शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप (रजि.)
शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....
"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम
मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे
कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे
मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे
दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे
************************************
निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।
************************************
Friday 29 March 2024
गजिन्द्र हाथी
Thursday 28 March 2024
भक्त सुदामा
लागू होई बाहमणी मिल जगदीस दलिद्र गवाऐ |
चलिया गिणदा गट्टीयां क्यों कर जाईये कौण मिलाऐ |
पहुता नगर दुआरका सिंघ दुआर खोलता जाए |
दूरहुं देख डंडउत कर छड सिंघासन हरि जी आऐ |
पहिले दे परदखना पैरीं पै के लै गल लाऐ |
चरणोदक लै पैर धोइ सिंघासन ऊपर बैठाऐ |
पुछे कुसल पिआर कर गुर सेवा की कथा सुनाऐ |
लै के तंदुल चबिओने विदा करै आगे पहुंचाऐ |
चार पदारथ सकुच पठाए |९|९०|
भाई गुरदास जी के कथन अनुसार सुदामा गोकुल नगरी का एक ब्राह्मण था| वह बड़ा निर्धन था| वह श्री कृष्ण जी के साथ एक ही पाठशाला में पढ़ा करता था| उस समय वह बच्चे थे| बचपन में कई बच्चों का आपस में बहुत प्यार हो जाता है, वे बच्चे चाहे गरीब हो या अमीर, अमीरी और गरीबी का फासला बचपन में कम होता है| सभी बच्चे या विद्यार्थी शुद्ध हृदय के साथ मित्र और भाई बने रहते हैं|
Wednesday 27 March 2024
राजा बली
सद्पुरुष कहते हैं, पुरुष को तपस्या करने से राज मिलता है, पर राज प्राप्ति के बाद उसको नरक भोगना पड़ता है, 'तपो राज तथा राजो नरक' इसका मूल भावार्थ यह है कि राज प्राप्ति के पश्चात मनुष्य अहंकारी हो जाता है| अहंकार के साथ कुछ लालच भी आता है| इसलिए फिर कुछ बात नहीं सूझती| उसके कर्म ऐसे हो जाते हैं कि प्रभु उसको फिर सत्य मार्ग पर लगाने के लिए कोई कौतुक रचता है| ऐसा युगों से होता आया है जैसे कि राजा बली की कथा है| भाई गुरदास जी ने भी लिखा है :-
बली नाम का एक प्रतापी राजा था| उसके दादा प्रहलाद ने तपस्या की और अमर राज प्राप्त किया| बली का पिता विरोचन भी नेक पुरुष था| बली बड़ा दानी था, कोई भी उसके पास आता तो वह उसे खाली न जाने देता| स्वयं को राजा जनक या हरीशचन्द्र कहलाता| उसने अपने राज में यज्ञ किये तथा अत्यंत दान दिया, उसे अहंकार हो गया कि मेरे जैसा कौन दानी होगा? ब्राह्मणों को दान देकर संतुष्ट कर दिया है|
परमात्मा ने देखा कि एक अच्छे भले आदमी को अहंकार हो गया है, इसका अहंकार अवश्य चकनाचूर करना चाहिए| यह विचार करके भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और राजा बली के दरबार में पहुंच गया| राजा ने आदर से कहा-हे स्वामी! आज्ञा दीजिए, मैं आपकी इस समय क्या सेवा करूं|
वामन (छोटा ब्राहमण रूप) भगवान बोले-हे राजन! मैं तो एक निर्धन ब्राह्मण हूं| मेरा कोई घर नहीं है| केवल एक इच्छा है कि आप कृपा करके मुझे सिर्फ ढ़ाई कदम धरती दे दें ताकि मैं वहां बैठ कर प्रभु का जाप कर लिया करूं आप से और क्या मांगना है| मुझे बस यही चाहिए, आपके द्वार पर बैठा रहूंगा|
यह सुन कर राजा बली हंसा तथा सम्बोधन करके कहने लगा-हे ब्राह्मण! तुम्हारा कद तो छोटा है, पर बली राजा को मजाक बहुत बड़ा करने आ गए हो| राज्य में खुले वन पड़े हैं, अनगिनत धरती पर लोगों ने आश्रम बनाए हैं, क्या तुम्हें किसी ने बैठने नहीं दिया| मेरे राज में मेरी धरती पर तो हर एक को छूट है, वह आश्रम बनाए धरती को जोते, मैं तो कुछ नहीं कहता| यदि मांगना था तो गाय, अनाज, वस्त्र, हीरे-मोती मांगते| यह क्या मांगा है? तुम ब्राह्मण हो यदि कोई और होता तो मरवा देता|
बावन चुप रहा, वह खड़ा मुस्कराता ही रहा| राजा बली बातें करता रहा|
राजा बली का मंत्री बहुत सूझवान था| वह समझ गया कि यह कोई खेल है| प्रभु स्वयं ही कोई परीक्षा लेने आए हैं| उसने राजा से कहा-राजन! यह वामन ब्राह्मण जिसने थोड़ी-सी ढाई कदम भूमि की मांग की है, वास्तव में कोई विष्णु अवतार लगता है|
'आपको छलने के लिए आया है| कोई अद्भुत खेल न करें| जरा सावधानी से रहना चाहिए| इसकी यह बात नहीं माननी चाहिए| क्षमा मांग लेना ठीक है|'
पर राजा बली को अहंकार ने घेरा हुआ था, उसने एक न सुनी तथा कहा "जाओ ढाई कदम भूमि जहां से लेनी है, अधिकार कर लो| फिर कभी मजाक करने न आना|"
राजा बली की यह बात सुन कर वामन अवतार दरबार से बाहर आया तथा अपना शरीर इतना बढ़ा लिया कि दो कदमों में उसने बली राजा की सारी धरती सहित ब्रह्मांड माप लिया तथा आधी पूरी करने के लिए उसके सिर पर पैर आ रखा| बली राजा को होश आया, पर समय निकल गया था| बली को बावन ने पैर से धकेल कर पाताल में भेज दिया तथा कहा, 'यहां राज करो| यह कह कर जब भगवान रूप बावन चला तो बली ने कहा, 'मैं तो यहां राज करूंगा पर आप ने भी तो वचन दिया है कि द्वार के आगे रहोगे| अब वचन से न फिरो और बैठो|' इस बात में भगवान भी छले गए| बापन रूप धारण कर बली के द्वार के आगे बैठ गया| बली पातालपुरी में भक्ति करने लगा|
Tuesday 26 March 2024
साखी ब्रह्मा और सरस्वती की
Monday 25 March 2024
साखी राजा भक्तों की
१. राजा परीक्षित-राजा परीक्षित अर्जुन (पांडव) का पौत्रा और अभिमन्यु का पुत्र था| महाभारत के युद्ध के बाद यह राजा बना| कलयुग में इसकी चर्चा हुई| पांडवों की संतान का यह एक महान पुरुष था, इसको हस्तिनापुर के सिंघासन पर बिठा कर पांचों पांडव द्रौपदी सहित हिमालय पर्वत को चले गए| यह कई साल राज करता रहा| इस बीच प्रजा को बहुत दुःख हुआ| यह कलयुग का मुख्य राजा था|
२. परूरवा - "दूरबा परूरउ अंगरै गुर नानक जसु गाईओ ||"परूरवा एक राजा हुआ था| वह उर्वशी अप्सरा पर मुग्ध हो गया| परूरवा 'ऐल' का पुत्र था| उर्वशी के वियोग में ही तड़पता रहा तथा इधर-उधर भटकता रहा| इसने प्रभु की भक्ति भी की है| इनके वीर्य से उर्वशी से इन राजकुमारों को जन्म दिया था - आयु, अमावस विश्वास, सतायु, द्रिढायु| राजा परूरवा बहुत बड़े महाबली हुए थे और उर्वशी का नाटक कालिदास ने लिखा था|
३. भगीरथ - भगीरथ राजा दलीप का पुत्र तथा राजा अंशमान का पौत्रा था| राजा अंशमान तथा राजा दलीप ने स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की थी पर वह बीच में ही मर गए तथा उनकी इच्छा पूरी न हो सकी| भगीरथ घोर तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से धरती पर लेकर आए, भगवान शिव जी की जटाओं का सहारा लेकर गंगा धरती पर आई| गंगा ने जहानुव ऋषि का आश्रम तथा पूजा की सामग्री बहा दी थी| इस पर जाहनुव ऋषि ने क्रोधित हो कर गंगा को पी लिया था| भगवान शिव जी तथा भगीरथ ने फिर जाहनुव ऋषि को मनाया, उसके पास से गंगा को मुक्त करवा कर धरती पर चलाया तथा भगीरथ ने अपने पूर्वज-पित्रों को जल दिया, जिससे उनका कल्याण हुआ|
४. मानधाता - मानधाता सुयवंशी राजा युवनाशु का पुत्र था| पर इसने मां के पेट से जन्म नहीं लिया, बल्कि राजा के पेट में से (पुरुष के पेट में से) जन्म लिया| यह कथा संक्षेप रूप में इस तरह है - राजा युवनाशु का कोई पुत्र-पुत्री नहीं था| उसने ऋषि-मुनि आमंत्रित करके एक ऋषि के आश्रम में महायज्ञ करवाया| यज्ञ के पश्चात महर्षियों ने पानी का घड़ा मंत्र पढ़ कर रखा| जिसका जल युवनाशु की रानी को पीने के लिए दिया जाना था| रात हुई तो सभी सो गए, ऋषि-मुनि भी सो गए| राजा युवनाशु को प्यास लगी, तो उसने उस मंत्र किए हुए घड़े में से पानी पी लिया| उस जल के कारण राजा के पेट में बच्चा बन गया| पेट चीर कर बच्चे को बाहर निकाला गया| उस बच्चे का नाम मानधाता था| मानधाता ने बिंदरासती से विवाह किया, उसके तीन पुत्र तथा पचास कन्याएं पैदा हुईं| पूर्व जन्म में प्रभु की अटूट भक्ति की थी जिस कारण इसकी बहुत शोभा हुई, यह भक्तों में गिना गया|
५. रुकमांगद - रुकमांगद करतूति राम जंपहु नित भाई
रुकमांगद राजा एकादशी का व्रत रखता था, कहते हैं कि वह ब्रह्मचारी था| यह कभी सपने में भी पराई स्त्री के निकट नहीं जाता था| अपनी स्त्री से बहुत ज्यादा प्यार करता था| एक बार एक अप्सरा उस पर मोहित हो गई, पर इस धर्मी राजा ने उसके प्यार और उसकी सुन्दरता को ठुकरा दिया| एकदशी के व्रत का उसे महत्व बता कर वापिस स्वर्ग लोक भेज दिया| उस दिन से एकादशी का व्रत आरम्भ हो गया| राजा आयु भर एकादशी का व्रत रखता रहा| उसका नाम भक्तों में बड़े आदर से लिया जाता है|
६. रावण -
७. राजा अजय -
राजा अजय, दशरथ के पिता तथा श्री राम चन्द्र जी के दादा थे| इसने एक साधू को घोड़ों की लीद अंजली भर कर दान कर दी थी| क्योंकि साधू ने उस समय भिक्षा मांगी जब राजा घोड़ों के पास था तथा लीद ही वहां थी| गुस्से में आकर उसने लीद दान में दे दी| साधू ने श्राप दिया तथा लीद कई गुणा रोज़ बढ़ती गई| कहते हैं कि वह लीद का दिया हुआ दान उसको खाना पड़ा, जब वह लीद खाता था तो रोया करता था तथा कहता था कि किसी संत-महात्मा के साथ नाराज होना ठीक नहीं, दिया हुआ दान आगे प्रभु के दरबार में मिलता है|
८. बाबा आदम - भक्त कबीर जी ने भैरऊ राग में बाबा आदम जी का जिक्र किया है|
ईसारी धर्म की पुरानी पुस्तक 'अंजील' के मुख्य पात्र बाबा आदम जी हैं| 'अंजील' के अनुसार बाबा आदम जी की कथा इस प्रकार है-खुदा ने पहले मनुष्य बनाया था| खुदा पहले शैतान को भी बना बैठा था| मनुष्य बना कर खुदा ने सभी फरिश्तों (देवताओं) को कहा कि आदम को सलाम करो| सबने सलाम किया, पर शैतान ने सलाम न किया| अदन में स्वर्ग बना कर आदम ने जीवन साथी पहली स्त्री माई हवा को अदन के स्वर्ग बाग में भेज दिया| खुदा ने ज्ञान फल (गेहूं) खाने से आदम और हवा को रोका पर शैतान ने एक दिन आदम की अनुपस्थिति में अकेली हवा को उकसाया| अपनी हेराफेरी का शिकार बना कर कहा कि खुदा ने जो काम की चीज़ खाने वाली है उसे तो खाने से रोक दिया है, ज्ञान फल खा कर देखो, चारों कुण्ट का ज्ञान हो जायेगा, तुम जरूर आदम को कहना और ज्ञान फल खाने के लिए प्रेरित करना, यह कह कर शैतान अलोप हो गया| हवा के दिल में ज्ञान फल खाने की तीव्र इच्छा पैदा हो गई| जब आदम मिला तो हवा ने उसे ज्ञान फल खाने के लिए मना लिया| आदम और हवा ने जब ज्ञान फल खा लिया तो उन्हें स्त्री-पुरुष, काम, मोह, लालच और शर्म आदि का ज्ञान हो गया| उनको अपने नग्न तन के बारे में ज्ञान हुआ तो एक दूसरे से दूर हो कर छिप गए| इस बात का खुदा को पता लग गया| खुदा स्वयं आया और दोनों को एक-दूसरे के निकट करके समझाया-शैतान का कहना मान कर आपने भारी भूल की है, जाओ अब स्वर्ग में नहीं रह सकते| स्त्री-पुरुष बन कर रहो और संतान पैदा करो| खुदा ने शैतान को सर्प योनि का श्राप दे दिया| आदम और हवा के हजारों पुत्र हुए जिन से संसार की जन-संख्या बढ़ी| खुदा का कहना न मानने के कारण आदम गुनाहगार था, इसलिए उसकी औलाद भी गुनाहगार है| उसका उद्धार सत्य तथा सिमरन के सहारे है|
९. अरुण पिंगला - अरुण पिंगला बल वाला पक्षी और भगवान गरुड़ का भाई है| सूर्य का रथवान बना हुआ है| पर यह पिंगला है, पिंगला होने के कारण इसके जीवन में अधूरापन है| बिनता के दो अण्डे हुए| बिनता के पति ने कहा कि हर अण्डा हजार साल से पहले न तोड़ना, पर बिनता ने एक अण्डा पांच सौ साल बाद तोड़ दिया| इसलिए अरुण का शरीर पूरा नहीं बना था| पर गरुड़ का अण्डा हजार साल बाद अपने आप टूटा था, वह पूर्ण पक्षी बना| पूर्व जन्म के श्राप के कारण सूर्य और गरुड़ उसकी कोई सहायता नहीं करते थे|
१०. इन्द्र रो पड़ा - सहंसर दान दे इन्द्र रोआइआया ||
इन्द्र देवताओं का बड़ा राजा था, पर अहल्या के साथ दुष्कर्म करने के कारण शरीर पर हजार भग हो गई थी| इस कष्ट के कारण रोता रहा था| हजार भग का श्राप उसको अहल्या के पति ऋषि गौतम ने दिया था| जैसा कि पीछे गौतम तथा अहल्या की कथा में बताया गया है| इससे शिक्षा मिलती है कि पर-नारी की ओर ध्यान नहीं करना चाहिए|
For Donation
OUR SERVICES
बाबा के 11 वचन
1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य
.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....
गायत्री मंत्र
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
Word Meaning of the Gayatri Mantra
ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe
these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation
धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"
dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God
भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।
Simply :
तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.