प्रकृति की रक्षा करें
पढ़-पढ़ कर पोथीयाँ पंडित जी कहाये
ढाई आखर प्रेम का हृदय ना धारे कोये
गर बांचते नाम भी दिल से राम जी का
तो ना कहाते अंश कभी भी रावण का
मैं ना जानू दीन धर्म का फलसफा
पूरी दुनिया से हूँ कुछ खफा खफा
मोहब्बत का समय मिलता नही हैं
नफरत को रहते हैं तैयार हर दफा
कभी जायका ठीक करना हो फिजा का
तो हरपल दो बूंद प्यार की ज़बान पर रखो
खुद-ब-खुद सुधर जाएगी रंगत नज़ारो की
दुसरो को लुत्फ उठाने दो, मजा खुद भी चखो
फिज़ायें रंग बदलती हैं हरकते हमारी देख
क्या दोगे अपनी पीढ़ी को गर ना की देखरेख
चूल्हे कागज की जरूरत में पेड़ काटने लगे
अब सांस लेने में हुई तकलीफ तो चिल्लाने लगे
वक्त हैं अब भी सम्भल जाओ
और ना अब भी समय गंवाओ
अस्पताल में नहीं चाहते भर्ती
तो बस पेड़ लगाओ, पेड़ लगाओ