शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday, 20 January 2020

तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं साईं

ॐ सांई राम



तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं साईं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं साईं

करूं किस तौर आवाहन, कि तुम मौजूद हो हर जां,
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं साईं
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं साईं

तुम्हीं हो मूर्ति में भी, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में,
भला भगवान पर भगवान को कैसे चढाऊं मैं साईं
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं साईं

लगाना भोग कुछ तुमको, एक अपमान करना है,
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं साईं
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं साईं

तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं, सूरज, चांद और तारे,
महा अंधेर है कैसे, तुम्हें दीपक दिखाऊं मैं साईं
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं साईं

भुजाएं हैं, न सीना है, न गर्दन, है न पेशानी,
कि हैं निर्लेप नारायण, कहां चंदन चढ़ाउं मैं साईं
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं साई

 

-: आज का साईं सन्देश :-

श्रवण करो निष्ठा सहित,
 मन भक्ति भर लाय ।।
सुमिरन कर ले साईं का,
मोक्ष सरल हो जाय ।।
 
सतयुग में सम दम करें,
त्रेता में हो त्याग ।
द्वापर युग पूजन करें,
कलयुग कीर्तन राग ।।

  


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Sunday, 19 January 2020

श्री साँई चालीसा

ॐ सांई राम



 || चौपाई ||

पहले साई के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं।
कैसे शिरडी साई आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥

कौन है माता, पिता कौन है, ये न किसी ने भी जाना।
कहां जन्म साई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना॥

कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान हैं।
कोई कहता साई बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं॥

कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानंद हैं साई।
कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नन्दन हैं साई॥

शंकर समझे भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते।
कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साई की करते॥

कुछ भी मानो उनको तुम, पर साई हैं सच्चे भगवान।
ब़ड़े दयालु दीनबं़धु, कितनों को दिया जीवन दान॥

कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात।
किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात॥

आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुन्दर।
आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर॥

कई दिनों तक भटकता, भिक्षा माँग उसने दर-दर।
और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर॥

जैसे-जैसे अमर उमर ब़ढ़ी, ब़ढ़ती ही वैसे गई शान।
घर-घर होने लगा नगर में, साई बाबा का गुणगान॥

दिग् दिगंत में लगा गूंजने, फिर तो साई जी का नाम।
दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम॥

बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता मैं हूं नि़धoन।
दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुःख के बंधन॥

कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझको संतान।
एवं अस्तु तब कहकर साई, देते थे उसको वरदान॥

स्वयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुःखी जन का लख हाल।
अन्तःकरण श्री साई का, सागर जैसा रहा विशाल॥

भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत ब़ड़ा ़धनवान।
माल खजाना बेहद उसका, केवल नहीं रही संतान॥

लगा मनाने साईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो।
झंझा से झंकृत नैया को, तुम्हीं मेरी पार करो॥

कुलदीपक के बिना अंधेरा, छाया हुआ घर में मेरे।
इसलिए आया हूँ बाबा, होकर शरणागत तेरे॥

कुलदीपक के अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया।
आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया॥

दे-दो मुझको पुत्र-दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर।
और किसी की आशा न मुझको, सिर्फ भरोसा है तुम पर॥

अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में ़धर के शीश।
तब प्रसन्न होकर बाबा ने , दिया भक्त को यह आशीश॥

`अल्ला भला करेगा तेरा´ पुत्र जन्म हो तेरे घर।
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी, और तेरे उस बालक पर॥

अब तक नहीं किसी ने पाया, साई की कृपा का पार।
पुत्र रत्न दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार॥

तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार।
सांच को आंच नहीं हैं कोई, सदा झूठ की होती हार॥

मैं हूं सदा सहारे उसके, सदा रहूँगा उसका दास।
साई जैसा प्रभु मिला है, इतनी ही कम है क्या आस॥

मेरा भी दिन था एक ऐसा, मिलती नहीं मुझे रोटी।
तन पर कप़ड़ा दूर रहा था, शेष रही नन्हीं सी लंगोटी॥

सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था।
दुिर्दन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नी बरसाता था॥

धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलम्ब न था।
बना भिखारी मैं दुनिया में, दर-दर ठोकर खाता था॥

ऐसे में एक मित्र मिला जो, परम भक्त साई का था।
जंजालों से मुक्त मगर, जगती में वह भी मुझसा था॥

बाबा के दर्शन की खातिर, मिल दोनों ने किया विचार।
साई जैसे दया मूर्ति के, दर्शन को हो गए तैयार॥

पावन शिरडी नगर में जाकर, देख मतवाली मूरति।
धन्य जन्म हो गया कि हमने, जब देखी साई की सूरति॥

जब से किए हैं दर्शन हमने, दुःख सारा काफूर हो गया।
संकट सारे मिटै और, विपदाओं का अन्त हो गया॥

मान और सम्मान मिला, भिक्षा में हमको बाबा से।
प्रतिबिम्‍िबत हो उठे जगत में, हम साई की आभा से॥

बाबा ने सन्मान दिया है, मान दिया इस जीवन में।
इसका ही संबल ले मैं, हंसता जाऊंगा जीवन में॥

साई की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हुआ।
लगता जगती के कण-कण में, जैसे हो वह भरा हुआ॥

`काशीराम´ बाबा का भक्त, शिरडी में रहता था।
मैं साई का साई मेरा, वह दुनिया से कहता था॥

सीकर स्वयंं वस्त्र बेचता, ग्राम-नगर बाजारों में।
झंकृत उसकी हृदय तंत्री थी, साई की झंकारों में॥

स्तब़्ध निशा थी, थे सोये, रजनी आंचल में चाँद सितारे।
नहीं सूझता रहा हाथ को हाथ तिमिर के मारे॥

वस्त्र बेचकर लौट रहा था, हाय ! हाट से काशी।
विचित्र ब़ड़ा संयोग कि उस दिन, आता था एकाकी॥

घेर राह में ख़ड़े हो गए, उसे कुटिल अन्यायी।
मारो काटो लूटो इसकी ही, ध्वनि प़ड़ी सुनाई॥

लूट पीटकर उसे वहाँ से कुटिल गए चम्पत हो।
आघातों में मर्माहत हो, उसने दी संज्ञा खो॥

बहुत देर तक प़ड़ा रह वह, वहीं उसी हालत में।
जाने कब कुछ होश हो उठा, वहीं उसकी पलक में॥

अनजाने ही उसके मुंह से, निकल प़ड़ा था साई।
जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में, बाबा को प़ड़ी सुनाई॥

क्षुब़्ध हो उठा मानस उनका, बाबा गए विकल हो।
लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सन्मुख हो॥

उन्मादी से इ़धर-उ़धर तब, बाबा लेगे भटकने।
सन्मुख चीजें जो भी आई, उनको लगने पटकने॥

और ध़धकते अंगारों में, बाबा ने अपना कर डाला।
हुए सशंकित सभी वहाँ, लख ताण्डवनृत्य निराला॥

समझ गए सब लोग, कि कोई भक्त प़ड़ा संकट में।
क्षुभित ख़ड़े थे सभी वहाँ, पर प़ड़े हुए विस्मय में॥

उसे बचाने की ही खातिर, बाबा आज विकल है।
उसकी ही पी़ड़ा से पीडित, उनकी अन्तःस्थल है॥

इतने में ही विविध ने अपनी, विचित्रता दिखलाई।
लख कर जिसको जनता की, श्रद्धा सरिता लहराई॥

लेकर संज्ञाहीन भक्त को, गा़ड़ी एक वहाँ आई।
सन्मुख अपने देख भक्त को, साई की आंखें भर आई॥

शांत, धीर, गंभीर, सिन्धु सा, बाबा का अन्तःस्थल।
आज न जाने क्यों रह-रहकर, हो जाता था चंचल॥

आज दया की मू स्वयं था, बना हुआ उपचारी।
और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी॥

आज भिक्त की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था काशी।
उसके ही दर्शन की खातिर थे, उम़ड़े नगर-निवासी।

जब भी और जहां भी कोई, भक्त प़ड़े संकट में।
उसकी रक्षा करने बाबा, आते हैं पलभर में॥

युग-युग का है सत्य यह, नहीं कोई नई कहानी।
आपतग्रस्त भक्त जब होता, जाते खुद अन्र्तयामी॥

भेदभाव से परे पुजारी, मानवता के थे साई।
जितने प्यारे हिन्दू-मुस्लिम, उतने ही थे सिक्ख ईसाई॥

भेद-भाव मंदिर-मिस्जद का, तोड़-फोड़ बाबा ने डाला।
राह रहीम सभी उनके थे, कृष्ण करीम अल्लाताला॥

घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा, मिस्जद का कोना-कोना।
मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम, प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना॥

चमत्कार था कितना सुन्दर, परिचय इस काया ने दी।
और नीम कडुवाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी॥

सब को स्नेह दिया साई ने, सबको संतुल प्यार किया।
जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उसको वही दिया॥

ऐसे स्नेहशील भाजन का, नाम सदा जो जपा करे।
पर्वत जैसा दुःख न क्यों हो, पलभर में वह दूर टरे॥

साई जैसा दाता हमने, अरे नहीं देखा कोई।
जिसके केवल दर्शन से ही, सारी विपदा दूर गई॥

तन में साई, मन में साई, साई-साई भजा करो।
अपने तन की सुधि-बुधि खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो॥

जब तू अपनी सुधि तज, बाबा की सुधि किया करेगा।
और रात-दिन बाबा-बाबा, ही तू रटा करेगा॥

तो बाबा को अरे ! विवश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी।
तेरी हर इच्छा बाबा को पूरी ही करनी होगी॥

जंगल, जगंल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को।
एक जगह केवल शिरडी में, तू पाएगा बाबा को॥

धन्य जगत में प्राणी है वह, जिसने बाबा को पाया।
दुःख में, सुख में प्रहर आठ हो, साई का ही गुण गाया॥

गिरे संकटों के पर्वत, चाहे बिजली ही टूट पड़े।
साई का ले नाम सदा तुम, सन्मुख सब के रहो अड़े॥

इस बूढ़े की सुन करामत, तुम हो जाओगे हैरान।
दंग रह गए सुनकर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान॥

एक बार शिरडी में साधु, ढ़ोंगी था कोई आया।
भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया॥

जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर, करने लगा वह भाषण।
कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन॥

औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शिक्त।
इसके सेवन करने से ही, हो जाती दुःख से मुिक्त॥

अगर मुक्त होना चाहो, तुम संकट से बीमारी से।
तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से, हर नारी से॥

लो खरीद तुम इसको, इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी।
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह, गुण उसके हैं अति भारी॥

जो है संतति हीन यहां यदि, मेरी औषधि को खाए।
पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे वह मुंह मांगा फल पाए॥

औषधि मेरी जो न खरीदे, जीवन भर पछताएगा।
मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहां आ पाएगा॥

दुनिया दो दिनों का मेला है, मौज शौक तुम भी कर लो।
अगर इससे मिलता है, सब कुछ, तुम भी इसको ले लो॥

हैरानी बढ़ती जनता की, लख इसकी कारस्तानी।
प्रमुदित वह भी मन- ही-मन था, लख लोगों की नादानी॥

खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौड़कर सेवक एक।
सुनकर भृकुटी तनी और, विस्मरण हो गया सभी विवेक॥

हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ।
या शिरडी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ॥

मेरे रहते भोली-भाली, शिरडी की जनता को।
कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को॥

पलभर में ऐसे ढोंगी, कपटी नीच लुटेरे को।
महानाश के महागर्त में पहुँचा, दूँ जीवन भर को॥

तनिक मिला आभास मदारी, क्रूर, कुटिल अन्यायी को।
काल नाचता है अब सिर पर, गुस्सा आया साई को॥

पलभर में सब खेल बंद कर, भागा सिर पर रखकर पैर।
सोच रहा था मन ही मन, भगवान नहीं है अब खैर॥

सच है साई जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में।
अंश ईश का साई बाबा, उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में॥

स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभूषण धारण कर।
बढ़ता इस दुनिया में जो भी, मानव सेवा के पथ पर॥

वही जीत लेता है जगती के, जन जन का अन्तःस्थल।
उसकी एक उदासी ही, जग को कर देती है वि£ल॥

जब-जब जग में भार पाप का, बढ़-बढ़ ही जाता है।
उसे मिटाने की ही खातिर, अवतारी ही आता है॥

पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के।
दूर भगा देता दुनिया के, दानव को क्षण भर के॥

ऐसे ही अवतारी साई, मृत्युलोक में आकर।
समता का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप मिटाकर ॥

नाम द्वारका मिस्जद का, रखा शिरडी में साई ने।
दाप, ताप, संताप मिटाया, जो कुछ आया साई ने॥

सदा याद में मस्त राम की, बैठे रहते थे साई।
पहर आठ ही राम नाम को, भजते रहते थे साई॥

सूखी-रूखी ताजी बासी, चाहे या होवे पकवान।
सौदा प्यार के भूखे साई की, खातिर थे सभी समान॥

स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे।
बड़े चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे॥

कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग में जाते थे।
प्रमुदित मन में निरख प्रकृति, छटा को वे होते थे॥

रंग-बिरंगे पुष्प बाग के, मंद-मंद हिल-डुल करके।
बीहड़ वीराने मन में भी स्नेह सलिल भर जाते थे॥

ऐसी समुधुर बेला में भी, दुख आपात, विपदा के मारे।
अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहते बाबा को घेरे॥

सुनकर जिनकी करूणकथा को, नयन कमल भर आते थे।
दे विभूति हर व्यथा, शांति, उनके उर में भर देते थे॥

जाने क्या अद्भुत शिक्त, उस विभूति में होती थी।
जो धारण करते मस्तक पर, दुःख सारा हर लेती थी॥

धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन, जो बाबा साई के पाए।
धन्य कमल कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाए॥

काश निर्भय तुमको भी, साक्षात् साई मिल जाता।
वर्षों से उजड़ा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता॥

गर पकड़ता मैं चरण श्री के, नहीं छोड़ता उम्रभर॥

मना लेता मैं जरूर उनको, गर रूठते साई मुझ पर॥

|| इति श्री साईं चालीसा समाप्त ||

-: आज का साईं सन्देश :-

मोती यह जाने नहीं,
कैसे वेह बन जाय ।
सागर भी जाने नहीं,
ज्वार कहाँ से आय ।।

सब साईं के हाथ है,
साईं सब करवाय ।
साईं की आज्ञा बिना,
पत्ती ना हिल पाय ।।

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Saturday, 18 January 2020

आँखें बंद करूँ या खोलूँ मुझको दर्शन दे देना

ॐ सांई राम



दर्शन दे देना साईं मुझे दर्शन दे देना
आँखें बंद करूँ या खोलूँ मुझको दर्शन दे देना

मैं नाचीज़ हूँ बन्दा तेरा तू सबका दाता है
तेरे हाथ में सारी दुनियाँ मेरे हाथ में क्या है
तुझको देखूँ जिसमे ऐसा दर्पण दे देना
आँखें बंद करूँ या खोलूँ मुझको दर्शन दे देना

मेरे अन्दर तेरी लहरें रिश्ता है सदियों का
जैसे इक नाता होता है सागर से नदियों का
करूँ साधना तेरी केवल साधन दे देना
आँखें बंद करूँ या खोलूँ मुझको दर्शन दे देना

हम सब हैं सीतायें तेरी हम सब राम तुम्हारे
तेरी कथा सुनते जायेंगे बाबा तेरे सहारे
इस जंगल में चाहे लाखों रावण दे देना
आँखें बंद करूँ या खोलूँ मुझको दर्शन दे देना

मेरी माँग बड़ी साधारण मन में आते रहियो
हर इक सांस के पीछे अपनी झलक दिखाते रहियो
नाम तेरा ले आख़िर तक वो धड़कन दे देना
आँखें बंद करूँ या खोलूँ मुझको दर्शन दे देना

-: आज का साईं सन्देश :-कृपा करें करतार जब,सब कारज साध जाय |पंगू चढ़े पहाड़ पर,गूँगा वाणी पाय ||वंशी यह जाने नहीं,नाद कहाँ से आय |वादक ही जाने इसे,फूंक दिये बज जाय ||

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Friday, 17 January 2020

जहाँ जहाँ पड़े चरण साईं के,

ॐ सांई राम


  
सब  रूठे  पर  साईं  न  रूठे,
सब  छूटे  पर  साईं  कृपा  न  छूटे,
जहाँ  जहाँ  पड़े  चरण  साईं  के,
झुके  वहीँ  पर शीश  हमारे,
मेरी  दौलत  साईं  भक्ति  है,
यह  संपत्ति  कोई  न  लूटे,
तोड़  के  सब  बंधन  माया  के,
शरण  में  आया  साईं  चरण  के,
साईं  प्रेम  में  बन्ध  जाऊँ,
यह  मेरा  सौभाग्य  न  फूटे,
मुझ  पापी  पर  रहम  नज़र  कर,
पतित  को  पावन  राह  दिखाकर,
भक्ति  भाव  की  भिक्षा  देकर,
जन्म  मरण  का  कष्ट  मिटा  दे,
मेरे  मन  मंदिर  प्रभो  साईं,
कभी  कहीं  हो  जाये  न  खाली,
उधर  हृदय  से  तुम  जाओ  और,
इधर  साँस  की  डोरी  टूटे |

 -: आज का साईं सन्देश :-
जो मेरी लीला सुने,
नाम सुमर कर जाय ।
यम के दूतों से बचे,
मोक्ष धाम को जाय ।।
साईं साईं ही कहो,
कर साईं विश्वास ।
कथा श्रवण कर साईं की,
साईं आवे पास ।।

 
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Thursday, 16 January 2020

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 34

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा

किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...



श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 34

उदी की महत्ता (2), डाँक्टर का भतीजा, डाँक्टर पिल्ले, शामा की भयाहू, ईरानी कन्या, हरदा के महानुभाव, बम्बई की महिला की प्रसव पीड़ा
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इस अध्याय में भी उदी की ही महत्ता क्रमबद्घ है तथा उन घएटनाओं का भी उल्लेख किया गया है, जिनमें उसका उपयोग बहुत ही प्रभावकारी सिकदृ हुआ ।
डाँक्टर का भतीजा
.................
नासिक जिले के मालेगाँव में एक डाँक्टर रहते थे । उनका भतीजा एक असाध्य रोग Tubercuar bone abscess (एक तरह का तपेदिक) से पीड़ित था । उन्होंने तथा उनके सभी डाँक्टर मित्रों ने समस्त उपचार किये । यहाँ तक कि उसकी शल्य-चिकित्सा भी कराई, फिर भी बालक को कोई लाभ न पहुँचा । उसके कष्टों का पारावार न था । मित्र और सम्बन्धियों ने बालक के माता-पिता को दैविक उपचार करने का परामर्श देकर श्री साईबाबा की सरण में जाने को कहा, जो अपनी दृष्टि मात्र से असाध्य रोग साध्य करने के लिये प्रसिदृ है । अतः माता-पिता बालक को साथ लेकर शिरडी आये । उन्होंने बाबा को साष्टांग प्रणाम कर श्री-चरणों में बालक को डाल दिया और बड़ी नम्रता तथा आदरपूर्वक विनती की कि प्रभु, हम लोगों पर दया करो । आपका संकट-मोचन नाम सुनकर ही हम लोग यहाँ आये है । दया कर इस बालक की रक्षा कीजिये । प्रभु हमें तो ककेवल आपका ही भरोसा है । प्रार्थना सुनकर बाबा को दया आ गई और उन्होंने सान्त्वना देकर कहा कि जो इस मसजिद की सीढ़ी चढ़ता है, उसे जीवनपर्यन्त कोई दुःख नहीं होता । चिंता न करो, यतह उदी ले उस रोग ग्रसित स्थान पर लगाओ । ईश्वर पर विश्वास रखो, वह सप्ताह के अंत में ही पूर्ण स्वस्थ हो जायेगा । यह मसजिद नहीं, यह तो द्घारकावती है और जो इसकी सीढ़ी चढ़ेगा, उसे स्वा्थ्य और सुख की प्राप्ति होगी तथा उसके कष्टों का अंत हो जायेगा । बालक को बाबा के सामने बिठलाया गया । वे उस रोगग्रस्त स्थान पर अपना हाथफेरते हुये दयापूर्ण दृष्टि से बालक की ओर निहाने लगे । रोगी अब प्रसन्न रहने लगा और उदी के लेप से बालक थोड़े समय में ही स्वस्थ हो गया । माता-पिता अपने को बाबा का ऋणी और कृतज्ञ मानकर बालक को लेकर शिरडी से चले गये ।
यह लीला देखकर बालक के काका को, जो डाँक्टर थे, महान् आश्चर्य हुआ तथा उन्हें भी बाबा के दर्शनों की तीव्र उत्कंठा हुई । इसी समय जब वे कार्यवश बम्बई जा रहे थे, तभी मालेगाँव और मनमाड के निकट किसी ने बाबा के विरुदृ उनके कान भर दिये, इस कारण वे शिरडी जाने का विचार त्याग कर सीधे बम्बई चले गये । वे अपनी शेष छुट्टियाँ अलीबाग में व्यतीत करना चाहते थे, परन्तु बम्बी में उन्हें लगातार तीन रात्रियों तक एक ही ध्वनि सुनाई पड़ी कि क्या अब भी तुम मुझपर अविश्वास कर रहे हो । तब डाँक्टर ने अपना विचार परिवर्तित कर शिरड को प्रस्थान करने का निश्यय किया । बम्बई में उनके एक रोगी को सांसर्गिक ज्वर आ रहा था, जिसका तापक्रम कम होने का कोई चिन्ह दिखाई न देने के कारण उन्हें ऐसा लग रहा था कि कहीं शिरडी की यात्रा स्थगित न करनी पड़े । उन्होंने अपने मन ही मन एक परीक्षा करने का विचार किया कि यदि रोगी आज अच्छा हो जाये तो कल ही मैं शिरडी के लिये प्रस्थान कर दूँगा । आश्चर्य है कि जिस समय उन्होंने यह निश्चय किया, ठीक उसी समय से ज्वर में उतार होने लगा और ताप क्रमशः साधारण स्थिति पतर पहुँच गया । तब वे अपने निश्चयानुसार शिरडी पहुँचे और बाबा का दर्शन करके उन्हें प्रणाम किया । बाबा ने उन्हें कुछ ऐसे अनुभव दिये कि वे सदा के लिये उनके भक्त हो गये । डाँक्टर वहाँ चार दिन ठहरे और उदी तथा आर्शीवाद प्राप्त कर घर वापस आ गये । एक पखवारे में ही पदोन्नति पाकर उनका स्थानान्तरण वीजापुर को हो गया । भतीजे की रोग-मुक्ता ने उन्हें बाबा के दर्शनों का सौभाग्य दिया तथा शिरडी की यात्रा ने उनकी श्री साई के चरणों में प्रगाढ़ प्रीति उत्पन्न कर दी ।
डाँक्टर पिल्ले
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डाँक्टर पिल्ले बाब के एक निष्ठ भक्त थे । इसी कारण वे उन पर अधिक स्नेह रखते थे और उन्हें सदा भाऊ कहकर पुकारते तथा हर समय उनसे वार्तालाप करके प्रत्येक विषय में परामर्श भी लिया करते थे । उनकी सदैव यही इच्छा रहती कि वे बाबा के समीप ही बने रहें । एक बार डाँक्टर पिल्ले को नासूर हो गया । वे काकासाहेब दीक्षित से बोले कि मुझे असहृ पीड़ा हो रही है और मैं अब इस जीवन से मृत्यु को अधिक क्षेयस्कर समझता हूँ । मुझे ज्ञात है कि इसका मुख्य कराण मेरे पूर्व जन्मों के कर्म ही है । जाकर बाबा से कहो कि वे मेरी यह पीड़ा अब दूर करें । मैं अपने पिछले जन्म के कर्मों को अगले दस जन्मों में भोगने को तैयार हूँ । तब काका दीक्षित ने बाबा के पास जाकर उनकी प्रार्थना सुनाई । साई तो दया के अवतार ही है । वे अपने भक्तों के कष्ट कैसे देख सकते थे । उनकी प्रार्थना सुनकर उन्हें भी दया आ गई और उन्होंने दीक्षित से कहा कि पिल्ले से जाकर कहो कि घबड़ाने की ऐसी कोई बात नहीं । कर्मों का फल दस जन्मों में क्यों भुगतना पड़ेगा । केवल दस रदिनों में ही गत जन्मों के कर्मफल समाप्त हो जायेंगे । मैं तो यहाँ तुम्हें धार्मिक और आध्यात्मिक कल्याण देने के लिये ही बैठा हूँ । प्राण त्यागने की इच्छा कदापि न करनी चाहिये । जाओ, किसी की पीठ पर लादकर उन्हें यहाँ ले आओ, मैं सदा के लिये उनका कष्टों से छुटाकारा कर दूँगा ।
तब उसी स्थिति में पिल्ले को वहाँ लाया गया । बाबाने अपने दाहिनी ओर उनके सिरहाने अपनी गादी देकर सुख से लिटाकर कहा कि इसकी मुख्य औषधि तो यह है कि पिछले जन्मों के कर्मफल को अवश्य ही भोग लेना चाहिये, ताकि उनसे सदैव के लिये छुटकारा हो जाये । हमारे कर्म ही सुखःदुख के कारण होते है, इसलिये जैसी भी परिस्थित आये, उसी में सन्तोष करना चाहिये । अल्ला ही सब को फल देने वाला है और वही सबका रक्षण करता है । ऐसा विचार कर सदैव उनका ही स्मरण करो । वे ही तुम्हारी चिन्ता दूर करेंगे । तन-मन-धन और वचन द्घारा उनकी अनन्य शरण में जाओ, फिर देखो कि वे क्या करते है । डाँक्टर पिल्ले ने कहा कि नानासाहेब ने मेरे पैर में एक पट्टी बाँधी है, परन्तु मुझे उससे कोई लाभ नहीं पहुँचा । नाना तो मूर्ख है बाबा ने कहा, वह पट्टी हटाओ, नहीं तो मर जाओगे । थोड़ी देर में ही एक कौआ आयेगा और वह अपनी चोंच इसमें मारेगा । तभी तुम शीघ्र अच्छे हो जाओगे ।
जब यह वार्तालाप हो ही रहा ता कि उसी समय अब्दुल, जो मसजिद में झाडू लगाने तथा दिया-बत्ती आदि स्वच्छ करने का कार्य करता था, वहाँ आया । जब वह दिया-बत्ती स्वच्छ कर रहा था तो अचानकर ही उसका पैर डाँक्टर पिल्ले के नासूर वाले पर पर पड़ा । पैर तो सूजा हुआ था ही और फिर अब्दुल के पैर से दबा तो उसमें से नासूर के सात कीड़े बाहर निकल पड़े । कष्ट असहनीय हो गया और डाँक्टर पिल्ले उच्च स्वर में चिल्ला पड़े । किन्तु कुछ काल के ही पश्चात् वे शांत हो कर गीत गाने लगे । तब बाबा ने कहा, देखा, भाऊ अब अच्छा हो गया है और गाना गा रहा है । गाने के बोल थे :-
करम कर मेरे हाल पर तू करीम ।
तेरा नाम रहमान है और रहीम ।
तू ही दोनों आलम का सुलतान है ।
जहाँ में नुमायाँ तेरी शान है ।
फना होने वाला है सब कारोबार ।
रहे नूर तेरा सदा आशकार ।
तू आशिक का हरदम मददगार है ।
फिर डाँक्टर पिल्ले ने पूछा कि वह कौआ कब आयेगा और चोंच मारेगा । बाबा ने कहा अरे, क्या तुमने कौए को नहीं देखा । अब वह नहीं आयेगा । अब्दुल, जिसने तुम्हारा पैर दबाया, वही कौआ था । उसने चोंच मारकर नासूर को हटा दिया । वह अब पुनः क्यों आयेगा । अब जाकर वाड़े में विश्राम करो । तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे । उदी लगाने और पानी के संग पीने से बिना किसी औषधि या चिकित्सा के वे दस दोनों में ही नीरोग हो गये, जैसा कि बाबा ने उनसे कहा था ।
शामा के छोटे भाई की पत्नी (भयाहू)
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सावली विहीर के समीप शामा के छोटे भाई बापाजी रहते थे । एक बार उनकी पत्नी को गिल्टियों बाला प्लेग हो गया । उसे ज्वर हो आया और उसकी जाँच में प्लेग की दो गिल्टियाँ निकल आई । बापाजी दौड़कर शामा के पास आये और सहायता के लिये चलने को कहा । शामा भयभीत हो उठे । उन्होंने सदैव की भाँति बाबा के पास जाकर उन्हें नमस्कार किया और सहायाता के लिये उनसे प्रार्थना की तथा भ्राता के घर प्रस्थान करने की अनुमति माँगी । बाबा ने कहा कि इतनी रात्रि व्यतीत हो चुकी है । अब इस समय तुम कहाँ जाओगे । केवल उदी ही भेज दो । ज्वर और गिल्टी की चिन्ता क्यों करते हो । भगवान् तो अपने पिता और स्वामी है । वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जायेगी । अभी मत जाओ । प्रातःकाल जाना और शीघ्र ही लौट आना ।
शामा को तो उस मृत-संजीवनी उदी पर पूर्ण विश्वास था । उसे ले जाकर उसके भ्राता ने थोड़ी सी गिल्टी और माथे पर लगाई और कुछ जल में घोलकर रोगी को पिला दी । जैसे ही उसका सेवन किया गया, वैसे ही पसीन वेग से प्रवाहित होने लगा, ज्वर मन्द पड़ गया और रोगी प्रगाढ़ निद्रा में निमग्न हो गया । दूसरे दिन बापाजी ने अपनी पत्नी को स्वस्थ देखकर बड़ा आश्चर्य किया कि न तो ज्वर ही है और न गिल्टी का कोई चिन्ह ही । दूसरे दिन जब शामा बाबा की अनुज्ञा प्राप्त कर वहाँ पहुँचे तो अपने भाई की स्त्री को चाय बनाते देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ । अपने भाई से पूछताछ करने पर उन्हें पता चला कि बाबा की उदी ने एक रात्रि में ही रोग को समूल नष्ट कर दिया है । तब शामा को बाबा के शब्दों का मर्म समझ में आया कि प्रातःकाल जाओ और शीघ्र लौटकर आओ ।
चाय पीकर शामा लौट आया और बाबा को प्रणाम करने के पश्चात् कहने लगा कि देवा । यह तुम्हारा क्या नाटक है । पहले बवंडर उठा कर हमें अशांत कर देते हो, फिर हमारी शीघ्र सहायता कर सब ठीकठाक कर देते हो । बाबा ने उत्तर दिया कि, तुम्हें ज्ञात होगा कि कर्म पथ अति रहस्यपूर्ण है । यघपि मैं कुछ भी नहीं करता, फिर भी लोग मुझे ही कर्मों के लिये दोषी ठहराते है । मैं तो एक दर्शक मात्र ही हूँ । केवल ईश्वर ही एक सत्ताधारी और प्रेरणा देने वाले है । वे ही परम दयालु है । मैं न तो ईश्वर हूँ और न मालिक, केवल उनका एक आज्ञाकारी सेवक ही हूँ और सदैव उनका स्मरणकिया करता हूँ । जो निरभिमान होकर अपने को कृतज्ञ समझ कर उन पर पूर्ण विश्वास करेगा, उसके कष्ट दूर हो जायेंगे और उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी ।
ईरानी कन्या
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अब एक ईरानी भद्र पुरुष का अनुभव पढ़ये । उनकी छोटी कन्या घंटे-घंटे पर मूर्चिछत हो जाया करती थी । जब दौरा पड़ता, तब उसमें बोलने की भी सक्ति शेष न रह जाती थी । उसके दाँत बैठ जाते थे । उसके हाथ-पैर ऐंठ जाते और वह बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़ती थी । जब नाना प्रकार के उपचारों से भी उसे कोई लाभ न हुआ, तब कुछ लोगों ने उस ईरानी से बाबा की उदी की बहुत प्रशंसा की और कहा कि वह वलेपार्ला (बम्बई) में काकासाहेब दीक्षित के पास से ही प्राप्त हो सकती है । तब ईरानी महाशय ने वहाँ से उदी लाकर जल में घोलकर अपनी बेटी को पिलाया । प्रारम्भ में जो दौरे एक घंटे के अन्तर से आया करते थे, बाद में वे सात घंटे के अन्तर से आये और कुछ दिनों के पश्चात् तो वह पूर्ण स्वस्थ हो गई ।
हरदा के महानुभाव
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हरदा के एक महानुभाव पथरी रोग से ग्रस्त थे । यह पथरी केवल शल्यचिकित्सा द्घारा ही निकाली जा सकती थी । लोगों ने भी उन्हें ऐसा करने का परामर्श दिया । वे बहुत ही वृदृ तथा दुर्बल थे और अपनी दुर्बलता देखकर उन्हें शल्यचिकित्सा कराने का साहस न हो रहा था । इस हालत में उनकी व्याधि का और इलाज ही क्या था । इसी समय नगर के इनामदार भी वहाँ आये हुए थे, जो बाबा के परम भक्त थे तथा उनके पास उदी भी थी । कुछ मित्रों के परामर्श देने पर उनके पुत्र ने उनसे कुछ उदी प्राप्त कर अपने वृदृ पिता को जल में मिलाकर पीने को दी । केवल पाँच मिनट मे ही उदी के पेट में जाते ही पथरी मल-मूत्रेन्द्रय के द्घार से बाहर निकल गई और वह वृदृ शीघ्र ही स्वस्थ हो गया ।
बम्बई की महिला की प्रसव-पीड़ा
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बम्बई की कायस्थ प्रभु जाति की एक महिला को प्रसव-काल में असहनीय वेदना हुआ करती थी । जब वह गर्भवती हो रजाती तो बहुत घबराती और किंकर्तव्यमूढ़ हो जाया करती थी । इसके उपचारार्थए उनके एक मित्र श्रीराम मारुति ने उसके पति को सुझाव दिया कि यदि इस पीड़ा से मुक्ति चाहते हो तो अपनी पत्नी को शिरडी ले जाओ । दुबारा जब उनकी स्त्री गर्भवती हुई तो वे दोनों पति-पत्नी शिरडी आये और वहाँ कुछ मास ठहरे । वे बाबा की नित्य सेवा करने लगे । उन्हें बाबा के सत्संग का भी बहुत कुछ लाभ हुआ । कुछ दिनों के पश्चात जब प्रसव-काल समीप आया, तब सदैव की भाँति गर्भाशय के द्घार में रुकावट के साथ अधिक वेदना होने लगी । उनकी समझ में नहीं आता था कि अब क्या करना चाहिये । थोड़ी ही देर में एक पड़ोसिन आई और उसने मन ही मन बाबा से सहायता की प्रार्थना कर जल में उदी मिल उसे पीने को दी । तब केवल पाँच मिनिट में ही बिना किसी कष्ट के प्रसव हो गया । बालक तो अपने भाग्यानुसार ही उत्पन्न हुआ, परन्तु उसकी माँ की पीड़ा और कष्ट सदा के लिये दूर हो गये । वे अपने को बाबा का बड़ा कृतज्ञ समझने लगे और जीवनपर्यन्त उनके आभारी बने रहे ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.