भक्त नामदेव जी
ऐकु भगतु मेरे हिरदे बसै||नामे देखि नराइनु हसै|| (पन्ना ११६३)
दूधु पीआई भगतु घरि गइआ ||नामे हरि का दरसनु भइआ|| (पन्ना ११६३ - ६४)
"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम
मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे
कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे
मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे
दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे
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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।
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भक्त नामदेव जी
ऐकु भगतु मेरे हिरदे बसै||नामे देखि नराइनु हसै|| (पन्ना ११६३)
दूधु पीआई भगतु घरि गइआ ||नामे हरि का दरसनु भइआ|| (पन्ना ११६३ - ६४)
भक्त रहीम जी
भक्त कबीर दास जी
परिचय:
मीरा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं| वह श्री कृष्ण जी की अनन्य भक्त थी| मीरा का जन्म 1498 में हुआ| इनके पिता मेड़ता के राजा थे| जब मीरा बाई बहुत छोटी थी तो उनकी माता ने श्री कृष्ण जी को यू ही उनका दूल्हा बता दिया| इस बात को मीरा जी सच मान गई| उन पर इस बात का इतना प्रभाव पड़ा कि वह श्री कृष्ण जी को ही अपना सब कुछ मान बैठी|
जवानी की अवस्था में पहुँचने पर भी उनके प्रेम में कमी नहीं आई| ओर युवतियों की तरह वह भी अपने पति को लेकर विभिन्न कल्पनाएँ करती| परन्तु उनकी कल्पनाएँ, उनके सपने श्री कृष्ण जी से आरम्भ होकर उन्ही पर ही समाप्त हो जाते|
समय बीतता गया| मीरा जी का प्यार कृष्ण के प्रति और बढता गया| 1516 ई० में मीरा का विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से कर दिया गया| वे मीरा के प्रति स्नेह का भाव रखते थे परन्तु मीरा का ह्रदय माखन चोर ने चुरा लिया था| वह अपने विवाह के बाद भी श्री कृष्ण की आराधना न छोड़ सकी| वह कृष्ण को ही अपना पति समझती और वैरागिनो की तरह उनके भजन गाती| मेवाड़ के राजवंश को यह कैसे स्वीकार हो सकता था कि उनकी रानी वैरागिनी की तरह जीवन व्यतीत करे| उन्हें मरने की साजिशे रची जाने लगी| मीरा की भक्ति, प्रेम निश्छल था इसलिए विष भी अमृत हो गया| उन्होंने अपना पूरा जीवन कृष्ण को ही समर्पित कर दिया| उनका कहना था -
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई|
जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई||
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई|
छाड़ि दई कुलकि कानि कहा करिहै कोई||
मीरा ने गुरु के विषय में कहा है कि बिना गुरु धारण किए भक्ति नहीं की जा सकती| भक्तिपूर्ण व्यक्ति ही प्रभु प्राप्ति का भेद बता सकता है वही सच्चा गुरु है| स्वयं मीरा के पद से पता चलता है कि उनके गुरु रविदास थे|
नहिं मैं पीहर सासरे, नहिं पियाजी री साथ|
मीरा ने गोबिन्द मिल्या जी, गुरु मिलिया रैदास||
उन्होंने धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध शूद्र गुरु रविदास की भक्ति की|साधु - संतो की संगत की|
मीरा की मृत्यु के बारे में अलग-अलग मत हैं|
· लूनवा के भूरदान ने मीरा की मौत 1546 में बताई|
· रानीमंगा के भाट ने मीरा की मौत 1548 में बताई|
· डा० शेखावत अपने लेख और खोज के अधार पर मीरा की मौत 1547 में बताते हैं|हरमेन गोएटस ने मीरा के द्वारका से गायब होने की कड़ियों को जोड़ने का प्रयास किया परन्तु वह मौलिक नहीं| उनके अनुसार वह द्वारका के बाद उत्तर भारत में भ्रमण करती रही| उसने भक्ति व प्रेम का संदेश सब जगह पहुँचाया| चित्तौड़ के शासक कर्मकांड व राजसी वैभव में डूबकर उसे भूल चुके थे| किसी ने उसे ढूँढने का प्रयास नहीं किया|
अपने पांच वर्ष की अवस्था में मीरा ने गिरधर का वरण किया और उसी दिव्यमूर्ति में विलीन हो गई| धन्य है वह प्रेम की मूर्ति! जिसने दैविक प्रेम का ऐसा उदाहरण दिया कि बड़े-बड़े संत, भक्त की चमक भी धीमी पड़ गई|साहितिक देन:
मीरा जी ने विभिन्न पदों व गीतों की रचना की| मीरा के पदों मे ऊँचे अध्यात्मिक अनुभव हैं| उनमे समाहित संदेश और अन्य संतो की शिक्षा मे समानता नजर आती हैं| उनके प्रप्त पद उनकी अध्यात्मिक उन्नति के अनुभवों का दर्पण हैं| मीरा ने अन्य संतो की तरह कई भाषाओं का प्रयोग किया है जैसे -
हिन्दी, गुजरती, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, अरबी, फारसी, मारवाड़ी, संस्कृत, मैथली और पंजाबी|
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी - ज्योति ज्योत समाना
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी – साखियाँ - सोने का कड़ा गंगा नदी में फैंकना
गंगा नदी के जिस घाट पर आप जी खेलते व स्नान करते थे, उसका नाम गोबिंद घाट प्रसिद्ध है|
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी – साखियाँ - जेब काटने वाले चोर को शिक्षा
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी-साखियाँ-ब्राहमणों की परीक्षा करनी
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी-साखियाँ-गधे को शेर की पौशाक पहना कर सिखों को शिक्षा
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी-साखियाँ-लंगर की परीक्षा करनी
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी-साखियाँ-शुद्ध गुरुबाणी पढ़ने का महत्व
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी-साखियाँ-आज्ञा मानने की व्याख्या
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी-साखियाँ-चरण पाहुल तथा खंडे के अमृत की शक्ति
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी-साखियाँ-अरदास की महत्ता
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी-गुरुगद्दी मिलना
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी : जीवन-परिचय