भाई का ऐसा बलिदान देखकर सबने उन्हें धन्य कहा| गुरु जी ने भाई जीवन का संस्कार भाई भगतु की शमशान भूमि के पास ही कराया और वचन दिया कि जीवन का निवास गुरु के चरणों में होगा| जब गुरु जी को यह पता लगा कि भाई जीवन की स्त्री गर्भवती है तो अपने वचन दिया कि इसको लड़का होगा जिसका वंश बहुत बड़ेगा| इस तरह गुरु जी ने भाई जीवन की प्रशंसा की और उसे वरदान देकर सबको धैर्य दिया| इस प्रकार भाई जीवन ने गुरु का हुकम मानकर अपना जीवन सफल किया और अपने वंश के लिए वरदान प्राप्त किया|
शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)
शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....
"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम
मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे
कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे
मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे
दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे
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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।
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Saturday, 17 August 2013
श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ - भाई जीवन को वरदान देना
भाई का ऐसा बलिदान देखकर सबने उन्हें धन्य कहा| गुरु जी ने भाई जीवन का संस्कार भाई भगतु की शमशान भूमि के पास ही कराया और वचन दिया कि जीवन का निवास गुरु के चरणों में होगा| जब गुरु जी को यह पता लगा कि भाई जीवन की स्त्री गर्भवती है तो अपने वचन दिया कि इसको लड़का होगा जिसका वंश बहुत बड़ेगा| इस तरह गुरु जी ने भाई जीवन की प्रशंसा की और उसे वरदान देकर सबको धैर्य दिया| इस प्रकार भाई जीवन ने गुरु का हुकम मानकर अपना जीवन सफल किया और अपने वंश के लिए वरदान प्राप्त किया|
Friday, 16 August 2013
श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ - काले के भतीजे को वरदान देना
यह वरदान लेकर काला घर वापिस आ गया| वह बहुत खुश था| उसने आकर अपनी स्त्री को बताया कि वह अपने भतीजों के लिए राज्य का वरदान ले आया है| पत्नी कहने लगी कि अपने बच्चे तो इनकी प्रजा बनकर रहेंगे| तुमने इन का क्या सोचा है?
अपनी स्त्री की ऐसी बात सुनकर काला अपने बच्चों को भी गुरु जी के पास ले आया और प्रार्थना करने लगा कि गुरु जी जब से मेरी पत्नी ने मेरे भतीजों के बारे में यह सुना है कि उन्हें राज्य प्राप्त होगा और मेरे पुत्र इनकी अधीनता में रहेंगे| इनके प्रजा बनकर रह जायेगे| इसलिए मेरे पुत्रों को भी राज्य का वरदान बक्शो| आगे से गुरु जी मुस्कुरा पड़े और कहने लगे तुम्हारे पुत्र भी स्वतंत्रता से खेती करेगें और किसी का हाला नहीं भरेगे|
यह वरदान लेकर काला खुशी खुशी घर आ गया| उसने सारी बात पत्नी को बताई कि गुरु जी ने ऐसा वरदान दिया है| तब उसे शांति प्राप्त हुई|
गुरु के वरदान से काले के भतीजों के संतान नाभे और पटियाला के राजे हुए| और उसके अपने पुत्रों की संतान बिना किसी को हाला दिए अपनी खेती करते रहे|
Thursday, 15 August 2013
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनायें
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 36
आश्चर्यजनक कथायें, गोवा के दो सज्जन और श्रीमती औरंगाबादकर ।
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इस अध्याय में गोवा के दो महानुभावों और श्रीमती औरंगाबादकर की अदभुत कथाओं का वर्णन है ।
Wednesday, 14 August 2013
Om Sai Ram ji to all and happy independence day in advance
शंका ना मन में रहे
श्रध्दा, धीरज होये
दया करें साँई प्रभु
बीज भक्ति के बोयें
ॐ साँई राम जी
श्री साँई बाबा जी के चरण कमलों में हमारी अरदास है
कि बाबा जी अपनी कृपा दृष्टी आप सभी पर निरंतर बरसाते रहे
www.shirdikesaibabaji.blogspot.com
Om sai ram
Om Sai Ram
Quote of the Day,
"Let love flow so that it cleanses the world. Then man can live in peace, instead of the state of turmoil he has created through his past ways of life, with all those material interests and earthly ambitions." Sai Baba
Sri Satchidananda Satguru Sainath Maharaj Ki Jai!
Thanks,
Regards,
Om Sai Ram
श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ - गुरु जी द्वारा भाई भगतू के पुत्र गौरे को बक्शना
भाई भगतू का पुत्र गौरा जो की बठिंडे का राजा था गुरु हरि राय जी के आने की खबर सुनकर उनके पास पहुँचा उसने एक अच्छा घोड़ा और पांच सौ रुपये भेंट करकर गुरु जी को माथा टेका| गुरु जी ने गौरे से पूछा जिस लड़की से भाई भगतू ने अपनी मृत्यु से पहले वचन के द्वारा ही शादी की थी उसका क्या हाल है| गौरे ने कहा महाराज! हमारी धर्म माता खुश है| गौरे की यह बात सुनकर गुरु जी के चौरी बरदार भाई जस्से ने हँसी में कहा वह स्त्री तो अभी जवान है| अप उसका मेरे साथ विवाह कर दो| यह बात सुनकर गौरे को गुस्सा आया और उसने अपने आदमियों से जस्से को गोली मारकर मरवा दिया|
जब इस बात का पाता गुरु जी को लगा तो गुरु जी ने सबसे कहा कि कोई हमे गौरा की सिफारिश ना करे और ना ही वह हमे मुहँ दिखाए| जब गौरा को गुरु जी की नाराज़गी का पाता लगा तो उसने डर कर प्रण किया कि जब तक वह गुरु जी को खुश नहीं करेगा तब तक घर वापिस नहीं जाएगा
यह निश्चय करके गौर अपनी सेना सहित गुरु जी के पीछे लग गया और रात दिन भूल बक्शवाने के लिय मन में आराधना करने लगा| जब गुरु जी कीरतपुर वापिस चले गए तब गौरा भी कीरत पुर से बाहर आवास करके छे महीने बैठा रहा|
एक दिन गुरु जी अपने परिवार सहित कीरत पुर से सतलुज नदी से साथ साथ चाल रहे थे गुरु जी घोड़े पर सवार थे पीछे कुछ योद्धा भी थे| वहाँ गौरा भी अपने तीन सौ शूरवीरों के साथ चाल पड़ा|
उधर से लाहौर से एक नवाब कुछ सवार लेकर दिल्ली को जा रहा था| उसने डोले पर सामान जाता देखकर पूछा कि यह कौन जा रहा है| तो एक सिख ने बताया यह गुरु हरि राय जी के घर डोलियों पर सामान जा रहा है| मुस्लिम उमराव ने अपने साथियों से कहा कि सब कुछ लूट लो|
गुरु जी तो बहुत आगे आगे चल रहे थे| परन्तु गौरा पीछे पीछे आ रहा था| उसने जब देखा कि तुर्क सेना के आदमी गुरु जी का समान लूटने के लिए आगे आए हैं| तो उसने उनके साथ डट कर मुकाबला किया और सब को मार भगाया| गुरु जी का सामान सही सलामत पहुँच गया| इस बात का पता जब गुरु जी को लगा तो तो वह भूत प्रसन्न हुए|गुरु जी ने उसको माफ भी कर दिया| तब गुरु जी ने उसको आज्ञा दी कि बठिंडे जा कार अपना राज भोगो| गुरु घर तुम पर प्रसन्न है| ऐसी बात सुनकर और गुरु जी का आशीर्वाद लेकर लेकर गौरा बठिंडे को चल पड़ा|
Tuesday, 13 August 2013
श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ - सिक्खी का जहाज फूटना
एक दिन गुरु हरि राय जी कुछ सिखो को साथ लेकर बाबा गुरु दित्ता जी के समाने वाले स्थान के दर्शन करने के लिए पहाड़ी पर गए| वहाँ गुरु जी काफी देर खड़े रहे और देखते रहे| जब बहुत समय ऐसे ही बीत गया तो सिखो ने गुरु जी से पूछा महाराज! आप इधर क्या देख रहे हो| तब आपने कहा कि भाई! श्री गुरु नानक देव जी ने इस संसार के उद्धार के लिए जो जहाज तैयार किया था| वह भवर में पड़कर टुकड़े टुकड़े हो गया है| इस में जो सिख सवार थे कोई डूब गया, कोई बह गया और कोई किनारे लग रहा है| सबको आपा-धापी पड़ी है| हम इस जहाज की दयनीय दशा को देख रहे हैं|
जब सिक्खों ने इस बात को स्पष्ट करने की माँग की तो आपने बताया सिख सेवक धन के लालच में पड़ गए हैं| वह सिक्खी का मार्ग ही भूल गए हैं| कच्चे गुरुओं के पीछे लगकर पारउतारा किस प्रकार हो सकता है| इस तरह सिक्खी का जहाज टूट-फूट गया है|
गुरु जी की बात सुनकर सिक्खों ने फिर प्रार्थना की कि महाराज! यह जहाज कभी जुड़ेगा या नहीं| महाराज ने कहा कि जब हम दसवां जामा धारण करके दुष्टों और पाखंडियों का नाश करेगें और नया पंथ चलायेगें| यह जहाज फिर जुड जाएगा| इस पर वाहिगुरु की भक्ति करने वाले सिख चढ़ेंगे और उनका पार उतारा हो जाएगा|
Monday, 12 August 2013
श्री गुरु हरिराय जी - गुरु गद्दी मिलना
गुरु हरिगोबिंद जी ने अपना अंतिम समय नजदीक पाकर श्री हरि राय जी को गद्दी देने का विचार किया|वे श्री हरि राय जी से कखने लगे कि तुम गुरु घर कि रीति के अनुसार पिछली रात जागकर शौच स्नान करके आत्मज्ञान को धारण करके भक्ति मार्ग को ग्रहण करना| शोक को त्याग देना व धैर्य रखना| सिखों को उपदेश देना और उनका जीवन सफल करना| बाबा जी के ऐसे वचन सुनकर श्री हरि राय जी कहने लगे महाराज! देश के तुर्क हमारे शत्रु है, उनके पास हकूमत है, उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? गृ जी कहने लगे कि तुम चिंता ना करो, जो तुम्हारे ऊपर चढ़कर आएगा, वह कोहरे के बादल कि तरह उड़ जायेगा| तुम्हे कोई भी हानि नहीं पहुँचायेगा| यह बात सुनकर श्री हरि राय जी ने गुरु जी के चरणों में माथा टेका और शांति प्राप्त की|
संगत और मसंदो आप ने संबोधित करके वचन किया कि आज से श्री हरि राय जी को हमारा ही स्वरूप जानना और मानना| जो इनके विरुद्ध चलेगा,उसका लोक व परलोक बिगड़ेगा| वह यहाँ वहाँ दुःख पायेगा|
बाबक रबाबी और मलिक जाती के परलोक सिधार जाने के कुछ समय बाद गुरु हरि गोबिंद जी ने अपने शरीर त्यागने का समय नजदीक अनुभव करके श्री हरि राये जी को गुरुगद्दी का विचार कर लिया| इस मकसद से आपने दूर - नजदीक सभी सिखों को करतारपुर पहुँचने के लिए पत्र लिखे|
श्री गुरु हरिगोबिंद जी ने होलियों कि पूर्णिमा के बाद दूसरे दिन ही गुरु जी ने सिखों को आज्ञा दी कि दीवान वाले स्थान पर ऊँचा चबूतरा तयार किया जाये| एक बड़े दीवान के लिए दरियाँ भी बिछा दो और साथ ही साथ चंदोये तान दो| इसके बाद सारी संगत को दीवान में बुलाकर बिठा दो| जब श्री गुरु हरिगोबिंद जी की आज्ञा अनुसार दीवान सज गया तो गुरु जी ने अपने तीनो साहिबजादों सूरज मल जी, अणी राये जी तेग बहादुर जी और अपने पोत्रे श्री हरि राये सहित आकर अपने सिंघासन के ऊपर आकर सुशोभित हो गये| रबाबियो ने कीर्तन करना शुरू कर दिया| कड़ाह प्रसाद कि देग भी तैयार हो गई|
कीर्तन कि समाप्ति के बाद गुरु जी ने आसन से उठकर श्री हरि राये जी को अपनी जगह पर बिठा दिया और पाँच पैसे और नारियल आगे रखकर माथा टेक दिया| जब इस बात का पता मरवाही माता को लगा तो आप गुरु जी से कहने लगी कि इसमें सूरजमल का क्या दोष है? आप ने गुरुत्व अपने पोत्र को क्यों दिया? श्री गुरु हरिगोबिंद जी कहने लगे चिंता ना करो, इन्हे भी सभ कुछ प्राप्त होगा| माता को तसल्ली ना हुई| गुरु जी ने सूरजमल को बुलाया और पूछा क्या आप गुरुगद्दी लेना चाहते है?
सूरजमल जी कहने लगे महाराज! हमे तो गुरु घर की सिक्खी चाहिए, बाकी और कुछ नहीं| मैं गुरु नहीं बनना चाहता| आगे से गुरु जी कहने लगे कि आप ने सिक्खी माँग कर सभ कुछ प्राप्त कर लिया| आपको शाबाश है| तुम्हारा वंश खूब बढेगा व गुरुगद्दी भी प्राप्प्त हो जायेगी| जब यह बात माता मरवाही जी को पता लगी तो वह प्रसन्न हो गई कि गुरु जी के वचन कभी खाली नहीं जायेंगे|
Sunday, 11 August 2013
श्री गुरु हरिराय जी जीवन – परिचय
Parkash Ustav (Birth date): 1630
पिता: बाबा गुरदित्ता जी
Father: Baba Gurditta Ji
माँ: माता निहाल कौर जी
Mother: Mata Nihal Kaur Ji
महल (पति या पत्नी): माता कृष्ण कौर
Mahal (spouse): Mata Krishen Kaur
साहिबज़ादे (वंश): राम राय, हर्क्रिशन जी
Sahibzaday (offspring): Ram Rai, HarKrishan ji
ज्योति ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): 6 अक्टूबर 1661
Joti Jyot (ascension to heaven): October 6, 1661
गुरु मंगल
दोहरा-कथा गुरु हरि राय की सुनो श्रोता सावधान||
पावन पुन उपावनी गण पापन की हान||
श्री गुरु हरि राय जी श्री बाबा गुरदित्ता जी के घर माता निहाल कौर जी की कोख से माघ सुदी १३ संवत १६८१ विक्रमी को करतारपुर के स्थान पर अवतार धारण किया|
बाबा गुरुदित्ता जी ने जब १० संवत १६९५ को शरीर त्यागा तो १३वे वाले दिन दस्तारबंदी के समय हरि राये जी करतारपुर से नहीं आये तो गुरु जी ने सम्बन्धियों और भाई भाना आदि गुरुसिखो से सलाह करके बाबा जी के छोटे सुपुत्र श्री हरि राये को हर प्रकार से योग्य जानकर दस्तारबंदी करके गुरुदित्ता जी का अधिकारी नियत कर दिया|
श्री हरि राये जी अपने प्रण के पक्के थे|एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी बाग की सैर करने आपको साथ ले गये|श्री हरि राये जी गुरु जी के पीछे-२ ही जा रहे थे कि उनके जमे के साथ अटककर कली का फूल जमीन पर गिर गया|गुरु जी ने जब ऐसा देखा तो श्री हरि राये को कहने लगे कि अगर लंबा जामा पहनना हो तो संभल कर चला करो|बेपरवाही अच्छी नहीं होती| यह बात सुनकर हरि राये जी ने गुरु जी से क्षमा माँगी ,साथ ही साथ प्रण भी किया के आगे से जामा ऊँचा उठा कर रखेंगे|और यह प्रण आप ने जीवन भर निभाया|