ॐ सांई राम
मैं रोज़ गुनाह करता हूँ, वो छुपाता है अपनी रहमत से,
मैं मजबूर अपनी आदत से, वो मजबूर अपनी रहमत से
जिस हाल में रखे साई......
उस हाल में रहते जाओ
तुफंनों से क्या घबराना
तूफानों में बहते जाऊ
गम और ख़ुशी की रातें
सब हैं उसकी सौगांते
देनेवाला जो दे दे
हंस-हंसके सहते जाओ
जिस हाल में रखे साई......
तुम दूर नहीं मंजिल से
बस दिल को लगालो दिल से
और उसके गले से लगकर
जो कहना है कहते जाओ
जिस हाल में रखे साई......
उस हाल में रहते जाओ
सतगुरु साईं हम सभी पर हमेशा रहमत बनाये रखें
रहम नजर करो,अब मोरे साईं |
तुम वीन नहीं मुझे मा बाप भाई |
मैं अंधा हूं बंदा तुम्हारा ||
मैं ना जानूं, अल्लाइलाही || रहम.||१||
खाली जमाना मैंने गमाया,
साथी आखर का किया न कोई || रहम.||२||
अपने मशिद का झाडू गणू है,
मालिक हमारे, तुम बाबा साई || ...रहम.||३||