शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Sunday, 30 April 2017

श्री साईं लीलाएं - बाबा जी का विचित्र आदेश

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. जो मस्जिद में आया, सुखी हो गया 

श्री साईं लीलाएं
बाबा जी का विचित्र आदेश
  
बालागनपत दर्जी शिरडी में रहते थेवह बाबा के परम भक्त थेएक बार उन्हें जीर्ण ज्वर हो गयाबुखार की वजह से वह सूखकर कांटा हो गयेबहुत इलाज करायेपर ज्वर पूरी तरह से ठीक नहीं हुआआखिर में थक-हारकर साईं बाबा की शरण में पहुंचेवहां पहुंचकर बाबा से पूछा - "बाबा ! मेरा ऐसा कौन-सा पाप कर्म है जो सब तरह की कोशिश करने के बाद भी बुखार मेरा पीछा नहीं छोड़ता?"
उसकी करुण पुकार सुनकर बाबा के मन में दया जाग उठी और बाबा उससे बोले - "तू लक्ष्मी मंदिर के पास जाकर एक काले कुत्ते को दही-चावल खिलातेरा भला होगा|" बाबा के वचन सुनकर उसके मन में उम्मीद जाग उठीवह दही-चावल लेकर लक्ष्मी मंदिर पहुंचावहां पहले से एक काला कुत्ता खड़ा थाउसने उसे दही-चावल खिलाया तो वह तुरंत दोनों चीज खा गया और कुछ ही दिनों में उसका बुखार पूरी तरह से ठीक हो गया|

कल चर्चा करेंगे..बूटी का रोग छूमंतर     

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Saturday, 29 April 2017

श्री साईं लीलाएं - जो मस्जिद में आया, सुखी हो गया

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. डॉक्टर को बाबा में श्री राम के दर्शन 

श्री साईं लीलाएं
जो मस्जिद में आया, सुखी हो गया
 
भीमा जी पाटिल पूना जिले के गांव जुन्नर के रहनेवाले थेवह धनवान होने के साथ उदार और दरियादिल भी थेसन् 1909 में उन्हें बलगम के साथ क्षयरोग (टी.बी.) की बीमारी हो गयीजिस कारण उन्हें बिस्तर पर ही रहना पड़ाघरवालों ने इलाज कराने में किसी तरह की कोई कोर-कसर न छोड़ीलेकिन कोई लाभ नहीं हुआवह हर ओर से पूरी तरह से निराश हो गये और भगवान् से अपने लिए मौत मांगने लगे|
फिर ऐसे में अचानक पाटिल को नाना सोहब चाँदोरकर की याद आयीउन्होंने उन्हें लाइलाज बीमारी के बारे में विस्तार से वर्णन करते हुए पत्र लिखाचूंकि नाना साहब भीमा पाटिल के पुराने मित्र थेसो पत्र पढ़कर बेचैन हो उठेजवाब में उन्होंने शिरडी और साईं बाबा का महत्व बताते हुए उनकी शरण लेने को कहाकि अब इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है|
नाना साहब का पत्र पाकरउनके वचनों पर विश्वास करते हुए उन्हें आशा की किरण दिखाई दीउन्होंने शिरडी जाने की तैयारी कीसाथ में घरवाले भी थेउन्होंने उन्हें शिरडी में लाकर मस्जिद में बाबा के सामने लिटा दियाउस समय वहां पर नाना साहब और माधवराव (शामा) तथा अन्य भक्त भी उपस्थित थे|
भीमा की हालत देखकर बाबा बोले - "ये सब तो पूर्वजन्म के दुष्कर्मों का फल हैमैं कोई मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता|" साईं बाबा का जवाब सुनकर भीमा ने बाबा के चरण छूकरगिड़गिड़ाते हुए अपने प्राण बचाने की विनती कीतो बाबा के मन में करुणा पैदा हो गयीबाबा पाटिल से बोले - "ऐ भीमा ! घबरा मतजिस समय तू शिरडी में दाखिल हुआउसी क्षण तेरा बदनसीब दूर हुआमस्जिद का फकीर बड़ा दयालु हैवह रोग भी दूर करता है और प्यार से परवरिश भी करता हैजो भी व्यक्ति श्रद्धा के साथ इस मस्जिद की सीढ़ी पर कदम रखता हैवह सुखी हो जाता है|" यह सुनते ही भीमा बेफिक्र हो गया|
भीमा बाबा के पास लगभग एक घंटा बैठा होगापर सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि भीमा को हर पांच मिनट में खूनी उल्टियां हुआ करती थींपर बाबा के सामने रहने पर उसे एक बार भी उल्टी नहीं हुईरोग तो तभी समाप्त हो गया था जब बाबा ने भीमा को दयालुता-भरे वचन कहे थेबाद में बाबा ने भीमा जी को भीमाबाई के घर ठहरने के लिए कहा|
बाबा के कहने पर भीमा पाटिल भीमाबाई के घर रुक गया और थोड़े ही दिनों में उसका रोग पूरी तरह से ठीक हो गयावह बाबा का गुणगान करता हुआ अपने घर लौट गया और बाबा के दर्शन करने के लिए आने लगाभीमा की साईं बाबा ने निष्ठा बढ़ गई|

कल चर्चा करेंगे..बाबा का विचित्र आदेश    

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Friday, 28 April 2017

श्री साईं लीलाएं - डॉक्टर को बाबा में श्री राम के दर्शन

ॐ सांई राम



परसों हमने पढ़ा था.. मुले शास्त्री को बाबा में गुरु-दर्शन

श्री साईं लीलाएं
डॉक्टर को बाबा में श्री राम के दर्शन

एक बार एक तहसीलदार साईं बाबा के दर्शन करने के लिए शिरडी आये थेउनके साथ एक डॉक्टर जो उनके मित्र थेवे भी आये थेडॉक्टर रामभक्त और जाति से ब्राह्मण थेवे राम के अतिरिक्त और किसी को न मानते और पूजते थेवे अपने तहसीलदार दोस्त के साथ इस शर्त पर शिरडी आये थे कि वे न तो बाबा के चरण छुएंगे और न ही उनके आगे सिर झुकायेंगेन ही वे उन्हें इस बात के लिए मजबूर करेंक्योंकि बाबा यवन (मुसलमान) हैं और वे श्रीराम के अलावा किसी के आगे सिर नहीं झुकातेशिरडी पहुंचकर जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के लिए मस्जिद गयेतो तहसीलदार से पहले उनके डॉक्टर मित्र आगे गये और बाबा के चरणों में गिरकर वंदना करने लगेयह देखकर तहसीलदार को बड़ा आश्चर्य हुआअन्य सब उपस्थित लोग भी अचरज में डूब गयेकुछ देर बाद जब उन्होंने डॉक्टर से इस बारे में पूछा कि आपने अपना इरादा कैसे बदल लिया तब डॉक्टर ने उन्हें बताया कि बाबा के स्थान पर उन्हें उनके इष्ट श्रीराम जी खड़े दिखाई दिये और उनकी मोहिनी सूरत देखकर मैं तुरंत उनके चरणों में गिर पड़ाजब वह ऐसा कह रहे थे तो उस समय साईं बाबा खड़े मुस्करा रहे थेसाईं बाबा को खड़े देख डॉक्टर को बहुत आश्चर्य हुआ कि कहीं वह कोई स्वप्न तो नहीं देख रहे हैं उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और वे बोले कि साईं बाबा को मुसलमान कहना मेरी बहुत बड़ी भूल थीबाबा तो पूर्ण योगावतार हैं|
अगले दिन से उन्होंने उपवास करना शुरू कर दिया और प्रण किया कि जब तक बाबा स्वयं मस्जिद बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगेतब तक मस्जिद नहीं जाऊंगाउन्हें प्रण किए तीन दिन बीत गएचौथे दिन उनका खान देश में रहनेवाला मित्र आयामित्र से कई वर्षों के बाद मिलने पर वह बहुत खुश हुएअपने मित्र के साथ डॉक्टर मस्जिद गएजब डॉक्टर बाबा की चरण वंदना करने के लिए झुकेतो बाबा ने कहा - "तुम तो मस्जिद नहीं आने वाले थेफिर आज कैसे आये ?" बाबा के वचनों को सुनकर डॉक्टर को अपना प्रण याद आयाउनका हृदय द्रवित हो उठा और आँखों में आँसू भर आये|
उसी रात को साईं बाबा ने डॉक्टर पर अपनी कृपादृष्टि की तो उन्हें सोते हुए ही परमानंद की अनुभूति हुई और वे 15 दिनों तक उसी आनंद में डूबे रहेउसके बाद वे साईं बाबा की भक्ति के रंग में रंग गये|

कल चर्चा करेंगे..जो मस्जिद में आया, सुखी हो गया    

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

Thursday, 27 April 2017

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 37

ॐ सांई राम




आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 37 

चावड़ी का समारोह
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इस अध्याय में हम कुछ थोड़ी सी वेदान्तिक विषयों पर प्रारम्भिक दृष्टि से समालोचना कर चावड़ी के भव्य समारोह का वर्णन करेंगे ।

प्रारम्भ
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धन्य है श्रीसाई, जिनका जैसा जीवन था, वैसी ही अवर्णनीय गति और क्रियाओं से पूर्ण नित्य के कार्यक्रम भी । कभी तो वे समस्त सांसारिक कार्यों से अलिप्त रहकर कर्मकाण्डी से प्रतीत होते और कभी ब्रहमानंद और कभी आत्मज्ञान में निमग्न रहा करते थे । कभी वे अनेक कार्य करते हुए भी उनसे असंबन्ध रहते थे । यघपि कभी-कभी वे पूर्ण निष्क्रिय प्रतीत होते, तथापि वे आलसी नहीं थे । प्रशान्त महासागर की नाईं सदैव जागरुक रहकर भी वे गंभीर, प्रशान्त और स्थिर दिखाई देते थे । उनकी प्रकृति का वर्णन तो सामर्थ्य से परे है ।

यह तो सर्व विदित है कि वे बालब्रहमचारी थे । वे सदैव पुरुषों को भ्राता तथा स्त्रियों को माता या बहिन सदृश ही समझा करते थे । उनकी संगति द्घारा हमें जिस अनुपम त्रान की उपलब्धि हुई है, उसकी विस्मृति मृत्युपर्यन्त न होने पाये, ऐसी उनके श्रीचरणों में हमारी विनम्र प्रार्थना है । हम समस्त भूतों में ईश्वर का ही दर्शन करें और नामस्मरण की रसानुभूति करते हुए हम उनके मोहविनाशक चरणों की अनन्य भाव से सेवा करते रहे, यही हमारी आकांक्षा है ।

हेमाडपंत ने अपने दृष्टिकोण द्घारा आवश्यकतानुसार वेदान्त का विवरण देकर चावड़ी के समारोह का वर्णन निम्न प्रकार किया है :-


चावड़ी का समारोह
...................
बाबा के शयनागार का वर्णन पहले ही हो चुका है । वे एक दिन मसजिद में और दूसरे दिन चावड़ी में विश्राम किया करते थे और यह कार्यक्रम उनकी महासमाधि पर्यन्त चालू रहा । भक्तों ने चावड़ी में नियमित रुप से उनका पूजन-अर्चन 10 दिसम्बर, सन् 1909 से आरम्भ कर दिया था । अब उनके चरणाम्बुजों का ध्यान कर, हम चावड़ी के समारोह का वर्णन करेंगे । इतना मनमोहक दृश्य था वह कि देखने वाले ठिठक-ठिठक कर रह जाते थे और अपनी सुध-बुध भूल यही आकांक्षा करते रहते थे कि यह दृश्य कभी हमारी आँखों से ओझल न हो । जब चावड़ी में विश्राम करने की उनकी नियमित रात्रि आती तो उस रात्रि को भक्तोंका अपार जन-समुदाय मसजिद के सभा मंडप में एकत्रित होकर घण्टों तक भजन किया करता था । उस मंडप के एक ओर सुसज्जित रथ रखा रहते था और दूसरी ओर तुलसी वृन्दावन था । सारे रसिक जन सभा-मंडप मे ताल, चिपलिस, करताल, मृदंग, खंजरी और ढोल आदि नाना प्रकार के वाघ लेकर भजन करना आरम्भ कर देते थे । इन सभी भजनानंदी भक्तों को चुम्बक की नाई आकर्षित करने वाले तो श्री साईबाबा ही थे ।

मसजिद के आँगन को देखो तो भक्त-गण बड़ी उमंगों से नाना प्रकार के मंगल-कार्य सम्पन्न करने में संलग्न थे । कोई तोरण बाँधकर दीपक जला रहे थे, तो कोई पालकी और रथ का श्रृंगार कर निशानादि हाथों में लिये हुए थे । कही-कही श्री साईबाबा की जयजयकार से आकाशमंडल गुंजित हो रहा था । दीपों के प्रकाश से जगमगाती मसजिद ऐसी प्रतीत हो रही थी, मानो आज मंगलदायिनी दीपावली स्वयं शिरडी में आकर विराजित हो गई हो । मसजिद के बाहर दृष्टिपात किया तो द्घार पर श्री साईबाबा का पूर्ण सुसज्जित घोड़ा श्यामसुंदर खड़ा था । श्री साईबाबा अपनी गादी पर शान्त मुद्रा में विराजित थे कि इसी बीच भक्त-मंडलीसहित तात्या पटील ने आकर उन्हें तैयार होने की सूचना देते हुए उठने में सहायता की । घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण तात्या पाटील उन्हें मामा कहकर संबोधित किया करते थे । बाबा सदैव की भाँति अपनी वही कफनी पहिन कर बगल में सटका दबाकर चिलम और तम्बाखू संग लेकर धन्धे पर एक कपड़ा डालकर चलने को तैयार हो गये । तभी तात्या पाटील ने उनके शीश पर एक सुनहरा जरी का शेला डाल दिया । इसके पश्चात् स्वयं बाबा ने धूनी को प्रज्वलित रखने के लिये उसमें कुछ लकड़ियाँ डालकर तथा धूनी के समीप के दीपक को बाँयें हाथ से बुझाकर चावड़ी को प्रस्थान कर दिया । अब नाना प्रकार के वाघ बजने आरम्भ हो गये और उनसे भाँति-भाँति के स्वर निकलने लगे । सामने रंग-बिरंगी आतिशबाजी चलने लगी और नर-नारी भाँति-भाँति के वाघ बजाकर उनकी कीर्ति के भजन गाते हुए आगे-आगे चलने लगे । कोई आनंद-विभोर हो नृत्य करने लगा तो कोई अनेक प्रकार के ध्वज और निशान लेकर चलने लगे । जैसे ही बाबा ने मसजिद की सीढ़ी पर अपने चरण रखे, वैसे ही भालदार ने ललकार कर उनके प्रस्थान की सूचना दी । दोनों ओर से लोग चँवर लेकर खड़े हो गये और उन पर पंखा झलने लगे । फिर पथ पर दूर तक बिछे हुए कपड़ो के ऊपर से समारोह आगे बढ़ने लगा । तात्या पाटील उनका बायाँ तथा म्हालसापति दायाँ हाथ पकड़ कर तथा बापूसाहेब जोग उनके पीछे छत्र लेकर चलने लगे । इनके आगे-आगे पूर्ण सुसज्जित अश्व श्यामसुंदर चल रहा था और उनके पीछे भजन मंडली तथा भक्तों का समूह वाघों की ध्वनि के संग हरि और साई नाम की ध्वनि, जिससे आकाश गूँज उठता था, उच्चारित करते हुए चल रहा था । अब समारोह चावड़ी के कोने पर पहुँचा और सारा जनसमुदाय अत्यन्त आनंदित तथा प्रफुल्लित दिखलाई पड़ने लगा । जब कोने पर पहुँचकर बाबा चावड़ी के सामने खड़े हो गये, उस समय उनके मुख-मंडल की दिव्यप्रभा बड़ी अनोखी प्रतीत होने लगी और ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो अरुणोदय के समय बाल रवि क्षितिज पर उदित हो रहा हो । उत्तराभिमुख होकर वे एक ऐसी मुद्रा में खड़े गये, जैसे कोई किसी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हो । वाघ पूर्ववत ही बजते रहे और वे अपना दाहिना हाथ थोड़ी देर ऊपर-नीचे उठाते रहे । वादक बड़े जोरों से वाघ बजाने लगे और इसी समय काकासाहेब दीक्षित गुलाल और फूल चाँदी की थाली में लेकर सामने आये और बाबा के ऊपर पुष्प तथा गुलाल की वर्षा करने लगे । बाबा के मुखमंडल पर रक्तिम आभा जगमगाने लगी और सब लोग तृप्त-हृदय हो कर उस रस-माधुरी का आस्वादन करने लगे । इस मनमोहक दृश्य और अवसक का वर्णन शब्दों में करने में लेखनी असमर्थ है । भाव-विभोर होकर भक्त म्हालसापति तो मधुर नृत्य करने लगे, परन्तु बाबा की अभंग एकाग्रता देखकर सब भक्तों को महान् आश्चर्य होने लगा । एक हाथ में लालटेन लिये तात्या पाटील बाबा के बाँई ओर और आभूषण लिये म्हालसापति दाहिनी ओर चले । देखो तो, कैसे सुन्दर समारोह की शोभा तथा भक्ति का दर्शन हो रहा है । इस दृश्य की झाँकी पाने के लिये ही सहस्त्रों नर-नारी, क्या अमीर और क्या फकी, सभी वहाँ एकत्रित थे । अब बाबा मंद-मंद गति से आगे बढ़ने लगे और उनके दोनों ओर भक्तगम भक्तिभाव सहित, संग-संग चले लगे और चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण दिखाई पड़ने लगा । सम्पूर्ण वायुमंडल भी खुशी से झूम उठा और इस प्रकार समारोह चावड़ी पहुँचा । अब वैसा दृश्य भविष्य में कोई न देख सकेगा । अब तो केवल उसकी याद करके आँखों के सम्मुख उस मनोरम अतीत की कल्पना से ही अपने हृदय की प्यास शान्त करनी पड़ेगी ।


चावड़ी की सजावट भी अति भी अति उत्तम प्रकार से की गई थी । उत्तम बढ़िया चाँदनी, शीशे और भाँति-भाँति के हाँड़ी-लालटेन (गैस बत्ती) लगे हुए थे । चावड़ी पहुँचने पर तात्या पाटील आगे बढ़े और आसन बिछाकर तकिये के सहारे उन्होंने बाबा को बैठाया । फिर उनको एक बढ़िया अँगरखा पहिनाया और भक्तों ने नाना प्रकार से उनकी पूजा की, उन्हें स्वर्ण-मुकुट धारण कराया, तथा फूलों और जवाहरों की मालाएँ उनके गले में पहिनाई । फिर ललाट पर कस्तूरी का वैष्णवी तिलक तथा मध्य में बिन्दी लगाकर दीर्घ काल तक उनकी ओर अपलक निहारते रहे । उनके सिर का कपड़ा बदल दिया गया और उसे ऊपर ही उठाये रहे, क्योंकि सभी शंकित थे कि कहीं वे उसे फेक न दे, परन्तु बाबा तो अन्तर्यामी थे और उन्होंने भक्तों को उनकी इच्छानुसार ही पूजन करने दिया । इन आभूषणों से सुसज्जित होने के उपरान्त तो उनकी शोभा अवर्णनीय थी ।

नानासाहेब निमोणकर ने वृत्ताकार एक सुन्दर छत्र लगाया, जिसके केंद्र में एक छड़ी लगी हुई थी । बापूसाहेब जोग ने चाँदी की एक सुन्दर थाली में पादप्रक्षालन किया और अघ्र्य देने के पश्चात् उत्तम विधि से उनका पूजन-अर्चन किया और उनके हाथों में चन्दन लगाकर पान का बीड़ा दिया । उन्हें आसन पर बिठलाया गया । फिर तात्या पाटील तथा अन्य सब भक्त-गण उनके श्री-चरणों पर अपने-अपने शीश झुकाकर प्रणाम करने लगे । जब वे तकिये के सहारे बैठ गये, तब भक्तगण दोनों ओर से चँवर और पंखे झलने लगे । शामा ने चिलम तैयार कर तात्या पाटील को दी । उन्होंने एक फूँक लगाकर चिलम प्रज्वलित की और उसे बाबा को पीने को दिया । उनके चिलम पी लेने के पश्चात फिर वह भगत म्हालसापति को तथा बाद में सब भक्तों को दी गई । धन्य है वह निर्जीव चिलम । कितना महान् तप है उसका, जिसने कुम्हार द्घार पहिले चक्र पर घुमाने, धूप में सुखाने, फिर अग्नि में तपाने जैसे अनेक संस्कार पाये । तब कहीं उसे बाबा के कर-स्पर्श तथा चुम्बन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । जब यह सब कार्य समाप्त हो गया, तब भक्तगण ने बाबा को फूलमालाओं से लाद दिया और सुगन्धित फूलों के गुलदस्ते उन्हें भेंट किये । बाबा तो वैराग्य के पूर्ण अतार थे और वे उन हीरे-जवाहरात व फूलों के हारों तथा इस प्रकार की सजधज में कब अभिरुचि लेने वाले थे । परन्तु भक्तों के सच्चे प्रेमवश ही, उनके इच्छानुसार पूजन करने में उन्होंने कोई आपत्ति न की । अन्त में मांगलिक स्वर में वाघ बजने लगे और बापूसाहेब जोग ने बाबा की यथाविधि आरती की । आरती समाप्त होने पर भक्तों ने बाबा को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा लेकर सब एक-एक करके अपने घर लौटने लगे । तब तात्या पाटील ने उन्हें चिनम पिलाकर गुलाब जल, इत्र इत्यादि लगाया और विदा लेते समय एक गुलाब का पुष्प दिया । तभी बाबा प्रेमपूर्वक कहने लगे के तात्या, मेरी देखभाल भली भाँति करना । तुम्हें घर जाना है तो जाओ, परन्तु रात्रि में कभी-कभी आकर मुझे देख भी जाना । तब स्वीकारात्मक उत्तर देकर तात्या पाटील चावड़ी से अपने घर चले गये । फिर बाबा ने बहुत सी चादरें बिछाकर स्वयं अपना बिस्तर लगाकर विश्राम किया ।

अब हम भी विश्राम करें और इस अध्याय को समाप्त करते हुये हम पाठकों से प्रार्थना करते है कि वे प्रतिदिन शयन के पूर्व श्री साईबाबा और चावड़ी समारोह का ध्यान अवश्य कर लिया करें ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
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Wednesday, 26 April 2017

श्री साईं लीलाएं - मुले शास्त्री को बाबा में गुरु-दर्शन

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. भक्तों के मन की बात जानने वाला बाबा


श्री साईं लीलाएं
मुले शास्त्री को बाबा में गुरु-दर्शन
     
नासिक के रहनेवाले मुले शास्त्री विद्वान थेसाथ में ज्योतिषवेदआध्यात्म के भी अच्छे जानकर थेएक बार वे नागपुर के प्रसिद्ध करोड़पति श्री बापू साहब बूटी से मिलने के लिए शिरडी आयेमिलने के बाद जब बूटी मस्जिद की ओर जाने लगे तो सहज भाव से मुले शास्त्री भी उनके साथ चल दिये|
जब वे दोनों मस्जिद पहुंचे तो बाबा भक्तों को आम खिला रहे थेउसके बाद उन्होंने केलों को खाने के लिए दिन शुरू कियापरन्तु केले बांटने का उनका तरीका एकदम अनोखा थाबाबा केले की गिरी निकालकर भक्तों को देते और छिलके अपने पास रख लेते थेयह देखकर मुले शास्त्री आश्चर्य में पड़ गयेचूंकि मुले शास्त्री हस्तरेखा के भी ज्ञाता थेउनकी बाबा के हाथों की लकीरें देखने की इच्छा हुईआगे बढ़कर इसके लिए उन्होंने बाबा से प्रार्थना कीपर साईं बाबा ने उनकी बातों पर ध्यान न देकर न देकर उन्हें खाने के लिए केले पकड़ा दिएमुले शास्त्री ने बाबा से दो-तीन बार विनती कीपर बाबा ने उसकी बात न मानीआखिर हारकर वे अपने ठहरने की जगह पर लौट आये|
बाबा जब दोपहर को लेंडीबाग से मस्जिद लौटे तो भक्त आरती की तैयारी में जुटे हुए थेबाजों की आवाज सुनकर बापू साहब जाने के लिए उठे और मुले जी से चलने के लिए कहालेकिन ब्राह्मण होने के कारण उन्होंने मस्जिद जाना उचित न समझा और टालने हेतु बोलेशाम को चलूंगाबापू साहब अकेले ही मस्जिद बाबा की आरती में चले गए|
इधर आरती सम्पन्न होने के बाद बाबा बूटी से बोले - "जाओ और उस नए ब्राह्मण से कुछ दक्षिणा लाओ|" बूटी ने आकर मुले जी से दक्षिणा मांगी तो वह हैरान-से रह गयेकि मैं तो अग्निहोत्री ब्राह्मण हूंक्या मुझे बाबा को दक्षिणा देनी चाहिए ऐसा विचार उनके मन में आयाफिर बाबा जैसे पहुंचे हुए संत ने मुझसे दक्षिणी मांगी है और बूटी जैसे करोड़पति दक्षिणा लेने के लिये आये हैं तो कैसे मना किया जा सकता है ऐसा विचार करके मस्जिद जाने के लिए चल पड़ेपर मस्जिद पहुंचते ही उनका ब्राह्मण होने का अहंकार फिर जग उठा और वह मस्जिद से कुछ दूर खड़े होकर वहीं से ही बाबा पर पुष्प अर्पण करने लगे|
लेकिन उन्हें यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि बाबा के आसन पर साईं बाबा नहींबल्कि गेरुये वस्त्र पहने उनके गुरु कैलाशवासी घोलप स्वामी विराजमान हैंउन्हें अपनी आँखों पर शक-सा हो गयाकहीं वह कोई स्वप्न तो नहीं देख रहे हैंऐसा सोचकर खुद को चिकोटी काटकर देखाउनकी समझ में नहीं आया कि उनके गुरु यहां मस्जिद में कैसे आ गया फिर वे सब कुछ भूलकर मस्जिद की ओर बढ़े और गुरु के चरणों में शीश झुकाकर हाथ जोड़कर स्तुति करने लगेअन्य भक्त बाबा की आरती गा रहे थेलोगों की नजरें तो साईं बाबा को देख रही थींपर मुले जो की नजर अपने गुरु घोलपनाथ को देख रही थीवे जात-पांत का अहंकार त्यागकर गुरु-चरणों में गिर पड़े और आँखें बंद कर लींयह सब दृश्य देखकर लोगों को भी बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि दूर से फूल फेंकने वाला ब्राह्मण अब बाबा के चरणों पर गिर पड़ा हैलोग बाबा की जय-जयकार कर रहे थेमुले घोलपनाथ की जय-जय कर रहे थे|
जब उन्होंने आँखें खोलीं तो सामने साईं बाबा खड़े दक्षिणा मांग रहे थेबाबा का सच्चिदानंद स्वरूप देखकर मुले अपनी सुधबुध खो बैठेउनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगीफिर उन्होंने बाबा को नमस्कार करके दक्षिणा भेंट की और बोलेबाबा आज मुझे मेरे गुरु के दर्शन होने से मेरे सारे संशय दूर हो गए - और वे बाबा के परम भक्त बन गएबाबा की यह विचित्र लीला देखकर सभी भक्त और स्वयं मुले शास्त्री भी दंग रह गये|

परसों चर्चा करेंगे..डॉक्टर को बाबा में श्री राम के दर्शन    

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh. INDIA.

बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.