शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Saturday, 25 May 2024

रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीशत्रुघ्न

रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीशत्रुघ्न

श्रीशत्रुघ्न जी का चरित्र अत्यन्त विलक्षण है| ये मौन सेवा व्रती हैं| बचपन से श्रीभरत जी का अनुगमन तथा सेवा ही इनका मुख व्रत था| ये मित भाषी, सदाचारी, सत्यवादी, विषय-विरागी तथा भगवान श्रीराम के दासानुदास हैं| जिस प्रकार श्रीलक्ष्मण जी हाथ में धनुष श्रीराम की रक्षा करते हुए उनके पीछे चलते थे, उसी प्रकार श्रीशत्रुघ्न जी भी श्रीभरत जी के साथ रहते थे|

जब श्रीभरत जी के मामा युधाजित् श्रीभरत जी को अपने साथ ले जा रहे थे, तब श्रीशत्रुघ्न जी भी उनके साथ ननिहाल चले गये| इन्होंने माता-पिता, भाई, नवविवाहिता पत्नी सबका मोह छोड़कर श्रीभरत जी के साथ रहना और उनकी सेवा करना ही अपना कर्तव्य मान लिया था| भरत जी के साथ ननिहाल से लौटने पर पिता के मरण और लक्ष्मण, सीता सहित श्रीराम के वनवास का समाचार सुनकर इनका हृदय दुःख और शोक से व्याकुल हो गया| उसी समय इन्हें सूचना मिली कि जिस क्रूरा पापिनी के षड्यन्त्र से श्रीराम का वनवास हुआ, वह वस्त्राभूषणों से सज-धजकर खड़ी है, तब ये क्रोध से व्याकुल हो गये| ये मन्थरा की चोटी पकड़कर उसे आँगन में घसीटने लगे| इनके लात के प्रहार से उसका कूबर टूट गया और सिर फट गया| उसकी दशा देखकर श्रीभरत जी को दया आ गयी और उन्होंने उसे छुड़ा दिया| इस घटना से श्रीशत्रुघ्न जी की श्रीराम के प्रति दृढ़ निष्ठा और भक्ति का परिचय मिलता है|

चित्रकूट से श्रीराम पादुकाएँ लेकर लौटते समय जब श्रीशत्रुघ्न जी श्रीराम से मिले, तब इनके तेज स्वभाव को जानकर भगवान श्रीराम ने कहा - 'शत्रुघ्न! तुम्हें मेरी और सीता की शपथ है, तुम माता कैकेयी की सेवा करना, उन पर कभी भी क्रोध मत करना|'

श्रीशत्रुघ्न जी का शौर्य भी अनुपम था| सीता-वनवास के बाद एक दिन ऋषियों ने भगवान श्रीराम की सभा में उपस्थित होकर लवणासुर के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध कर के उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की| श्रीशत्रुघ्न जी ने भगवान श्रीराम की आज्ञा से वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुर का वध किया और मथुरापुरी बसाकर वहाँ बहुत दिनों तक शासन किया|

भगवान श्रीराम के परम धाम पधारने के समय मथुरा में अपने पुत्रों का राज्याभिषेक करके श्रीशत्रुघ्न जी अयोध्या पहुँचे| श्रीराम के पास आकर और उनके चरणों में प्रणाम करके इन्होंने विनीत भाव से कहा - 'भगवन्! मैं अपने दोनों पुत्रों का राज्याभिषेक करके आपके साथ चलने का निश्चय करके ही यहाँ आया हूँ| आप अब मुझे कोई दूसरी आज्ञा न देकर अपने साथ चलने की अनुमति प्रदान करें|' भगवान श्रीराम ने शत्रुघ्न जी की प्रार्थना स्वीकार की और वे श्रीरामचन्द्र के साथ ही साकेत पधारे|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.