रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीशत्रुघ्न
ॐ श्री साँईं राम जी
श्रीशत्रुघ्नजी का चरित्र अत्यन्त विलक्षण है| ये मौन सेवाव्रती हैं| बचपनसे श्रीभरतजीका अनुगमन तथा सेवा ही इनका मुख व्रत था| ये मितभाषी, सदाचारी, सत्यवादी, विषय-विरागी तथा भगवान् श्रीरामके दासानुदास हैं| जिस प्रकार श्रीलक्ष्मणजी हाथमें धनुष श्रीरामकी रक्षा करते हुए उनके पीछे चलते थे, उसी प्रकार श्रीशत्रुघ्नजी भी श्रीभरतजीके साथ रहते थे|
जब श्रीभरतजीके मामा युधाजित् श्रीभरतजीको अपने साथ ले जा रहे थे, तब श्रीशत्रुघ्नजी भी उनके साथ ननिहाल चले गये| इन्होंने माता-पिता, भाई, नवविवाहिता पत्नी सबका मोह छोड़कर श्रीभरतजीके साथ रहना और उनकी सेवा करना ही अपना कर्तव्य मान लिया था| भरतजीके साथ ननिहालसे लौटनेपर पिताके मरण और लक्ष्मण, सीतासहित श्रीरामके वनवासका समाचार सुनकर इनका हृदय दुःख और शोकसे व्याकुल हो गया| उसी समय इन्हें सूचना मिली कि जिस क्रूरा पापिनीके षड्यन्त्रसे श्रीरामका वनवास हुआ, वह वस्त्राभूषणोंसे सज-धजकर खड़ी है, तब ये क्रोधसे व्याकुल हो गये| ये मन्थराकी चोटीपकड़कर उसे आँगनमें घसीटने लगे| इनके लातके प्रहारसे उसका कूबर टूट गया और सिर फट गया| उसकी दशा देखकर श्रीभरतजीको दया आ गयी और उन्होंने उसे छुड़ा दिया| इस घटनासे श्रीशत्रुघ्नजीकी श्रीरामके प्रति दृढ़ निष्ठा और भक्तिका परिचय मिलता है|
चित्रकूटसे श्रीराम पादुकाएँ लेकर लौटते समय जब श्रीशत्रुघ्नजी श्रीरामसे मिले, तब इनके तेज स्वभावको जानकर भगवान् श्रीरामने कहा - 'शत्रुघ्न! तुम्हें मेरी और सीताकी शपथ है, तुम माता कैकेयीकी सेवा करना, उनपर कभी भी क्रोध मत करना|'
श्रीशत्रुघ्नजीका शौर्य भी अनुपम था| सीता-वनवासके बाद एक दिन ऋषियोंने भगवान् श्रीरामकी सभामें उपस्थित होकर लवणासुरके अत्याचारोंका वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारोंसे मुक्ति दिलानेकी प्रार्थना की| श्रीशत्रुघ्नजीने भगवान् श्रीरामकी आज्ञासे वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुरका वध किया और मथुरापुरी बसाकर वहाँ बहुत दिनोंतक शासन किया|
भगवान् श्रीरामके परमधाम पधारनेके समय मथुरामें अपने पुत्रोंका राज्याभिषेक करके श्रीशत्रुघ्नजी अयोध्या पहुँचे| श्रीरामके पास आकर और उनके चरणोंमें प्रणाम करके इन्होंने विनीत भावसे कहा - 'भगवन्! मैं अपने दोनों पुत्रोंका राज्याभिषेक करके आपके साथ चलनेका निश्चय करके ही यहाँ आया हूँ| आप अब मुझे कोई दूसरी आज्ञा न देकर अपने साथ चलनेकी अनुमति प्रदान करें|' भगवन् श्रीरामने शत्रुघ्नजीकी प्रार्थना स्वीकार की और वे श्रीरामचन्द्रके साथ ही साकेत पधारे|
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बाबा के 11 वचन
ॐ साईं राम
1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
Word Meaning of the Gayatri Mantra
ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe
these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation
धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"
dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God
भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।
Simply :
तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.