शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Thursday, 5 June 2014

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30

ॐ सांई राम


आप सभी को शिर्डी के साँईं बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...




श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30
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शिरडी को खींचे गये भक्त
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1. वणी के काका वैघ
2. खुशालचंद
3. बम्बई के रामलाल पंजाबी ।
इस अध्याय में बतलाया गया है कि तीन अन्य भक्त किस प्रकार शिरडी की ओर खींचे गये ।


प्राक्कथन
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जो बिना किसी कारण भक्तों पर स्नेह करने वाले दया के सागर है तथा निर्गुण होकर भी भक्तों के प्रेमवश ही जिन्होंने स्वेच्छापूर्वक मानव शरीर धारण किया, जो ऐसे भक्त और समस्त कष्ट दूर हो जाते है, ऐसे श्री साईनाथ महाराज को हम क्यों न नमन करें । भक्तों को आत्मदर्शन कराना ही सन्तों का प्रधान कार्य है । श्री साई, जो सन्त शिरोमणि है, उनका तो मुख्य ध्येय ही यही है । जो उनके श्री-चरणों की शरण में जाते है , उनके समस्त पाप नष्ट होकर निश्चित ही दिन-प्रतिदिन उनकी प्रगति होती है । उनके श्री-चरणों का स्मरण कर पवित्र स्थानों से भक्तगण शिरडी आते और उनके समीप बैठकर श्लोक पढ़कर गायत्री-मंत्र का जप किया करते थे । परन्तु जो निर्बल तथा सर्व प्रकार से दीन-हीन है और जो यह भी नहीं जानते कि भक्ति किसे कहते है, उनका तो केवल इतना ही विश्वास है कि अन्य सब लोग उन्हें असहाय छोड़कर उपेक्षा भले ही कर दे, परन्तु अनाथों के नाथ और प्रभु श्री साई मेरा कभी परित्याग न करेंगे । जिन पर वे कृपा करे, उन्हें प्रचण्ड शक्ति, नित्यानित्य में विवेक तथा ज्ञान सहज ही प्राप्त हो जाता है । वे अपने भक्तों की इच्छायें पूर्णतः जानकर उन्हें पूर्ण किया करते है, इसीलिये भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाया करती है और वे सदा कृतज्ञ बने रहते है । हम उन्हें साष्टांग प्रणाम कर प्रार्थना करते है कि वे हमारी त्रुटियों की ओर ध्यान न देकर हमें समस्त कष्टों से बचा लें । जो विपति-ग्रस्त प्राणी इस प्रकार श्री साई से प्रार्थना करता है, उनकी कृपा से उसे पूर्ण शान्ति तथा सुख-समृद्घि प्राप्त हती है । श्री हेमाडपंत कहते है कि हे मेरे प्यारे साई । तुम तो दया के सागर हो । यह तो तुम्हारी ही दया का फल है, जो आज यह साई सच्चरित्र भक्तों के समक्ष प्रस्तुत है, अन्यथा मुझमें इतनी योग्यता कहाँ थी, जो ऐसा कठिन कार्य करने का दुस्साहस भी कर सकता । जब पूर्ण उत्ततरदायित्व साई ने अपने ऊपर ही ले लिया तो हेमाडपंत को तिलमात्र भी भार प्रतीत न हुआ और न ही इसकी उन्हें चिन्ता ही हुई । श्री साई ने इस ग्रन्थ के रुप में उनकी सेवा स्वीकार कर ली । यह केवल उनके पूर्वजन्म के शुभ संस्कारों के कारण ही सम्भव हुआ, जजिसके लिये वे अपने को भाग्यशाली और कृतार्थ समझते है । नीचे लिखी कथा कपोलकल्पित नहीं, वरन् विशुदृ अमृततुल्य है । इसे जो हृदयंगम करेगा, उसे श्री साई की महानता और सर्वव्यापकता विदित हो जायेगी, परन्तु जो वादविवाद और आलोचना करना चाहते है, उन्हें इन कथाओं की ओर ध्यान देने की आवश्यकता भी नहीं है । यहाँ तर्क की नहीं, वरन् प्रगाढ़ प्रेम और भक्ति की अत्यन्त अपेक्षा है । विद्घान् भक्त तथा श्रद्घालु जन अथवा जो अपने को साई-पद-सेवक समझते है, उन्हें ही ये कथाएँ रुचिकर तथा शिक्षाप्रद प्रतीत होगी, अन्य लोगों के लिये तो वे निरी कपोल-कल्पनाएँ ही है । श्री साई के अंतरंग भक्तों को श्री साईलीलाएँ कल्पतरु के सदृश है । श्री साई-लीलारुपी अमृतपान करने से अज्ञानी जीवों को मोक्ष, गृहस्थाश्रमियों को सन्तोष तथा मुमुक्षुओं को एक उच्च साधन प्राप्त होता है । अब हम इस अध्याय की मूल कथा पर आते है ।

काका जी वैघ
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नासिक जिले के वणी ग्राम में काका जी वैघ नाम के एक व्यक्ति रहते थे । वे श्रीसप्तशृंगी देवी के मुख्य पुजारी थे । एक बार वे विपत्तियों में कुछ इस प्रकार ग्रसित हुए कि उनके चित्त की शांति भंग हो गई और वे बिलकुल निराश हो उअठे । एक दिन अति व्यथित होकर देवी के मंदिर में जाकर अन्तःकरण से वे प्रार्थना करने लगे कि हे देवि । हे दयामयी । मुझे कष्टों से शीघ्र मुक्त करो । उनकी प्रार्थना से देवी प्रसन्न हो गई और उसी रात्रि को उन्हें स्वप्न में बोली कि तू बाबा के पास जा, वहाँ तेरा मन सान्त और स्थिर हो जायेगा । बाबा का परिचय जानने को काका जी बड़े उत्सुक थे, परन्तु देवी से प्रश्न करने के पूर्व ही उनकी निद्रा भंग हो रगई । वे विचारने लगे कि ऐसे ये कौन से बाबा है, जिनकी ओर देवी ने मुझे संकेत किया है । कुछ देर विचार करने के पश्चात् वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सम्भव है कि वे त्र्यंबकेश्वर बाबा (शिव) ही हों । इसलिये वे पवित्र तीर्थ त्र्यंबक (नासिक) को गये और वहाँ रहकर दस दिन व्यतीत कियये । वे प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त हो, रुद्र मंत्र का जप कर, साथ ही साथ अभिषेक व अन्य धार्मिक कृत्य भी करने लगे । परन्तु उनका मन पूर्ववत् ही अशान्त बना रहा । तब फिर अपने घर लौटकर वे अति करुण स्वर में देवी की स्तुति करने लगे । उसी रात्रि में देवी ने पुनः स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि तू व्यर्थ ही त्र्यम्बकेश्वर क्यो गया । बाबा से तो मेरा अभिप्राय था शिरडी के श्री साई समर्थ से । अब काका जी के समक्ष मुख्य प्रश्न यह उपस्थित हो गया कि वे कैसे और कब शिरडी जाकर बाबा के श्री दर्शन का लाभ उठाये । यथार्थ में यदि कोई व्यक्ति, किसी सन्त के दर्शने को आतुर हो तो केवल सन्त ही नही, भगवान् भी उसकी इच्छा पूर्ण कर देते है । वस्तुतः यिद पूछा जाय तो सन्त और अनन्त एक ही है और उनमें कोई भिन्नता नही । यदि कोई कहे कि मैं स्वतः ही अमुक सन्त के दर्शन को जाऊँगा तो इसे निरे दम्भ के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है । सन्त की इचत्छा के विरुदृ उनके समीप कौन जाकर द्रर्शन ले सकता है । उनकी सत्त के बिना वृक्ष का एक पत्ता भी नहीं हिल सकता । जितनी तीव्र उत्कंठा संत दर्शन की होती, तदनुसार ही उसकी भक्ति और विश्वास में वृद्घि होती जायेगी और उतनी ही शीघ्रता से उनकी मनोकामना भी सफलतापूर्वक पू4ण होगी । जो निमंत्रण देता है, वह आदर आतिथ्य का प्रबन्ध भी करता है । काका जी के सम्बन्ध में सचमुच यही हुआ ।

शामा की मान्यता
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जब काका जी शिरडी यात्रा करने का विचार कर रहे थे, उसी समय उनके यहाँ एक अतिथि आया (जो शामा के अतिरिक्त और कोई न था) । शामा बाबा के अंतरंग भक्तों में से एक थे । वे ठीक इसी समय वणी में क्यों और कैसे आ पहुँचे, अब हम इस पर दृष्टि डालें । बाल्यावस्था में वे एक बार बहुत बीमार पड़ गये थे । उनकी माता ने अपनी कुलदेवी सप्तशृंगी से प्रार्थना की कि यदि मेरा पुत्र नीरोग हो जाये तो मैं उसे तुम्हारे चरणों पर लाकर डालूँगी । कुछ वर्षों के पश्चात् ही उनकी माता के स्तन में दाद हो गई । तब उन्होंने पुनः देवी से प्रार्थना की कि यदि मैं रोगमुक्त हो जाऊँ तो मैं तुम्हें चाँदी के दो स्तन चाढाऊँगी । पर ये दोनों वचन अधूरे ही रहे । परन्तु जब वे मृत्युशैया पर पड़ी ती तो उन्होंने अपने पुत्र शामा को समीप बुलाकर उन दोनों वचनों की स्मृति दिलाई तथा उन्हें पूर्ण करने का आश्वासन पाकर प्राण त्याग दिये । कुछ दिनों के पश्चात् वे अपनी यह प्रतिज्ञा भूल गये और इसे भूले पूरे तीस साल व्यतीत हो गये । तभी एक प्रसिदृ ज्योतिषी शिरडी आये और वहाँ लगभग एक मास ठहरे । श्री मान् बूटीसाहेब और अन्य लोगों को बतलाये उनके सभी भविष्य प्रायः सही निकले, जिनसे सब को पूर्ण सन्तोष था । शामा के लघुभ्राता बापाजी ने भी उनसे कुछ प्रश्न पूछे । तब ज्योतिषी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे ज्येष्ठ भ्राता ने अपनी माता को मृत्युशैया पर जो वचन दिये थे, उनके अब तक पूर्ण न किये जाने के कारण देवी असन्तुष्ट होकर उन्हें कष्ट पहुँचा रही है । ज्योतिषी की बात सुनकर शामा को उन अपूर्ण वचनों की स्मृति हो आई । अब और विलम्ब करना खतरनाक समझकर उन्होंने सुनार को बुलाकर चाँदी के दो स्तन शीघ्र तैयार कराये और उन्हें मसजिद मं ले जाकर बाबा के समक्ष रख दिया तथा प्रणाम कर उन्हें स्वीकार कर वचनमुक्त करने की प्रार्थना की । शामा ने कहा कि मेरे लिये तो सप्तशृंगी देवी आप ही है, परन्तु बाबा ने साग्रह कहा कि तुम इन्हें स्वयं ले जाकर देवी के चरणों में अर्पित करो । बाबा की आज्ञा व उदी लेकर उन्होंने वणी को प्रस्थान कर दिया । पुजारी का घर पूछते-पूछते वे काका जी के पास जा पहुँचे । काका जी इस समय बाबा के दर्शनों को बड़े उत्सुक थे और ठीक ऐसे ही मौके पर शामा भी वहाँ पहुँच गये । वह संयोग भी कैसा विचित्र था । काका जी ने आगन्तुक से उनका परिचय प्राप्त कर पूछा कि आप कहाँ से पधार रहे है । जब उन्होंने सुना कि वे शिरडी से आ रहे तो वे एकदम प्रेमोन्मत हो शामा से लिपट गये और फिर दोनों का श्री साई लीलाओं पर वार्तालाप आरम्भ हो गया । अपने वचन संबंधी कृत्यों को पूर्ण कर वे काकाजी के साथ शिरडी लौट आये । काकाजी मसजिद पहुँच कर बाबा के श्रीचरणों से जा लिपटे । उनके नेत्रों से प्रेमाश्रुओं की धारा बहने लगी और उनका चित्त स्थिर हो गया । देवी के दृष्टांतानुसार जैसे ही उन्होंनें बाबा के दर्शन किये, उनके मन की अशांति तुरन्त नष्ट तहो गई और वे परम शीतलता का अनुभव करने लगे । वे विचार करने लगे कि कैसी अदभुत शक्ति है कि बिना कोई सम्भाषण या प्रश्नोत्तर किये अथवा आशीष पाये, दर्शन मात्र से ही अपार प्रसन्नता हो रही है । सचमुच में दर्शन का महत्व तो इसे ही कहते है । उनके तृषित नेत्र श्री साई-चरणों पर अटक गये और वे अपनी जिहा से एक शब्द भी न बोल सके । बाबा की अन्य लीलाएँ सुनकर उन्हें अपार आनन्द हुआ और वे पूर्णतः बाबा के शरणागत हो गये । सब चिन्ताओं और कष्टों को भूलकर वे परम आनन्दित हुए । उन्होंने वहाँ सुखपूर्वक बारह दिन व्यतीत किये और फिर बाबा की आज्ञा, आशीर्वाद तथा उदी प्राप्त कर अपने घर लौट गये ।

खुशालचन्द (राहातानिवासी)
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ऐसा कहते है कि प्रातःबेला में जो स्वप्न आता है, वह बहुधा जागृतावस्था में सत्य ही निकलता है । ठीक है, ऐसा ही होता होगा । परन्तु बाबा के सम्बन्ध में समय का ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं था । ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत है – बाबा ने एक दिन तृतीय प्रहर काकासाहेब को ताँगा लेकर राहाता से खुशालचन्द को लाने के लिये भेजा, क्योंकि खुशालचन्द से उनकी कई दोनों से भेंट न हुई थी । राहाता पहुँच कर काकासाहेब ने यह सन्देश उन्हें सुना दिया । यह सन्देश सुनकर उन्हें महान् आश्चर्य हुआ और वे कहने लगे कि दोपहर को भोजन के उपरान्त थोड़ी देर को मुझे झपकी सी आ गई थी, तभी बाबा स्वप्न में आये और मुझे शीघ्र ही शिरडी आने को कहा । परन्तु घोडे का उचित प्रबन्ध न हो सकने के कारण मैंने अपने पुत्र को यह सूचना देने के लिये ही उनके पास भेजा था । जब वह गाँव की सीमा तक ही पहुँचा था, तभी आप सामने से ताँगे में आते दिखे । वे दोनों उस ताँगे में बैठकर शिरडी पहुँचे तथा बाबा से भेंटकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई । बाबा की यह लीला देख खुशालचन्द गदगद हो गये ।

बम्बई के रामलाल पंजाबी
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बम्बई के एक पंजाबी ब्राहमण श्री. रामलाला को बाबा ने स्वप्न में एक महन्त के वेश में दर्शन देकर शिरडी आने को कहा । उन्हें नाम ग्राम का कुछ भी पता चल न रहा था । उनको श्री-दर्शन करने की तीव्र उत्कंठा तो थी, परन्तु पता-ठिकाना ज्ञात न होने के कारण वे बड़े असमंजस में पड़े हुये थे । जो आमंत्रण देता है, वही आने का प्रबन्ध भी करता है और अन्त में हुआ भी वैसा ही । उसी दिन सन्ध्या समय जब वे सड़क पर टहल रहे थे तो उन्होंने एक दुकान पर बाबा का चित्र टंगा देखा । स्वप्न में उन्हें जिस आकृति वाले महन्त के दर्शन हुए थे, वे इस चित्र के समक्ष ही थे । पूछताछ करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि यह चित्र शिरडी के श्री साई समर्थ का है और तब उन्होंने शीघ्र ही शिरडी को प्रस्थान कर दिया तथा जीवनपर्यन्त शिरडी में ही निवास किया । इस प्रकार बाबा ने अपने भक्तों को अपने दर्शन के लिये शिरडी में बुलाया और उनकी लौकिक तथा पारलौकिक समस्त इच्छाँए पूर्ण की ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.