शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Friday, 31 July 2020

मुझको साईं का दर चाहिए

ॐ सांई राम


मुझको साईं का दर चाहिए मुझको साईं का दर चाहिए
प्यार की इक नज़र चाहिए मुझको साईं का दर चाहिए


धन की तलाश है न भवन की तलाश है, सूरज को ढूंढता हूँ किरण की तलाश है
सारी उम्र जो न खर्च हो वो माल चाहिए, कुछ भी मेरी दशा हो बाहर हाल चाहिए
मुझको साईं का दर चाहिए मुझको साईं का दर चाहिए

करतार मुझ गरीब का शिर्डी नगर में है, आकार दिव्य मुखड़े का मेरी नज़र में है
सारे जगत का प्यार मिले या नहीं मिले, बैकुण्ठ की बहार मिले या नहीं मिले
मुझको साईं का दर चाहिए मुझको साईं का दर चाहिए

दुनियाँ की शान ले के भला क्या करूँगा मैं, छोटा सा ये जहां बता क्या करूँगा मैं
मेरी पसंद छीन के ये लोभ और न दे, दुनियाँ का ऐश मुझको मेरे ईश्वर न दे
मुझको साईं का दर चाहिए मुझको साईं का दर चाहिए

साईं का मुझको शोक है रोगी हूँ साईं का, साईं से मुझको प्यार है जोगी हूँ साईं का
रिश्तों की डोर मेरे किसी काम की नहीं, चिन्ता मेरे भविष्य को अंजाम की नहीं
मुझको साईं का दर चाहिए मुझको साईं का दर चाहिए

दामन में जिंदगी के निराशा के फूल क्यूँ, भूला हुआ है मेरी वफ़ा के उसूल क्यूँ
दुनियाँ का मोह स्वर्ग की चाहत नहीं मुझे, भगवन किसी ख़ुशी की ज़रुरत नहीं मुझे
मुझको साईं का दर चाहिए मुझको साईं का दर चाहिए


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं 

Thursday, 30 July 2020

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय - १२

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं। हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है । हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा। किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|


श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय - १२
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काका महाजनी, धुमाल वकील, श्रीमती निमोणकर, मुले शास्त्री, एक डाँक्टर के द्घारा बाबा की लीलाओं का अनुभव ।
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इस अध्याय में बाबा किस प्रकार भक्तों से भेंट करते और कैसा बर्ताव करते थे, इसका वर्णन किया गया हैं ।


सन्तों का कार्य
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हम देख चुके है कि ईश्वरीय अवतार का ध्येय साधुजनों का परित्राण और दुष्टों का संहार करना है । परन्तु संतों का कार्य तो सर्वथा भिन्न ही है । सन्तों के लिए साधु और दुष्ट प्रायःएक समान ही है । यथार्थ में उन्हें दुष्कर्म करने वालों की प्रथम चिन्ता होती है और वे उन्हें उचित पथ पर लगा देते है । वे भवसागर के कष्टों को सोखने के लिए अगस्त्य के सदृश है और अज्ञान तथा अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य के समान है । सन्तों के हृदय में भगवान वासुदेव निवास करते है । वे उनसे पृथक नहीं है । श्री साई भी उसी कोटि में है, जो कि भक्तों के कल्याण के निमित्त ही अवतीर्ण हुए थे । वे ज्ञानज्योति स्वरुप थे और उनकी दिव्यप्रभा अपूर्व थी । उन्हें समस्त प्राणियों से समान प्रेम था । वे निष्काम तथा नित्यमुक्त थे । उनकी दृष्टि में शत्रु, मित्र, राजा और भिक्षुक सब एक समान थे । पाठको । अब कृपया उनका पराक्रम श्रवण करें । भक्तों के लिये उन्होंने अपना दिव्य गुणसमूह पूर्णतः प्रयोग किया और सदैव उनकी सहायता के लिये तत्पर रहे । उनकी इच्छा के बिना कोई भक्त उनके पास पहुँच ही न सकता था । यदि उनके शुभ कर्म उदित नहीं हुए है तो उन्हे बाबा की स्मृति भी कभी नहीं आई और न ही उनकी लीलायें उनके कानों तक पहुँच सकी । तब फिर बाबा के दर्शनों का विचार भी उन्हें कैसे आ सकता था । अनेक व्यक्तियों की श्री साईबाबा के दर्शन सी इच्छा होते हुए भी उन्हें बाबा के महासमाधि लेने तक कोई योग प्राप्त न हो सका । अतः ऐसे व्यक्ति जो दर्शनलाभ से वंचित रहे है, यदि वे श्रद्घापूर्वक साईलीलाओं का श्रवण करेंगे तो उनकी साई-दर्शन की इच्छा बहुत कुछ अंशों तक तृप्त हो जायेगी । भाग्यवश यदि किसी को किसी प्रकार बाबा के दर्शन हो भी गये तो वह वहाँ अधिक ठहर न सका । इच्छा होते हुए भी केवल बाबा की आज्ञा तक ही वहाँ रुकना संभव था और आज्ञा होते ही स्थान छोड़ देना आवश्यक हो जाता था । अतः यह सव उनकी शुभ इच्छा पर ही अवलंबित था ।

काका महाजनी
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एक समय काका महाजनी बम्बई से शिरडी पहुँचे । उनका विचार एक सप्ताह ठढहरने और गोकुल अष्टमी उत्सव में सम्मिलित होने का था । दर्शन करने के बाद बाबा ने उनसे पूछा, तुम कब वापस जाओगे । उन्हें बाबा के इस प्रश्न पर आश्चर्य-सा हुआ । उत्तर देना तो आवश्यक ही था, इसलिये उन्होंने कहा, जब बाबा आज्ञा दे । बाबा ने अगले दिन जाने को कहा । बाबा के शब्द कानून थे, जिनका पालन करना नितान्त आवश्यक था । काका महाजनी ने तुरन्त ही प्रस्थान किया । जब वे बम्बई में अपने आफिस में पहुँचे तो उन्होंने अपने सेठ को अति उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करते पाया । मुनीम के अचानक ही अस्वस्थ हो जाने के कारण काका की उपस्थिति अनिवार्य हो गई थी । सेठ ने शिरडी को जो पत्र काका के लिये भेजा था, वह बम्बई के पते पर उनको वापस लौटा दिया गया ।

भाऊसाहेब धुमाल
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अब एक विपरीत कथा सुनिये । एक बार भाऊसाहेब धुमाल एक मुकदमे के सम्बन्ध में निफाड़ के न्यायालय को जा रहे थे । मार्ग में वे शिरडी उतरे । उन्होंने बाबा के दर्शन किये और तत्काल ही निफाड़ को प्रस्थान करने लगे, परन्तु बाबा की स्वीकृति प्राप्त न हुई । उन्होने उन्हे शिरडी में एक सप्ताह और रोक लिया । इसी बीच में निफाड़ के न्यायाधीश उदर-पीड़ा से ग्रस्त हो गये । इस कारण उनका मुकदमा किसी अगले दिन के लिये बढ़ाया गया । एक सप्ताह बाद भाऊसाहेब को लौटने की अनुमति मिली । इस मामले की सुनवाई कई महीनों तक और चार न्यायाधीशों के पास हुई । फलस्वरुप धुमाल ने मुकदमे में सफलता प्राप्त की और उनका मुवक्किल मामले में बरी हो गया ।

श्रीमती निमोणकर
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श्री नानासाहेब निमोणकर, जो निमोण के निवासी और अवैतनिक न्यायाधीश थे, शिरडी में अपनी पत्नी के साथ ठहरे हुए थे । निमोणकर तथा उनकी पत्नी बहुत-सा समय बाबा की सेवा और उनकी संगति में व्यतीत किया करते थे । एक बार ऐसा प्रसंग आया कि उनका पुत्र और अन्य संबंधियों से मिलने तथा कुछ दिन वहीं व्यतीत करने का निश्चय किया । परन्तु श्री नानासाहेब ने दूसरे दिन ही उन्हें लौट आने को कहा । वे असमंजस में पड़ गई कि अब क्या करना चाहिए, परन्तु बाबा ने सहायता की । शिरडी से प्रस्थान करने के पूर्व वे बाबा के पास गई । बाबा साठेवाड़ा के समीप नानासाहेब और अन्य लोगों के साथ खड़े हुये थे । उन्होंने जाकर चरणवन्दना की और प्रस्थान करने की अनुमति माँगी । बाबा ने उनसे कह, शीघ्र जाओ, घबड़ाओ नही, शान्त चित्त से बेलापुर में चार दिन सुखपूर्वक रहकर सब सम्बन्धियों से मिलो और तब शिरडी आ जाना । बाबा के शब्द कितने सामयिक थे । श्री निमोणकर की आज्ञा बाबा द्घारा रद्द हो गई ।

नासिक के मुने शास्त्रीः ज्योतिषी
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नासिक के एक मर्मनिष्ठ, अग्नहोत्री ब्रापमण थे, जिनका नाम मुले शास्त्री था । इन्होंने 6 शास्त्रों का अध्ययन किया था और ज्योतिष तथा सामुद्रिक शास्त्र में भी पारंगत थे । वे एक बार नागपुर के प्रसिदृ करोड़पति श्री बापूसाहेब बूटी से भेंट करने के बाद अन्य सज्जनों के साथ बाबा के दर्शन करने मसजिद में गये । बाबा ने फल बेचने वाले से अनेक प्रकार के फल और अन्य पदार्थ खरीदे और मसजिद में उपस्थित लोंगों में उनको वितरित कर दिया । बाबा आम को इतनी चतुराई से चारों ओर से दबा देते थे कि चूसते ही सम्पूर्ण रस मुँह में आ जाता तथा गुठली और छिलका तुरन्त फेंक दिया जा सकता था बाबा ने केले छीलकर भक्तों में बाँट दिये और उनके छिलके अपने लिये रख लिये । हस्तरेएखा विशारद होने के नाते, मुले शास्त्री ने बाबा के हाथ की परीक्षा करने की प्रार्थना की । परन्तु बाबा ने उनकी प्रार्थना पर कोई ध्यान न देकर उन्हें चार केले दिये इसके बाद सब लोग वाड़े को लौट आये । अब मुने शास्त्री ने स्नान किया और पवित्र वस्त्र धारण कर अग्निहोत्र आदि में जुट गये । बाबा भी अपने नियमानुसार लेण्डी को पवाना हो गये । जाते-जाते उन्होंने कहा कि कुछ गेरु लाना, आज भगवा वस्त्र रँगेंगे । बाबा के शब्दों का अभिप्राय किसी की समझ में न आया । कुछ समय के बाद बाबा लौटे । अब मध्याहृ बेला की आरती की तैयारियाँ प्रारम्भ हो गई थी । बापूसाहेब जोग ने मुले से आरती में साथ करने के लिये पूछा । उन्होंने उत्तर दिया कि वे सन्ध्या समय बाबा के दर्शनों को जायेंगे । तब जोग अकेले ही चले गये । बाबा के आसन ग्रहण करते ही भक्त लोगों ने उनकी पूजा की । अब आरती प्रारम्भ हो गई । बाबा ने कहा, उस नये ब्राहमण से कुछ दक्षिणा लाओ । बूटी स्वयं दक्षिणा लेने को गये और उन्होंने बाबा का सन्देश मुले शास्त्री को सुनाया । वे बुरी तरह घबड़ा गये । वे सोचने लगे कि मैं तो एक अग्निहोत्री ब्राहमण हूँ, फिर मुझे दक्षिणा देना क्या उचित है । माना कि बाबा महान् संत है, परन्तु मैं तो उनका शिष्य नहीं हूँ । फिर भी उन्होंने सोचा कि जब बाबा सरीखे महानसंत दक्षिणा माँग रहे है और बूटी सरीखे एक करोड़पति लेने को आये है तो वे अवहेलना कैसे कर सकते है । इसलिये वे अपने कृत्य को अधूरा ही छोड़कर तुरन् बूटी के साथ मसजिद को गये । वे अपने को शुद्घ और पवित्र तथा मसजिद को अपवित्र जानकर, कुछ अन्तर से खड़े हो गये और दूर से ही हाथ जोड़कर उन्होंने बाबा के ऊपर पुष्प फेंके । एकाएक उन्होंने देखा कि बाबा के आसन पर उनके कैलासवासी गुरु घोलप स्वामी विराजमान हैं । अपने गुरु को वहाँ देखकर उन्हें महान् आश्चर्य हुआ । कहीं यह स्वप्न तो नहीं है । नही । नही । यह स्वप्न नहीं हैं । मैं पूर्ण जागृत हूँ । परन्तु जागृत होते हुये भी, मेरे गुरु महाराज यहाँ कैसे आ पहुँचे । कुछ समय तक उनके मुँह से एक भी शब्द न निकला । उन्होंने अपने को चिकोटी ली और पुनः विचार किया । परन्तु वे निर्णय न कर सके कि कैलासवासी गुरु घोलप स्वामी मसजिद में कैसे आ पहुँचे । फिर सब सन्देह दूर करके वे आगे बढ़े और गुरु के चरणों पर गिर हाछ जोड़ कर स्तुति करने लगे । दूसरे भक्त तो बाबा की आरती गा रहे थे, परन्तु मुले शास्त्री अपने गुरु के नाम की ही गर्जना कर रहे थे । फिर सब जातिपाँति का अहंकार तथा पवित्रता और अपवित्रता कीकल्पना त्याग कर वे गुरु के श्रीचरणों पर पुनः गिर पड़े । उन्होंने आँखें मूँद ली, परन्तु खड़े होकर जब उन्होंने आँखें खोलीं तो बाबा को दक्षिणा माँगते हुए देखा । बाबा का आनन्दस्वरुप और उनकी अनिर्वचनीय शक्ति देख मुले शास्त्री आत्मविस्मृत हो गये । उनके हर्ष का पारावार न रहा । उनकी आँखें अश्रुपूरित होते हुए भी प्रसन्नता से नाच रही थी । उन्होंने बाबा को पुनः नमस्कार किया और दक्षिणा दी । मुले शास्त्री कहने लगे कि मेरे सब समशय दूर हो गये । आज मुझे अपने गुरु के दर्शन हुए । बाबा की यतह अदभुत लीला देखकर सब भक्त और मुले शास्त्री द्रवित हो गये । गेरु लाओ, आज भगवा वस्त्र रंगेंगे – बाबा के इन शब्दों का अर्थ अब सब की समझ में आ गया । ऐसी अदभुत लीला श्री साईबाबा की थी ।


डाँक्टर
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एक समय एक मामलतदार अपने एक डाँक्टर मित्र के साथ शिरडी पधारे । डाँक्टर का कहना था कि मेरे इष्ट श्रीराम हैं । मैं किसी यवन को मस्तक न नमाऊँगा । अतः वे शिरडी जाने में असहमत थे । मामलतदार ने समझाया कि तुम्हें नमन करने को कोई बाध्य न करेगा और न ही तुम्हें कोई ऐसा करने को कहेगा । अतः मेरे साथ चलो, आनन्द रहेगा । वे शिरडी पहुँचे और बाबा के दर्शन को गये । परन्तु डाँक्टर को ही सबसे आगे जाते देख और बाब की प्रथम ही चरण वन्दना करते देख सब को बढ़ा विस्मय हुआ । लोगों ले डाँक्टर से अपना निश्चय बदलने और इस भाँति एक यवन को दंडवत् करने का कारण पूछा । डाँक्टर ने बतलाया कि बाबा के स्थान पर उन्हें अपने प्रिय इष्ट देव श्रीराम के दर्शन हुए और इसलिये उन्होंने नमस्कार किया । जब वे ऐसा कह ही रहे थे, तभी उन्हें साईबाबा का रुप पुनः दीखने लगा । वे आश्चर्यचकित होकर बोले – क्या यह स्वप्न हो । ये यवन कैसे हो सकते हैं । अरे । अरे । यह तो पूर्ण योग-अवतार है । दूसरे दिन से उन्होंने उपवास करना प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक बाबा स्वयं बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगे, तब तक मसजिद में कदापि न जाऊँगा । इस प्रकार तीन दिन व्यतीत हो गये । चौथे दिन उनका एक इष्ट मित्र थानदेश से शरडी आया । वे दोनों मसजिद में बाबा के दर्शन करने गये । नमस्कार होने के बाद बाबा ने डाँक्टर से पूछा, आपको बुलाने का कष्ट किसने किया । आप यहाँ कैसे पधारे । यह जटिल और सूचक प्रश्न सुनकर डाँक्टर द्रवित हो गये और उसी रात्रि को बाबा ने उनपर कृपा की । डाँक्टर को निद्रा में ही परमानन्द का अनुभव हुआ । वे अपने शहर लौट आये तो भी उन्हें 15 दिनों तक वैसा ही अनुभव होता रहा । इस प्रकार उनकी साईभक्ति कई गुनी बढ़ गई ।
उपर्यु्क्त कथाओं की शिक्षा, विशेषतः मुले शास्त्री की, यही है कि हमें अपने गुरु में दृढ़ विश्वास होना चाहिये ।
अगले अध्याय में बाबा की अन्य लीलाओं का वर्णन होगा ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday, 29 July 2020

जहाँ जहाँ मैं जाता साई, गीत तुम्हारे गाता

ॐ सांई राम


जहाँ जहाँ मैं जाता साई
गीत तुम्हारे गाता, गीत तुम्हारे गाता


मेरे मन मन्दिर में साई, तुमने ही ज्योत जगाई
बिच भवर में उल्झी नैया, तुमने ही पार लगाई
इस दुनिया के दुखियारों से,तुमने है जोड़ा नाता
मैं गीत तुम्हारे गाता

साई मेरे तुम ना होते, हमें देता कौन सहारा
इस दुनिया की डगर डगर पर, मैं फिरता मारा मारा
जिसको किस्मत ठुकरा देती, तू उसके भाग जगाता,
मैं गीत तुम्हारे गाता

मस्जिद मन्दिर गुरुद्वारे में, साई तुम्ही हो समाये
गंगाजल और आबे जाम, तुमने ही एक बनायें,
मेरी बिनती सुन लो बाबा, कबसे तुम्हे बुलाता,
मैं गीत तुम्हारे गाता


जहाँ जहाँ मैं जाता साई
गीत तुम्हारे गाता, गीत तुम्हारे गाता
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Tuesday, 28 July 2020

साईं का नाम लिये जा

ॐ सांई राम


साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा
लिये जा लिये जा लिये जा,भक्तों का रक्षक है साईं मेरा
साईं का नाम लिये जा, बाबा का नाम लिये जा


सुनाता हूँ मैं कुछ बातें, सुनो सब ध्यान दे कर के
मेरे बाबा इक दिन बात करते थे हस करके
सभी भक्तों ने देखा उनके चेहरे पे ख़ुशी छाई
चिमटा दे के शामा को चिलम फिर उस से भरवाई
तभी इक भक्त लाया थाल भरके वो मिठाई का
उस से बाबा हस के यूं बोले क्या तेरी सगाई का
इसे है चाव शादी का ये भूखा है लुगाई का
प्रेम से थाल ये ले लो जो लाया है मिठाई का
घर में लाल पैदा हो इसको ऐसी दुआ दे दो
राख धूनी की भर के थाल में अब इसको तुम दे दो
भक्तों ने बजाई तालियाँ हसते हुये मिलके
मिठाई बाँटने बाबा लगे फिर सबको वो चल के
मिलेगी लक्ष्मी तुझको सुखी जीवन तू पायेगा
जो भूलेगा तू मालिक को तो संकट तुझ पे आएगा


सब का है वो दाता गुण तू गाये जा गाये जा जाए जा
साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा
लिये जा लिये जा लिये जा,भक्तों का रक्षक है साईं मेरा
साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा

अचानक ध्यान में खो के धूनी में हाथ दे डाला
भक्त सब थे दुखी क्यों हाथ को अपने जला डाला
देखा जल गया है हाथ उनका आज तो भारी
जो अब तक हस रहे थे मिट गई उनकी ख़ुशी सारी
कहा भक्तों ने बाबा से किया क्या आज ये तुमने
कोई नादानी भूले से अभी कुछ कर दी क्या हमने
तो बाबा हस के यूँ बोले क्या हुआ हाथ जल गया
चलो अच्छा हुआ है आज तो इक जीव बच गया
 भक्त का एक बच्चा था वो भट्टी की तरफ दौड़ा
बचाने उसको मैंने हाथ अपना था वहाँ छोड़ा


साईं नाम के प्रेम का प्याला पीये जा पीये जा पीये जा
साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा
लिये जा लिये जा लिये जा,भक्तों का रक्षक है साईं मेरा
साईं का नाम लिये जा, बाबा का नाम लिये जा

वही इक भक्त है सच्चा मेरा ही नाम जपता है
काम लोगों का कर कर के वो अपना पेट भरता है
बहुत मुद्दत से जन्मा है अभी इक लाल उस घर में
 बचाता मैं नहीं उसको तो जल जाता वो पल भर में
ध्यान जब उस तरफ गया तो मैंने हाथ बढ़ाया
मुझे कोई गम नहीं अपना ख़ुशी है उसको बचाया


वो पूरा ध्यान दे कर के कृपा भक्तों पे करते हैं
जो उनका नाम जपता है वो उनके कष्ट करते हैं
दयालु हैं बड़े शिर्डी के साईं प्रेम से बोलो
मिटाते कष्ट भक्तों का जय उनकी जोर से बोलो 


जाप साईं का करते करते जीये जा जीये जा जीये जा
साईं का नाम लिये जा, साईं का नाम लिये जा
लिये जा लिये जा लिये जा,भक्तों का रक्षक है साईं मेरा
साईं का नाम लिये जा, बाबा का नाम लिये जा


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं 

Monday, 27 July 2020

करो कबूल हमारा प्रणाम सांई जी

ॐ सांई राम


करो कबूलकरो कबूल
करो कबूल हमारा प्रणाम सांई जी

तुम्हारी एक नज़र हो तो बात बन जाए
अँधेरे मैं भी किरणरौशनी की लेहेराए
के तुमने सबके बनाए हैं काम सांई जी
तुम्हारे दर पे .........
तुमसे करता हूँ मोहबात कहा जाऊँ मैं
इस ज़माने मैं कोई तुमसा कहा पाऊ मैं
जब से देखा है के तुम दिल मैं बसे सांई जी
तुम्हारे दर पे .........

किसी गरीब कोखाली ना तुम ने लौटाया
वोह झोली भर के गयाखाली हाथ जो आया
इसीलिए तो है तुम्हारा है नाम सांई जी
तुम्हारे दर पे .........
तुम्ही तो हो जो गरीबों का हाल सुनते हो
तमाम दर्द के मारो का दर्दसुनते हो
जभी तो आता हैं हर ख़ास आम सांई जी
तुम्हारे दर पे .........

Sunday, 26 July 2020

साईं नाम ज्योति कलश, है जग का आधार।

ॐ सांई राम


साईं नाम ज्योति कलश, है जग का आधार ।
चिंतन ज्योति पुँज का करिये बारम्बार ।।


सोते जागते साईं कह, आते जाते नाम ।
मन ही मन में साईं को, शत शत करे प्रणाम ।।

देव दनुज नर नाग पशु, पक्षी कीट पतंग ।
सब में साईं समान हैं, साईं सब के संग ।।

साईं नाम वह नाव है, उस पर हो सवार ।
साईं नाम ही एक है, करता भाव से पार ।।

मंत्रमय ही मानिये, साईं राम भगवान ।
देवालय है साईं का, साईं शब्द गुण खान ।।

साईं नाम आराधिये, भीतर भर यह भाव ।
देव दया अवतरण का धार चौगुणा चाव ।।

साईं शब्द को ध्याइये, मंत्र तारक मान ।
स्वशक्ति सत्ता जग करे, ऊपरी चक्र को यान ।।

जीवन विरथा बीत गया, किया न साधन एक ।
कृपा हो मेरे साईं की, मिले ज्ञान विवेक ।।

बाबा ने अति कृपा कीन्ही, मोहे दियो समझाई ।
अहंकार को छोड़ो भाई जो तुम चाहो भलाई ।।

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं 

Saturday, 25 July 2020

नमन

ॐ सांई राम



नमन
जय जय साईं परमेश्वरा, जय जय साईं परमेश्वरा।
जय जय साईं पुरुषाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।।


जय जय साईं शंकराय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।
जय जय साईं रामाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।।

जय जय साईं माधवाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।
जय जय साईं हनुमंताय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।।

जय जय साईं आकाल पुरुषाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।
जय जय साईं नाथाय नमः, जय जय साईं परमेश्वरा।।


धुन
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय राम हरे जय राम हरे।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।

जो साईं जपे उसके पाप कटें, भवसागर को वो पार करे ।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।

जो ध्यान धरे साईं दर्शन करे, साईं उसके सारे कष्ट हरें।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।

साईं रंग रागे साईं प्रीत जगे, साईं चरणों पर जो माथ धरे ।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।

जो शरण पड़े, साईं रक्षा करे, साईं उसके सब भण्डार भरे ।
जय साईं हरे जय साईं हरे, जय साईं हरे जय साईं हरे।।


ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

Friday, 24 July 2020

साईं वाणी (भाग 8)

ॐ सांई राम


 साईं वाणी (भाग 8)
 
माता पिता बांधव सुत दारा, धन धन साजन सखा प्यारा।

अन्त काल दे सके ना सहारा, साईं नाम तेरा पालन हारा।।


आपन को न मान शरीर, तब तू जाने पर की पीड़।
घट में बाबा को पहचान, करन करावन वाला जान।।

अन्तर्यामी जा को जान, घट से देखो आठों याम ।
सिमरन साईं नाम है सँगी, सखा स्नेही सुहृद शुभ अंगी।।

युग युग का है साईं सहेला, साईं भक्त नहीं रहे अकेला।
बाधा बड़ी विषम जब आवे, बैर विरोध विघ्न बढ़ जावे।।

साईं नाम जाइये सुख दाता, सच्चा साथी जो हितकर त्राता।
पूँजी साईं नाम की पाइये, पाथेय साथ नाम ले जाइये।।

साईं जाप कहि ऊँची करनी, बाधा विघ्न बहु दुःख हरनी।
साईं नाम महा मन्त्र जपना, है सुव्रत नेम तप तपना।।

बाबा से कर सच्ची प्रीत, यह ही भक्तजनों की रीत ।
तू तो है बाबा का अंग, जैसे सागर बीच तरंग।।

दीन दुखी के सामने जिसका झुकता शीश।
जीवन भर मिलता उसे बाबा का आशीष।।

लेने वाले हाथ दो साईं के सौ द्वार 
एक द्वार को पूज ले हो जाएगा पार।।

ॐ  साईं श्री साईं जय जय साईं

Thursday, 23 July 2020

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 11

ॐ साँई राम


आप सभी को शिर्डी के साँईं बाबा ग्रुप की और से श्री साँईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साँईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साँईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साँईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साँईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साँईं चरणों में क्षमा याचना करते है

श्री साँई सच्चरित्र - अध्याय 11


सगुण ब्रहम श्री साईबाबा, डाँक्टर पंडित का पूजन, हाजी सिद्दीक फालके, तत्वों पर नियंत्रण ।
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इस अध्याय में अब हम श्री साईबाबा के सगुण ब्रहम स्वरुप, उनका पूजन तथा तत्वनियंत्रण का वर्णन करेंगे । 


सगुण ब्रहम श्री साईबाबा
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ब्रहमा के दो स्वरुप है – निर्गुण और सगुण । निर्गुण नराकार है और सगुण साकार है । यघरु वे एक ही ब्रहमा के दो रुप है, फर भी किसी को निर्गुण और किसी को सगुण उपासना में दिलचस्पी होती है, जैसा कि गीता के अध्याय 12 में वर्णन किया गया है । सगुण उपासना सरल और श्रेष्ठ है । मनुष्य स्वंय आकार (शरीर, इन्द्रय आदि) में है, इसीलिये उसे ईश्वर की साकार उपासना स्वभावताः ही सरल हैं । जब तक कुछ काल सगुण ब्रहमा की उपासना न की जाये, तब तक प्रेम और भक्ति में वृद्घि ही नहीं होती । सगुणोपासना में जैसे-जैसे हमारी प्रगति होती जाती है, हम निर्गुण ब्रहमा की ओर अग्रसर होते जाते हैं । इसलिये सगुण उपासना से ही श्री गणेश करना अति उत्तम है । मूर्ति, वेदी, अग्नि, प्रकाश, सूर्य, जल और ब्राहमण आदि सप्त उपासना की वस्तुएँ होते हुए भी, सदगुरु ही इन सभी में श्रेष्ठ हैं ।

श्री साई का स्वरुप आँखों के सम्मुख लाओ, जो वैराग्य की प्रत्यक्ष मूर्ति और अनन्य शरणागत भक्तों के आश्रयदाता है । उनके शब्दों में विश्वास लाना ही आसन और उनके पूजन का संकल्प करना ही समस्त इच्छाओं का त्याग हैं ।

कोई-कोई श्रीसाईबाबा की गणना भगवदभक्त अथवा एक महाभागवत (महान् भक्त) में करते थे या करते है । परन्तु हम लोगों के लिये तो वे ईश्वरावतार है । वे अत्यन्त क्षमाशील, शान्त, सरल और सन्तुष्ट थे, जिनकी कोई उपमा ही नहीं दी जा सकती । यघरि वे शरीरधारी थे, पर यथार्थ में निर्गुण, निराकार,अनन्त और नित्यमुक्त थे । गंगा नदी समुद्र की ओर जाती हुई मार्ग में ग्रीष्म से व्यथित अनेकों प्रगणियों को शीतलता पहुँचा कर आनन्दित करती, फसलों और वृक्षों को जीवन-दान देती और जिस प्रकार प्राणियों की क्षुधा शान्त करती है, उसी प्रकार श्री साई सन्त-जीवन व्यतीत करते हुए भी दूसरों को सान्त्वना और सुख पहुँचाते है । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है संत ही मेरी आत्मा है । वे मेरी जीवित प्रतिमा और मेरे ही विशुद्घ रुप है । मैं सवयं वही हूँ । यह अवर्णनीय शक्तियाँ या ईश्वर की शक्ति, जो कि सत्, चित्त् और आनन्द हैं । शिरडी में साई रुप में अवर्तीण हुई थी । श्रुति (तैतिरीय उपनिषद्) में ब्रहमा को आनन्द कहा गया है । अभी तक यह विषय केवल पुस्तकों में पढ़ते और सुनते थे, परन्तु भक्तगण ने शिरडी में इस प्रकार का प्रत्यक्ष आनन्द पा लिया है । बाबा सब के आश्रयदाता थे, उन्हें किसी की सहायता की आवश्यकता न थी । उनके बैठने के लिये भक्तगण एक मुलायम आसन और एक बड़ा तकिया लगा देते थे । बाबा भक्तों के भावों का आदर करते और उनकी इच्छानुसार पूजनादि करने देने में किसी प्रकार की आपत्ति न करते थे । कोई उनके सामने चँवर डुलाते, कोई वाघ बजाते और कोई पादप्रक्षालन करते थे । कोई इत्र और चन्दन लगाते, कोई सुपारी, पान और अन्य वस्तुएँ भेंट करते और कोई नैवेघ ही अर्पित करते थे । यघपि ऐसा जान पड़ता था कि उनका निवासस्थान शिरडी में है, परन्तु वे तो सर्वव्यापक थे । इसका भक्तों ने नित्य प्रति अनुभव किया । ऐसे सर्वव्यापक गुरुदेव के चरणों में मेरा बार-बार नमस्कार हैं ।


डाँक्टर पंडित की भक्ति
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एक बार श्री तात्या नूलकर के मित्र डाँक्टर पंडित बाबा के दर्शनार्थ शिरडी पधारे बाबा को प्रणाम कर वे मसजिद में कुछ देर तक बैठे । बाबा ने उन्हें श्री दादा भट केलकर के पास भेजा, जहाँ पर उनका अच्छा स्वागत हुआ । फिर दादा भट और डाँक्टर पंडित एक साथ पूजन के लिये मसजिद पहुँचे । दादा भट ने बाबा का पूजन किया । बाबा का पूजन तो प्रायः सभी किया करते थे, परन्तु अभी तक उनके शुभ मस्तक पर चन्दन लगाने का किसी ने भी साहस नहीं किया था । केवल एक म्हालसापति ही उनके गले में चन्दन लगाया करते थे । डाँक्टर पंडित ने पूजन की थाली में से चन्दन लेकर बाबा के मस्तक पर त्रिपुण्डाकार लगाया । लोगों ने महान् आश्चर्य से देघा कि बाबा ने एक शब्द भी नहीं कहा । सन्ध्या समय दादा भट ने बाबा से पूछा, क्या कारण है कि आर दूसरों को तो मस्तक पर चन्दन नहीं लगाने देते, परन्तु डाँक्टर पंडित को आपने कुछ भी नहीं कहा बाबा कहने लगे, डाँक्टर पंडित ने मुझे अपने गुरु श्री रघुनाथ महाराज धोपेश्वरकर, जो कि काका पुराणिक के नाम से प्रसिदृ है, के ही समान समझा और अपने गुरु को वे जिस प्रकार चन्दन लगाते थे, उसी भावना से उन्होंने मुझे चन्दन लगाया । तब मैं कैसे रोक सकता था । पुछने पर डाँक्टर पंडित ने दादा भट से कहा कि मैंने बाबा को अपने गुरु काका पुराणिक के समान ही डालकर उन्हें त्रिपुण्डाकार चन्दन लगाया है, जिस प्रकार मैं अपने गुरु को सदैव लगाया करता था ।
यघपु बाबा भक्तों को उनकी इच्छानुसार ही पूजन करने देते थे, परन्तु कभी-कभी तो उनका व्यवहार विचित्र ही हो जाया करता था । जब कभी वे पूजन की थाली फेंक कर रुद्रावतार धारण कर लेते, तब उनके समीप जाने का साहस ही किसी को न हो सकता था । कभी वे भक्तों को झिड़कते और कभी मोम से भी नरम होकर शान्ति तथा क्षमा की मूर्ति-से प्रतीत होते थे । कभी-कभी वे क्रोधावस्था में कम्पायमान हो जाते और उनके लाल नेत्र चारों ओर घूमने लगते थे, तथापि उनके अन्तःकरण में प्रेम और मातृ-स्नेह का स्त्रोत बहा ही करता था । भक्तों को बुलाकर वे कहा करते थे कि उनहें तो कुछ ज्ञात ही नहीं हे कि वे कब उन पर क्रोधित हुए । यदि यह सम्भव हो कि माताएँ अपने बालकों को ठुकरा दें और समुद्र नदियों को लौटा दे तो ही वे भक्तों के कल्याण की भी उपेक्षा कर सकते हैं । वे तो भक्तों के समीप ही रहते हैं और जब भक्त उन्हें पुकारते है तो वे तुरन्त ही उपस्थित हो जाते है । वे तो सदा भक्तों के प्रेम के भूखे है ।



हाजी सिद्दीक फालके
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यह कोई नहीं कह सकता था कि कब श्री साईबाबा अपने भक्त को अपना कृपापात्र बना लेंगे । यह उनकी सदिच्छा पर निर्भर था । हाजी सिद्दीक फालके की कथा इसी का उदाहरण है ।

कल्याणनिवासी एक यवन, जिनका नाम सिद्दीक फालके था, मक्का शरीफ की हज करने के बाद शिरडी आये । वे चावड़ी में उत्तर की ओर रहने लगे । वे मसजिद के सामने खुले आँगन में बैठा करते थे । बाबा ने उन्हें 9 माह तक मसजिद में प्रविष्ट होने की आज्ञा न दी और न ही मसजिद की सीढ़ी चढ़ने दी । फालके बहुत निराश हुँ और कुछ निर्णय न कर सके कि कौनसा उपाय काम में लाये । लोगों ने उन्हें सलाह दी कि आशा न त्यागो । शामा श्रीसाई बाबा के अंतरंग भक्त है । तुम उनके ही द्घारा बाबा के पास पहुँचने का प्रयत्न करो । जिस प्रकार भगवान शंकर के पास पहुँचने के लिये नन्दी के पास जाना आवश्यक होता है, उसी प्रकार बाबा के पास भी शामा के द्घारा ही पहुँचना चाहिये । फालके को यह विचार उचित प्रतीत हुआ और उन्होने शामा से सहायता की प्रार्थना की । शामा ने भी आश्वासन दे दिया और अवसर पाकर वे बाबा से इस प्रकार बोले कि, बाबा, आप उस बूढ़े हाजी को मसजिद में किस कारण नहीं आने देते । अने भक्त स्वेच्छापूर्वक आपके दर्शन को आया-जाया करते है । कम से कम एक बार तो उसे आशीष दे दो । बाबा बोले, शामा, तुम अभी नादान हो । यदि फकीर अल्लाह) नहीं आने देता है तो मै क्या करुँ । उनकी कृपा के बिना कोई भी मसजिद कीसीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकता । अच्छा, तुम उससे पूछ आओ कि क्या वह बारवी कुएँ निचली पगडंडी पर आने को सहमत है । शामा स्वीकारात्मक उत्तर लेकर पहुँचे । फर बाबा ने पुनः शामा से कहा कि उससे फिर पुछो कि क्या वह मुझे चार किश्तों में चालीस हजार रुपये देने को तैयार है । फिर शामा उत्तर लेकर लौटे कि आप कि आप कहें तो मैं चालीस लाख रुपये देने को तैयार हूँ । मैं मसजिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, उससे पूछी कि उसे क्या रुचिकर होगा – बकरे का मांस, नाध या अंडकोष । शामा यह उत्तर लेकर लौटे कि यदि बाबा के यदि बाबा के भोजन-पात्र में से एक ग्रास भी मिल जाय तो हाजी अपने को सौभाग्यशाली समझेगा । यह उत्तर पाकर बाबा उत्तेजित हो गये और उन्होंने अपने हाथ से मिट्टी का बर्तन (पानी की गागर) उठाकर फेंक दी और अपनी कफनी उठाये हुए सीधे हाजी के पास पहुँचे । वे उनसे कहने लगे कि व्यर्थ ही नमाज क्यों पढ़ते हो । अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन क्यों करते हो । यह वृदृ हाजियों के समान वे्शभूषा तुमने क्यों धारण की है । क्या तुम कुरान शरीफ का इसी प्रकार पठन करते हो । तुम्हें अपने मक्का हज का अभिमान हो गया है, परन्तु तुम मुझसे अनभिज्ञ हो । इस प्रकार डाँट सुनकर हाजी घबडा गया । बाबा मसजिद को लौट आयो और कुछ आमों की टोकरियाँ खरीद कर हाजी के पास भेज दी । वे स्वयं भी हाजी के पास गये और अपने पास से 55 रुपये निकाल कर हाजी को दिये । इसके बाद से ही बाबा हाजी से प्रेेम करने लगे तथा अपने साथ भोजन करने को बुलाने लगे । अब हाजी भी अपनी इच्छानुसार मसजिद में आने-जाने लगे । कभी-कभी बाबा उन्हें कुछ रुपये भी भेंट में दे दिया करते थे । इस प्रकार हाजी बाबा के दरबार में सम्मिलित हो गये ।

बाबा का तत्वों पर नियंत्रण
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बाबा के तत्व-नियंत्रण की दो घटनाओं के उल्लेख के साथ ही यह अध्याय समाप्त हो जायेगा ।
1. एक बार सन्ध्या समय शिरडी में भयानक झंझावात आया । आकाश में घने और काले बादल छाये हुये थे । पवन झकोरों से बह रहा था । बादल गरजते और बिजली चमक रही थी । मूसलाधार वर्षा प्रारंभ हो गई । जहाँ देखो, वहाँ जल ही जल दृष्टिगोचर होने लगा । सब पशु, पक्षी और शिरडीवासी अधिक भयभीत होकर मसजिद में एकत्रित हूँ । शिरडी में देवियाँ तो अनेकों है, परन्तु उस दिन सहायतार्थ कोई न आई । इसलिये सभी ने अपने भगवान साई से, जो भक्ति के ही भूखे थे, संकट-निवारण करने की प्रार्थना की । बाबा को भी दया आ गई और वे बाहर निकल आये । मसजिद के समीप खड़े हो जाओ । कुछ समय के बाद ही वर्षा का जोर कम हो गया । और पवन मन्द पड़ गया तथा आँधी भी शान्त हो गई । आकाश में चन्द्र देव उदित हो गये । तब सब नोग अति प्रसन्न होकर अपने-अपने घर लौट आये ।

2. एक अन्य अवसर पर मध्याहृ के समय धूनी की अग्नि इतनी प्रचण्ड होकर जलने लगी कि उसकी लपटें ऊपर छत तक पहुँचने लगी । मसजिद में बैठे हुए लोगों की समझ में न आता था कि जल डाल कर अग्नि शांत कर दें अथवा कोई अन्य उपाय काम में लावें । बाबा से पूछने का साहस भी कोई नहीं कर पा रहा था । परन्तु बाबा शीघ्र परिस्थिति को जान गये । उन्होंने अपना सटका उठाकर सामने के थम्भे पर बलपूर्वक प्रहार किया और बोले नीचो उतरो और शान्त हो जाओ । सटके की प्रत्येक ठोकर पर लपटें कम होने लगी और कुछ मिनटों  में ही धूनी शान्त और यथापूर्व हो गई । श्रीसाई ईश्वर के अवतार हैं । जो उनके सामने नत हो उनके शरणागत होगा, उस पर वे अवश्य कृपा करेंगे । जो भक्त इस अध्याय की कथायें प्रतिदिन श्रद्घा और भक्तिपूर्वक पठन करेगा, उसका दुःखों से शीघ्र ही छुटकारा हो जायेगा । केवल इतना ही नही, वरन् उसे सदैव श्रीसाई चरणों का स्मरण बना रहेगा और उसे अल्प काल में ही ईश्वर-दर्शन की प्राप्ति होकर, उसकी समस्त इच्छायें पूर्ण हो जायेंगी और इस प्रकार वह निष्काम बन जायेगा ।


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday, 22 July 2020

साईं वाणी भाग (7)

ॐ सांई राम


साईं वाणी भाग (7)

ऐसे मन जब होवे लीन, जल में प्यासी रहे न मीन ।

चित चढ़े एक रंग अनूप, चेतन हो जाये साईं स्वरूप ।।


जिसमें साईं नाम शुभ जागे, उसके पाप ताप सब भागें।
मन में साईं नाम जो उचारे, उस के भागें भ्रम भय सारे।।
 
सुख-दुःख तेरी देन हैं, सुख-दुःख में तू आप ।
रोम-रोम में हैं साईं, तू ही रहयो व्याप ।।

जय जय साईं सच्चिदानन्द, मुरली मनोहर परमानन्द ।
परब्रहम परमेश्वर गोविंदा, निर्मल पावन ज्योत अखण्ड।।

एकई ने सब खेल रचाया, जो देखो वो सब है माया ।
एको एक है भगवान, दो को तू ही माया जान ।।

बाहर भ्रम भूलेई संसार, अन्दर प्रीतम साईं अपार ।
जा को आप बजाहे भगवंत, सो ही जाने साईं अनन्त।।

जिस में बस जाए साईं सुनाम, होवे वह जैम पूरण काम ।
चित में साईं नाम जो सिमरे, निश्चय भवसागर से तरे।।

साईं सुमिरन होवे सहाई, साईं सुमिरन है सुखदायी ।
साईं सुमिरन सबसे ऊँचा, साईं शक्ति गुण ज्ञान समूचा।।

सुख दाता आपद हरण, साईं गरीब निवाज ।
अपने बच्चों के साईं, सभी सुधारे काज ।।


ॐ  साईं श्री साईं जय जय साईं

Tuesday, 21 July 2020

साईं वाणी (भाग 6)

ॐ सांई राम


साईं वाणी (भाग 6)

धन्य धन्य श्री साईं उजागर, धन्य धम्य करुना के सागर|
साईं नाम मुद मंगलकारी, विघ्न हरे सब पाठक हारी ||


धन्य धन्य श्री साईं हमारे, धन्य धन्य भक्तन रखवारे |
साईं नाम शुभ शकुन महान, स्वस्ति शान्ति कर शिव कल्याण ||


धन्य धन्य सब जग के स्वामी, धन्य धन्य श्री साईं नमामि |
साईं साईं मन मुख से गाना, मानो मधुर मनोरथ पाना||

साईं नाम जो जन मन लावे, उस में शुभ सभी बस जावे |
जहाँ हो साईं नाम धुन नाद, वहां से भागे विषम विषाद||


साईं नाम मन तपन बुझावे, सुधा रस सींच शान्ति ले आवे |
साईं साईं जपिये कर भाव, सुविधा सुविधि बने बनाव ||

छल कपट और झूठ हैं, तीन नरक के द्वार |
झूठ कर्म को छोड़ के करो सत्य व्यवहार ||


जप तप तीरथ ज्ञान ध्यान, सब मिल नहीं साईं सामान |
सर्व व्यापक साईं ज्ञाता, मन वांछित प्राणी फल पाता ||

जहां जगत में आवो जावो, साईं सुमीर साईं को गावो |
साईं सभी में एक सामान,सब रूप को साईं का जान ||


मन में मेरा कुछ नहीं अपना, साईं का नाम सत्य जग सपना |
इतना जान लेहु सब कोय, साईं को भजते साईं का होय ||

===ॐ  साईं  श्री  साईं  जय जय  साईं===

Monday, 20 July 2020

तूझी को मांगू साँई से हर फरियाद में।



क्या लिखूं आज फिर से तेरी याद में,
तूझी को मांगू साँई से हर फरियाद में।
लिखते हुए शब्द धुंधले से दिखते हैं,
आंसू शब्दों से पहले कागज पर बिछते हैं।
याद क्या करें तुम्हारे साथ बिताए पल हम,
बस उन्ही के सहारे ही तो अब जीतें हैं हम।
एक कोशिश तो कर के देखना आने को,
आ गयें तो मैं तैयार हूँ, तेरी तस्वीर में जाने को

साईं वाणी (भाग 5)

ॐ सांई राम


साईं वाणी (भाग 5)
साईं कृपा भरपूर मैं पाऊँ, प्रथम प्रभु को भीतर लाऊँ |
साईं ही साईं साईं कह मीत, साईं सेकर ले सच्ची प्रीत ||

साईं ही साईं का दर्शन करिये, मन भीतर इक आनंद भरिये |
साईं की जब मिल जाये भिक्षा, फिर मन में कोई रहे न इच्छा ||


जब जब मन का तार हिलेगा, तब तब साईं का प्यार मिलेगा |
मिटेगी जग से आनी जानी, जीवन मुक्त होये यह प्राणी||


शिर्डी के हैं साईं हरि, तीन लोक के नाथ |

बाबा हमारे पावन प्रभु, सदा के सँगी साथ ||


साईंधुनी जब पकड़े ज़ोर , खींचें साईं प्रभु अपनी ओर|
मंदिर मंदिर बस्ती बस्ती, छा जाये साईं नाम की मस्ती||

अमृतरूप साईं गुणगान, अमृत कथन साईं व्याख्यान |
अमृत वचन साईं की चर्चा, सुधा सम गीत साईं की अर्चा ||


शुभ रसना वही कहावे, साईं राम जहाँ नाम सुहावे |
शुभ कर्म है नाम कमाई, साईं नाम परम सुखदाई ||

जब जी चाहे दर्शन पाइये, जय जयकार साईं की गाइये |
साईं नाम की धुनी लगाइये, सहज ही भाव सागर तर जाइये ||


बाबा को भजें निरंतर, हर दम ध्यान लगावे |
बाबा में मिल जावे अंत में, जनम सफल हो जावे ||

ॐ  साईं  श्री  साईं  जय जय  साईं

Sunday, 19 July 2020

साईं वाणी (भाग 4)

ॐ सांई राम


साईं वाणी (भाग 4)

साईं नाम सुधा रस सागर, साईं नाम ज्ञान गुण आगर |
साईं नाम जप तेज सामान, महा मोह तम हरे अज्ञान ||

साईं नाम धुन आनंद नाद, नाम जपे मन हो विस्माद |
साईं नाम मुक्ति का दाता, ब्रह्मधाम वह खुद पहुँचाता||


हाथ से करिये साईं का कार, पग से चलिए साईं दे द्वार|
मुख से साईं सुमिरन करिये, चित्त सदा चिन्तन में धरिये||

कानों से यश साईं का सुनिये, साईं धाम का मार्ग चुनिये |
साईं नाम पढ़ अमृतवाणी, साईं नाम धुन सुधा समानी||


आप जपो औरों को जपावो, साईं धुनी को मिलकर गावो|
साईं नाम का सुन कर गाना, मन अलमस्त बने दीवाना||


पल पल उठे साईं तरंग, चढ़े नाम का गूढ़ा रंग |
साईं कृपा है उच्चतर योग, साईं कृपा है शुभ संयोग ||

साईं कृपा सब साधन मर्म, साईं कृपा सयम सत्य धर्मं|
साईं नाम का मन में बसाना, सुपथ साईं कृपा का है पाना||


मन में साईं धुन जब फिरे, साईं कृपा तब ही अवतरे|
रहूँ मैं साईं नाम में लीन, जैसे जल में मीन अदीन||


साईं नाम को सिमरिये, साईं साईं इक तार |

परम पाठ पावन परम, करता भाव से पार ||

ॐ  साईं  श्री  साईं  जय जय  साईं

Saturday, 18 July 2020

साँई वाणी (भाग 3)

ॐ सांई राम



साँई वाणी (भाग 3)

साईं  नाम  मुक्तामणि, राखो  सूत  पिरोय  |

पाप  ताप  न  रहे, आत्मा  दर्शन  होय  ||

सत्य  मूलक  है  रचना  सारी, सर्व  सत्य  प्रभु  साईं  पसारी |
बीज से  तरु  मकडी  से  तार, हुवा  त्यों  साईं  जग  से  विस्तार  ||

साईं  का  रूप  हृदय  में  धारो, अंतरमन  से  साईं  पुकारो  |
अपने  भक्त   की   सुनकर  टेर, कभी  न  साईं  लगाते  देर  ||

धीर  वीर  मन  रहित  विकार, तन  से  मन  से  कर  उपकार  |
सदा  ही  साईं  नाम  गुण  गावे, जीवन  मुक्त  अमर  पद  पावे  ||

साईं  बिना  सब  नीरस  स्वाद, ज्यों  हो  स्वर  बिना  राग  विषाद |
साईं  बिना  नहीं  सजे  सिंगार, साईं  नाम  है  सब  रस  सार  ||

साईं  पिता  साईं  ही  माता, साईं  बन्धु  साईं  ही  भ्राता |
साईं  जन  जन  के  मन  रंजन, साईं  सब  दुःख  दर्द  विभंजन  ||

साईं  नाम  दीपक  बिना, जन  मन  में  अंधेर  |

इसीलिए  है  मम  मन, नाम  सुमाला  फेर  ||

जपते  साईं  नाम  महा  माला, लगता  नरक  द्वार  पे  ताला  |
रखो  साईं  पर  एक  विश्वास, सब  तज  करो  साईं  की  आस  ||

जब  जब  चढ़े  साईं  का  रंग, मन  में  छाये  प्रेम  उमंग  |
जपते  साईं  साईं  जप  पाठ, जलते  कर्मबंधन  यथा  काठ  ||

===ॐ  साईं  श्री  साईं  जय जय  साईं===

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.