शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Thursday, 31 October 2019

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 23

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है |

हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 23
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योग और प्याज, शामा का सर्पविष उतारना, विषूचिका (हैजी) निवारणार्थ नियमों का उल्लंघन, गुरु भक्ति की कठिन परीक्षा ।
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प्रस्तावना
वस्तुतः मनुष्य त्रिगुणातीत (तीन गुण अर्थात् सत्व-रज-तम) है तथा माया के प्रभाव से ही उसे अपने सत्-चित-आनंद स्वरुप की विस्मृति हो, ऐसा भासित होने लगता है कि मैं शरीर हूँ । दैहिक बुद्घि के आवरण के कारण ही वह ऐसी धारणा बना लेता है कि मैं ही कर्ता और उपभोग करने वाला हूँ और इस प्रकार वह अपने को अनेक कष्टों में स्वयं फँसा लेता है । फिर उसे उससे छुटकारे का कोई मार्ग नहीं सूझता । मुक्ति का एकमात्र उपाय है – गुरु के श्री चरणों में अचल प्रेम और भक्ति । सबसे महान् अभिनयकर्ता भगवान् साई ने भक्तों को पूर्ण आनन्द पहुँचाकर उन्हें निज-स्वरुप में परिवर्तित कर लिया है । उपयुक्त कारणों से हम साईबाबा को ईश्वर का ही अवतार मानते है । परन्तु वे सदा यही कहा करते थे कि मैं तो ईश्वर का दास हूँ । अवतार होते हुए भी मनुष्य को किस प्रकारा आचरण करना चाहिये तथा अपने वर्ण के कर्तव्यों को किस प्रकार निबाहना चाहिए, इसका उदाहरण उन्होंने लोगो के समक्ष प्रस्तुत किया । उन्होंने किसी प्रकार भी दूसरे से स्पर्द्घा नहीं की और न ही किसी को कोई हानि ही पहुँचाई । जो सब जड़ और चेतन पदार्थों में ईश्वर के दर्शन करता हो, उसको विनयशीलता ही उपयुक्त थी । उन्होंने किसी की उपेक्षा या अनादर नहीं किया । वे सब प्राणियों में भगवद्दर्शन करते थे । उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि मैं अनल हक्क (सोडह्मम) हूँ । वे सदा यही कहते थे कि मैं तो यादे हक्क (दासोडहम्) हूँ । अल्ला मालिक सदा उनके होठोंपर था । हम अन्य संतों से परिचित नहीं है और नन हमें यही ज्ञात है कि वे किस प्रकार आचरण किया करते है अथवा उनकी दिनचर्या इत्यादि क्या है । ईश-कृपा से केवल हमें इतना ही ज्ञात है कि वे अज्ञान और बदृ जीवों के निमित्त स्वयं अवतीर्ण होते है । शुभ कर्मों के परिणामस्वरुप ही हममें सन्तों की कथायें और लीलाये श्रवण करने की इच्छा उत्पन्न होती है, अन्यथा नहीं । अब हम मुख्य कथा पर आते है ।

योग और प्याज
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एक समय कोई एक योगाभ्यासी नानासाहेब चाँदोरकर के साथ शिरडी आया । उसने पातंजलि योगसूत्र तथा योगशास्त्र के अन्य ग्रन्थों का विशेष अध्ययन किया था, परन्तु वह व्यावहारिक अनुभव से वंचित था । मन एकाग्र न हो सकने के कारण वह थोड़े समय के लिये भी समाधि न लगा सकता था । यदि साईबाबा की कृपा प्राप्त हो जाय तो उनसे अधिक समय तक समाधि अवस्था प्राप्त करने की विधि ज्ञात हो जायेगी, इस विचार से वह शिरडी आया और जब मसजिद में पहुँचा तो साईबाबा को प्याजसहित रोटी खाते देख उसे ऐसा विचार आया कि यह कच्च प्याजसहित सूखी रोटी खाने वाला व्यक्ति मेरी कठिनाइयों को किस प्रकार हल कर सकेगा । साईबाबा अन्तर्ज्ञान से उसका विचार जानकर तुरन्त नानासाहेब से बोले कि ओ नाना । जिसमें प्याज हजम करने की श्क्ति है, उसको ही उसे खाना चाहिए, अन्य को नहीं । इन शब्दों से अत्यन्त विस्मित होकर योगी ने साईचरणों में पूर्ण आत्मसमर्पण कर दिया । शुदृ और निष्कपट भाव से अपनी कठिनाइयँ बाबा के समक्ष प्रस्तुत करके उनसे उनका हल प्राप्त किया और इस प्रकार संतुष्ट और सुखी होकर बाबा के दर्शन और उदी लेकर वह शिरडी से चला गया ।

शामा की सर्पदंश से मुक्ति
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कथा प्रारंभ करने से पूर्व हेमाडपंत लिखते है कि जीव की तुलना पालतू तोते से की जा सकती है, क्योंकि दोनों ही बदृ है । एक शरीर में तो दूसरा पिंजड़े में । दोनों ही अपनी बद्घावस्था को श्रेयस्कर समझते है । परन्तु यदि हरिकृपा से उन्हें कोई उत्तम गुरु मिल जाय और वह उनके ज्ञानचक्षु खोलकर उन्हें बंधन मुक्त कर दे तो उनके जीवन का स्तर उच्च हो जाता है, जिसकी तुलना में पूर्व संकीर्ण स्थिति सर्वथा तुच्छ ही थी ।
गत अध्यया में किस प्रकार श्री. मिरीकर पर आने वाले संकट की पूर्वसूचना देकर उन्हें उससे बचाया गया, इसका वर्णन किया जा चुका है । पाठकवृन्द अब उसी प्रकार की और एक कथा श्रवण करें ।
एक बार शामा को विषधर सर्प ने उसके हाथ की उँगली में डस लिया । समस्त शरीर में विष का प्रसार हो जाने के कारण वे अत्यन्त कष्ट का अनुभव करके क्रंदन करने लगे कि अब मेरा अन्तकाल समीप आ गया है । उनके इष्ट मित्र उन्हें भगवान विठोबा के पास ले जाना चाहते थे, जहाँ इस प्रकार की समस्त पीड़ाओं की योग्य चिकित्सा होती है, परन्तु शामा मसजिद की ओर ही दौड़-अपने विठोबा श्री साईबाबा के पास । जब बाबा ने उन्हें दूर से आते देखा तो वे झिड़कने और गाली देने लगे । वे क्रोधित होकर बोले – अरे ओ नादान कृतघ्न बम्मन । ऊपर मत चढ़ । सावधान, यदि ऐसा किया तो । और फिर गर्जना करते हुए बोले, हटो, दूर हट, नीचे उतर । श्री साईबाबा को इस प्रकार अत्यंत क्रोधित देख शामा उलझन में पड़ गयाऔर निराश होकर सोचने लगा कि केवल मसजिद ही तो मेरा घर है और साईबाबा मात्र किसकी शरण में जाऊँ । उसने अपने जीवन की आशा ही छोड़ दी और वहीं शान्तीपूर्वक बैठ गया । थोड़े समय के पश्चात जब बाबा पूर्वव्त शांत हुए तो शामा ऊपर आकर उनके समीप बैठ गया । तब बाबा बोले, डरो नहीं । तिल मात्र भी चिन्ता मत करो । दयालु फकीर तुम्हारी अवश्य रक्षा करेगा । घर जाकर शान्ति से बैठो और बाहर न निकलो । मुझपर विश्वास कर निर्भय होकर चिन्ता त्याग दो । उन्हें घर भिजवाने के पश्चात ही पुछे से बाबा ने तात्या पाटील और काकासाहेब दीक्षित के द्घारा यह कहला भेजा कि वह इच्छानुसार भोजन करे, घर में टहलते रहे, लेटें नही और न शयन करें । कहने की आवश्यकता नहीं कि आदेशों का अक्षरशः पालन किया गया और थोड़े समय में ही वे पूर्ण स्वस्थ हो गये । इस विषय में केवल यही बात स्मरण योग्य है कि बाबा के शब्द (पंच अक्षरीय मंत्र-हटो, दूर हट, नीचे उतर) शामा को लक्ष्य करके नहीं कहे गये थे, जैसा कि ऊपर से स्पष्ट प्रतीत होता है, वरन् उस साँप और उसके विष के लिये ही यह आज्ञा थी (अर्थात् शामा के शरीर में विष न फैलाने की आज्ञा थी) अन्य मंत्र शास्त्रों के विशेषज्ञों की तरह बाबा ने किसी मंत्र या मंत्रोक्त चावल या जल आदि का प्रयोग नहीं किया ।
इस कथा और इसी प्रकार की अन्य अथाओं को सुनकर साईबाबा के चरणों में यह दृढ़ विश्वास हो जायगा कि यदि मायायुक्त संसार को पार करना हो तो केवल श्री साईचरणों का हृदय में ध्यान करो ।

हैजा महामारी
...............
एक बार शिरडी विषूचिका के प्रकोप से दहल उठी और ग्रामवासी भयभीत हो गये । उनका पारस्परिक सम्पर्क अन्य गाँव के लोगों से प्रायः समाप्त सा हो गया । तब गाँव के पंचों ने एकत्रित होकर दो आदेश प्रसारित किये । प्रथम-लकड़ी की एक भी गाड़ी गाँव में न आने दी जाय । द्घितीय – कोई बकरे की बलि न दे । इन आदेशों का उल्लंघन करने वाले को मुखिया और पंचों द्घारा दंड दिया जायगा । बाबा तो जानते ही थे कि यह सब केवल अंधविश्वास ही है और इसी कारण उन्होंने इन हैजी के आदेशों की कोई चिंता न की । जब ये आदेशलागू थे, तभी एक लकड़ी की गाड़ी गाँव में आयी । सबको ज्ञात था कि गाँव में लगड़ी का अधिक अभाव है, फिर भीलोग उस गाड़वाले को भगाने लगे । यह समाचार कहीं बाबा के पास तक पहुँच गया । तब वे स्वयं वहाँ आये और गाड़ी वाले से गाड़ी मसजिद में ले चलने को कहा । बाबा के विरुदृ कोई चूँ—चपाट तक भीन कर सका । यथार्थ में उन्हें धूनी के लिए लकड़ियों की अत्यन्त आवश्यकता थी और इसीलिए उन्होंने वह गाड़ी मोल ले ली । एक महान अग्निहोत्री की तरह उन्होंने जीवन भर धूनी को चैतन्य रखा । बाबा की धूनी दिनरात प्रज्वलित रहती थी और इसलिए वे लकड़ियाँ एकत्रित कर रखते थे । बाबा का घर अर्थात् मसजिद सबके लिए सदैव खुली थी । उसमें किसी ताले चाभी की आवश्यकता न थी । गाँव के गरीब आदमी अपने उपयोग के लिए उसमें से लकडियाँ निकाल भी ले जाया करते थे, परन्तु बाबा ने इस पर कभी कोई आपत्ति न की । बाबा तो सम्पूर्ण विश्व को ईश्वर से ओतप्रोत देखते थे, इसलिये उनमें किसी के प्रति घृणा या शत्रुता की भावना न थी । पूर्ण विरक्त होते हुए भी उन्होंने एक साधारण गृहस्थ का-सा उदाहरण लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया ।


गुरुभक्ति की कठिन परीक्षा
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अब देखिये, दूसरे आदेश की भी बाबा ने क्या दुर्दशा की । वह आदेश लागू रहते समय कोई मसजिद में एक बकरा बलि देने को लाया । वह अत्यन्त दुर्बल, बूढ़ा और मरने ही वाला था । उस समय मालेगाँव के फकीर पीरमोहम्मद उर्फ बड़े बाबा भी उनके समीप ही खड़े थे । बाबा ने उन्हें बकरा काटकर बलि चढ़ाने को कहा । श्री साईतबाबा बड़े बाबा का अधिक आदर किया करते थे । इस कारण वे सदैव उनके दाहिनीओर ही बैठा करते थे । सबसे पहने वे ही चिलम पीते और फिर बाबा को देते, बाद में अन्य भक्तों को । जब दोपहर को भोजन परोस दिया जाता, तब बाबा बड़े बाबा को आदरपूर्वक बुलाकर अपने दाहिनी ओर बिठाते और तब सब भोजन करते । बाबा के पास जो दक्षिणा एकत्रित होती, उसमेंसे वे 50 रु. प्रतिदिन बड़े बाबा को दे दिया करते थे । जब वे लौटते तो बाबा भी उनके साथ सौ कदम जाया करते थे । उनका इतना आदर होते हुए भी जब बाबा ने उनसे बकरा काटने को कहा तो उन्होंने अस्वीकार कर स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि बलि चढ़ाना व्यर्थ ही है । तब बाबा ने शामा से बकरे की बलि के लिये कहा । वे राधाकृष्ण माई के घर जाकर एक चाकू ले आये और उसे बाबा के सामने रख दिया । राधाकृष्माई को जब कारण का पता चला तो उन्होंने चाकू वापस मँगवालिया । अब शामा दूसरा चाकू लाने के लिये गये, किन्तु बड़ी देर तक मसजिद में न लौटे । तब काकासाहेब दीक्षित की बारी आई । वह सोना सच्चा तो था, परन्तु उसको कसौटी पर कसना भी अत्यन्त आवश्यक था । बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा । वे साठेवाड़े से एक चाकू ले आये और बाबा की आज्ञा मिलते ही काटने को तैयार हो गये । उन्होंने पवित्र ब्राहमण-वंश में जन्म लिया था और अपने जीवन में वे बलिकृत्य जानते ही न थे । यघपि हिंसा करना निंदनीय है, फिर भी वे बकरा काटने के लिये उघत हो गये । सब लोगों को आश्चर्य था कि बड़े बाबा एक यवन होते हुए भी बकरा काटने को सहमत नहीं हैं और यह एक सनातन ब्राहमण बकरे की बलि देने की तैयारी कर रहा है । उन्होंने अपनी धोती ऊपर चढ़ा फेंटा कस लिया और चाकू लेकर हाथ ऊपर उठाकर बाबा की अन्तिम आज्ञा की प्रतीक्षा करने लगे । बाबा बोले, अब विचार क्या कर रहे हो । ठीक है, मारो । जब उनका हाथ नीचे आने ही वाला था, तब बाबा बोले ठहरो, तुम कितने दुष्ट हो । ब्राहमण होकर तुम बके की बलि दे रहे हो । काकासाहेब चाकू नीचे रख कर बाबा से बोले आपकी आज्ञा ही हमारे लिये सब कुछ है, हमें अन्य आदेशों से क्या । हम तो केवल आपका ही सदैव स्मरण तथा ध्यान करते है और दिन रात आपकी आज्ञा का ही पालन किया करते है । हमें यह विचार करने की आवश्यकता नहीं कि बकरे को मारना उचित है या अनुचित । और न हम इसका कारण ही जानना चाहते है । हमारा कर्तव्य और धर्म तो निःसंकोच होकर गुरु की आज्ञा का पूर्णतः पालन करने में है । तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैं स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करुँगा । तब ऐसा निश्चित हुआ कि तकिये के पास जहाँ बहुत से फकीर बैठते है, वहाँ चलकर इसकी बलि देनी चाहिए । जब बकरा वहाँ ले जाया जा रहा था, तभी रास्ते में गिर कर वह मर गया ।
भक्तों के प्रकार का वर्णन कर श्री. हेमाडपंत यह अध्याय समाप्त करते है । भक्त तीन प्रकार के है

1. उत्तम

2. मध्यम और

3. साधारण

प्रथम श्रेणी के भक्त वे है, जो अपने गुरु की इच्छा पहले से ही जानकर अपना कर्तव्य मान कर सेवा करते है । द्घितीय श्रेणी के भक्त वे है, जो गुरु की आज्ञा मिलते ही उसका तुरन्त पालन करते है । तृतीय श्रेणी के भक्त वे है, जो गुरु की आज्ञा सदैव टालते हुए पग-पग पर त्रुटि किया करते है । भक्तगण यदि अपनी जागृत बुद्घि और धैर्य धारण कर दृढ़ विश्वास स्थिर करें तो निःसन्देह उनका आध्यात्मिक ध्येय उनसे अधिक दूर नहीं है । श्वासोच्ध्वास का नियंत्रण, हठ योग या अन्य कठिन साधनाओं की कोई आवश्यकता नहीं है । जब शिष्य में उपयुक्त गुणों का विकास हो जाता है और जब अग्रिम उपदेशों के लिये भूमिका तैयार हो जाती है, तभी गुरु स्वयं प्रगट होकर उसे पूर्णता की ओर ले जाते है । अगले अध्याय में बाबा के मनोरंजक हास्य-विनोद के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday, 30 October 2019

साईं बाबा ज़रा, आके देखो मुझे, में परेशान हूँ, तेरे होते हुए

ॐ सांई राम



साईं बाबा ज़रा, आके देखो मुझे

में परेशान हूँ , तेरे होते हुए

तुने सबको रखा अपने ही साये में

में क्यों वीरान हूँ, तेरे होते हुए

साईं बाबा ज़रा


तू तो दाता मगर, फिर भी मै फकीर हूँ

अपने माथे की मै रूठी तकदीर हूँ

रूठी तकदीर हूँ

कंठ होते हुए , स्वर के होते हुए

मै क्यों बेजुबान हूँ, तेरे होते हुए

साईं बाबा ज़रा


मन में मेरे छुपी है मिलन की लगन

तेरे दर्शन के प्यासे हैं ये मेरे नयन

हैं ये मेरे नयन

देखूं तुझको सदा अपने ही पास मै

भटके क्यों मन मेरा, तेरे होते हुए

साईं बाबा ज़रा



आओ साईं मेरे कर दो मुझपे करम

भय मिटाओ मेरे कर दो मुझपे करम

कर दो मुझपे करम

मर न जाऊं कहीं , तेरे दर पे यहीं

अनाथ कहलाऊँ ना, तेरे होते हुए

साईं बाबा ज़रा, आके देखो मुझे

में परेशान हूँ , तेरे होते हुए

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Tuesday, 29 October 2019

जब कभी हम पुकारेंगे तुमको, साँईं तुम तो दौड़े आओगे

ॐ सांई राम




हमसे कैसे दूर जाओगे

जब कभी हम पुकारेंगे तुमको

साईं तुम तो दौड़े आओगे


अपने भक्तों की दुःख भरी आहें

उनकी गम में तड़प रही आँखें

वो ही आँखें तुम्हे बुलाएंगी

फिर तो साईं दौड़े आओगे

हमसे कैसे दूर जाओगे

जब कभी हम पुकारेंगे तुमको

साईं तुम तो दौड़े आओगे


जो शिर्डी तेरा बसेरा था

उस शिर्डी में जो भी जाता है

और दर्शन करे समाधी के

उसे गले से तुम लगाओगे

हमसे कैसे दूर जाओगे

जब कभी हम पुकारेंगे तुमको

साईं तुम तो दौड़े आओगे


अपने भक्तों से तुमको प्यार तो था

इसीलिये ही वचन निभाते हो

जब कोईदिल से पुकारेगा तुम्हे

फिर तो बाबा दौड़े आओगे


हमसे कैसे दूर जाओगे

जब कभी हम पुकारेंगे तुमको

साईं तुम तो दौड़े आओगे

यह प्रस्तुति बहन रविंदर जी द्वारा पेश की गयी है

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Monday, 28 October 2019

गोवर्धन पूजा विशेषः श्री कृष्ण की गोवर्धन लीला का रहस्य



गोवर्धन पूजा विशेषः श्री कृष्ण की गोवर्धन लीला का रहस्य
 
गोवर्धनलीला के संदर्भ में श्रीकृष्ण की मूलचिंता थी ईश्वर के नाम पर मानवता का शोषण। ब्रज का तत्कालीन समाज तब जल और कृषि में समृद्धि के लिए इंद्र की पूजा करता था। पूजा के नाम पर तब पाखंड रचा जाता।

श्रीकृष्ण ने ब्रजवासी जनों से कहा कि वे मुख्यतः ग्राम/वनों में निवास और विचरण करते हैं। अतः उन्हें अपने पर्यावरण का ही पूजन करना चाहिए। यह भी बताया कि वर्षा का जल इंद्र से न आकर वृक्ष, पर्वतों की कृपा से उपलब्ध होता है।

ब्रजवासियों ने पर्यावरण के देवता श्री गोवर्धन को सम्मानित का उत्सव प्रारंभ किया। इस उत्सव का एक और गहरा महत्व है। श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं के द्वारा भक्ति अर्थात् सेवा को ही प्रमुख साधन स्वीकार किया। अतः उनका यह संकल्प था कि आध्यात्म जगत में भी भक्त की प्रतिष्ठा सर्वोपरि होनी चाहिए।

श्रीकृष्ण की परम उपासिक ब्रज गोपिकागण गोवर्धन महाराज को ही श्रीकृष्ण का सर्वश्रेष्ठ भक्त कहकर संबोधित करते हैं। श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा कि ‘मैं भक्तन को दास, भगत मेरे मुकुटमणि’। अतः दीपावली के दूसरे दिन इंद्र के स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों के द्वारा भक्त शिरोमणि गोवर्धन महाराज का विधिवत् पूजन अर्चन कराया।

इतना ही नहीं पूजन के समय गोवर्धन की प्रत्येक पावन शिला में ब्रजवासियों को श्रीकृष्ण के मुखारबिंद के ही दर्शन हुए। इसका तात्पर्य है कि गोवर्धन पूजन भक्त और भगवान के पूर्ण एकाकार और तादाद में होने का उत्सव है।

तू है मेरे जीने का सहारा, मेरे शिर्डी वाले साईं बाबा,

ॐ साईं राम


तू है मेरे जीने का सहारा,
मेरे शिर्डी वाले साईं बाबा,
बिन तेरे जीवन ऐसा लगे,
जैसे हो कोई गम का मारा,


ओ शिर्डी के राजा,
ओ मेरे साईं बाबा,


तेरे लिए ही खुलती मेरी आंखे,
तेरी लिए ही है रोती,
तेरे लिए ही मेरे साईं,
रूह है मेरी तड़पती,
आकर अब तो मुझको साईं,
तू थोडा हस्सा जा,


ओ शिर्डी राजा,
ओ मेरे साईं बाबा,


बिन तेरे न कुछ अच्छा लगे,
मुझको मेरे साईं,
तू तो है साईं जी मेरा गुसाई,
तुजो मेरे पास है तो,
फिर नहीं किसी क़ि आशा,


ओ शिर्डी के राजा,
ओ मेरे साईं बाबा,


जुडी है मेरी सांसे,
तुमसे ही मेरे साईं,
तुम तो मेरा रब हो,
तुम ही हो मेरी माई,
झूटे दुनिया के जाल से,
तू मुझे बचा जा,


ओ शिर्डी के राजा, 
ओ मेरे साईं बाबा,


सुन लो मेरी विनती साईं,
अबतो दरश दिखा दो,
प्यार भरा आचल बाबा,
मुझपर भी लहरा दो,
अपनी करुना आज तू,
मुझपर भी बरसा जा,


ओ शिर्डी के राजा,
ओ मेरे साईं बाबा |
सच्चे दिल से जो हो फ़रियाद तो,
दुनिया की हर एक चीज मिल जाती, 
जिस पर साईं की रहमत जो जाय,
उसे काँटों में भी ख़ुशी मिल जाती !


|| श्री सच्चीदानंद समर्थ सदगुरू सांईनाथ महाराज की जय ||


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Sunday, 27 October 2019

बाबा ने दिवाली पर पानी से दिए जलाए

ॐ सांई राम




बाबा ने दिवाली पर पानी से दिए जलाए


श्री साईं बाबा संध्या समय गाँव में जा कर दुकानदारों से भिक्षा में तेल मांगते और मस्जिद में दिए जलाया करते थे| सन 1892  दिवाली के दिन बाबा गाँव के दुकानदारों से तेल मांगने गए लेकिन वाणी (तेल देने वालों) ने तेल देने से मना कर दिया| सभी दुकानदारों ने आपस में यह निश्चित किया था की वह बाबा को भिक्षा में तेल न दे कर अपना महत्व दर्शाएंगे|अहंकार से भरकर उन्होंने यह भी कहा की देखते है बाबा! आज किस प्रकार मस्जिद में दिए जलाते है ? अत: बाबा को खाली हाथ ही मस्जिद में लौटना पड़ा| कुछ समय पश्चात ही सभी दुकानदार एवं गाँव के कुछ लोग मस्जिद में गए और उन्होंने देखा :-


"बाबा के टीन में पिछले दिन का कुछ तेल था| उन्होंने मस्जिद में रखे घड़े से पानी टीन में डाला और तेल में मिला दिया| उन्होंने वह तेल - मिश्रित पानी अपने मुहं में पीया और पुन: टीन में उलट दिया| वह पानी उन्होंने मस्जिद में रखे दीयों में दाल दिया और बातीं लगा कर दियें जला दिए|



आश्चर्य! पानी के दिए सारी रात जले| यह देख कर सभी दुकानदारों ने बाबा से क्षमा - याचना की एवं प्रतिदिन उन्हें स्वयं ही तेल देने लगे|"


Saturday, 26 October 2019

शिर्डी में जो जाये, वो साईं राम की सुहानी मूरत के दीवाने बन गए

ॐ सांई राम



शिर्डी में जो जाये
वो साईं राम की
सुहानी मूरत के
दीवाने बन गए

साईं के दर पे
जो भी आ गए
उसके तो जीवन के
सब तूफां थम गए

जिस घर में उसे पूजा
वहीँ पर बस गए साईं
मांगें जो भी कुछ कोई
सभी कुछ देते हैं साईं
पसारे जो कोई झोली
तो भर देते मेरे साईं

शिर्डी में जो जाये
वो साईं राम की
सुहानी मूरत के
दीवाने बन गए

साईं के दर पे
जो भी आ गए
उसके तो जीवन के
सब तूफां थम गए

जीवन हो अगर ग़मगीन
ऐ इंसां तू न घबराना
छोड़ के सारी चिंताएं
तू शिर्डी में चले आना
वहां दाता हैं सब सुख के
वहीँ झोली तू फैलाना

शिर्डी में जो जाये
वो साईं राम की
सुहानी मूरत के
दीवाने बन गए

साईं के दर पे
जो भी आ गए
उसके तो जीवन के
सब तूफां थम गए




जिसने श्रद्धा उपजाई
सबुरी जिसका जीवन है
भक्ति जिसकी मंजिल है
उसका हर दिन पावन है
उसे चिंता रहे कैसे
साईं का जिसपे दामन है

शिर्डी में जो जाये
वो साईं राम की
सुहानी मूरत के
दीवाने बन गए

साईं के दर पे
जो भी आ गए
उसके तो जीवन के
सब तूफां थम गए

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Friday, 25 October 2019

ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जब से शरण तेरी-- आया साईं राम

ॐ सांई राम




जैसे जलती हुई आग से तूने नन्ही सी जां को बचाया

जलती हुई आग से तूने नन्ही सी जां को बचाया

नन्ही सी जां को बचाया

ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जब से शरण तेरी--

आया साईं राम

आया साईं राम


अनजान था तेरे रहमों करम सेतुझको न पहचान पाया

तुझको न पहचान पाया

मेरे भी पापों भरे मन पे कर दोअपनी कृपा की वो छाया

अपनी कृपा की वो छाया

किसी लड़खड़ाते हुए जीव को जो किसी ने सहारा दिखाया

ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जब से शरण तेरी--

आया साईं राम

आया साईं राम


पारस भी बन जाये कंचन के जैसासाईं कृपा हो तेरी

साईं कृपा हो तेरी

तेरे ही चरणों में संवरेगी साईं काया बनी है जो मेरी

काया बनी है जो मेरी

सदियों से प्यासे नैनों ने जैसे सूरज का दर्शन पाया

ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जब से शरण तेरी--

आया साईं राम

आया साईं राम


जिस राह पर साईं तेरा ही दर होउस राह पर ही मैं जाऊं

उस राह पर ही मैं जाऊं

उस राह के काँटों से जलते अंगारों सेमैं न कभी डगमगाऊं

मैं न कभी डगमगाऊं

शबरी ने जैसे भगवन की राहों में , हर पल नैनों को बिछाया

ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जब से शरण तेरी--

आया साईं राम

आया साईं राम
यह प्रस्तुति बहन रविंदर जी द्वारा प्रस्तुत की जा रही है
There was Laxmibai a devotee, who sent Baba very lovingly jowar bhakhri and vegetables every day at appointed time.
Once Laxmibai paid obeisance  to Sai Baba. Then Baba said to her,“Laxmi, I am feeling very hungry”.
“Baba, I will go this instance and get some bhakhri for You”. So said Laxmibai.
She went to her home, baked some fresh bhakhri. along with it she brought vegetables etc., and placed the prepared dish before Baba.
Baba picked up the dish and placed it before a hungry dog. Laxmi asked at once, “Baba, what is this you have done? So hastily that i went and prepared bhakhri with love, – and is this all it’s fruit? It is the dog that You gave true enjoyment. You were feeling hungry, but is this anyway to appease this hunger? Not a morsel did you put in your mouth and here am I fretting in vain!”
Then Baba said to her, “Why do you feel sad, needlessly? Know that the satiety of this dog is my own satiety. Does this dog not have life? All living creatures experience the same hunger. Though he is dumb and I am vocal, is there any difference in the hunger? Know that those who give food to the one suffering the pangs of hunger are really putting it in my mouth. And this is true everywhere.
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For Donation

For donation of Fund/ Food/ Clothes (New/ Used), for needy people specially leprosy patients' society and for the marriage of orphan girls, as they are totally depended on us.

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A/c - Title -Shirdi Ke Sai Baba Group

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.