रामायण के प्रमुख पात्र - भक्तिमति शबरी
ॐ श्री साँईं राम जी
शबरीका जन्म भीलकुलमें हुआ था| वह भीलराजकी एकमात्र कन्या थी| उसका विवाह एक पशुस्वभावके क्रूर व्यक्तिसे निश्चय हुआ| अपने विवाहके अवसरपर अनेक निरीह पशुओंको बलिके लिये लाया गया देखकर शबरीका हृदय दयासे भर गया| उसके संस्कारोंमें दया, अहिंसा और भगवद्भक्ति थी| विवाहकी रात्रिमें शबरी पिताके अपयशकी चिन्ता छोड़कर बिना किसीको बताये जंगलकी ओर चल पड़ी| रात्रिभर वह जी-तोड़कर भागती रही और प्रात:काल महर्षि मतंगके आश्रममें पहुँची| त्रिकालदर्शी ऋषिने उसे संस्कारी बालिका समझकर अपने आश्रममें स्थान दिया| उन्होंने शबरीको गुरुमन्त्र देकर नाम-जपकी विधि भी समझायी|
महर्षि मतंगने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागता शबरीका त्याग नहीं किया| महर्षिका अन्त निकट था| उनके वियोगकी कल्पनामात्रसे शबरी व्याकुल हो गयी| महर्षिने उसे निकट बुलाकर समझाया - 'बेटी! धैर्यसे कष्ट सहन करती हुई साधनामें लगी रहना| प्रभु राम एक दिन तेरी कुटियामें अवश्य आयेंगे| प्रभुकी दृष्टिमें कोई दीन-हीन और अस्पृश्य नहीं है| वे तो भावके भूखे हैं और अन्तरकी प्रीतिपर रीझते हैं| शबरीका मन अप्रत्याशित आनन्दसे भर गया और महर्षिकी जीवन-लीला सम्पात हो गयी|
शबरी अब वृद्धा हो गयी थी| 'प्रभु आयेंगे' गुरुदेवकी यह वाणी उसके कानोंमें गूँजती रहती थी और इसी विश्वासपर वह कर्मकाण्डी ऋषियोंके अनाचार शान्तिसे सहती हुई अपनी साधनामें लगी रही| वह नित्य भगवान् के दर्शनकी लालसासे अपनी कुटिया को साफ करती, उनके भोगके लिये फल लाकर रखती| आखिर शबरीकी प्रतीक्षा पूरी हुई| अभी वह भगवान् के भोगके लिये मीठे-मीठे फलोंको चखकर और उन्हें धोकर दोनोंमें सजा ही रही थी कि अचानक एक वृद्धने उसे सूचना दी - 'शबरी! तेरे राम भ्रातासाहित आ रहे हैं|' वृद्धके शब्दोंने शबरीमें नवीन चेतनाका संचार कर दिया| वह बिना लकुट लिये हड़बड़ीमें भागी| श्रीरामको देखते ही वह निहाल हो गयी और उनके चरणोंमें लोट गयी| देहकी सुध भूलकर वह श्रीरामको देखते ही वह निहाल हो गयी और उनके चरणोंमें लोट गयी| देहकी सुध भूलकर वह श्रीरामके चरणोंको अपने अश्रुजलसे धोने लगी| किसी तरह भगवान् श्रीरामने उसे उठाया| अब वह आगे-आगे उन्हें मार्ग दिखाती अपनी कुटियाकी ओर चलने लगी| कुटियामें पहुँचकर उसने भगवान् का चरण धोकर उन्हें आसनपर बिठाया| फलोंके दोने उनके सामने रखकर वह स्नेहसिक्त वाणीमें बोली - 'प्रभु! मैं आपको अपने हाथोंसे फल खिलाऊँगी| खाओगे न भीलनीके हाथके फल? वैसे तो नारी जाति ही अधम है और मैं तो अन्त्यज, मूढ और गँवार हूँ| 'कहते-कहते शबरीकी वाणी रुक गयी और उसके नेत्रोंसे अश्रुजल छलक पड़े|
श्रीरामने कहा - 'बूढ़ी माँ! मैं तो एक भक्तिका ही नाता मानता हूँ| जाति-पाति, कुल, धर्म सब मेरे सामने गौण हैं| मुझे भूख लग रही है, जल्दीसे मुझे फल खिलाकर तृप्त कर दो|' शबरी भगवान् को फल खिलाती जाती थी और वे बार-बार माँगकर खाते जाते थे| महर्षि मंतगकी वाणी आज सत्य हो गयी और पूर्ण हो गयी शबरीकी साधना| उसने भगवान् को सीताकी खोजके लिये सुग्रीवसे मित्रता करनेकी सलाह दी और स्वयंको योगाग्निमें भस्म करके सदाके लिये श्रीरामके चरणोंमें लीन हो गयी| श्रीराम-भक्तिकी अनुपम पात्र शबरी धन्य है|
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बाबा के 11 वचन
ॐ साईं राम
1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
Word Meaning of the Gayatri Mantra
ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe
these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation
धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"
dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God
भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।
Simply :
तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.