रजनी ने परमात्मा का हुकम मानकर और पति को परमेश्वर समझकर एक टोकरे में डालकर सिर पर उठा लिया और माँग कर अपने और पति का पेट पालने लगी| इस तरह मांगती हुई गुरु के चक आगई और दुःख भंजन बेरी के नीचे कच्चे सरोवर के पास अपने पति का टोकरा रखकर लंगर लेने चली गई| पिंगले ने देखा उस सरोवर में कौए नहाकर सफेद हो गए हैं| यह चमत्कार देखकर पिंगला भी अपने टोकरे से निकलकर रींग-रींग कर पानी में चला गया और लेट गया| अच्छी तरह लेटने के बाद उसका शरीर सुन्दर और आरोग हो गया| वह उठकर टोकरे के पास बैठ गया|
इतनी देर में उसकी पत्नी भी आ गई| उसने उस पुरुष से अपने पति के बारे में पूछा जिसे वह वहाँ छोड़ कर गई थी| उस पुरुष ने कहा कि मैं ही तुम्हारा पति हूँ जिसे तुम यहाँ छोड़ कर गई थी| उसने सारी बात अपनी पत्नी को बताई कि किस तरह कौए नहाकर सफेद हो गए और मैंने भी कौए के देखकर ऐसा ही किया और आरोग हो गया|
परन्तु रजनी को उसकी बात पर यकीन ना हुआ और वह दोनों ही गुरु रामदास जी के पास चले गए| गुरु जी ने पिंगले कि बात सुनकर कहा - येही तेरा पति है तुम भ्रम मत करो| यह तुम्हारे विश्वास, पतिव्रता और तीर्थ यात्रा की शक्ति का ही परिणाम है कि वह आरोग हो गया है| गुरु साहिब के वचनों पर यकीन करके वह दोनों पति-पत्नी सेवको के साथ मिलकर सेवा करने लगे| तभी उसे अपने पिता कि बात याद आई कि वह पिता को ठीक ही कहती थी कि परमात्मा ही सब कुछ देने और करने वाला है| इंसान के हाथ कुछ नहीं है| अपने सतगुरु की ऐसी मेहर देखकर दोनों ने अपना जीवन गुरु को अर्पण कर दिया|