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"www.shirdikesaibabagroup.com"
अब नये और बेहतर अवतार में,
आपके सुझावों का हमें बेसब्री से इंतज़ार
रहता है। "समर्थ सदगुरू श्री साँईं नाथ महाराज जी की जय!" ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।। BOW TO SHREE SAI, PEACE BE TO ALL. |
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शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)
शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....
"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम
मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे
कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे
मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे
दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे
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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।
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Saturday, 27 February 2016
Welcome to Shirdi Ke Sai Baba Group (Regd.)
Friday, 26 February 2016
मुझसे क्या भूल हुई साईं.....
Thursday, 25 February 2016
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 24
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श्री साई बाबा का हास्य विनोद, चने की लीला (हेमाडपंत), सुदामा की कथा, अण्णा चिंचणीकर और मौसीबाई की कथा ।
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प्रारम्भ
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अगले अध्याय में अमुक-अमुक विषयों का वर्णन होगा, ऐसा कहना एक प्रकार का अहंकार ही है । जब तक अहंकार गुरुचरणों में अर्पित न कर दिया जाये, तब तक सत्यस्वरुप की प्राप्ति संभव नहीं । यदि हम निरभिमान हो जाये तो सफलता प्रापात होना निश्चित ही है ।
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शिरडी में बाजार प्रति रविवार को लगता है । निकटवर्ती ग्रामों से लोग आकर वहाँ रास्तों पर दुकानें लगाते और सौदा बेचते है । मध्याहृ के समय मसजिद लोगों से ठसाठस भर जाया करती थी, परन्तु इतवार के दिन तो लोगों की इतनी अधिक भीड़ होती कि प्रायः दम ही घुटने लगता था । ऐसे ही एक रविवार के दिन श्री. हेमाडपंत बाबा की चरण-सेवा कर रहे थे । शामा बाबा के बाई ओर व वामनराव बाबा के दाहिनी ओर थे । इस अवसर पर श्रीमान् बूटीसाहेब और काकसाहेब दीक्षित भी वहाँ उपस्थित थे । तब शामा ने हँसकर अण्णासाहेब से कहा कि देखो, तुम्हारे कोट की बाँह पर कुछ चने लगे हुए-से प्रतीत होते है । ऐसा कहकर शामा ने उनकी बाँह स्पर्श की, जहाँ कुछ चने के दाने मिले । जब हेमाडपंत ने अपनी बाईं कुहनी सीधी की तो चने के कुछ दाने लुढ़क कर नीचे भी गिर पड़े, जो उपस्थित लोगों ने बीनकर उठाये । भक्तों को तो हास्य का विषय मिल गया और सभी आश्चर्यचकित होकर भाँति-भाँति के अनुमान लगाने लगे, परन्तु कोई भी यह न जान सका कि ये चने के दाने वहाँ आये कहाँ से और इतने समय तक उसमें कैसे रहे । इसका संतोषप्रद उत्तर किसी के पास न था, परन्तु इस रहस्य का भेद जानने को प्रत्येक उत्सुक था । तब बाबा कहने लगे कि इन महाशय-अण्णासाहेब को एकांत में खाने की बुरी आदत है । आज बाजार का दिन है और ये चने चबाते हुए ही यहाँ आये है । मैं तो इनकी आदतों से भली भाँति परिचित हूँ और ये चने मेरे कथन की सत्यता के प्रमाणँ है । इसमें आश्चर्य की बात ही क्या है । हेमाडपंत बोले कि बाबा, मुझे कभी भी एकांत में खाने की आदत नहीं है, फिर इस प्रकार मुझ पर दोशारोपण क्यों करते है । अभी तक मैंने शिरडी के बाजार के दर्शन भी नहीं किये तथा आज के दिन तो मैं भूल कर भी बाजार नहीं गया । फिर आप ही बताइये कि मैं ये चने भला कैसे खरीदता और जब मैंने खरीदे ही नही, तब उनके खाने की बात तो दूर की ही है । भोजन के समय भी जो मेरे निकट होते है, उन्हें उनका उचित भाग दिये बिना मैं कभी ग्रहण नहीं करता । बाबा-तुम्हारा कथन सत्य है । परन्तु जब तुम्हारे समीप ही कोई न हो तो तुम या हम कर ही क्या सकते है । अच्छा, बताओ, क्या भोजन करने से पूर्व तुम्हें कभी मेरी स्मृति भी आती है । क्या मैं सदैव तुम्हारे साथ नहीं हूँ । फिर क्या तुम पहले मुझे ही अर्पण कर भोजन किया करते हो ।
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इस घटना द्घारा बाबा क्या शिक्षा प्रदान कर रहे है, थोड़ा इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है । इसका सारांश यह है कि इन्द्रियाँ, मन और बुद्घि द्घारा पदार्थों का रसास्वादन करने के पूर्व बाबा का स्मरण करना चाहिए । उनका स्मरण ही अर्पण की एक विधि है । इन्द्रियाँ विषय पदार्थों की चिन्ता किये बिना कभी नहीं रह सकती । इन पदार्थों को उपभोग से पूर्व ईश्वरार्पण कर देने से उनका आसक्ति स्वभावतः नष्ट हो जाती है । इसी प्रकार समस्त इच्छाये, क्रोध और तृष्णा आदि कुप्रवृत्तियों को प्रथम ईश्वरार्पण कर गुरु की ओर मोड़ देना चाहिये । यदि इसका नित्याभ्यास किया जाय तो परमेश्वर तुम्हे कुवृत्तियों के दमन में सहायक होंगे । विषय के रसास्वादन के पूर्व वहाँ बाबा की उपस्थिति का ध्यान अवश्य रखना चाहिये । तब विषय उपभोग के उपयुक्त है या नही, यह प्रश्न उपस्थित हो जायेगा और ततब अनुचित विषय का त्याग करना ही पड़ेगा । इस प्रकार कुप्रवृत्तियाँ दूर हो जायेंगी और आचरण में सुधार होगा । इसके फलस्वरुप गुरुप्रेम में वृद्घि होकर सुदृ ज्ञान की प्राप्ति होगी । जब इस प्रकारा ज्ञान की वृद्घि होती है तो दैहिक बुद्घि नष्ट हो चैतन्यघन में लीन हो जाती है । वस्तुतः गुरु और ईश्वर में कोई पृथकत्व नहीं है और जो भिन्न समझता है, वह तो निरा अज्ञानी है तथा उसे ईश्वर-दर्शन होना भी दुर्लभ है । इसलिये समस्त भेदभाव को भूल कर, गुरु और ईश्वर को अभिन्न समझना चाहिये । इस प्रकार गुरु सेवा करने से ईश्वर-कृपा प्राप्त होना निश्चित ही है और तभी वे हमारा चित्त शुदृ कर हमें आत्मानुभूति प्रदान करेंगे । सारांश यह है कि ईश्वर और गुरु को पहले अर्पण किये बिना हमें किसी भी इन्द्रयग्राहृ विषय की रसास्वादन न करना चाहिए । इस प्रकार अभ्यास करने से भक्ति में उत्तरोततर वृद्घि होगी । फिर भी श्री साईबाबा की मनोहर सगुण मूर्ति सदैव आँखों के सम्मुखे रहेगी, जिससे भक्ति, वैराग्य और मोक्ष की प्राप्ति शीघ्र हो जायेगी । ध्यान प्रगाढ़ होने से क्षुधा और संसार के अस्तित्व की विस्मृति हो जायेगी और सांसारिक विषयों का आकर्षण स्वतः नष्ट होकर चित्त को सुख और शांति प्राप्त होगी ।
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उपयुक्त घटना का वर्णन करते-करते हेमाडपंत को इसी प्रकार की सुदामा की कथा याद आई, जो ऊपर वर्णित नियमों की पुष्टि करती है ।
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अब श्री. हेमाडपंत एक दूसरी हास्यपूर्ण कथा का वर्णन करते है, जिसमें बाबा ने शान्ति-स्थापन का कार्य किया है । दामोदर घनश्याम बाबारे, उपनाम अण्णा चिंचणीकर बाबा के भक्त थे । वे सरल, सुदृढ़ और निर्भीक प्रकृति के व्यक्ति थे । वे निडरतापूर्वक स्पष्ट भाषण करते और व्यवहार में सदैव नगद नारायण-से थे । यघपि व्यावहारिक दृष्टि से वे रुखे और असहिष्णु प्रतीत होते थे, परन्तु अन्तःकरण से कपटहीन और व्यवहार-कुशल थे । इसी कारण उन्हें बाबा विशेष प्रेम करते थे । सभी भक्त अपनी-अपनी इच्छानुसार बाबा के अंग-अंग को दबा रहे थे । बाबा का हाथे कठड़े पर रखा हुआ था । दूसरी ओर एक वृदृ विधवा उनकी सेवा कर रही थी, जिनका नाम वेणुबाई कौजलगी था । बाबा उन्हें माँ शब्द से सम्बोधित करते तथा अन्य लोग उन्हे मौसीबाई कहते थे । वे एक शुदृ हृदय की वृदृ महिला थी । वे उस समय दोनों हाथों की अँगुलियाँ मिलाकर बाबा के शरीर को मसल रही थी । जब वे बलपूर्वक उनका पेट दबाती तो पेट और पीठ का प्रायः एकीकरण हो जाता था । बाबा भी इस दबाव के कारण यहाँ-वहाँ सरक रहे थे । अण्णा दूसरी ओर सेवा में व्यस्त थे । मौसीबाई का सिर हाथों की परिचालन क्रिया के साथ नीचे-ऊपर हो रहा था । जब इस प्रकार दोनों सेवा में जुटे थे तो अनायास ही मौसीबाई विनोदी प्रकृति की होने के कारण ताना देकर बोली कि यह अण्णा बहुत बुरा व्यक्ति है और यह मेरा चुंबन करना चाहता है । इसके केश तो पक गये है, परन्तु मेरा चुंबन करने में इसे तनिक भी लज्जा नहीं आती है । यतह सुनकर अण्णा क्रोधित होकर बोले, तुम कहती हो कि मैं एक वृदृ और बुरा व्यक्ति हूँ । क्या मैं मूर्ख हूँ । तुम खुद ही छेड़खानी करके मुझसे झगड़ा कर रही हो । वहाँ उपस्थित सब लोग इस विवाद का आनन्द ले रहे थे । बाबा का स्नेह तो दोनों पर था, इसलिये उन्होंने कुशलतापूर्वक विवाद का निपटारा कर दिया । वे प्रेमपूर्वक बोले, अरे अण्णा, व्यर्थ ही क्यों झगड़ रहे हो । मेरी समझ में नहीं आता कि माँ का चुंबन करने में दोष या हानि ही क्या हैं । बाबा के शब्दों को सुनकर दोनों शान्त हो गये और सब उपस्थित लोग जी भरकर ठहाका मारकर बाबा के विनोद का आनन्द लेने लगे ।
Wednesday, 24 February 2016
सज रहे है जी साईं राम देखो शिर्डी में...
देखो शिर्डी में
देखो शिर्डी में, देखो शिर्डी में
द्वारका माई भी जग-मग सजी है
स्वर्ग बना है साईं धाम, देखो शिर्डी में
देखो शिर्डी में ,देखो शिर्डी में
सुनहरे चोले से बाबा को सजाएँ
भक्त कर रहे देखो प्रणाम, देखो शिर्डी में
देखो शिर्डी में ,देखो शिर्डी में
कोई सुनहरी माला चढ़ाये
कर रहे सब गुणगान , देखो शिर्डी में
देखो शिर्डी में ,देखो शिर्डी में
झोली वो खाली भर भर के लाया
यहाँ बैठे हैं करुणा निधान, देखो शिर्डी में ,
देखो शिर्डी में ,देखो शिर्डी में
कोढ़ी को भी गले से लगाया
श्रधा सबुरी की शिक्षा महान देखो शिर्डी में
देखो शिर्डी में ,देखो शिर्डी में
Tuesday, 23 February 2016
आन पधारो साईं राम , मेरे आँगन में
Monday, 22 February 2016
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Urgent o + blood group for kailash Hospital Sector- 27 Noida pls contact Nitin Aggarwal on 9818041817
औकात कभी ना भूलूं
यह जो सिर चढ़कर बोलता है
साँई कृपा का ही असर डोलता है
कब से अनजान था खुद से ही मैं
अब तेरे भक्तों में ढूंढता खुद को मैं
कभी गरूर था अपनी कामयाबी पर
जबकि कामयाब बिल्कुल भी ना था
आज जब भरपूर कामयाबी पाई है
तो पता चला कि इसके पीछे साँई हैं
अपने आप से सीधा सवाल करता हूँ
क्यों इतराता अपनी शख्सियत पर हैं
ऐसा क्या रूतबा हासिल कर लिया हैं
साँई ने जिसे परवान नहीं किया हैं
अगर जिंदगी में कुछ हासिल करने की हैं तमन्ना
तो ना किसी से कभी भी कुछ उम्मीद करना
हासिल तो मंजिल एक दिन हो ही जाएगी
दिल को ठेस पहुंचने की संभावना घट जाएगी
ना मैं मुझ में रहूं और ना तू तुझ में रहे
आ गले लग जाए हिंदू-मुस्लिम ना रहे
कम तो तुम भी कुछ मुझ से ना थे कभी
मुझमें भी तुम से ज्यादा होने की आस ना रहे
क्युं ना कुछ सीख पंछियों से भी ले लू
मंदिर पर बैठ राम और मस्जिद पर बैठ अल्लाह बोलू
इरादे बुलंद रहे आसमान को छू लेने के
धर्म के नाम पर कभी भी ना मैं डोलू
साईं बाबा ज़रा, आके देखो मुझे
Sunday, 21 February 2016
साईं तुम तो दौड़े आओगे
यह प्रस्तुति बहन रविंदर जी द्वारा पेश की गयी है
Kindly Provide Food & clean drinking Water to Birds & Other Animals,
For Donation
