ॐ श्री साँई राम जी
श्री साँई जी की जीवन गाथा
प्रथमेः वन्दन "गणपति", दूजे "शारदा" माये |
मैं हूँ मूर्ख कलकामी, ज्ञान ना मुझमें समाये |1|
साँई जी की जीवन-गाथा, बाबा जी स्वयं लिखाये |
अथाह समुद्र साँई-गाथा, मोती कैसे हम चुन पाये |2|
चाहु आज्ञा बाबा जी से, साँई चरणन शीश नवाये |
सहाई रह कर अंग संग, मार्ग दर्शन बतलाये |3|
चाहना थी जब बाबा की, स्वंय स्वपन में आये |
इच्छा साँई की खातिर, जीवन गाथा लिख पाये |4|
बाल अवस्था उम्र सोलह, प्रगटे शिर्डी आये |
रूप फकीरी ढाल के, ढंग अनोखे अपनाये |5|
रत्न दिया एक श्रध्दा का, दूजा सबूरी बतलाये |
गर पाना हो साँई को, यही सही मार्ग अपनाये |6|
अजब निराला रंग रूप, सबके मन को भाये |
कुछ समय फिर दूर रहें, अज्ञातवास मनायें |7|
अज्ञातवास रहे कोपरगाँव, तपोभूमि कहलाये |
वन में बाबा घूम रहे, व्यक्ति उदास वह पाये |8|
चाँदपाटिल की घोड़ी खोयी, चाँद शोक मनाये |
बाबा जी की कृपा से, घोड़ी चाँद फिर पाये |9|
चिमटा मार के धरती पर, फकीरा अग्नि प्रघटाये |
उस अग्नि से चिलम जला, सत्य मार्ग बतलाये |10|
पाटिल की बारात संग, शिर्डी लौट कर आये |
चाँद को निशानी में, तोता अपना थमाये |11|
बाबा जी से पाटिल फिर, एक प्रश्न पूछते जाये |
हिन्दू है या मुसलमान, कृपा कर मुझे बताये |12|
यहाँ अली दिखे दिवाली में, राम रमजान मे आये |
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, बाबा को सब भाये |13|
खण्डोबा में म्हालसापति, आओ साँई बुलाये |
गुरुस्थान पेड़ नीम तले, बाबा जी रहे बताये |14|
जिसके नीचे प्रतिदिन बाबा, रहे बैठे ध्यान लगाये |
ध्यान मग्न देख शिर्डीवासी, अचरज में पड़ जाये |15|
म्हालसापति से कहे बाबा, गर गुरू की आज्ञा पाये |
पेड़ तले दिये चार जले, फकीरा सबसे कहता जाये |16|
नाम करू स्वीकार गर, नीम तले दीप जलते पाये |
गड्डा खुदा नीम पेड़ तले, जहाँ बाबा रहे बताये |17|
देख के जलते दिये चार, दाँतो तले उंगली दबाये |
तब से बाबा शिर्डी के, श्री साँईं नाम कहाये |18|
मास्टर था इक शिर्डी मे, बच्चों को रोज पढ़ाये |
बाबा जी का भक्त था शामा, बाबा के मन भाये |19|
साँप ने काटा शामा को, पीड़ा बहुत सताये |
बाबा के मुख के वचन, विष पीड़ा हर जाये |20|
सबका मालिक एक है, यही मंत्र बतलाये |
खण्डर मस्जिद में बाबा, अध्भुत धूनी जलायें |21|
बाबा कृपा से अब मस्जिद, द्वारिकामाई कहलायें |
धूनी की उदी से सारे, कष्ट-पीड़ा मिट जाये |22|
उदी की महिमा बड़ी, रोगी के कष्ट मिटाये |
कैंसर दमा या कुष्ठ रोग, प्रसव पीड़ा भी हर जाये |23|
मात-पिता ज्ञात नहीं, बायजा माँ कहाये |
मित्र सखा कोई नहीं, तात्या भाई बताये |24|
बायजा माँ भी साँई की, सेवा करती जाये |
डाल टोकरी रोटी भाजी, जंगल ढूँढन जाये |25|
ध्यानमग्न बाबा जी के, चरणों में हाथ लगाये |
बाबा जी को नित्य वो, भोजन भी करवाये |26|
कुछ वर्षो के बाद बाबा, मस्जिद निवास बनाये |
जंगल ढूँढन कष्ट से, बायजा छूटकारा पाये |27|
कौड़ियों की सेवा करें, उनके कष्ट भगाये |
उनके दुखो को बाबा, स्वयं ही हरते जाये |28|
जात-पात और ऊँच-नीच, बाबा ना फर्क बताये |
पशु-पक्षी संग बैठ कर, बाबा जी भोजन खाये |29|
कोतवाल था गणपतराव, चाँदोलकर माँगे राये |
बाबा जी के नाम से, खतरे में हकुमत आये |30|
नर्तकी ले कर कोतवाल, साँई को परखन जाये |
बाबा लीला देख कर, अचरज में पड़ जाये |31|
एक चरण गंगा बहे, दुजे यमुना बहाये |
बाबा की आशीष पा, दास गणु कहलाये |32|
दास गणु को देख कर, चाँदोलकर गुस्साये |
साँई लीला जान कर, चरणन में शीष झुकाये |33|
मस्जिद में चाँदोलकर, साँई से अर्ज लगाये |
मैना बे-औलाद है, पुत्र रत्न वह पाये |34|
बेटी के प्रति पिता का, साँई मर्म जताये |
बाबा जी आशीष दे, जल्द पुत्र संग आये |35|
उसकी पीड़ा हरने को, बापूगीर भिजवाये |
रेल तक तो ठीक था, अब आगे कैसे जाये |36|
सफर सुगम करने को, बाबा जी रूप बनाये |
उदी पहुँचाने की खातिर, साँई तांगा लेकर जाये |37|
पुत्र रत्न प्राप्ति हुई, मैना खुशी मनाये |
चाँदोलकर भी बाबा के, भक्तों में जुड़ जाये |38|
एक बार की बात है, हैजा आतंक मचाये |
आस-पास के गाँव में, पांव पसारे जाये |39|
शिर्डीवासी बाबा जी से, रहम माँगने आये |
गेँहू पीसते देख कर, अचरज में पड़ जाये |40|
महिलाये मिल कर चार, आटे पर हक जमाये |
उनकी हरकत देखकर, बाबा जी क्रौध में आये |41|
चक्की पर गेँहू पीसें, अर्थ साँई समझाये |
उपरी भाग भक्ति का, निचला कर्म बताये |42|
चक्की की मुठिया को, बाबा ज्ञान बताये |
भवसागर रूपी चक्की से, बाबा हमें बचाये |43|
शिर्डीवासी आदेश से, आटा सीमा पर बिखराये |
लक्ष्मण रेखा रूपी आटा, हैजा दूर भगाये |44|
बायजा माँ रोगी हुई, स्वर्ग सिधारे जाये |
तात्या साँई से कहे, माँ कुछ कह नही पाये |45|
माँ के प्राणो की भिक्षा, तात्या माँगत जाये |
साँई बाबा तर्क करे, नीति के विरुध्द बताये |46|
लौटा दूँगा प्राण मैं, गर तू मुझको बतलाये |
दूनिया में कोई अमर है, घर एक मुझे बताये |47|
बाबा बैठे चिंता में, चिंता भक्तों की सताये |
चाँद पाटिल का तोता भी, वापिस लौट के आये |48|
बाबा को फिर स्मरण हुआ, चाँद की याद सताये |
बायजा माँ भी बिछड़ गई, अपने पास बुलाये |49|
साँई भक्तों से कहे, थोड़ा आराम वो पाये |
काम जरूरी है बहुत, वही करने को जाये |50|
महाल्सा से बाबा कहे, गर साँई लौट ना पाये |
यही था यही रहूँगा, मास्टर श्यामा से लिखवाये |51|
कुछ पल की लम्बी निद्रा, समाधी रूप धर जाये |
बहत्तर घंटे बीत गये, साँई भक्तन घबराये |52|
तब निद्रा से जागे साँई, सारा हाल सुनाये |
तांगे से उदी पहुँचा, "बायजा" "पाटिल" से मिल आये |53|
बच्चा एक लोहारन का, अग्नि में गिर जाये |
हाथ डाल कर धूनी में, बाबा जी उसे बचाये |54|
हाथ जला जब बाबा का, पीड़ा ना मुख पर आये |
भक्त थे फिर भागो जी, बाबा की सेवा पाये |55|
बालक था एक खापर्ड़े, रहा प्लेग उसे सताये |
गिल्टियाँ पड़ गई प्लेग की, छूने से ज्ञात हो जाये |56|
बादल बहु आकाश में, बाबा जी यह समझाये |
बादल छटते ही गगन, पुन: स्वच्छ हो जाये |57|
कहते हुए बाबा कमर तक, कफनी रहे उठाये |
गिल्टियाँ चार दिखा कर बोले, कष्ट साँई सह जाये |58|
अपने भक्तो की खातिर, साँई कष्ट रहे अपनाये |
भक्तो के कष्ट मेरे है, साँई जी कहते जाये |59|
भूखे पेट ना रह सके, जिसमें प्राण समायें |
भोजन ना हो पेट में, तो ध्यान वही रह जाये |60|
बाबा जी व्रत और उपवास, दोनो ही व्यर्थ बताये |
खाली पेट भोजन बिना, भजन भी रस ना पाये |61|
सीमित भोज परोसिये, कि भोजन व्यर्थ ना जाये |
आप भी भूखे ना रहे, अतिथी भी भोजन पाये |62|
कर्म हो पिछले जन्म के, या इस जन्म कमायें |
लेखा झोखा कर्मों का, हर प्राणी पूर्ण निभाये |63|
कष्ट लिखे जो भाग्य में, उसको सहता जाये |
प्राणी वो ही सफल है, जो पूर्ण जीवन बिताये |64|
अपना जीवन अपने हाथो, कभी ना स्वयं गवायें |
आत्महत्या महापाप है, साँई जी ये बतलाये |65|
कष्टों से हो के परेशान, गर जीवन तू गवाँये |
वही कष्ट फिर पुनर्जन्म, तेरे पीछे पीछे आये |66|
बाबा जी का नित्य ही, मन में स्मरण लाये |
इस मामूली परिश्रम से, आनन्दी फल पाये |67|
सात समुद्र पार के भी, भक्तों को खींचे जाये |
पाँव बंधे चिड़िया के जैसे, और खींची चली आये |68|
अम्मीर शक्कर बान्द्रा निवासी, बाबा की शरण में आये |
कष्ट था उनका असहनीय, गठिया का रोग सताये |69|
नौ माह बाबा आज्ञा से, चावड़ी में ही बस जाये |
मौका पा एक रात अम्मीर, सब छोड़ के भाग जाये |70|
कोपरगाँव की धर्मशाला में, रहे एक रात बिताये |
एक फकीर प्यासा बहुत, पानी रहे उसे पिलाये |71|
पानी पीते उस फकीर के, प्राण-पखेरू उड़ जाये |
भय का मारा अम्मीर शक्कर, लौट के शिर्डी आये |72|
गया था बाबा से बिन पुछे, अब बैठा पछताये |
फिर बाबा की कृपा पा, रोग से मुक्ति पाये |73|
बाबा जी भी चमत्कार, अजब अनोखे दिखाये |
दिये जलाये पानी से, कभी चिलम से दमा भगाये |74|
हो शिर्डी को जाना, या वापिस लौट के आये |
लौटे जब कभी शिर्डी से, साँई से आज्ञा पाये |75|
शिर्डी की पावन भूमी, कण-कण में साँई समाये |
बाबा की आज्ञा बिना, पत्ता भी हिल ना पाये |76|
बिन आज्ञा जो शिर्डी से, वापिस लौट के आये |
अवहेलना साँई आज्ञा की, दुष्परिणाम बन जाये |77|
बाबा की महिमा बड़ी, हर दिल में बस जाये |
बुलावे कभी भक्तो को, पहुँच स्वंय कभी जाये |78|
शामा जी काशी-प्रयाग, और गया को जाये |
तस्वीर रूप में बाबा को, पहले ही वहाँ पाये |79|
हो सफर कैसा भी, साँई जी सफल बनाये |
बाबा जी की भक्ति से, मंजिल अपनी पा जाये |80|
बाबा जी को पेड़ पौधे, हरियाली बहुत सुहाये |
अपने हाथों बीज-सींच कर, लेंडी बाग बनाये |81|
एक बार लेंडी बाग में, झुंड बकरों का आये |
दो बकरे उस झुंड मे, बाबा के मन को भाये |82|
प्रेम-पूर्वक हाथ फेर, शरीर उनका सहलाये |
अपने संग ले जाने को, रुपये बत्तीस चुकाये |83|
चंद लोग बाबा को देख, कौसने में लग जायें |
दो बकरों की कीमत तो, रुपये आठ ही आये |84|
साँई कहे ना कोई स्त्री, ना ही घर हम बनाये |
मेरा तो कोई नहीं, पैसे जोड़े फिर क्युँ जाये |85|
दाम चुका चार सेर दाल, बाजार से बाबा मँगायें |
खिला-पिला कर बकरो को, मालिक को रहे लौटाये |86|
देख अनोखा ये बर्ताव, बाबा से पूछे जाये |
ममता भरा प्रेम बकरों से, बाबा हमे बताये |87|
भाई थे ये पूर्व जन्म, इक-दूजे की जान लिवाये |
दूष्कर्मो के कारण ही, पुर्नजन्म बकरों का पाये |88|
त्रिलोकी स्वामी साँई, शिव सम रूप बनाये |
सटका थामें एक हाथ, टमरेल दूजे मे पाये |89|
चोला फकीरी टमरेल हाथ ले, भिक्षा माँगन जाये |
अल्लाह मालिक राम राम, सबको कहते जाये |89|
पाँच घरों से भिक्षा माँगें, लौट के मस्जिद आये |
अपने हाथों पका के भोजन, निर्धन को खिलाये |90|
कुछ घरों से भिक्षा पाये, कुछ से गाली खायें |
रूप फकीरी धारे बाबा, कुछ ने पत्थर बरसाये |91|
मैं मूर्ख हूँ कह चुका, साँई गाथा कैसे गाये |
साँई बाबा की लीला, कोई भी समझ ना पाये |92|
जो कुछ भी साँई बाबा, भिक्षा के रूप में लाये |
किसी को दस पन्द्रह या बीस, साँई जी बाँटते जाये |93|
बाबा की महिमा देखो, सब पर कृपा बरसाये |
बाबा की आशीष पा, भक्त बहुत हर्षाये |94|
बाबा जी को व्यक्ति वो, ना फूटी आँख सुहाये |
जो मदिरा सेवन करे, या उसका पान कराये |95|
प्रति तीजे दिन साँई जी, मस्जिद से दूरी पर जाये |
आँतें उदर से बाहर कर, धौने में लग जाये |96|
आँतों को कर साफ फिर, बरगद पर रहे सुखाये |
इस क्रिया के साक्षी कई, शिर्डी मे आज भी पाये |97|
एक रोज एक महाशय, जब द्वारिकामाई आये |
बाबा जी के अंगो को, पृथक पृथक वह पाये |98|
साँई का हो गया कत्ल, सोचा ये शोर मचाये |
पर सूचना देने वाला ही, पहले पकड़ा जाये |99|
ये सोच कर महाशय जी, बस चुप्पी साधे जाये |
अगले दिन मस्जिद गये, बाबा को स्वस्थ वह पाये |100|
बाबा को भक्तों के संग, देख के वह चकराये |
जो देखा आँखो से कल, कहीं स्वपन तो नही आये |101|
शिर्डी की सुन्दर गलियों में, बच्चों संग खेल रचाये |
खेले गोटी, आँख मिचोली, कुश्ती मन को भाये |102|
महाल्सा, तात्या संग बाबा, मस्जिद मे रात बिताये |
सिर पूर्व, पश्चिम और उत्तर, पैर से पैर मिलाये |103|
प्रेमपूर्वक चर्चा कर के, बातें करते जाये |
सो जाये गर एक भी, तो दूजा उसे जगाये |104|
चार हाथ लम्बा हथेली चौड़ा, डेंगले तख्ता लाये |
बाबा जी स्वीकार करे, निंद्रासन उसे बनाये |105|
उल्टे बाबा चिन्दियों संग, बाँस का झूला बनाये |
बाबा झूलत तख्ते पर, सुख निद्रा का पाये |106|
चिन्दियाँ थी कमजोर बहुत, तख्ते का भार ना पाये |
कैसे बाबा भार संग, तख्ता भी झूला जाये |107|
शिर्डीवासी दंग थे, रहस्य ऐसा दिखाये |
बाबा की लीला को देखन, भीड़ उमड़ी जाये |108|
लोगो की इस हरकत से, बाबा सकते में आये |
तख्त तोड़ फेंका बाहर, भूमी पर शयन बिछाये |109|
एक रात मस्जिद रहे, दूजी चावड़ी बिताये |
पर पीड़ा हरने की खातिर, बाबा धूनी रमाये |110|
राधा कृष्णा माई जी, बाबा की भक्त कहाये |
अपने हाथों सवाँर कर, द्वारिकामाई सजाये |111|
बाबा जी को नित्य वो, भोजन भी करवाये |
प्रथम भोज बाबा जी को, फिर वो भोजन पाये |112|
ब्रह्मचर्य जीवन बाबा का, शाँत चित्त वह पाये |
पुरूषो को भ्राता कहे, स्त्री को माता बताये |113|
ब्रह्म ज्ञान की चाह में, सेठ मस्जिद में आये |
बाबा से विनती करे, ब्रह्म ज्ञान वह पाये |114|
बाबा जी पूछे प्रश्न, सेठ जी मुझे बतलाये |
जेब भरी थी पैसो से, फिर क्यों तुम झुठलाये |115|
बालक एक तुम्हारी जब, शरण मदद कल आये |
कुछ पैसो की खातिर, था रहा वो हाथ फैलाये |116|
इंकार किया मदद से तुमने, खाली जेब बतलाये |
ब्रह्म ज्ञान कैसे मिले, वश इंद्री कर ना पाये |117|
पाना हो गर ब्रह्म ज्ञान, पाँचो इंद्रियाँ वश लाये |
प्राणो संग बुध्दि और मन, अहंकार भी मिटाये |118|
भक्तो में मन चाह थी, चावड़ी उत्सव मनाये |
दिसम्बर दस उन्नीस सौ नौ, शुभ घड़ी वह आये |119|
एक तरफ तुलसी वृंदावन, रथ दूजी और सजाये |
बाबा जी के भक्तगण, रस भजनों का बरसाये |120|
मृदंग मंजीरों और ढोल संग, ताल से ताल मिलाये |
मस्जिद का पावन आँगन, जयकारो संग गूँजा जाये |121|
बाबा विराजित गादी पर, बगल में सटका दबाये |
चल दिये बाबा टोली संग, काँधे झोली लटकाये |122|
एक सुनहरी जरी दुशाला, तात्या बाबा को ओढ़ाये |
लकड़िया डाल के धूनी में, दीपक बाये हाथ बुझाये |123|
चल दिये बाबा चावड़ी को, भक्तन बहु हर्षाये |
ऐसा हो प्रतीत अब, दीपावली उत्सव मनाये |124|
बाबा जी की लीला का, अंत ना कोई पाये |
बच्चे पहुचे मस्जिद में, दीपावली मनाये |125|
बाबा भी हर्षित हुए, बच्चों संग मिल जाये |
दीपावली मनाने को, दीपक तेल मंगवाये |126|
बनियों ने दुत्तकार दिया, बाबा तेल ना पाये |
दीपावाली की शाम को, साँई पानी से दीप जलाये |127|
बाबा के इक भक्त थे, नाम मेघा कहाये |
बाबा के स्नान के लिये, उन्नीस कोस वो जाये |128|
घाघर सिर पे धर के, गोदावरी जल लाये |
अपने हाथों से मेघा, बाबा को स्नान कराये |129|
बाबा का आदेश था मेघा, केवल शीश भिगाये |
पलटी जब घाघर सिर पर, शरीर ना भीगने पाये |130|
साँई की सेवा पा कर, मेघा खुशी मनाये |
ले आज्ञा साँई से फिर, माथे पर तिलक लगाये |131|
क्रिया थी ये प्रतिदिन की, बस मेघा हक पाये |
बाबा जी के मुख से स्वंय, मेघा जी भक्त कहाये |132|
मेघा जी थे परम भक्त, बाबा के मन बस जाये |
त्याग शरीर मेघा गये, बाबा भी नीर बहाये |133|
मेघा था मेरा सच्चा भक्त, बाबा जी स्वंय बताये |
खर्चे अपने से बाबा, मृत्यु-भोज ब्राह्मण करवाये |134|
जो लिखा हो भाग्य में, वह तो स्वंय मिल जाये |
जो किस्मत मे नहीं लिखा, साँई जी वह दिलवाये |135|
एक बगीचा बाबा जी, मस्जिद के बगल बनाये |
अपने हाथों सींच कर, अति सुन्दर फूल लगाये |136|
बाबा जी के एक भक्त थे, बूटी सरकार कहाये |
श्री कृष्ण मन्दिर बने, उनको विचार ये आये |137|
यह सुन कर बाबा जी, सोचने कुछ लग जाये |
बाबा जी इस मुद्रा में, रहे मंद-मंद मुस्काये |138|
आने वाले कल की चिंता, बूटी क्युँ तुम्हे सताये |
कुछ तो अगले पल पे छोड़, समय ही तुझे बताये |139|
कौन विराजे इस मन्दिर में, स्वंय ज्ञात हो जाये |
मन्दिर कृष्ण का बने यहाँ, सब दर्शन करने आये |140|
मन्दिर निर्माण के मध्य में, साँई महासमाधी लगाये |
आज उसी मन्दिर में साँई, बैठे आसन स्वंय लगाये |141|
भक्तों की विपदा हरे, कष्टों को दूर भगाये |
वह पावन स्थान अब, समाधी मन्दिर कहलाये |142|
अक्टूबर की पन्द्रह तिथि, उन्नीस सौ अठराह आये |
मंगलवार की थी दोपहरी, समय ढाई बज जाये |143|
शिर्डीवासी सब मग्न थे, मिलकर त्यौहार मनाये |
बुध्द पूर्णिमा मोहर्रम, और विजयादशमी भी आये |144|
विजयादशमी के दिन सभी, उत्सव में डूबे जाये |
बाबा जी के पास लक्ष्मीबाई, बैठी भोजन लगाये |145|
एक निवाला ही बाबा की, शाँत भूख कर जाये |
आदेश दिया फिर गणु को, बाकी भक्तो मे बँट जाये |146|
बाबा जी के शरीर मे, एक कँपन सा उठ जाये |
देख दृश्य यह लक्ष्मी बाई, आँखो से नीर बहाये |147|
लक्ष्मी को चिंतित देख कर, साँई जी पास बुलाये |
साँई की हालत देख कर, आँखें तेरी क्युँ भर आये |148|
आया ही कब था मैं पगली, दूर जो तुम से जाये |
बाबा को भिक्षा देने वाली, आज साँई से भिक्षा पाये |149|
कफनी मे हाथ डाल कर, नौ सिक्के रहे थमाये |
"श्रवण" "कीर्तन" "नाम स्मरण", "सेवा" जो कर पाये |150|
"अर्चना" "वंदन "दास" फिर, "सखा" बन "निवेदन" आये |
नवधा भक्ति के नौ रूप ये, लक्ष्मी साँई जी से पाये |151|
पर्व तीनो थे एक ही दिन, कुछ खास घड़ी बतलाये |
बाबा यह कहने लगे, उचित दिन है अब आये |152|
अपनी ही अंतिमयात्रा की, बाबा योजना बनाये |
छोड़ पिंजरा रूपी शरीर, महासमाधी अपनाये |153|
पिंजरा खाली छोड़ कर, बाबा जी स्वर्ग को जाये |
बूटी को साँई जी कहे, मुझे वाड़े में ही सुलाये |154|
कृष्ण मन्दिर के स्थान पर, बाबा मुरलीधर बन जाये |
धन्य धन्य है बूटी वाड़ा, कण कण में साँई समाये |155|
बाबा जी की शिर्डी में, लाखों भक्त रोज आये |
बिन माँगे ही अपनी झोलियाँ, भर भर के ले जाये |156|
साँई की मस्जिद मे देखो, भक्त ऐसी अलख लगाये |
रामनवमी ईद और दीवाली, सब मिलजुल कर मनाये |157|
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, सब शिर्डी में आये |
सबका मालिक एक है, सबमें साँई समाये |158|
कई कथायें ऐसी ही, किस कथा का गुण ना गाये |
सही सही बातें सभी, श्री साँई सच्चरित्र बताये |159|
नतमस्तक हूँ कृपावंत हूँ, साँई का स्वपन जो आये |
बाबा जी के आदेश से, साँई गाथा लिख पाये |160|
क्षमा याचना साँई चरणों में, त्रुटि मेरी बिसराये |
इस साँई गाथा को भक्तन, हृदय में अपने बसाये |161|
नित्य पठन जीवन गाथा का, जो भी ध्यान में लाये |
बाबा जी की हो कृपा, परम आनन्द वह पाये |162|
।। श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।