शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday, 12 November 2013

भक्त विदुर

ॐ साँई राम जी


भक्त विदुर

आइआ सुणिआ बिदर दे बोले दुरजोधन होइ रुखा |
घरि असाडे छडि के गोले दे घरि जाहि कि सुखा |
भीखम द्रोणाकरण तजि सभा सींगार भले मानुखा |
झुग्गी जाई वलाइओनु सभनां दे जीअ अंदर धुखा |
हस बोले भगवान जी सुणिहो राजा होई सनमुखा |
तेरे भाउ न दिसई मेरे नाहीं अपदा दुखा |
भाउ जिवेहा बिदर दे होरी दे चिति चाऊ न चुखा |
गोबिंद भाउ भगति दा भुखा |



युगों-युगों से यह रीत चली आ रही है कि अहंकार और लालच की सदा दया, धर्म और प्यार से टक्कर रही है| अहंकारी और लालची पुरुष की सेवा, उसकी अयोग्य आज्ञा का पालन वह करता है, जिसे आवश्यकता हो 'गौं भुनावे जौं|' लेकिन जिसे कोई दुःख, लालच, अहंकार, लोभ नहीं, वह कदापि भी अहंकारी मनुष्य की परवाह नहीं करता| ऐसी ही कथा भक्त विदुर और श्री कृष्ण जी की है| श्री कृष्ण जी सदा प्रेम और श्रद्धा के प्यासे रहे हैं| उनको राज पाठ, शान-शौकत आदि की कभी आवश्यकता नहीं थी| प्रभु के पास सब कुछ अपरंपार है|

जहां वह धरती मथुरा-वृंदावन के राजा थे, वहां प्रेम, श्रद्धा, भक्ति तथा दिलों के भी राजा थे|

भाई गुरदास जी ने इस बारे सुन्दर कथा बयान की है|

एक दिन मुरली मनोहर श्री कृष्ण जी दुर्योधन के राज्य में पधारे वह दुर्योधन के शीश महलों तथा दरबारियों-सेनापतियों के शाही ठाठ-बाठ वाले महलों को छोड़कर एक दासी पुत्र विदुर की झौंपड़ी में रात को जाकर ठहरे| उस निर्धन के पास एक चटाई ही बैठने के लिए थी और खाने के लिए केवल अलूना सरसों का साग उसने रखा हुआ था| वह भी हांडी में पक रहा था| भगवान श्री कृष्ण विदुर की कुटिया में पहुंच गए| श्री कृष्ण के चरण स्पर्श से उसकी कुटिया में उजाला हो गया| उसके भाग्य जाग गए| उसने प्रभु के चरण धोकर चरणामृत लिया और सारी रात प्रभु की खुले मन से सेवा करता रहा| प्रभु के प्रवचन सुनकर वह मुग्ध हो गया, जिसकी भक्ति करता आ रहा था, दर्शन के लिए तड़पता था, वह प्रत्यक्ष दर्शन देकर उसे आनंदित करते रहे| विदुर का साग उन्होंने बड़े चाव से खाया| ऐसे चखा जैसे छत्तीस प्रकार के भोजन खाते हैं| विदुर को भी नया ही स्वाद आया| उसका मन तृप्त हो गया| वह एक तरह से मुक्त हो गया| उसका जीवन इस भवसागर से पार हो गया| वह एक दासी पुत्र था| अहंकारी दुर्योधन तथा उसके भाई और दरबारी विदुर को अच्छा नहीं समझते थे| उनको अपने राज का अहंकार था|

भक्त विदुर के जन्म की कथा इस प्रकार है| विदुर दुर्योधन का चाचा लगता था| धृतराष्ट्र, पांडव और विदुर तीनों भाई ऋषि व्यास के पुत्र थे| उनके जन्म की कथा इस प्रकार महाभारत में वर्णन है|

रानी सत्यवती के तीन पुत्र थे| व्यास, चित्रांगाद और विचित्रवीर्य| व्यास के अलावा दोनों पुत्र शादीशुदा थे और उनकी रानियां काफी सुन्दर रूपवती थीं| लेकिन संयोग से दोनों ही शीघ्र मर गए| उनकी दोनों रानियां अम्बा और अम्बिका विधवा हो गईं| वह सुन्दर तथा रूपवती सन्तानहीन थीं| राजसिंघासन तथा वंश चलाने के लिए संतान की आवश्यकता थी|

एक दिन रानी सत्यवती ने अपनी दोनों वधुओं को बैठा कर समझाया कि हस्तिनापुर के राजसिंघासन हेतु वह उसके बड़े पुत्र व्यास से सन्तान प्राप्त कर ले| लेकिन व्यास शक्ल सूरत से कुरुप था इसलिए दोनों रानियां उससे सन्तान प्राप्त नहीं करना चाहती थीं| लेकिन रानी सत्यवती के अधिक विवश करने पर दोनों रानियों अम्बा और अम्बिका ने एक-एक पुत्र प्राप्त किया| अम्बा का पुत्र धृतराष्ट्र था जो जन्म से ही अन्धा था और अम्बिका के गर्भ से पांडव का जन्म हुआ|

रानी अम्बिका व्यास की सूरत से घृणा करती थी| जब रानी सत्यवती ने उसे और पुत्र प्राप्त करने के लिए कहा तो अम्बिका ने बड़ी चालाकी से स्वयं जाने की जगह व्यास के पास अपनी दासी को भेज दिया|

उस दासी के पेट से जिस बच्चे ने जन्म लिया, उसका नाम विदुर रखा गया| दासी पुत्र होने के कारण विदुर का राजमहल में सत्कार कम था|

पांडव बड़ा राजपुत्र होने के कारण राजसिंघासन पर विराजमान हुआ| लेकिन तीर्थ यात्रा करने गया पांडव एक ऋषि के श्राप से शीघ्र ही स्वर्ग सिधार गया| उसकी मृत्यु के बाद जो राज विदुर को मिलना चाहिए था, दासी पुत्र होने के कारण उसे न मिल सका| राजसिंघासन पर धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर का राजा घोषित करके विराजमान किया|

इस प्रकार विदुर नगर से बाहर अपनी पत्नी के साथ एक छोटी-सी कुटिया में रहने लग गया| राज की ओर से इतनी घृणा हो गई कि वह राज राजकोष से कोई धन नहीं लेता था| अपने परिश्रम द्वारा ही निर्वाह करता और धरती पर ही सोता| उसका मन प्रभु भक्ति में सदा लिवलीन रहता, जिससे उसकी भक्ति पर प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण उसके घर रात रहे|

भाई गुरदास जी फरमाते हैं कि दुर्योधन को जब इस बारे पता लगा कि यादव वंश मथुरा के राजा श्री कृष्ण उसके महल में रात रहने की बजाय उनके चाचा दासी पुत्र विदुर के घर में रहे हैं और स्वादिष्ट पकवानों की जगह अलूना साग खाया है तो वह भगवान कृष्ण के पास गया और उसने कहा - 'हे कृष्ण! आप हमारे राजभवन में रहने की जगह दासी पुत्र की झौंपड़ी में क्यों ठहरे हैं| यदि मेरे पास नहीं रहना था तो मेरी सभा के श्रृंगार भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य तथा कर्ण आदि के पास रुक जाते| उनके राजभवनो में जाकर निवास कर लेते| हमें यह बहुत बुरा लगा है कि आपने एक दासी पुत्र के घर कुटिया में जाकर रात बिताई| हमारे साथ क्या वैर-विरोध हुआ है?

दुर्योधन की यह बात सुनकर भगवान कृष्ण जी हंस पड़े और उसकी तरफ देखते हुए कहने लगे-हे दुर्योधन! विदुर की झौंपड़ी तो अति पवित्र है| विदुर राजाओं का राजा है, क्योंकि उसकी आत्मा प्रेम भक्ति के रस में डूबी हुई है| ईश्वर प्रेम देखता है लेकिन दूसरी ओर आपके महलों में प्रेम भक्ति का वास नहीं, आपके यहां अहंकार, लोभ, राज की भूख है, इसलिए मुझे विदुर का प्रेम खींच कर ले गया| यह भी बात है कि मुझे न कोई विपदा पड़ी है तथा न कोई दुःख है जो मैं आप का सहारा लूंगा| एक बे-गरज आदमी को क्या जरूरत है कि राजाओं के महलों में जाकर उनकी खुशामद करे? जी विदुर के घर चाव, श्रद्धा तथा प्यार की भावना है वह आपके पास नहीं और मेरा हृदय प्यार का चाहवान है, क्योंकि पारब्रह्म परमेश्वर और जीव के बीच केवल एक प्यार का संबंध है|

कबीर जी के मुखारबिंद श्री कृष्ण जी ने कहा-हे राजन! बताओ कौन आपके घर में आएगा, क्योंकि आपके घर प्रेम एवं श्रद्धा का निवास नहीं| जैसा विदुर के घर प्रेम है वह मुझे अच्छा लगता है|आप तो अपनी उच्च पदवी राजसिंघासन को देखकर भ्रम का शिकार हुए हैं और परमात्मा की महाकाल शक्ति को भुला बैठे हैं क्योंकि आपको परमेश्वर का ज्ञान नहीं| सिर्फ राज अभिमान है| इसलिए विदुर आप से बहुत बड़ा है| आपके राजमहल का दूध एवं विदुर के घर का जल मैं एक समान समझता हूं, जो मैंने उसके घर सरसों का साग खाया है वह आपकी खीर से अच्छा है और परमेश्वर के गुण गाते हुए सारी रात अच्छी बीती| मुझे बड़ा आनंद आया| यदि आपके पास निवास करता तो राजा की निंदा और ईर्ष्या आदि सुनने थे| अब तो ठाकुर का गुण गाते हुए रात अच्छी व्यतीत हुई तथा ठाकुर के लिए छोटे-बड़े सब जीव एक समान हैं| ऐसा उपदेश वाला उत्तर भगवान कृष्ण जी ने दिया| इस संबंध में मारू राग में कबीर जी फरमाते हैं:

राजन कऊनु तुमारै आवै || 
ऐसो भाउ बिदर को देखिओ ओहुगरीबु मोहि भावै ||१|| रहाउ ||
हसती देखि भरम ते भूला स्रीभगवान न जानिआ || 
तुमरो दूध बिदर को पान्हो अंम्रितु करि मैमानिआ ||१|| 
खीर समानि सागु मै पाइआ गुन गावत रैनिबिहानी || 
कबीर को ठाकुरु अनद बिनोदी जाति न काहू की मानी ||



इस कथा का भावार्थ यह है कि प्रभु से प्रेम करने वाले भक्तों से प्रभु भी उतना ही अटूट प्रेम करता है और राज अभिमान की जगह प्रेम-भक्ति का दर्जा श्रेष्ठ है|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.