ॐ सांँई राम जी
64 खाने शतरंज के खेल मे
बादशाह मगर दोनो ओर एक
तू है रहमतो का बादशाह मालिक
मै ठहरा मंगतो का बादशाह एक
तेरी रहमतो के सदके
पड़ी ऐसी आदत साँई
तू दे दे कर नही थकता
और हमे मांगते हुए शर्म ना आई
आज अर्से के बाद बाबा फिर से
शब्दो के असर रंगीन निकले है
जिस ने भी प्रेम से साँई नाम लिया
हम तो उसी के संग जीने निकले है
बाबा बाबा करते करते ही
हम जीवन नईया पार हो गये
जो थे कभी गुमनामी मे खोये
आज साँई नाम लिखे पत्थर हो गये
कुछ ऐसा करम कर दे मेरे मालिक
सांस रूकने तक शब्द खाली ना हो
ऐसे बाग का हम क्या करेंगे बाबा साँई
जिस बाग का मेरे साँई तू माली ना हो