भाई तिलकू जी
ऐसा जोगी वडभागी भेटै माइआ के बंधन काटै ||
सेवा पूज करउ तिसु मुरति की नानकु तिसु पग चाटै ||५||
गुरु अर्जुन देव जी महाराज फरमाते हैं कि योगी वहीं सच्चा योगी है तथा उसी को मिलो जो माया के बंधन काटे, जो बंधन काटने वाला है, ऐसे पुरुष अथवा ज्ञानी की सेवा तथा पूजा करने के अतिरिक्त उसके चरण भी छूने चाहिए| चरणों की पूजा करनी चाहिए| सतिगुरु जी बहुत आराधना करते हैं|
पर पाखण्डी योगी संत आदि जो केवल भेषधारी हैं उनके चरणों पर माथा टेकने से वर्जित किया है| आजकल भेष के पीछे बहुत लगते हैं सत्य को नहीं जानते| ऐसे सत्य को परखने तथा गुरमति पर चलने वाले भाई तिलकू जी हुए हैं जो एक महांपुरुष थे|
भाई तिलकू जी गढ़शंकर के वासी तथा पंचम पातशाह जी के सिक्ख थे| उनका नियम था कि रात-दिन, हर क्षण मूल मंत्र का पाठ करते रहते थे| कभी किसी को बुरा वचन नहीं कहते थे, सत्य के पैरोकार तथा कार्य-व्यवहार में परिपूर्ण थे| गुरु महाराज के बिना किसी के चरणों पर सिर नहीं झुकाते थे| नेक कमाई करके रोटी खाते थे| देना-लेना किसी का कुछ नहीं था, ऐसी उन पर वाहिगुरु की अपार कृपा थी|
गढ़शंकर में एक योगी रहता था| एक सौ दस साल की आयु हो जाने तथा घोर तपस्या करने पर भी उसके मन में से अहंकार नहीं निकला था, वह अभिमानी हो गया तथा अपनी प्रशंसा करवाता था| लोगों को पीछे लगा कर अपना यश सुनता|
उसने अपने जीवित रहते एक बहुत बड़ा भंडारा किया| जब भंडारा तैयार हुआ तो उसने सारे नगर में तथा बाहर ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध, नवयुवक भंडारे में भोजन करेगा, उसको दो साल के लिए स्वर्ग हासिल होगा, उसको परमात्मा के दर्शन होंगे|
उस योगी का यह संदेश सुनकर नगर के लोग बाल-बच्चों सहित पधारे तथा भंडारा लिया, योगी का यश किया| जब सभी ने भोजन कर लिया तो योगी ने अपने मुख्य शिष्य को कहा -
'पता करो कोई स्त्री-पुरुष भंडारे में आने से रह तो नहीं गया| यदि रह गया हो तो उसे भी बुलाओ|'
योगी का ऐसा हुक्म सुनकर उसके मुख्य शिष्य ने नगर में सेवक भेजे| उन्होंने पता किया तथा कहा-'महाराज! भाई तिलकू नहीं आया, शेष सब भोजन कर गए हैं| वह कहता है मुझे स्वर्ग की जरूरत नहीं, वह नहीं आता|'
योगी ने उसके पास दोबारा आदमी भेजे था कहा, उसे कहो कि तुम्हें दस साल के लिए स्वर्ग मिलेगा, आ जाओ| मेरा भंडारा सम्पूर्ण हो जाए| हुक्म सुनकर वे पुन: भाई तिलकू जी के पास गए, उसको दस साल स्वर्ग के बारे में बताया तो वह हंस पड़ा| इतने सस्ते में स्वर्ग जीवन देने वाले योगी के माथे लगना ही पाप है| मुझे स्वर्ग नहीं चाहिए| मेरे स्वर्ग मेरे जीवन को लेने-देने वाला मेरा सतिगुरु है, मैं तो उसकी पनाह में बैठा हूं| जाओ, योगी को बता दो|
शिष्य हार कर चले गए तथा योगी को जाकर बताया| योगी सुनकर आपे से बाहर हो गया और क्रोध से बोल उठा| उसने कहा-'मैं देखता हूं उसका गुरु कौन है? उसकी कितनी शक्ति है? अभी वह आएगा तथा पांव में पड़ेगा| तिलकू तिलक कर ही रहेगा|'
इस तरह बोलता हुआ योगी लाल-पीला हो गया तथा आसन से उठ बैठा| उसके हृदय में अहंकार तथा वैर भावना आ गई| वैर भावना ने योगी की सारी तपस्या तथा भक्ति को शून्य कर दिया| योगी को अपने योग बल पर बहुत अभिमान था| उसने समाधि लगाई| योग बल से भूत-प्रेत, बीर बुलाए तथा उनको आज्ञा की-'जाओ तिलकू को परेशान करो, वह मेरे भंडारे में आए|'
योगी का हुक्म सुनकर बीर तथा भूत-प्रेत भाई तिलकू के घर गए| पहले तो आंधी की तरह उसके घर के दरवाजे खुले तथा बंद हुए| धरती डगमगाई तथा भाई तिलकू जी के मुख से निकला-'सतिनाम सति करतार!' आंधी रुक गई| फिर भाई तिलकू जी मूल मंत्र का पाठ करने लग पड़ा| जैसे-जैसे वह पाठ करता गया वैसे-वैसे सारे खतरे दूर हो गए|
योगी के सारे भूत-प्रेत तथा बीर उसके पास गए| उन्होंने हाथ जोड़ कर बुरे हाल योगी के आगे विनती की-
हे मालिक! हमारी कोई पेश नहीं जाती| उसकी रक्षा हमसे ज्यादा कोई महान शक्तिशाली आदमी कर रहे हैं, उनसे तो थप्पड़ और धक्के लगते हैं| घुल-घुल कर हांफ कर आ गए हैं| वह तिलकू कोई कलाम पढ़ता जाता है| हम चले, हम सेवा नहीं कर सकते| यह कह कर सारी बुरी आत्माएं चली गईं| योगी की सुरति कायम न रह सकी| वह बुरी आत्माओं को काबू न रख सका, वह सारी चली गईं|
योगी ने निराश हो कर समाधि भंग की बैठा तथा भाई तिलकू के पास गया तथा उसके घर का दरवाजा खटखटाया| आवाज़ दी-'भाई तिलकू जी दरवाजा खोलो|' योगी आप के दर्शन करने आया है|'
यह सुन कर भाई तिलकू जी ने दरवाजा खोला तथा देखा योगी बाहर खड़ा था| उसके पीछे उसके शिष्य तथा कुछ शहर के लोग थे|
'भाई जी! यह बताओ आपका गुरु कौन है?' योगी ने पूछा|
भाई तिलकू जी-'मेरे गुरु, सतिगुरु नानक देव जी हैं| जिन्होंने पांचों चोरों को मारने की शिक्षा दी है|
योगी-'मंत्र कौन-सा पढ़ते हो?'
भाई तिलकू-'सति करतार १ ओ सतिनामु करता पुरखु......|' भाई जी ने मूल मंत्र का पाठ शुरू कर दिया| यह मंत्र ही कल्याणकारी है| आपकी तरह साल-दो साल मुक्ति नीलाम नहीं की जाती| यह आपकी गलती समझो| इसलिए मैं नहीं गया, मेरे गुरु ही भव-सागर से पार उतारते हैं|'
भाई तिलकू जी के वचनों का प्रभाव योगी के मन पर बहुत पड़ा तथा अंत में भाई तिलकू योगी को साथ लेकर सतिगुरु जी की हजूरी में पहुंचे| सतिगुरु जी ने योगी को उपदेश दे कर भक्ति भाव के सच्चे मार्ग की ओर लगाया|