लोगों ने फग्गू से जब इसका कारण पूछा कि उसके मकान बनवाकर उसका दरवाज़ा इतना बड़ा क्यों रखा है? फग्गू ने उनका उत्तर दिया कि यह मैंने गुरु जी के लिए बनवाया है| जब वह मेरे घर में आयेगें तब वह घोड़े पर सवार होकर आयेगें| उन्हें बाहर नहीं उतरना पड़ेगा| वह घोड़े पर बैठे-बैठे ही मेरे घर के अंदर आ जाये इसलिए मैंने दरवाज़ा खुला रखवाया है|
फग्गू की इस श्रद्धा भावना को अन्तर्यामी गुरु जान गए| वह रास्ते में सभी को दर्शन देते हुए फग्गू के घर में जा पहुँचे| आप एक दम ही पहुँच गए जिसको देखकर फग्गू बहुत खुश हुआ| उसने गुरु जी के चरणों पर माथा टेका| फिर गुरु जी को पलंघ पर बिठाया जो की उसने विशेष रूप से गुरु जी के लिए ही तैयार किया था| गुरु जी कुछ दिन वहाँ रुके| वह फग्गू की श्रद्धा व प्रेम से की हुई सेवा से प्रसन्न हुए| प्रसन्न होकर आपने फग्गू ब्रह्म ज्ञान की दात बक्शी और उसको निहाल किया| इस नगर के बाहर गुरु जी को एक बाग भी संगत ने भेंट किया, जो कि गुरु का बाग करके प्रसिद्ध है|