ॐ सांँई राम जी
श्री साँई चरणों में एक अरदास
किस विधि करूं मैं तेरी पूजा
किस विधि देवा तुझे रिझाऊँ
नंगे पाँव मैं चल कर आऊँ
या व्रत रख कर तुझे मनाऊँ
मूर्ख हूँ मैं ये मैंने प्रभु माना
पर अब मैं तुझे पाने की विधि जानूं
भूखे को भोजन प्यासे को पानी
निर्वस्त्र को पहले दुशाला ओढ़ाऊं
पहले भेंट तेरे नाम की चढ़ाऊँ
तब तेरे दर का पट खुला मैं पाऊँ
क्युं ना करूं चाकरी तेरी
भाये मुझे भाकरी तेरी
नीम के मीठे पत्ते तेरे
दुख हर लेते सारे मेरे
नियत सच्ची और दिल हो खरा
तेरे दर की ओर मुख जिसने करा
सावन के अंधे भांति दिखे सब हरा
जिसके सिर पर साँई नाथ हाथ धरा
हाथ रखे सिर पर साँई
नहीं मामूली सी बात
धर्म कर्म के काम जो करें
मिलती उसे ही ये सौगात
सिर पर हाथ फिरा कर साँई
गिलहरी कर दो ज्युँ राम ने कर दी
शबरी के झुठे बेर भी खा कर
उसकी दुनिया खुशहाल कर दी
ढुंढे मन क्यों तेरा बावला
साँई सदा तेरे आस पास हैं
नज़र ना आये तो गम ना कर
वे तो सिर्फ एक अहसास हैं
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे
सब है साँई के चौबारे
हम ही फर्क करे धर्म का
साँई यहां नित्य फेरा मारे
नाविक के भांति श्रध्दा रख नांव में
तेरी दुनिया खुशहाल करेंगे साँई
जीवन अपना अर्पण कर साँई छांव में
(ऐसा कहा जाता है कि प्रभु श्री राम जी के द्वारा हाथ फेरने के बाद ही गिलहरी के शरीर पर रेखायें अंकित हुई थी)