ॐ सांँई राम जी
माँ-बाप, बहन-भाई का नाता
मनुष्य मृत्यु लोक में निभाता
सच्चा संबंधी हैं विश्व विधाता
बाकी सब यही हैं रह जाता
प्रभु से मिलने की खातिर ही
धरती पर रिश्तो का हल चलाता
झूठे बंधन और झूठे नाते
हम सभी सदा रहे निभाते
खेल मालिक का समझ ना पाते
भेजा जिसने जिस कर्म की खातिर
नया जीवन पाकर हम भूले जाते
नाव चले ना जीवन की
बिन साँई खेवनहार
और नहीं एक साँचा साँई
जग का तारणहार
सच्ची बात हैं सुन मेरे भाई
कर्म नेक कमा कहे मेरे साँई
जीवन को ना व्यर्थ टटोल
तन को ना माया से तोल
कर ले कमाई कुछ नेक
देखे सबका मालिक एक
बोली बोल सदा तू मीठी
तन जा मिले आखिर में मिट्टी
कहा से लाऊँ ऐसी स्याही
जो गुण तेरे लिखे मेरे साँई
नभ में भी कोई छोड़ तो होगा
तेरा गुणगान ना हमसे होगा
अनंत गुणों की हो तुम खान
कैसे भक्ति चढ़े परवान
अति लघु बुद्धि हमने पाई
लिखवाते हैं स्वयं श्री साँई
देना हो गर साँई तो मेघा सी दो भक्ति
कलम में दो गणु सम रचना की शक्ति
अनंत गुण तेरे गाता रहे यह तेरा दास
लता जी जैसी सुर में घोल दो मिठास