शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday, 29 October 2013

भाई तिलकू जी - जीवन परिचय

ॐ श्री साँई राम जी


भाई तिलकू जी

ऐसा जोगी वडभागी भेटै माइआ के बंधन काटै ||
सेवा पूज करउ तिसु मुरति की नानकु तिसु पग चाटै ||५||



गुरु अर्जुन देव जी महाराज फरमाते हैं कि योगी वहीं सच्चा योगी है तथा उसी को मिलो जो माया के बंधन काटे, जो बंधन काटने वाला है, ऐसे पुरुष अथवा ज्ञानी की सेवा तथा पूजा करने के अतिरिक्त उसके चरण भी छूने चाहिए| चरणों की पूजा करनी चाहिए| सतिगुरु जी बहुत आराधना करते हैं|

पर पाखण्डी योगी संत आदि जो केवल भेषधारी हैं उनके चरणों पर माथा टेकने से वर्जित किया है| आजकल भेष के पीछे बहुत लगते हैं सत्य को नहीं जानते| ऐसे सत्य को परखने तथा गुरमति पर चलने वाले भाई तिलकू जी हुए हैं जो एक महांपुरुष थे|

भाई तिलकू जी गढ़शंकर के वासी तथा पंचम पातशाह जी के सिक्ख थे| उनका नियम था कि रात-दिन, हर क्षण मूल मंत्र का पाठ करते रहते थे| कभी किसी को बुरा वचन नहीं कहते थे, सत्य के पैरोकार तथा कार्य-व्यवहार में परिपूर्ण थे| गुरु महाराज के बिना किसी के चरणों पर सिर नहीं झुकाते थे| नेक कमाई करके रोटी खाते थे| देना-लेना किसी का कुछ नहीं था, ऐसी उन पर वाहिगुरु की अपार कृपा थी|

गढ़शंकर में एक योगी रहता था| एक सौ दस साल की आयु हो जाने तथा घोर तपस्या करने पर भी उसके मन में से अहंकार नहीं निकला था, वह अभिमानी हो गया तथा अपनी प्रशंसा करवाता था| लोगों को पीछे लगा कर अपना यश सुनता|

उसने अपने जीवित रहते एक बहुत बड़ा भंडारा किया| जब भंडारा तैयार हुआ तो उसने सारे नगर में तथा बाहर ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध, नवयुवक भंडारे में भोजन करेगा, उसको दो साल के लिए स्वर्ग हासिल होगा, उसको परमात्मा के दर्शन होंगे|

उस योगी का यह संदेश सुनकर नगर के लोग बाल-बच्चों सहित पधारे तथा भंडारा लिया, योगी का यश किया| जब सभी ने भोजन कर लिया तो योगी ने अपने मुख्य शिष्य को कहा -

'पता करो कोई स्त्री-पुरुष भंडारे में आने से रह तो नहीं गया| यदि रह गया हो तो उसे भी बुलाओ|'

योगी का ऐसा हुक्म सुनकर उसके मुख्य शिष्य ने नगर में सेवक भेजे| उन्होंने पता किया तथा कहा-'महाराज! भाई तिलकू नहीं आया, शेष सब भोजन कर गए हैं| वह कहता है मुझे स्वर्ग की जरूरत नहीं, वह नहीं आता|'

योगी ने उसके पास दोबारा आदमी भेजे था कहा, उसे कहो कि तुम्हें दस साल के लिए स्वर्ग मिलेगा, आ जाओ| मेरा भंडारा सम्पूर्ण हो जाए| हुक्म सुनकर वे पुन: भाई तिलकू जी के पास गए, उसको दस साल स्वर्ग के बारे में बताया तो वह हंस पड़ा| इतने सस्ते में स्वर्ग जीवन देने वाले योगी के माथे लगना ही पाप है| मुझे स्वर्ग नहीं चाहिए| मेरे स्वर्ग मेरे जीवन को लेने-देने वाला मेरा सतिगुरु है, मैं तो उसकी पनाह में बैठा हूं| जाओ, योगी को बता दो|

शिष्य हार कर चले गए तथा योगी को जाकर बताया| योगी सुनकर आपे से बाहर हो गया और क्रोध से बोल उठा| उसने कहा-'मैं देखता हूं उसका गुरु कौन है? उसकी कितनी शक्ति है? अभी वह आएगा तथा पांव में पड़ेगा| तिलकू तिलक कर ही रहेगा|'

इस तरह बोलता हुआ योगी लाल-पीला हो गया तथा आसन से उठ बैठा| उसके हृदय में अहंकार तथा वैर भावना आ गई| वैर भावना ने योगी की सारी तपस्या तथा भक्ति को शून्य कर दिया| योगी को अपने योग बल पर बहुत अभिमान था| उसने समाधि लगाई| योग बल से भूत-प्रेत, बीर बुलाए तथा उनको आज्ञा की-'जाओ तिलकू को परेशान करो, वह मेरे भंडारे में आए|'

योगी का हुक्म सुनकर बीर तथा भूत-प्रेत भाई तिलकू के घर गए| पहले तो आंधी की तरह उसके घर के दरवाजे खुले तथा बंद हुए| धरती डगमगाई तथा भाई तिलकू जी के मुख से निकला-'सतिनाम सति करतार!' आंधी रुक गई| फिर भाई तिलकू जी मूल मंत्र का पाठ करने लग पड़ा| जैसे-जैसे वह पाठ करता गया वैसे-वैसे सारे खतरे दूर हो गए|

योगी के सारे भूत-प्रेत तथा बीर उसके पास गए| उन्होंने हाथ जोड़ कर बुरे हाल योगी के आगे विनती की-

हे मालिक! हमारी कोई पेश नहीं जाती| उसकी रक्षा हमसे ज्यादा कोई महान शक्तिशाली आदमी कर रहे हैं, उनसे तो थप्पड़ और धक्के लगते हैं| घुल-घुल कर हांफ कर आ गए हैं| वह तिलकू कोई कलाम पढ़ता जाता है| हम चले, हम सेवा नहीं कर सकते| यह कह कर सारी बुरी आत्माएं चली गईं| योगी की सुरति कायम न रह सकी| वह बुरी आत्माओं को काबू न रख सका, वह सारी चली गईं|

योगी ने निराश हो कर समाधि भंग की बैठा तथा भाई तिलकू के पास गया तथा उसके घर का दरवाजा खटखटाया| आवाज़ दी-'भाई तिलकू जी दरवाजा खोलो|' योगी आप के दर्शन करने आया है|'

यह सुन कर भाई तिलकू जी ने दरवाजा खोला तथा देखा योगी बाहर खड़ा था| उसके पीछे उसके शिष्य तथा कुछ शहर के लोग थे|

'भाई जी! यह बताओ आपका गुरु कौन है?' योगी ने पूछा|

भाई तिलकू जी-'मेरे गुरु, सतिगुरु नानक देव जी हैं| जिन्होंने पांचों चोरों को मारने की शिक्षा दी है|

योगी-'मंत्र कौन-सा पढ़ते हो?'

भाई तिलकू-'सति करतार १ ओ सतिनामु करता पुरखु......|' भाई जी ने मूल मंत्र का पाठ शुरू कर दिया| यह मंत्र ही कल्याणकारी है| आपकी तरह साल-दो साल मुक्ति नीलाम नहीं की जाती| यह आपकी गलती समझो| इसलिए मैं नहीं गया, मेरे गुरु ही भव-सागर से पार उतारते हैं|'

भाई तिलकू जी के वचनों का प्रभाव योगी के मन पर बहुत पड़ा तथा अंत में भाई तिलकू योगी को साथ लेकर सतिगुरु जी की हजूरी में पहुंचे| सतिगुरु जी ने योगी को उपदेश दे कर भक्ति भाव के सच्चे मार्ग की ओर लगाया|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.