शिर्डी के साँई बाबा जी की समाधी और बूटी वाड़ा मंदिर में दर्शनों एंव आरतियों का समय....

"ॐ श्री साँई राम जी
समाधी मंदिर के रोज़ाना के कार्यक्रम

मंदिर के कपाट खुलने का समय प्रात: 4:00 बजे

कांकड़ आरती प्रात: 4:30 बजे

मंगल स्नान प्रात: 5:00 बजे
छोटी आरती प्रात: 5:40 बजे

दर्शन प्रारम्भ प्रात: 6:00 बजे
अभिषेक प्रात: 9:00 बजे
मध्यान आरती दोपहर: 12:00 बजे
धूप आरती साँयकाल: 5:45 बजे
शेज आरती रात्री काल: 10:30 बजे

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निर्देशित आरतियों के समय से आधा घंटा पह्ले से ले कर आधा घंटा बाद तक दर्शनों की कतारे रोक ली जाती है। यदि आप दर्शनों के लिये जा रहे है तो इन समयों को ध्यान में रखें।

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Tuesday, 26 March 2024

साखी ब्रह्मा और सरस्वती की

साखी ब्रह्मा और सरस्वती की

चारे वेद वखाणदा चतुर मुखी होई खरा सिआणा |
लोका नो समझाइदा वेख सुरसवती रूप लुभाना |

भाई गुरदास जी के कथन अनुसार चार वेदों को उच्चारने वाला (ब्रह्मा) बहुत सूझवान था, लोगों को उपदेश देता था, पर अपनी पुत्री की जवानी और सुन्दरता को देख कर मोहित हो गया था| जिस कारण उसे दुख उठाना पड़ा था|

सरस्वती ब्रह्मा की पुत्री थी| वह बहुत ही सुन्दर और जवान थी| एक दिन सुबह सरस्वती नदी से स्नान करके आई| सूर्य की सुनहरी किरणों ने उसके कुंआरे गुलाबी चेहरे को और चमकाया हुआ था| अचानक ब्रह्मा जी खड़े-खड़े उसकी ही तरफ देखने लग गए, उनका दिल बदल गया| उनके मन की इस दशा को जान कर सूझवान सरस्वती ने अपना मुख दूसरी तरफ कर लिया| ब्रह्मा भी उस तरफ देखने लग गए| इस तरह सरस्वती चारों तरफ घूमी| ब्रह्मा के चार मुंह हो गए| सरस्वती ऊपर उड़ गई तो ब्रह्मा ने योग बल से तालू में आंखें लगा लीं| वह किसी कीमत पर भी सरस्वती को आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था| यह देख कर भगवान शिव जी बहुत दुखी हुए, उन्होंने आगे बढ़ कर ब्रह्मा का पांचवा सिर (जो तालू के साथ था) धड़ से उतार कर फैंक दिया तथा ब्रह्मा को पुत्री भोग के पाप से बचा लिया|

कर्ण की कथा-कर्ण वास्तव में पांच पांडवों की माता कुंती का ही पुत्र था| पर माया के चक्र और कुंती की तपस्या के कारण पांडवों को इसका ज्ञान न था, क्योंकि जब कर्ण का जन्म हुआ था तब कुंती अभी कुंआरी थी| कर्ण के जन्म की कथा इस प्रकार बताई जाती है- कुंती जब माता-पिता के घर थी तो इसने दूरबाशा ऋषि की खूब सेवा की| ऋषि ने इसको कुछ मंत्र (अहवान) बताए और कहा कि कोई मंत्र पढ़ कर जिस चीज की इच्छा की पूर्ति की कामना करोगी, वह पूर्ण होगी| एक दिन कुंती सूर्य देवता के दर्शन करने के लिए ऊपर राजमहल की छत पर गई| सूर्य की सुनहरी किरणों और उसके बल प्रताप को देख कर उसके मन में आया कि सूर्य देवता यदि मेरे पास मानव रूप में आएं तो देखूं वह कितने बलवान और सुन्दर हैं| यह विचार कर उसने दुरबाशा ऋषि के बताए हुए मंत्रों में से एक मंत्र को पढ़ा| सूर्य एक सुन्दर युवक के रूप में कुंती के पास आ खड़ा हुआ| यह देख कर कुंती सहम गई| भयभीत होकर प्रार्थना की कि सूर्य देवता आप वापिस चले जाएं| पर सूर्य वापिस न गया| उसने कुंती के साथ भोग किया| कुंती कुंआरी ही गर्भवती हो गई, पर दूसरे मंत्र पढ़ने के योग से उसका गर्भ प्रगट न हुआ| जब बालक ने जन्म लिया तो उस बालक को कुंती ने नदी में बहा दिया| बहता हुआ बालक कौरवों के रथवान के हाथ आ गया| उसने बालक का पालन-पोषण करके जवान किया, जो कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ| महाभारत में इसने कौरवों का साथ दिया| अन्त में अपने भाई अर्जुन के हाथों वीरगति प्राप्त की| तब कुंती ने पांडवों को बताया कि कर्ण तुम्हारा भाई है|


समुद्र खारा होना 

यह आम सवाल है की जिस समुद्र में से अमृत, कामधेनु, लक्ष्मी, कल्प वृक्ष, धन्वंतरी वैद्य आदि कई तरह के बहुमूल्य पदार्थ निकले वह क्षार क्यों है? कहते हैं की अगस्त मुनि के क्रोधित हो कर एक बार सारे सागर के पानी को ढाई चुल्लियों में पी लिया था| जब जल पी लिया गया तो जितने जल-जीव थे, वह तड़पने और पुकारने लगे कि क्या हो गया? वह किसके सहारे जीवित रहेंगे? प्रभु ने तब अगस्त को प्रेरणा की कि पेट में कैद किए सागर को पहले की तरह स्वतन्त्र कर दो| भगवान के कहने पर अगस्त ने पेशाब किया, इसी कारण सागर का जल क्षार है|

कैसी दैत्य :- केसी कंस मथनु जिनी कीआ ||

कैसी दैत्य राजा कंस के वश में था| पापी कंस ने जहां श्री कृष्ण जी को मारने के अनेकों उपाय किए, वहीं कैसी दैत्य को भी घोड़ाबना कर गोकुल भेजा| पर श्री कृष्ण ने अपने योग बल द्वारा कैसी दैत्य को मार दिया| यहां भक्त नामदेव जी ईशारा करते हैं कि श्री कृष्ण जी हरि रूप थे जिन्होंने कैसी तथा कंस को (मक्खन) रिड़क-रिड़क अथवा कोह-कोह कर मारा था|

काली सर्प :- गोकुल के नजदीक ही यमुना में एक गहरा कुण्ड था| उस कुण्ड में एक सौ फन वाला सर्प रहता था| उसको 'काली'नाग भी कहा जाता था| गरुड़ भगवान से डरता हुआ वह उस कुण्ड में आ छिपा था, वह बहुत ज़हरीला था| जब वह फुंकारा मारता या सांस लेता था तो कुण्ड का पानी उबले लग पड़ता था| इसी कारण उस कुण्ड का नाम 'काली कुण्ड' पड़ गया था| उसका जल दूषित हो गया था| श्री कृष्ण ने एक दिन गेंद लेने के बहाने काली कुण्ड में छलांग लगा दी| श्री कृष्ण की नाग से लड़ाई हुई| उसके सौ फनो को श्री कृष्ण ने पैरों से कुचल दिया| काली सांप बेहोश हो कर हार गया| श्री कृष्ण ने उसको कहा, "यमुना कुण्ड छोड़ कर कहीं अन्य जगह चले जाओ|" काली सांप कुण्ड को छोड़ कर चला गया|

दुरबाशा ऋषि :- दुरबाशा ऋषि अत्तरे मुनि के पुत्र थे| इनको शिव का अवतार माना जाता है| जब युवा हुए तो औरव मुनि की सपुत्री कंदली से दुरबाशा का विवाह हो गया| इनमें तमो गुण विद्यमान थे| इस कारण बहुत क्रोधवान थे| इन्होंने अनेकों को वर और हजारों को श्राप दिए| शकुंतला को इन्होंने ही श्राप दिया था कि दुष्यंत तुम्हें भूल जाए| द्रौपदी को वर दिया था कि तुम्हारे पर्दे ढके रहें| अन्य भी कथा-कहानियां हैं|

दुरबाशा ने जब विवाह किया था तो प्रतिज्ञा की थी कि अपनी पत्नी की सौ भूलें बक्श देंगे| जब सौ से ऊपर भूल हुई तो क्रोधित होकर कंदली को भस्म कर दिया| औरव मुनि ने श्राप दे दिया| एक बार पिंडारक तीर्थ पर ताप करने के लिए गए तो वहां यादव बालक खेलने आया करते थे| वह बहुत मजाकीये थे| उन्होंने एक दिन दुरबाशा का मजाक किया| वह मजाक इस तरह था कि जमवंती के पुत्र सांब के पेट पर लोहे की बाटी बांध दी| स्त्रियों जैसे वस्त्र पहना कर घूंघट निकलवाया तथा दुरबाशा के पास ले गए और पूछने लगे, 'हे ऋषि जी! बताओ लड़की होगी या लड़का?

दुरबाशा समझ गया कि यह मेरे साथ मजाक कर रहे हैं, उसने सहज स्वभाव ही उत्तर दिया -'लोहे का मूसल पैदा होगा जो यादवों की कुल नाश करेगा|' यादवों को श्राप दे दिया, उस ओर ईशारा है :-

दुरबाशा के श्राप से "यादव इह फल पाए||"इस तरह दुरबाशा के श्राप से यादवों की कुल नष्ट हो गई थी|


अठारह पुराण 

गुरुबाणी तथा गुरमति साहित्य में 'आठ दस' या अठारह पुराणों का नाम बहुत बार आता है| जिज्ञासुओं के ज्ञान के लिए अठारह पुराणों की सूची आगे दी जाती है :-

१. ब्रह्मा पुराण | २. विष्णु पुराण | ३. वायु पुराण | ४. लिंग पुराण | ५. पदम पुराण | ६. सकंध पुराण | ७. बावन पुराण | ८. मस्ताना | ९. वराह पुराण | १०. अग्नि पुराण | ११. भूरम पुराण | १२. गरुड़ पुराण | १३. नारदीय | १४. भविष्यत पुराण | १५. ब्राह्मण वेवरत पुराण | १६. मारकंडे पुराण | १७. ब्रह्मांड पुराण | १८. श्रीमद् भागवत पुराण |

सहसबाहु-सहसबाहु का वास्तविक नाम कांहत विर्यारजन था| यह कृतवीर्य का पुत्र था| इसकी हजार भुजाएं थीं| इसलिए सहसबाहु कहा जाता था| गुरु नानक जी फरमाते हैं :-

सहस बाहु मधु कीट महिखासा ||
हरणाखसु ले नखहु बिधासा ||
दैत संघारे बिनु भगति अभिआसा ||

सहसबाहु का राज नर्मदा नदी के दोनों तरफ था| एक दिन कहते हैं कि सहसबाहु नदी में स्नान कर रहा था कि हजार भुजाएं फैला कर इस नदी के जल को रोक लिया| जल इकट्ठा होकर ऊंचा होने लगा| पानी ऊंचा होकर नदी किनारे खेतों तथा जंगलों में फैलने लगा| एक वन में रावण भक्ति कर रहा था, पानी उसके नीचे चला गया| सहसबाहु ने उसको जकड़ कर बंदी बना लिया| इसी सहसबाहु ने जमदग्नि को मारा था|

रक्त बीज 

रक्त बीज एक ऐसा दैत्य था कि इसके रक्त की जितनी बूंदें धरती पर गिरती उतने ही दैत्य उत्पन्न हो जाते थे| कहते हैं कि राजा निसुंभ की लड़ाई देवी माता दुर्गा से हुई तो रक्त बीज उस से सुंभ निसुंभ की तरफ सेनापति था| काली मां ने इसके रक्त को पीकर इसका संहार किया था|


मधु कीटब

यह दो दैत्य थे| भगवान विष्णु ने इनको अपने कानों की मैल से उत्पन्न किया था| युवा होकर दोनों दैत्य ब्रह्मा जी को खाने लगे| ब्रह्मा जी ने अपने प्राण बचाने के लिए भगवान विष्णु की उस्तति की और उन्हें सोते हुए जगाया| भगवान विष्णु कई हजार वर्षों से सोए हुए थे| ब्रह्मा जी के ध्यान करने पर वह अपनी निद्रा से जाग उठे| दैत्य मधु और कीटब से भगवान विष्णु का पांच हजार वर्ष घोर युद्ध होता रहा लेकिन इस युद्ध में न ही विष्णु जी हारे और न ही मधु कीटब ने दम छोड़ा| अंत में महा माया ने हस्तक्षेप किया| मोहिनी रूप होकर उसने मधु और कीटब को भ्रम में डाल दिया| दोनों दैत्य शांत हो गए| उन्होंने भगवान विष्णु से लड़ना छोड़ दिया| दोनों राक्षसों ने विष्णु से कहा, 'आप हमारे साथ बहादुरी से लड़ते रहे हो, इसलिए जो चाहे वार मांग लीजिए|'

"मुझे अपने सिर दे दें|" यह मांग भगवान विष्णु ने मधु और कीटब राक्षसों से की| वचन के अनुसार दैत्यों को अपने सिर भगवान विष्णु को अर्पण करने पड़े| भगवान विष्णु ने अपनी जांघ पर दोनों दैत्यों के सिर धड़ से जुदा कर दिए| दैत्यों के सिर काटने पर उनका जो रक्त उससे निकला, वह समुद्र के पानी में जम कर धरती बन गई| यह धरती की भी जन्म कथा है|

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बाबा के 11 वचन

ॐ साईं राम

1. जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा
2. चढ़े समाधी की सीढी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर
3. त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौडा आऊंगा
4. मन में रखना द्रढ विश्वास, करे समाधी पूरी आस
5. मुझे सदा ही जीवत जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो
6. मेरी शरण आ खाली जाए, हो कोई तो मुझे बताए
7. जैसा भाव रहे जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मनका
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वो नही है दूर
10. मुझ में लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया
11. धन्य-धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य

.....श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय.....

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥

Word Meaning of the Gayatri Mantra

ॐ Aum = Brahma ;
भूर् bhoor = the earth;
भुवः bhuwah = bhuvarloka, the air (vaayu-maNdal)
स्वः swaha = svarga, heaven;
तत् tat = that ;
सवितुर् savitur = Sun, God;
वरेण्यम् varenyam = adopt(able), follow;
भर्गो bhargo = energy (sin destroying power);
देवस्य devasya = of the deity;
धीमहि dheemahi = meditate or imbibe

these first nine words describe the glory of Goddheemahi = may imbibe ; pertains to meditation

धियो dhiyo = mind, the intellect;
यो yo = Who (God);
नः nah = our ;
प्रचोदयात prachodayat = inspire, awaken!"

dhiyo yo naha prachodayat" is a prayer to God


भू:, भुव: और स्व: के उस वरण करने योग्य (सूर्य) देवता,,, की (बुराईयों का नाश करने वाली) शक्तियों (देवता की) का ध्यान करें (करते हैं),,, वह (जो) हमारी बुद्धि को प्रेरित/जाग्रत करे (करेगा/करता है)।


Simply :

तीनों लोकों के उस वरण करने योग्य देवता की शक्तियों का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।


The God (Sun) of the Earth, Atmosphere and Space, who is to be followed, we meditate on his power, (may) He inspire(s) our intellect.