शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday 11 November 2013

राजा हरिचन्द

ॐ साँई राम जी


राजा हरिचन्द

सुख राजे हरी चंद घर नार सु तारा लोचन रानी |
साध संगति मिलि गांवदे रातीं जाइ सुणै गुरबाणी |
पिछों राजा जागिआ अधी रात निखंड विहाणी |
राणी दिस न आवई मन विच वरत गई हैरानी |
होरतु राती उठ कै चलिआ पिछै तरल जुआणी |
रानी पाहुती संगतीं राजे खड़ी खड़ाऊं निसाणी |
साध संगति आराधिआ जोड़ी जुड़ी खड़ाऊं पुराणी |
राजे डिठा चलित इहु एह खड़ाव है चोज विडाणी |
साध संगति विटहु कुरबाणी |९|

एक हरिचन्द नाम का राजा था| उसकी रानी का नाम तारा रानी था| रानी को बचपन से ही सद् पुरुषों के वचन सुनने की लगन थी| छोटे-से राज्य की धार्मिक विचारों वाली रानी विवाह के पश्चात भी पूजा पाठ में लगी रहती थी| एक दिन राज भवन के निकट एक भजन मण्डली आ गई, वह हरि कीर्तन करने लगी| सारी रात ही कीर्तन होता रहता| रानी को जब पता चला तो वह भी उस कीर्तन में जाने लगी| अब यह उसका नित्य नियम था| परमात्मा का नाम ही उसके जीवन का आसरा था| वह बिना किसी भय के इस नेक रास्ते पर जाया करती थी|

भाई गुरदास जी के कथन अनुसार एक दिन तारा रानी जब कीर्तन सुनने गई तो बाद में राजा जाग गया| राजा धर्मी नहीं था इसलिए रानी का भी उसे कीर्तन में जाना अच्छा नहीं लगता था| वह सदा अपने राज कार्य में जुटा रहता तथा धर्म-कर्म की ओर ध्यान देने के स्थान पर रंगरलियां मनाने में लगा रहता| ऐसे पुरुष प्राय: शकी स्वभाव के होते हैं| राजा हमेशा अपनी रानी पर शक करता रहता था| रानी जितनी नेक थी उतनी ही रूपवंती भी थी| परमात्मा ने उसे सभी सुख दिए थे, वह शांति से दिन काट रही थी|

जब राजा जागा तो उसने देखा कि रानी की सेज खाली है| वह कहां गई? राजा के मन में हैरानी हुई| उसने उठ कर देखा पर रानी उसे कहीं भी न मिली| राज भवन के पहरेदारों से पूछा तो उन्होंने भी कुछ न बताया, क्योंकि जब रानी जाती थी तो उस समय पहरेदारों को नींद आ जाया करती थी| वह रानी को जाते हुए नहीं देख पाते थे| यह सब भगवान की ही लीला थी|

जब रानी वापिस आ गई तो राजा चुप ही रहा| उसने रानी को कुछ न पूछा| पर अगली रात को उसे नींद न आई| वह जागता रहा और उसने नजर रखी कि कब रानी उठ कर जाती है लेकिन रानी अपने नित्य नियम अनुसार सो गई| जब अमृत के समय कीर्तन का समय आया, आधी रात बीत गई तो रानी उठी| स्नान किया, साधारण भक्ति भाव वाले वस्त्र पहने और कीर्तन में चल पड़ी|

राजा वास्तव में सोया नहीं था| वह तो ऐसे ही आंखें बंद करके लेटा था| जब तारा रानी चली तो राजा ने उसका पीछा किया| रानी कीर्तन में जा बैठी, वहां पर हरि कीर्तन हो रहा था| वहां पर सब भक्त कीर्तन में अन्तर्ध्यान हुए विराजमान थे| परम शांति और प्यार का वातावरण था|
राजा रानी का पीछा करते-करते कीर्तन में पहुंच गया| वह वहां पर खड़ा पहले तो कुछ देर सोचता रहा, फिर रानी की एक खड़ाऊं उठा कर अपने राज भवन में आ गया| राज भवन आकर आराम से अपनी सेज पर सो गया| उसको दीन दुनिया का कोई ख्याल नहीं था, वह तो राज-काज, रंग-राग और माया का पुतला था| उस दिन वह सोते हुए कई स्वपन देखता रहा|

कीर्तन समाप्त हुआ तथा भोग पड़ गया| जब रानी बाहर आ कर अपनी खड़ाऊं पहनने लगी तो एक खड़ाऊं गायब थी| एक खड़ाऊं को देखकर रानी कुछ हैरान हुई कि यह कैसे हो गया? एक खड़ाऊं किसने चुरा ली है| उस समय सत्संगियों को भी पता चल गया| संगत ने अरदास की कि है पारब्रह्म! तुम्हारा यश गान करते हुए रानी की खड़ाऊं का चले जाना भय का कारण है| तुम्हारा यश किस तरह प्रगट होगा? कोई चमत्कार दिखाओ, रानी ने राज भवन जाना है|

संगत ने ऐसी अरदास की कि उसी समय खड़ाऊं के साथ वही जो पुरानी खड़ाऊं थी, आ कर जुड़ गई| रानी तारा ने खड़ाऊं के साथ वही जोड़ी पहनी और राज भवन में आ गई| जब वह अपने कक्ष में गई तो राजा ने पूछा, 'रानी! आप की खड़ाऊं कहां है?'

हे नाथ! मेरी खड़ाऊं मेरे पैरों में है| क्या बात है जो आज आप ने यह पूछने को कष्ट किया|' तारा रानी ने उत्तर दिया|

'कहां है? राजा ने फिर पूछा|'

'दासी के पैरों में|'

राजा हरिचन्द ने देखा दोनों खड़ाऊं रानी के पैरों में थी एक जैसी थी, एक जैसी ही घिसी हुई| राजा को हैरानी हुई और उसने जल्दी से उठा कर लाई हुई खड़ाऊं देखनी चाही, पर वह खड़ाऊं वहां नहीं थी| इस तरह के चमत्कार से राजा बड़ा हैरान हुआ| रानी सारी बात समझ गई कि राजा बाद में जाग गया होगा और शक पड़ने पर मेरे पीछे लग गया होगा| पर सत्संग के कारण मेरी लाज रह गई| पारब्रह्म परमेश्वर बड़ा दयालु और लीला करने वाला है| कोई भी उसका पारावार नहीं ले सकता| तब रानी ने स्पष्ट तौर पर राजा से पूछा, हे नाथ! अब तो आपको विश्वास हो गया कि मैं आधी रात को उठ कर कहां जाती हूं| मैं परमात्मा की भक्ति करती हूं| भक्ति ही मेरे जीवन का उद्देश्य है| इस मायावादी जगत में और है भी क्या? कितना अच्छा हो अगर आप भी वहां सत्संग में जाया करें| सत्संग में बैठ कर थोड़ा-सा तन मन को शांत कर लिया करो, राज-काज तो होते ही रहते हैं|

राजा हरिचन्द ने तारा रानी से क्षमा मांगी तथा उसे कीर्तन में जाने की आज्ञा दे दी| वह स्वयं भी भक्ति मार्ग पर चल पड़ा|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.