शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday 31 March 2020

भाग्यवान है मानव तुझको, सिमरन को जिह्वा है मिली

ॐ साईं राम



राम साईं राम साईं राम साईं राम
शाम साईं शाम साईं शाम साईं शाम
भाग्यवान है मानव तुझको
सिमरन को जिह्वा है मिली
मन में जगा ले नाम की ज्योति
ये काया है मिटने चली
राम साईं राम साईं राम साईं राम
शाम साईं शाम साईं शाम साईं शाम


जग जा अब भी ओ प्राणी
ये समय गुज़रता जायेगा
ये माटी का पुतला इक दिन
माटी में मिल जायेगा
राम साईं राम साईं राम साईं राम
शाम साईं शाम साईं शाम साईं शाम
झूठी धन दौलत पे प्राणी
क्यों इतराए घड़ी घड़ी
मन में जगा ले नाम की ज्योति
ये काया है मिटने चली
राम साईं राम साईं राम साईं राम
शाम साईं शाम साईं शाम साईं शाम
इसी नाम की नाव पे तर गयी
कृष्ण भक्त मीरा बाई
पी गयी विष का प्याला फिर भी
उसको मौत नहीं आई
राम साईं राम साईं राम साईं राम
शाम साईं शाम साईं शाम साईं शाम
मन में रख श्रद्धा सबुरी
करता जा तू सबकी भली
मन में जगा ले नाम की ज्योति
ये काया है मिटने चली
राम साईं राम साईं राम साईं राम
शाम साईं शाम साईं शाम साईं शाम

यह पेशकश बहन रविंदर गोएल जी के द्वारा प्रस्तुत की जा रही है

माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है|

ॐ सांँई राम

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं 

माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है| इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह काला होता है| बाल बिखरे हुए हैं| गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है| इनके तीन नेत्र हैं| ये तीनो नेत्र ब्रम्हांड के समान गोल हैं| इनके श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं| इनका वाहन गदर्भ (गधा) है| ऊपर उठे दाहिने हाथ से सबको वर प्रदान करती हैं| दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है| बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है| माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है परन्तु ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं| इसलिए इनसे किसी भी प्रकार से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है |

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Monday 30 March 2020

साईं नाम जप ले बन्दे तर जायेगा

ॐ सांई राम



साईं नाम साईं नाम जपता जा,
साईं राम साईं राम रटता जा
साईं नाम जप ले बन्दे तर जायेगा
टूट गयी गर डोर तो फिर पछतायेगा
माटी का चोला माटी बन जायेगा
बन जायेगा, बन जायेगा, बन जायेगा
टूट गयी गर डोर तो फिर पछतायेगा

सारा जीवन तू डोला, कभी राम नाम नI बोला
सारा जीवन तू डोला, कभी राम नाम नI बोला
बड़ी मुश्किल से मिलता है, मानव का ये चोला
हीरा जन्म अमोल तू यूँ ही गवायेगा,
टूट गयी गर डोर तो फिर पछतायेगा
साईं नाम जप ले बन्दे तर जायेगा,
टूट गयी गर डोर तो फिर पछतायेगा

तेरे पाप पुण्य का लेखा, सब साईं ने है देखा
तेरे पाप पुण्य का लेखा, सब साईं ने है देखा
कर दे साईं को अर्पण, अपने कर्मों का लेखा
कर्मों का फल इस, जनम में ही कट जायेगा
टूट गयी गर डोर तो फिर पछतायेगा
साईं नाम जप ले बन्दे तर जायेगा
टूट गयी गर डोर तो फिर पछतायेगा
अब तो बन्दे तू संभल जा, इस जीवन में कुछ कर जा
साईं चरणों में आ के, भव सागर से तू तर जा
चाह के भी फिर तू , कुछ ना कर पायेगा
टूट गयी गर डोर, तो फिर पछतायेगा
साईं नाम जप ले, बन्दे तर जायेगा
टूट गयी गर डोर, तो फिर पछतायेगा
माटी का चोला, माटी बन जायेगा
बन जायेगा, बन जायेगा, बन जायेगा
टूट गयी गर डोर, तो फिर पछतायेगा

माँ दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है|

ॐ सांई राम

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं 

माँ दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है | इनका कात्यायनी नामप पड़ने की कथा इस प्रकार है - कत नाम के एक प्रसिद्ध महार्षि थे | उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए | इन्ही कात्य के गोत्र में महार्षि कात्यायन उत्पन हुए थे | इन्होने भगवती पराम्बा की बहुत कठिन उपासना की थी | उनकी इच्छा थी की माँ भगवती उनके घर पुत्री रूप में जन्म ले | माँ भगवती ने उनकी ये प्रार्थना स्वीकार कर ली | कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया जब ब्रम्हा, विष्णु, महेश तीनो ने अपने अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन किया | इन देवी ने महार्षि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लिया | महार्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की | इसी कारण ये कात्यायनी कहलाई |

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Sunday 29 March 2020

यूँ ही एक दिन चलते-चलते सांई से हो गई मुलाकात।

ॐ सांई राम


यूँ ही एक दिन चलते-चलते सांई से हो गई मुलाकात।
 जब अचानक सांई सच्चरित्र की पाई एक सौगात।


 फिर सांई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार।
 तब सांई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार।
 सांई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला।
 सांई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला।
 घर में गूँजने लगी हर वक्त सांई गान की धुन।
 
मन के तार झूमने लगे सांई धुन को सुन।
 धीरे-धीरे सांई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा।
 और सांई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा।
 सांई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगी फिदा।
 अब मेरे सांई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा।
 हर घङी मिलता रहे मुझे सांई का संतसंग।

 सांई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग।
 सांई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश।
 सांई मेरे प्राण हैं और सांई ही मेरे ईश।
 भेदभाव से दूर रहूँ,शुद्ध हो मेरे विचार।
 सांई ज्ञान की जीवन में बहती रहे ब्यार |

माँ दुर्गा जी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है |

ॐ सांई राम

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं

माँ दुर्गा जी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है | ये भगवान स्कन्द " कुमार कार्तिकेय " नाम से भी जाने जाते हैं | ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे | पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है | इनका वाहन मयूर है | इन्ही भगवान स्कन्द की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है |


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Saturday 28 March 2020

दया की चादर तन पे डाले, सांई तुम भगवान हो,

ॐ सांई राम


दया की चादर तन पे डाले,
सांई तुम भगवान हो,
दीन दुखी के मालिक तुम हो,
धरती पर वरदान हो,
दर्श दिखा के अब सुख देदो,
तुम जीवन हो प्राण हो...

दया की चादर तन पे डाले,
सांई तुम भगवान हो,
दीन दुखी के मालिक तुम हो,
धरती पर वरदान हो,
दर्श दिखा के अब सुख देदो,
तुम जीवन हो प्राण हो...

सांई तुम्हरा नाम मन्त्र है,
रिद्दि सिद्दि है दोनो साथ,
नहीं जगत में जिसका कोई,
उसके स्वामी उसके नाथ...

अंधकार में तुम दीपक हो,
अंधकार में तुम दीपक हो,
गीत का तुम ञान हो...

दया की चादर तन पे डाले,
सांई तुम भगवान हो,
दीन दुखी के मालिक तुम हो,
धरती पर वरदान हो,
दर्श दिखा के अब सुख देदो,
तुम जीवन हो प्राण हो...

हर दिल की दौलत तुम सांई,
सब के दिल में तुम हो रहते,
भक्तों की रक्षा करते हो,
खुद सारी पीङा हो सहते...

फटा है चौला तन का बाबा,
फटा है चौला तन का बाबा,
फिर भी तुम धनवान हो...

दया की चादर तन पे डाले,
सांई तुम भगवान हो,
दीन दुखी के मालिक तुम हो,
धरती पर वरदान हो,
दर्श दिखा के अब सुख देदो,
तुम जीवन हो प्राण हो...

दया की चादर तन पे डाले,
सांई तुम भगवान हो...

सब की मंज़िल तुम हो बाबा,
सब को मंज़िल तुम देते हो,
जो जिसने जब भी मांगा है,
भर भर अंजल तुम देते हो...

चरण तुम्हारे नारायण है,
चरण तुम्हारे नारायण है,
तुम रत्नों की खान हो...

दया की चादर तन पे डाले,
सांई तुम भगवान हो,
भक्तों की तुम शान हो,
तुम गीता हो कुराण हो...

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माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है |

ॐ सांई राम

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं 



माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है |
अपनी मंद हलकी हंसी द्वारा अंड अर्थात ब्रम्हांड को उत्पन करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है | जब सृष्टि का आस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार था, तब इन्ही देवी ने अपने हास्य से सृष्टि की रचना की थी | इस कारण यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि-शक्ति हैं | इनसे पूर्व ब्रम्हांड का आस्तित्व था ही नहीं |


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Friday 27 March 2020

भोला है सांई बाबा भोला है सांई

ॐ सांई राम


भोला है सांई बाबा भोला है सांई
तुमसा कोई ना दाता तू ही जग का सुखदाता
तुमने ही सारे जग की बिगड़ी सँवारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई

जाकर शिरडी विराजै खन खन खन चिमटा बाजै
सिर पर है मुकुट विराजै अंग पर है कुर्ता राजै
संग में संगत विराजै शोभा है न्यारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई

भक्तों के दुख निवारे पल में सब काज सँवारे
सांई है भोला भाला सांई जग से निराला
लेकर कर चिमटा चल ये संगत है प्यारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई

कितना भी हो कोई पापी कितना भी हो परतापी
तुमने ना अन्तर की माँ जिसने जो माँगा दीन्हा
लेकर विभूति चलिये बाबा द्वारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई
तुमसा कोई ना दाता तू ही जग का सुखदाता
तुमने ही सारे जग की बिगड़ी सँवारी
भोला है सांई बाबा भोला है सांई

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माँ दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है|

ॐ सांई राम

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक बधाई 


 माँ दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है | नवरात्रि-उपासना में तीसरे दिन इन्ही के विग्रह का पूजन आराधन किया जाता है | इनका यह स्वरूप परम शक्तिदायक और कल्याणकारी है | इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है | इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है | इसके शरीर का रंग स्वर्ण के सामान चमकीला है | इनके दस हाथ है | इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शास्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं | इनका वाहन सिंह है | इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उधयत रहने वाली होती है | इनके घंटे की-सी भयानक चंडध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं |

Thursday 26 March 2020

माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी का है |

ॐ सांई राम

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं

माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी का है | यहाँ ब्रम्हाश शब्द का अर्थ तपस्या है | ब्रम्हचारिणी अर्थात तप की चारिनी (तप का आचरण करने वाली) ब्रम्हचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है | इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बहिने हाथ में कमण्डल रहता है | अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान् शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी | दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रम्हचारिणी नाम से अभिहित किया गया |

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श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 45 - संदेह निवारण

ॐ सांई राम



आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम  घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 45 - संदेह निवारण

काकासाहेब दीक्षित का सन्देह और आनन्दराव का स्वप्न, बाबा के विश्राम के लिये लकड़ी का तख्ता।


प्रस्तावना

गत तीन अध्यायों में बाबा के निर्वाण का वर्णन किया गया है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि अब बाबा का साकार स्वरुप लुप्त हो गया है, परन्तु उनका निराकार स्वरुप तो सदैव ही विघमान रहेगा । अभी तक केवल उन्हीं घटनाओं और लीलाओं का उल्लेख किया गया है, जो बाबा के जीवमकाल में घटित हुई थी । उनके समाधिस्थ होने के पश्चात् भी अनेक लीलाएँ हो चुकी है और अभी भी देखने में आ रही है, जिनसे यह सिदृ होता है कि बाबा अभी भी विघमान है और पूर्व की ही भाँति अपने भक्तों को सहायता पहुँचाया करते है । बाबा के जीवन-काल में जिन व्यक्तियों को उनका सानिध्य या सत्संग प्राप्त हुआ, यथार्थ में उनके भाग्य की सराहना कौन कर सकता है । यदि किसी को फिर भी ऐंद्रिक और सांसारिक सुखों से वैराग्य प्राप्त नहीं हो सका तो इस दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है । जो उस समय आचरण में लाया जाना चाहिये था और अभी भी लाया जाना चाहिये, वह है अनन्य भाव से बाबा की भक्ति । समस्त चेतनाओं, इन्द्रिय-प्रवृतियों और मन को एकाग्र कर बाबा के पूजन और सेवा की ओर लगाना चाहिये । कृत्रिम पूजन से क्या लाभ । यदि पूजन या ध्यानादि करने की ही अभिलाषा है तो वह शुदृ मन और अन्तःकरण से होनी चाहिये ।

जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री का विशुदृ प्रेम अपने पति पर होता है, इस प्रेम की उपमा कभी-कभी लोग शिष्य और गुरु के प्रेम से भी दिया करते है । परन्तु फिर भी शिष्य और गुरु-प्रेम के समक्ष पतिव्रता का प्रेम फीका है और उसकी कोई समानता नहीं की जा सकती । माता, पिता, भाई या अन्य सम्बन्धी जीवन का ध्येय (आत्मसाक्षात्कार) प्राप्त करने में कोई सहायता नहीं पहुँचा सकते । इसके लिये हमें स्वयं अपना मार्ग अन्वेषण कर आत्मानुभूति के पथ पर अग्रसर होना पड़ता है । सत्य और असत्य में विवेक, इहलौकिक तथा पारलौकिक सुखों का त्याग, इन्द्रियनिग्रह और केवल मोक्ष की धारणा रखते हुए अग्रसर होना पड़ता है । दूसरों पर निर्भर रहने के बदले हमें आत्मविश्वास बढ़ाना उचित है । जब हम इस प्रकार विवेक-बुद्घि से कार्य करने का अभ्यास करेंगे तो हमें अनुभव होगा कि यह संसार नाशवान् और मिथ्या है । इस प्रकार की धारणा से सांसारिक पदार्थों में हमारी आसक्ति उत्तरोत्तर घटती जायेगी और अन्त में हमें उनसे वैराग्य उत्पन्न हो जायेगा । तब कहीं आगे चलकर यह रहस्य प्रकट होगा कि ब्रहृ हमारे गुरु के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं, वरन् यथार्थ में वे ही सदवस्तु (परमात्मा) है और यह रहस्योदघाटन होता है कि यह दृश्यमान जगत् उनका ही प्रतिबिम्ब है । अतः इस प्रकार हम सभी प्राणियों में उनके ही रुप का दर्शन कर उनका पूजन करना प्रारम्भ कर देते है और यही समत्वभाव दृश्यमान जगत् से विरक्ति प्राप्त करानेवाला भजन या मूलमंत्र है । इस प्रकार जब हम ब्रहृ या गुरु की अनन्यभाव से भक्ति करेंगे तो हमें उनसे अभिन्नता की प्राप्ति होगी और आत्मानुभूति की प्राप्ति सहज हो जायेगी । संक्षेप में यह कि सदैव गुरु का कीर्तन और उनका ध्यान करना ही हमें सर्वभूतों में भगवत् दर्शन करने की योग्यता प्रदान करता है और इसी से परमानंद की प्राप्ति होती है । निम्नलिखित कथा इस तथ्य का प्रमाण है ।


काकासाहेब दीक्षित का सन्देह और आनन्दराव का स्वप्न

यह तो सर्वविदित ही है कि बाबा ने काकासाहेब दीक्षित को श्री एकनाथ महाराज के दो ग्रन्थ

1.श्री मदभागवत और

2.भावार्थ रामायण

का नित्य पठन करने की आज्ञा दी थी । काकासाहेब इन ग्रन्थों का नियमपूर्वक पठन बाबा के समय से करते आये है और बाबा के सम्धिस्थ होने के उपरान्त अभी भी वे उसी प्रकार अध्ययन कर रहे । एक समय चौपाटी (बम्बई) में काकासाहेब प्रातःकाल एकनाथी भागवत का पाठ कर रहे थे । माधवराव देशपांडे (शामा) और काका महाजनी भी उस समय वहाँ उपस्थित थे तथा ये दोनों ध्यानपूर्वक पाठ श्रवण कर रहे थे । उस समय 11वें स्कन्ध के द्घितीय अध्याय का वाचन चल रहा था, जिसमें नवनाथ अर्थात् ऋषभ वंश के सिद्घ यानी कवि, हरि, अंतरिक्ष, प्रबुदृ, पिप्पलायन, आविहोर्त्र, द्रुमिल, चमस और करभाजन का वर्णन है, जिन्होंने भागवत धर्म की महिमा राजा जनक को समझायी थी । राजा जनक ने इन नव-नाथों से बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछे और इन सभी ने उनकी शंकाओं का बड़ा सन्तोषजनक समाधान किया था, अर्थात् कवि ने भागवत धर्म, हरि ने भक्ति की विशेषताएँ, अतंरिक्ष ने माया क्या है, प्रबुदृ ने माया से मुक्त होने की विधि, पिप्लायन ने परब्रहृ के स्वरुप, आविहोर्त्र ने कर्म के स्वरुप, द्रुमिल ने परमात्मा के अवतार और उनके कार्य, चमस ने नास्तिक की मृत्यु के पश्चात् की गति एवं करभाजन ने कलिकाल में भक्ति की पद्घतियों का यथाविधि वर्णन किया । इन सबका अर्थ यही था कि कलियुग में मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र साधन केवल हरिकीर्तन या गुरु-चरणों का चिंतन ही है । पठन समाप्त होने पर काकसाहेब बहुत निराशापूर्ण स्वर में माधवराव और अन्य लोगों से कहने लगे कि नवनाथों की भक्ति पदृति का क्या कहना है, परन्तु उसे आचरण में लाना कितना दुष्कर है । नाथ तो सिदृ थे, परन्तु हमारे समान मूर्खों में इस प्रकार की भक्ति का उत्पन्न होना क्या कभी संभव हो सकता है । अनेक जन्म धारण करने पर भी वैसी भक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती तो फिर हमें मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकेगा । ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे लिये तो कोई आशा ही नहीं है । माधवराव को यह निराशावादी धारणा अच्छी न लगी । व कहने लगे कि हमारा अहोभाग्य है, जिसके फलस्वरुप ही हमें साई सदृश अमूल्य हीरा हाथ लग गया है, तब फिर इस प्रकार का राग अलापना बड़ी निन्दनीय बात है । यदि तुम्हें बाबा पर अटल विश्वास है तो फिर इस प्रकार चिंतित होने की आवश्यकता ही क्या है । माना कि नवनाथों की भक्ति अपेक्षाकृत अधिक दृढ़ा और प्रबल होगी, परन्तु क्या हम लोग भी प्रेम और स्नेहपूर्वक भक्ति नहीं कर रहे है । क्या बाबा ने अधिकारपूर्ण वाणी में नहीं कहा है कि श्रीहरि या गुरु के नाम जप से मोक्ष की प्राप्ति होती है । तब फिर भय और चिन्ता को स्थान ही कहाँ रह जाता है । परन्तु फिर भी माधवराव के वचनों से काकासाहेब का समाधान न हुआ । वे फिर भी दिन भर व्यग्र और चिन्तित ही बने रहे । यह विचार उनके मस्तिष्क में बार-बार चक्कर काट रहा था कि किस विधि से नवनाथों के समान भक्ति की प्राप्ति सम्भव हो सकेगी ।

एक महाशय, जिनका नाम आनन्दराव पाखाडे था, माधवराव को ढूँढते-ढूँढते वहाँ आ पहुँचे । उस समय भागवत का पठन हो रहा था । श्री. पाखाडे भी माधवराव के समीप ही जाकर बैठ गये और उनसे धीरे-धीरे कुछ वार्ता भी करने लगे । वे अपना स्वप्न माधवराव को सुना रहे थे । इनकी कानाफूसी के कारण पाठ में विघ्न उपस्थित होने लगा । अतएव काकासाहेब ने पाठ स्थगित कर माधवराव से पूछा कि क्यों, क्या बात हो रही है । माधवराव ने कहा कि कल तुमने जो सन्देह प्रगट किया था, यह चर्चा भी उसी का समाधान है । कल बाबा ने श्री. पाखाडे को जो स्वप्न दिया है, उसे इनसे ही सुनो । इसमें बताया गया है कि विशेष भक्ति की कोई आवश्यकता नही, केवल गुरु को नमन या उनका पूजन करना ही पर्याप्त है । सभी को स्वप्न सुनने की तीव्र उत्कंठा थी और सबसे अधिक काकासाहेब को । सभी के कहने पर श्री. पाखाडे अपना स्वप्न सुनाने लगे, जो इस प्रकार है – मैंने देखा कि मैं एक अथाह सागर में खड़ा हुआ हूँ । पानी मेरी कमर तक है और अचानक ही जब मैंने ऊपर देखा तो साईबाबा के श्री-दर्शन हुए । वे एक रत्नजटित सिंहासन पर विराजमान थे और उनके श्री-चरण जल के भीतर थे । यह सुन्र दृश्य और बाबा का मनोहर स्वरुप देक मेरा चित्त बड़ा प्रसन्न हुआ । इस स्वप्न को भला कौन स्वप्न कह सकेगा । मैंने देखा कि माधवराव भी बाबा के समीप ही खड़े है और उन्होंने मुझसे भावुकतापूर्ण शब्दों में कहा कि आनन्दराव । बाबा के श्री-चरणों पर गिरो । मैंने उत्तर दिया कि मैं भी तो यही करना चाहता हूँ । परन्तु उनके श्री-चरण तो जल के भीतर है । अब बताओ कि मैं कैसे अपना शीश उनके चरणों पर रखूँ । मैं तो निस्सहाय हूँ । इन शब्दों को सुनकर शामा ने बाबा से कहा कि अरे देवा । जल में से कृपाकर अपने चरण बाहर निकालिये न । बाबा ने तुरन्त चरण बाहर निकाले और मैं उनसे तुरन्त लिपट गया । बाबा ने मुझे यह कहते हुये आशीर्वाद दिया कि अब तुम आनंदपूर्वक जाओ । घबराने या चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं । अब तुम्हारा कल्याण होगा । उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि एक जरी के किनारों की धोती मेरे शामा को दे देना, उससे तुम्हें बहुत लाभ होगा । बाबा की आज्ञा को पूर्ण करने के लिये ही श्री. पाखाडे धोती लाये और काकासाहेब से प्रार्थना की कि कृपा करके इसे माधवराव को दे दीजिये, परन्तु माधवराव ने उसे लेना स्वीकार नहीं किया ।

उन्होंने कहा कि जब तक बाबा से मुझे कोई आदेश या अनुमति प्राप्त नहीं होती, तब तक मैं ऐसा करने में असमर्थ हूँ । कुछ तर्क-वतर्क के पश्चात काका ने दैवी आदेशसूचक पर्चियाँ निकालकर इस बात का निर्णय करने का विचार किया । काकासाहेब का यह नियम था कि जब उन्हें कोई सन्देह हो जाता तो वे कागज की दो पर्चियों पर स्वीकार-अश्वीकार लिखकर उसमेंसे एक पर्ची निकालते थे और जो कुछ उत्तर प्राप्त होता था, उसके अनुसार ही कार्य किया करते थे । इसका भी निपटारा करने के लिये उन्होंने उपयुक्त विधि के अनुसार ही दो पर्चियाँ लिखकर बाबा के चित्र के समक्ष रखकर एक अबोध बालक को उसमें से एक पर्ची उठाने को कहा । बालक द्घारा उठाई गई पर्ची जब खोलकर देखी गई तो वह स्वीकारसूचक पर्ची ही निकली और तब माधवराव को धोती स्वीकार करनी पड़ी । इस प्रकार आनन्दराव और माधवराव सन्तुष्ट हो गये और काकासाहेब का भी सन्देह दूर हो गया ।

इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अन्य सन्तों के वचनों का उचित आदर करना चाहिये, परन्तु साथ ही साथ यह भी परम आवश्यक है कि हमें अपनी माँ अर्थात् गुरु पर पूर्ण विश्वास रखस उनके आदेशों का अक्षरशः पालन करना चाहिये, क्योंकि अन्य लोगों की अपेक्षा हमारे कल्याण की उन्हें अधिक चिन्ता है ।

बाबा के निम्नलिखित वचनों को हृदयपटल पर अंकित कर लो – इस विश्व में असंख्य सन्त है, परन्तु अपना पिता (गुरु) ही सच्चा पिता (सच्चा गुरु) है । दूसरे चाहे कितने ही मधुर वचन क्यों न कहते हो, परन्तु अपना गुरु-उपदेश कभी नहीं भूलना चाहिये । संक्षेप में सार यही है कि शुगृ हृदय से अपने गुरु से प्रेम कर, उनकी शरण जाओ और उन्हें श्रद्घापूर्वक साष्टांग नमस्कार करो । तभी तुम देखोगे कि तुम्हारे सम्मुख भवसागर का अस्तित्व वैसा ही है, जैसा सूर्य के समक्ष अँधेरे का ।



बाबा की शयन शैया-लकड़ी का तख्ता

बाबा अपने जीवन के पूर्वार्द्घ में एक लकड़ी के तख्ते पर शयन किया करते थे । वह तख्ता चार हाथ लम्बा और एक बीता चौड़ा था, जिसके चारों कोनों पर चार मिट्टी के जलते दीपक रखे जाया करते थे । पश्चात् बाबा ने उसके टुकड़े टुकडे कर डाले थे । (जिसका वर्णन गत अध्याय 10 में हो चुका है ) । एक समय बाबा उस पटिये की महत्ता का वर्णन काकासाहेब को सुना रहे थे, जिसको सुनकर काकासाहेब ने बाबा से कहा कि यदि अभी भी आपको उससे विशेष स्नेह है तो मैं मसजिद में एक दूसरी पटिया लटकाये देता हूँ । आप सूखपूर्वक उस पर शयन किया करें । तब बाबा कहने लगे कि अब म्हालसापति को नीचे छोड़कर मैं ऊपर नहीं सोना चाहता । काकासाहेब ने कहा कि यदि आज्ञा दें तो मैं एक और तख्ता म्हालसापति के लिये भी टाँग दूँ ।

बाबा बोले कि वे इस पर कैसे सो सकते है । क्या यह कोई सहज कार्य है जो उसके गुण से सम्पन्न हो, वही ऐसा कार्य कर सकता है । जो खुले नेत्र रखकर निद्रा ले सके, वही इसके योग्य है । जब मैं शयन करता हूँ तो बहुधा म्हालसापति को अपने बाजू में बिठाकर उनसे कहता हूँ कि मेरे हृदय पर अपना हाथ रखकर देखते रहो कि कहीं मेरा भगवज्जप बन्द न हो जाय और मुझे थोड़ा- सा भी निद्रित देखो तो तुरन्त जागृत कर दो, परन्तु उससे तो भला यह भी नहीं हो सकता । वह तो स्वंय ही झपकी लेने लगता है और निद्रामग्न होकर अपना सिर डुलाने लगता है और जब मुझे भगत का हाथ पत्थर-सा भारी प्रतीत होने लगता है तो मैं जोर से पुकार कर उठता हूँ कि ओ भगत । तब कहीं वह घबड़ा कर नेत्र खोलता है । जो पृथ्वी पर अच्छी तरह बैठ और सो नहीं सकता तथा जिसका आसन सिदृ नहीं है और जो निद्रा का दास है, वह क्या तख्ते पर सो सकेगा । अन्य अनेक अवसरों पर वे भक्तों के स्नेहवश ऐसा कहा करते थे कि अपना अपने साथ और उसका उसके साथ ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
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===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Wednesday 25 March 2020

दुर्गा पूजा के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना की जाती है.

ॐ सांई राम

आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं

प्रथम माँ शैलपुत्री

दुर्गा पूजा के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना इस मंत्र द्वारा की जाती है.

मां दुर्गा की पहली स्वरूपा और शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के पूजा के साथ ही दुर्गा पूजा आरम्भ हो जाता है. नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ इनकी ही पूजा और उपासना की जाती है. माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प रहता है. नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना प्रारंभ होता है. पौराणिक कथानुसार मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर कन्या रूप में उत्पन्न हुई थी. उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह भगवान् शंकर से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया. अपने मां और बहनों से मिलने को आतुर मां सती बिना निमंत्रण के ही जब पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और भोलेनाथ के प्रति तिरस्कार से भरा भाव मिला. मां सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकी और वहीं योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर दिया और अगले जन्म में शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को माँ शैलपुत्री कहा जाता है.

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भज ले मन में साई परम मंगल साई

ॐ सांई राम


भज ले मन में साई परम मंगल साई
साई राम साई श्याम साई राम साई श्याम साई राम,
भज ले मन में साई परम मंगल साई ,
शुभ का संकेत जग में साश्वत एक ही मेरे साई राम
साई राम साई श्याम.......


युगों युगों के बाद कलयुग में तेरा अवतार यह ,
स्वामी दत्तात्रेय दिगंबर साई साक्षातकार यह
जग में हर जाती धरम का तुझ को ही करता परनाम
शुभ का संकेत जग में साश्वत एक ही मेरे साई राम ...
साई राम साई श्याम ॥

तेरे आगे बूँद है हम तू तो ज्ञान का सागर
हम है मिटटी और कंकर मोतियों की तू गागर
सारे जग में मेरे साई जैसा न कोई समान
शुभ का संकेत जग में....

साई सांसों की है धड़कन साई ही बस मेरे तन मन
साई धन दौलत इमां साई को जीवन है अर्पण
साई दे सुख शान्ति मन को साई दे आराम
शुभ का संकेत जग में साश्वत ....

तू ही ब्रह्मा तू ही विष्णु तू ही शिव मलहारी
तू ही चालक तू ही पालक तू ही तो संधारी
अखिल श्रृष्टि के चराचर में बसे मेरे साई श्याम
शुभ का संकेत जग में साश्वत ...

दे हमें कुछ ऐसी दृष्टि जिससे हम तुझे देख ले
तेरे आशिर वचन से हम ज्ञान थोड़ा बाँट ले
आयें है इस जग में तो कुछ पुण्य का करते है
शुभ का संकेत जग में साश्वत ......


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Tuesday 24 March 2020

जप ले मन एक नाम साईराम साईराम

ॐ सांई राम




जप ले मन एक नाम साईराम साईराम
शत शत तुझको प्रणाम साईराम साईराम
साईराम साईराम नित्य कहो साईराम


मंत्र एक सत्यकाम साईराम साईराम
जप ले मन एक नाम साईराम साईराम

मन की अभिलाष यही वाणी तेरी सुने
आँखों की प्यास यही दर्शन तेरा मिले
सांसो में तेरे नाम का गुंजन रहे
यही अर्ज सुबह शाम साईराम साईराम
जप ले मन एक नाम साईराम साईराम

तुझ से जो भी मिला वोह तेरा ही भक्त बना
तेरी लीलाओं से शिर्डी भी तीर्थ बना
जिसके कण कण में बसा तेरा ही मधुर नाम
वही नाम शान्ति धाम साईराम साईराम
जप ले मन एक नाम साईराम साईराम

नाम की लीला अपार नाम की महिमा अन्नंत
निस दिन जो नाम जपे दुखो का होवे अंत
सबने ही स्वीकारा हों फ़कीर चाहे संत
सभी लेत वही नाम साईराम साईराम

जप ले मन एक नाम साईराम साईराम
शत शत तुझको प्रणाम साईराम साईराम
साईराम साईराम नित्य कहो साईराम
मंत्र एक सत्यकाम 
साईराम साईराम

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Monday 23 March 2020

जन्नत श्री गुरु के चरणों में है तो इसका कब और कैसे अनुभव होता है?

ॐ सांई राम



जन्नत श्री गुरु के चरणों में है तो इसका कब और कैसे अनुभव होता है?

श्री गुरु के जीवनकाल में उनके चरणों की पूजा करना, पाद-सेवन करना नवधा भक्ति में से एक भक्ति भाव है! श्री गुरु के समाधि लेने के पश्चात् उनके चरणों का ध्यान किया जा सकता है ! केवल चरणों का ही नहीं, बाबा के अनुसार "चरणों से सर तक, और सर से चरणों तक का ध्यान करना चाहिए" गुरु-चरणों को मन में रखने का अभिप्राय हमारे दास-भाव, से है! यहाँ हम समभाव, बंधू-भाव नहीं रखते, बल्कि दास भाव रखते है, चरण पूजा का मतलब है - दास भाव, मतलब गुरु के वचनों का अनुसरण और बिना पूछे उनके आदेशो का पालन करना!
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Sunday 22 March 2020

तेरी शिर्डी में चले आए है साई बाबा

ॐ सांई राम



तेरी शिर्डी में चले आए है साई बाबा
अपने दरबार में थोडी सी जगह तो दे दे

तेरे होते हुए मैं क्योँ हूँ बेगानों की तरह
दर् बदर घूमा करूँ क्यूँ मैं दीवानों की तरह
सब का मालिक है तो मेरी भी अरज को सुन ले
तेरी शिर्डी में चले आए है साई बाबा
साई साई साई तेरे साई बाबा सबका मालिक एक है ...

मुझ पे क्या बीत रही साई बताने आया
कोई सुनता ही नही तुमको सुनाने आया
मेरे इस हाल पे बाबा तू नज़र कर दे
तेरी शिर्डी में चले आए है साई बाबा

तू दयावान भी है साई निगेवान भी है
मेरी मंजिल भी है तू मेरा तो ईमान भी है
मैं हूँ ठुकराया हुआ मुझ पे तरस तो कर ले
तेरी शिर्डी में चले आये है साई बाबा ...

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Saturday 21 March 2020

कौन आता है शिरडी मेरे लिये, सभी आते यहां पे अपने लिये,

ॐ सांई राम


कौन आता है शिरडी मेरे लिये,
सभी आते यहां पे अपने लिये,
कौन करता किसी के लिये,
सब ही कहते है सांई मेरे लिये.

कौन आता है शिरडी मेरे लिये
सभी आते यहां पे अपने लिये..

मेरे दिल में है उनकी चाहत भरी,
जो सब ही के काम आता है,
मुझे उनसे भी शिकवा नहीं है कोई,
मागते है जो खुशिया अपने लिये,
और करता नहीं कुछ भी रब के लिये.

कौन आता है शिरडी मेरे लिये
सभी आते यहां पे अपने लिये..

मैं तो खुद एक फकीर हूँ तुमहे क्या मैं दूँ,
फकीरी की मस्ती में रमता रहूँ,
मैं तो बन्दा हूँ उनका मैं किससे कहूँ,
अल्ल्हा मालिक के कहने से करता रहूं,
भला हो सब ही का ये है चाहत मेरी,
ऐसे भक्तों की झोली मैं भरता रहूं.

कौन आता है शिरडी मेरे लिये
सभी आते यहां पे अपने लिये..

सुन लेता हूँ मैं भी सभी की कही,
भले हो बुरे हो या जो कोई,
सब के रंज़ो सितम भी सहूं,
और मौला से मेरी मैं कहता रहूं,
भर दे झोली तूं उनकी मेरे नाम से,
और गुनाह को तूं उनके ज़रा बक्श दे.

कौन आता है शिरडी मेरे लिये
सभी आते यहां पे अपने लिये..

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Friday 20 March 2020

राम किसी का श्याम किसी का

ॐ सांई राम


किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला
जाकि जैसी भक्ति बाबा वैसा ही रंग डाला
रंग डाला सांई ने रंग डाला

किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला
जाकि जैसी भक्ति बाबा वैसा ही रंग डाला
रंग डाला सांई ने रंग डाला
किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला

तेरे कितने रुप है देवा जिसने की जैसी सेवा
कोई जल और फूल चढ़ाता, कोई चढ़ाये मिश्री मेवा
किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला
जाकि जैसी भक्ति बाबा वैसा ही रंग डाला
रंग डाला सांई ने रंग डाला
किसी का राम किसी का श्याम किसी का

कहीं बिराजे तू सोने पर, कहीं साँई बैठा पत्थर पर
जाकी जैसी कुटिया बाबा वैसा ही पग डाला
किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला
जाकि जैसी भक्ति बाबा वैसा ही रंग डाला
रंग डाला सांई ने रंग डाला
किसी का राम किसी का श्याम किसी का


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Thursday 19 March 2020

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 43 & 44 - महासमाधि की ओर

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.) की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम  घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 43 & 44 - महासमाधि की ओर
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पूर्व तैयारी-समाधि मन्दिर, ईट का खंडन, 72 घण्टे की समाधि, जोग का सन्यास, बाबा के अमृततुल्य वचन ।


इन 43 और 44 अध्यायों में बाबा के निर्वाण का वर्णन किया गया है, इसलिये वे यहाँ संयुक्त रुप से लिखे जा रहे है ।


पूर्व तैयारी - समाधि मन्दिर
.........................
हिन्दुओं में यह प्रथा प्रचलित है कि जब किसी मनुष्य का अन्तकाल निकट आ जाता है तो उसे धार्मिक ग्रन्थ आदि पढ़कर सुनाये जाते है । इसका मुख्य कारण केवल यही है कि जिससे उसका मन सांसारिक झंझटों से मुक्त होकर आध्यात्मिक विषयों में लग जाय और वह प्राणी कर्मवश अगले जन्म में जिस योनि को धारण करे, उसमें उसे सदगति प्राप्त हो । सर्वसाधारण को यह विदित ही है कि जब राजा परीक्षित को एक ब्रहृर्षि पुत्र ने शाप दिया और एक सप्ताह के पश्चात् ही उनका अन्तकाल निकट आया तो महात्मा शुकदेव ने उन्हें उस सप्ताह में श्री मदभागवत पुराण का पाठ सुनाया, जिससे उनको मोक्ष की प्राप्ति हुई । यह प्रथा अभी भी अपनाई जाती है । महानिर्वाण के समय गीता, भागवत और अन्य ग्रन्थों का पाठ किया जाता है । बाबा तो स्वयं अवतार थे, इसलिये उन्हें बाहृ साधनों की आवश्यकता नहीं थी, परन्तु केवल दूसरों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करने के हेतु ही उन्होंने इस प्रथा की उपेक्षा नहीं की । जब उन्हें विदित हो गया कि मैं अब शीघ्र इस नश्वर देह को त्याग करुँगा, तब उन्होंने श्री. वझे को रामविजय प्रकरण सुनाने की आज्ञा दी । श्री. वझे ने एक सप्ताह प्रतिदिन पाठ सुनाया । तत्पश्चात ही बाबा ने उन्हें आठों प्रहर पाठ करने की आज्ञा दी । श्री. वझे ने उस अध्याय की द्घितीय आवृति तीन दिन में पूर्ण कर दी और इस प्रकार 11 दिन बीत गये । फिर तीन दिन और उन्होंने पाठ किया । अब श्री. वझे बिल्कुल थक गये । इसलिये उन्हें विश्राम करने की आज्ञा हुई । बाबा अब बिलकुल शान्त बैठ गये और आत्मस्थित होकर वे अन्तिम श्रण की प्रतीक्षा करने लगे । दो-तीन दिन पूर्व ही प्रातःकाल से बाबा ने भिक्षाटन करना स्थगित कर दिया और वे मसजिद में ही बैठे रहने लगे । वे अपने अन्तिम क्षण के लिये पूर्ण सचेत थे, इसलिये वे अपने भक्तों को धैर्य तो बँधाते रहते, पर उन्होंने किसी से भी अपने महानिर्वाण का निश्चित समय प्रगट न किया । इन दिनों काकासाहेब दीक्षित और श्रीमान् बूटी बाबा के साथ मसजिद में नित्य ही भोज करते थे । महानिर्वाण के दिन (15 अक्टूबर को) आरती समाप्त होने के पश्चात् बाबा ने उन लोगों को भी अपने निवासस्थान पर ही भोजन करके लौटने को कहा । फिर भी लक्ष्मीबाई शिंदे, भागोजी शिंदे, बयाजी, लक्ष्मण बाला शिम्पी और नानासाहेब निमोणकर वहीं रह गये । शामा नीचे मसजिद की सीढ़ियों पर बैठे थे । लक्ष्मीबाई शिन्दे को 9 रुपये देने के पश्चात् बाबा ने कहा कि मुझे मसजिद में अब अच्छा नहीं लगता है, इसलिये मुझे बूटी के पत्थर वाड़े में ले चलो, जहाँ मैं सुखपूर्वक रहूँगा । ये ही अन्तिम शब्द उनके श्रीमुख से निकले । इसी समय बाबा बयाजी के शरीर की ओर लटक गये और अन्तिम श्वास छोड़ दी । भागोजी ने देखा कि बाबा की श्वास रुक गई है, तब उन्होंने नानासाहेब निमोणकर को पुकार कर यह बात कही । नानासाहेब ने कुछ जल लाकर बाबा के श्रीमुख में डाला, जो बाहर लुढ़क आया । तभी उन्होंने जोर से आवाज लाई अरे । देवा । तब बाबा ऐसे दिखाई पड़े, जैसे उन्होंने धीरे से नेत्र खोलकर धीमे स्वर में ओह कहा हो । परन्तु अब स्पष्ट विदित हो गया कि उन्होंने सचमुच ही शरीर त्याग दिया है ।
बाबा समाधिस्थ हो गये – यह हृदयविदारक दुःसंवाद दावानल की भाँति तुरन्त ही चारों ओर फैल गया । शिरडी के सब नर-नारी और बालकगण मसजिद की ओर दौड़े । चारों ओर हाहाकार मच गया । सभी के हृदय पर वज्रपात हुआ । उनके हृदय विचलित होने लगे । कोई जोर-जोर से चिल्लाकर रुदन करने लगा । कोई सड़कों पर लोटने लगा और बहुत से बेसुध होकर वहीं गिर पड़े । प्रत्येक की आँखों से झर-जर आँसू गिर रहे थे । प्रलय काल के वातावरण में तांडव नृत्य का जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है, वही गति शिरडी के नर-नारियों के रुदन से उपस्थित हो गई । उनके इस महान् दुःख में कौन आकर उन्हें धैर्य बँधाता, जब कि उन्होंने साक्षात् सगुण परब्रहृ का सानिध्य खो दिया था । इस दुःख का वर्णन भला कर ही कौन सकता है ।
अब कुछ भक्तों को श्री साई बाबा के वचन याद आने लगे । किसी ने कहा कि महाराज (साई बाबा) ने अपने भक्तों से कहा था कि भविष्य में वे आठ वर्ष के बालक के रुप में पुनः प्रगट होंगे । ये एक सन्त के वचन है और इसलिये किसी को भी इन पर सन्देह नहीं करना चाहिये, क्योंकि कृष्णावतार में भी चक्रपाणि (भगवान विष्णु) ने ऐसी ही लीला की थी । श्रीकृष्ण माता देवकी के सामने आठ वर्ष की आयु वाले एक बालक के रुप में प्रगट हुये, जिनका दिव्य तेजोमय स्वरुप था और जिनके चारों हाथों में आयुध (शंख, चक्र, गटा और पदम) सुशोभित थे । अपने उस अवतार में भगवान श्रीकृष्ण ने भू-भार हलका किया था । साई बाबा का यह अवतार अपने बक्तों के उत्थान के लिये हुआ था । तब फिर संदेह की गुंजाइश ही कहाँ रह जाती है । सन्तों की कार्यप्रणाली अगम्य होती है । साई बाबा का अपने भक्तों के साथ यह संपर्क केवल एक ही पीढ़ी का नहीं, बल्कि यह उनका पिछले 72 जन्मों का संपर्क है । ऐसा प्रतीतत होता है कि इस प्रकार का प्रेम-सम्बन्ध विकसित करके महाराज (श्रीसाईबाबा) दौरे पर चले गये और भक्तों को दृढ़ विश्वास है कि वे शीघ्र ही पुनः वापस आ जायेंगें ।
अब समस्या उत्पन्न हुई कि बाबा के शरीर की अन्तिम क्रिया किस प्रकार की जाय । कुछ यवन लोग कहने लगे कि उनके शरीर को कब्रिस्तान में दफन कर उसके ऊपर एक मकबरा बना देना चाहिये । खुशालचन्द और अमीर शक्कर की भी यही धारणा थी, परन्तु ग्राम्य अधिकारी श्री. रामचन्द्र पाटील ने दृढ़ और निश्चयात्मक स्वर में कहा कि तुम्हारा निर्णय मुझे मान्य नहीं है । शरीर को वाड़े के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी नहीं रखा जायेगा । इस प्रकार लोगों में मतभेद उत्पन्न हो गया और वह वादविवाद 36 घण्टों तक चलता रहा ।
बुधवार के दिन प्रातःकाल बाबा ने लक्ष्मण मामा जोशी को स्वप्न दिया और उन्हें अपने हाथ से खींचते हुए कहा कि शीघ्र उठो, बापूसाहेब समझता है कि मैं मृत हो गया हूँ । इसलिये वह तो आयेगा नहीं । तुम पूजन और कांकड़ आरती करो । लक्ष्मण मामा ग्राम के ज्योतिषी, शामा के मामा तथा एक कर्मठ ब्राहृमण थे । वे नित्य प्रातःकाल बाबा का पूजन किया करते, तत्पश्चात् ही ग्राम देवियों और देवताओं का । उनकी बाबा पर दृढ़ निष्ठा थी, इसलिये इस दृष्टांत के पश्चात् वे पूजन की समस्त सामग्री लेकर वहाँ आये और ज्यों ही उन्होंने बाबा के मुख का आवरण हटाया तो उस निर्जीव अलौकिक महान् प्रदीप्त प्रतिभा के दर्शन कर वे स्तब्ध रह गये, मानो हिमांशु ने उन्हें अपने पाश में आबदृ करके जड़वत् बना दिया हो । स्वप्न की स्मृति ने उन्हें अपना कर्तव्य करने को प्रेरित कर दिया । फिर उन्होंने मौलवियों के विरोध की कुछ भी चिंता न कर विधिवत् पूजन और कांकड़ आरती की । दोपहर को बापूसाहेब जोन भी अन्य भक्तों के साथ आये और सदैव की भांति मध्याहृ की आरती की । बाबा के अन्तिम श्री-वचनों को आदरपूर्वक स्वीकार करके लोगों ने उनके शरीर को बूटी वाड़े में ही रखने का निश्चय किया और वहाँ का मध्य भाग खोदना आरम्भ कर दिया । मंगलवार की सन्ध्या को राहाता से सब-इन्स्पेक्टर और भिन्न-भिन्न स्थानो से अनेक लोग वहाँ आकर एकत्र हुए । सब लोगों ने उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया । दूसरे दिन प्रातःकाल बम्बई से अमीर भाई और कोपरगाँव से मामलेदार भी वहां आ पहुँचे । उन्होंने देखा कि लोग अभी भी एकमत नहीं है । तब उन्होंने मतदान करवाया और पाया कि अधिकांश लोगों का बहुमत वाड़े के पक्ष में ही है । फिर भी वे इस विषय में कलेक्टर की स्वीकृति अति आवश्यक समझते थे । तब काकासाहेब स्वयं अहमदनगर जाने को उघत् हो गये, परन्तु बाबा की प्रेरणा से विरक्षियों ने भी प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया और उन सबने मिलकर अपना मत भी वाड़े के ही पक्ष में दिया । अतः बुधवार की सन्ध्या को बाबा का पवित्र शरीर बड़ी धूमधाम और समारोह के साथ वाड़े मे लाया गया और विधिपूर्वक उस स्थान पर समाधि समाधि बना दी गई, जहाँ मुरलीधर की मूर्ति स्तापित होने को थी । सच तो यह है कि बाबा मुरलीधर बन गये और वाड़ा समाधि-मन्दिर तथा भक्तों का एक पवित्र देवस्थान, जहाँ अनेको भक्त आया जाया करते थे और अभी भी नित्य-प्रति वहाँ आकर सुख और शान्ति प्राप्त करते है । बालासाहेब भाटे और बाबा के अनन्य भक्त श्री. उपासनी ने बाबा की विधिवत् अन्तिम क्रिया की ।
जैसा प्रोफेसर नारके को देखने में आया, यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि बाबा का शरीर 36 घण्टे के उपरांत भी जड़ नहीं हुआ और उनके शरीर का प्रत्येक अवयव लचीला (Elastic) बना रहा, जिससे उनके शरीर पर से कफनी बिना चीरे हुए सरलता से निकाली जा सकी ।
ईंट का खण्डन
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बाबा के निर्वाण के कुछ समय पूर्व एक अपशकुन हुआ, जो इस घटना की पूर्वसूचना-स्वरुप था । मसजिद में एक पुरानी ईंट थी, जिस पर बाबा अपना हाथ टेककर रखते थे । रात्रि के समय बाबा उस पर सिर रखकर शयन करते थे । यह कार्यक्रम अने वर्षों तक चला । एक दिन बाबा की अनुपस्थिति में एक बालक ने मसजिद में झाड़ू लगाते समय वह ईंट अपने हाथ में उठाई । दुर्भाग्यवश वह ईंट उसके हाथ से गिर पड़ी और उसके दो टुकड़े हो गये । जब बाबा को इस बात की सूचना मिली तो उन्हें उसका बड़ा दुःख हुआ और वे कहने लगे कि यह ईंट नहीं फूटी है, मेरा भाग्य ही फूटकर छिन्न-भिन्न हो गया है । यह तो मेरी जीवनसंगिनी थी और इसको अपने पास रखकर मैं आत्म-चिंतन किया करता था । यह मुजे अपने प्राणों के समान प्रिय थी और उसने आज मेरा सात छोड़ दिया है । कुछ लोग यहाँ शंका कर सकते है कि बाबा को ईंट जैसी एक तुच्छ वस्तु के लिये इतना शोक क्यों करना चाहिये । इसका उत्तर हेमाडपंत इस प्रकार देते है कि सन्त जगत के उद्घार तथा दीन और अनाक्षितों के कल्याणार्थ ही अवतीर्ण होते है । जब वे नरदेह धारण करते है और जनसम्पर्कमें आते है तो वे इसी प्रकार आचरण किया करते है, अर्थात् बाहृ रुप से वे अन्य लोगों के समान ही हँसते, खेलते और रोते है, परन्तु आन्तरिक रुप से वे अपने अवतार-कार्य और उसके ध्येय के लिये सदैव सजग रहते है ।
72 घण्टे की समाधि
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इसके 32 वर्ष पूर्व भी बाबा ने अपनी जीवन-रेखा पार करने का एक प्रयास किया था । 1886 में मार्गशीर्ष को पूर्णिमा के दिन बाबा कोदमा से अधिक पीड़ा हुई और इस व्याधि से छुटकारा पाने के लिये उन्होंने अपने प्राण ब्रहृमांड में चढ़ाकर समाधि लगाने का विचार किया । अतएव उन्होंने भगत म्हालसापति से कहा कि तुम मेरे शरीर की तीन दिन तक रक्षा करना और यदि मैं वापस लौट आया तो ठीक ही है, नहीं तो उस स्थान (एक स्थान को इंगित करते हुए) पर मी समाधि बना देना और दो ध्वजायें चिन्ह स्वरुप फहरा देना । ऐसा कहकर बाबा रात में लगभग दस बजे पृथ्वी पर लेट गये । उनका श्वासोच्छवास बन्द हो गया और ऐसा दिखाई देने लगा कि जैसे उनके शरीर में प्राण ही न हो । सभी लोग, जिनमें ग्रामवासी भी थे, वहाँ एकत्रित हुए और शरीर परीक्षण के पश्चात शरीर को उनके द्घारा बताये हुए स्थान पर समाधिस्थ कर देने का निश्चय करने लगे । परन्तु भगत म्हालसापति ने उन्हें ऐसा करने से रोका और उनके शरीर को अपनी गोद में रखकर वे तीन दिन तक उसकी रक्षा करते रहे । तीन दिन व्यतीत होने पर रात को लगभग तीन बजे प्राण लौटने के चिन्ह दिखलाई पड़ने लगे । श्वसोच्छ्वास पुनः चालू हो गया और उनके अंग-प्रत्यंग हिलने लगे । उन्होंने नेत्र खोल दिये और करवट लेते हुए वे पुनः चेतना में आ गये ।
इस प्रसंग तथा अन्य प्रसंगों पर दृष्टिपात कर अब हम यह पाठकों पर छोड़ते है कि वे ही इसका निश्चय करें कि क्या बाबा अन्य लोगों की भाँति ही साढ़े तीन हाथ लम्बे एक देहधारी मानव थे, जिस देह को उन्होंने कुछ वर्षों तक धारण करने के पश्चात् छोड़ दिया, या वे स्वयं आत्मज्योतिस्वरुप थे । पंच महाभूतों से शरीर निर्मित होने के कारण उसका नाश और अन्त तो सुनिश्चित है, परन्तु जो सद्घस्तु (आत्मा) अन्तःकरण में है, वही यथार्थ में सत्य है । उसका न रुप है, न अंत है और न नाश । यही शुदृ चैतन्य घन या ब्रहृ – इन्द्रियों और मन पर शासन और नियंत्रण रखने वाला जो तत्व है, वही साई है, जो संसार के समस्त प्राणियों में विघमान है और जो सर्वव्यापी है । अपना अवतार-कार्य पूर्ण करने के लिये ही उन्होंने देह-धारण किया था और वह कार्य पूर्ण होने पर उन्होंने उसे त्याग कर पुनः अपना शाश्वत और अनंत स्वरुप धारण कर लिया । श्री दत्तात्रेय के पूर्ण अवतार-गाणगापुर के श्रीनृसिंह सरस्वती के समान श्री साई भी सदैव वर्तमान है । उनका निर्वाण तो एक औपचारिक बात है । वे जड़ और चेतन सभी पदार्थों में व्याप्त है तथा सर्व भूतों के अन्तःकरण के संचालक और नियंत्रणकर्ता है । इसका अभी भी अनुभव किया जा सकता है और अनेकों के अनुभव में आ भी चुका है, जो अनन्य भाव से उनके शरणागत हो चुके है और जो पूर्ण अंतःकरण से उनके उपासक है ।


यघपि बाबा का स्वरुप अब देखने को नहीं मिल सकता है, फिर भी यदि हम शिरडी को जाये तो हमें वहाँ उनका जीवित-सदृश चित्र मसजिद (द्घारकामाई) को शोभायमान करते हुए अब भी देखने में आयेगा । यह चित्र बाबा के एक प्रसिदृ भक्त-कलाकार श्री. शामराव जयकर ने बनाया था । एक कल्पनाशील और भक्त दर्शक को यह चित्र अभी भी बाबा के दर्शन के समान ही सन्तोष और सुख पहुँचाता है । बाबा अब देह में स्थित नहीं है, परन्तु वे सर्वभूतों में व्याप्त है और भक्तों का कल्याण पूर्ववत् ही करते रहे है, करते रहेंगे, जैसा कि वे सदेह रहकर किया करते थे । बाबा सन्तों के समान अमर है, चाहे वे नरदेह धारण कर ले, जो कि एक आवरण मात्र है, परन्तु वे तो स्वयं भगवान श्री हरि है, जो समय-समय पर भूतल पर अवतीर्ण होते है ।
बापूसाहेब जोग का सन्यास
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जोग के सन्यास की चर्चा कर हेमाडपंत यह अध्याय समाप्त करते है । श्री. सखाराम हरी उर्फ बापूसाहेब जोग पूने के प्रसिदृ वारकरी विष्णु बुवा जोग के काका थे । वे लोक कर्म विभाग (P.W.D.) में पर्यवेक्षक (Supervisor) थे । सेवानिवृति के पश्चात वे सपत्नीक शिरडी में आकर रहने लगे । उनके कोई सन्तान न थी । पति और पत्नी दोनों की ही साई चरणों में श्रद्घा थी । वे दोनों अपने दिन उनकी पूजा और सेवा करने में ही व्यतीत किया करते थे । मेघा की मृत्यु के पश्चात बापूसाहेब जोग ने बाबा की महासमाधि पर्यन्त मसजिद और चावड़ी में आरती की । उनको साठे बाड़ा में श्री ज्ञानेश्वरी और श्री एकनाथी भागवत का वाचन तथा उसका भावार्थ श्रोताओं को समझाने का कार्य भी दिया गया था । इस प्रकार अनेक वर्षों तक सेवा करने के पश्चात उन्होंने एक बार बाबा से प्रार्थना की कि – हे मेरे जीवन के एकमात्र आधार । आपके पूजनीय चरणों का दर्शन कर समस्त प्राणियों को परम शांति का अनुभव होता है । मैं इन श्री चरणों की अनेक वर्षों से निरंतर सेवा कर रहा हूँ, परन्तु क्या कारण है कि आपके चरणों की छाया के सन्निकट होते हुए भी मैं उनकी शीतलता से वंचित हूँ । मेरे इस जीवन में कौन-सा सुख है, यदि मेरा चंचल मन शान्त और स्थिर बनकर आपके श्रीचरणों में मग्न नहीं होता । क्या इतने वर्षों का मेरा सन्तसमागम व्यर्थ ही जायेगा । मेरे जीवन में वह शुभ घड़ी कब आयेगी, जब आपकी मुझ पर कृपा दृष्टि होगी ।
भक्त की प्रार्थना सुनकर बाबा को दया आ गई । उन्होंने उत्तर दिया कि थोड़े ही दिनों में अब तुम्हारे अशुभ कर्म समाप्त हो जायेंगे तथा पाप और पुण्य जलकर शीघ्र ही भस्म हो जायेंगे । मैं तुम्हें उस दिन ही भाग्यशाली समझूँगा, जिस दिन तुम ऐन्द्रिक-विषयों को तुच्छ जानकर समस्त पदार्थों से विरक्त होकर पूर्ण अनन्य भाव से ईश्वर भक्ति कर सन्यास धारण कर लोगे । कुछ समय पश्चात् बाबा के वचन सत्य सिदृ हुये । उनकी स्त्री का देहान्त हो जाने पर उनकी अन्य कोई आसक्ति शेष न रही । वे अब स्वतंत्र हो गये और उन्होंने अपनी मृत्यु के पूर्व सन्यास धारण कर अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया ।
बाबा के अमृततुल्य वचन
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दयानिधि कृपालु श्री साई समर्थ ने मस्जिद (द्घारिकामाई) में अनेक बार निम्नलिखित सुधोपम वचन कहे थे :-
जो मुझे अत्यधिक प्रेम करता है, वह सदैव मेरा दर्शन पाता है । उसके लिये मेरे बिना सारा संसार ही सूना है । वह केवल मेरा ही लीलागान करता है । वह सतत मेरा ही ध्यान करता है और सदैव मेरा ही नाम जपता है । जो पूर्ण रुप से मेरी शरण में आ जाता है और सदा मेरा ही स्मरण करता है, अपने ऊपर उसका यह ऋण मैं उसे मुक्ति (आत्मोपलबव्धि) प्रदान करके चुका चुका दूँगा । जो मेरा ही चिन्तन करता है और मेरा प्रेम ही जिसकी भूख-प्यास है और जो पहले मुझे अर्पित किये बिना कुछ भी नहीं खाता, मैं उसके अधीन हूँ । जो इस प्रकार मेरी शरण में आता है, वह मुझसे मिलकर उसकी तरह एकाकार हो जाता है, जिस तरह नदियाँ समुद्र से मिलकर तदाकार हो जाती है । अतएव महत्ता और अहंकार का सर्वथा परित्याग करके तुम्हें मेरे प्रति, जो तुम्हारे हृदय में आसीन है, पूर्ण रुप से समर्पित हो जाना चाहिये ।
यह मैं कौन है ।
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श्री साईबाबा ने अनेक बार समझाया कि यह मैं कौन है । इस मैं को ढ़ूँढने के लिये अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है । तुम्हारे नाम और आकार से परे मैं तुम्हारे अन्तःकरण और समस्त प्राणियों में चैतन्यघन स्वरुप में विघमान हूँ और यहीं मैं का स्वरुप है । ऐसा समझकर तुम अपने तथा समस्त प्राणियों में मेरा ही दर्शन करो । यदि तुम इसका नित्य प्रति अभ्यास करोगे तो तुम्हें मेरी सर्वव्यापकता का अनुभव शीघ्र हो जायेगा और मेरे साथ अभिन्नता प्राप्त हो जायेगी ।
अतः हेमाडपन्त पाठकों को नमन कर उनसे प्रेम और आदरपूर्वक विनम्र प्रार्थना करते है कि उन्हें समस्त देवताओं, सन्तों और भक्तों का आदर करना चाहिये । बाबा सदैव कहा करते थे कि जो दूसरों को पीड़ा पहुँचाता है, वह मेरे हृदय को दुःख देता है तथा मुझे कष्ट पहुँचाता है । इसके विपरीत जो स्वयं कष्ट सहन करता है, वह मुझे अधिक प्रिय है । बाबा समस्त प्राणयों में विघमान है और उनकी हर प्रकार से रक्षा करते है । समस्त जीवों से प्रेम करो, यही उनकी आंतरिक इच्छा है । इस प्रकार का विशुद्घ अमृतमय स्त्रोत उनके श्री मुख से सदैव झरता रहता था । अतः जो प्रेमपूर्वक बाबा का लीलागान करेंगे या उन्हें भक्तिपूर्वक श्रवण करेंगे, उन्हें साई से अवश्य अभिन्नता प्राप्त होगी ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.