शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Sunday, 25 May 2014

रामायण के प्रमुख पात्र - माता कौसल्या

ॐ श्री साँई राम जी 



माता कौसल्या

महारानी कौसल्याका चरित्र अत्यन्त उदार है| ये महाराज दशरथकी सबसे बड़ी रानी थीं| पूर्व जन्ममें महराज मनुके साथ इन्होंने उनकी पत्नीरूपमें कठोर तपस्या करके श्रीरामको पुत्ररूपमें प्राप्त करनेका वरदान प्राप्त किया था| इस जन्ममें इनको कौसल्यारूपमें भगवान् श्रीरामकी जननी होनेका सौभाग्य मिला था|

श्रीकौसल्याजीका मुख्य चरित्र रामायणके अयोध्याकाण्डसे प्रारम्भ होता है| भगवान् श्रीरामका राज्याभिषेक होनेवाला है| नगरभरमें उत्सवकी तैयारियाँ हो रही हैं| माता कौसल्याके आनन्दका पार नहीं है | वे श्रीरामकी मंगल-कामनासे अनेक प्रकारके यज्ञ, दान, देवपूजन और उपवासमें संलग्न हैं| श्रीराम को सिहांसनपर आसीन देखनेकी लालसासे इनका रोम-रोम पुलकित है| परन्तु श्रीराम तो कुछ दूसरी ही लीला करना चाहते हैं | सत्यप्रेमी महाराज दशरथ कैकेयीके साथ वचनबद्ध होकर श्रीरामको वनवास देनेके लिये बाध्य हो जाते हैं|

प्रात:काल भगवान् श्रीराम माता कैकेयी और पिता महाराज दशरथसे मिलकर वन जानेका निश्चय कर लेते हैं और माता कौसल्याका आदेश प्राप्त करनेके लिये उनके महलमें पधारते हैं| श्रीरामको देखकर माता कौसल्या उनके पास आती हैं| इनके हृदयमें वात्सल्य-रसकी बाढ़ आ जाती है और मुँहसे आशीर्वादकी वर्षा होने लगती है| ये श्रीरामका हाथ पकड़कर उनको उन्हें शिशुकी भाँति अपनी गोदमें बैठा लेती हैं और कहने लगती हैं - 'श्रीराम! राज्याभिषेकमें अभी विलम्ब होगा| इतनी देरतक कैसे भूखे रहोगे, दो-चार मधुर फल ही खा लो|' भगवान् श्रीरामने कहा - 'माता! पिताजीने मुझको चौदह वर्षोंके लिये वनका राज्य दिया है, जहाँ मेरा सब प्रकारसे कल्याण ही होगा| तुम भी प्रसन्नचित्त होकर मुझको वन जानेकी आज्ञा दे दी| चौदह सालतक वनमें निवास कर मैं पिताजीके वचनोंका पालन करूँगा, पुन: तुम्हारे श्रीचरणोंका दर्शन करूँगा|'

श्रीरामके ये वचन माता कौसल्याके हृदयमें शूलकी भाँति बिंध गये| उन्हें अपार क्लेश हुआ| वे मूर्च्छित होकर धरतीपर गिर गयीं, उनके विषादकी कोई सीमा न रही| फिर वे सँभलकर उठीं और बोलीं - 'श्रीराम! यदि तुम्हारे पिताका ही आदेश हो तो तुम माताको बड़ी जानकार वनमें न जाओ! किन्तु यदि इसमें छोटी माता कैकयीकी भी इच्छा हो तो मैं तुम्हारे धर्म-पालनमें बाधा नहीं बनूँगी| जाओ! काननका राज्य तुम्हारे लिये सैकड़ों अयोध्याके राज्यसे भी सुखप्रद हो|' पुत्रवियोगमें माता कौसल्यका हृदय दग्ध हो रहा है, फिर भी कर्त्तव्यको सर्वोपरि मानकर तथा अपने हृदयपर पत्थर रखकर वे पुत्रको वन जानेकी आज्ञा दे देती हैं| सीता-लक्ष्मणके साथ श्रीराम वन चले गये| महाराज दशरथ कौसल्याके भवनमें चले आये| कौसल्याजीने महराजको धैर्य बँधाया, किन्तु उनका वियोग-दुःख कम नहीं हुआ| उन्होंने राम-राम कहते हुए अपने नश्वर शरीरको त्याग दिया| कौसल्याजीने पतिमरण, पुत्रवियोग-जैसे असह्य दुःख केवल श्रीराम-दर्शनकी लालसामें सहे| चौदह सालके कठिन वियोगके बाद श्रीराम आये| कौसल्याजीको अपने धर्मपालनका फल मिला| अन्तमें ये श्रीरामके साथ ही साकेत गयीं|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.