शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Monday, 28 October 2013

भाई समुन्दा जी - जीवन परिचय

ॐ श्री साँई राम जी



भाई समुन्दा जी


अनदिनु सिमरहु तासु कऊ जो अंति सहाई होइ || इह बिखिआ 
दिन चारि छिअ छाडि चलिओ सभु कोइ || का को मात पिता
सुत धीआ || ग्रिह बनिता कछु संगि न लीआ || ऐसी संचि
जु बिनसत नाही || पति सेती अपुनै घरि जाही || साधसंगि कलि
कीरतनु गाइआ || नानक ते ते बहुरि न आइआ ||१५||

परमार्थ-उस परमात्मा का रात-दिन सिमरन करो जो कि अंत समय सहायक होता है| यह जो माया से पैदा की हुई खुशियां, विषय-विकार आदि हैं यह साथ नहीं जाते| ये तो थोड़े दिन के मेहमान हैं| मां, बाप, स्त्री, पुत्र, पुत्री यह भी साथ नहीं जाते| ऐसा धन इकट्ठा करना चाहिए जो साथ चले, वह है वाहिगुरु का सिमरन| वाहिगुरु के सिमरन के अतिरिक्त कोई शह साथ नहीं जाती| जिस पुरुष ने सत्संग में बैठ कर हरि कीर्तन गाया तथा वाहिगुरु का सिमरन किया है गुरु जी कहते हैं वह फिर जन्म मरण के चक्र में नहीं पड़ता| उसका जन्म मरण कट जाता है अत: वह मुक्त हो जाता है| ऐसे नाम सिमरन वाले गुरसिक्ख सेवकों में भाई समुन्दा गुरु के सिक्ख बने थे| सिक्ख बनने से पहले उनका जीवन मायावादी था| वे धन इकट्ठा करते, स्त्री से प्यार करते| स्त्री के लिए वस्त्र, आभूषण तथा खुशियों का सामान लाते| पुत्र, पुत्री से प्यार था| कभी किसी तीर्थ पर न जाते| परमात्मा है कि नहीं? यह प्रश्न उनके मन में उठता ही नहीं था, यदि कहीं चार छिलके गुम हो जाते तो उनकी आत्मा दुखी होती| वह दो-दो दिन रोटी न खाते| माया इकट्ठी करना ही उनके जीवन का लक्ष्य था| माया के बदले यदि कोई जान भी मांगता तो देने के लिए तैयार हो जाते|

एक दिन वह भूल से गुरमुखों की संगत में बैठ गए| एक ज्ञानी ने उपरोक्त शब्द पढ़ा तथा साथ ही शब्द की व्याख्या की| शब्द के अंदरुनी भाव ने भाई समुन्दा जी की आत्मा पर गहन प्रभाव डाला| उनकी बुद्धि जाग पड़ी| वह सोचने लगे कि जो कुछ मैं कर रहा हूं, यह अच्छा है या जो कुछ गुरमुख कहते है, वह अच्छा है? वह असमंजस में पड़ गए| उठ कर घर आ गए, रोटी खाने को मन नहीं किया| रात को सोए तो नींद नहीं आई| रात्रि के बारह बज गए पर नींद न आई| जहां पहले पहल रात को गहरी नींद सो जाते थे, अब सोच में डूब गए| माया इकट्ठी करना अच्छा है या नहीं? स्त्री, पुत्र, पुत्री का सम्बंध कहां तक है? उसकी आंखों के आगे कई झांकियां आईं| एक यह झांकी भी आई कि कोई मर गया है| उसके पुत्र, पुत्रवधू, पुत्री तथा पत्नी उसका दाह-संस्कार करके घर आ गए हैं| चार दिन के बाद उसका किसी ने नाम न लिया, वह भूल गया| समुन्दे को अपने माता-पिता भी याद आए वे उसके पास से चले गए| वे चार दिन के दुःख के बाद उन्हें भूल गए| वह विचारों में खोए रहने लगे| ऐसी ही विचारों में सोए उनको स्वप्न आया जो बहुत भयानक था| उन्होंने देखा-वह बीमार हो जाते हैं| बीमारी के समय उनके पुत्र, पत्नी तथा सम्बन्धी उनके पास आते हैं| पहले-पहल सभी उससे सहानुभूति तथा प्यार करते पर धीरे-धीरे जैसे जैसे बीमारी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे सभी का प्यार घटता जाता है| अंतिम समय आ जाता है, यमदूत उसकी जान निकालने के लिए आते हैं, उनकी भयानक सूरतें देख कर वह भयभीत हो जाता है| पत्नी को कहता है, मेरी सहायता करो, मुझे यमों से बचाओ, पर वह आगे से रोती हुई न में सिर हिला देती है कि वह उसे बचा नहीं सकती, यम उसकी आत्मा को मारते-पीटते हुए धर्मराज के पास ले जाते हैं| धर्मराज कहता है, 'यह महां पापी है| इसने जीवन भर कभी भगवान का सिमरन नहीं किया, नेकी नहीं कमाई, इस महां पापी को आग के नरक में फैंको| जहां यह कई जन्म जलता रहेगा| फैंको! फैंको महां पापी है|' धर्मराज का यह हुक्म सुन कर यम उसको आग-नरक की तरफ खींच कर ले चले| जब नरक के निकट पहुंचे तो समुन्दे ने देखा-बहुत भयानक आग जल रही थी जिसका ताप दूर तक जाता था| निकट पहुंचने से पहले ही सब कुछ जल जाता था| समुन्दे ने देखा तथा सुना कि कई महां पापी उस नरक की भट्ठी में जल कर चिल्ला रहे हैं| समुन्दा-दहल गया, जब यम उसको उठा कर आग में फैंकने लगे तो उसकी चीख निकल गई, उस चीख के साथ ही उसकी नींद खुल गई वह तपक कर उठ बैठा, आंखें मल कर उसने देखा, वह नरकों में नहीं बल्कि अपने घर बैठा है| वह मरा नहीं जीवित है| पर उसका हृदय इतनी जोर से धड़क रहा था कि सांस आना भी मुश्किल हो रहा था, सारा शरीर पसीने से भीग गया|

समुन्दा जी चारपाई से उठ गए| अभी रात्रि थी, आकाश पर तारे हंस रहे थे| परिवार वाले तथा पड़ोसी सभी सो रहे थे| चारों तरफ खामोशी थी| उस खामोशी के अन्धेरे में समुन्द्रा जी घर से निकले| जिस तरह किसी के घर से चोर निकलता है, दबे पांव, धड़कते दिल, जल्दी-जल्दी समुन्दा जी उस स्थान पर पहुंचे जहां गुरमुख आए हुए थे, वह गुरमुख जाग रहे थे| पिछली रात समझ कर उठे थे तथा स्नान कर रहे थे| स्नान करके उन्होंने भगवान का भजन करना शुरू कर दिया| घबराए हुए समुन्दा जी उनके पास बैठे रहे, बैठे-बैठे दिन निकल गया, दिन उदय होने पर उन गुरमुखों के चरणों में गिर कर इस तरह बिलखने और विनती करने लगे, 'मुझे नरक का डर है| मैं कैसे बख्शा जाऊं| मुझे स्वर्ग का मार्ग बताओ! नरक की भयानक आग से बचाओ! संत जगत के रक्षक होते हैं| भूले-भटके का मार्गदर्शन करते हैं| मेरी पुकार भी कोई सुने| आप ही तो सब कुछ हो| सोई हुई आत्मा जाग पड़ी|'

वह गुरमुख श्री गुरु अर्जुन देव जी के सिक्ख थे| श्री हरिमंदिर साहिब के निर्माण के लिए नगरों में से सामान इकट्ठा कर रहे थे| उन्होंने भाई समुन्दा जी की विनती सुनी| उनको धैर्य दिया और कहा, 'भाई! सुबह हमारे साथ चलना वहां जगत के रक्षक गुरु जी हैं उनके दर्शन करके तभी उद्धार होगा|'

अगले दिन भाई समुन्दा जी सिक्खों के साथ 'चक्क रामदास' पहुंचे, आगे दीवान लगा हुआ था| गुरगद्दी पर विराजमान सतिगुरु जी सिक्खों को उपदेश कर रहे थे| समुन्दा जी भी जा कर चरणों पर गिर पड़े, रो कर विनती की, 'दाता दया कीजिए! मुझे भवसागर से पार होने का साधन बताओ| नरक की आग से मुझे डर लगता है, बहुत सारी आयु व्यर्थ गंवा दी| अच्छी तरह जीने का ढंग बताओ! हे दाता! दयालु तथा कृपालु सतिगुरु मुझ पर कृपा करो|

अंतर्यामी सतिगुरु जी ने देखा, समुन्दे की आत्मा पश्चाताप कर रही है| यह नेकी तथा धर्म के मार्ग पर चलने के लिए तैयार है| इस को गुरमति बख्शनी योग्य है| सतिगुरु जी ने फरमाया-'हे सिक्खा! तुम्हें वाहिगुरु ने इस संसार पर नाम सिमरन तथा लोक सेवा के लिए भेजा है, इसलिए उठकर वाहिगुरु का सिमरन करना, धर्म की कमाई करना, गुरुबाणी सुनना, निंदा चुगली से दूर रहना| यह जगत तुम्हारे लिए जीवन नहीं, बल्कि मार्ग का आसरा है| जीवन का मनोरथ है, प्रभु से जुदा हुए हो, उस के पास जाना तथा उसके साथ इस तरह घुल-मिल जाना जैसे पानी से पानी मिल जाता है| जैसे दो दीयों का प्रकाश एक लगता है| सच बोलना, गुरुद्वारे जाना तथा भूखे सिक्खों को भोजन खिलाना| यह है जीवन युक्ति|'

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.