शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday, 20 March 2017

श्री साईं लीलाएं - बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश

ॐ सांई राम



कल हमने पढ़ा था.. 
पानी से दीप जले

श्री साईं लीलाएं
बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश

पंडितजी साईं बाबा को गांव से भगाने के विषय में सोच-विचार कर रहे थे कि तभी एक पुलिस कोंस्टेबिल आता दिखाई दिया| पंडितजी ने उसे दूर से ही पहचान लिया था| उसका नाम गणेश था| वह पंडितजी के पास आता-जाता रहता था|

थाने में जितने भी पुलिस कर्मचारी थे, गणेश उन सबमें ज्यादा चालबाज था| लोगों को किसी भी फर्जी केस में फंसा देना तो उसके बायें हाथ का खेल था| रिश्वत लेने में उसका कोई सानी नहीं था| जो भी नया थानेदार आता वह अपनी लच्छेदार बातों, हथकंडों से उसे अपनी और मिला लेता था| फिर सीधे-सादे गांववासियों को सताना शुरू कर देता था| पंडितजी भी इस काम में उसकी भरपूर सहायता करते थे|

उस आया देखकर पंडितजी के मन को थोड़ी-सी शांति मिली|

"आओ, आओ गणेश !" पंडितजी बोले, फिर हाथ पकड़कर अपने पास चौकी पर बैठा लिया|

"कैसे हालचाल हैं पंडितजी ?" - गणेश ने पूछा|

"बहुत बुरा हाल है|" पंडितजी दु:खभरे स्वर में बोले - "कुछ न पूछो| जब से साईं बाबा गांव में आया है, मेरा तो सारा धंधा ही चौपट होकर रह गया है| उनकी भभूती ने मेरा औषधालयबंद कर दिया| लोगों ने मंदिर में आना भी छोड़ दिया है| दुकानदार सुबह-शाम मंदिर आ जाते थे, उनसे थोड़ी-बहुत आमदनी हो जाती थी, पर दीपावली से वह भी बंद हो गयी|"

"वो कैसे ?"

पंडितजी दीपावली की सारी घटना सुनाने के बाद कहा - "गणेश भाई ! यदि यहीं तक होता तो चिंता की कोई बात न थी| मेरे पास खेत हैं| उन खेतों से इतनी आमदनी हो जाती थी कि बड़े मजे से दिन गुजर जाते| लेकिन खेतों में काम करने वाले मजदूरों ने खेतों में काम करने से मना कर दिया है| फसल का समय आ रहा है, यदि खेतों में समय पर फसल न बोयी तो साल भर खाऊंगा क्या ? मैं तो इस साईं से बहुत ही दु:खी हूं|

"जब से साईं इस गांव में आया है आमदनी तो हम लोगों की भी कम हो गयी है| न तो गांव में लड़ाई-झगड़ा होता है और न चोरी-डकैती| साईं के आने से पहले गांव से खूब आमदनी होती थी| अब तो फूटी कौड़ी भी हाथ नहीं लग रहा है|" -गणेश ने भी अपना दु:खड़ा सुनाया|

"तो कोई ऐसा उपाय सोचो जिससे यह ढोंगी गांव छोड़कर भाग जाए|" -पंडितजी ने कहा|

गणेश सोच में पड़ गया|

पंडितजी नाश्ता लेने अंदर चले गए|

नाश्ता करने के बाद एक लम्बी डकार लेते हुए गणेश ने रहस्यपूर्ण स्वर में कहा - "पंडितजी, पुलिस के जितने भी बड़े-बड़े अफसर हैं, वह सब इस साईं के चेले बन गए हैं| यदि उनसे इसके विरुद्ध कोई शिकायत की जाएगी तो वे सुनेंगे ही नहीं| दो-चार बार कभी साईं के विरुद्ध कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन अभी अपनामुंह भी नहीं खोल पाया था कि अफसरों ने फटकारते हुए कहा - "खबरदार, जो साईं के विरुद्ध एक शब्द भी कहा| वह इंसान नहीं भगवान का अवतार हैं|" उनकी डांट खाकर चुप रह जाना पड़ा| इसलिए उनसे तो उम्मीद करना ही बेकार है| यदि साईं को गांव से कोई निकाल सकता है तो वह सिर्फ गांववाले|"

"भला गांव वाले उसे क्यों गांव से निकालने लगे ?" -पंडितजी बोले|

"देखो, पंडितजी ! गांव वाले बहुत सीधे-सादे होते हैं| उन्हें झूठ और धोखे से बहुत घृणा होती है| उनका चाल-चलन एकदम साफ-सुथरा होता है| वह उस आदमी को कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते, जिसका चाल-चलन ठीक नहीं होता और उस आदमी को तो किसी भी कीमत पर नहीं, जिसे वे साधु-महात्मा, सिद्ध या अपना गुरु मानते हैं| साईं कुंवारा है और पंडितजी आप तो जानते ही हैं कि इस दुनिया में ऐसा कोई भी पुरुष नहीं है, जो औरत से बच सके| यदि किसी तरह किसी औरत के साथ साईं बाबा का सम्बंध बनाया जा सके, कोई औरत उसे अपने जाल में फंसा ले तो फिर साईं का पत्ता साफ|"

"साईं का तो किसी औरत से सम्बंध नहीं है| वह तो प्रत्येक स्त्री को माँ कहता है| उसके चाल-चलन के बारे में तो आज तक कोई ऐसी-वैसी बात सुनी ही नहीं गई है|" -पंडितजी ने कहा|

"नहीं है तो क्या हुआ, इस दुनिया में कौन-सा ऐसा काम है, जिसे न किया जा सके|" गणेश ने एक आँख दबाते हुए मुस्कराकर कहा - "बस पैसों की जरूरत है| यदि मेरे पास थोड़े-से रुपये होते तो मैं इस साईं को कल ही गांव से भगा दूं|"

"तुम रुपयों की चिंता बिल्कुल मत करो| ये बताओ कि साईं को भगाओगे कैसे ?" -पंडितजी ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए पूछा|

गणेश ने पंडितजी की ओर मुस्कराकर देखते हुए कहा- "जरा अपना कान इधर लाइए|"

पंडितजी अपना कान गणेश के मुंह के पास ले गये| गणेश धीरे-धीरे फुसफुसाकर उन्हें अपनी योजना समझाने लगा| पंडितजी के चेहरे से ऐसा प्रकट हो रहा था|कि जैसे वह उसकी योजना से पूरी तरह सहमत हैं|

वह उठकर अंदर चले गये और जब वापस लौटे, तो उनके हाथ में कपड़े की एक थैली थी, जो रुपयों से भरी हुई थी|

"लो गणेश !" -पंडितजी ने रुपयों की थैली गणेश की ओर बढ़ाते हुए कहा- "पूरे पांच सौ हैं|"

गणेश ने थैली झपटकर अपने झोले में रख ली और उठकर बोला- "अच्छा पंडितजी, अब आज्ञा दीजिए| चार-पांच दिन तो लग ही जायेंगें, तब आपसे मुलाकत होगी|"

"ठीक है|" पंडितजी ने कहा- "तुम रुपयों की चिंता बिल्कुल मत करना| इस साईं को गांव से निकलवाने के लिए तो मैं अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता हूं|"

गणेश मुस्कराया और फिर चल दिया|



कल चर्चा करेंगे... दयालु साईं बाबा
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.