शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Friday, 30 September 2022

Please Help

 

My name is Lakshay and my brother Raghav We am raising funds for Our mother, Meena Sardana who is suffering from rare Gullian barre syndrome (GBS) and needs prolonged ICU stay. Currently she is on ventilator support from last 15 days and undergoing treatment at Fortis Healthcare Hospital, Mohali.


The estimated cost for her treatment is coming around 25 lacs. I come from a middle class family and I and my extended family has done it all to arrange and manage the total amount required for the treatment in this short notice of time but i am short of Rs. 10 lacs to pay for all the medical expenses and prolonged ICU stay.


As the amount required is huge, I would request you to kindly contribute towards the treatment and help during this time of need. Each contribution is important and will be deeply appreciated!


GPAY - 9717199606

PAYTM - 9717199606


Account detail -

Name - Raghav Sardana 

Account no. - 921010046119224

Bank name - Axis Bank, Sirsa

IFSC - UTIB0004556

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा जी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है

  ॐ सांई राम

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक बधाई 

माँ दुर्गा जी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है| 

ये भगवान स्कन्द " कुमार कार्तिकेय " नाम से भी जाने जाते हैं | ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे | पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है | इनका वाहन मयूर है | इन्ही भगवान स्कन्द की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है |

Kindly Provide Food & clean drinking Water to Birds & Other Animals,
This is also a kind of SEWA.

श्री साईं लीलाएं - जब सिद्दीकी को अक्ल आयी

 ॐ सांई राम




परसो हमने पढ़ा था.. बाबा के श्रीचरणों में प्रयाग

श्री साईं लीलाएं


जब सिद्दीकी को अक्ल आयी
इसी प्रकार एक मुसलमान सिद्दीकी की बड़ी इच्छा थी कि किसी तरह वह मुसलमानों के पवित्र तीर्थ मक्का-मदीना कीई यात्रा पर जाए| पर, उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी न थी कि वह हज के लिए पैसा इकट्ठा कर पाता| फिर भी वह इच्छा कर रहा था| वह प्रतिदिन द्वारिकामाई मस्जिद में पौधों को पानी देता था| साईं बाबा की धूनी के लिए भी जंगल से लकड़ियां काटकर लाता था| इस आशा से कि कभी साईं बाबा की उस पर कृपा हो जाए और वह हज की मुराद पूरी कर दें|
एक दिन सिद्दीकी द्वारिकामाई मस्जिद के फर्श को पानी से धो रहा था कि अचानक साईं बाबा आ गए| साफ-सुथरा फर्श देखा, तो हंसकर बोले - "फर्श की सफाई करने में तुम बहुत ही माहिर हो| तुम्हें तो काबा में होना चाहिए था|"

"मेरा ऐसा नसीब कहां|" सिद्दीकी ने साईं बाबा के चरण छूते हुए कातर स्वर में कहा|

"चिंता न करो सिद्दीकी| तुम काबा अवश्य ही जाओगे| बस समय का इंतजार करो|" -साईं बाबा ने सिद्दीकी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा|

उस दिन से सिद्दीकी काबा जाने का सपना देखने लगा| सोते-जागते, उठते-बैठते उसे हर समय दिखाई देता कि वह काबे में है|

सिद्दीकी की छोटी-सी दुकान थी| जो सामान्य ढंग से चलती थी| पर साईं बाबा के आशीर्वाद से उसी दिन से दुकान पर ग्राहकों की भीड़ आश्चर्यजनक ढंग से आने लगी और कुछ ही महीनों में उसके पास हज यात्रा पर जाने के लायक रुपये इकट्ठा हो गये|

फिर क्या था, वह मक्का-मदीना शरीफ की ओर चल पड़ा| कुछ महीनों बाद सिद्दीकी हज कर लौट आया| अब वह हाजी सिद्दीकी कहलाने लगा| लोग उसे बड़े आदर-सम्मान के साथ हाजी जी कहकर बुलाते थे|

सिद्दीकी को हज से आने के बाद अहंकार हो गया था| कई दिन बीत गए वह साईं बाबा के पास भी नहीं गया और द्वारिकामाई मस्जिद भी नहीं गया|

एक दिन बाबा ने अपने शिष्यों से कहा - "हाजी दिखलायी दे तो उससे कह देना कि इस मस्जिद में कभी न आए|"

इस बात को सुनकर शिष्य परेशान हो गये कि साईं बाबा ने आज तक किसी को भी मस्जिद में आने से नहीं रोका| केवल हाजी सिद्दीकी के लिए ही ऐसा क्यों कहा है ?

हाजी सिद्दीकी को साईं बाबा की बात बता दी गई| साईं बाबा की सुनकर हाजी सिद्दीकी को बहुत दुःख हुआ| हज से लौटने के बाद उसने साईं बाबा के पास न जाकर बहुत बड़ी भूल की है| उन्हीं की कृपा से तो उसे हज यात्रा नसीब हुई थी| वह मन-ही-मन बहुत घबरा गया| साईं बाबा का नाराज होना, उसके मन में घबराहट पैदा करने लगा| किसी अनिष्ट की आशंका से वह रह-रहकर भयभीत होने लगा|

उसने निश्चय किया कि वह साईं बाबा से मिलने के लिये अवश्य ही जायेगा| साईं बाबा नाराज हैं| उनकी नाराजगी दूर करना मेरे लिए बहुत जरूरी है|

सिद्दीकी ने हिम्मत की और वह द्वारिकामाई मस्जिद की ओर चल पड़ा|

हाजी सिद्दीकी ने डरते-सहमते मस्जिद में कदम रखा| हाजी को देखते ही बाबा को क्रोध आ गया| साईं बाबा का क्रोध देखकर वह कांप उठा| साईं बाबा ने घूरकर उसे देखा| हाजी बुरी तरह से थर्राह गया| फिर भी वह साहस बटोरकर डरते-डरते पास गया और साईं बाबा के चरणों पर गिर पड़ा|

"सिद्दीकी तुम हज कर आए, लेकिन क्या तुम जानते हो कि हाजी का मतलब क्या होता है ?" साईं बाबा ने क्रोधभरे स्वर में पूछा|

"नहीं बाबा ! मैं तो अनपढ़ जाहिल हूं|" हाजी सिद्दीकी ने दोनों हाथ जोड़कर बड़े विनम्र स्वर में कहा|

"हाजी का मतलब होता है, त्यागी| तुममें त्याग की भावना है ही नहीं ? हज के बाद तुममें विनम्रता पैदा होने चाहिए थी, बल्कि अहंकार पैदा हो गया है| तुम अपने आपको बहुत ऊंचा और महान् समझने लगे| हज करने के बाद भी जिस व्यक्ति का मन स्वार्थ और अहंकार में डूबा रहता है, वह कभी हाजी नहीं हो सकता|"

"मुझे क्षमा कर दो साईं बाबा ! मुझसे गलती हो गयी|" हाजी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा और वह बाबा के पैरों से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगा| वह मन-ही-मन पश्चात्ताप कर रहा था| उसकी आँखें भर आयी थीं| साईं बाबा के पास आकर उसने अपनी गलती स्वीकार का ली थी|

"सुनो हाजी, याद रखो कि इस दुनिया को बनाने वाला एक ही खुदा या परमात्मा है| इस दुनिया में रहने वाले सब इंसान, पशु-पक्षी उसी के बनाए हुए हैं| पेड़-पौधे, पहाड़, नदियां उसी की कारीगरी का एक नायाब नमूना हैं| यदि हम किसी को अपने से छोटा या नीचा समझते हैं, तो हम उस खुदा की बेअदबी करते हैं|"

साईं बाबा ने हाजी से कहा - "यदि तुमने अपना ख्याल या नजरिया न बदला तो हज करना बेकार है| खुदा की इबादत करते हैं हम| इबादत का मतलब यही है कि हर मजहब और हरेक इंसान को अपने बराबर समझो|"

हाजी सिद्दीकी ने साईं बाबा के चरणों पर सिर रख दिया और बोला - "साईं बाबा ! मुझे माफ कर दीजिये, आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा|"
कल चर्चा करेंगे... राघवदास की इच्छा



ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Thursday, 29 September 2022

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 27

 ॐ सांई राम



आप सभी को शिर्डी के साँईं बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है | हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा| किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 27
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भागवत और विष्नुसहस्त्रनाम प्रदान कर अनुगृहीत करना, गीता रहस्य, खापर्डे ।
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इस अध्याय में बतलाया गया है कि श्री साईबाबा ने किस प्रकार धार्मिक ग्रन्थों को करस्पर्श से पवित्र कर अपने भक्तों को पारायण के लिये देकर अनुगगृहीत किया तथा और भी अन्य कई घटनाओं का उल्लेख किया गया है ।

प्रारम्भ
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जन-साधारण का ऐसा विश्वास है कि समुद्र में स्नान कर लेने से ही समस्त तीर्थों तथा पवित्र नदियों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है । ठीक इसी प्रकार सदगुरु के चरणों का आश्रय लेने मात्र से तीनों शक्तियों (ब्रहृ, विष्णु, और महेश) और परब्रहृ को नमन करने का श्रेय सहज ही प्राप्त हो जाता है । श्री सच्चिदानंद साई महाराज की जय हो । वे तो भक्तों के लिये कामकल्पतरु, दया के सागर और आत्मानुभूति देने वाले है । हे साई । तुम अपनी कथाओं के श्रवण में मेरी श्रद्घा जागृत कर दो । घनघोर वर्षा ऋतु में जिस प्रकार चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र की केवल एक बूँद का पान कर प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार अपनी कथाओं के सारसिन्धु से प्रगटित एक जल कण का सहस्त्रांश दे दो, जिससे पाठकों और श्रोताओं के हृदय तृप्त होकर प्रसन्नता से भरपूर हो जाये । शरीर से स्वेद प्रवाहित होने लगे, आँसुओं से नेत्र परिपूर्ण हो जाये, प्राण स्थिरता पाकर चित्त एकाग्र हो जाये और पल-पल पर रोमांच हो उठे, ऐसा सात्विक भाव सभी में जागृत कर दो । पारस्परिक बैमनस्य तता वर्ग-अपवर्ग का भेद-भाव नष्ट कर दो, जिससे वे तुम्हारी भक्ति में सिसके, बिलखें और कम्पित हो उठें । यदि ये सब भाव उत्पन्न होने लगे तो इसे गुरु-कृपा के लक्षण जानो । इन भावों को अन्तःकरण में उदित देखकर गुरु अत्यन्त प्रसन्न होकर तुम्हें आत्मानुभूति की ओर अग्रसर करेंगे । माया से मुक्त होने का एकमात्र सहज उपाय अनन्य भाव से केवल श्री साईबाबा की शरण जाना ही है । वेद –वेदान्त भी मायारुपी सागर से पार नहीं उतार सकते । यह कार्य तो केवल सदगुरु द्घारा ही संभव है । समस्त पप्राणियों और भूतों में ईश्वर-दर्णन करने के योग्य बनाने की क्षमता केवल उन्हीं में है ।

पवित्र ग्रन्थों का प्रदान
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गत अध्याय में बाबा की उपदेश-शैली की नवीनता ज्ञात हो चुकी है । इस अध्याय में उसके केवल एक उदाहरण का ही वर्णन करेंगे । भक्तों को जिस ग्रन्थविशेष का पारायण करना होता थे, उसे वे बाबा के कर कमलों में भेंट कर देते थे और यदि बाबा उसे अपने करकमलों से स्पर्श कर लौटा देते तो वे उसे स्वीकार कर लेते थे । उनकी ऐसी भावना हो जाती थी कि ऐसे ग्रन्थ का यदि नित्य पठन किया जायेगा तो बाबा सदैव उनके साथ ही होंगे । एक बार काका महाजनी श्री एकनाथी भागवत लेकर शिरडी आये । शामा ने यह ग्रन्थ अध्ययन के लिये उनसे ले लिया और उसे लिये हुए वे मसजिद में पहुँचे । तब बाबा ने ग्रन्थ शामा से ले लिया और उन्होंने उसे स्पर्श कर कुछ विशेष पृष्ठों को देखकर उसे सँभालकर रखने की आज्ञा देकर वापस लौटा दिया । शामा ने उन्हें बताया कि यह ग्रन्थ तो काकासाहेब का है और उन्हें इसे वापस लौटाना है । तब बाबा कहने लगे कि नही, नही, यह ग्रन्थ तो मैं तुम्हें दे रहा हूँ । तुम इसे सावधानी से अपने पास रखो । यह तुम्हें अत्यन्त उपयोगी सिदृ होगा । कुछ दिनों के पश्चात काका महाजनी पुनः श्रीएकनाथी भागवत की दूसरी प्रति लेकर आये और बाबा के करकमलों में भेंट कर दी, जिसे बाबा ने प्रसाद-स्वरुप लौटाकर उन्हें भी उसे सावधानी से सँभाल कर रखने की आज्ञा दी । साथ ही बाबा ने उन्हें आश्वासन दिया कि यह तुम्हें उत्तम स्थिति में पहुँचाने में सहायक सिदृ होगा । काका ने उन्हें प्रणाम कर उसे स्वीकार कर लिया ।


शामा और विष्नुसहस्त्रनाम
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शामा बाबा के अंतरंग भक्त थे । अस कारण बाबा उन्हें एक विचित्र ढंग से बिष्णुसहस्त्रनाम प्रसादरुप देने की कृपा करना चाहते थे । तभी एक रामदासी आकर कुछ दिन शिरडी में ठहरा । वह नित्य नियमानुसार प्रातःकाल उठता और हाथ मुँह धोने के पश्चात् स्नान कर भगवा वस्त्र धारण करता तथा शरीर पर भस्म लगाकर विष्णुसहस्त्रनाम का जाप किया करता था । वह अध्यात्मरामायम का भी श्रद्घापूर्वक नित्य पाठ किया करता था और बहुधा इन्हीं ग्रन्थों को ही पढ़ा करता था । कुछ दिनों के पश्चात् बाबा ने शामा को भी विष्णुसहस्त्रनाम से परिचित कराने का विचार कर रामदासी को अपने समीप बुलाकर उससे कहा कि मेरे उदर में अत्यन्त पीड़ा हो ररही है और जब तक मैं सोलामुखी का सेवन न करुँगा, तब तक मेरा कष्ट दूर न होगा । तब रामदासी ने अपना पाठ स्थगित कर दिया और वह औषधि लाने बाजार चला गया । उसी प्रकार बाबा अपने आसन से उठे और जहाँ वह पाठ किया करते थे, वहाँ जाकर उन्होंने विष्णुसहस्त्रनाम की वह पुस्तिका उठाई और पुनः अपने आसन पर विराजमान होकर शामा से कहने लगे कि यह पुस्तक अमूल्य और मनोवांछित फल देने वाली है । इसलिये मैं तुम्हें इसे प्रदान कर रहा हूँ, ताकि तुम इसका नित्य पठन करो । एक बार जब मैं अधिक रुग्ण था तो मेरा हृदय धड़कने लगा । मेरे प्राणपखेरु उड़ना ही चाहते थे कि उसी समय मैंनें इस सदग्रन्थ को अपने हृदय पर रख लिया । कैसा सुख पहुँचाया इसने । उस समय मुझे ऐसा ही भान हुआ, मानों अल्लाह ने स्वयं ही पृथ्वी पर आकर मेरी रक्षा की । इस कारण यह ग्रन्थ मैं तुम्हें दे रहा हूँ । इसे थोड़ा धीरे-धीरे, कम से कम एक श्लोक प्रतिदिन अवश्य पढ़ना, जिससे तुम्हारा बहुत भला होगा । तब शामा कहने लगे कि मुझे इस ग्रन्थ की आवश्यकता नहीं क्योंकि इस का स्वामी रामदासी एक पागल, हठी और अतिक्रोधी व्यक्ति है, जो व्यर्थ ही अभी आकर लड़ने को तैयार हो जायेगा । अल्पशिक्षित होने के नाते, मैं संस्कृत भाषा में लिखित इस ग्रन्थ को पढ़ने में भी असमर्थ हूँ शामा की धारणा थी कि बाबा मेरे और रामदासी के बीच मनमुटाव करवाना चाहते थे । इसलिये यह नाटक रचा है । बाबा का विचार उनके प्रति क्या था, यह उनकी समझ में न आया । बाबा येन केन प्रकारेण विष्णुसहस्त्रनाम उसके कंठ में उतार देना चाहते थे । वे तो अपने एक अल्पशिक्षित अंतरंग भक्त को सांसारिक दुःखों से मुक्त कर देना चाहते थे । ईश्वर-नाम के जप का महत्व तो सभी को विदित हीहै, जो हमें पापों से बचाकर कुवृत्तियों से हमारी रक्षा कर, जन्म तथा मृत्यु के बन्धन से छुड़ा देता है । यह आत्मशुद्घि के लिये एक उत्तम साधन है, जिसमें न किसी सामग्री की आवश्यकता हौ और न किसी नियम के बन्धन की । इससे सुगम और प्रभावकारी साधन अन्य कोई नहीं । बाबा की इच्छ तो शामा से यह साधना कराने की थी, परन्तु शामा ऐसा न चाहते थे, इसीलिये बाबा ने उनपर दबाव डाला । ऐसा बहुधा सुनने में आया है कि बहुत पहले श्री एकनाथ महाराज ने भी अपने एक पड़ोसी ब्राहमण से विष्णुसहस्त्रनाम का जप करने के लिये आग्रह कर उसकी रक्षा की थी । विष्णुसहस्त्रनाम का जप चित्तशुद्घि के लिये एक श्रेष्ठ तथा स्पष्ट मार्ग है । इसलिये बाबा ने शामा को अनुरोधपूर्वक इसके जप में प्रवृत्त किया । रामदासी बाजार से तुरन्त सोनामुखी लेकर लौट आया । अण्णा चिंचणीकर, जो वहीं उपस्थित थे, प्रयः पूरे नारद मुनि ही थे और उन्होंने उक्त घटना का सम्पूर्ण वृत्तांत रामदासी को बता दिया । मदासी क्रोधावेश में आकर शामा की ओर लपका और कहने लगे कि यह तुम्हारा ही कार्य है, जो तुमने बाबा के द्घारा मुझे उदर पीड़ा के बहाने औषधि लेने को भेजा । यदि तुमने पुस्तक न लौटाई तो मैं तुम्हारा सिर तोड़ दूँगा । शामा ने उसे शान्तुपूर्वक समझाया, परन्तु उनक कहना व्यर्थे ही हुआ । तब बाबा प्रेमपूर्वक बोले कि अरे रामदासी, यह क्या बात हैं । क्यों उपद्रव कर रहे हो । क्या शामा अपना बालक नहीं है । तुम उसे व्यर्थ ही क्यों गाली दे रहे हो । मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारी प्रकृति ही उपद्रवी है । क्या तुम नम्र और मृदुल वाणी नहीं बोल सकते । तुम नित्य प्रति इन पवित्र ग्रन्थों का पाठ किया करते हो और फिर भी तुम्हारा चित्त अशुदृ ही है । जब तुम्हारी इच्छायें ही तुम्हारे वश में नहीं है तो तुम रामदासी कैसे । तुम्हें तो समस्त वस्तुओं से अनासक्त (वैराग्य) होना चाहिये । कैसी विचित्र बात है कि तुम्हें इस पुस्तक पर इतना अधिक मोह है । सच्चे रामदासी को तो ममता त्याग कर समदर्शी होना चाहिये । तुम तो अभी बालक शामा से केवल एक छोटी सी पुस्तक के लिये झगड़ा कर रहे थे । जाओ, अपने आसन पर बैठो । पैसों से पुस्तकें तो अनेक प्राप्त हो सकती है, परन्तु मनुष्य नहीं । उत्तम विचारक बनकर विवेकशील होओ । पुस्तक का मूल्य ही क्या है और उससे शामा को क्या प्रयोजन । मैंने स्वयं उठकर वह पुस्तक उसे दी थी, यह सोचकर कि तुम्हें तो यह पुस्तक पूणर्तः कंठस्थ है । शामा को इसके पठन से कुछ लाभ पहुँचे, इसलिये मैंने उसे दे दी । बाबा के ये शब्द कितने मृदु और मार्मिक तथा अमृततुल्य है । इनका प्रभाव रामदासी पर पड़ा । वह चुप हो गया और फिर शामा से बोला कि मैं इसके बदले में पंचरत्नी गीता की एक प्रति स्वीकार कर लूँगा । तब शामा भी प्रसन्न होकर कहने लगे कि एक ही क्यो, मैं तो तुम्हें उसके बदले में 10 प्रतियाँ देने को तैयार हूँ । इस प्रकार यह विवाद तो शान्त हो गया, परन्तु अब प्रश्न यह आया कि रामदासी नें पंचरत्नी गीता के लिये-एक ऐसी पुस्तक जिसका उसे कभी ध्यान भी न आया था, इतना आग्रह क्यों किया और जो मसजिद में हर दिन धार्मिक ग्रन्थों का पाठ करता हो, वह बाबा के समक्ष ही इतना उत्पात करने पर क्यों उतारु हो गया । हम नहीं जानते कि इस दोष का निराकरण कैसे करें और किसे दोषी ठहरावें । हम तो केवल इतना ही जान सके कि यदि इस प्रणाली काअनुसरण न किया गया होता तो विषय का महत्व और ईश्वर नाम की महिमा तथा शामा को विष्णुसहस्त्रनाम के पठन का शुभ अवसर ही प्राप्त न होता । इससे यही प्रतीत होता है कि बाबा के उपदेश की शैली और उसकी प्रकि्या अद्घितीय है । शामा ने धीरे-धीरे इस ग्रन्थ का इतना अध्ययन कर लिया और उन्हें इस विषय का इतना ज्ञान हो गया कि वह श्री मान् बूटीसाहेब के दामाद प्रोफेसर जी.जी. नारके, एम.ए. (इंजीनियरिंग कालेज, पूना) को भी उसका यथार्थ अर्थ समझाने में पूर्ण सफल हुए ।

गीता रहस्य
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ब्रहृविघा (अध्यात्म) का जो भक्त अध्ययन करते, उन्हें बाबा सदैव प्रोत्साहित करते थे । इसका एक उदाहरण है कि एक समय बापूसाहेब जोग का एक पारसल आया, जिसमें श्री. लोकमान्य तिलक कृत गीता-भाष्य की एक प्रति थी, जिसे काँख में दबाये हुये वे मसजिद में आये । जब वे चरण-वन्दना के लिये झुके तो वह पारसल बाबा के श्री-चरणों पर गिर पड़ा । तब बाबा उनसे पूछने लगे कि इसमें क्या है । श्री. जोग ने तत्काल ही पारसल से वह पुस्तक निकालकर बाबा के कर—कमलों में रख दी । बाबा ने थोड़ी देर उसके कुछ पृष्ठ देखकर जेब से एक रुपया निकाला और उसे पुस्तक पर रखकर जोग को लौटा दिया और कहने लगे कि इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन करते रहो, इससे तुम्हारा कल्याण होगा ।


श्रीमान् और श्रीमती खापर्डे
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एक बार श्री. दादासाहेब खापर्डे सहकुटुम्ब शिरडी आये और कुछ मास वहीं ठहरे उनके ठहरने के नित्य कार्यक्रम का वर्णन श्रीसाईलीला पत्रिका के प्रथम भाग में प्रकाशित हुआ है । दादा कोई सामान्य व्यक्ति न थे । वे एक धनाढ्य और अमरावती (बरार) के सुप्रसिदृ वकील तथा केन्द्रीय धारा सभा (दिल्ली) के सदस्य थे । वे विद्घान और प्रवीण वक्ता भी थे । इतने गुणवान् होते हुए भी उन्हें बाबा के समक्ष मुँह खोलने का साहस न होता था । अधिकाँश भक्तगण तो बाबा से हर समय अपनी शंका का समाधान कर लिया करते थे । केवल तीन व्यक्ति खापर्डे, नूलकर और बूटी ही ऐसे थे, जो सदैव मौन धारण किये रहते तथा अति विनम्र और उत्तम प्रकृति के व्यक्ति थे । दादासाहेब, विघारण्य स्वामी द्घारा रचित पंचदशी नामक प्रसिदृ संस्कृत ग्रन्थ, जिसमें अद्घैतवेदान्त का दर्शन है, उसका विवरण दूसरों को तो समझाया करते थे, परन्तु जब वे बाबा के समीप मसजिद में आये तो वे एक शब्द का भी उच्चारण न कर सके । यथार्थे में कोई व्यक्ति, चाहे वह जितना वेदवेदान्तों में पारन्गत क्यों न हो, परन्तु ब्रहृपद को पहुँचे हुए व्यक्ति के समक्ष उसका शुष्क ज्ञान प्रकाश नहीं दे सकता । दादा चार मास तथा उनकी पत्नी सात मास वहाँ ठहरी । वे दोनों अपने शिरडी-प्रवास से अत्यन्त प्रसन्न थे । श्री मती खापर्डे श्रद्घालु तथा पूर्ण भक्त थी, इसलिये उनका साई चरणों में अत्यन्त प्रेम था । प्रतिदिन दोपहर को वे स्वयं नैवेघ लेकर मसजिद को जाती और जब बाबा उसे ग्रहम कर लेते, तभी वे लौटकर आपना भोजन किया करती थी । बाबा उनकी अटल श्रद्घा की झाँकी का दूसरों को भी दर्शन कराना चाहते थे । एक दिन दोपहर को वे साँजा, पूरी, भात, सार, खीर और अन्य भोज्य पदार्थ लेकर मसजिद में आई । और दिनों तो भोजन प्रायः घंटों तक बाबा की प्रतीक्षा में पड़ा रहता था, परन्तु उस दिन वे तुरंत ही उठे और भोजन के स्थान पर आकर आसन ग्रहण कर लिया और थाली पर से कपड़ा हटाकर उन्होंने रुचिपूर्वक भोजन करना आरम्भ कर दिया । तब शामा कहने लगे कि यह पक्षपात क्यों । दूसरो की थालियों पर तो आप दृष्टि तक नहीं डालते, उल्टे उन्हें फेंक देते है, परन्तु आतज इस भोजन को आप बड़ी उत्सुकता और रुचि से खा रहे है । आज इस बाई का भोजन आपको इतना स्वादिष्ट क्यों लगा । यह विषय तो हम लोगों के लिये एक समस्या बन गया है । तब बाबा ने इस प्रकार समझाया । सचमुच ही इस भोजन में एक विचित्रता है । पूर्व जन्म में यह बाई एक व्यापारी की मोटी गाय थी, जो बहुत अधिक दूध देती थी । पशुयोलि त्यागकर इसने एक माली के कुटुम्ब में जन्म लिया । उस जन्म के उपरान्त फिर यह एक क्षत्रिय वंश में उत्पन्न हई और इसका ब्याह एक व्यापारी से हो गया । दीर्घए काल के पश्चात् इनसे भेंट हुई है । इसलिये इनकी थाली में से प्रेमपूर्वक चार ग्रास तो खा लेने दो । ऐसा बतला कर बाबा ने भर पेट भोजन किया और फिर हात मुँह धोकर और तृप्ति की चार-पाँच डकारें लेकर वे अपने आसन पर पुनः आ बिराजे । फिर श्रीमती खापर्डे ने बाबा को नमन किया और उनके पाद-सेवन करने ली । बाबा उनसे वार्तालाप करने लगे और साथ-साथ उनके हाथ भी दबाने लगे । इस प्रकार परस्पर सेवा करते देख शामा मुस्कुराने लगा और बोला कि देखो तो, यह एक अदभुत दृश्य है कि भगवान और भक्त एक दूसरे की सेवा कर रहे है । उनकी सच्ची लगन देखकर बाबा अत्यन्त कोमल तथा मृदु शब्दों मे अपने श्रीमुख से कहने लगे कि अब सदैव राजाराम, राजाराम का जप किया करो और यदि तुमने इसका अभ्यास क्रमबदृ किया तो तुम्हे अपने जीवन के ध्येय की प्राप्ति अवश्य हो जायेगी । तुम्हें पूर्ण शान्ति प्राप्त होकर अत्यधिक लाभ होगा । आध्यात्मिक विषयों से अपरिचित व्यक्तियों के लिये यह घटना साधारण-सी प्रतीत होगी, परन्तु शास्त्रीय भाषा में यह शक्तिपात के नाम से विदित है, अर्थात् गुरु द्घारा शिष्य में शक्तिसंचार करना । कितने शक्तिशाली और प्रभावकारी बाबा के वे शब्द थे, जो एक क्षण में ही हृदय-कमल में प्रवेश कर गये और वहाँ अंकुरित हो उठे । यह घटना गुरु-शिष्य सम्बन्ध के आदर्श की घोतक है । गुरु-शिष्य दोनों एक दूसरे को अभिन्न् जानकर प्रेम और सेवा करनी चाहिये, क्योंकि उन दोनों में कोई भेद नहीं है । वे दोनों अभिन्न और एक ही है, जो कभी पृथक् नहीं हो सकते । शिष्य गुरुदेव के चरणों पर मस्तक रख रहा है, यह तो केवल बाहृ दृश्यमान है । आन्तरिक दृष्टि से दोनों अभिन्न और एक ही है तथा जो उनमें भेद समझता है, वह अभी अपरिपक्क और अपूर्ण ही है ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है |

ॐ सांई राम

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई


माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है |
अपनी मंद हलकी हंसी द्वारा अंड अर्थात ब्रम्हांड को उत्पन करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है | जब सृष्टि का आस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार था, तब इन्ही देवी ने अपने हास्य से सृष्टि की रचना की थी | इस कारण यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि-शक्ति हैं | इनसे पूर्व ब्रम्हांड का आस्तित्व था ही नहीं |

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Wednesday, 28 September 2022

श्री साईं लीलाएं - बाबा के श्रीचरणों में प्रयाग

 ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. तुम्हारी जेब में पैसा-ही-पैसा

श्री साईं लीलाएं


बाबा के श्रीचरणों में प्रयाग

साईं बाबा अपने शिष्य के साथ बैठे आध्यात्मिक विषय पर बातें कर रहे थे कि तभी एक बूढ़ा व्यक्ति रोता-पीटता आया और हाथ जोड़कर साईं बाबा के सामने आकर जोर-जोर से रोने लगा|

"क्या हो गया बाबा ?" - एक शिष्य ने उस बूढ़े से पूछा|
"मेरा जवान लड़का मर गया| मेरे पास उसे कफन-दफन करने के लिए एक पैसा भी नहीं|" वह निरंतर आँसू बहाये जा रहा था|

साईं बाबा ने उसकी ओर देखा और पूछा -


"
कब मरा लड़का ?"
"आज दोपहर| मैं कई जगह गया, पर किसी ने मेरी कोई मदद नहीं की|"

"जब तुम्हारे पास स्वयं ही इतने सारे रुपये हैं, तो कोई तुम्हारी मदद क्यों करता|" यह कहकर साईं बाबा हँसने लगे|

"साईं बाबा !" बूढ़ा गिड़गिड़ाकर बोला - "मेरे पास तो इस समय एक फूटी कौड़ी भी नहीं है|"

"झूठ बोलते हो|" साईं बाबा ने कहा - "अपनी जेब में हाथ डालो| वहां पैसा-ही-पैसा भरा पड़ा है|"

जब उस बूढ़े ने जेब में हाथ डाला, अचानक ढेरसारे नोट निकल आये| वह हैरानी से देखता रह गया| आश्चर्य के मारे आँखें फटी-सी रह गयीं|

"जाओ, अपना काम करो|" साईं बाबा ने कहा|

वह बूढ़ा साईं बाबा की जय-जयकार करता वहां से चला गया| सारे शिष्य हैरानी के साथ सारा दृश्य देखते रह गये| उस बूढ़े की फटी हुई जेब से रुपया-ही-रुपया निकलना बहुत ही आश्चर्य की बात थी| सबने इसे साईं बाबा का एक चमत्कार माना और बाबा कि जय-जयकार करने लगे| साईं बाबा का यह चमत्कार अद्भुत था|


कल चर्चा करेंगे..जब सिद्दीकी को अक्ल आयी

ॐ सांई राम
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

आप सभी को नवरात्रों की हार्दिक बधाई - माँ दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है।

ॐ सांई राम जी

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक बधाई 


 माँ दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है| नवरात्रि-उपासना में तीसरे दिन इन्ही के विग्रह का पूजन आराधन किया जाता है| इनका यह स्वरूप परम शक्तिदायक और कल्याणकारी है| इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है| इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है| इसके शरीर का रंग स्वर्ण के सामान चमकीला है| इनके दस हाथ है| इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शास्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं| इनका वाहन सिंह है| इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उधयत रहने वाली होती है| इनके घंटे की-सी भयानक चंडध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं|

Tuesday, 27 September 2022

श्री साईं लीलाएं - तुम्हारी जेब में पैसा-ही-पैसा

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. 

तात्या को बाबा का आशिर्वाद


श्री साईं लीलाएं 

तुम्हारी जेब में पैसा-ही-पैसा
साईं बाबा अपने शिष्य के साथ बैठे आध्यात्मिक विषय पर बातें कर रहे थे कि तभी एक बूढ़ा व्यक्ति रोता-पीटता आया और हाथ जोड़कर साईं बाबा के सामने आकर जोर-जोर से रोने लगा|

"क्या हो गया बाबा ?" - एक शिष्य ने उस बूढ़े से पूछा|

"मेरा जवान लड़का मर गया| मेरे पास उसे कफन-दफन करने के लिए एक पैसा भी नहीं|" वह निरंतर आँसू बहाये जा रहा था|


साईं बाबा ने उसकी ओर देखा और पूछा -

"कब मरा लड़का ?"

"आज दोपहर| मैं कई जगह गया, पर किसी ने मेरी कोई मदद नहीं की|"

"जब तुम्हारे पास स्वयं ही इतने सारे रुपये हैं, तो कोई तुम्हारी मदद क्यों करता|" यह कहकर साईं बाबा हँसने लगे|

"साईं बाबा !" बूढ़ा गिड़गिड़ाकर बोला - "मेरे पास तो इस समय एक फूटी कौड़ी भी नहीं है|"

"झूठ बोलते हो|" साईं बाबा ने कहा - "अपनी जेब में हाथ डालो| वहां पैसा-ही-पैसा भरा पड़ा है|"

जब उस बूढ़े ने जेब में हाथ डाला, अचानक ढेरसारे नोट निकल आये| वह हैरानी से देखता रह गया| आश्चर्य के मारे आँखें फटी-सी रह गयीं|

"जाओ, अपना काम करो|" साईं बाबा ने कहा|

वह बूढ़ा साईं बाबा की जय-जयकार करता वहां से चला गया| सारे शिष्य हैरानी के साथ सारा दृश्य देखते रह गये| उस बूढ़े की फटी हुई जेब से रुपया-ही-रुपया निकलना बहुत ही आश्चर्य की बात थी| सबने इसे साईं बाबा का एक चमत्कार माना और बाबा कि जय-जयकार करने लगे| साईं बाबा का यह चमत्कार अद्भुत था|


कल चर्चा करेंगे..बाबा के श्रीचरणों में प्रयाग

ॐ सांई राम

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं - माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी का है 

 ॐ सांई राम


आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं

माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी का है | यहाँ ब्रम्हाश शब्द का अर्थ तपस्या है | ब्रम्हचारिणी अर्थात तप की चारिनी (तप का आचरण करने वाली) ब्रम्हचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है | इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बहिने हाथ में कमण्डल रहता है | अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान् शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी | दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रम्हचारिणी नाम से अभिहित किया गया |

Kindly Provide Food & clean drinking Water to Birds & Other Animals,
This is also a kind of SEWA.

Monday, 26 September 2022

श्री साईं लीलाएं - तात्या को बाबा का आशीर्वाद

 ॐ सांई राम




कल हमने पढ़ा था.. ब्रह्म ज्ञान को पाने का सच्चा अधिकारी

श्री साईं लीलाएं

तात्या को बाबा का आशीर्वाद
शिरडी में सबसे पहले साईं बाबा ने वाइजाबाई के घर से ही भिक्षा ली थीवाइजाबाई एक धर्मपरायण स्त्री थीउनकी एक ही संतान तात्या थाजो पहले ही दिन से साईं बाबा का परमभक्त बन गया था|

वाइजाबाई ने यह निर्णय कर लिया था कि वह रोजाना साईं बाबा के लिए खाना लेकर स्वयं ही द्वारिकामाई मस्जिद जाया करेगी और अपने हाथों से बाबा को खाना खिलाया करेगीअब वह रोजाना दोपहर को एक टोकरी में खाना लेकर द्वारिकामाई मस्जिद पहुंच जाती थीकभी साईं बाबा धूनी के पास अपने आसन पर बैठे हुए मिल जाया करते और कभी उनके इंतजार में वह घंटों तक बैठी रहती थीवह न जाने कहां चले जाते थे इस सबके बावजूद वाईजाबाई उनका बराबर इंतजार करती रहती थीकभी-कभार बहुत ज्यादा देर होने पर वह उन्हें ढूंढने के लिए निकल जाया करती थी|कभी-कभी जंगलों में भी ढूंढने के लिए चली जाती थीकड़कड़ाती धूप हो या मूसलाधार बारिश अथवा हडि्डयों को कंपा देने वाली ठंड होवाइजाबाई साईं बाबा को ढूंढती फिरती और जब उसे कहीं ने मिलते तो वह निराश होकर फिर द्वारिकामाई मस्जिद लौट आती थी|एक दिन वाइजाबाई जब बाबा को खोजतीथकी-मांदी मस्जिद पहुंची तो उसने बाबा को धूनी के पास अपने आसन पर बैठे पाया|वाईजाबाई को देखकर बाबा बोले - "मांमैं तुम्हें बहुत ही कष्ट देता हूंजो बेटा अपनी माँ को दुःख देउससे अधिक अभागा और कोई नहीं हो सकता है|मैं अब तुम्हें बिल्कुल भी कष्ट नहीं दूंगाजब भी तुम खाना लेकर आया करोगीमैं तुम्हें मस्जिद में ही मिला करूंगा|" साईं बाबा ने वाइजाबाई से कहा|उस दिन के बाद बाबा खाने के समय कभी भी मस्जिद से बाहर न जाते थेवाइजाबाई खाना लेकर मस्जिद पहुंचती तो बाबा उसे वहां पर अवश्य मिलते|

"
साईं बाबा... !" वाइजाबाई ने कहा
|

"
ठहरो मां... !" साईं बाबा खाना खाते-खाते रुक गए और बोले - "मैं तुम्हें माँ कहता ही नहींअपनी आत्मा से भी मानता हूं
|"

"
तू मेरा बेटा हैतू ही मेरा बेटा हैतूने माँ कहा है न|" वाइजाबाई प्रसन्नता से गद्गद् होकर बोली
|

"
तुम बिल्कुल ठीक कहती हो मां ! मुझ जैसे अनाथअनाश्रित और अभागे को अपना बेटा बनाकर तुमने बड़े पुण्य का काम किया है मां|" साईं बाबा ने कहा - "इन रोटियों में जो तुम्हारी ममता हैक्या पता मैं तुम्हारे इस ऋण से कभी मुक्त हो भी पाऊंगा या नहीं 
?"

"
यह कैसी बात कर रहा है तू बेटा ! मां-बेटे का कैसा ऋण यह तो मेरा कर्त्तव्य हैकर्त्तव्य में ऋण की बात कहा ?" वाइजाबाई ने कहा - "इस तरह की बातें आगे से बिल्कुल मत करना
|"

"
अच्छा-अच्छा नहीं कहूंगाफिर कभी नहीं कहूंगा|" साईं बाबा ने जल्दी से अपने दोनों कानों को हाथ लगाकर कहा - "तुम घर जाकर तात्या को भेज देना
|"

"
वो तो लकड़ी बेचने गया हैआते ही भेज दूंगी|" कहने के पश्चात् वाइजाबाई के चेहरे पर सहसा गहरी उदासी छा गयी
|वाइजाबाई की आपबीती सुनकर साईं बाबा की आँखें भीग गयींवह कुछ देर तक मौन बैठे रहे और फिर बोले - "वाइजा मांभगवान् भला करेंगेफिक्र मत करोसुख और दुःख तो इस जिंदगी के जरूरी अंग हैंजब तक इंसान इस दुनिया में जिंदा रहता हैउसे यह सब तो भोगना ही पड़ता है|"वाइजाबाई की आँखें भर आयी थींउसने अपनी टोकरी उठाई और थके-हारे कदमों से वह अपने घर की ओर वापस चल पड़ी|
तात्या अभी थोड़ी-सी ही लकड़ियां काट पाया था कि अचानक आकाश में काली-काली घटाएं उमड़ने लगींबिजली कड़कने और गरजने से जंगल का कोना-कोना गूंज उठातात्या के पसीने से भरे चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गयींवह सोचने लगाअब क्या होगाइन लकड़ियों के तो कोई चार पैसे भी नहीं देगा - और यदि यह भीग गई तो कोई मुफ्त में भी नहीं लेगाघर में एक मुट्ठी अनाज नहीं हैतो रोटी कैसे बनेगी तब रात को माँ साईं बाबा को क्या खिलायेगी इसी चिंता में डूबे तात्या ने जल्दी से लड़कियां समेटीं और गांव की ओर चल पड़ातभी बड़े जोर से मूसलाधार बारिश शुरू हो गईवह जल्दी-जल्दी पांव बढ़ाने लगा
|अभी वह गांव से कुछ ही दूरी पर था कि अचानक एक तेज अवाज सुनाई दी - "ओ लकड़ी वाले !"


उसके बढ़ते हुए कदम थम गए|उसने जोर से पुकारा - "कौन है भाई ?"और तभी एक आदमी उसके सामने आकर खड़ा हो गया|

"
क्या बात है ?" तात्या ने पूछा
|

"
लकड़ियां बेचोगे ?" उस आदमी ने पूछा
|

"
हां-हांक्यों नहीं बेचूंगा भाई ! मैं बेचने के लिए ही तो रोजाना जंगल से लकड़ियां काटकर लाता हूं|" तात्या ने जल्दी से जवाब दिया
|

"
कितने पैसे लोगे इन लकड़ियों के 
?"

"
जो मर्जी होदे दोआज तो लकड़ियां बहुत कम हैं और वैसे भी भीग भी गई हैंजो भी दोगे ले लूंगा
|"

"
लोयह रुपया रख लो
|"तात्या हैरानी से उस व्यक्ति को देखने लगा|

"
कम है तो और ले लो|" उस आदमी ने जल्दी से जेब से एक रुपया और निकालकर तात्या की ओर बढ़ाया
|

नहीं-नहींकम नहीं हैज्यादा हैंलकड़ियां थोड़ी हैं|" तात्या ने जल्दी से कहा
|

"
तो क्या हुआआज से तुम रोजाना मुझे यहां पर लकड़ियां दे जाया करोमैं तुम्हें यहीं मिला करूंगायदि आज ये लकड़ियां कुछ कम हैंतो कल लकड़ियां ज्यादा ले आनातब हमारा-तुम्हारा हिसाब बराबर हो जाएगा|" उसने हँसते हुए कहा और रुपया जबरदस्ती उसके हाथ पर रख दिया
|तात्या ने रुपये जल्दी से अपने अंगरखे की जेब में रखे और फिर तेजी से गांव की ओर चल दियाघर पहुंचकर उसने माँ के हाथ पर रुपये रखे तो माँ आश्चर्य से उसका मुंह देखने लगी|

"
इतने रुपये कहां से ले आया तात्या ?" माँ ने आशंकित होकर पूछातात्या ने अपनी माँ को पूरी घटना बता दी
|

"
ये तूने ठीक नहीं किया बेटाकल उसे ज्यादा लकड़ियां दे आनाइंसान को अपनी ईमानदारी की कमाई पर ही संतोष करना चाहिएबेईमानी का जरा-सा भी विचार कभी अपने मन में नहीं लाना चाहिए|" वाइजाबाई ने तात्या को समझाते हुए कहा
|अगले दिन जब तात्या जंगल में गया तो उस समय वर्षा रुक गयी थीआकाश एकदम साफ थातात्या ने जल्दी-जल्दी और दिन से ज्यादा लकड़ियां काटीं और गट्ठर बनाने लगागट्ठर भारी थारोजाना तो वह अकेले ही लकड़ियों का गट्ठर उठाकर सिर पर रख लिया करता थालेकिन आज लकड़ियां ज्यादा थींवह अकेला उस गट्ठर को उठा नहीं सकता थावह किसी मुसाफिर की राह देखने लगा ताकि उसकी सहायता से उस भारी गट्ठर को उठाकर सिर पर रख सके|अचानक उसे सामने से एक मुसाफिर आता हुई दिखाई दियाजब वह पास आ गया तो तात्या ने उससे कहा -"भाई ! जरा मेरा बोझा उठवा दो|" उस मुसाफिर ने तात्या के सिर पर गट्ठर उठवाकर रखवा दियाअब तात्या तेजी से चल पड़ा|

"
अरे भाई तात्याक्या बात हैआज तुमने इतनी देर कैसे कर दी मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं|" पिछले दिन वाले आदमी ने मुस्कराते हुए कहा
|

"
आज लकड़ियां और दिन के मुकाबले ज्यादा हैंरोजाना लकड़ियां कम होती थींइसलिए मैं अकेला ही गट्ठर होने के कारण मैं उसे अकेला नहीं उठा पा रहा थाबहुत देर बाद जब एक आदमी आया मैं उसकी सहायता से गट्ठर उठवाकर सिर पर रख पायातो सीधा भागता हुआ चला आया हूं
|"उस आदमी ने लकड़ी के गट्ठर पर एक नजर डाली और बोला - "आज तो तुम ढेरसारी लकड़ियां काट लाए|"

"
तुम ठीक कर रहे होलेकिन कल तुम्हें बहुत कम लकड़ियां मिली थींपरतुमने पैसे पूरे दे दिए थेइसलिए तुम्हारा हिसाब भी तो बराबर करना थाकल तुमने रुपये दे दिये थेउसी के बदले सारी लकड़ियां ले जाओअब तक का हिसाब बराबर|" तात्या ने हँसते हुए कहा
|

"
कहां ठीक है तात्या भाई ! जिस तरह तुम ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ता चाहतेउसी तरह मैंने भी बेईमानी करना नहीं सीखा|" उस आदमी ने कहा और अपनी जेब से रुपया निकालकर तात्या की हथेली पर रख दिया - "लोइसे रखोहमारा आज तक का हिसाब-किताब बराबरआज लकड़ियां और दिनों से दोगुनी हैंइसलिए हिसाब भी दोगुना होना चाहिए
|"तात्या ने रुपया लेने से बहुत इंकार कियापर उस आदमी ने समझा-बुझाकर वह रुपया तात्या को लेने पर विवश करतात्या ने वह रुपया जेब में रखाफिर वह गांव की ओर चल दिया|अभी वह थोड़ी ही दूर गया था कि अचानक उसे कुल्हाड़ी की याद आयीजल्दबाजी में वह कुल्हाड़ी जंगल में ही भूल आया थाअपनी भूल का अहसास होते ही वह तेजी से जंगल की ओर लौट पड़ाअब उसे वह आदमी और लड़कियों का गट्ठर कहीं भी दिखाई न दियाउसने बहुत दूर-दूर तक नजर दौड़ाईलेकिन उस आदमी का कहीं भी अता-पता न थातात्या की हैरानी की सीमा न रहीदोपहर का समय थाआखिर वह आदमी इतनी जल्दी इतना बोझ उठाकर कहां चला गया दूर-दूर तक उस आदमी का पता न थाआश्चर्य में डूबा तात्या वापस आ गयावह इस बात को किसी से कहे या न कहेइस बात का फैसला नहीं कर पा रहा था|घर आकर वह अपनी माँ के साथ द्वारिकामाई मस्जिद आयावाइजाबाई ने दोनों को खाना लगा दियाखाना खाते समय तात्या ने लकड़ी खरीदने वाले के बारे में साईं बाबा को बतायासाईं बाबा बोले -"तात्याइंसान को वही मिलता हैजो परमात्मा ने उसके भाग्य में लिखा हैइसमें कोई संदेह नहीं है कि बिना गेहनत किये धन नहीं मिलता हैफिर भी धन-प्राप्ति में मनुष्य के कर्मों का भी बहुत योगदान होता हैवैसे चोर-डाकू भी चोरी-डाका डालकर लाखों रुपये ले आते हैंलेकिन वे सदैव गरीब-के-गरीब ही बने रहते हैंन तो उन्हें समय पर भरपेट भोजन ही मिलता है और न चैन की नींद आती हैजबकि एक गरीब आदमी थोड़ी-सी मेहनत करके इतना पैसा पैदा कर लेता है कि जिससे बड़े आराम से उसका और उसके परिवार की गुजर-बसर हो सकेवह स्वयं भी इत्मीनान से रूखी-सूखी खाता है और चैन की नींद सोता है तथा मुझ जैसे फकीर की झोली में भी रोटी का एक-आध टुकड़ा डाल देता हैतुम्हें जो कुछ मिलता हैवह तुम्हारे भाग्य में लिखा है|"

"
लेकिन वह आदमी और लकड़ियों का गट्ठर कहां गायब हो गए ?" तात्या ने हैरानी से पूछा
|

"
भगवान के खेल भी बड़े अजब-गजब हैंतात्या ! इंसान अपनी साधरण आँखों से उसे देख नहीं पाता|" साईं बाबा ने गंभीर होकर कहा - "तुम्हें बेवजह परेशान होने की कोई जरूरत नहीं हैयह तो देने वाला जानता है कि वह किस ढंग से और किस जरिये रोजी-रोटी देता हैभगवान जब किसी भी प्राणी को इस दुनिया में भेजता हैतो उसे भेजने से पहले उन सभी चीजों को भेज देता हैजिसकी उस जन्म लेने वाले को जरूरत पड़ती है|" साईं बाबा ने तात्या को बड़े ही प्यार से समझाया
|तात्या साईं बाबा के चरणों में गिर गयाउसे साईं बाबा की बात पर सहसा विश्वास न हो पा रहा थावह कहना चाहता था कि बाबायह सब आपका ही करिश्मा हैइस प्रकार का खेल खेलकर आप ही उसकी रोटी का इंतजाम कर रहे हैंउसने बहुत चाहा कि वह इस बात को साईं बाबा से कहेपर कह नहीं पाया और केवल आँसू टपकाता रह गया|वास्तव में तात्या के मन में साईं बाबा के प्रति अपार श्रद्धा और अटूट विश्वास थाइसी कारण बाबा का भी उस पर विशेष स्नेह था|अचानक साईं बाबा उठकर खड़े हो गए और बोले - "चलो तात्याघर चलो|" कहकर मस्जिद की सीढ़ियों की ओर चल दिये|साईं बाबा सीधे वाइजाबाई की उस कोठरी में गएजहां पर वह सोया करती थीउस कोठरी में एक पलंग पड़ा था|

"
तात्याएक फावड़ा ले आओ|" साईं बाबा ने कोठरी में चारों ओर निगाह घुमाते हुए कहा
|तात्या फावड़ा ले आयाउसकी और वाइजाबाई की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि साईं बाबा ने फावड़ा क्यों मंगाया है?

"
तात्याइस पलंग के सिरहाने वाले दायें ओर के पाएं के नीचे खोदो|" इतना कहकर साईं बाबा ने पलंग एक ओर को सरका दिया
|

"
यहां क्या है बाबा ?" तात्या ने पूछा
|

"
खोदो तो सही|" साईं बाबा ने कहा
|
तात्या ने अभी तीन-चार फावड़े ही मारे थे कि अचानक फावड़ा किसी धातु से टकराया
|

"
धीरे-धीरे मिट्टी हटाओतात्या|" साईं बाबा ने गड्ढे में झांकते हुए कहा
|तात्या फावड़े से धीरे-धीरे मिट्टी हटाने लगाकुछ देर बाद उसने तांबे का एक कलश निकालकर साईं बाबा के सामने रख दिया|

"
इसे खोलोतात्या !"


तात्या ने कलश पर रखा ढक्कन हटाकर उसे फर्श पर उलट दियादेखते-ही-देखते उस कलश में से सोने की अशर्फियांमूल्यवान जेवर और हीरे निकलकर बिखर गए|

"
यह तुम्हारे पूर्वजों की सम्पत्ति हैतुम्हारे भाग्य में ही मिलना लिखा थातुम्हारे पिता के भाग्य में यह सम्पत्ति नहीं थी|" साईं बाबा ने कहा - "इसे संभालकर रखो और समझदारी से खर्च करो
|"वाइजा और तात्या के आश्चर्य का कोई ठिकाना न थावह उस अपार सम्पत्ति को देख रहे थे और सोच रहे थे कि यदि उन पर साईं बाबा की कृपा न होती तो सम्पत्ति उन्हें कभी भी प्राप्त न होतीतात्या ने अपना सिर साईं बाबा के चरणों पर रख दिया और फूट-फूटकर बच्चों की तरह रोने लगा|वाइजाबाई बोली - "साईं बाबा ! हम यह सब रखकर क्या करेंगेहमारे लिए तो रूखी-सूखी रोटी ही बहुत हैआप ही रखिये और मस्जिद के काम में लगा दीजिए|"साईं बाबा ने वाइजाबाई का हाथ पकड़कर कहा -"नहीं मां ! यह सब तुम्हारे भाग्य में थायह सारी सम्पत्ति केवल तुम्हारी हैमेरी बात मानोइसे अपने पास ही रखो|"साईं बाबा की बात को वाइजाबाई को मानना ही पड़ाउसने कलश रख लियातब साईं बाबा चुपचाप उठकर अपनी मस्जिद में वापस आ गये और धूनी के पास इस प्रकार लेट गयेजैसे कुछ हुआ ही नहीं है|
तात्या ने इस सम्पत्ति से नया मकान बनवा लिया और बहुत ही ठाठ-बाट से रहने लगागांव वाले हैरान थे कि अचानक तात्या के पास इतना पैसा कहां से आया वे इस बात को तो जानते थे कि साईं बाबा तात्या की माँ वाइजाबाई को माँ कहकर पुकारते हैं और तात्या से अपने भक्त या शिष्य की तरह नहींबल्कि छोटे भाई के समान स्नेह करते हैंअत: सबको विश्वास हो गया कि तात्या पर साईं बाबा की ही कृपा हुई हैइसी कृपा से वह देखते-ही-देखते सम्पन्न हो गया है
|तात्या को सम्पन्न देख धन के लोभीलालची लोग भी साईं बाबा के पास जाने लगेरात-दिन सेवा किया करते कि शायद साईं बाबा प्रसन्न हो जाएं और उन्हें भी धनवान बना देंसाईं बाबा उन लोगों की भावनाओं को अच्छी तरह से जानते थेवह न तो उन्हें मस्जिद में आने से रोकना चाहते थे और न ही उन्हें डांटना चाहते थेउनका विश्वास था कि यहां आते-आते या तो इनके विचार ही बदल जायेंगे या फिर निराश होकर स्वयं ही आना बंद कर देंगेवह किसी को कुछ न कहते थेचुपचाप अपनी धूनी के पास बैठे तमाशा देखा करते थेकुछ तो इतने बेशर्म लोग थे कि साईं बाबा ने एकदम स्वयं को धनवान बनाने के लिए कहते - "बाबाहमें भी तात्या का तरह धनवान बना दो|"उन लोगों की बातें सुनकर साईं बाबा हँस पड़ते और बोलते - "मैं कहां से कुछ कर सकता हूंमैं तो स्वयं कंगाल हूंभला मेरे पास कहां से कुछ आया|"साईं बाबा का ऐसा जवाब सुनकर सब चुप रह जातेफिर आगे कोई भी कुछ न कह पाता था
कल चर्चा करेंगे..तुम्हारी जेब में पैसा-ही-पैसा
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.