Thursday 17 November 2016

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय - १२

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं। हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है । हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा। किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|


श्री साई सच्चरित्र - अध्याय - १२
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काका महाजनी, धुमाल वकील, श्रीमती निमोणकर, मुले शास्त्री, एक डाँक्टर के द्घारा बाबा की लीलाओं का अनुभव ।
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इस अध्याय में बाबा किस प्रकार भक्तों से भेंट करते और कैसा बर्ताव करते थे, इसका वर्णन किया गया हैं ।


सन्तों का कार्य
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हम देख चुके है कि ईश्वरीय अवतार का ध्येय साधुजनों का परित्राण और दुष्टों का संहार करना है । परन्तु संतों का कार्य तो सर्वथा भिन्न ही है । सन्तों के लिए साधु और दुष्ट प्रायःएक समान ही है । यथार्थ में उन्हें दुष्कर्म करने वालों की प्रथम चिन्ता होती है और वे उन्हें उचित पथ पर लगा देते है । वे भवसागर के कष्टों को सोखने के लिए अगस्त्य के सदृश है और अज्ञान तथा अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य के समान है । सन्तों के हृदय में भगवान वासुदेव निवास करते है । वे उनसे पृथक नहीं है । श्री साई भी उसी कोटि में है, जो कि भक्तों के कल्याण के निमित्त ही अवतीर्ण हुए थे । वे ज्ञानज्योति स्वरुप थे और उनकी दिव्यप्रभा अपूर्व थी । उन्हें समस्त प्राणियों से समान प्रेम था । वे निष्काम तथा नित्यमुक्त थे । उनकी दृष्टि में शत्रु, मित्र, राजा और भिक्षुक सब एक समान थे । पाठको । अब कृपया उनका पराक्रम श्रवण करें । भक्तों के लिये उन्होंने अपना दिव्य गुणसमूह पूर्णतः प्रयोग किया और सदैव उनकी सहायता के लिये तत्पर रहे । उनकी इच्छा के बिना कोई भक्त उनके पास पहुँच ही न सकता था । यदि उनके शुभ कर्म उदित नहीं हुए है तो उन्हे बाबा की स्मृति भी कभी नहीं आई और न ही उनकी लीलायें उनके कानों तक पहुँच सकी । तब फिर बाबा के दर्शनों का विचार भी उन्हें कैसे आ सकता था । अनेक व्यक्तियों की श्री साईबाबा के दर्शन सी इच्छा होते हुए भी उन्हें बाबा के महासमाधि लेने तक कोई योग प्राप्त न हो सका । अतः ऐसे व्यक्ति जो दर्शनलाभ से वंचित रहे है, यदि वे श्रद्घापूर्वक साईलीलाओं का श्रवण करेंगे तो उनकी साई-दर्शन की इच्छा बहुत कुछ अंशों तक तृप्त हो जायेगी । भाग्यवश यदि किसी को किसी प्रकार बाबा के दर्शन हो भी गये तो वह वहाँ अधिक ठहर न सका । इच्छा होते हुए भी केवल बाबा की आज्ञा तक ही वहाँ रुकना संभव था और आज्ञा होते ही स्थान छोड़ देना आवश्यक हो जाता था । अतः यह सव उनकी शुभ इच्छा पर ही अवलंबित था ।

काका महाजनी
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एक समय काका महाजनी बम्बई से शिरडी पहुँचे । उनका विचार एक सप्ताह ठढहरने और गोकुल अष्टमी उत्सव में सम्मिलित होने का था । दर्शन करने के बाद बाबा ने उनसे पूछा, तुम कब वापस जाओगे । उन्हें बाबा के इस प्रश्न पर आश्चर्य-सा हुआ । उत्तर देना तो आवश्यक ही था, इसलिये उन्होंने कहा, जब बाबा आज्ञा दे । बाबा ने अगले दिन जाने को कहा । बाबा के शब्द कानून थे, जिनका पालन करना नितान्त आवश्यक था । काका महाजनी ने तुरन्त ही प्रस्थान किया । जब वे बम्बई में अपने आफिस में पहुँचे तो उन्होंने अपने सेठ को अति उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करते पाया । मुनीम के अचानक ही अस्वस्थ हो जाने के कारण काका की उपस्थिति अनिवार्य हो गई थी । सेठ ने शिरडी को जो पत्र काका के लिये भेजा था, वह बम्बई के पते पर उनको वापस लौटा दिया गया ।

भाऊसाहेब धुमाल
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अब एक विपरीत कथा सुनिये । एक बार भाऊसाहेब धुमाल एक मुकदमे के सम्बन्ध में निफाड़ के न्यायालय को जा रहे थे । मार्ग में वे शिरडी उतरे । उन्होंने बाबा के दर्शन किये और तत्काल ही निफाड़ को प्रस्थान करने लगे, परन्तु बाबा की स्वीकृति प्राप्त न हुई । उन्होने उन्हे शिरडी में एक सप्ताह और रोक लिया । इसी बीच में निफाड़ के न्यायाधीश उदर-पीड़ा से ग्रस्त हो गये । इस कारण उनका मुकदमा किसी अगले दिन के लिये बढ़ाया गया । एक सप्ताह बाद भाऊसाहेब को लौटने की अनुमति मिली । इस मामले की सुनवाई कई महीनों तक और चार न्यायाधीशों के पास हुई । फलस्वरुप धुमाल ने मुकदमे में सफलता प्राप्त की और उनका मुवक्किल मामले में बरी हो गया ।

श्रीमती निमोणकर
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श्री नानासाहेब निमोणकर, जो निमोण के निवासी और अवैतनिक न्यायाधीश थे, शिरडी में अपनी पत्नी के साथ ठहरे हुए थे । निमोणकर तथा उनकी पत्नी बहुत-सा समय बाबा की सेवा और उनकी संगति में व्यतीत किया करते थे । एक बार ऐसा प्रसंग आया कि उनका पुत्र और अन्य संबंधियों से मिलने तथा कुछ दिन वहीं व्यतीत करने का निश्चय किया । परन्तु श्री नानासाहेब ने दूसरे दिन ही उन्हें लौट आने को कहा । वे असमंजस में पड़ गई कि अब क्या करना चाहिए, परन्तु बाबा ने सहायता की । शिरडी से प्रस्थान करने के पूर्व वे बाबा के पास गई । बाबा साठेवाड़ा के समीप नानासाहेब और अन्य लोगों के साथ खड़े हुये थे । उन्होंने जाकर चरणवन्दना की और प्रस्थान करने की अनुमति माँगी । बाबा ने उनसे कह, शीघ्र जाओ, घबड़ाओ नही, शान्त चित्त से बेलापुर में चार दिन सुखपूर्वक रहकर सब सम्बन्धियों से मिलो और तब शिरडी आ जाना । बाबा के शब्द कितने सामयिक थे । श्री निमोणकर की आज्ञा बाबा द्घारा रद्द हो गई ।

नासिक के मुने शास्त्रीः ज्योतिषी
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नासिक के एक मर्मनिष्ठ, अग्नहोत्री ब्रापमण थे, जिनका नाम मुले शास्त्री था । इन्होंने 6 शास्त्रों का अध्ययन किया था और ज्योतिष तथा सामुद्रिक शास्त्र में भी पारंगत थे । वे एक बार नागपुर के प्रसिदृ करोड़पति श्री बापूसाहेब बूटी से भेंट करने के बाद अन्य सज्जनों के साथ बाबा के दर्शन करने मसजिद में गये । बाबा ने फल बेचने वाले से अनेक प्रकार के फल और अन्य पदार्थ खरीदे और मसजिद में उपस्थित लोंगों में उनको वितरित कर दिया । बाबा आम को इतनी चतुराई से चारों ओर से दबा देते थे कि चूसते ही सम्पूर्ण रस मुँह में आ जाता तथा गुठली और छिलका तुरन्त फेंक दिया जा सकता था बाबा ने केले छीलकर भक्तों में बाँट दिये और उनके छिलके अपने लिये रख लिये । हस्तरेएखा विशारद होने के नाते, मुले शास्त्री ने बाबा के हाथ की परीक्षा करने की प्रार्थना की । परन्तु बाबा ने उनकी प्रार्थना पर कोई ध्यान न देकर उन्हें चार केले दिये इसके बाद सब लोग वाड़े को लौट आये । अब मुने शास्त्री ने स्नान किया और पवित्र वस्त्र धारण कर अग्निहोत्र आदि में जुट गये । बाबा भी अपने नियमानुसार लेण्डी को पवाना हो गये । जाते-जाते उन्होंने कहा कि कुछ गेरु लाना, आज भगवा वस्त्र रँगेंगे । बाबा के शब्दों का अभिप्राय किसी की समझ में न आया । कुछ समय के बाद बाबा लौटे । अब मध्याहृ बेला की आरती की तैयारियाँ प्रारम्भ हो गई थी । बापूसाहेब जोग ने मुले से आरती में साथ करने के लिये पूछा । उन्होंने उत्तर दिया कि वे सन्ध्या समय बाबा के दर्शनों को जायेंगे । तब जोग अकेले ही चले गये । बाबा के आसन ग्रहण करते ही भक्त लोगों ने उनकी पूजा की । अब आरती प्रारम्भ हो गई । बाबा ने कहा, उस नये ब्राहमण से कुछ दक्षिणा लाओ । बूटी स्वयं दक्षिणा लेने को गये और उन्होंने बाबा का सन्देश मुले शास्त्री को सुनाया । वे बुरी तरह घबड़ा गये । वे सोचने लगे कि मैं तो एक अग्निहोत्री ब्राहमण हूँ, फिर मुझे दक्षिणा देना क्या उचित है । माना कि बाबा महान् संत है, परन्तु मैं तो उनका शिष्य नहीं हूँ । फिर भी उन्होंने सोचा कि जब बाबा सरीखे महानसंत दक्षिणा माँग रहे है और बूटी सरीखे एक करोड़पति लेने को आये है तो वे अवहेलना कैसे कर सकते है । इसलिये वे अपने कृत्य को अधूरा ही छोड़कर तुरन् बूटी के साथ मसजिद को गये । वे अपने को शुद्घ और पवित्र तथा मसजिद को अपवित्र जानकर, कुछ अन्तर से खड़े हो गये और दूर से ही हाथ जोड़कर उन्होंने बाबा के ऊपर पुष्प फेंके । एकाएक उन्होंने देखा कि बाबा के आसन पर उनके कैलासवासी गुरु घोलप स्वामी विराजमान हैं । अपने गुरु को वहाँ देखकर उन्हें महान् आश्चर्य हुआ । कहीं यह स्वप्न तो नहीं है । नही । नही । यह स्वप्न नहीं हैं । मैं पूर्ण जागृत हूँ । परन्तु जागृत होते हुये भी, मेरे गुरु महाराज यहाँ कैसे आ पहुँचे । कुछ समय तक उनके मुँह से एक भी शब्द न निकला । उन्होंने अपने को चिकोटी ली और पुनः विचार किया । परन्तु वे निर्णय न कर सके कि कैलासवासी गुरु घोलप स्वामी मसजिद में कैसे आ पहुँचे । फिर सब सन्देह दूर करके वे आगे बढ़े और गुरु के चरणों पर गिर हाछ जोड़ कर स्तुति करने लगे । दूसरे भक्त तो बाबा की आरती गा रहे थे, परन्तु मुले शास्त्री अपने गुरु के नाम की ही गर्जना कर रहे थे । फिर सब जातिपाँति का अहंकार तथा पवित्रता और अपवित्रता कीकल्पना त्याग कर वे गुरु के श्रीचरणों पर पुनः गिर पड़े । उन्होंने आँखें मूँद ली, परन्तु खड़े होकर जब उन्होंने आँखें खोलीं तो बाबा को दक्षिणा माँगते हुए देखा । बाबा का आनन्दस्वरुप और उनकी अनिर्वचनीय शक्ति देख मुले शास्त्री आत्मविस्मृत हो गये । उनके हर्ष का पारावार न रहा । उनकी आँखें अश्रुपूरित होते हुए भी प्रसन्नता से नाच रही थी । उन्होंने बाबा को पुनः नमस्कार किया और दक्षिणा दी । मुले शास्त्री कहने लगे कि मेरे सब समशय दूर हो गये । आज मुझे अपने गुरु के दर्शन हुए । बाबा की यतह अदभुत लीला देखकर सब भक्त और मुले शास्त्री द्रवित हो गये । गेरु लाओ, आज भगवा वस्त्र रंगेंगे – बाबा के इन शब्दों का अर्थ अब सब की समझ में आ गया । ऐसी अदभुत लीला श्री साईबाबा की थी ।


डाँक्टर
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एक समय एक मामलतदार अपने एक डाँक्टर मित्र के साथ शिरडी पधारे । डाँक्टर का कहना था कि मेरे इष्ट श्रीराम हैं । मैं किसी यवन को मस्तक न नमाऊँगा । अतः वे शिरडी जाने में असहमत थे । मामलतदार ने समझाया कि तुम्हें नमन करने को कोई बाध्य न करेगा और न ही तुम्हें कोई ऐसा करने को कहेगा । अतः मेरे साथ चलो, आनन्द रहेगा । वे शिरडी पहुँचे और बाबा के दर्शन को गये । परन्तु डाँक्टर को ही सबसे आगे जाते देख और बाब की प्रथम ही चरण वन्दना करते देख सब को बढ़ा विस्मय हुआ । लोगों ले डाँक्टर से अपना निश्चय बदलने और इस भाँति एक यवन को दंडवत् करने का कारण पूछा । डाँक्टर ने बतलाया कि बाबा के स्थान पर उन्हें अपने प्रिय इष्ट देव श्रीराम के दर्शन हुए और इसलिये उन्होंने नमस्कार किया । जब वे ऐसा कह ही रहे थे, तभी उन्हें साईबाबा का रुप पुनः दीखने लगा । वे आश्चर्यचकित होकर बोले – क्या यह स्वप्न हो । ये यवन कैसे हो सकते हैं । अरे । अरे । यह तो पूर्ण योग-अवतार है । दूसरे दिन से उन्होंने उपवास करना प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक बाबा स्वयं बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगे, तब तक मसजिद में कदापि न जाऊँगा । इस प्रकार तीन दिन व्यतीत हो गये । चौथे दिन उनका एक इष्ट मित्र थानदेश से शरडी आया । वे दोनों मसजिद में बाबा के दर्शन करने गये । नमस्कार होने के बाद बाबा ने डाँक्टर से पूछा, आपको बुलाने का कष्ट किसने किया । आप यहाँ कैसे पधारे । यह जटिल और सूचक प्रश्न सुनकर डाँक्टर द्रवित हो गये और उसी रात्रि को बाबा ने उनपर कृपा की । डाँक्टर को निद्रा में ही परमानन्द का अनुभव हुआ । वे अपने शहर लौट आये तो भी उन्हें 15 दिनों तक वैसा ही अनुभव होता रहा । इस प्रकार उनकी साईभक्ति कई गुनी बढ़ गई ।
उपर्यु्क्त कथाओं की शिक्षा, विशेषतः मुले शास्त्री की, यही है कि हमें अपने गुरु में दृढ़ विश्वास होना चाहिये ।
अगले अध्याय में बाबा की अन्य लीलाओं का वर्णन होगा ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday 16 November 2016

प्रेम के अवतार है साईं बाबा..

ॐ सांई राम




मस्जिद की मुंडेर पर बैठ कर पक्षी भी चहचहाते थे
बाबा की लीलाओं को याद कर दिन - रात आँसू बहाते थे,
एक दिन एक चिडिया ने दूसरी चिडिया से कहा
क्या बाबा हमें जानते हैं, हम कौन हैं
हमें भी पहचानतें हैं ?

दूसरी ने पहली से कहा ये बाबा लगते है, फकीर
लेकिन पहुचे हुए संत हैं और मैं तो कहूँगी
ये अनंत है,

थोड़े ही दिन पहले मैंने मस्जिद के कोने में,
दो छिपकलियों को बुदबुदाते देखा
गले लग कर आँसू बहाते हुए देखा,
तभी मैंने किसी से सुना यह दो बहने थी
जो बिछुड़ गयी थी बाबा ने इन्हें मिलाया है
तो ! इन्हें भी गले से लगाया है,
तो क्या वो हमें ना जानेगे हम कौन है
हमें ना पहचानेगे,
प्रेम के अवतार है साईं बाबा
जो बिछुड़ गए हैं
उन्हें भी मिलाने आये हैं सभी को गले से लगाने आये है...


!!! ॐ साईँ राम - जय साईँ राम !!!

Tuesday 15 November 2016

बच्चे है हम साईं क्षमा करो...

ॐ सांई राम





हर भूल को हमरी क्षमा करो
बच्चे है हम साईं क्षमा करो
हर भूल को हमरी क्षमा करो


अज्ञान राह पर चल पड़े
हर भूल को हमरी क्षमा करो
प्राशचित करने हम आ खड़े
हर भूल को हमरी क्षमा करो

आखो से अश्रु बह रहे
हर भूल को हमरी क्षमा करो
कुछ भी न हम कह सके
हर भूल को हमरी क्षमा करो

अब फिर से न दोहराहेगे हम
हर भूल को हमरी क्षमा करो
तेरी भक्ति को हम समझ न पाए
हर भूल को हमरी क्षमा करो

साईं क्षमा करो साईं क्षमा करो
अपने दिल से क्षमा करो

साईंराम साईंराम साईंराम साईंराम

Monday 14 November 2016

पत्थर पर बैठे है मेरे साँई बाबा


ॐ सांई राम


पत्थर पर बैठे है मेरे साँई बाबा
यही पर है काशी, मथुरा और काबा
पत्थर पर बैठे है मेरे साँई बाबा
सबका है दाता, साँई भाग्य विधाता
हाथ मे कांसा और फता लिबासा
तेरा यही रूप साँई हमें है रिझाता

यही पर है काशी, मथुरा और काबा
पत्थर पर बैठे है मेरे साँई बाबा
अपने बच्चो को तुने, दिया आशियाना
नीम को बनाया तुने, अपना ठिकाना
तेरी इसी सादगी का, हुआ मै दीवाना

यही पर है काशी, मथुरा और काबा
पत्थर पर बैठे है, मेरे साँई बाबा
कैसे मैं सुनाँऊ, मै तो बोल भी ना पाता
छोटी है ज़ुबान, ऊँची तेरी गाथा
बस ये पुकार मेरी, सुन लो ओ दाता
जन्म जन्म का साँई राखो, हमसे नाता

यही पर है काशी, मथुरा और काबा
पत्थर पर बैठे है मेरे साँई बाबा
भूख प्यास जब तुम्हे सताये
ज़ीव जंतु को भी ध्यान मे लाये
भोजन जल यदि भोग लगाये
थोड़ा उनके लिये बनाये
खाये पियेंगे वे जब आप खिलाये
बाबा जी के मन को भी आप भाये।

Sunday 13 November 2016

तुमसा कोई ना दाता तू ही जग का सुखदाता

ॐ सांई राम


भोला है सांई बाबा भोला है सांई
तुमसा कोई ना दाता तू ही जग का सुखदाता
तुमने ही सारे जग की बिगड़ी सँवारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई


जाकर शिरडी विराजै खन खन खन चिमटा बाजै
सिर पर है मुकुट विराजै अंग पर है कुर्ता राजै
संग में संगत विराजै शोभा है न्यारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई

भक्तों के दुख निवारे पल में सब काज सँवारे
सांई है भोला भाला सांई जग से निराला
लेकर कर चिमटा चल ये संगत है प्यारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई

कितना भी हो कोई पापी कितना भी हो परतापी
तुमने ना अन्तर की माँ जिसने जो माँगा दीन्हा
लेकर विभूति चलिये बाबा द्वारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई
तुमसा कोई ना दाता तू ही जग का सुखदाता
तुमने ही सारे जग की बिगड़ी सँवारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई
भूख प्यास जब तुम्हे सताये
ज़ीव जंतु को भी ध्यान मे लाये

भोजन जल यदि भोग लगाये
थोड़ा उनके लिये बनाये
खाये पियेंगे वे जब आप खिलाये
बाबा जी के मन को भी आप भाये।

Saturday 12 November 2016

साईं की दीवानी बन नाचूंगी

ॐ सांई राम


कोई कहे मुझे कमली कमली कोई कहे दीवानी
मैं साईं में साईं मुझमें यह प्रीत पड़ी समझानी


बालों में गजरा हाथों में कंगना पांवों में घुँघरू बांधूंगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

अखियों में कजरा माथे पे बिंदिया सर पे चुनरियाँ बांधूंगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

मैं साईं की साईं मेरे चिट्ठियाँ लिख लिख बाँटूँगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

माने न माने तुझे सारा ज़माना इक बस बस मैं मानूंगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

बालों में गजरा हाथों में कंगना पांवों में घुँघरू बांधूंगी
मैं तो साईं की दीवानी बन नाचूंगी

Friday 11 November 2016

सांई नैनो में झांको तो सदा झलकता प्यारा है


ॐ सांई राम




सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना


सांई नैनो में झांको तो सदा झलकता प्यारा है
सांई के हाथों में देखो, पलता ये संसार है
अब तो सांई द्वार को छोड़ ओर कहीं ना जाना
सांई नाम की माला का मैं बन जाऊँ एक दाना
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

घर में ना आँगन में ये दिल लगता है ना गुलशन में
मित्रों में परिवार में न साथी के साथ मधुबन में
तू ही रहीम तू ही राम तू ही मेरा कान्हा
क्यों जाऊँ मैं मथुरा काशी क्यों जाऊँ मैं मदीना
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना – 2
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना – 2

सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

Thursday 10 November 2016

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 11

ॐ सांई राम



आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है


श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 11

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सगुण ब्रहम श्री साईबाबा, डाँक्टर पंडित का पूजन, हाजी सिद्दीक फालके, तत्वों पर नियंत्रण ।
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इस अध्याय में अब हम श्री साईबाबा के सगुण ब्रहम स्वरुप, उनका पूजन तथा तत्वनियंत्रण का वर्णन करेंगे । 


सगुण ब्रहम श्री साईबाबा
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ब्रहमा के दो स्वरुप है – निर्गुण और सगुण । निर्गुण नराकार है और सगुण साकार है । यघरु वे एक ही ब्रहमा के दो रुप है, फर भी किसी को निर्गुण और किसी को सगुण उपासना में दिलचस्पी होती है, जैसा कि गीता के अध्याय 12 में वर्णन किया गया है । सगुण उपासना सरल और श्रेष्ठ है । मनुष्य स्वंय आकार (शरीर, इन्द्रय आदि) में है, इसीलिये उसे ईश्वर की साकार उपासना स्वभावताः ही सरल हैं । जब तक कुछ काल सगुण ब्रहमा की उपासना न की जाये, तब तक प्रेम और भक्ति में वृद्घि ही नहीं होती । सगुणोपासना में जैसे-जैसे हमारी प्रगति होती जाती है, हम निर्गुण ब्रहमा की ओर अग्रसर होते जाते हैं । इसलिये सगुण उपासना से ही श्री गणेश करना अति उत्तम है । मूर्ति, वेदी, अग्नि, प्रकाश, सूर्य, जल और ब्राहमण आदि सप्त उपासना की वस्तुएँ होते हुए भी, सदगुरु ही इन सभी में श्रेष्ठ हैं ।

श्री साई का स्वरुप आँखों के सम्मुख लाओ, जो वैराग्य की प्रत्यक्ष मूर्ति और अनन्य शरणागत भक्तों के आश्रयदाता है । उनके शब्दों में विश्वास लाना ही आसन और उनके पूजन का संकल्प करना ही समस्त इच्छाओं का त्याग हैं ।

कोई-कोई श्रीसाईबाबा की गणना भगवदभक्त अथवा एक महाभागवत (महान् भक्त) में करते थे या करते है । परन्तु हम लोगों के लिये तो वे ईश्वरावतार है । वे अत्यन्त क्षमाशील, शान्त, सरल और सन्तुष्ट थे, जिनकी कोई उपमा ही नहीं दी जा सकती । यघरि वे शरीरधारी थे, पर यथार्थ में निर्गुण, निराकार,अनन्त और नित्यमुक्त थे । गंगा नदी समुद्र की ओर जाती हुई मार्ग में ग्रीष्म से व्यथित अनेकों प्रगणियों को शीतलता पहुँचा कर आनन्दित करती, फसलों और वृक्षों को जीवन-दान देती और जिस प्रकार प्राणियों की क्षुधा शान्त करती है, उसी प्रकार श्री साई सन्त-जीवन व्यतीत करते हुए भी दूसरों को सान्त्वना और सुख पहुँचाते है । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है संत ही मेरी आत्मा है । वे मेरी जीवित प्रतिमा और मेरे ही विशुद्घ रुप है । मैं सवयं वही हूँ । यह अवर्णनीय शक्तियाँ या ईश्वर की शक्ति, जो कि सत्, चित्त् और आनन्द हैं । शिरडी में साई रुप में अवर्तीण हुई थी । श्रुति (तैतिरीय उपनिषद्) में ब्रहमा को आनन्द कहा गया है । अभी तक यह विषय केवल पुस्तकों में पढ़ते और सुनते थे, परन्तु भक्तगण ने शिरडी में इस प्रकार का प्रत्यक्ष आनन्द पा लिया है । बाबा सब के आश्रयदाता थे, उन्हें किसी की सहायता की आवश्यकता न थी । उनके बैठने के लिये भक्तगण एक मुलायम आसन और एक बड़ा तकिया लगा देते थे । बाबा भक्तों के भावों का आदर करते और उनकी इच्छानुसार पूजनादि करने देने में किसी प्रकार की आपत्ति न करते थे । कोई उनके सामने चँवर डुलाते, कोई वाघ बजाते और कोई पादप्रक्षालन करते थे । कोई इत्र और चन्दन लगाते, कोई सुपारी, पान और अन्य वस्तुएँ भेंट करते और कोई नैवेघ ही अर्पित करते थे । यघपि ऐसा जान पड़ता था कि उनका निवासस्थान शिरडी में है, परन्तु वे तो सर्वव्यापक थे । इसका भक्तों ने नित्य प्रति अनुभव किया । ऐसे सर्वव्यापक गुरुदेव के चरणों में मेरा बार-बार नमस्कार हैं ।


डाँक्टर पंडित की भक्ति
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एक बार श्री तात्या नूलकर के मित्र डाँक्टर पंडित बाबा के दर्शनार्थ शिरडी पधारे बाबा को प्रणाम कर वे मसजिद में कुछ देर तक बैठे । बाबा ने उन्हें श्री दादा भट केलकर के पास भेजा, जहाँ पर उनका अच्छा स्वागत हुआ । फिर दादा भट और डाँक्टर पंडित एक साथ पूजन के लिये मसजिद पहुँचे । दादा भट ने बाबा का पूजन किया । बाबा का पूजन तो प्रायः सभी किया करते थे, परन्तु अभी तक उनके शुभ मस्तक पर चन्दन लगाने का किसी ने भी साहस नहीं किया था । केवल एक म्हालसापति ही उनके गले में चन्दन लगाया करते थे । डाँक्टर पंडित ने पूजन की थाली में से चन्दन लेकर बाबा के मस्तक पर त्रिपुण्डाकार लगाया । लोगों ने महान् आश्चर्य से देघा कि बाबा ने एक शब्द भी नहीं कहा । सन्ध्या समय दादा भट ने बाबा से पूछा, क्या कारण है कि आर दूसरों को तो मस्तक पर चन्दन नहीं लगाने देते, परन्तु डाँक्टर पंडित को आपने कुछ भी नहीं कहा बाबा कहने लगे, डाँक्टर पंडित ने मुझे अपने गुरु श्री रघुनाथ महाराज धोपेश्वरकर, जो कि काका पुराणिक के नाम से प्रसिदृ है, के ही समान समझा और अपने गुरु को वे जिस प्रकार चन्दन लगाते थे, उसी भावना से उन्होंने मुझे चन्दन लगाया । तब मैं कैसे रोक सकता था । पुछने पर डाँक्टर पंडित ने दादा भट से कहा कि मैंने बाबा को अपने गुरु काका पुराणिक के समान ही डालकर उन्हें त्रिपुण्डाकार चन्दन लगाया है, जिस प्रकार मैं अपने गुरु को सदैव लगाया करता था ।
यघपु बाबा भक्तों को उनकी इच्छानुसार ही पूजन करने देते थे, परन्तु कभी-कभी तो उनका व्यवहार विचित्र ही हो जाया करता था । जब कभी वे पूजन की थाली फेंक कर रुद्रावतार धारण कर लेते, तब उनके समीप जाने का साहस ही किसी को न हो सकता था । कभी वे भक्तों को झिड़कते और कभी मोम से भी नरम होकर शान्ति तथा क्षमा की मूर्ति-से प्रतीत होते थे । कभी-कभी वे क्रोधावस्था में कम्पायमान हो जाते और उनके लाल नेत्र चारों ओर घूमने लगते थे, तथापि उनके अन्तःकरण में प्रेम और मातृ-स्नेह का स्त्रोत बहा ही करता था । भक्तों को बुलाकर वे कहा करते थे कि उनहें तो कुछ ज्ञात ही नहीं हे कि वे कब उन पर क्रोधित हुए । यदि यह सम्भव हो कि माताएँ अपने बालकों को ठुकरा दें और समुद्र नदियों को लौटा दे तो ही वे भक्तों के कल्याण की भी उपेक्षा कर सकते हैं । वे तो भक्तों के समीप ही रहते हैं और जब भक्त उन्हें पुकारते है तो वे तुरन्त ही उपस्थित हो जाते है । वे तो सदा भक्तों के प्रेम के भूखे है ।



हाजी सिद्दीक फालके
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यह कोई नहीं कह सकता था कि कब श्री साईबाबा अपने भक्त को अपना कृपापात्र बना लेंगे । यह उनकी सदिच्छा पर निर्भर था । हाजी सिद्दीक फालके की कथा इसी का उदाहरण है ।

कल्याणनिवासी एक यवन, जिनका नाम सिद्दीक फालके था, मक्का शरीफ की हज करने के बाद शिरडी आये । वे चावड़ी में उत्तर की ओर रहने लगे । वे मसजिद के सामने खुले आँगन में बैठा करते थे । बाबा ने उन्हें 9 माह तक मसजिद में प्रविष्ट होने की आज्ञा न दी और न ही मसजिद की सीढ़ी चढ़ने दी । फालके बहुत निराश हुँ और कुछ निर्णय न कर सके कि कौनसा उपाय काम में लाये । लोगों ने उन्हें सलाह दी कि आशा न त्यागो । शामा श्रीसाई बाबा के अंतरंग भक्त है । तुम उनके ही द्घारा बाबा के पास पहुँचने का प्रयत्न करो । जिस प्रकार भगवान शंकर के पास पहुँचने के लिये नन्दी के पास जाना आवश्यक होता है, उसी प्रकार बाबा के पास भी शामा के द्घारा ही पहुँचना चाहिये । फालके को यह विचार उचित प्रतीत हुआ और उन्होने शामा से सहायता की प्रार्थना की । शामा ने भी आश्वासन दे दिया और अवसर पाकर वे बाबा से इस प्रकार बोले कि, बाबा, आप उस बूढ़े हाजी को मसजिद में किस कारण नहीं आने देते । अने भक्त स्वेच्छापूर्वक आपके दर्शन को आया-जाया करते है । कम से कम एक बार तो उसे आशीष दे दो । बाबा बोले, शामा, तुम अभी नादान हो । यदि फकीर अल्लाह) नहीं आने देता है तो मै क्या करुँ । उनकी कृपा के बिना कोई भी मसजिद कीसीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकता । अच्छा, तुम उससे पूछ आओ कि क्या वह बारवी कुएँ निचली पगडंडी पर आने को सहमत है । शामा स्वीकारात्मक उत्तर लेकर पहुँचे । फर बाबा ने पुनः शामा से कहा कि उससे फिर पुछो कि क्या वह मुझे चार किश्तों में चालीस हजार रुपये देने को तैयार है । फिर शामा उत्तर लेकर लौटे कि आप कि आप कहें तो मैं चालीस लाख रुपये देने को तैयार हूँ । मैं मसजिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, उससे पूछी कि उसे क्या रुचिकर होगा – बकरे का मांस, नाध या अंडकोष । शामा यह उत्तर लेकर लौटे कि यदि बाबा के यदि बाबा के भोजन-पात्र में से एक ग्रास भी मिल जाय तो हाजी अपने को सौभाग्यशाली समझेगा । यह उत्तर पाकर बाबा उत्तेजित हो गये और उन्होंने अपने हाथ से मिट्टी का बर्तन (पानी की गागर) उठाकर फेंक दी और अपनी कफनी उठाये हुए सीधे हाजी के पास पहुँचे । वे उनसे कहने लगे कि व्यर्थ ही नमाज क्यों पढ़ते हो । अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन क्यों करते हो । यह वृदृ हाजियों के समान वे्शभूषा तुमने क्यों धारण की है । क्या तुम कुरान शरीफ का इसी प्रकार पठन करते हो । तुम्हें अपने मक्का हज का अभिमान हो गया है, परन्तु तुम मुझसे अनभिज्ञ हो । इस प्रकार डाँट सुनकर हाजी घबडा गया । बाबा मसजिद को लौट आयो और कुछ आमों की टोकरियाँ खरीद कर हाजी के पास भेज दी । वे स्वयं भी हाजी के पास गये और अपने पास से 55 रुपये निकाल कर हाजी को दिये । इसके बाद से ही बाबा हाजी से प्रेेम करने लगे तथा अपने साथ भोजन करने को बुलाने लगे । अब हाजी भी अपनी इच्छानुसार मसजिद में आने-जाने लगे । कभी-कभी बाबा उन्हें कुछ रुपये भी भेंट में दे दिया करते थे । इस प्रकार हाजी बाबा के दरबार में सम्मिलित हो गये ।

बाबा का तत्वों पर नियंत्रण
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बाबा के तत्व-नियंत्रण की दो घटनाओं के उल्लेख के साथ ही यह अध्याय समाप्त हो जायेगा ।
1. एक बार सन्ध्या समय शिरडी में भयानक झंझावात आया । आकाश में घने और काले बादल छाये हुये थे । पवन झकोरों से बह रहा था । बादल गरजते और बिजली चमक रही थी । मूसलाधार वर्षा प्रारंभ हो गई । जहाँ देखो, वहाँ जल ही जल दृष्टिगोचर होने लगा । सब पशु, पक्षी और शिरडीवासी अधिक भयभीत होकर मसजिद में एकत्रित हूँ । शिरडी में देवियाँ तो अनेकों है, परन्तु उस दिन सहायतार्थ कोई न आई । इसलिये सभी ने अपने भगवान साई से, जो भक्ति के ही भूखे थे, संकट-निवारण करने की प्रार्थना की । बाबा को भी दया आ गई और वे बाहर निकल आये । मसजिद के समीप खड़े हो जाओ । कुछ समय के बाद ही वर्षा का जोर कम हो गया । और पवन मन्द पड़ गया तथा आँधी भी शान्त हो गई । आकाश में चन्द्र देव उदित हो गये । तब सब नोग अति प्रसन्न होकर अपने-अपने घर लौट आये ।

2. एक अन्य अवसर पर मध्याहृ के समय धूनी की अग्नि इतनी प्रचण्ड होकर जलने लगी कि उसकी लपटें ऊपर छत तक पहुँचने लगी । मसजिद में बैठे हुए लोगों की समझ में न आता था कि जल डाल कर अग्नि शांत कर दें अथवा कोई अन्य उपाय काम में लावें । बाबा से पूछने का साहस भी कोई नहीं कर पा रहा था । परन्तु बाबा शीघ्र परिस्थिति को जान गये । उन्होंने अपना सटका उठाकर सामने के थम्भे पर बलपूर्वक प्रहार किया और बोले नीचो उतरो और शान्त हो जाओ । सटके की प्रत्येक ठोकर पर लपटें कम होने लगी और कुछ मिनटों  में ही धूनी शान्त और यथापूर्व हो गई । श्रीसाई ईश्वर के अवतार हैं । जो उनके सामने नत हो उनके शरणागत होगा, उस पर वे अवश्य कृपा करेंगे । जो भक्त इस अध्याय की कथायें प्रतिदिन श्रद्घा और भक्तिपूर्वक पठन करेगा, उसका दुःखों से शीघ्र ही छुटकारा हो जायेगा । केवल इतना ही नही, वरन् उसे सदैव श्रीसाई चरणों का स्मरण बना रहेगा और उसे अल्प काल में ही ईश्वर-दर्शन की प्राप्ति होकर, उसकी समस्त इच्छायें पूर्ण हो जायेंगी और इस प्रकार वह निष्काम बन जायेगा ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday 9 November 2016

तेरे कितने रुप है देवा

ॐ सांई राम


किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला
जाकि जैसी भक्ति बाबा
जाकि जैसी भक्ति बाबा
वैसा ही रंग डाला
रंग डाला सांई ने रंग डाला


किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला
जाकि जैसी भक्ति बाबा
जाकि जैसी भक्ति बाबा
वैसा ही रंग डाला
रंग डाला सांई ने रंग डाला
किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला

तेरे कितने रुप है देवा जिसने की जैसी सेवा
कोई जल और फूल चढ़ाता, कोई चढ़ाये मिश्री मेवा
किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला
जाकि जैसी भक्ति बाबा
जाकि जैसी भक्ति बाबा
वैसा ही रंग डाला
रंग डाला सांई ने रंग डाला
किसी का राम किसी का श्याम किसी का


कहीं बिराजे तू सोने पर, कहीं साँई बैठा पत्थर पर
जाकी जैसी कुटिया बाबा वैसा ही पग डाला
किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला
जाकि जैसी भक्ति बाबा
जाकि जैसी भक्ति बाबा
वैसा ही रंग डाला
रंग डाला सांई ने रंग डाला
किसी का राम किसी का श्याम किसी का

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.