शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Saturday, 24 May 2014

रामायण के प्रमुख पात्र - महाराज दशरथ

ॐ श्री साँई राम जी 


महाराज दशरथ

अयोध्यानरेश महाराज दशरथ स्वायम्भुव मनुके अवतार थे| पूर्वकालमें कठोर तपस्यासे इन्होंने भगवान् श्रीरामको पुत्ररूपमें प्राप्त करनेका वरदान पाया था| ये परम तेजस्वी, वेदोंके ज्ञाता, विशाल सेनाके स्वामी, प्रजाका पुत्रवत् पालन करनेवाले तथा सत्यप्रतिज्ञ थे| इनके राज्यमें प्रजा सब प्रकारसे धर्मरत तथा धन-धान्यसे सम्पन्न थी| देवता भी महाराज दशरथकि सहायता चाहते थे| देवासुर-संग्राममें इन्होंने दैत्योंको पराजित किया था| इन्होंने अपने जीवनकालमें अनेक यज्ञ भी किये|

महाराज दशरथकि बहुत-सी रानियाँ थीं, उनमें कौसल्या, सुमित्रा और कैकेयी प्रधान थीं| महाराजकी वृद्धावस्था आ गयी, किन्तु इनको कोई पुत्र नहीं हुआ| इन्होंने अपनी इस समस्यासे गुरुदेव वसिष्ठको अवगत कराया| गुरुकी आज्ञासे ॠष्यश्रृंग बुलाये गये और उनके आचार्यत्वमें पुत्रेष्टि यज्ञका आयोजन हुआ| यज्ञपुरुषने स्वयं प्रकट होकर पायसत्रसे भरा पात्र महाराज दशरथको देते हुए कहा - 'राजन्! यह खीर अत्यन्त श्रेष्ठ, आरोग्यवर्धक तथा पुत्रोंको उत्पन्न करनेवाली है| इसे तुम अपनी रानियोंको खिला दो|' महाराजने वह खीर कौसल्या, कैकेयी और सुमित्रामें बाँटकर दे दिया| समय आनेपर कौसल्याके गर्भसे सनातन पुरुष भगवान् श्रीरामका अवतार हुआ| कैकेयीने भरत और सुमित्राने लक्ष्मण तथा शत्रुघ्नको जन्म दिया |

चारों भाई माता-पिताके लाड़-प्यारमें बड़े हुए| यद्यपि महाराजको चारों ही पुत्र प्रिय थे, किन्तु श्रीरामपर इनका विशेष स्नेह था| ये श्रीरामको क्षणभरके लिये भी अपनी आँखोंसे ओझल नहीं करना चाहते थे| जब विश्वामित्रजी यज्ञरक्षार्थ श्रीराम-लक्ष्मणको माँगने आये तो वसिष्ठके समझानेपर बड़ी कठिनाईसे ये उन्हें भेजनेके लिये तैयार हुए|

अपनी वृद्धावस्थाको देखकर महाराज दशरथने श्रीरामको युवराज बनाना चाहा| मंथराकी सलाहसे कैकेयीने अपने पुराने दो वरदान महाराजसे माँगे - एकमें भरतको राज्य और दूसरेमें श्रीरामके लिये चौदह वर्षोंका वनवास| कैकेयीकी बात सुनकर महाराज दशरथ स्तब्ध रह गये| थोड़ी देरके लिये तो इनकी चेतना ही लुप्त हो गयी| होश आनेपर इन्होंने कैकयीको समझाया| बड़ी ही नम्रतासे दीन शब्दोंमें इन्होंने कैकेयीसे कहा - 'भरतको तो मैं अभी बुलाकर राज्य दे देता हूँ, किन्तु तुम श्रीरामको वन भेजनेका आग्रह मत करो|' विधिके विधान एवं भावीकी प्रबलताके कारण महाराजके विनयका कैकेयीपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा| भगवान् श्रीराम पिताके सत्यकी रक्षा और आज्ञापालनके लिये अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मणके साथ वन चले गये| महाराज दशरथके शोकका ठिकाना न रहा| जबतक श्रीराम रहे तभीतक, इन्होंने अपने प्राणोंको रखा और उनका वियोग होते ही श्रीरामप्रेमानलमें अपने प्राणोंकि आहुति दे डाली|

जिअत राम बिधु बदनु निहारा| राम बिरह करि मरनु सँवारा||

महाराज दशरथके जीवनके साथ उनकी मृत्यु भी सुधर गयी| श्रीरामके वियोगमें अपने प्राणोंको देकर इन्होंने प्रेमका एक अनोखा आदर्श स्तापित किया| महाराज दशरथके सामान भाग्यशाली और कौन होगा, जिन्होंने अपने अंत समयमने राम-राम पुकारते हुए अपने प्राणोंका विसर्जन किया|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.