ॐ सांँई राम जी
ना हसीं का साथी ना गम का साथ
कोई ना मीत अपना सब पैसे की सौगात
लेकर देने का दस्तूर पुराना है मेरे दोस्त
एक साँई ही रखते है सिर पर सच्चा हाथ
मांग रहा सब जग साँई से
मैं मांगू साँई, बस साँई से
पिता तुल्य भगवान श्री साँई
हर फर्ज निभाते धर रूप माई
मांगू हाथ फैला, बिछा कर पल्ला
मैं क्या मांगू किछु स्थिर ना रहा
गर एक नजर डाल दे मेरा साँई
मेरा मुझमे कुछ फिर ना रहा
मुझमे अवगुण साँई नाथ बहुतेरे
तार मेरी नईया ओ माधव मेरे
तेरी कृपा के तार बजा कर
कर दे दूर अब मन के अंधेरे
करता कारक तुम हो स्वामी
मैं हूँ मूर्ख ठहरा खलकामी
करोगे उजला मेरा भी मन
बस एक बार साँई भर दो हामी
मेरी कलम उठे तेरा नाम लिखे
सबके भाग्य साँई आप लिखे
पुण्य भी डाल दो दास की झोली
अब तक तो नसीब में बस पाप लिखे
पापी पाप कमा रहे, करे ढोल पीट गुणगान
अंतर्यामी सद्गुरु साँई तू है सब जानी जान
करदे कृपा की वर्षा अब तो मेरे भाग्य विधाता
डाल कर मेरे इस नीरस जीवन में प्राण
तेरा मेरा, मेरा तेरा नाता जन्म जन्म का
कृपा जो हो तेरी मेरे साँई तार बजे इस मन का
सुर की नदिया बहे कर कलकल
नाम रहे जिव्हा पर तेरा हर पल
साँई साँई जपते जपते
लू मै आखिरी सांस
तेरा दास बन गणु कहाऊँ
बस इतनी सी है अरदास
दास गणु बनू तेरी महफिल का
ऐसी मुझ बदनसीब की तकदीर कहाँ
कुत्ता ही बना लो अपने दर का साँई
पूंछ से जमीं साफ करूं पग रखे भक्त जहाँ