शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday, 21 March 2017

श्री साईं लीलाएं - दयालु साईं बाबा

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. 
बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश

श्री साईं लीलाएं



दयालु साईं बाबा



दोपहर का समय था!

साईं बाबा खाना खाने के बाद अपने भक्तों से वार्तालाप कर रहे थे कि अचानक सारंगी के सुरों के साथ तबले पर पड़ी थाप से मस्जिद की गुम्बदें और मीनारें गूंज उठीं|

सब लोग चौंक उठे| दूसरे ही क्षण मस्जिद के दालान पर सारंगी के सुरों और तबलों की थापों के साथ घुंघरों की रुनझुन भी गूंज उठी| सभी शिष्य एक रूपसी नव नवयौवना की ओर देखने लगे| जिसके सुंदर बदन पर रेशमी घाघरा तथा चोली थी| जब वह नाचते हुए तेजी के साथ गोल-गोल चक्कर काटती थी, तो उसका रेशमी घाघरा गोरी-गोरी टांगों से ऊपर तक उठ जाता था|

चोली बहुत तंग और छोटी इतनी थी कि देखने वाले को शर्म आती थी| कजरारी आँखों से वासना छलक रही थी| वह अपने में मग्न होकर, सब-कुछ खोकर नाच रही थी|

सभी शिष्य बड़ी हैरानी से उसे देखने लगे| उन सबको बहुत आश्चर्य हो रह था कि वह कहां से आ गयी ? जरूर किसी आस-पास के गांव की होगी| उसका नृत्य करना भी बड़ा आश्चर्यजनक था|

वह नाचती रही| घुंघरूओं की ताल, सारंगी के सुर और तबलों की थाप बराबर गूंजती रही| अचानक साईं बाबा धीरे से उठे और नर्तकी की ओर बढ़ने लगे|

नर्तकी नाच रही थी| साईं बाबा एक पल उसे देखते रहे और फिर उन्होंने एकदम झुझ्कर नर्तकी के थिरकते पैर पकड़ लिये|

"बस करो मां, बस भी करो मां, तुम्हारे ये कोमल पैर इतनी देर तक नाचते-नाचते थक गए होंगे|" -साईं बाबा ने कहा और नर्तकी के पैर दबाने लगे|

थिरकते पैर एकदम रुक गये| घुंघरू थम गए|

तभी एक दर्दभरी चींख गूंज गयी - "बचाओ...बचाओ...सांप...सांप...|"

सबने चौंककर उस तरफ देखा, जिधर से आवाज आ रही थी|

मस्जिद के खम्बे के पीछे पंडित और गणेश खड़े थे| दोनों के सामने काला नाग फन फैलाये खड़ा था| उसने पंडितजी की कलाई में डस लिया था| वह छटपटाते हुए चींख रहे थे|

"अरे नाग कहां से आया ?" कई लोग चौककर बोले|

साईं बाबा मुस्कराते हुए उस नाग की ओर बढ़ने लगे|

देखते-देखते वह नाग मोटी रस्सी के रूप में बदल गया| लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही|

बुरी तरह से थर-थर कांपते हुए गणेश ने एक नजर उस उस्सी पर डाली और साईं बाबा के पैर पकड़ लिये|

मुझे क्षमा कर दो बाबा, मैं पापी हूं| सारा कुसूर मेरा ही है| कहते-कहते वह रोने लगा|

नर्तकी का सारा बदन भय से कांप रहा था|

"साईं बाबा मुझे माफ...कर दो ...मैं तुम्हें... अपना शत्रु... समझता रहा था| मेरे सारे शरीर में जहर फैल चुका है| मुझे क्षमा कर दो...साईं बाबा ...!"

साईं बाबा ने अपना हाथ आकाश की ओर उठाकर कहा - "फौरन उतर जा...|"

"तुम्हें कुछ नहीं होगा पंडितजी...तुम्हें कुछ नहीं होगा...| यह तुम्हारी आत्मा का सारा पाप खत्म कर देगा|"

पंडितजी लगभग बेहोश हो गये थे| उनके मुंह से झाग निकल रहा था| सारा शरीर लगभग नीला पड़ चुका था| बड़बड़ाना शुरू हो गया था| सबको पंडितजी की हालात देखकर यह विश्वास हो चला था कि अब पंडितजी का बचना संभव नहीं है| साईं बाबा ने पंडितजी का सिर अपनी गोद में रख रखा था और बार-बार बड़बड़ा रहे थे - "चला जा, चला जा|"

सब लोग आश्चर्य से यह दृश्य देख रहे थे|

कुछ ही देर बाद पंडितजी के शरीर का रंग पहले की तरह हो गया| उनकी बंद आँखें खुलने लगीं| शरीर में मानो चेतना का संचार शुरू हो गया| पंडितजी का यह रूप परिवर्तन देख सबको राहत मिली| अब उनको यह विश्वास हो गया कि पंडितजी की जान बच गयी|

साईं बाबा का चमत्कार सभी आँखें फाड़े आश्चर्य से देख रहे थे|

थोड़ा समय और बीता| पंडितजी उठकर बैठ गए, जैसे उन्हें कुछ हुआ ही न हो| तभी द्वारकामाई मस्जिद की गुम्बदें और मीनारें साईं बाबा की जय-जयकार भी गूंज उठीं|



कल चर्चा करेंगे... कुत्ते की पूँछ

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें । 

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.