ॐ सांई राम
यूँ ही एक दिन चलते-चलते सांँई से हो गई मुलाकात।
जब अचानक सांँई सच्चरित्र की पाई एक सौगात।
फिर सांँई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार।
तब सांँई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार।
सांँई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला।
सांँई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला।
घर में गूँजने लगी हर वक्त सांँई गान की धुन।
मन के तार झूमने लगे सांँई धुन को सुन।
धीरे-धीरे सांँई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा।
और सांँई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा।
सांँई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगी फिदा।
अब मेरे सांँई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा।
हर घड़ी मिलता रहे मुझे सांँई का संतसंग।
सांँई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग।
सांँई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश।
सांँई मेरे प्राण हैं और सांई ही मेरे ईश।
भेदभाव से दूर रहूँ,शुद्ध हो मेरे विचार।
सांँई ज्ञान की जीवन में बहती रहे ब्यार |